अकेले ही लड़ना है
दीवान सिंह भुगवाड़े
बड़वानी (मध्यप्रदेश)
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उम्मीदें कितनी है तुझ पर तेरे अपनों की
माता-पिता दोस्त और भाइयो-बहनों की
कर पालन किया था जो वादे-वचनों की
अंत समय तक ना छोड़ डगर सपनों की।
कर इज्जत सदैव अपने गुरुजनों की
कमाई कर व्यवहार, कुशलता, आदर्शों की
हो सफल इज्जत बड़ा ,अपने परिजनों की
आस ना कभी कर, ऊंचे-बंगले भवनों की।
चल मंद-मंद मगर रोक न चाल कदमों की
ना कर परवाह जीवन में मिथक कथनों की
मुश्किलें लाखो हो, अपने मंजिल-ए-सफर की
मगर कर परिश्रम, त्याग चेन-नींद, आरामों की।
ना रख उम्मीद किसी से साथ-सहयोग की
यहां तो पड़ी है सबको अपने मतलब की
इस जहां में कोई कदर नहीं उस इंसा की
जो सत्य हो खाता कमाई अपने मेहनत की।
थोड़ा-पढ़ भी ले ऐ-युवा, वक्त है अभी भी
कर्तव्य जान ले अपने और हक-अधिकार भी
हो यदि भ्रष्टाचार-अन्याय तो उठा आवाज भी
पढ़कर लड़,लड़कर पढ़ और आगे बढ़ भी।
अपार दुख है ज...























