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मृतक पिता और बेटे संग संवाद
कविता

मृतक पिता और बेटे संग संवाद

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मृतक- ये छूटी है अब तो मोह माया। हमने तिनका-तिनका जोड़ घर है बनाया। पर आज अब हम भए है वीराने बरात खड़ी है अपने लिए आँसू बहाने। कल जोड़ा था जो हमने था अब साथ नहीं मेरे। बेटे अब है मेरी ये धरोहर नाम तेरे। काम ना आवेगी हमारी कीर्ती। चाहे कितने थे मशहूर हम नामी। अरे हाँ छूटा है अब तो सबका साथ। ना रखना अव कोई गिला-शिकवा साथ। मेरा आखिरी वक्त है अब मेरा तुम्हारे साथ। बस अब होगी मेरी सीर्थ ही तुम्हारे साथ। हम आज चले कि कल चले, चले साँसें त्याग। क्यों मृतक हो के हम आज चलेंगे मेरे बाल जलेंगे जैसे घास जले और हाड़ जलेंगे जैसे लकड़ी जले । मेरा अब माटी होगा शरीर ये। तुम भूल पल भर में जाओगे हमें। मैं कितना दर्द सहूँगा। क्या तुम्हें जलाने में मुझे पल भर भी दया नहीं आएगी। बेटा- पापा दुनियाँ का दस्तूर यही है। जो मरा उसे जलाया गया या फिर उसे दफ्नाया ...
मातृ-पितृ भक्त होती बेटी
कविता

मातृ-पितृ भक्त होती बेटी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** तन से समर्पण मन से समर्पण सब कुछ अपना कर दे अर्पण नयनो में आत्मिक भाव झलकता हृदय में उपस्थित अति कोमलता उल्लास का अर्णव होती बेटी मातृ-पितृ भक्त होती बेटी दो कुलों की लक्ष्मी और लाज इस आधुनिकता में भी परायी आज कहने को सिर्फ शब्द है आज के युग में, बेटा बेटी एक समान पर जब अधिकारो का बँटवारा होता फिर कर्तव्यों के लिए क्यों असमान दूसरे कुल जाकर, कुल का मान बढ़ाती संवेदनशील होकर हर रिश्ता निभाती फिर भी हर गलती की जिम्मेदार वही ठहरायी जाती क्यों समझी जाती हैं वह परायी बेटी जबकि मातृ-पितृ भक्त होती बेटी हो चाहे धर्म माता-पिता या जन्मदाता हृदय दोनों से स्नेह, अपनत्व है चाहता ससुराल में भी जब बेटी मुस्कुराये, सम्मान पाए तो हर माता-पिता बेटी के जन्म से न घबराए सभी खुशी की अनुभूति से बेटी दिवस मनाएं सर्व गुणों की खान, प्रत्येक क्षेत्र में अ...
मोहब्बत हो गई
कविता

मोहब्बत हो गई

संजय जैन मुंबई ******************** खुद एक चांद हो तो क्यों पूर्णिमा इंतजार करे। और मोहब्बत का इसी रात में होकर मदहोश हम आंनद ले।। तुम जैसे दोस्त से यदि मोहब्बत हो जाये। तो हमें सीधी सीधी जन्नत मिल जाये।। डूब चुका था प्यार के सागर में, और नश नश में मोहब्बत भर गया था। क्यों बहार निकाला मुझे इस सागर से..? इस प्रश्न का उत्तर अब तुमको ही देना है।। गुजारिश है तुमसे आज दिलमें थोड़ी सी जगह दे दो। और अपनी गर्म सांसो से मुझे फिरसे जीवन दे दो।। आज दिलको मत रोकना हजूर दिलसे मिलने को। क्योंकि ये पहले ही व्याकुल था तुम्हारे दिलमें डूबने को।। इतने सुंदर हो तुम की देखकर दर्पण भी शर्मा रहा है। मेरा दिल भी तो आईना है जो परछाई मुझे दिखा रहा।। इसलिए मेरा दिल आज तुम्हारे दिलमें शामाया है। जो धड़कनों को मेरी मोहब्बत करने को बुला रहा।। कितनी हसीन रात है जो हमको बुला रही है। क्योंकि दो दो चांद जो एक साथ...
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
कविता

पीढ़ी-दर-पीढ़ी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** दो पैरों की गाड़ी चलती जा रही है अवनि अम्बरतल सब देख रही है। कोरोना प्रकोप तांडव झेल रही है कुरुक्षेत्र के कृष्ण पांडव टेर रही है। जुनून था कभी जज़्बा बदल रही है नासमझी की राहें बलवा कर रही है। प्रदर्शन धरनों की बौछार सह रही है आस-विश्वास की व्यथा कह रही है। अपनों और सपनों को यूं तौल रही है कटु प्रवचन से जिंदगी जो खौल रही है नाटक पे नाटक के वो पट खोल रही है ममता-समता हर युग अनमोल रही है शिक्षा-संस्कार किस तरह संभाल रही है परिवर्तन अब परंपरा को खंगाल रही है। पुरखे धनपति चाहे पीढ़ी कंगाल रही है नव पारंगत पीढ़ी अब गुरु-घंटाल रही है। मेहनत मन्नत खिदमत की फ़िज़ा रही है किस्मत ताकत आदत की रज़ा रही है नेता नव-भारत के मंसूबे सजा रही है जनता ढपली से अपना राग बजा रही है हौसलों से अब फासलों को नाप रही है गुजरी यादें अपने हाथों से ताप रही है चालें ...
जय माँ महिषासुर मर्दिनी
कविता, भजन

जय माँ महिषासुर मर्दिनी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जय मांँ महिषासुर मर्दिनी जग के सकल कष्ट निवारिणी है अस्तित्व ब्रह्मांड का तुमसे ही आदिस्वरूपिणी जब न था सृष्टि का अस्तित्व था अंधकार ही अंधकार चहुँओर जग में बिखरा हुआ तब तुम ही सृष्टि-रचनाकार सूर्य सी देदीप्यमान तुम सा न कोई कांतिवान सकल जग की प्रसविणी, माँ कूष्मांडा सृष्टि रूपिणी अपनी मंद स्मिति से तूने की ब्रह्मांड की उत्पत्ति अपने उपासकों को देती लौकिक पारलौकिक उन्नति आधि-व्याधि विमुक्तिनी तू मांँ सुख-समृद्धि प्रदायिनी विकार - महिषा का कर मर्दन मांँ तू शुभ भाव संचारिणी युग में फैली अराजकता सबका शमन करो कल्याणी! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
रावण
कविता

रावण

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जलता अन्दर-बाहर रावण! जीवित होता मरकर रावण! वह बुराइयों का प्रतीक है, करता जादू मन पर रावण! "व्यापक है मेरा अस्तित्व" जग से कहता हँस कर रावण! बौना हो अथवा नभचुम्बी कुछ पल मिटता जलकर रावण! छलता है सबको मायावी अपना रूप बदलकर रावण! अभिमानी है बलशाली भी जाता रहता घर-घर रावण! दस आनन थे मगर राम से हुआ पराजित लड़कर रावण! मारो, काटो, उसे जलाओ नष्ट नहीं होता पर रावण! रशीद' आप सच्चे बन जाओ भग जाएगा डरकर रावण! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा...
अहम ब्रम्हास्मि
कविता

अहम ब्रम्हास्मि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। जो ढूंढ रहा है तू बाहर वो बैठा है तेरे ही भीतर खोल कपाट अंतस के कर दर्शन परमात्मा के जीवन के खेल निराले कुछ उजले कुछ काले कह रहे कोमलता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। राम नाम की शरण में मोक्ष छुपा है मरण में जीवन को स्वर्ग बनाकर दूजे का बन दिवाकर नित नये आनंद पायेगा जगत चैतन्य हो जायेगा मिला दे कर्म धर्मता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। जीवन की यही आस है प्रभुमिलन की प्यास है भीतर मेरे जो घट रहा लोगो मे है वो बट रहा आलोकित है मन मेरा दूर कर दूंगा तमस तेरा नाता न रहा दुर्बलता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। सरिता के जल सा वसुधा के तल सा नभ के परिमल सा दीप के अनल सा पवन के निर्मल सा हो गया मैं ब्रह्मांड सा पंच तत्व की पावनता से जोड़ नाता मानवता से ई...
महादेवी वर्मा सम्मान हेतु सुश्री आरज़ू का चयन
साहित्य समाचार

महादेवी वर्मा सम्मान हेतु सुश्री आरज़ू का चयन

०१ नवंबर २०२० को प्रयागराज में किया जाएगा सम्मानित इंदौर। साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था गुफ्तगू द्वारा वर्ष २०२० के महादेवी वर्मा सम्मान हेतु सुश्री आरज़ू का चयन उनकी साहित्यिक सेवा के लिए किया गया है। इन्हें यह सम्मान १ नवंबर २०२० को हिंदुस्तानी एकेडेमी की ओर से प्रयागराज में दिया जाएगा। इस संस्था द्वारा प्रतिवर्ष देश के विभिन्न हिस्सों की कुछ लब्ध प्रतिष्ठित कवयित्रियों को हिंदी के प्रति उनकी सम्बद्धता एवं संलग्नता हेतु महादेवी वर्मा सम्मान से अलंकृत किया जाता है। संस्था के अध्यक्ष श्री इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने बताया कि इसके लिए संस्था की ओर से पहले कवयित्रियों की श्रेष्ठ रचनाओं का चयन होता है, उसी आधार पर यह सम्मान तय होता है। छिंदवाड़ा म. प्र. से सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' जी के अतिरिक्त, वर्ष २०२० का महादेवी वर्मा सम्मान, राजकांता राज (पटना), ममता वाजपेई (होशंगाबाद), म...
आओ इस बार अपने मन के अंदर बैठे हुए रावण का अंत करें
आलेख

आओ इस बार अपने मन के अंदर बैठे हुए रावण का अंत करें

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           हम हर वर्ष दशहरा में बुराई का प्रतीक रावण का पुतला जलाते हैं। पुतलों की ऊंचाई हर बार बड़ी और बड़ी होती जाती है। रावण का पुतला दहन कर हम अपने आप को राम के तुल्य मान लेते हैं, और खुश हो जाते हैं। आपको मालूम है कि रावण अपने बड़ी-बड़ी आंखों को दिखाकर और बड़े बड़े दांत दिखाकर जोर-जोर से हंसता है, और कहता है कि रे! मानव तुम लोग मुझे जिंदा जला नहीं सकते, इसलिए कागज का जला कर ही खुश हो जाते हो। मैं मरता कहां हूं? मैं तो हर वर्ष और अधिक शक्तिशाली होकर तुम्हारे सामने प्रकट हो जाता हूं, और तुम लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। सही भी तो है कि अगर हम अपने अंदर बैठे हुए रावण (बुराई) का अंत कर दे, तो फिर रावण के पुतले को जलाने की आवश्यकता ही नहीं होगी। आज हर मानव के मन में दानव कुण्डली मारक...
मासूमियत
कविता

मासूमियत

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** (बेटी को समर्पित) हमने देखी है मासूमियत एक सच की तरह, वो मासूम सी है, स्निग्ध चांदनी सी धवल भी, शक्ल पर नूर सा बिखरा है उसके शुद्ध, शांत और सौम्य सी है। कभी नन्ही, चंचल, अल्हड़पन से घिरी हुई से, कभी कठोर, अटल, अडिग सी आसमान की ऊंचाई को नापती हुई दिखती है, कभी गंभीर, समुंदर की गहराई छुपाए हुए चुपचाप सी उमंग की लहरें भी बेतहाशा दौड़ पड़ती हैं ठोकर भी खाती हैं, वापस भी आती हैं, गिर के उठती भी हैं, सपने कल्पना बनकर आंखों में सजते भी हैं आंख खुली तो वो हकीकत बनकर टूटते भी हैं। फिर भी उसकी मासूमियत जिंदा है उसमे, कल भी थी, आज भी है, मासूम सी ही रहेगी खुद में।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी....
लड़ रहे… बढ़ रहे…
कविता

लड़ रहे… बढ़ रहे…

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** कोई लिख रहा है, कुछ लोग पढ़ रहे हैं कोई पढ़ते हुए लड़ रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए पढ़ रहे हैं। कोई बोल रहा है, कुछ लोग आवाज उठा रहे हैं कोई जुड़ रहा है, कुछ लोग लड़ रहे हैं। कोई चल रहा है, कुछ लोग दौड़ रहे हैं कोई स्वयं के लिए, कुछ समाज हित में लड़ रहे हैं। कोई अधिकारों के लिए, कुछ कर्जदारों हेतु लड़ रहे हैं कोई ठगों को पकड़ रहा है, कुछ लोग मांगों हेतु लड़ रहे हैं। कोई अपना ही रोक रहा है, कुछ लोग रास्ते में अड़ रहे हैं कोई जातियां तोड़ रहा है, कुछ लोग समाज जोड़ रहे हैं। कोई हौंसला बढ़ा रहा है, कुछ लोग हिम्मत जुटा रहे हैं कोई राजनीति कर रहा है, कुछ आपबीती हेतु लड़ रहे हैं। कोई रहमत कर रहा है, कुछ लोग मेहनत कर रहे हैं कोई जागरूक कर रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए बढ़ रहे हैं। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वानी (म.प्र.) घ...
मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो
ग़ज़ल

मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुनो अपना दिल मुझको उधार दे दो, तुम पर ग़ज़ल कहूँ मैं थोड़ा प्यार दे दो! संग-संग हंसे और संग-संग रोंए दोनों मुझे भी अपने सुघर नेह की धार दे दो! सिवा तुम्हारे ना किसी का जिक्र करूँ मैं, अपनी चाहतों का अब ऐसा खुमार दे दो! है मुश्किल काम मोहब्बत को निभा पाना मैं कर लूंगा ये काम भी, तुम ऐतबार दे दो! एक-दूसरे का हमसाया बनकर रहें हम, मेरी ग़ज़लों को आवाज तुम एक बार दे दो! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान सम...
मां तेरे चरणों में
कविता

मां तेरे चरणों में

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** शीश झुकाऊं मां तेरे चरणों में पल पल ध्यान करूं मां और शीश तेरे चरणों में झुकाऊं मां। जब जब तेरा स्मृण करूं आंखें खोलूं तेरा सुन्दर रूप दिखें मेरी मां। ज्ञान दीप जले तेरे आंचल में मां, तू जननी है मां इस सृष्टि की नहीं भेद भाव किसी से करती तू मां। नहीं कोई वजूद मेरा मां, और नहीं कोई तेरे सिवा मेरा मां। तू धनी अपनी ममता की मां, सरणागत हूं मां ख़ाली हाथ आया था, खाली हाथ जाऊंगा तेरा आशीष मिल जाए जीवन मेरा तर जाये मां। तेरे दर आतें सभी दिन दुखियारें मां, सभी की मनोकामना करती पूरी मां गगन भी खड़ा शिश नमाये पुष्प सुमन आरती लिए हाथ जोड़कर भक्ति भाव से तेरे चरणों में हूं मां। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घ...
अच्छा लगता हैं…
कविता

अच्छा लगता हैं…

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** अच्छा लगता हैं...... कवि को मंच और दर्शकों को बातों का पंच अच्छा लगता हैं...... सौ झूठ कहने से, एक सच कहना अच्छा लगता हैं...... कभी-कभी अपनों से हार जाना, जीत जाने से अच्छा लगता हैं...... अमीरों के राजमहल से, गरीब की कुटिया में रहना अच्छा लगता हैं...... एकल परिवार में रहने से, संयुक्त परिवार में रहना अच्छा लगता हैं...... नई फिल्मों को देखने से, पुरानी फिल्मों को देखना अच्छा लगता हैं..... डीजे की भड़भड़ से, ढोलक की मधुर थाप पर नाचना अच्छा लगता हैं...... अच्छे काम के लिए झूठ बोलना, सच कहने से अच्छा लगता हैं...... विदेशों में रहने से, अपने देश में रहना अच्छा लगता हैं...... बहुत अधिक बोलने से, मौन रहकर कहना अच्छा लगता हैं....... वर्तमान महामारी को देखकर, घर में सुरक्षित रहना अच्छा लगता हैं..... परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक) निवासी : इंदौ...
मैं एक अदना सा शिक्षक
कविता

मैं एक अदना सा शिक्षक

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक अदना सा शिक्षक, अपनी जिंदगी की सफर में, समय का पाबंद और नियमों, का गुलाम रहा घनघोर बरसात हो। या कड़क धूप की दुपहरिया हो- हम अपनी पूरी लगन और निष्ठा से- जीवन की विगत कई बसंतो को- अपनी जीवन में आहिस्ता-आहिस्ता दफन होते देखकर हैरान हुआ- एक पुरानी साइकिल पर रेंग कर चढना फिर अपने गंतव्य पर! पहुंचने की जद्दोजहद से- हकलान और परेशान हुआ! मैं एक अदना सा शिक्षक- अपनी जिंदगी की सफर में- समय का पाबंद और नियमों- का गुलाम रहा परेशान रहा! अपनी जीवन के बीते पल पल को- समय की प्रवाह में बहते देख अवाक रहा! दरवाजे पर खड़ी इंतजार में- मेरी सह धर्मनी और छोटे बच्चे- सभी परेशान और उदास रहा! नियत समय पर हाथों में पंखा लिए- चिलचिलाती धूप की लू में उदास भया क्रान्त रहा! अब थक गया हूं जिंदगी की उम्मीदों से- बस मां भारती तेरी आंचल में छुप कर- सो जाओ जिंदगी ...
गरीबी की परिभाषा
कविता

गरीबी की परिभाषा

संजय जैन मुंबई ******************** गरीबी क्या होते है किसी किसान से पूछो। ये वो शख्स होता है जो खाने देता अन्य। परन्तु इसकी झोली में नहीं आता उसका हक। इसलिए यही से गरीबी का खेल शुरू हो जाता है।। कड़ी मेहनत और लगन से किसानी वो करते है। कितना पैसा और समय वो इस पर लगाते है। और फल के लिए वो भगवान पर निर्भर होते है। और गरीबी अमीरी का निर्णय फसल आने पर होता है।। मेहनत और काम ही इन का लक्ष्य होता है। उसी के बदले में जो कुछ इन्हें मिलता है। उसे इनका जीवन यापन चलता है। अब निर्णय आपको करना है की ये गरीब है या.....।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-...
आज फिर घूमना है
कविता

आज फिर घूमना है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** स्वतंत्रता मिल चुकी है, आजादी से सबको प्यार, आसमान अब चूमना है, लो आज फिर घूमना है। आजादी के रूप अनेक, कोई काम से है आजाद, किसी को बचपन याद, कोई करता है फरियाद। कोरोना के बंधन में थे, अनलॉक के दिन आये, बीते के दिन भूलना है, लो आज फिर घूमना है। कैदी काट रहा था जेल, कैदियों से था बस मेल, छूट गया फिर, कैद से, कैद से खत्म हुआ खेल। कैदी हुआ कैद से रिहा, कैदखाना दिन भूलना है, प्रसन्न बहुत नजर आया, आजाद फिर, घूमना है। पढ़ते पढ़ते हुआ बोर, नींद हैं आंखों में घोर, परीक्षा संपन्न हो गई, आज फिर, घूमना है। दौड़ रहा मंजिल ओर, मंजिल अभी दूर ना है, एक दिन मिले मंजिल, तब तक यंू घूमना है। दुश्मन बचकर निकले, आंसू आंखों से, बहते, अब दुष्ट को, घूरना है, ले आज फिर घूमना है। गर्मी की छुट्टियां, शुरू, स्कूल अब, भूलना है, दौड़ चले, सैर सपाटा, लो...
माँ के लिए
गीत

माँ के लिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ईश्वर से अनाथ बालक की विनती मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। मैने देखी ही नहीं …। माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार। मैने देखी ही नहीं.... ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार। मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन...
कुदरत के फैसले…
कहानी

कुदरत के फैसले…

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ********************                                                      पिछले महीने सितम्बर के आखिरी हफ्ते की बात है, मैं कुछ अनमनी, हैरान,परेशान सी थी, अपने ही लोगों से कुछ आहत थी! जीवन में यह सब नया नही था और ना पहली बार! सब कुछ चलता रहता है यही सोचकर मैं घर के छोटे-मोटे काम निबटा कर नहाई! समय लगभग दिन के एक बज चुके थे, मंदिर में दीप जलाते ही मुझे याद आया कि तुलसी का पौधा सूखने लगा होगा, इसलिए जल चढ़ाने के लिए बाहर गई! मन में संशय था कि कहीं कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...? कि दिन के एक-दो बजे तुलसी में जल चढ़ा रही है, कितनी लापरवाह और आलसी औरत है! यूँ तो सरपट भागती दिल्ली नगरिया में किसी को किसी से कोई विशेष मतलब नहीं रहता है, फिर भी आस पड़ोस की कुछ महिलाएँ दूसरी महिलाओं की कमियाँ और खोट निकाल कर मजे लेने से पीछे नहीं हटती हैं! जो भी हो लेकिन म...
हे माँ तुझको नमन है
कविता, भजन

हे माँ तुझको नमन है

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ हे माँ तुझको नमन है बारम्बार नमन है हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ ऐसा वर माँ मुझको दो करता रहूं गुणगान जीवन पथ पर अडिग न होऊं हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ प्रेम प्यार मुझमें भर दो जो आए खाली न जाए कर्म वचन से न मैं रहूँ दूर सदा हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ भक्ति में शक्ति है माँ सदा रहूँ चरणों में तेरे इतनी शक्ति मुझे दे दो झूठ कभी न बोलूं मैं माँ हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ अबोध बालक हूँ मैया करो मेरा कल्याण दया दृष्टि डालो मुझ पर दो मैया तुम ऐसा वरदान हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ हो तुम जगत दात्री माँ मोहन की रख लो लाज जो आता शरण में तेरे जगदात्री करो स्वीकार हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी...
मुसाफ़िर
कविता

मुसाफ़िर

मोहम्मद मुमताज़ हसन रिकाबगंज, (बिहार) ******************** मुसाफ़िर- चलता है निरन्तर अपनी मंजिल की तलाश में रास्ते के तमाम झंझावतों को करके दरकिनार बढ़ता जाता है-अपने लक्ष्य की ओर तय कोई पड़ाव है न ठिकाना कहीं स्वयं भी नहीं जानता वह ख़त्म होगा कहां जाकर ये सफ़र जीवन का चलना, लड़खड़ाना, गिरना फिर सम्भलना- उबड़-खाबड़ रास्तों को लांघते हुए पुनः चल पड़ना- अपने लक्ष्य की ओर, पड़ाव की तलाश में- जीवन शायद इसी का नाम है!! परिचय : मोहम्मद मुमताज़ हसन सम्प्रति : लेखन, अध्ययन निवासी : रिकाबगंज, टिकारी, गया, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
नारियाँ : अबला या सबला
आलेख

नारियाँ : अबला या सबला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                                       ये ऐसा विषय है जिस पर पूरे विश्वास से कोई कुछ भी नहीं कह सकता। क्योंकि इस परिप्रेक्ष्य में सिक्के के दोनों पहलुओं का अपना अपना मजबूत पक्ष है और किसी भी एक पक्ष को कम करके आंकना खुद को धोखा देना ही कहा जायेगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि नारियां नित नये मुकाम पर पहुंच रही हैं। जिंदगी के हर क्षेत्र में अपने आप को न केवल सिद्ध कर रही हैं। बल्कि खूद को स्थापित कर खुद को खुद से ही चुनौती पेश कर कदम दर कदम अपने बुलंद हौसले की मिसाल भी पेश कर रही हैं।शिक्षा, कला, साहित्य, विज्ञान, सेना, खेलकूद, प्रशासन, राजनीति हर जगह अपनी मजबूत उपस्थिति का अहसास करा रही हैं। यही नहीं चूल्हा चौका से बाहर भी नारियां अपनी नेतृत्व क्षमता का भी लोहा मनवा रही हैं। इसलिए ये कहना गलत ही होगा कि नारिया...
जख्मों की टीस
कहानी

जख्मों की टीस

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                                   नेहा महज तीस साल की है। वह हिमाचल प्रदेश के बद्दी में रहती है। वह बद्दी के एक नामी पाठशाला में शिक्षिका है। वह अक्सर कहती कि उसे छुट्टियों वाले दिन की दोपहर बहुत लम्बी लगती है जैसे कि दिन यहाँ आकर रुक सा जाता है और इन दोपहरों की चुप्पी जैसे बीहड़ की कोई झील एकदम शांत सी। आज इतवार था। इस दिन का सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं। कोई दोस्तों से मिलने जाता है तो कोई सिनेमा देखने तो कोई शॉपिंग। पर नेहा के लिये यह सबसे लंबा और बोझल दिन रहता है। वह तब भी था जब आकाश था और वह अब भी है जब आकाश नहीं। आकाश नेहा का पति एल. आई. सी. में फील्ड ऑफिसर था। उसकी मौत हो चुकी थी। वह कोशिश करती कि रविवार को भी कॉपी चेकिंग के लिए ले जाये। पर आज तो उसके सारे काम भी खतम हुए काफ़ी समय हो गया था। शाम का समय था कॉलोनी के कपल देख उस...
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दोहा

हिन्दी चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* तैंतिस व्यंजन को गिने, ग्यारह स्वर पहिचान। अं अः है आयोगवह, चार संयुक्त जान।। ड़ ढ़ को मत भूलिये, हिंदी अक्षर ज्ञान। बावन आखर जानिये, कहत हैं कवि मसान।। जय कल्याणी हिंदी माते। तुमको नित विज्ञानी गाते।।१ व्याकर तीनों भाग बताये। वरण शब्द अरु वाक्य कहाये।।२ वर्णों का जब होता मेला। संधि का है यही झमेला।३ तीन भेद संधी है भाई। स्वर व्यंजन विसर्ग कहाई।।४ बहु तत् द्विगु अरु कर्मधराये। अव्यय द्वन्द्व समास बनाये।।५ उपसर आगे प्रत्यय पीछे। तत्सम मूला तद्भव रीझे।।६ वाक्य की परिभाषा जानो। सरल संयुक्त मिश्रा मानो।।७ सकल नाम संज्ञा कहलाते। सर्वनाम बदले में आते।।८ किरिया कर्म करत है भाई। विशेषण रंग रुप गहराई।९ अल्प अर्द्ध अरु पूर्ण विरामा। योजक कोष्ट प्रश्न निशाना।।१० गुरु कामता व्याकरण दाता। भाषा नियमा रचा विधाता।।११ नागरी देव लिपि है आली...
वनवास
कहानी

वनवास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** अवनी आज अपनी माँ से लगातार सवाल पूछ रही थी। यह अंकल कौन थे? बताओ ना माँ, आखिर कब तक तुम यूं ही घुटती रहोगी? क्या तुम्हें अपनी अवनी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? पापा को गुजरे बीस साल हो गए। कब तक उनकी यादों में खुद को डुबोकर रखोगी? आखिर कुछ तो कहो, माँ। देखो माँ तुम्हारे चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ रही है। कल को मेरी भी शादी हो जाएगी। मुझें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी कि वह अपने अतीत की छाया अपनी बेटी की जिंदगी पर नहीं पड़ने देगी। सब कुछ खत्म हो चुका था, फिर आज राजन क्यों लौट आया था, क्या पड़ी थी उसे? अवनी, माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ, शाम को आकर बात करते हैं। उसने जाते-जाते माँ को गले लगा कर चूम लिया था। मेरी प्यारी माँ नाराज हो अब तक, अच्छा अब मैं कुछ नहीं पूछूंगी? अब तो हँस दो माँ। बेटी का मन रखने के लिए ही सह...