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अन्नदाता
कविता

अन्नदाता

सीताराम सिंह रावत अजमेर (राजस्थान) ******************** तपते सूरज में पसीने से नहाता किसान दुनिया का अन्नदाता भीख मांग कर क्यों बीज लाता? क्यों फांसी पर लटक जाता ? क्यों अन्नदाता को दो वक्त का अन्न नहीं मिलता क्यों इतनी जी तोड़ मेहनत के बाद चेहरा नहीं खिलता आखिर क्यों किसान का चेहरा एक सवाल होता उचित दाम के न मिलने पर रोता क्यों किसान के सपने को मार दिया जाता इसलिये कि वो एक अन्नदाता है। इसलिये कि वो आपको सवाल नहीं पूछता या किसान का कोई मूल्य नहीं होता। परिचय :- सीताराम सिंह रावत निवासी : अजमेर (राजस्थान) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
चाह नहीं
कविता

चाह नहीं

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लहरेंं आती रहीं कभी धूप की तपिश लेकर और कभी आती रहीं छावँ की ठंडक लेकर। इन आती-जाती रही लहरों के मोहपाश में बंधा रहा मैं, न जाने कब तक बेहोंशी में। सामने खड़ी थी बन याघक कुछ मांगती थकी-मांदी जिंदगी सिमटी, अनजान सी। अचानक, उछाल लेती जलराशि से स्नात मैं शून्य में समाहित था राग-विराग से दूर मैं। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प्रवाह द्वारा तृतीय स्थान संप्रति : सहायक निदेशक (रा.भा.) कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,श्रम मंत्रालय...
कौन कहता है
कविता

कौन कहता है

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कौन कहता है यहांँ मस्जिदोशिवाले हैं। अपनी आंँखों में महज़ प्यास है, निवाले हैं।। तंगदस्ती कहांँ-कहांँ पे मार देती है, वक़्त ने कितने ही बेवक़्त सितम ढाले हैं।। कोई बादल बिना पूछे बरस नहीं सकता, आसमां तक भी सियासत के बोलबाले हैं। बस्तियांँ जलती रहें, मस्तियांँ भी चलती रहें, अजीब शय हैं, ख़ुदाई का शौक़ पाले हैं। मत करो, ज़िक्र से उनके लहू उबलता है, तन पे उजले लिबास, मन के बड़े काले हैं। मेरा वका़र जो ललकार उन्हें देता है, मखमली जूतियांँ पैरों में नहीं, छाले हैं। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
मोबाइल
कविता

मोबाइल

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम से, कोने- कोने से बातें हो जाती है। रिश्तों में दुरियाँ बढती चलीं जाती हैं, अब इसे जीवन कहे या मृत्यु कहे..... वाह! मोबाइल क्या नाम दिया है..... दुनिया भर की खबर देख लेते हैं, मानव सोच को सकारात्मक करते। अपना उधोग इससे कर सकते हैं, पर मानव इसका दूरउपयोग क्यों करते..... अब मोबाइल अपनी हर आवश्यकता पूरी करते..... ना दिन का पता ना रात का, बस मोबाइल पर समय गुजर जाता। पास होने पर अजनबी लगते, मोबाइल पर बातचित हो जाती हैं...... यह सुंदर दुनिया मोबाइल में खो जाती हैं........ परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
भइया से बोली भउजी
कविता

भइया से बोली भउजी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** इक दिन भइया से बोली भउजी करत के कंघी इया साल त सईया देखा लड़बय हमहू सरपंची भइया बोले बोट न पउबै नाहक होइ नामूजी आँखि तरेरि भइया कइ भन्नाय के बोली भउजी मिली बोट कइसे न देखी सोचेंन हयन सरल उपाय चमकती साड़ी सेट पहिनब हमजोरिन संग बागब गांव नैनन कजरा जुड़ा म गजरा ओठन पोटिकै लाली चारि जने के बीच बइठि पुनि मारब नयन कटारी परी बोट जिन्हा सजि धजिकै इस्कूले कय हम जाय मतदान परभारीसे हसि हसि अपने कैतिक लेब मिलाय कइसेउ मइसउ जीति गयेन जो तुहु कहउबय सरपंचपति दांत निपोरे अब तकि बागेउ लहि जाइहि तोहरउ घती अधिकारीन क साथ मिलाउब नाली रोड़ खूब बनबाउंब रुपिया पइसा पास म होइ सहर अपनउ बगला होइ आंगन बाड़ी केर पंजीरी दरिया अउ आबास बड़े मनई जे गाँव के जोरिहि हम से हाथ जेतकी जोजना सरकारी सगरिन से करब कमाई सुनब केहू कै न करब ऊहै जो हमरे मन म आई ...
बेरोजगारी
कविता

बेरोजगारी

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** बिगड़े ना बोल नाही अइसे दबेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। हमरा के चाही नाही मेवा मलाई। नोकरी के आस प्यास देता बुझाई। जिनगी के खोल जनि अइसे उकेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। बीतता उमिर अब पाकता डाढ़ी। रोईं अकेले बन्द कइके केवाड़ी। नइया उमिरिया के मारे हिलकोरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। मुहर हव लाग गइल देहियाँ पे भारी। लम्पट आवारा सभे बुझे अनारी। जुआ ना दारू नाही गांजा क डेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। रोटी ना भात रात कइसे बिताईं। छोटकी बेमार बिया कइसे सुताईं। गऊवां के लोग कहें हम्मे लखेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। माई के सस्ता दवाई उधारी। ओहु पे चल रहल रउआ के आरी। मछरी के अस कस नाहीं दरेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वाराणसी, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं ...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये
आलेख

घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                   किसी ने सच ही कहा है कि जिस घर मे बुजुर्ग सन्तुष्ट व प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह घर धरती पर स्वर्ग के समान है, परन्तु आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों में उत्पन्न व्यवहारिकता व आपसी सामंजस्य व घटती सम्मान की भावना के कारण ऐसा स्वर्ग अब अपवाद का रूप लेता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में अब बुजुर्गों को जीवन के अर्धशतक के नज़दीक आते आते सिर्फ अपने भविष्य के प्रति सचेत हो जाना चाहिये, कुछ नहीं पता हालात क्या मोड़ ले लें, स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत कर, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आशा व विश्वास से परिपूर्ण ऊर्जावान बनाये रखना होगा तभी तो बुढ़ापा खिलखिलाहट से भरा होगा, उसकी जगमगाहट अंदर तक आपको जाग्रत कर देगी। आज बच्चों की भी अपनी विवशताएँ है, कम आमदनी, बढ़ते खर्चे, चकाचैंध से भरा जीवन जीवन ज...
गोलगप्पे
कहानी

गोलगप्पे

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ********************                                  ग्यारह वर्षीय शैली अपनी सभी सहेलियों में क़द-काठी में सबसे लम्बी थी। खेलकूद प्रतियोगिताओं और पढ़ाई में सबसे होशियार परन्तु साथ ही सबसे अधिक शरारती भी। चित्रकारी और शायरी का इतना शौक़ कि गणित की कक्षा में भी बैठी हुई कापी के पिछले पन्नों पर टीचर की तस्वीर बनाकर उसके नीचे शायराना अंदाज में कुछ भी दो पंक्तियाँ और लिख देती। कक्षा के सभी छात्र शैली के द्वारा की गई चित्रकारी और शेरो-शायरी की ख़ूब सराहना करते और इसी के साथ उसकी कापी वाहवाही बटोरतीं पूरी कक्षा में घूमतीं रहती। टीचर जब कक्षा के सभी बच्चों की कापी चैक करने के लिए माँगती तो शैली भी बड़ी होशियारी से सबकी कापियों के नीचे सरका कर अपनी कापी भी रख देती। घंटी बजते ही चुपके से उसे वापस भी निकाल लेती। एक दिन की बात है कि कक्षा में टीचर ब्...
हुनर बदलने का
कविता

हुनर बदलने का

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** वक्त बदलता है तो हालात बदलते हैं लोग बदलते हैं तो जज्बात बदलता है किस्मत बदलती है तो जीवन बदलता है जीवन बदलता है तो एहसास बदलते हैं एहसास बदलते हैं तो अपने बदलते हैं बदलने का हुनर तो पूरी दुनिया के पास है वादा करके निभाने में बड़ा फर्क होता है कोई पाकर बदलता है तो कोई खोकर बदलता है नतीजे बदलते हैं तो रिश्ते भी बदलते हैं यह हुनर है या फितरत मौसम से भी ज्यादा इंसान बदलते हैं... परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मन
कविता

मन

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** वक्त बुरा नहीं होता, बुरे होते विचार, मन मेरा प्रसन्न हो तो,लोग करें प्यार, मन को काबू कर, बन सकता महान, मन मंद वेग मेें हो, बन जाए पहचान। मन की गति समझ नहीं पातेे, कितने, जगत हुये पंडित और हजारों विद्वान, मन पर काबू किया, साधु, संत महान, काबू से बाहर मन, राक्षस उन्हें जान। फूल सा मन था, जब होता था बच्चा, मेरा मन कहता था, दिल का हूं सच्चा, काम मन से किया, लगता था अच्छा, छल पट से दूर था, इसलिए था बच्चा। हुआ युवा,मन जवां, करता उल्टी बातें, मेरे मन से सोच में, कट जाती थी रातें, मन मलिन हो गया, कुत्सित थे विचार, मन की मेरी समझे, घट का जन प्यार। हुआ बुजुर्ग आज मैं, नहीं रहा ये जवां, बुरे भले विचार पले,नहीं रहा मन जवां, सोच विचार करता, शुभ वक्त दिया गवां सूखा पेड़ बन गया, खुश्क हो गई हवा। एक दिन मेरा मन, यूं कहने लगा मुझसे, अभी वक...
वही इंसान तो…
ग़ज़ल

वही इंसान तो…

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वही इंसान तो अक्सर सही मंजिल नहीं पाता। जो सच्ची राह पर अपनी कभी चलकर नहीं जाता। सभी मुश्किल उसे इस राह की हैरान करती है, कभी जो हौसला अपना यहाँ लेकर नहीं आता। वो बातें हैं यहाँ उसके लिए इक फ़लसफ़े जैसी, हक़ीक़त में जिन्हें अपने अमल में जो नहीं लाता। निभाते हैं सभी उसकी रिवायत को शराफ़त से, बना रहता है जब उसका सभी से कुछ न कुछ नाता। कभी वो ख्वाहिशें उसकी यहाँ पूरी नहीं होती, कि जिसको ये नहीं भाता कि जिसको वो नहीं भाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जा...
गावों की गलियां
कविता

गावों की गलियां

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** शहर को छोड़ कर आज आया हूं गावों की गलियों में। गलियों की दीवारों को देख कर, बचपन के शरारती दिनों की यादें ताजा हो गई हैं। गलियों को देखकर याद आ गए वो दिन, जब में नंगे पाव भागता था इन गलियों में, शोर मच जाता था इन अरियो में, जब मां डंडा लेकर भागती थी पीछे, कान पकड़कर लाती थी नीचे, जब चलता हूं गलियों में तब आती है महक इन गलियों की तब दिल रोता है जोर से क्यू चला गया मैं गावों की गलियों को छोड़ कर इन शहरों की आबाद गलियों में। शहर को छोड़ कर आज आया हूं गावों की गलियों में। खेतो में लहराती इन फसलों को देखकर मानो स्वर्ग का एसास हो रहा हो, रग बिरंगी उड़ती हुई तितलियां, मानो स्वर्ग की परियों का एसासा करा रही हो आज दिल बोहत खुश है मैने शहरों की आबाद गलियों को छोड़ कर गावों की गलियों में आया हूं। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान) शिक्...
गुरु वहीं जो जीना सीखा दे
कविता

गुरु वहीं जो जीना सीखा दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** गुमनामी के अंधेरे से उजाले की पहचान करा दे तराश दे हिरे की तरह दुनिया के रास्ते पे चलना सीखा दे कर देता है कायाकल्प सबका सच और झूठ से साकार करा दे मार्ग सच्चा दिखाऐ हमेशा पराये में भी अपनों का अहसास करा दे जलकर स्वंय दीपक की भांति शिष्य की नई पहचान दिलादे मुश्किलों से लडने की हौसला बढादे वह इतना समझदार बना दे बतलाऐ जीवन का सूत्र जीत जाना ही सब कुछ नहीं हारकर जीतने की हुनर सीखा दे गुरु वहीं जो जीना सीखा दे आपकी आपसे पहचान करा दे... परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
पापा मै भी पढूंगी
कविता

पापा मै भी पढूंगी

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** पापा मुझे क्यों नहीं पढ़ाया अल्पायु मे ही ब्याह कराया बेटी की उम्र में, मुझे माँ बनाया दहेज के नाम से भी बहुत सताया। सत्य-अहिंसा की मै राह चलूँगी बेड़ियाँ अशिक्षा की मै तोडूंगी जड़ें भ्रष्टाचार की उखाड़ फेकूंगी पढ़-लिख कर समाज को सुधारूँगी। बंधनों को समाज के, तोड़कर पढूंगी मगर उजियारा समाज में करूँगी आवाज अन्याय के विरुद्ध उठाउंँगी खुशियों के पलों का आगाज करूँगी। उड़ान कल्पना सी मै भी भरूँगी जुल्मों-सितम से भी लड़ जाऊँगी वीरांगना समान वीरता दिखाऊंगी शत्रुओं को भी मै धूल चटाऊंगी। दिन जब आपके गुजर जायेंगे उम्र से आप लड़ ना पायेंगे वारिस आपसे मुकर जायेंगे सहारा तब मेरा ही, आप पायेंगे। तन जवाब जब, आपका देगा बोझ आपको फिर, बेटा समझेगा पालन तब आपका, मै ही करूँगी इसलिये पापा मै भी पढूंगी। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वा...
मां तारा
कविता

मां तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मां तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार- मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार! दश "महाविद्याओं"में तू अद्वितीय तू ही पालनहार- जो कुछ मैं हूं हे माते तेरी ही कृपा कटाक्ष! मैं अबोध तेरी पुत्र तेरी बिन मैं हूं अनाथ- माँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार! मैं भटका हूं इस निशा रात्रि में धधक रही चिता मसान- मध्य रात्रि में भयाक्रांत चारों तरफ है सुनसान! द्वारिका नदी में वर्षा से हो रही है तीव्र प्रवाह- माँँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार! मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार- बीत चुकी है कई वर्ष न मिट सकी है प्यास! मां तारा तेरी मिलन की चाह में भटक रहा महाशमसान- वरद अभय मुद्रा में मां तू अडिग हो तू ही पालनहार! महाशमसान में साधक गण सभी कर रहे करुण पुकार- इस नश्वर संसार में मां सुनो मेरी करुण पुकार- श्रृंगाल -शिवा, भैरवी ,योगिनी की आ...
बेटी
कविता

बेटी

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। उन्मुक्त गगन में पंछी जैसी, निच्छल, अविरल नदियाँ सी लाखों स्वप्न हिय में भरकर परी लोक की परियों जैसी। सुंदर मन, कोमल तन से जो लगे गुलों में फूल सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। घोर तम में दीपशिखा जैसी जीवन समर ने अमृत वर्षा सी प्राणों में स्पंदन को भरकर कानन में टेसू के जैसी नाजुक है कमजोर नही जो लगे नूर में मेरी हूर सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। प्रचंड शीत में सूर्योदय जैसी, उष्ण बयार में शीत फुहार सी। दो कुलों की मर्यादा सहेजकर परिवारों की मनुहार जैसी उदासी में मुस्कान भरे जो लगे ईश्वर का उपहार सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (ह...
क्षितिज मिलेगा
कहानी

क्षितिज मिलेगा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************  प्रियंका, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ, सर। प्लीज कम इन, हैव आ सीट। थैंक्स, सर। कैन आई हेल्प यू। सर, मेरा नाम प्रियंका है। पिछले सप्ताह ही आपसे जॉब के लिए बात हुई थी। ओह, यस प्रियंका, आप हमीरपुर से हैं। यस सर, आप कल ९:०० बजे से आ सकती हो, थैंक सर। मन में नई उमंग के साथ ही घर फोन मिला दिया। मम्मी मुझें जॉब मिल गई हैं, हमीरपुर में। मम्मी : प्रियंका-मुझें तो पहले ही पता था कि तुम्हें जॉब जल्दी ही मिल जाएगी। तुम बहुत काबिल हो, काबिल लोगों के मार्ग में रोड़े आ सकते हैं, बाधाए आ सकती। पर उन्हें मंज़िल अवश्य मिल जाती है। चाहे देर से ही सही,इतना कहते-कहते माँ चुप हो गई। प्रियंका : माँ- चुप क्यों हो गई? मन में कुछ हो तो, कहो ना। मन का दर्द कहने से हल्का हो जाता है। फिर मैं तो तुम्हारी बहादुर बेटी हूँ ना। कल अनिल का फोन आया था। वह कह रहा था कि उसे अ...
साहित्य साधना…
कविता

साहित्य साधना…

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** साहित्य है एक साधना, लोकहित की यह कामना, नीजहित में मानव पतित, साहित्य जनहित की आराधना, साहित्य संगम रहा ढूंढ़, साहित्यकारों का महाकुंभ, शपथ बेहतर भविष्य बनाना, आओ करें साहित्य साधना, सृजन का यह अद्भुत जुनून, बोल सकता यही अंधा कानून, इसका साधक कब कहां डरा, इससे भयभीत कितना बेमौत मरा, फिर भी एक सवाल कठिन, पूछता सबसे कलमकार बिपिन, अंधकार घना और क्यों भयभीत धरा, परिवर्तन की दरकार, कैसे बदले विचारधारा... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
कन्यादान
कहानी

कन्यादान

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ********************                               उस नन्ही किलकारी से सारे घर का वातावरण संगीतमय में हो गया। उसके हाथ पैर की थिरकन, चेहरे की भाव-भंगिमा का आकर्षण किसी को भी उससे दूर ना जाने देता। पंडित जी ने यह कहते हुए उसका नाम लीना रखा- " कि उससे उसके गृह नक्षत्र बता रहे हैं कि जो इससे मिलेगा इसमें लीन हो जाएगा।" बड़े होते हो हुए उसके नाम की खूबी बखूबी उसके स्वभाव में झलक रही थी। अपने मुस्कुराहट की डोर में सभी को समेटे लीना ने सभी के अच्छे गुणों को अपने में समाहित कर रखा था। हर विद्या में पारंगत, स्वभाव से नम्र, कुशाग्र बुद्धि लीना मेरे दिखाए रास्ते का अनुसरण कर आज सफल ड्रेस डिजाइनर बन चुकी थी। उसके स्वभाव, पेंटिंग और रंगोली की ही तरह उसके ड्रेस की डिजाइन भी अनूठी होती । आज उसकी शादी का रिश्ता आने पर उसके युवा होने का पता चला। मैं हैरान सोच रहा था अ...
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
कविता

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है यहाँ न रिश्तों की परवाह है न खुशियों की चाह है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है... हर तरफ मतलब ही मतलब ... और सिर्फ बेमतलब का ही शोर है।। न बच रही कहि मानवता, और न ही प्रेम का कहि छोर है।। अपने स्वार्थ की खातिर, नए रिश्ते बना लेते है लोग, या यू कहे कि गधे को भी बाप बना लेते है लोग।। भरोसा उठ रहा सबका यहाँ इंसानियत और ईमानदारी से... भरोसा उठ रहा सबका यहाँ रिश्तों की वफादारी से... ये बेदिल, और मतलब परस्तों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। रुचि!!!! दुनिया के मिलने की चाह को छोड़ अब खुद के मिलने को तलाश कर... खुद को खुद में ही खोजकर अब खुद पर ही विश्वास कर।। छोड़ सब उम्मीदों को अब... ये इंसानी लाशों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२...
बच्चों का दर्द
कविता, बाल कविताएं

बच्चों का दर्द

सपना दिल्ली ******************** कोई तो समझे बच्चों का दर्द शिक्षा के नाम पर हम पर होता अत्याचार बस्ता तले दबे कंधे चारों पहर बस पढ़ाई का क़हर। घर में पढ़ाई स्कूल में पढ़ाई वापिस आकर टूशन में पढ़ाई इतना ही नहीं घर आने पर फिर पढ़ाई। जीना मुश्किल कर दिया है इस पढ़ाई ने हम बच्चों का सोते-जागते दिमाग में चलता रहता बस पढ़ाई-पढ़ाई का ही दृश्य। जैसे ही पढ़ाई से ध्यान भटके शुरू हो जाती घर पर डांट स्कूल में डांट टूशन में डांट जैसे सबने हमे डाँटने की डिग्री ही पाई हो। न उछल-कूद न कोई शरारत न मौज-मस्ती मानो बचपन ही सिमट गया हमारा, इस पढ़ाई में। सबको लगता बच्चा होना सबसे आसान न कोई टेंशन न कोई परवाह जीवन में बस मौज-मस्ती! होता बिलकुल उलट पढ़ाई का बोझ लादा जाता इतना नीचे दबकर दम घुटा हम मासूमों का। बच्चा क्यों नहीं बन जाते एक दिन के लिए हमारे जैसा फिर समझ पाओगें हमारे मन के मासूम अहसासों को। फिर तुम बच्च...
कोरोना से बचाव ही ईलाज है।
कविता

कोरोना से बचाव ही ईलाज है।

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए कर लो आप सर-सफाई, स्वंय और परिवार को लो कोरोना बीमारी से बचाई। सर्वप्रथम घर के रोज उपयोग वाली चीजों का करोआप रोज-रोज सफाई, तभी आप और आपका परिवार का कोरोना बिमारी से बचाव हो पाई। स्कूल-कालेज वाले करावे रोज सेने-टाईजर का छिड़काव और सफाई, समाजिक दुरी बना के करे सावधानी से पढ़ाई। कोरोना बिमारी उसको कभी न लगे भाई, जो कोई करे रोज-रोज सर-सफाई। सर्वप्रथम अपने घर-परिवार के प्रति सकारात्मक सोच रखे भाय, सभी को दो कोरोना संक्रमरण से बचाव के उपाय से अवगत कराय। जो कोई नातेदार-रिस्तेदार घर आय, आप दो कोरोना से बचाव के उपाय समझाय। पड़ोसियो से मिल कोरोना से उतपन्न आपातकालीन स्थिति का योजना लो बनाय, कोरोना संक्रमित या बीमारो की सूची लो बनकर औरलोगों को दो अवगत कराय। अगले कुछ दिनों तक कोरोना संक्रमित से मिलने ...
मजबूर शव-यात्रा
दोहा

मजबूर शव-यात्रा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलयुग को कोसा बहुत, संकट में हर बार। सीमा पार युद्ध संग, कोविड की भी मार ।। महामारी ग्रहण में, बहुत विरोधी तंज। कलयुग की इस दशा पे, घोर त्रासदी रंज।। द्वापर काल कृष्ण से, मिला खूब संदेश। छल कपट से लूट भाव, होगा हर परिवेश।। घरों घर रावण बैठे, लाते कितने राम। कोविड छाए हर गली, नहीं शेष अब धाम।। विरोध सहमत फेर में, सतत बढ़े प्रभाव । महामारी फंद कहे, खेलो अपने दांव।। परे हुए माया मोह, अब जीवन की चाल। हाल बिगाड़े बुरी तरह, सपने सब विकराल ।। धन-बल के तमाशबीन, जड़ बुद्धि के अधीन। सुरक्षा साधन भूलकर, हो गए अति मलीन।। बिंदास जीने वाले, बुरी तरह लाचार। कोविड डर आतंक से, भूले निज आधार।। अंतिम पथ प्रस्थान में, मात्र जरूरी चार। शव-यात्रा भी मजबूर, सूनी बिन परिवार।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति :१९७...
शब्दों के पैमाने
कविता

शब्दों के पैमाने

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** यदि कुछ बनने को कहूं तो सागर बन सकते हो क्या? जैसे वह अमृत हो या गरल, खुद में पचाकर शांत रहता है। वैसा धीरज तुम भी दिखा सकते हो क्या? अगर नहीं, अगर नहीं तो बोलो मत, चुप बैठो। संविधान ने स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की दी है, शब्दों से घाव करने की नहीं। भाषा के गलत प्रयोग से तुम जो इतना ज़हर फैला रहे हो मानवता को जला रहे हो। जो संबंध ही नहीं बचे तो अकेले रह सकोगे क्या? अकेलेपन की व्यथा सह सकोगे क्या? ये भारत देश है जहाँ हर तरह के फूल खिलते, हर विचार के लोग मिलते। अपनी घृणा को त्याग, इस पावन मही पर स्नेहिल भाषा की गंगा फिर बहा सकते हो क्या? हिंन्दी जो देश की आन,बान शान है, हिन्दी प्रेमियों के गर्व की पहचान है। हिन्दी तो हिंद के जन जन की जान है, इसे बोलने में लेकिन कभी गलत संधान न हो। हिन्दी है प्यार, स्नेह की भाषा, इससे किसी का...