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शिक्षक
कविता

शिक्षक

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रणाम उस मानुष तन को, शिक्षा जिससे हमने हैं पाया। मातृ-पितृ के बाद, जिसकी है हम पर छाया पुनः उनके श्रीचरणों में नमन, जो शिक्षा दे शिक्षक कहलाएं। अच्छे बुरे का फर्क बतला उन्नति का मार्ग हमें दिखलाएं।। शिक्षक, अध्यापक और गुरु संग, आचार्य जैसे है अनेकों पदनाम। कभी भय तो, कभी प्यार जता, करते हमें सिखाने का काम।। कभी डांट तो कभी फटकार कर, कुम्हार के भांति हमें पकाया। अपने लगन और अथक मेहनत से, शिक्षक ने हमें सर्वश्रेष्ठ बनाया।। गुरु तो है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी महान। गुरु की दी शिक्षा ही हमें, दिला रही आज सम्मान।। शिक्षा के बिना तो, ये मानव जीवन है बेकार। शिक्षक ने हमें शिक्षित कर, कर दिया अनेकों उपकार।। अपनी शिक्षा से सफल हमें देख, शिक्षक का होता हर्षित मन। पांच सितंबर क्या, मैं तो कर...
गुरु हैं धरती पर भगवान
कविता

गुरु हैं धरती पर भगवान

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** प्रभू देते हैं जिन्दगी, माता पिता देते हैं खूब दुलार। खूबियों का एहसास करा गुरु जीवन को देते संवार।। गुरु वही जो जीना सिखाये, कराये आपसे आपकी पहचान। गुरु के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना कोई कैसे बने महान।। गुरु ही रखते ज़मीं से आसमां तक, ले जाने का हुनर। गुरु की महिमा से शिष्य की गरिमा बढ़ गई है कुछ इस कदर।। शिष्य ने पाई सफलता की ऊंचाई तो गुरु को भी मिलता सम्मान। तराश कर बना दिया उसे हीरा जिसने, वो है धरती पर भगवान।। ज्ञान से ही बना सुन्दर जीवन, सारथी बन गुरु ने खूब साथ निभाया है। जब जब गिरा सम्भाला उसने, हर मुश्किल को ही आसान बनाया है।। गुरु ब्रम्हा ने उपजाया, गुरु विष्णु की है माया, गुरु महादेव का साया। गुरु के प्रताप से जीवन में सब कुछ है पाया, गुरु ही है पेड़ों की छाया।। गुरु चरणों मे जिसने शीश नवाया, वही ही तो पूरे जगत ...
सृजन
कविता

सृजन

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ******************** पत्तों पर अल्लड़ अटखेलियां करतीं बूंदें। पेड़ों के कानों में धीरे से कुछ कहती हवा। पेड़ों का उन्मुक्त भाव से झूम उठना। दोपहर में श्याम का गुमा होने लगना। कलरव करते विहग वृंद की घर वापसी। शरारतें, अटखेलियां, प्रकृति की कोख में हलचल। मेंघों की गर्जन पर लहरों का नाचना-गाना। ये बारिश नहीं,बीज वो रहा है समय, परमात्मा की किलकारी का, सृजन का। जैसे प्रकृति खेल रही है, लुभा रही है, मीठी उमंग भर रही है, जवां जवां हो। पोखरों में खुदको निहारते बादल। जाने किसकी प्यास बुझाते बदल। कभी वसुधा के करीब आते, कभी ललचाकर दूर भाग जाते बादल। मचलकर तीव्र वेग से जल तरंगों का, सागर में समाहित होने उसकी तरफ भागना। क्या ऐसा मिलन तुमने कभी देखा है? क्या ऐसा सृजन तुमने कभी देखा है? परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक म...
सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व
आलेख

सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                     प्रख्यात दर्शन शास्त्री, महान हिंदू विचारक, चिंतक, शिक्षक सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन का जन्म ०५ सितम्बर १८८८ में मद्रास (अब चेन्नई) से करीब २०० किमी. दूर तिरूमती गांव में गरीब ब्राह्मण (हिंदू) परिवार में हुआ था। राधाकृष्णन चार भाई व एक बहन थी। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी बहुत विद्वान थे। इनकी माता का नाम सिताम्मा था। इनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। गरीबी के कारण इनके पिता इन्हें पढ़ाने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे। आगे की शिक्षा के लिए इन्हें क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल तिरूपति में प्रवेश दिलाया गया। जहाँ ये सन् १८९६ से १९०० तक चार साल रहे। सन् १९०० में बेल्लूर के शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत मद्रास क्रिश्चियन कालेज, मद्रास में अपनी स्नातक शिक्षा प्रथम श्रेणी के साथ इ...
नारी तुम हो अनंत
कविता

नारी तुम हो अनंत

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तुम हो अनंत!....... तुम सृष्टि की जीवन आधार, तुम सृष्टि की अनंत उदार, तुम सृष्टि की शक्ति अपार, तुम सृष्टि की मूरत साकार, तुम समान भगवंत..... नारी तुम हो अनंत!..... तुम बहिना तुम हो वनिता, तुम धात्री तुम हो दुहिता, तुम श्यामा तुम हो प्रियता, तुम सखी तुम हो ममता, तुम ओजवान अत्यंत, नारी तुम हो अनंत...... तुम हो दुर्गा तुम्ही भवानी, तुम हो भावजगत कल्यानी, तुम राधा, मीरा प्रेम दीवानी, तुम हो प्राणतत्व की दानी, तुम्हे प्रणाम जगवंत, नारी तुम हो अनंत........ परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो क...
विद्या का विस्तारक शिक्षक
कविता

विद्या का विस्तारक शिक्षक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** शिक्षा का उन्नायक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। रखता शब्दों का भण्डार करता उनके अर्थ अपार होता है व्याकरणाचार्य, उसमें भाषा पारावार। भावों का अनुवादक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। शिष्य जायसी अथवा सूर। करता है कठिनाई दूर। सहज-सरल उसकी प्रकृति, कभी नहीं होता वह क्रूर। प्रेरक मार्ग प्रदर्शक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। दयावान है अनुशासक भी निष्पादक है निर्णायक भी संपादक है निर्धारक भी, उद्घाटक है संचालक भी दुष्कर प्रश्न निवारक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। ज्ञान और अनुभव की खान उच्च बहुत उसका स्थान राष्ट्र-रीढ़ कहलाता वह, करे सतत् स्वदेश-गुणगान संस्कृति का परिचायक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र...
धूप-छाँव
कहानी

धूप-छाँव

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************              घड़ी में शाम के चार बजे थे। रमेश अपने कॉर्पोरेट के आलिशान ऑफिस में बैठा था। तभी चपरासी चाय लेकर उसकी मेज पर रख गया। चाय के प्याले को हाथ में लिये रमेश अपने सम्पूर्ण कार्यकाल को याद करने लगा। उसका बहुराष्ट्रीय कंपनी का वो पहला दिन जहाँ सारे विदेशी कर्मचारी थे और वो अकेला हिंदुस्तानी। उसे हर दिन एक नई तकलीफ का सामना करना पड़ता था। वो विदेशी इसके साथ कार्यस्थल पर राजनीति खेलते थे। जब सारे साथ जाते तो उसे हीन नजरों से देखते थे ये सोचकर कि उसे उनकी भाषा समझ में आ भी रही है या नहीं? खाने की मेज पर बैठते तो उसको टकटकी लगाकर देखते कि वो चाकू, छुरी से खा पायेगा कि नहीं? इत्यादि इत्यादि। इन सारी तकलीफों के कारण रमेश को असंख्य बार हिंदुस्तानी कंपनी में काम करने की इच्छा हुई। उसके एक वरिष्ठ पदाधिकारी को उसकी तकलीफों का अंदाजा था। उसने...
बेटी स्कूल में
बाल कविताएं

बेटी स्कूल में

  डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* पाॅच बरस पूरे भये, बेटी गई स्कूल। गिनती गिनना सीखती, नहीं करती हैं भूल।। बोली बोले तोतली, भाषा अंग बनाय। टन टन घंटी की सुने, दौड़त दौड़त आय।। बेटी ठाड़ी सावधान, जन गण मन को गाय। कॉपी पेंसिल हाथ में, आम अनार बनाय।। इमली खट्टी जान के, रहती इससे दूर। उल्लू औरत सीख गइ उच्चारण भरपूर।। ए बी सी डी रटत है, पोयम करती गान। हाथ धोए भोजन करें, बोतल पीवे पानि। खेल खेलती रेस्ट में, रहती नंबर एक। गुड्डा गुड़िया साथ हैं, राखे अपनी टेक।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिं...
बदलता हुआ पहनावा और उसका समाज पर प्रभाव
आलेख

बदलता हुआ पहनावा और उसका समाज पर प्रभाव

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** परिवर्तन प्रकृति का नियम है। संसकृति और सभ्यता भी इस प्रभाव से नहीं बच सकते। संसकृति का संबंध मानव हृदय से होता है।अत: इस पर परिवर्तन का प्रभाव अत्यंत धीमी गति से होता है। दूसरी और सभ्यता अर्थात मानव परिवेश के अ़तर्गत आनेवाली भौतिक वस्तुएं जैसे खाध पान, पक्षनावा, भवन चल सम्पति आदि।इन पर परिवर्तन का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। आज के विमर्श का विषय "बदलता हुआ पहनावा और समाज पर उसका प्रभाव" पर चर्चा करना है। ऐसा बदलाव या परिवर्तन सभ्यता के बदलाव से संबद्ध है। पहनावा सभ्यता का अभिन्न अंग है।विचारणीय है कि कर्मेन्द्रियो़ द्वारा हम जो भी काम करते हैं वही सभ्यता है। पहनावा हमारी चक्षुओं को आकर्षित करता है। हम जहाँ नए फैशन के परिधान कहीं भी चाहे सिनेमा में ही क्यों न हों, तुरन्त उन परिथानों में स्वत: को काल्पनिक रूप से देखने लगते हैं।...
गजानन महाराज
कविता

गजानन महाराज

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भाद्र शुक्ल की चतुर्दशी, मनत है गणपति त्योहार। सवारी जिनका मूषक डिंक मोदक है उनका प्रिय आहार।। उमा सुत है प्रथम पूज्य, कहलाते गजानन महाराज। ऋद्धि सिद्धि संग पधार, पूर्ण करो मेरे सब काज। प्रिय मोदक संग चढ़े इन्हे, दूर्वा, शमी और पुष्प लाल। हे लंबोदर ! हे विध्न नाशक ! आए हरो मेरे सब काल।। हे ऋद्धि, सिद्धि दायक, हे एकदंत ! हे विनायक ! गणेश उत्सव को द्ववार पधारो बनो सदा हमारे सहायक।। बप्पा गणपति पूजा हेतु, दस दिवस को आए। पुत्र शुभ लाभ संग पधार, सारी खुशियां भर लाए।। फूल, चंदन संग अक्षत, रोली, हाथ जोड़ बप्पा हम करते वंदन। हे गणाध्यक्ष!, हे मेरे शिवनंदन, करो स्वीकार अब मेरा अभिनन्दन।। परिचय : अंकुर सिंह निवासी : चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
गुरु
कविता

गुरु

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गुरु! तुम हो सृजनहार धरा पर! और माटी के लोंदे हम!! रौंध-रौंध के...थाप-थाप के... सजग प्रहरी-सी संभाल से... देकर भीतर से सहारा! रचा तूने ओ सृजनहारा!! सारी खर-पतवार निकाली... जितने भी खोट के थे उगे! सारे कंकड़-पत्थर बीने... जो घट की सुंदरता छीने!! अहंकार की गांँठ कुचल के! दी विनम्रता की लुनाई!! अज्ञानता की गहन कारा से ले चला निकाल, पकड़ बाहें.. ज्ञान के आलोकमय पथ पर.. निज साँसों की ऊर्जा देकर!! प्रभु ने तो बस जन्म दिया! गुरु ने जीवन को अर्थ दिया!! आहार निद्रा भय मैथुन से उठा... धर्म कर्तव्य का पाठ पढ़ाया!! पशुता की कोटी से निकाल... मनुजता के आसन पर बिठाया!! लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ से ऊपर स्नेह सौहार्द्र त्याग परोपकार बताया!! बताया: हम हैं कुल से विखण्डित जीवात्मा! सर्वोपरि है सृष्टि कर्ता गोविंद परमात्मा!! गुरु तुम हो पारस से बढ़कर! ...
श्राद्ध या दिखावा
लघुकथा

श्राद्ध या दिखावा

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मीनू ने रानू से कहा, रानू चलो बाजार चलते हैं। "क्यों? अरे! तुम्हें नहीं मालूम क्या? श्राद्ध पक्ष चल रहा है। ढेर सारी सब्जियां, मिठाइयां, फल, सूखे मेवे लाना है। और उपहार में देने के लिये कपड़ें बर्तन तथा सोने व चांदी के आभूषण भी तो लेना हो। भाई हम तो अपने सास-ससुर का श्राद्ध उत्सव के जैसा मनाते हैं। दो ढाई सौ लोगों को खाना खिलाते हैं, गरीबों को दान करते हैं। मंदिर में चढ़ावा देते हैं, तभी तो हमारे पूर्वज खुश होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। क्यों रानू हमने तो तुम्हें कभी सास-ससुर का श्राद्ध करते नहीं देखा? अरे भाई इतनी भी क्या कंजूसी है? अरे भाई इतना जो कुछ है आखिर उन्हीं का तो दिया हुआ है। रानू के मुंह से तपाक से निकल गया। भाभी मैंने अपने सास- ससुर को जीवित में ही तृप्त कर दिया था। इसलिए उनका आशीष तो सदा मेरे साथ है। रानू ने मन म...
गुरु नवचेतना वर दो
कविता

गुरु नवचेतना वर दो

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** ज्ञान चाहता है अंतर्मन हर्षित हो जाएं जन जन करते मन में हम यह प्रण शिक्षा का करें अभिनंदन अनुपम प्रकाश भर दो गुरु नवचेतना वर दो। चारों ओर है घोर अंधेरा कर सकते हो तुम उजेरा ज्ञान का होवे यहाँ बसेरा सुख सूर्य का रोज सवेरा ऐसी शक्ति भर दो। गुरु नवचेतना वर दो। नफरत और ईर्ष्या मिट जाए ऊंच-नीच का फर्क मिट जाए जाति-पांति का भेद मिटजाए परस्पर समता भाव लहराए ऐसा ज्ञान भर दो। गुरु नवचेतना भर दो। आज समय की मांग पुकारे कर सकते हो तुम्हें उबारे तुम्ही हो भारत के रखवाले राष्ट्र निर्माता पूज्य हमारे ऐसे गुरु भक्ति दो। गुरु नवचेतना भर दो।। जगती का उद्धार तुम्हीं हो मुक्ति का सही मार्ग तुम्हींहो प्रेम का सद्व्यवहार तुम्हीं हो नैया की पतवार तुम्हीं हो बुद्धि विकास वर दो। गुरु नवचेतना वर दो।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, स...
सपनों को सच होने दो
कविता

सपनों को सच होने दो

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** सपनों को सच होने दो, जीवन को मत रोने दो, जीवन है बहुमूल्य हीरा, जीवन को जग से जीने दो, सपनों को सच होने दो तुम! रह ना जाए कोई बेकार, जीवन को मत भूलने दो, जीवन है फूलों का हार, जीवन को जग जितने दो, सपनों को सच होने दो तुम! प्यार के चक्कर मे पडोगे तो, मोबाइल मे रहोगे तुम, जीवन दो पल की चीज है, इस पल को बर्बाद करोगे तुम, सपनों को सच होने दो तुम! जीवन मे ऐसा करो तुम, तुम्हारे पीछे पूरी जहाँ घूमे, ना किसी के प्यार के चक्कर मे पड़ो तुम, ऐसा करो की तुम्हारे चक्कर मे दुनिया पड़े, सपनों को सच होने दो तुम! कॉल करके रास्ते मे बुलाती हो, मिलने के बहाने पढ़ने जाती हो, अभी तक तुम ना सम्भलोगी तो तुम, तुम्हारी दुनिया नर्क बन जाएगी एक दिन, सपनों को सच होने दो तुम! शिक्षक तुम्हें ज्ञान सिखलाते, कभी ना तुमको गलत राह दिखलाते, तुम शिक्षकों का आदर करोगी तो...
दर्दे जख्म
कविता

दर्दे जख्म

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** कभी पूछा तो होता दर्द क्यों होता है मैं क्या बताऊं दर्द रिश्तो को तोड़ भी सकता है दर्द रिश्तो को जोड़ भी सकता और जोड़ता भी है समय-समय पर इससे पहले कि दर्द उठे वक्त-इज्जत-का ध्यान तो हर बार रखो चेहरा तो हंसता रहे-जब दिल में दर्द हो यह चेहरा ही है जो दर्द ओ गम दिखाता है रिश्ते टूट जाए तो दिल का परिंदा उड़ जाता है कांच का टुकड़ा गिरता है तो इंसानी जख्म बना देता है यह जख्म कभी कभी-नासूर बन जाते हैं जिंदगी के दर्दों से-बच के चलो हिम्मत से चलो-संभल के चलो देखो किसी को चोट ना लगे सामान को भी संभाल कर रखो तन मन को भी संभाल कर रखो देखो किसी के जख्मों पर चोट ना लगे आप अपना फर्ज निभाते चले जाओ इसका परिणाम मत लो जिंदगी की खुशबू है इस खुशबू को चारों ओर फैलने दो बस मुझसे मत पूछो दर्द क्या परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पिता : ड...
राधा
छंद, धनाक्षरी

राधा

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखियाँ ये द्रोह करे, अब न किसी को देखें, कृष्ण की ही माला जपे, छवि मन भायी है। राधा मैं शरीर नहीं, प्राण में हूँ तेरे बसी, श्वास श्वास आस रहे, प्रेम ऋतु आयी है। नित दौड़ी दौड़ी आऊँ, बस में न चित रहा, मुरली की धुन कान्हा, बड़ी सुखदायी है। छुप छुप रास करें, झूमे यमुना के तीर, चैन मेरा सब गया, तू ही हरजायी है। परिचय :- नीलम तोलानी निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजि...
सिक्के के पहलू
कविता

सिक्के के पहलू

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो सकता बहुत खराब। अलौकिक दुनिया में कभी, भाग्य एक सा नहीं होता। देखा नहीं दुख अभी तलक, कोई उम्मीद रोशनी खोता। दुख दरिया का पड़ाव, कब बन जाता सैलाब। सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो सकता बहुत खराब। किनारे नज़र ना आये कभी, जुगनू भी नहीं होता। कुछ आशाओं की मंशा में, रात रात नहीं सोता। हाथ खींचते नज़र चुराते, काम ना आये कभी शराब। सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो सकता बहुत खराब। वक़्त पलटकर रख देता, निश्चय फिर पलटे जरूर। कर्मरथी के राही को, दायित्व बोध बने सुरूर। जब सीखे संस्कार घरों से, जीवन जीते ज्यों नवाब। सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो ...
वो देश के शहीद
कविता

वो देश के शहीद

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जब एक उम्र थी हमारी जोश था देश के लिए कुछ तो करने का सपना ऐसा कि कुछ मैं कर जाऊँ जैसे वो देश के शहीद कर गए हम घरों में बैठे होते हैं हर सुख लिए हो गर्मी, सर्दी, बरसात कि उमंग लिए मेरी भी दीवानगी देश प्रेम की है ऐसी जैसे वो देश के शहीद कर गए हम न कभी डरे ना कभी पीठ दे भागे हर दाँव का जवाब हम देते गए मौका मिला करने का तो कोशिश की जैसे वो देश के शहीद कर गए हिन्द को आजाद कराने में भूमि को नेताओं, क्रांतिकारियो की है रही देश भक्ति महिलाओं में भी हमनें देखी जैसे वो देश के शहीद कर गए जवानों के नाम गुमनाम नहीं हैं हर माँ, बहन, पत्नी, दोस्तों के दिल में हैं समाज को भी उनकी कुर्बानी याद है जैसे वो देश के शहीद कर गए हम तो उस घर की बेटी हैं जहाँ पिता, भाई, चाचा सेवा करते हैं पिता ने देश के लिए सुख छोड़े जैसे वो देश के शहीद कर गए परिचय ...
गुरु महिमा
दोहा

गुरु महिमा

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** गुरु ओजस्वी दीप है, नव चेतन हर ओर। अपने गौरव ज्ञान का, मनन करें हर छोर। गुरु वितान नव ज्ञान के, गुरु पावन परिवेश। हर युग के महानायक, आप मूर्ति अनिमेश। गुरुवर जागरूक हैं, गुरु करें नवाचार। आप गोविंद से बढ़े, बोलें सच विचार। गुरु भाषा का मर्म है, गुरु वाणी भंडार। आप अनुभूत सत्य है, गुरुवर सरल विचार। गुरु विशेष की खान है, गुरु कोमल अहसास। गुरु अज्ञान विनाशक है, गुरु नायक विश्वास। अभिनंदन गुरुदेव का, है सादर सत्कार। नव ज्ञान मिलें शिष्य को,करते नित उपकार। विद्यास्थली मंदिर है, गुरु मेरे भगवान। करता नित मैं वंदना, गुरुवर का सम्मान। गुरु संस्कृति की रोशनी, गुरु विशेषण विशाल। आप समान सगा नहीं, गुरु अनमोल मिशाल। नित गुरु शिष्य भला करें, जीवन रचनाकार। संस्कार की विशेषता, गुरु सफल सरक...
शिक्षक दिवस : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव
आलेख

शिक्षक दिवस : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव

अशोक शर्मा प्रताप नगर, जयपुर ******************** गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, ‘गु यानी अँधेरे से ‘रु यानी प्रकाश की ओर ले जाने वाला। प्राचीन काल की बात करें तो आरुणी से लेकर वरदराज और अर्जुन से लेकर कर्ण तक सबने गुरु की महिमा को समझा और उनका गुणगान किया है। गुरु शरण में जाकर ही भगवान राम भी पुरुषोत्तम कहलाए।एक बार अपने स्वागत भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने कहा था, "अमेरिका की धरती पर एक भारतीय पगड़ीधारी स्वामी विवेकानंद तथा दूसरी बार डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा अपने उदबोधन से भारतीयता की अमिट छाप जो अमेरिकावासियों के हृदयों पर अंकित हुई है, जो सदैव अमिट रहेगी।" निःसंदेह यह प्रत्येक भारतीय के लिये अपनी संस्कृति एवं महापुरुषों के प्रति गौरान्वित भाव-विह्वलता से परिपूर्ण श्रद्धा के भावों को अभिव्यक्त करने वाले क्षणों के रूप में रहे होंगे एवं अनंत काल तक रहेंगें ह...
श्रद्धा ही श्राद्ध है
कविता

श्रद्धा ही श्राद्ध है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** श्रद्धा ही श्राद्ध है। इसमें कहाँ अपवाद है। सत्य .....सनातन सत्य। जो वैज्ञानिकता का आधार है। इसमें कहा अपवाद है। श्रद्धा ही श्राद्ध है। सत्य-सनातन संस्कृति पर, जो उंगलियां उठाते है। इसे ढोंगी, ढपोरशंखी बताते है। वो भरम में ही रह जाते है। आधें सच से, सच्चाई तक, कहाँ पहुंच पाते है। श्राद्ध श्रद्धा और विश्वास है। यह निरीह प्राणियों की आस है। यह मानव कल्याण का सृजन है। यह पर्यावरण का संरक्षक है। यह ढ़ोग नही है। यह ढ़ाल है। यह मानव का आधार है। इसीसे निकलें, सभी धर्म और विचार है। सत्य सनातन को , कौन झुठला सकता है। लेकिन अफवाहें फैला कर। इस पर आक्षेप तो लगा ही सकता है। रीतियों को, कुरीतियां बता कर, कटघरे में खड़ा तो, कर दिया गया। क्या......? हमनें और आप ने, सच को समझने का, कभी हौंसला किया। हम समझें नही। लेकिन हमने, हां में हां तो ...
गुरु सेवा
भजन

गुरु सेवा

संजय जैन मुंबई ******************** गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, चरणों में अपने हमको बैठा लो। सेवा में अपनी हमको लगा लो, गुरुदेव मेरे गुरुदेव मेरे। मुझको अपने भक्तो की दो सेवादारी। आयेंगे सत संघ सुनने, जो भी नर नारी, मै उनका सत्कार करूँगा, बंधन बारंबार करूँगा।। गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, चरणों में अपने हमको बैठा लो। मुझको अपने रंग में, रंग लो तुम स्वामी। में अज्ञानी मानव हूँ , तुम अन्तर्यामी। मेरे अवगुण तुम विश्रा दो, मन में प्रेम की ज्योत जला दो।। गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, चरणों में अपने हमको बैठा लो। सेवा में अपनी हमको लगा लो, गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे। गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, चरणों में अपने हमको बैठा लो।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन...
मानवता
कविता

मानवता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज धरा पर उन्माद बड़ा है, मानवता खतरे में पड़ा है! "महाविनाश" की तैयारी मे विश्व-पटल पर कुचक्र बढा हैं! चीन राष्ट्र ही इसकी धुरी हैं यह विस्तार वाद की नीति गढा है आज "मानवता" खतरे में पड़ा है। जल, थल, नभ में खतरे की, महायुद्ध की उन्माद जगह है। पुनः हिमालय कि तुंंग शिखर को, दुश्मन फिर ललकार रहा है। एटम, हाइड्रोजन नये प्रक्षेपास्त्र से रण कौशल में सैन्य सजा है आज धरा पर उन्माद बड़ा है। भुखमरी बेरोजगारी से लड़ने के बदले मानव-मानव का शत्रु बना है। भारत की शांति नीति को चीन पाक ठुकरा रहा है। विश्व युद्ध की आहट से मानवता खतरे में पड़ा है। खबरदार हो जाओ दोनों पुनः बुद्ध मुस्कुरा रहा है। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com...
तुम साथ रहना
कविता

तुम साथ रहना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दिन हो चाहे रात, तुम साथ रहना बिगड़े कोई बात, तुम साथ रहना! जिंदगी की डोर है अब तेरे ही हाथ समझ मेरे जज्बात, तुम साथ रहना! दूरियों के दिन भी जैसे-तैसे गुजरेंगे रंग लाएगी मुलाकात, तुम साथ रहना! हमारा मिलना भी अखरेगा कुछ को उठते रहेंगे सवालात, तुम साथ रहना! हर पल खड़ा मिलूंगा मैं तुम्हारे साथ चाहे जो हो हालात, तुम साथ रहना! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय ...
मिस सीमा
कहानी

मिस सीमा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************                                          प्रदीप, तुम क्या समझते हो? मैं सीमा की चाल नहीं समझ रही हूँ। आखिर बात क्या हैं नीना दीदी? खुलकर कहो जो कहना चाहती हो।पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो? नहीं प्रदीप ये कोई पहेली नहीं है। ये पूरी तरह सत्य हैं। तुम्हारी मिस सीमा, आजकल मेरे लाड़ले अवि पर डोरे डाल रही हैं। ये आप क्या कह रहीं हो दीदी? क्या सबूत हैं तुम्हारे पास? तुम्हें भी सबूत चाहिए, जबकि तुम मिस सीमा के व्यक्तित्व के बारे में अच्छी तरह जानते हो। हाँ, जानता हूँ वह एक स्मार्ट औरत हैं, बेहद चालाक। वह अपनी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती। पर आजकल उसकी हालात ठीक नहीं है। वह कर्ज में डूबी हुई हैं। यही तो मैं तुम्हें बताने का प्रयास कर रही हूँ। वह हमारे अवि,पर अपने रूप का जादू बिखेर रही हैं। वह अच्छी तरह जानती है कि वह करोड़ो का मालिक है। वह इसी क...