मै एक अकिंचन हूं
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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माँ भवानी मै एक अकिंचन हूं
तेरी कृपा दृष्टि की भिखरी।
माँ मै न मंत्र जानता हूं न कोई तंत्र जानता
माँ भवानी न आवाहन जानता तेरी।
न अस्तुति याद मुझे न अस्तोत्र सारी
सब प्राणियों का उद्धार करने वाली।
तुम्ही हो कल्याणमयी, ममतामयी माँ भवानी
समस्त दुख विपत्तियो को हरने वाली
इस करोना काल मे फेल रही है विपति भारी।
करोंना विषाणु की महामारी
तू संघार कर माँ इस विषाणु का
जो बड़ा ही है क्षयकारी कष्टकारी।
तू सब का उद्धार करने वाली हो माँ भवानी
न मै तेरी पूजा विधि जनता न वैभव है सारी।
केवल एक मै एक भिखरी
माँ भिक्षा तू मुझे दे तू भर दे
मानवता की भिक्षा पात्र सारि।
मै सभाव से आलसी हु लोभ है सारी
न तेरी पूजा ध्यान तप कर पाता।
तू करुणा की सिंधु हो माँ भावनी
तेरी कृपा दृष्टि का हु एक भिखरी।
जब अंतिम क्षण माँ आए मेरी
तो मेरे कन्ठ से निकले माँ भवानी माँ भवानी...
























