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हरफनमौला कवि बाबा नागार्जुन की १०९ वीं जयंती के अवसर पर विशेष
आलेख

हरफनमौला कवि बाबा नागार्जुन की १०९ वीं जयंती के अवसर पर विशेष

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं जन कवि हूँ मैं साफ कहूंगा क्यों, हकलाऊं                                        जन कवि कहे जाने वाले बाबा नागार्जुन की यह पंक्तियां उनके व्यक्तित्व, जीवन दर्शन तथा साहित्य में भी चरितार्थ होते दिखाई देती हैं। अपने समय की प्रत्येक महत्वपूर्ण घटना पर तेज तर्रार कविताएं लिखने वाले क्रांतिकारी बाबा नागार्जुन ने अनेक विधाओं में अपनी लेखनी चलाई तथा जन आंदोलनों पर भी उनका महत्वपूर्ण प्रभाव रहा। बाबा नागार्जुन का जन्म ३० जून १९११ ज्येष्ठ पूर्णिमा अपने ननिहाल तथा ग्राम जिला मधुबनी में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोकुल मिश्र तथा माता का नाम उमा देवी था। इनकी चार संतान हुई लेकिन वे जीवित नहीं रह पाए। इनके पिता भगवान शिव की पूजा आराधना करने बैजनाथ धाम (देवघर) जाकर बैजनाथ की उपासना शुरू कर दी। इस प्रकार अ...
धन्यवाद कोरोना
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धन्यवाद कोरोना

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आप सब सोंच रहे होंगे कि जहां एक ओर पूरी दुनिया इस कोरोना नमक महामारी से हड़कंप मची हुई है लोग कोरोना के नाम से डरे सहमे नज़र आ रहे हैं वहाँ इसे क्या सूझी जो कोरोना के लिए धन्यवाद ज्ञापन किया जा रहा है। हम सभी यह अच्छी तरह जानते एवं मानते हैं की हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हमने कोरोना के नकारात्मक पहलू को देखा, सुना और समझा पर इसके दूसरे पहलू पर यदि गौर फरमाएँ तो इसके कुछ फायदे हमें दिखते हैं। आइये देखते हैं कैसे :- प्रकृति का शुद्धि करण हुआ – पूर्ण लॉक डाउन के चलते जब सारे फैक्ट्री, कारखाने, मोटर गाड़ी वो सारी चीजें पूरी तरह बंद हो गई जिनसे हमारे वातावरण में प्रदूषण फैल रहा है और रिपोर्ट बताते हैं की ५० साल के इतिहास में इतनी स्वच्छ न ही नदियां रहीं और न ही इतनी प्रदूषण मुक्त हवाएँ जिसमे खुलकर सांस लिया जा सके। फिज...
खटखटाने दो
कविता

खटखटाने दो

डाॅ. राज सेन भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** खटखटाने दो द्वार दुःखो को हम खुशियों में चूर रहे। व्यस्त रहकर सदा सद् कर्मों में हम बुराइयों से दूर रहे।। ईश्वर देखकर लिख रहा हरपल कर्मों का खाता हमारा जरूरी नहीं कि हम दुनिया के दिलों में भी मशहूर रहे। चल रहे हैं यदि सबसे अलग हटकर सद् मार्ग में हम तो मिलेगा कम औरों से पर होगा सुखद याद ये जरूर रहे। सौंप दिया जब स्वयं को प्यारे प्रभु के हाथों में विश्वास कर तो उसके दिये फूल और हमारे उगाऎ काँटें मंजूर रहे। बदला न लें बदल कर दिखाऎं‌ अंश मात्र भी जो बुरा है किसी का किरदार ही बुरा हैं तो हम भी क्यों क्रूर रहे। ना रख उम्मीद जमीं के रहने वालों से स्वर्गिक सुख लेने की उड़े हल्का होकर दिव्य गुणों की खुशबू से भरपूर रहे। रहना हैं तो 'राज़' खुशियाँ बाँटे बस यही राह श्रेष्ठ है दुःख देने वाले को भी दे दुआ हमारा तो यही दस्तूर रहे।। परिचय : डाॅ. राज...
मेरे पापा
कविता

मेरे पापा

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे पापा मैं मुस्कुराऊ तो खुद मुस्कुराते, मैं रोऊ तो खुद भी रोने लग जाते, मेरी खुशी में खुश होते, मेरे गमों में मुझे समझाते ऐसे मेरे पापा..... अभी तो मैंने पापा बोलना भी नहीं सीखा, लेकिन जब बोलूंगी, तो जो खुशी से झूमेंगे और मुझे अपनी बाहों में ले लेंगे ऐसे मेरे पापा... जिनकी उंगली पकड़कर में चलना सिंखुगी जिनके आवाज लगाते दौड़ी चली आऊंगी बिना मेरे कुछ मांगे जो मुझे दिला दे जो मेरी हर इच्छा पूरी करवा दे ऐसे मेरे पापा... मैं ही उनकी दुनिया उनकी दुजी ना कोई इच्छा बस हमेशा मेरे लिए प्यार ऐसे मेरे पापा.... परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
उनकी इस महफ़िल में
कविता

उनकी इस महफ़िल में

मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव बिजनौर, लखनऊ ******************** रौनक भरी उनकी इस महफ़िल में, उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है? खड़ें हैं सामने उनके सभी भीड़ में, नहीं वो क्यों मेरे पास हैं? चारों ओर शोर ठहाका नजारों में, पर होंठ क्यों मेरे चुपचाप हैं? सभी व्यस्त इधर उधर की बातों में, हम बतियाते क्यों अपने आप हैं? मुंह फेर कोई बात ना करे हमसे, हमें फिर क्यों उनका इंतजार है? हर कोई दोस्तों से घिरा, मगर अकलेपन में हमें क्यों उनकी तलाश है? न बात करते हों मुझसे वो अब, फिर मुझे क्यों उनसे ये आस है? उनके बेरुखे व्यवहार में किस्सा कोई जरूर है, मगर कसूर क्या मेरा, मसरूफियत क्यों मुझसे है? बेशक रूठकर मुझसे दूर वो चलें जायें, दूर होकर भी मुझे क्यों उनसे हीं फरियाद है? उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है? . परिचय :-  मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव निवासी : बिजनौर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश घो...
वर्षा आई
कविता

वर्षा आई

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** रिमझिम-रिमझिम वर्षा आई चिड़िया रानी खूब नहाई। कभी धूल में लोट लगाती फिर पानी में लौट आती शेम्पू--साबुन नहीं लगाई चिड़िया रानी खूब नहाई। चीं-चीं कर चिड़िया गाती गाती जैसे प्रेम की पाती मौसम आया बड़ा सुखदाई चिड़िया रानी खूब नहाई। पानी में ही दौड़ लगाती दाना भी पानी में खाती आज खुशी उसने है पाई चिड़िया रानी खूब नहाई। परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने का कारण - भ...
हमारी पहचान
कविता

हमारी पहचान

प्रेमचन्द ठाकुर बोकारो (झारखण्ड) ******************** सिमट जाती हैं हमारी आत्माएँ कहीं कोने में वेदना की प्रहार से, निशब्द हो जाते हैं हमारे चेहरे पितृसत्ता के समक्ष, सजल हो जाते हैं हमारे नयन परिजनो की निश्छलता के कारण। कभी हम अभिमान बन जाते हैं तो कभी अपमान, हमारी न कोई पहचान। दहलीज़ हमारे बदल जाते हैं माथे पर सिन्दुर लगते ही, प्रथा है शायद हम अबलाओं के लिए। हमें हर क्षण सहिष्णुता का स्वयंसेवक बनाया जाता है और यही हमारी पहचान। हमें किस-किस रूप में और दिखाएँ जाएंगे कभी रावण की कैद में "सीता", तो कभी कौरवों के अपशब्दों की झोली में "द्रोपदी", तो कभी प्रणय पावन की अभिशाप में "शकुन्तला" और आज दरिन्दो की बुरी निगाहों में "कठपुतली"। परिचय :- प्रेमचन्द ठाकुर निवासी :  बिरनी, जिला-बोकारो, झारखण्ड घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
जिंदगी एक बार तो बता देती
कविता

जिंदगी एक बार तो बता देती

प्रवीण कुमार बहल ******************** वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है क्यों मेरे बगीचे में उसका हल्ला चलता रहता है उसे ना तो कयामत का डर को नफरत थी मुझसे मैं तो उसकी तमन्ना पूरी करता रहता तकल्लुफ.. क्यों करते मैं तो रोज ही आकर कह देता अपने दरबार में रोज बुला लेता ताकि तुम चंद लोगों के आगे मेरी हसरतों का जनाजा ना पीटते मुझे देखना था.. वह कौन है जो मेरे से नफरत करता है मेरे पास आता.. मैं तुम्हें खुद आंखों पर बिठा लेता मैं तो सामने आने वालों से प्यार करता हूं जिंदगी एक बार तो बता दे..वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पिता : डॉ. मदनलाल बहल व्यवसाय : सेवानिवृत- मैनेजर, इंडियन ओविसीज बैंक निवासी : गुरुग्राम (हरियाणा) उपन्मास : रिश्ता, ठुकराती राहें काव्य संकलन : खामोशी, दिशा, चिराग जलते रहें, आंसू बहते रहे, आदि १० पुस्तकों का प्रकाशन। पुरस्कार ...
माता अहिल्या
कविता

माता अहिल्या

सुषमा शुक्ला इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माता देवी अहिल्या मालव प्रांत की महारानी, न्याय की प्रतिमूर्ति और जीवनदायिनी प्रशासनिक मामलों में रुचि दिखाई और इतिहास में जगमगाई देवी अहिल्या ने युद्ध का नेतृत्व किया, वे साहसी योद्धा थी और तीरंदाज भी। हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी, और प्रजा राज्य को सुरक्षित रखती थी रानी ने पवित्र महेश्वर में अहिल्या महल बनवाया, पवित्र नर्मदा के किनारे डेरा जमाया एक बुद्धिमान तीक्ष्ण सोच की शासक थी, जो प्रजा के हृदय में जीती थी इंदौर को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभाई न्याय की प्रतिमूर्ति बनकर सामने आई शत शत कोटि प्रणाम ऐसी माता को धन्य है ऐसी इंदौर की धाता को परिचय :- सुषमा शुक्ला निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी ...
अहसास हार का…
कविता

अहसास हार का…

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** फलक तक आकर न लौट ए खुशी हम दीदार की आस लगाकर बैठे हैं। गम के सायों से जरा दूर रह ए खुशी इंतजार में आंसू बहाकर बैठे है। छलछलाती आखों से विदा किया था। तेरे शब्दों के कसीदे पे भरोसा किया था। जब अपने ही पराये से होने लगे, जजबातों से खिलवाड़ करने लगे होता रहे अहसास हार का रिश्तों में इशारों इशारों में किस्से लिखने लगे . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें...
जन्मदाता पिता-माता
कविता

जन्मदाता पिता-माता

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** जग के प्यारे दो इंसान देते हमको जीवन दान एक है ममतामई मा और दूजे पिता महान प्रेम करना हमे मां सिखलाती पिता परिस्थितियों का सामना मा से हम निर्मलता पाते पिता से जीवन ज्ञान एक है ममतामई मां.... ऊपर से तो सख्त ही रहते बच्चे उनके हिय में बसते अपने कवच बने रहते जो पिता सुधरढ चट्टान एक है ममतामई मां.... पिता हमारे संबल होते मनोबल अपना बढ़ाते रहते उनके दम पर ही हम पाते जग के सुख आराम एक है ममतामई मां.... जग के प्यारे दो इंसान जिनसे मिली हमको पहचान एक है ममतामई मां और दूजे पिता महान परिचय :-  शुभा शुक्ला 'निशा' जन्म - २५-६-१९६६ पति - शरद शुक्ला पिता - श्री जे एन तिवारी माता - श्रीमती श्यामा तिवारी निवासी - रायपुर (छत्तीसगढ़) शिक्षा - बी.काम,एम.ए. हिन्दी साहित्य ,पी.जी.डिप्लोमा इन कंप्यूटर साइंस संप्रति - विश्व मैत्र...
कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन
आलेख

कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   कोरोना वायरस मानव इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना है।अकस्मात आयी इस विपदा से निजात पाने की अनिश्चितता विश्व के समस्त देशों में है। व्यवसाय-व्यापार, निर्माण कार्य बंद हो जाने से सामाजिक-अर्थिक स्थिति परिवर्तित हुई है।लोगों में लॉक डाउन के कारण अलगाव व विवशता बढ़ी हैं। हमारे सामाजिक व मानसिक दृष्टिकोण परिवर्तित हुए हैं। सोच का दायरा, रहन-सहन, जीवन शैली, आचरण, व्यवहार में परिवर्तन आया है। घर मे लगातार पड़े रहने से लोगों में उत्तेजना बढ़ रही है। कोरोना वायरस से जो बेबसी और निराशा उभरी है, उससे हमारा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। हम इस समय सामाजिक परिवर्तन से गुजर रहे हैं, धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक मान्यताएं, मापदंड परिवर्तित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारा शारीरिक व मनोसामाजिक ...
क्या याद है तुम्हें
कविता

क्या याद है तुम्हें

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** आओ ना कुछ देर हमारे पास बैठो, पुरानी बातें याद करते हैं, मेरे हाथों को हाथों में लेकर , बातें करना, दुनिया से छुप छुप कर मिलना, और आंखों में डूब जाना, क्या याद है तुम्हें.... घंटों घर के बाहर घूमना, रातों को जागना, चांद को ताकना, आसमान के तारे गिनना, क्या याद है तुम्हें..... आओ ना कुछ देर हमारे पास बैठो, पुरानी बातें याद करते हैं....... दोस्तों में हो कर भी तुममें खोए रहना, वो कॉलेज बदलना वो रास्ता बदलना, क्या याद है तुम्हें..... किताबों में छिपाकर तेरा फोटो रखना, लबों पर तेरा नाम आना, अचानक किसी का आवाज लगाना, जल्दी से किताब छुपाना, क्या याद है तुम्हें..... आओ ना कुछ देर हमारे पास बैठो, पुरानी बातें याद करते हैं,...... वो तेरा दुल्हन बनना किसी और के रंग में रंगना, किसी और का होना उसके नाम की मेहंदी रचाना, तुम्हारी शादी में अप...
अजातशत्रु
कविता

अजातशत्रु

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पुराने शहर के बगीचे में सजावट के लिए वह तोप रखी है, पता नही उसे अपने इतिहास पर गर्व है या शर्मिंदगी। पास की क्यारियों में उगे फूलों के पौधे तोप से डरते नही है, कई बार वे अपनी सुखी पत्तियों को तोप पर उछाल देते है, हवा के साथ शरारत करते हुए। एक बालक रोज आकर खेलता है तोप के साथ उसे तोप को घोड़ा बना कर उसकी सवारी करना अच्छा लगता है। उसने अपनी चॉक से कई कपोत बना दिये है, तोप पर। कभी कभी वह गाते गुनगुनाते फूल तोड़ कर भर देता है, तोप के मुँह में। फिर दूर खड़ा होकर मुस्कुराते निहारता है तोप को, उसे पिता की कही बात याद आती है, ये तोप उगलती थी आग के गोले शत्रुओं पर। वो सोचता है अब ये कैसे उगलेगी आग के गोले, मैंने तो इसका मुँह भर दिया है फूलों से। एक प्रश्न उसे बेचैन किये हुए है। क्या होता है ??? शत्रु। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९...
💐💐जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं….💐💐
जन्मदिवस

💐💐जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं….💐💐

हिन्दी रक्षक मंच hindirakshak.com की वरिष्ठ रचनाकार श्रीमती शोभारानी तिवारी जी का आज ३० जून को जन्मदिवस है ... इस पटल के माध्यम से संदेश भेजकर आप उनको शुभकामनाएं दे सकते हैं….🙏🏻
बाप के बारे में
कविता

बाप के बारे में

आकाश प्रजापति अरवल्ली (गुजरात) ******************** आज मां बाप के बारे में कुछ कहना है। सब कुछ मां बाप ने दिया तो आज उनसे क्यों दूर रहना है। चिलचिलाती धूप में पसीना बहाते देखा है पिताजी को, दूसरो के घर में गंदे बरतन साफ करते देखा है मां को, इन दोनों की छाँह में तू बढ़ा हुआ है, तो फिर आज तू उनसे क्यों दूर है।। आज मां बाप के बारे में……. बचपन में तुझे आंसू न आए इसका वो कितना ख्याल रखते थे, तेरे खाने से लेकर तेरे सोने की हर चीज का वो ध्यान रखते थे, तू उनकी परवाह करे या ना करे उन्हें तेरी परवाह हैं, वो तेरे भगवान है फिर तू आज उनसे क्यों दूर हैं।। आज मां बाप के बारे में…….. तू आज भले ही मां बाप से रिश्ता तोड़ ले पर वो तुझे कभी नहीं छोड़ेंगे, तू जब भी मुसीबत में होगा तब मां बाप ही तेरे काम आयेंगे, अभी भी वक्त है तू समझ जा, उनसे प्यार कर, उनका ख्याल रख...
ओ जी कोई ना
कविता

ओ जी कोई ना

डॉ. रुचि गौतम पंत फ़रीदाबाद, (हरियाणा) ******************** ये दूर तलक पसरे मोहल्ले, ये हर चप्पे पे छायी खामोशी, सब घरों में क़ैद ज़रूर हैं, पर थमी नहीं है ज़िंदगी, इसे मजबूरी मत समझना, ये मजबूती है मेरे लोगों की, यहाँ एक एक बच्चा भी शेर सा पला है, तेरा तो पता नहीं कोरोना मेरा हिंदुस्तान जीतने वाला है। यहाँ बजती है घंटियाँ, सुबह शाम अज़ान भी है, यहाँ हर घर में बसता है भगवान, और हर इंसान को खुद पे ग़ुमान भी है, तेरा पता ग़लत है कोरोना, तू आया मेरे हिंदुस्तान में है। यहाँ बाँधती हैं बहनें, कलाइयों पे राखी, हर कलाई सिर्फ़ प्यार से चुनी है यहाँ धर्म कर्म की लड़ियों ने, हम सबके के बीच एक तार बुनी है। यहाँ अगर होली वाले हैं दिन, तो मुबारक बक़रीद की शामें भी हैं, यहाँ कोई कारण नहीं पूछता, माहोल-ए-जश्न ज़रा आम सा है। तेरा पता ग़लत है कोरोना, तू आया मेरे हिं...
एक पैगाम जिंदगी के नाम
कविता

एक पैगाम जिंदगी के नाम

अनिता शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी की दौड़ में ऊँचाइयों की होड़ में रफ्तार में तार तार गुमनाम जब हर बार तो राही की पहचान के लिए एक नाम जरूरी होता है.. जीवन के संचार में खूबियों के भंडार में उड़ने को आकाश में निरन्तरता की आस में जज़्बे को दिशा देने के लिए हाँ थोड़ा विराम जरूरी होता है... कुछ आकलन जीवन में कुछ संकलन चितवन में सृजन के पल संजोए लम्हे को माला में पिरोए कुछ सुकूँ पलों के लिए मन पर लगाम जरूरी होता है... भागती सी जिंदगी ओर सपने सतरंगी कुछ पाने की उमंगे थी विचलित मन की तरंगे थी हाँ ठोकरों पर मलहम के लिए, थोड़ा सा आराम जरूरी होता है... चलकर रुकना रुककर चलना बिना चले तो जीवन तन्हा क्या ठहराव क्या है बहाव नियति की चाल वक्त का प्रवाह इन सबको समझने के लिए क्या ऐसा अंजाम जरूरी होता है.... परिचय :- श्रीमती अनिता शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प...
दीपावली गिफ्ट
संस्मरण

दीपावली गिफ्ट

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** हेमराज वर्मा की नई-नई शादी हुई थीमोहन नागर के मकान में किराए से रहते थे। स्टेट बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत वर्मा जी, सहज और सरल व्यक्ति होने के साथ मन के साफ और नेकदिल इंसान थे।पटलन बाई ने उनको भाई बनाया था। सन्ध्या समय पटलन बाई, मोहनदादा, भाभी, शोभा, डीपी वर्मा, हरीश, सुनील हम सब वर्मा जी के कमरे पर इकट्ठा हो जाया करते थे। खूब हंसी-मजाक होती थी, अक्सर मोहन दादा को हम टारगेट करते थे। उनके और भाभी के बीच अक्सर झड़प होती रहती थी लेकिन वह भी हास्य रूप में। मोहन दादा को मावा खाने का शौक था। वो जब भी नागर मिष्ठान से मावा खरीदकर लाते तो भाभी उन्हें हमारे इकट्ठा होने के बाद छेड़ देती कहती- "विनोद भैया ई झूठ बोली के मावो लाय ने बैठी के चट करि जाय, ने इनको बहानों कय की म्हारे दस्त लगी गया।" तो तमारे खाने से मना कुण करे, खाव पर बहाना क...
विरह मिलन की तैयारी
कविता

विरह मिलन की तैयारी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज साजन मेरे द्वारे आए मै विरह अगन की मारी रे। बचपन ब्याह रचा दी बाबुल अब बढ़ हुई सयानी रे विरह मिलन की भूख है कैसी ठीक समय पर आए बराती डोली लाए सवारी रे सोलह सिंगर सजा मेरी सखियाँ गजरा बाँध संवारी रे। कजरा नयन भरो मेरी सखियाँ ओढ़ा दे सोना जडल चुनरिया रे। सुसक सुसक मोरे बाबुल रोए भइया बैठी दुआरी रे। बाह पकड़ कर मैया रोयी भाभी अंक भर वारी रे अब धैर्य रखो मोरे बाबुल बेटी जात बिरानी रे। एक दिन रोती छोड़ सभी को चल देती ससुराली रे। छढे मंजिल पर एक कोठरिया तामे एक दुआरी रे। अहनद घहरद शहनाई जलता दिप हजारी रे। विरह मिलन में चली अकेली लगी प्रीतम की छतिया रे। निज अस्तित्व गवा मै बैठी। विरह मिलन की तैयारी रे। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindiraks...
आगे बढ़ता चल
कविता

आगे बढ़ता चल

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** राही आगे बढ़ता चल। ना हो परेशान, ना हो हताश, मेहनत संग आगे बढ़ता। राही आगे बढ़ता चल। निराशा दूर कर आस संजोए, विश्वास संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। उम्मीद की नई किरण जलाए, आत्मविश्वास संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। मंजिल तेरी राह देख रही, हौसलो संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। अपने लक्ष्य पर डटे रह, संयम संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। मुश्किलों को संघर्ष से दबा के, दृढ़ संकल्प संग आगे बढ़ता चल। परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में...
अपनों ने ही मारा है
कविता

अपनों ने ही मारा है

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित- दंगो के दौरान फर्ज निभाती निर्दोष पुलिस पर होने वाले हिंसक हमलों की अमानवीयता दर्शाने का प्रयास परसी थाली छोड़ मैंने फोन उठाया जबकि अभी हाल ही सत्तरह घण्टे ड्यूटी कर, घर आया। रात के बजे हैं एक, बच्चे लंबे समय तक राह देख, कि, पापा कुछ लाएँगे आस लगाए सो गए हैं। ना जाने पापा किस दुनियां में गुम हो गए हैं? देखकर सोते बच्चों को आँख मेरी भर आईं। हिम्मत बाँधती उसनींद पत्नी नज़दीक आई। हाँथ ही धोये की वो झट खाना ले आई। समझ गई, दौरान ड्यूटी, खाना तो आया होगा। कईलाशों के बोझ! कंधों, चीखों के कान में थे; मैंने नहीं खाया होगा। भूख लगती भी किसे है ऐंसे हालातों में? एक पुलिस रखती धैर्य उन्मादी जज्बातों में। एक ही खाया था कौर; की उस ओर; घण्टी फिर से फ़ोन की बजी। रोका संगिनी ने हाँथ थाम लिया कल ही तो देखी है एक पुलिस वाले कि अर्थी सजी। ...
किसी मोड पर
कविता

किसी मोड पर

आशीष कुमार पाण्डेय कानपुर उत्तर प्रदेश ******************** मै सोचता हूँ, की वो किसी मोड़ पर दिख जाये। मुझको देखे, और थोड़ा सा मुस्कुराए।। वो साड़ी में कैसी लगती होगी, वो घडी की जगह चूड़ियाँ कैसे सजती होगी। क्या वो मुझसे मिलेगी, और गले लग जाएगी, या मुझको देखते ही वहाँ से चली जाएगी।। पर कही वो मुझे भूल ना जाये। मै सोचता हूँ की वो किसी मोड़ पर दिख जाये।। वो दो चोटी वाले बाल, आज खुले होगें ना। वो आँखो में सुरमा, होंठो में लाली होगी ना।। अब वो किसी और की, घरवाली होगी ना। क्या वो यहाँ आकर बगीचे में आयेगी, मेरे बारे में सोच कर, अपने आँसुओ को बहायेगी।। क्या वो मुझको, अब भी अपनी मोहब्बत कहती होगी। या एक बुरा समय सोचकर, भूलजाने की कोशिश करती होगी।। पर मै सोचता हूँ की, कही उसे मेरा एक पुराना खत मिल जाये। मै सोचता हूँ की, वो किसी मोड़ पर दिख जाये।। परिचय :-  आशीष कुमार प...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग – २२
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग – २२

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुरहानपुर में महाजनी पेठ के एक किराए के मकान में पहली मंजिल पर दो कमरों में सुशीलाबाई और उनकी माँ रहती थी। सुशीलाबाई को सब ताई और उनकी माँ को सब माँजी कहते है यह दादा मुझे उज्जैन में बता चुके थे। संडास और नहाने के लिए नीचे तल मंजिल पर जाना होता था। नल भी नीचे ही थे और पानी भी नीचे से भर कर लाना पड़ता। सुशीलाबाई ने जो दो कमरें किराए से लिए थे उन दो कमरों के बीच में थोड़ी खुली छत भी थी। एक कमरें में रसोई और दूसरे में सोना ऐसी इनकी गृहस्थी की व्यवस्था थी। बगल के एक कमरें में ही दिनकर और सुभाष नामके शाहपुर के दगडू चौधरी के दो लड़के भी पढ़ाई के लिए यहां किराये से रहते थे। ये दोनों लड़के थोड़े बड़े थे और कॉलेज में पढ़ते थे। इन मा-बेटी से मेरा कोई विशेष ज्यादा परिचय तो था नही। सिर्फ उज्जैन में हुई एक दिन की मुलाकात थी पर सुरेश का उनका अच्छा परिचय ही ...
मेरा बचपन
कविता

मेरा बचपन

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** किया दिन थे जब न कुछ करना। ना ही कुछ पड़ना।। ऐसा ही था मेरा बचपना! माँ के हाथ का भोजन खाना। पीता के हाथ पकड़कर चलना।। ऐसा ही था मेरा बचपना! गांव की गलियों में गुमना। दोस्तो के साथ में खेलना।। ऐसा ही था मेरा बचपना! माता पिता की डाट में प्यार का होना। कभी ना चाहा दिल में चुभाना।। ऐसा ही था मेरा बचपना! मोह था हमे प्रसाद का खाना। हम को भी दिखता था भक्ति का आना-जाना।। ऐसा ही था मेरा बचपना! . परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी( राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...