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सच्ची  कहो
ग़ज़ल

सच्ची कहो

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं। लोग माने न माने ज़रूरी नहीं।। आज तुम हो जहाँ कल रहोगे वहाँ। जानकारी किसी को ये पूरी नहीं।। जिनको नफ़रत थी हमसे जुदा हो गए। दूर वो दूर हम फिर भी दूरी नहीं।। दोस्ती दिल से की दुश्मनी खुल के की। साफ दिल हूँ बगल में है छूरी नहीं।। मुँह पे कहता बुरे को बुरा ये निज़ाम। अपनी फितरत में है जी हज़ूरी नहीं।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
जब हमेशा के लिए सोता है जवान
कविता

जब हमेशा के लिए सोता है जवान

रोशन कुमार झा झोंझी, मधुबनी (बिहार) ******************** जब कोई जवान हमेशा के लिए सोता है, दिल क्या? मेरा दिमाग़ भी रोता है। क्योंकि कोई अपनी सिन्दूर तो कोई अपने लाल को खोता है, सच पूछो तो बड़ा दुख होता है, जब कोई जवान हमेशा के लिए सोता है। चाह कर भी नहीं देखते कि वह पतला है या मोटा है, बल्कि आँसू के साथ मैं एक दर्दनाक कविता बोता है।। क्योंकि मेरी कोई सीमा नहीं, दर्दनाक कविता लिखते वक़्त मेरे कलम के गति धीमा नहीं। यूं तो हर कोई आँसू पोछता है, पर हम यूं आँसू के साथ एक दर्दनाक कविता के बारे में सोचता है। जब कोई माँ अपनी पुत्र खोती, पाल-पोष कर बड़ा किये रहती, खिलाकर रोटी। जब कोई स्त्री अपनी सिन्दूर धोती, हम यूं रोशन आँसू के साथ लिख बैठते कविता उन शहीदों पर, इसे मत समझना पथरा-पोथी।। . परिचय :-  रोशन कुमार झा सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता निवासी : झोंझी, मधुबनी, बिहार, आ...
चेहरें पीले
हायकू

चेहरें पीले

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** चेहरें पीले बिखरें बसंत है कहते लोग धंधा अच्छा है श्याह अंधेरे में बेचना धूप घर्म युद्ध में रावण नहीं मरा गरीब जात वर्षा की बूदें विराट नभ से ज्यों टूटे हो गीत शब्दाणू गिरे हुआं क्षत विक्षत कोमल तन प्रेम प्रतीक भाई बहन पर्व रक्षा बंधन परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप ...
माँ की गोद में
कविता

माँ की गोद में

रोहित कुमार विश्नोई भीलवाड़ा, राजस्थान ******************** गरम पानी से नहलाकर ठण्ड में माँ का हमें ऊपर ही धूप में बैठाना, दीवाली की छुट्टियों में सारे बिस्तर-कपड़े ऊपर सुखाना। सर्दी की छुट्टियाँ के अन्धेरे रजाईयों में और उजाले छतों पर बिताना, जाड़े में ही स्कूल में भी मेडम का छत पर ही क्लास लगाना। एसी-हीटर वाले कमरे और उनकी आलीशानता अब हमारी यादों को बाहर बुहारती हैं, घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है।। दिल करता है ले आऊँ एक बड़ी वाली सरसों के तेल की शीशी बाजार से और बोलूं माँ से कि लो कर दो चम्पी और मालिश अपनी गोद में मेरा सर रखकर, जिन्दगी को फिर से जी लूँ मैं माँ की गोद में अपने उसी बचपने की छत पर।। परिचय :- रोहित कुमार विश्नोई स्नातकोत्तर - हिन्दी विषय (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा-उत्तीर्ण) स्नातक - कला संकाय (हिन्दी, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान) स्नातक - अभियान्त्रिकि (यान्त...
धरती माँ की पुकार
कविता

धरती माँ की पुकार

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** कल रात मेरे ख्वाबों में धरती माता आई थी कहने लगी देखो, रंगीन आसमानों के नीचे भोर की लालिमा सी लगती हूँ रंग-बिरंगे फूलों से मैं लदी हूंँ चहुँ ओर छाई है हरियाली, तुम सब सदा बनाये रखना मुझे सुंद। अब बहने लगी नदी स्वच्छ, निर्मल जल की धारा बन गई है तुम सबके लायक न करना प्रदूषित न कहना वह मैली हो गई है हे मानव ! तुम सदा रखना शुद्ध और पवित्र। धरती माता मुझसे कहती है मां बेटे का सदा बना रहे यूं ही रिश्ता अन्न, फूल, फल तुमको देती रही यूं ही सदा। बदले में मैं तुमसे कुछ ना लेती कहने लगी धरती माता। सुनो तुम सब हो मेरे बेटे बहने दो मंद-मंद पवन शीतल सुगंधित होने दो मुझकों शीतल सुगंधित अब रहने दो मुझकों। परिचय :- डॉ. यशुकृति हजारे निवासी : भंडारा (महाराष्ट्र) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
बारिश की बूंदें
कविता

बारिश की बूंदें

विनोद वर्मा 'दुर्गेश' तोशाम (हरियाणा) ******************** बारिश की बूंदें बरसी मन मेरा हर्षाए। सावन का मस्त महीना प्रियतम की याद दिलाए। तन भीगा और मन भीगा आँचल भी भीगा जाए। पहले सावन की बारिश जियरा मेरा चुराए। टप-टप गिरती बूंदे और पंछी शोर मचाएं। साजन बिन सूना सावन विरह आग लगाए। बूंदों की बौछार में मन शीतल हो जाए। गर साथ तेरा हो साजन सावन पावन हो जाए। परिचय :-विनोद वर्मा 'दुर्गेश' निवासी : तोशाम, जिला भिवानी, हरियाणा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी क...
विशाल रोटी
लघुकथा

विशाल रोटी

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मोहन आज बहुत थक गया मानिक रुप से भी व शारीरिक रुप से भी ! बॉस तो ऐसे काम कराता है की कई बार मन करता है नौकरी छोड़ के भाग जाऊ पर मजबूरी है दो “रोटी “कमाने तो यहाँ पर आया है ! घर की हालत बहुत ही ख़राब, घर गिरवी रखा है, मेरी पढ़ाई के लिये बाबू जी ने वह छूडाना है सबसे पहले, फिर छोटी बहन कंचन की शादी करनी है, माँ बाबू जी को सुख व ख़ुशियाँ तो दू ! पर यह बाँस लहू निचोड़ लेता है अपमानित करता है जो अलग, यही विचार उसके मन में उथल पुथल मचा रहे थे, की राकेश आ गया पीट पर धौल जमा बोला क्या हुआ, मोहन बाँस ने कुछ कह दिया क्या अरे छोड़ उसको चल कैंटीन में चल चाय पीते है, मोहन बोला मुझसे मेहनत चाहे जितनी करा लो पर साला अपमान बर्दाश्त नहीं होता मेरी मजबूरी न होती तो कब का लात मार नौकरी को चला जाता ! राकेश ने कहाँ मोहन तु यहाँ रोटी कमाने आया है, बोल हाँ...
रहमत
ग़ज़ल

रहमत

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई बन कर खुशबू परिजात सी बिखर गई तेरी उल्फतों की जो रहमत हो गई है बूझते चिराग़ों में जैसे रोशनाई भर गई मुस्कुरा कर जो पूछ लिया हाले दिल तूने खारी आँखों में मीठी मुस्कान संवर गई हिज्र में संभल ना पाया था दिल मेरा उम्र मेरी फिर अश्कों में ही गुजर गई रूह मेरी बेशकीमती दास्तान बन गई जब लफ्ज़ बन तेरी ग़ज़लों में उतर गई दीदार में तेरे इक उम्र यूँ गुज़ार दी मैने राह तकती अहिल्या पत्थर में ठहर गई अश्क़ों के समंदर में खुद ही फना हो गई जल में जैसे मछली प्यासी ही मर गई चाहत मेरी क्यूँ आज अधुरी सी रह गई बीच हमारे"मधु"एक दूरी सी पसर गई परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
अश्क
कविता

अश्क

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल मे जो बसा है वो, आँखों मे दिखने लगा, पोरो पे आ छुप जाता, क्यू मुझमे बसने लगा..? कब तक सहेज रखूंगा? अब ज्वार सा उठने लगा, साहिल को आतुर मौजे, बन भवँर,हैं घुमड़ने लगा... समंदर दबा रखा था, बरबस छलकने लगा, ये आब था रुका-सा, तुझे देख,फ़फ़कने लगा... हैं खता क्या जो उसकी? हो खफा दुर जाने लगा, था मर्ज चंद हर्फो का, हकीम आज़माने लगा... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
कबाड़
लघुकथा

कबाड़

डॉ. ज्योति मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसग़ढ) ******************** "कबाड़....शर्माजी बेहद खुश थे उनके पैर मानो जमीन पर ही नही टिक रहे हो ..और हो भी कयो नही उनके इकलौते बेटे रमेश का सीधे अफसर की पोस्ट पर सिलेक्शन जो हुआ था नया घर मिला वो भी हाईफाई सोसायटी मे थ्री बीएचके वरना अब तक तो शर्माजी किराए के मकान मे धक्के खा रहे थे ऐसा नही की उन्होंने कभी अपना मकान नही बनाया था ... बनाया था मगर बेटे रमेश को बडा अफसर बनाने मे उसकी अच्छी पढाई और जरुरतों के लिए बेच दिया तमाम संघर्ष किए इस बीच पत्नी का साथ भी छुट गया मगर हिम्मत नही हारी और बुढापे मे गार्ड की नौकरी भी की ...जिसकी बदौलत आज उनका सपना पूरा हो रहा था बहु और दो मजदूरों सहित पूरे घर मे समान बखूबी जमा दिया सचमुच घर एक मंदिर की तरह लग रहा था आखिर थ्री बीएचके मे से एक कमरा उनके लिए भी था दोपहर को रमेश आफिस से लंच करने के लिए घर लौटा तो घर को करीने स...
किसे चुनें
कविता

किसे चुनें

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी अगर खुद को चुनती। फिर वो मौत का फंदा ना बुनती। जिंदगी अगर खुद को चुनती। दूसरों पर रखी , उम्मीद जब है थमती।। खुद को हार कर, जिंदगी की आस जब है जमती।। जिंदगी अगर खुद को चुनती। फिर वो मौत का फंदा ना बुनती।। जिंदगी अगर खुद को चुनती। कर खुद पर भरोसा, जब तक, सांसों की डोर है चलती।। साथ अपने हिम्मत से, हर बात है बनती। मुश्किलें दौर भी, आकर चला जाएगा। बदल अपनी सोच , सब कर है सकती।। खुद से जो फिर हार गया, अपने सामने ही, हथियार डाल गया। मौत उसे है चुगती।। जिंदगी जब खुद को चुनती। फिर वो, जिंदगी की कहानियां ही बुनती।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
यादें जीवन की
कविता

यादें जीवन की

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** (अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या पर) इतनी-सी क्या देर हो गई तुझे, तुम्हें आए कितना दिन हुआ, ऐसे कोई थोड़े जाता है भला क्या, ये जिंदगी कोई खेल थोड़े है, चौतीस यैवन देख चुके तुम, क्या इतना ही ज्यादा हो गई, इस छोटी-सी जिंदगी मे, जीवन क्यों मजबूर हूई, अभी सारा जीवन बाकी था, शुरुआत तो अब हुई थी, दूसरे की हौसला देने वाले, स्वयं क्यूँ तू हार गए तुम, इस नश्वर दुनिया मे तुम, मौत को क्यूँ दोस्त बना लिए तुम, अभी और अधियारा आता भी, इतनें मे क्यूँ हार गए तुम, जीने का सलीका सिखाने वाले, स्वयं सलीका भुल गए तुम, युवा जीवन के पायदान पे चढ़ते, दुनिया से क्यूँ रूठ गए तुम, सबके चेहरे पे हँसी लाने वाले, स्वयं डिप्रेशन मे चले गए तुम, इस बेखुदी दुनिया मे, जीवन से हार गए तुम ! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी...
मजदूर और शहर
कविता

मजदूर और शहर

दीपाली शुक्ला कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शहर तू क्या उसे भूला पाएगा? जो सहमा सा है शहर तू आँचल में छिप जाएगा, खून पसीना सींच भी वह ममता न पाएगा, उॅगली पकड़ चलाया जिसने तू उसे भूला जाएगा, मकान तो छोड़ ही दे वह चारदीवारी न पाएगा, वह जानता नहीं क्या मिला उसे यहाॅं, न जानता है वहाॅं क्या मिल पाएगा, जिस तरह जानता है हर डगर को वह यहाॅ, उसके इस सफर को क्या कोई समझ पाएगा, कभी खुद को न तुझसे मिला पाएगा, दिल में फिर भी न तूझसे गिला पाएगा, अपना न सका तू अलविदा भी न कह पाएगा, क्यों तेरे खातिर वह मिट्टी वतन की छोड़ आएगा, बापू ! पूछना मत अब, कब तक लौट आएगा, यह जवान बाजूओं के दम से, सैलाब न रोक पाएगा, बापू बेटा चला है तेरा भी, और मेरा भी, दुआए पहुॅची उस तक, तो एक तो लौट ही जाएगा, सपने जिससे सहेजे थे, वह ताले तोड़ लाएगा, हर चीज उस पेटी की हकीकत ही बेच खाएगा, उसकी बाती बिना तू आँगन...
चिंकी का खत
लघुकथा

चिंकी का खत

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चिंकी बड़ी ही तन्मयता से कुछ लिख रही थी, जैसे ही पापा को अपने कमरे की तरफ आते देखा, अनायास ही उसके हाथ रुक गए जैसे किसी ने उसकी चोरी करते रंगे हाथों पकड़ा हो और कॉपी अपने पीछे छुपा कर खड़ी तो गई। पापा ने पूछा- क्या बात है बेटा तुम इतना घबरा क्यूँ रही हो? चिंकी ने रूआँसे होते हुए कहा कुछ नही, पापा बस यूंही ... कह कर दौड़ कर चली गई। पापा को चिंकी की हरकत कुछ संदेहास्पद लगी। बात आई गई हो गई। रात को सोने के लिए अपने रूम मे जाते वक़्त अचानक फिर उस घटना की याद आ गई और पापा के मन में उधेड़ बुन शुरू हो गया की आखिर चिंकी ऐसा क्या लिख रही थी जो उनके आते ही सिहर उठी और घबरा गई। कहीं ऐसी वैसी बात तो नही, यह सब सोंचते सोंचते बरामदे में टहलने लगे, टहलते हुए उनकी नज़र चिंकी पर पड़ी जो गहरी नींद सो चुकी थी, चिंकी के रूम में जाकर पापा ने वह...
अन्न का हर कण
लघुकथा

अन्न का हर कण

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** माँ! "आप दादा दादी को भर पेट खाना क्यों नही देती?" "किसने कहा तुमसे?" दादा ने कि दादी ने " "किसी ने भी नही" तो? "मैं और भैया रोज देखते हैं, दोनों खाना के बाद थाली में बचा एक-एक कण अँगुली से चाट चाट कर खा लेते हैं। हम दोनों को लगता कि उनका पेट नहीं भरता?" मैंने देखा कि लाकडाऊन के कारण घर में विराजमान पति देव बच्चों की बात सुनकर मन्द मन्द मुस्कुरा रहे हैं, उन्हे देखकर मै हँसपड़ी। हँसते हुए मैंने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और प्यार से समझाया- "दादा दादी पुराने जमाने के हैं, जो भगवान् के द्वारा दी गई हर वस्तु का ध्यानपूर्वक उपभोग करते हैं, किसी भी चीज की बर्बादी तो बिलकुल भी नहीं। रही अन्न की बात, हर दिन के भोजन को भगवान का प्रसाद समझकर वे भोजन करते हैं। उनका मूल मंत्र है आनंद का हर क्षण और अन्न का हर कण कभी भी नहीं छो...
रोशनी की किरन
कविता

रोशनी की किरन

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** दूर बहुत दूर एक रोशनी की किरन दृष्टि गोचर होती है, मन मयूर बिना कुछ विचार किए, थिरक उठता है पाॅव अनायास ही ता ता थैया की, ताल पर थिरक उठते हैं, मधुर शहनाई गूंज उठती है, दिल के सूने आॉगन मे, रोम-रोम पुलकित हो उठता है, अनजाने मिलन से, मन वीणा के हर तार से, स्वर लहरी फूट पड़ती है एक खूबसूरत स्वर्ग सा, अहसास होने लगता है, यूॅ अहसास होता है मानो, कदम-कदम पर खुशियों के, महकते फूलों की विशाल चादर बिछी है, मन चंचल हो दौड़ पड़ता है इधर-उधर, और अन्तस तल मे अनजानी सी मस्ती छा जाती है मानो कोई आवारा भॅवरा, गुंजार करे हर डाली पर..... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड...
मंदिर-मस्जिद और चिड़िया
कविता

मंदिर-मस्जिद और चिड़िया

रंगनाथ द्विवेदी जौनपुर (उत्तर-प्रदेश) ******************** मै देख रहा था अभी जो चिड़िया मंदिर के मुँडेर पे बैठी थी, वही कुछ देर पहले मस्जिद के मुँडेर पे भी बैठी थी. वहाँ भी ये अपने पर फड़फड़ाये उतरी थी, चंद दाने चुगे थे, यहाँ भी अपने पंख फड़फड़ाये उतरी, और चंद दाने चुग, फिर मंदिर की मुँडेर पे बैठ गई. फिर जाने क्यूँ एक शोर उठा, मंदिर और मस्जिद में अचानक से लोग जुटने लगे, और वे चिड़िया सहम गई. शायद चिड़िया को मालूम न था कि वे, जिन मंदिर-मस्जिद के मिनारो पे, अभी चंद दाने चुग, अपने पंख फड़फड़ाये बैठी थी, उसमे हिन्दू और मुसलमान नाम की कौमे आती है, जहा से हर शहर और गाँव के जलने की शुरुआत होती है, और हुआ भी वही, फिर उस चिड़िया ने अपने पर फड़फड़ाये मिनार से उड़ी, और फिर कभी मैने उस चिड़िया को, शहर के दंगो के बाद, दाना चुग पर फड़फड़ा, किसी मंदिर या मस्जिद की मिनार पे बैठे नही पाया, शायद वे चिड़...
जीवन का उद्देश्य
कविता

जीवन का उद्देश्य

सतीश गुप्ता नरसिंहपुर ******************** अब खामोशी बांटने को महक दे तो सही उठा के हाथ से अपने गुलाब दे तो सही आया है कुछ करने को जानता है सनम उठाकर नैनों से नजरिया बांट तो सही इतिहास है सिखलाता है पल-पल यहां फिर विस्फोट कर नई गंगा बहा तो सही भरोसा है भीतर का भाव महकेगा यहां खुद को खुदी से मधुबन बना तो सही उठा के दिल से कुछ शोरगुल कर यहां खामोशी जागृत कर खुशबू दे तो सही माता-पिता हैं बचपन महकता है यहां बुढ़ापा आया तब सहारा बन तो सही नजरिया पावन हो यू कौन मारे यहां आज दर्द उनका उधारी तो कर सही . परिचय :- सतीश गुप्ता जन्मतिथि : १५-०३-५२ निवासी : नरसिंहपुर कार्यक्षेत्र : रिटायर्ड टीचर लेखन के कार्य में रुचि कविता, गजल, पिरामिड हाइकु छंद आदि। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को
आलेख

सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चिट्ठी ना कोई संदेश, इस दिल को लगा के ठेस कहाँ तुम चले गए....? हर दिल अजीज, उम्दा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत सर आज आप हमारे बीच नहीं हैं ख़बर सुनने के बाद ना जाने कितनी बार मेरी आँख नम हुई गला रुंध सा गया! मेरी मन: स्थिति कुछ भी लिखने की नही है लेकिन आपकी इस आत्महत्या ने मानव जाति के लिए जो सवाल छोड़ें हैं उसको लिखना भी जरूरी लग रहा है! एक पूरा जीवन जो इस धरा पर आने में सतरंगे सपनों से लेकर नौ माह का खूबसूरत समय लेता है, अचानक ऐसी कौन सी विवशता, लाचारी, दुख, दर्द इंसान को घेर लेता है कि जिंदगी जीने से ज्यादा मौत प्रिय लगने लगती है! हर कोई सवाली है इस वक्त कि आखिरकार ऐसी क्या पीड़ा ऐसी कौन सी मानसिक विचलन मन में रही होगी कि सुशांत सिंह राजपूत जैसी शख्सियत ने मौत को गले लगाया? क्यों अचानक अपनों को रोता विलखता छोड़ कर इंसान चल देत...
मेरी आस्था
कविता

मेरी आस्था

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मूर्ति पूजा की आलोचना के प्रतिउत्तर स्वरुप प्रथम प्रयास बिखर जाते हैं बनाने हमारा वजूद खुद चोट खाकर। रौंदे गए होकर मिट्टी अपनी रौनक गंवाकर।। जिससे बनी ये सारी कायनात है कीमती हर पत्थर निर्भर जिसपर सिर्फ इंसान नहीँ भगवान् है।। अगर गलत है इसे पूजना तो सिर्फ इतना बता मेरे दोस्त बिन मिट्टी और पत्थर के वजूद है किसका?? किसमें है दम जो मूल चुका दे ब्याज सहित इसका?? जर्रा जर्रा इसी ने बनाया है। तुझे दी ये अनमोल काया है।। गर चुका नहीँ सकते मूल ; तो नहीँ कभी भूलेंगे फक्र से ताउम्र पत्थर की मूरत पूजेंगे।। अपनी आलोचना का डर किसी और को दिखाना । आइन्दा मेरी आस्था पर अंगुली नहीँ उठाना।। तुम करोगे निंदा हमारी थोथे बन बैठे बड़े, ना वेद पढ़े ना शास्त्र पढ़े नित बने आलोचक ही मनगढे। ना नीति रची ना गीति वची वैचित्र कुंठाजित मूढ़मढें।। केवल कर्मों का ...
राजपूत सुशांत
कविता

राजपूत सुशांत

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** राजपूत सुशांत, तेरे चाहने वाले आज बहुत अशांत, पवित्र रिश्ता से बनाया अपनी पहचान, पर्दे पर किया तूने जीवंत, द ग्रेट धोनी महान, जिंदादिली थी तेरी पहचान, सोसल मीडिया पर तेरे लाखों फॉलोअर्स, सभी बिहारियों का तूं था अभिमान, फिर किस बात ने किया तुझे यूं परेशान, किंकर्तव्यमुढ़ कर गया तेरा देहांत... परिचय :- बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें ...
इंसान और प्रकृति
कविता

इंसान और प्रकृति

मुकुल सांखला पाली (राजस्थान) ******************** तेरा जैसा इस दुनिया में, कोई नहीं, रे इंसान! अपने स्वार्थ के खातिर तू हर लेता जीवों के प्राण। जितना तू लालच करेगा, अपने पाप का घडा भरेगा। कवि मुकुल तुझसे है कहता, कहे बिना अब ये नहीं रहता। प्रकृति से तू क्यों कर रहा खिलवाड? इसी का परिणाम है, कभी भूकंप, कभी बाढ। बार-बार संकेत देकर प्रकृति ने तुझे समझाया। आंखो पर बंधी लालच की पट्टी तू इसे समझ नही पाया। आधुनिकता की होड में तू हो जायेगा बरबाद। बिना प्रकृति और जीवो के कैसे रहेगा तू आबाद? कुछ पैसे के खातिर तू लेता जीवों की जान तेरे जैसा इस दुनिया में कोई नहीं, रे इंसान! परिचय :- मुकुल सांखला सम्प्रति : अध्यापक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, खिनावडी, जिला पाली निवासी : जैतारण, जिला पाली राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो क...
गुनाह क्या है
कविता

गुनाह क्या है

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** मेरे पैरों में जब भी काँटा चुभा, उस बेदर्द से बस यही मैंने पूछा- बताओ ना तुमने क्यों घायल किया है? कहता नफ़रत का मैंने हलाहल पिया है। जिया हूँ बहुत सियाही रातें, कभी तो पूनम मुझे मिलेगी। मगर कभी ना मुझे लगा था, मेरी ही कली यूँ मुझे छलेगी। अरे ! मैं तो जी भर के तोड़ा गया हूँ, किस्मत के हाथों मरोड़ा गया हूँ। नहीं देख पाया बहारों के सपने, खिज़ा की तरफ ही मोड़ा गया हूँ। इसलिये चुभता और चुभाता हूँ सबको, एहसास उसी दर्द का कराता हूँ सबको। मेरे पास तो है बस घृणा की विरासत, वही बाँटता फिरता रहता हूँ सबको। बाँटकर भी ये नफ़रत ना कम हो सकेगी, रेत सेहरा की भी क्या शबनम हो सकेगी?? एक ही कोंपल,डाल के हम थे साथी, मगर फूल ने मेरी दुनिया भुला दी। मैंने हर पल सजाया,संवारा कली को, भंवरे से प्रेम की लौ उसने जला दी। कहती चुभने लगे हो तुम हर सांस में, और...
बच्चों से जब काम न लेकर
गीत

बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। उत्तरदायी सरकारें यूँ, अपना फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए बस, लक्ष्य हमारा अपना है। सूरज शिक्षा का तम हरले, देखा हमने सपना है।। काबिल होंगे बच्चे जब हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। जिनसे उड़ते, पंख उन्हीं को, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं जंग खाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, बिल्कूल निष्फल जाएंगी।। जीवन को उत्सव मानेंगे, जब गुल ये, खिलजाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बच्चों के सपने ही तो कल, की तस्वीर बनाते हैं। जैसे सपने वैसे ही तो, फल दामन में आते हैं।। बच...
वो माँ हिन्दी भाषा है
गीत

वो माँ हिन्दी भाषा है

शिवलाल गोयल "शिवा" लुनाडा, बाड़मेर (राजस्थान) ******************** बहुत कवियों ने गुणगान किया है, इसका इतिहास और गाथाएँ बहुत पुरानी है। जिसके शब्दों की मिठास और ताकत किनसे अनजानी है। जिसको सुनते ही हर इक मानुष का हृदय तृप्त हो जाता है।। वो माँ हिन्दी भाषा है, वो माँ हिन्दी भाषा है। सहज, सरल, सुन्दर अक्षरों का मेल है हिन्दी, पढने, पढाने और लिखने में अनमोल है हिन्दी, सहानुभूति व्यवहार, नैतिक आचरण है हिन्दी, साहित्य की मुस्कान है,... (2) शीत है हिन्दी, ग्रीष्म है हिन्दी। वर्षा है हिन्दी, हर इक ॠतु है हिन्दी।। उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम भारतवर्ष की हर इक दिशा है हिन्दी। भारत की भाग्य रेखा है हिन्दी। वो माँ हिन्दी भाषा है,.... (2) नदियों की कल्ल-कल्ल सी आवाज है हिन्दी। समन्दर की गहराई है हिन्दी। हिन्द हिमालय से निकलती हुई रस धार है हिन्दी। खेतों के खलिहानों में, केसर के फसलों में है हिन्दी...