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समय करता नहीं इंतजार
कविता

समय करता नहीं इंतजार

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** समय करता नहीं इंतजार ! मानव, थोड़ा सोच विचार !.. समय करता नहीं इंतजार पहियां, हर पल चलता है, जीवन, हर क्षण छलता है, मति, मानव की मरती है, मनमानी वह करती है, समय संचालित संसार !.. समय करता नहीं इंतजार सुख-दुख इसके गहने हैं, हानि लाभ, सबको सहने हैं, दिन-रात, इसका उपक्रम है, मैं - मेरा, सबका संभ्रम है, समय का सौ टका व्यवहार !.. समय करता नहीं इंतजार राजा रंक इसके बल से, बनते मिटते इसके छल से, जीवन मृत्यु समय का बंधन, मोह माया पीड़ा क्रंदन, झूठी सारी मनुहार !.. करता नहीं इंतजार राई को पर्वत कर देता, आंखों में सिंधु भर देता, छल कपट से बचना है, पाप प्रपंच से हटना है, करता सबका संहार !.. समय करता नहीं इंतजार परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिन्दी र...
रक्तदान दिवस
आलेख

रक्तदान दिवस

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** दान की महत्ता क्या होती है यह सनातन धर्म से अधिक कौन जानेगा? हमने अपना तन, शरीर, सर्वस्व देकर भी शरणार्थी की रक्षा की है। राजा शिवि ने एक कबूतर की जान बचाने के लिए अपना पूरा शरीर काट काट कर बाज को दान कर दिया। राजा बलि ने संपूर्ण सृष्टि तथा स्वयं को भी भगवान वामन अवतार को दान किया। ऋषि दधीचि ने जीवित ही अपनी रीढ़ की हड्डी का दान किया जिससे वज्र का निर्माण होकर मानव समाज की रक्षा हुई। इसी प्रकार मानव कल्याण के लिए रक्तदान का भी विशेष महत्व है। भारत जैसे बड़े देश में रक्त की उपलब्धता एक बहुत बड़ा विषय है। एक्सीडेंट, चिकित्सा, सर्जरी, आदि हेतु भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है जबकि हम चिकित्सालय व अन्य सभी संस्थाओं के माध्यम से ७५ लाख यूनिट ही एकत्रित कर पाते हैं। कई परिवार रक्त की अल्पता के कारण उजड़ जात...
उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग – १९
उपन्यास

उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग – १९

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** दुसरे दिन की सुबह एक नया ही उजाला ले कर आई। सुबह साढ़े पांच बजे घडी में अलार्म जोर से बजा। सबसे पहले दादा उठ गए पर हम दोनों की आंखों में नींद समाई हुई थी। मेरे लिए घडी का अलार्म यह कुछ नया सा था। अब आगे क्या होगा इस उत्सकुता के साथ मैं बिस्तरे पर ही लेटा रहा। दादा ने अपने नित्यकर्म से निपटने के बाद हम दोनों को आवाज दी, 'बाळ-सुरेश,उठोI छ: बज गए जल्दी निपटलो। बिटको की शीशी वहां रखी है। दोनों के लिए पानी की बाल्टियां भी भर कर रखी है। पहले अच्छे से दांत साफ़ कर लो। जीभ अच्छे से साफ़ करना। मैं दोनों के लिए दूध गर्म कर रहा हूं। जल्दी करों।' सुरेश उठ खडा हुआ। उसने अपनी दरी और चादर अच्छे से घडी कर जगह पर रख दी। मुझे ग्वालियर की याद आयी। काकी के कमरें में तो जूट के बोरे से बनायी दरी दिनभर बिछी ही रहती थी। और नानाजी के कमरें में भी खाट पर वैसे ही द...
गौरैया
कविता

गौरैया

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** क्या फिर इस प्रदूषण में मखमल सी हरियाली फैलेगी? फिर इन सीमेंट के जंगलों में कोई गौरैया चेहकेगी ? क्या फिर इस धरा पर बसंत की खुशबू महकेगी? क्या फिर धरा हरी भरी अदाओं से, कवियों की लेखनी बन पाएगी? या धीरे धीरे ये लेखन भी कंक्रीट के जंगल पर निर्भर होगा? क्या आम की अमराइयों की महक से कोयल कूकेगी? फिर असली गुलाबों की महक महकेगी? या कभी जूही की कलियां भी मनमोहक महक मेहकाएंगी। बचा लो इस धरा को प्रदूषण के असर से धरा फिर फूलों की बहार बन जाएगी। धरती में फिर छा जाएगी हरियाली। गौरैया फिर अपने सपनों की उड़ान भरेगी। परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर,...
नारी
कविता

नारी

ममता रथ रायपुर ******************** नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं भीतर आवाज बहुत है पर बोलती कुछ भी नहीं चाहतें तो बहुत है तेरी पर उम्मीद किसी से करती नहीं चाहे कितने भी दर्द हो दिल में पर दूसरों के सामने अपना दर्द कहती नहीं नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
बेटियां
कविता

बेटियां

नम्रता गुप्ता नरसिंहपुर ******************** मै कहानियों की दुनिया की सैर कराने आयी हूं अपने ही एक किरदार को मै आज समझने आयी हूं बेटी बन में आज बेटी की परिभाषा बतलाने आयी हूं कहानी की कोई परी होती है बेटियां नाजुक छुईमुई सी होती है बेटियां जरूरत पड़े तो काली बन संहार करती है बेटियां नया सृजन कर दुनिया बनाती है बेटियां फिर क्यों दुनिया पर ही बोझ कहलाती है बेटियां फूल की कोमल कली सी होती है बेटियां पल-पल अपनी जड़ों को मजबूत करती है बेटियां पापा की राजदुलारी होती है बेटियां मां की परछाई कहलाती है बेटियां वन को उपवन बनाती है बेटियां बहू के रूप में दो कुलों को जोड़ देती है बेटियां मुश्किल वक़्त में सूर्य की किरण होती है बेटियां फिर अपने प्रियतम की अर्धांगिनी बन जाती है बेटियां अम्बर से धारा को रोशन कर देती है बेटियां जब मानव जन्म कर मां कहलाती है बेटियां रातों को अपनी बच्चो पर वारती ...
धूप विसर्जन दिन है गुजरा
कविता

धूप विसर्जन दिन है गुजरा

जितेंद्र परमार समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) ******************** धूप विसर्जन दिन है गुजरा देख निशा होने को आई खग पुनः जो लौटे नीड़ को संध्या ये गगन में छाई अद्भुत अनोखा ये नजारा कुदरत रूप सजाने आई मनभावन ये समय सुहाना चाँद तारे भी संग में लाई कष्ट थकान भरे इस तन को कर्म मुक्ति अब मिलने आई सकल दिवस की एक कामना आंखों में नींद सहसा छाई परिचय :- जितेंद्र परमार निवासी : समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या ग...
ये प्यार भी ना क्या-क्या करवा लेता है
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ये प्यार भी ना क्या-क्या करवा लेता है

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ********************                                         यदि औरत कुछ ठान ले तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। यूं ही उसे शक्ति नहीं कहा जाता। कावेरी उक्त लाइन की जीवंत मिसाल लग रही थी। अब आप सोचेंगे-कावेरी....! कौन कावेरी..... ? जी हां वही कावेरी है जिसने अपने दोनों भाइयों द्वारा माता-पिता को अनाथ छोड़ दिए जाने के बाद अपनी सारी उम्र उनकी देखभाल में निकाल दी। माता-पिता की दवाई और घर की व्यस्था चलाने के लिए प्राइवेट ऑफिस में कार्य करते हुए किसी पारखी की नजर उस पर पड़ी और उसने उसे कानून की पढ़ाई करने की सलाह दी। चालीस की उम्र छूते सभी जिम्मेदारियों को संभालते अच्छी एडवोकेट बन गई। पर आपको पता है-वकालत एक ऐसा पैशा है जहां कई सालों तक आपको जूनियर की नजर से ही देखा जाता है। शुरुआत के कुछ वर्ष वक्त का इन्वेस्टमेंट होता है, सरकारी ब्याज जितना कम पैसा, और अनुभव...
अरुणोदय
कविता

अरुणोदय

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** लुप्त हो गया तिमिर घनघोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! भूमि से अंबर तक हैं रंग व्याप्त है जीवन के शुभ ढंग नाद ने किया मौन को भंग उड़ रहे अगणित विविध विहंग दृश्य परिवर्तन है चितचोर। हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर। रश्मियाँ रवि की आईं हैं दिशाओं में सब छाईं हैं भूमिगत हुआ कहीं पर तम उजाला अनुपम लाईं हैं प्रकाशित हुए धरा के छोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर। जागरण के गुंजित हैं गीत हवा में है अद्भुत संगीत जगी है जीवन की नव प्रीत हुई है आशाओं की जीत नृत्यरत है सबके मन मोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! हुए प्रारंभ कई कर्तव्य दृष्टिगत हैं आयोजन भव्य सभी में हैं सहयोगी जन पुरातन हैं कुछ तो कुछ नव्य हुए जड़-चेतन भावविभोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
तुम्हीं ने
कविता

तुम्हीं ने

गीता शर्मा सुंदरनगर, रायपुर (छ.ग.) ******************** मुझी से मुझी को चुराया तुम्हीं ने अँगारों पै चलना सिखाया तुम्हीं ने सनी धूल से थे किताबों के पन्ने उन्हें फूल जैसा सजाया तुम्हीं ने नहीं प्रेम का ढाई आखर पढ़ा था वही हँसके मुझको पढ़ाया तुम्हीं ने सजल होती जाती हूँ मैं धीरे-धीरे कमल‌ इस हृदय का खिलाया तुम्हीं ने बनो मत, चलो पास आने की सोचो बहुत यों ही अब तक सताया तुम्हीं ने परिचय :- गीता शर्मा (विश्व कीर्तिमान धारक) जन्मतिथि : १६/८/ जन्मस्थान : रायपुर (छ.ग.) पति : श्री संजीव शर्मा निवासी : सुंदरनगर, रायपुर (छ.ग.) शिक्षा : पी.जी, (विद्यावाच्पति, विद्यासागर ) कार्य : स्वतंत्र लेखन प्रकाशन : चार, तीन शासन से प्रकाशित सम्मान : राज्यस्तरीय. २५, राष्ट्र स्तरीय. २३, अंतराष्ट्रीय..२ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
मन की बात
लघुकथा

मन की बात

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक बार दाँतों और जबान में फालतू की बहस छिड़ गई। जबान बोली- "कितने दिनों से बाहर का खाना नहीं टेस्ट किया।" दाँत ने होशियारी दिखाई बोला क्या बेवकूफ की तरह बात करती हो? सरकार ने लॉक डॉउन यूँ ही लगाया है क्या? मूर्ख कहीं की! दाढ़ बोली- "तुम बहुत ज्यादा पटर-पटर करने लगी हो, इतनी हलचल अच्छी नहीं। मालूम है ना तुम एक हो और हम बत्तीस हैं। "जबान तुनककर बोली- "मुझ पर रौब जमाने की जरूरत नहीं अपने काम से काम रखों समझे!" सामने के दाँत ने गुस्से से कहा- "बाहर मत आना नहीं तो सामने से कट जाओगी तुम समझी! अब जबान से रहा नहीं गया वो भी गुस्से में बोली- "एक बार गलत चल गई ना तो ऐसा घूँसा पड़ेगा कि सब बाहर आ जाओगे। "इस बहस को बढ़ते देख मन चिंतित हो उठा।उसने होंठ को प्रेरणा दी। होंठ बोल पड़े- "अरे भाई सब शांत हो जाओ, कुछ भी करोगे तो नुकसान सबका एक समान ही ह...
अधरों पर
कविता

अधरों पर

जय खीचड़ मोडायत, बिकानेर (राजस्थान) ******************** अधरों पर बुंदे छितरादे अंबर थोड़ा नेह बरसादे!! सुख रही पेड़ो की डाली पंछियों के घर फिरसे सजादे !! धरती पुत्र करे पुकार प्रेम बीज से खेत जुता!दे !! परिचय :-  जय खीचड़ स्नातकोत्तर : फाइनेशियल मैनेजमेंट एम.कॉम निवासी : मोडायत, बिकानेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे ...
वर्षा तुम जब
गीत, छंद

वर्षा तुम जब

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** राधेश्यामी छंद में वर्षा गीत… वर्षा तुम जब जब भी आती, मेरा मन दुलरा जाती हो। तरु के पत्तों से टकरा कर, सुरमय संगीत सुनाती हो। तेरे आने की आहट नित, मुझको पहले मिल जाती है। जब तप्त हृदय मेरा होता, तब क्षितिज कालिमा छाती है। हो निनाद जब दूर कहीं पर, नभ हो जाता जिससे गुंजित। विरही मन में तब हूक उठा, प्रियतम की याद दिलाती है। पहले ही संकेतों द्वारा, जैसे भेजी मृदु पाती हो।१ चातक सा रहता मन प्यासा, चाहत बूँदों की है मन में। कुछ स्वाति फुहारें पड़ जायें, शीतलता आये तब तन में। नभ से बरसे जल झर-झर कर, भीगे तब आकुल सा तन-मन। लग जाएँ सावन की झड़ियाँ, आये बहार तब जीवन में। बूँदों की टिप-टिप से उपजे, तुम नवल राग में गाती हो।२ होते हैं भाव विभोर सभी, जब ऋतु परिवर्तन करती हो। तब शुष्क पड़े सब हृदयों के, तुम ताल सरोवर भरती हो। इस भूतल के सारे प्राणी, मिल राह त...
बर्बादी की डगर
कविता

बर्बादी की डगर

संजय जैन मुंबई ******************** किताबो में पढ़ कर, रेडियो में सुन कर। चल चित्र को देखकर, कहानी बड़ेबूड़ो से सुनकर। मोहब्बत करने का मन, दिल में पनापने लगा। और लगा बैठे दिल , पड़ोसी की लड़की से।। अब न दिल धड़कता है, न सांसे ही चलती है। ये कमवक्त मोहब्बत भी, क्या बला होती है। जो न जीने देती है, न ही मरने देती है। चलते फिरते इन्सान को, एक लाश बना देती है।। मोहब्बत के चक्कर में, न जाने कितने लूट गये। और कितने खुदा को, पहले ही प्यारे हो गये। जिसे मिल गई मोहब्बत, वो आबाद हो गया। नही तो जिंदा एक, लाश बनके राह गया।। किसी को इसने पागल, बना कर छोड़ दिया। तो किसीको घायाल करके, बीच मजधार में छोड़ दिया। इसलिए अब मोहब्बत के, नाम से लोग घबराते है। न खुद करते है और, न किसीको सलाह देते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में प...
दो जून की रोटी
कविता

दो जून की रोटी

दीपक कानोड़िया इंदौर मध्य प्रदेश ******************** दो जून की रोटी खाने को बेबस बैठी है मानवता भांति-भांति के लोग यहां जाने कब आएगी समता कुछ लोलुप सत्ता के लोभी कुछ राजनीति रचते धोबी कुछ है विद्वान प्रकांड यहां कुछ निर्धन से धनवान यहां कितना भी धैर्य रखें जनता जाने कब आएगी समता कुछ को चाहिए आज़ादी रुकती नहीं अब आबादी दर दर पे घूमते हैं गांधी फिर भी नहीं थमती आंधी कर्तव्य निभाने से पहले हक मांगने निकली जनता जाने कब आएगी समता जिस तरह कीट पतंगे भी वृक्षों को काट के खा जाते दीमक बनकर दीवारों पर कण-कण को चाट के खा जाते बस वैसे ही अब मानव है या कह दो सच्चे दानव है ख़ुद को ही काट रही जनता जाने कब आएगी समता दो जून की रोटी खाने को बेबस बैठी है मानवता भांति भांति के लोग यहां जाने कब आएगी समता परिचय :- दीपक कानोड़िया निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी...
क्षण फुरसत के है नहीं
कविता

क्षण फुरसत के है नहीं

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** विषय :- आधुनिक परिवेश में भागता इंसान धन, वैभव पीछे भाग रहा है इंसान सभी पल दो पल भी क्षण फुरसत के है नहीं जब देखो आँखें बुनते रहते हैं स्वप्न सिसकती आहें खो रहे हैं अपनत्व तरसे बच्चे पाने को ममता भरी माँ के आँचल का प्यार दिन, महीने हैं गुजर जाते दे न पाते पिता अपना असीम दुलार वृद्ध चक्षु खोजते हैं रहते शीतल वटवृक्ष छाया हृदय है शून्य सभी हर तरफ बढ गए तार वृक्ष साया अकेलापन समा रहा है जिंदगी में रौनक रही नहीं अब बंदगी में ईर्ष्या, द्वेष का जाल बिछा है चहुँ दिशा फंसाती ही रही है सदैव काली निशा समझ न पाता फिर भी चैन की नींदिया न ले पाता कभी। धन, वैभव पीछे भाग रहा इंसान सभी पल दो पल भी क्षण फुरसत के है नहीं। परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
चाँदनी रात
कविता

चाँदनी रात

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता "प्रीत की पाती" में प्रेषित कविता) जैसे ही चाँद पर ठहरती है नजर यू ही याद आ जाते हो तुम चाँद के चमकिले उजास में आसमान की सतरंगी परिधि के बीच जैसे ही तुम्हारा अक्स नजर आने लगता है तब लगता है चाँद और मेरे बीच एक अनकहा रिश्ता है। उसके सौन्दर्य मे मै अपने सपनो को निहारती हूँ मन के आकाश मे घुमते मेरी अधूरी कामनाओं के बादल मेरी सपनीली आँखों में मधुर स्मृतियों के चित्र बनाते और क्षण भर में चाँदनी की तरह फिर बिखर जाते।। परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधिय...
प्रेम की गली में
कविता

प्रेम की गली में

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता "प्रीत की पाती" में प्रेषित कविता) प्रेम की गली में ये उदारता है क्यों ? ... बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?... तू नहीं तो तेरा एहसास है मुझे, ऐसा लगे जैसे आस-पास है मुझे।-२ तेरे-मेरे चित्र नयन, उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? सच मानिए जब से आप मिल गए। मन मधुबन में कई पुष्प खिल गए।-२ अंग-अंग दीप अब उजारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? मीरा श्याम रंग में दीवानी हो गई। भक्ति अनुराग की कहानी हो गई।-२ गरल में सुधा, नेह उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? राधा व्याकुल हुई घनश्याम आ गए। शबरी के जूठे बेर राम खा गए । -२ ईश्वर भी प्रेम बस हारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्योँ ? परिचय :-...
पापा जिंदा है
लघुकथा

पापा जिंदा है

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) पांच साल की नन्हीं मासूम गुड़िया की समझ में नहीं आ रहा था कि, पापा के आने की चिट्ठी पढ कर तो दादी और मां दोनों मिलकर पापा की पसंद के पकवान बनाती थीं, फिर आज पापा के आने की चिट्ठी पर घर में सब क्यों रो रहे है? आखिर दादी के पास जाकर गुड़िया ने अपना प्रश्न दादी से पूछा, दादी गुड़िया को सीने से लगाकर फफक फफक कर रोने लगी, गुड़िया मेरी बच्ची तेरे पापा देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए है। तुझ पर से पिता साया हट गया है मेरी बिटिया, तेरे पापा अब इस दुनियां में नहीं रहे बेटी, दादी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, लेकिन दादी पापा ने तो मुझसे कहा था कि जो देश की सेवा में शहीद होते है, वे हमेशा जिन्दा रहते है, देश की हवाओं में, देश की मिट्टी में और देशव...
चीत्कार उठा ये हृदय मेरा
कविता

चीत्कार उठा ये हृदय मेरा

डॉ. अर्पणा शर्मा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चीत्कार उठा ये हृदय मेरा अश्रु नही समाते है, इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है एक निर्बल ने थामा कसकर जिसको वो रक्षक समझा था उसने ही झोंक दिया पशुओं में रक्षक नही वो भक्षक था पशुओं में भी अपनेपन के हम भाव उजागर पाते है इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है... कैसे सभ्य समाज कहूँ मैं दुष्टों की इस टोली को जान न पाया जो साधु की निर्बल मीठी बोली को जो थे दुनिया का दुख हरते वो ही दुख अब पाते है... इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है.. भीड़ भरी दुष्टों की थी इंसान कही न नज़र आया कुछ ही पल में अलग हो गई प्राणों से झरझर काया एक निरिह प्राणी को सब मिल मिट्टी में मिलते है.... इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है.... पल-पल जिसने है प्रभु मेरे केवल तेरा ही नाम जपा सदाचार और सद्व्यवहार का जिसने था संसार रचा क...
पछ्तावा और सीख
लघुकथा

पछ्तावा और सीख

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) मेरी सहेली गितिका अपने यादों में खोई छत की मुंडेर पर बैठी थी अचानक मुझे वहां देख कर चौंक गई। मैनें पुछा 'क्या हुआ गितिका तुम चौंक क्यो गई' और मैनें उसकी आँखो में आंसु देखे। फिर से उसे अपनी जिन्दगी के वो मनहूस पल याद आ रहे थे जब उसके अनुसार उसके जीवन का अन्त हो गया था शायद इस लिये उसके आँखो में आंशु दिख रहे थे। गितिका मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी। काफी बाचाल थी हमेशा हँसते रहना उसकी पहचान थी। कॉलेज में भी वो सबकी चहेती थी। उसके इसी हंसमुख स्वभाव के कारण कॉलेज का एक लड़का मयंक उसे चाहने लगा। कॉलेज खत्म हो गई दोनों अपने अपने घरवालों से बात की और हाँ हो गई। दोनों के परिवार बहुत अच्छे थे। काफी धूम-धाम से दोनो की शादी हो गई। नये घर मे जा कर गितिका काफी ...
हे प्रियतम
कविता

हे प्रियतम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) हे प्रियतम कैसे व्यक्त करू.... अपने मन के भावों को वो ह्रदय में उठते वीणा के झंकारों को.... जानती हूं एक हसीन सपना हो तुम, जो कभी मिलकर भी मिल न सको, वो सबसे प्यारा अपना हो तुम...। लेकिन इस अतृप्त ह्रदय को अब समझाना है मुश्किल...। वो तुमसे हुई छोटी सी मुलाकात वो अपना सा स्पर्श, वो चिरपरिचित सी मुस्कान और तुम्हारा यह कहना कि मैं हु न तुम्हारे साथ हमेशा, इतना सकूँ दे गया कि तुम्हारे साथ न होने का सब दर्द भी ले गया, अब तो बस, इतना ही है कहना की इस मुलाकात के सहारे अब जीवन भर है जीना। और तुम्हारी ही होकर रहना.....। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक...
प्रकृति  का कहर
कविता

प्रकृति का कहर

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** आधुनिक परिवेश में प्रदूषण हमारी प्रमुख समस्या पर्यावरण सूरक्षित नहीं, नहीं सुरक्षित देश की प्राकृतिकता एक ओर तो चीखते रहते, हम सब पर एहसान जता कर प्लास्टिक का विरोध दिखाते जहां तहां जुलूस निकाल कर हर सरकार आती जाती अपने जलवे बिखेर के जाती पर जो आवश्यक तत्व हैं उनपर उनकी नजर ना जाती जनता भी ना अपनाये पर्यावरण के स्वस्थ उपाय स्वयं तो कुछ कर नहीं पाते एक दूजे पे उंगली उठाए सरकार के साथ हमें भी स्वच्छता का मूलमंत्र याद रखना होगा गीला कचरा सूखा कचरा अलग रखने का सतर्कता से पालन करना होगा पर्यावरण को बढ़ाने दोस्तो एक एक पेड़ लगाना है रास्ते गलियां घर चौबारो में शीतल बयार बहाना हैं प्लास्टिक की मोहमाया को आज भी हम सब तज नहीं पाये यदा कदा डिस्पोज़ल कैरी बैग प्लास्टिक के अपने काम ही आएं जो हम ध्यान ना रख पाए तो भुगतान हमे ही करना ...
पछतावा
लघुकथा

पछतावा

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) आज अमन बहुत खुश है, माँ को पहली नौकरी की खबर देता है। माँ आशीर्वाद देते अतीत में खो गई। वह हृदय विदारक घटना जब पिता देव का दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया। कैसे ! अमन को बीमार पड़ने पर रात में अकेली हॉस्पिटल लेकर दौड़ती, कैसे! स्कूल लेने छोड़ने...और ना जाने क्या-क्या याद आने लगा। माँ क्या सोचने लगी? कुछ नहीं बेटा जब तू तीन साल का था तब से आज तक....हाँ माँ कैसे सिलाई में दिनभर भीड़ी रहती हो, पर अब मत सोचो ये सब अब! कुछ समय बीता अमन को विदेश भेज जाना पड़ा, केरल के मूल निवासी थे, समय-परिस्थितियों ने यही का रख छोड़ा था। माँ-बेटे का कोई अपना ना था, बेटा माँ को एक वर्ष का वादा कर वृद्धाश्रम में छोड़कर चला गया।दो वर्ष बीत गए, शुरू में अमन का फोन आता था, अब वो ...
कैसी है ये जिद तुम्हारी
कविता

कैसी है ये जिद तुम्हारी

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** उम्र के इस पड़ाव पर मैं भूल गयी थी सब पढ़ा लिखा अब कैसी है ये जिद तुम्हारी कलम देकर कहते हो थोड़ा लिखकर तो दिखा! समझता नही कोई एहसासों को सोचकर यही लिख-लिखकर कभी मन के पन्नों से कभी कापी के पन्नों से कितनी बार देती हूँ मिटा! जिंदगी की उलझनों को एक उम्र न सुलझा पाई कैसी है जिद यह तुम्हारी कलम कापी देकर कहते हो कुछ तो मुझको तू सिखा! लिखे थे जो कभी मैं ने रफ कापी के पन्नों में कुछ टेड़े मेड़े शब्द भाव अपने कैसी है ये जिद तुम्हारी कहते हो उन पन्नों को अब मुझे दिखा! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां...