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दो जून रोटी खातिर
कविता

दो जून रोटी खातिर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** दो जून रोटी की खातिर,जान बाजी लगा रहा। यह दुनिया एक रंगमंच,वह करतब दिखा रहा। अपनों की परवाह उसे,दर-दर ठोकर खा रहा। आएंगे शायद अच्छे दिन,इसी उम्मीद जी रहा। दो जून रोटी खातिर................. बड़े-बड़े बंगले देख,वो मन ही मन खुश हो रहा। कितना सुकून होगा उसमें, वो नादान सोच रहा। तभी किसी ने आवाज लगाई, काम करोगे क्या। मीठे सपनों से जागा,जी आया हुकुम कह रहा। दो जून रोटी की खातिर............. दो जून रोटी के खातिर, वह कितना तरस रहा। रोटी चीज नहीं है छोटी,महत्व अब समझ रहा। अपने बच्चों के आंसू देख,वो खून आंसू रो रहा। गरीब होने की सजा,देखो बहुत ज्यादा पा रहा। दो जून रोटी खातिर ............... अपना देश छोड़, रोटी तलाश विदेश जा रहा। लाखों व्यर्थ लूटा देंगे, गरीब न कोई सुन रहा। सारे गुनाह इसी के पीछे, वह मासूम कर रहा। कहे वीणा दो जून रोटी लिए,जहा भटक रहा...
नई पारी
कविता

नई पारी

खुल जाएंगे आज शहर खुल जाएंगी गलियां सारी खुल जाएगा उजियारा छंट जाएगी अंधियारी क्या खुल जाएगी सोच वही जो लेकर हम सब बंद हुए थे ? क्या खुल जाएगी सोच वही जो जिससे चेहरे मंद हुए थे ? खुल जाएगी किस्मत क्या उस बुढ़िया चेहरे की लाठी ? खुल जाएगी बचपन की वो खेल खिलौनों की काठी ? या फिर से बंद हो जाएगा अंधियारा इस तूफान का क्या जुड़ पाएगा दूरियों में नाता फिर इंसान का ? क्या खुशियां फिर से खेलेंगी या ग़म के बादल छाएंगे ? जो बिछड़ गए हैं अपनों से क्या फिर से वो मिल पाएंगे ? अब समय नहीं है बंद सोच का, बस वही बदलने की बारी। लेकर आशाओं के दीप शुभम, हम खेलेंगे अब नई पारी। हम खेलेंगे अब नई पारी।   परिचय :- दीपक कानोड़िया निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
आपदा और प्रेम
आलेख

आपदा और प्रेम

कोरोना ने दिखा दिया कि हम भारतीय सच में प्रेम की परिभाषा ठीक से समझते हैं। दया, करुणा, फ़र्ज़, लगभग हर जगह दिखे। नाम की चाह रखने वालों ने दान खूब किया और तस्वीरों के जरिये दिखाना चाहा कि वो मानवतावादी हैं। होड़ लग गई थी प्रदर्शन करने में। कुछ तो दान लेकर दान देते दिखे। पैकेट किसी के वाहबाही कोई दूसरा ले गया। लेकिन काम तो जोरदार हुआ। जरूरतमंद वंचित तो नहीं रहे। कुछ धूर्त भी निकले। ज़रूरत से ज़्यादा मुफ्त का माल जमा कर लिया। समूचे देश में एकता दिखी। लॉक डाउन में तमाम महानुभाव बोर होते दिखे, उबासी लेते दिखे, छटपटाते दिखे, ग़मगीन दिखे, मलीन दिखे। क्योंकि उनके अंदर प्रेम नहीं था। क्रोध, ईर्ष्या, घमंड, ईगो, के कारण ऐसे लोग प्रेम न कर सके। माँ, पत्नी, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री, मित्रों से दिल खोलकर बातें न कर सके। घर में कार्य करने वालों के प्रति दयालु न बन सके। प्रेमी प्रेमिकाओं ने अपार दुख झेले। मोबाइल...
कान्हा बनाम खान नदी
कविता

कान्हा बनाम खान नदी

मोहब्बत को ही इंसानियत की शान कहते हैं अध्यापक हूं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का गुरान में मुझे "आशु कवि" के.पी. चौहान कहते है कान्हा नदी का उद्गम स्थान है इंदौर जिले का मुंडी गांव जीसे आज लोग खान कहते हैं राजवाड़ा इंदौर की कृष्णपुरा छत्री पर संगम हुआ सरस्वती नदी से और त्रिवेणी में शिप्रा नदी मैं हुआ संगम जिसे शनि मंदिर पर त्रिवेणी का घाट महान कहते हैं कान्हा नदी कहूं तुझे या खान क्या कहकर करूं मां सरिता तेरा गुणगान तट पर बैठा हूं तेरे और कविता की पंक्तियों में लिख रहा हूं मां तेरा बखान मेरे गांव को कहते हैं गुरान निश दीन कल-कल करती स्वच्छ और निर्मल जल की धारा बहा करती थी जो तेरी महानता की कहानी कहा करती थी तेरे ही तट पर अपना बचपन जिया मैंने जिसका पानी कई बार पिया मैंने अब देख कर दुर्गति इस अमृत जैसे दूषित जल की भूल गया हूं मैं वह नदी बीते हुए कल की आज मैं कैसे तेरा गुणगान करूं अब कैस...
अबतो मंदिर खोलदो
कविता

अबतो मंदिर खोलदो

अबतो मंदिर खोलदो....केवल उसका सहारा है। बहुत हो गए दूर उससे अब होता नही गुज़ारा है। क्या मालिक को पता नही हमसब उसके बन्दे है। उजड़ गए कइयों के घर......बन्द पड़े सब धंधे है। देखने दो उसको भी थोड़ा बाहर कैसा नज़ारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। डॉक्टर है भगवान... हमारी संस्कृति बतलाती है। दवा से ज्यादा दुआ हमे.....ज्यादा काम आती है। धर्म, आस्था, संतो का..भारत ही एक ठिकाना है। इन्ही तीन के दम पर इस महामारी को भगाना है। करता हूँ करबद्ध निवेदन..... ये कर्तव्य हमारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। कहीं बाढ़, भूकंप कहीं तो बमबारी हो जाती है। दुष्कर्म, हत्याएं अक्सर कई सवाल कर जाती है। कुप्रथा और दहेज की बलि बेटियां चढ़ जाती है। कहीं भुखमरी और तंगी से आफत बढ़ जाती है। कुछ तो हुआ अनर्थ आपसे प्रकृति का इशारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। देशव्यापी महामारी का पहले भ...
सबला की तैयारी है
कविता

सबला की तैयारी है

https://www.youtube.com/watch?v=pZkz9vc2bFI अबला बनकर क्या पाया, बस तुने नीर बहाया है, वनिता होकर भी तो अश्कों, का सागर ही लहराया है। शिक्षा शस्त्रों का संधान करो तुम, सबला की तैयारी है....। दुनियां देखे शिक्षित नारी, रूप बड़ा सुखकारी है। कमजोर नहीं है कर तेरे, कंगन जिनमें सजते हैं, अधरों पर मधुगान रहे जो, हाला से ही लगते है। कंगन वाले हाथो को अब, कलम लगे बड़ी प्यारी है, शिक्षा शस्त्रों का संधान करो तुम, सबला की तैयारी है.....। अधरो से बहा तू अक्षर गंगा, हाला से मनोहारी है, दुनियां देखे शिक्षित नारी रूप बड़ा सुखकारी है। सबला की तैयारी है, सबला की तैयारी है। क्यों आस करे तू गोविंदा, तेरी लाज बचाएंगे, अग्निपरीक्षा देकर ही तुझको निर्दोष बताएंगे। याज्ञसैनी तू अग्निशिखा बन दुनियां तुझसे हारी है, शिक्षा शस्त्रों का संधान करो तुम, सबला की तैयारी है....। चीर बचना सीखो अपना, अब ना तू बेचारी ह...
कड़वे अंगूर
लघुकथा

कड़वे अंगूर

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजिट अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) कोरोना के चलते अभी-अभी लॉक डाउन खुला ही था कि एक फेरी वाला अपनी ठेला गाड़ी लेकर फल बेचने निकला। उसे रोकते हुए मैंने आवाज लगाई भइया अंगूर है क्या? मुंह पर मास्क लगाए, हाथो में दस्ताने पहने फेरी वाला बोला हां है बाबू जी। मै उसकी ठेला गाड़ी के करीब पहुंचा ही था कि उसने झट से सेनिटाइजर की बॉटल आगे करते हुए मेरे हाथ धुलवाकर बोला अब आप अंगूर आपकी पसंद से छांट लो। मीठे तो है ना, मेरे सवाल के जवाब में वह बोला आप अंगूर धो के चख लो बाबूजी। ठीक है भाई, क्या भाव लगाओगे। ₹ ३५ के एक किलो वो बोला। ₹३५ देकर ठीक है एक किलो दे दो भाई। अंगूर लेकर मैंने श्रीमती को दिए, उसने अंगूर लेकर धो कर फ्रिज में रख दिए। दोपहर में जब थोड़े अंगूर खाने के लिए फ्रिज से निकाले, श्रीमती ने अंगूर का पहला दाना खाते ही, ये क्या ? कड़वे अंगूर ...
ऐ मेरे प्यारे घर
कविता

ऐ मेरे प्यारे घर

ऐ मेरे प्यारे घर, मेरे सपनों के महल, तुझे छोड के जाउँ, मेरा दिल नही करता, एक बार देखूँ, बार बार देखूँ, पर जी नही भरता... अभी कल ही कि तो बात है, मेहमानों का आना जाना, उनका तुझे जी भर के निहारना, तेरी तारीफो के पुल बाँधना, सब अच्छा लगता था, अच्छा ही तो लगता था.... मेहमानों के स्वागत मे, वो मेरा पलके बिछाना, वो हँसना वो मुस्कुराना, उनकी तिमारदारी मे, खुद को भूल जाना, सब अच्छा लगता था, अच्छा ही तो लगता था ..... फिर विदाई की घडी आई, रुखसत हुए मेहमाँ, और रह गई तन्हाई, अब तो शेष है वो खुशनुमा पलों की यादें, जो दिल की गहराई मे भीतर तक समाई.... अब तो बस वापस जाना है, जीवन की आपाधापी मे, फिर से रम जाना है, पर तेरे साये मे गुजारे वो पल, तेरी यादें हमेशा संग चलेंगी, फिर से कुछ पल बिताने की तमन्ना हमेशा रहेंगी.... . परिचय :- प्रशांत कुमार श्रीवास्तव "सरल" निवासी : भिलाई आप भी अपनी कविताएं, क...
धरती का सम्मान
कविता

धरती का सम्मान

पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं, जनसंख्या का बड़ा भाग मजदूर है, लाकडाउन में भूखे प्यासे सो जाते हैं, अपने घर, गांव, शहर से दूर हैं। चिलचिलाती धूप में नंगे पांव चले, छालों की चिंता किए बिना मजदूर चले, सिर पर गठरी, हाथ में सामान लिए, बच्चों के संग सड़क नापते कोसों दूर चले। कहीं मीनार चढ़े, तो कहीं, मंदिर के नींव में दबे, दर्द सहा गालियां खाई और अपमानभी सहे, पसीने की हर बूंद भी बहा दिया हमने, अभावों में अधनंगे चिथड़ो से तन ढके। जीवन जीने को शहर आए थे, जिंदगी बचाने को घर लौट चले, दर्द की पुकार कोई सुने नहीं, बेबस, दुखी और लाचार हो चले। एक दूजे का हाथ पकड़कर जाएंगे, रोटी के लिए भगवान से भी लड़ जायेंगे, अपनी भुजाओं पर भरोसा है हमको, दो जून की रोटी प्रेम से कमा कर खाएंगे। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम...
बहिन
कविता

बहिन

सिर्फ किसी रिश्ते का नाम नहीं बल्कि है इस धरती पर विधाता का पैगाम पवित्रता का, विश्वास का अटूट बंधन है यह अविराम निश्छलता का चाहे वह छोटी हो या बडी शरारतों के पिटारे से एक सच्चे दोस्त के रिश्ते तक जिंदगी के हर मोड पर राज उसी का होता है। कभी लडाई, कभी पढाई, माता पिता से बचाने में सहयोग उसी का होता है। पैसे हो या कपडे सब पर पहला अधिकार है। समझदारी और शरारत के समन्वय से बढता भाई बहिन का प्यार है। . परिचय :- मुकुल सांखला सम्प्रति : अध्यापक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, खिनावडी, जिला पाली निवासी : जैतारण, जिला पाली राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु...
नवतपा
कविता

नवतपा

लागि नवतपा जिन्हा ते आगी सूरज बरसाय रहे प्राणी पंछी की कहे कौन बिरवा बिरछा तक सुखाय रहे का कही हालु या बिजुरी का भूतवा कसि खम्भा दिखाय रहे आँखि तरेरी रही बैहर तमन ते जगती अकुलाय रहै का कही फलाने या समयआ जीवन पै कइसन संकट छाय रहे ऊ बैठि ओसारी मा भुनकय लरिका गरमी म बिलबिलाए रहे निनचव घर मा न चैन परे भितरे बाइबे कै दुपहरि बिताय रहे लागि नवतपा जिन्हा ते आगी सूरज बरसाय रहे शब्दार्थ नवतपा - मृगशिरा जिन्हा -जी दिन से ओसारी - बरामदा . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
तंबाकू से जिंदगी
कविता

तंबाकू से जिंदगी

तंबाकू से जिंदगी बचाएं जिंदगी तंबाकू की हवा में मत उड़ाएं। आज जिसे पी रहे .......??? एक नशे..... एक उन्माद में, ऐसा ना हो यह जिंदगी पी जाएं। जिंदगी तंबाकू की हवा में मत उड़ाएं। जिंदगी के एहसास को, लंबी-लंबी सांसो में जी जाएं। ऐसी सांस तंबाकू के साथ ना लें। जिससे जिंदगी काले धुएं में खो जाएं। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) भाव ह्रदय के पन्नों पर उतार प्रीत की पाती भेजी है आज शब्द नहीं हैं दिल के जज़्बात कुछ अनकहे से हैं अल्फाज़ "तुम क्या जानो तुम बिन दिन बीतें ना बीतें रतियां रहा शेष ना इक भी दिन रोए बिन रही हों अखियाँ हारी मैं तारे भी गिन-गिन करें ठिठौली सब सखियाँ राह तकूँ मैं हर पल-छिन होंगी फिर से मीठी बतियाँ" अश्रुपूरित से नेत्रों का भार सँभाले नहीं सँभलता आज टकटकी लगाए बैठी मैं द्वार ले पुनर्मिलन की अब आस . परिचय :- किरण बाला पिता - श्री हेम राज पति - ठाकुर अशोक कुमार सिंह निवासी - ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) शिक्षा - बी. एफ. ए., एम. ए. (पेंटिंग) यू जी सी (नेट) व्यवसाय - टी. जी. टी. फाईन आर्ट्स (राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मौली जागरण चण्डीगढ़) प्रकाशित पुस्तकें - ३ साँझा काव्य संग्रह प्रकाशित और ३ प्रकाशाधीन सम्मान ...
क्या लिखूं
कविता

क्या लिखूं

तुम्हें जीवन की आस लिखूं, या जीवन का प्रकाश लिखूं चंचल मन की अभिलाषा, या अधर की प्यास लिखूं,। हृदय के होते स्पंदन में, तुम्हें प्रेम प्रतीक लिखूं। चंचल चितवन या हकीकत, या ख्वाबों में प्रेमरूप लिखूं। तुम मेरी देह में बसते हो, अपने हृदय के श्वासो में लिखूं। मेरे नैनो के बसते ख्वाब का, या मधुरिम एहसास लिखूं। हृदय के भावों में समाहित, तेरे प्रेम का गुणगान लिखूं। तुमको मन मंदिर में बसाकर, तेरा हर एक एहसास लिखूं। तेरी मेरी जुडीं भावना, उस पर मैं प्रेम गीत लिखूं मन स्वर्णिम स्मृतियों को, रक्त से अपने छंद लिखूं। तुम्हे मीत या प्रीत लिखूं, या अपने दिल का गीत लिखूं तुम्हे ख्वाब या तुम्हे हकीकत, या मधुरिम एहसास लिखूं। नेहदेव का रिश्ता अनोखा, या पार्थ की मैं नेह लिखूं। मनमंदिर की श्रद्धा से, तुम्हें प्रीत का पार्थ लिखूं। तुम्हें वेदना का पतझर या, तुम्हें मिलन की आस लिखूं तुम्हें प्रेम की अभिलाषा सा, ख...
नैसर्गिक सुख
लघुकथा

नैसर्गिक सुख

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) ‘’कल्‍लो....कल्‍लो...।‘’ चिल्‍लाते-चिल्‍लाते, मेरी पत्नि धड़धड़ाते हुई, मेरे पास आकर पूछने लगी, ‘’कहॉं है कल्‍लो!ˆ मेरे उत्‍तर की परवाह किये बिना वह घर में ही भड़-भड़ाकर ढूँढने लगी, ‘’किधर हो कल्लो-कल्‍लो!’’’ ‘’...यहाँ हूँ... मेम साब!’’ करता हुआ काम छोड़कर ‘’ हाँ मेम साब...? ‘’मेरे लिये दूघ गरम कर के, लाओ।‘’ आदेशात्‍मक लहजे में, ‘’बैडरूम में हूँ।‘’ ‘’पहले डिनर लगाऊँ; मेमसाब ?’’ ‘’नहीं! पार्टी में खा चुकी हूँ।‘’ कुछ नरम होकर कहा, ‘’बहुत नींद आ रही है, जल्‍दी ला।‘’ .....ये है, श्ष्टिाचारी, संस्‍कारी, सम्‍पन्‍न, सम्‍पूर्ण अर्धान्‍गिनी! ....मैंने पैग भरा। बैठ गया खिड़की खोलकर। आज कुछ ठण्‍डक है। शायद वर्षा होने वाली है। बाहर देखा, पानी गिरने लगा। थोड़ी देर में जोर की बरसात होने लगी। सामने बीरान खण्‍डहर पड़ी...
जीवन साकार करो
कविता

जीवन साकार करो

मनु जन्म मिला क्यों, आज थोड़ा तुम विचार करो। जागो गहरी नींद से, मीठे सपनों में ना खराब करो। कीचड़ में कमल खिलता, वैसे ही तुम खिला करो। दूर भगाकर दुष्कर्म को, तुम मानवता से प्यार करो। काम कर निष्काम, तुम कर्म पथ आगे बढ़ा करो। मान अपना कर्तव्य, हर काम को बस किया करो। बीत रहा है समय यह, खुद भी थोड़ा विस्तार करो। धन दौलत चकाचौंध में, तुम इतना ना बहका करो। भूल भुलैया है यह जीवन, गलती ना बारंबार करो। चार दिनों की चांदनी में, जीवन ना तुम बेकार करो। सत्कर्मो की नाव बना, जीवन नैया तुम पार करो। मन आए विकारों को, गुणी जनों संग बैठ दूर करो। मनु जीवन सौभाग्य मिला, थोड़ा तुम विचार करो। तेरी मेरी कर, अनमोल जीवन अपना ना व्यर्थ करो। कहती वीणा, प्रभु श्रेष्ठ रचना जीवन सार्थक करो। बहुत कम बची सांसे, सोच समझ कर खर्च करो। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव "रागिनी" वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक ...
मैं हूं भी, नहीं भी
कविता

मैं हूं भी, नहीं भी

मैं हूं पर कहां? यह मेरा नाम है। जिस ओहदे से जाना जाऊं वह मेरा काम है। संबंधों में बिखरा है वह मेरा अस्तित्व है। खुद को जानने ढूंढ बना वह जीवन स्पंदन है। मेरी शिक्षा, परवरिश, आयु शरीर में मुझे समझने का जरिया है। पंचतत्व से बना उसी में विलीन होकर माटी का पुनर्निर्माण किया। मुझे जानने की अनंत यात्रा में मैं हूं भी नहीं भी हूं। दिखता है वह मैं नहीं हूं जो नहीं दिखता वह मैं हूं। मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन भी नहीं हूं। सिर्फ मैं ही मैं हूं हर जगह चराचर जगत में। जीवन की अनंत यात्रा में मैं हूं भी नहीं भी हूं। . परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
मानवता
लघुकथा

मानवता

उस समय की बात है जब संदीप ओर उसके दोस्त गुजराती कार्मस महाविधालय इन्दौर में वर्ष २००६ में बी.कॉम द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत थे, संदीप ओर साथी दोस्त अधीकतर रेल परिवहन से देवास से इन्दौर अध्ययन हेतु प्रतिदीन आना जाना किया करते थे, उनको घर से कभी जरुरत पड़ने व नाशते पर खर्च हेतु ३० रु. दीये जाते थे। महाविधालय में परीक्षा के नामांकन प्रपत्र जमा होने के कारण रेल अपने नियत समय से स्टेशन से निकल चुकी थी, व दूसरी रेल २ घण्टे बाद चलने वाली थी, संदीप ओर उसके दोस्तों द्वारा बस परिवाहन से इन्दौर से देवास जाने का निश्चय किया, बस में पुरी सीट भर जाने के कारण खड़े खड़े जाना पड़ा, जहॉ संदीप खड़े थे उसके समीप वाली सीट पर एक बुजुर्ग बैठे थे, मुख पर निराशा के भाव व चिंता की लकीर अलग ही प्रतीत हो रही थी। बस अपने गंतव्य स्थान देवास के लिये निकल गई, करीब १०-१२ किलोमीटर के सफर तय करने के बाद बस कंडक्टर का बस किरा...
प्रेम की पाती
कविता

प्रेम की पाती

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) पुरुष के अलग-अलग भाव इस कविता के माध्यम से। पिता जब लौटे दफ्तर से छोड़ चिंता की पोटली घर आंगन में आतें हैं, जैसे ही दस्तक किया प्रवेश द्वार को बस बट गई वहीं से प्रेम प्रीत की पाती।१ छोड़ हाथ मा का दौड़ कर पिता की गोद में चढ़ गए हैं बच्चे, प्रीत का पहला कदम हंसी उल्लास से मन मोहित कर देता है।२ वह जाकर सीधा बैठा बड़ों की छत्रछाया में, चिंतामय आवाज में बोली आने में देर हुई कब से देख रही थी घड़ी को। ममता की छांव में सारे दर्द मिट जाते हैं। ३ लो झट से आई चाय का प्याला लिए, बैठ गए सब साथ-साथ रंग जमा है माहौल बना है, लगा है जैसे बरसों बाद मिले हैं।.४ यह त्रिवेणी के संगम जैसा लगता है, बस बार-बार इसमें गोते लगाऊं सारे दुख दर्द मिट जाए, इतना पवित्र है यह संगम।५ ऐसी प्रेम की पाती मुझे बहुत भावे है २ . ...
नया ठिकाना
लघुकथा

नया ठिकाना

आज सुबह से बच्चे के जोर-जोर से रोने की आवाज से मीरा बहुत बेचैन थी आखिर बाहर आकर देखा। नए मकान के चौकीदार की झोपड़ी के बाहर टूटी खटिया पर उसका ९ वर्षीय बेटा गब्बू बिलख-बिलख कर रो रहा था। क्यों गब्बू इतनी जोर-जोर से क्यों रो रहे हो? कब से रोए जा रहे हो, क्या हुआ? गब्बू और जोर से क्रंदन करने लगा। उसके माता-पिता अपना बोरिया-बिस्तर बांधने में भिड़े हुए थे। माँ बोली- "का करे मैडमजी इहा अब मजूरी नाही सो गाँव जा रहे हैं। ई गब्बू कहत है इस्कूल जावेगा, गाँव मे पड़ई छूट जावेगी देख लेव कईसा रो रवा है। मीरा बोली - "तो मत जाओ ना! कुछ समय की बात है सब ठीक हो जायेगा। इतने में पिता झुंझलाया- "पेट की आग नाही रुक सके है बेनजी। मीरा बोली- "पर बच्चा कब से रो रहा है मुझे घबराहट होने लगी तुम पिता होकर.....इत्ताई घबराट है तो रख लेव इका। पढ़ाया करियो। मूक होकर मीरा घर मे चली गई। पेपर पढ़ रहे पति को दुखी होकर सब बात बता...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

चलती फिरती काया की उड़ान है जिंदगी एक कुरुक्षेत्र है जिंदगी कभी वक्त के थपेड़ों में डूबती उत्तराआती नाव सी जिंदगी साहिल की तलाश में भटकती हुई जिंदगी कभी फूलों की गुलजार बाग सी महकती जिंदगी कभी पतझड़ में पेड़ की टूट सी खड़ी जिंदगी कैलेंडर की तारीखों सी बदलती हर पल जिंदगी सपनों का महल खड़ी करती जिंदगी टूटते सपनों का दंश झेलती जिंदगी बहुत बेमिसाल है जिंदगी कभी हाथों में ठहरती नहीं जिंदगी आंखों में सुनहरे पल की आस लिए जिंदगी जीवन के खट्टे मीठे लम्हों से भरी जिंदगी हर पल एक नया अनुभव देती जिंदगी . परिचय :- लखन लाल यदु अभिभाषक जन्मतिथि : ७.८.१९५८ निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
हम सबका भला होगा
लघुकथा

हम सबका भला होगा

डॉ. अपराजिता सुजॉय नंदी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** आज सुबह ही खबर मिला कि रमा की मौसी अब नहीं रही। मां के जाने के बाद रमा के लिए एक मौसी ही तो थी उसकी पूरी दुनिया, उसके अलावा रमा के पास था ही कौन। रमा का तो रो-रो कर बुरा हाल हो गया। खबर मिलते ही सीमा भी पहुंची, जाकर देखी कि लोगों का आना-जाना लगा हुआ था। एक ओर कुछ लोग दुखी भाव से कह रहे थे कि रमा की मौसी को हार्टअटैक आया था, घर में तनाव भी था, बीपी का दवाई भी तो लेती थी। तो दूसरी ओर कुछ लोग अर्थी सजाने की तैयारी में थे, वहां एक पंडित भी अर्थी के पास खड़े होकर कुछ समझा-बुझा रहा था। एक और पंडित पंचांग निकालकर कुछ देख रहा था गणना कर रहा था। पैर के पास परिवार के कुछ लोग बैठे थे। पंडित जी ने कहा मौसी को कोई दोष लगा है जो घर के लिए अपशगुन होगा। इससे बचने के लिए पूजा-अर्चना करवानी पड़ेगी करीब ११००० रुपए तो दक्षिणा ही होगी। पूज...
वेदना
कविता

वेदना

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** टूटे अरमानो का जबाब कौन देगा? जो बिखरचुका उस दिल के, टुकडो का हिसाब कोन देगा? ख्वाबो के हसीन नजारो के, बिखरने का हिसाब कौन देगा? पल पल जो अश्क बहाये.. उन अश्को कााहिसाब कोन देगा? जो भूल गयी गिनते गिनते रातो को... उन तारो का हिसाब कौन देगा? चाद भी रोया था जब मेरे साथ साथ उस कृन्दन का जबाब कौन देगा? होठोपे कभी जो आ न सकी.. उन मुस्कानो का जबाब कौन देगा? कौन देगा कौन देगा? कौन देगा कौन देगा? . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
दूर मुझसे न जा
ग़ज़ल

दूर मुझसे न जा

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन दूर मुझसे न जा वरना मर जाऊँगा। धीरे-धीरे सही मैं सुधर जाऊँगा।। बाद मरने के भी मैं रहूंगा तेरा। चर्चा होगी यही जिस डगर जाऊँगा।। मेरा दिल आईना है न तोड़ो इसे। गर ये टूटा तो फिर मैं बिखर जाऊँगा।। नाम मेरा भी है पर बुरा ही सही। कुछ न कुछ तो कभी अच्छा कर जाऊँगा।। मेरी फितरत में है लड़ना सच के लिए। तू डराएगा तो क्या मैं डर जाऊँगा।। झूठी दुनिया में दिल देखो लगता नहीं। छोड़ अब ये महल अपने घर जाऊँगा।। मौत सच है यहाँ बाकी धोका निज़ाम। सच ही कहना है कह के गुज़र जाऊँगा।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
तकदीर
ग़ज़ल

तकदीर

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** नज़रे इनायत हो तो तकदीर संवर जायेगी आँखों के आईने में ये सूरत निखर जायेगी इक दफा जो दूर से तू पुकार ले मुझको जिस्म से फना होती रूह भी ठहर जायेगी इस तरह से न देख शोख नजरों से मुझको मेरी सांसो की चलती रफ्तार सुधर जायेगी कभी तो पेश आ गुलों की तरह मेरे हमनवा संग तेरे खारों की चुभन भी ईश्क़ कर जायेगी जब भी रिश्तों का ताना बाना खुल जायेगा घर के आँगन में फिर उदासी भर जायेगी इन्तजार में तेरे खुद को काँधे पे लिये बैठी हूँ इश्क के इस अंजाम से मौत भी डर जायेगी दिल पर लगी हुई चोट भी यकीनन गहरी है तसव्वुर से तेरे "मधु" लम्हा लम्हा भर जायेगी . परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...