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माँ
कविता

माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** ईश्वर का वरदान है माँ, धरती पर भगवान है माँ कोई उपमा न दे पांऊ मैं, ऐसी महान् आत्मा है माँ। माँ से पाया उजास सूरज ने, माँ से पाई उंचाई आकाश ने और गहराई प्रेम की सागर ने, पाया है उसने भी दुलार माँ से। बीजों में फूटते अंकुर में, अग्नि से उठती ज्वाला में पतझर में भी सावन का, सा एहसास करातीं है माँ। तुझे शब्दों में न बांध पाऊँ मैं, क्योंकि तू ही पूर्ण शब्द है माँ . परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद) पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन माता : श्रीमती सुशीला देवांगन पति : श्री जवाहर देवांगन शिक्षा : एम.ए हिंदी, बी.एड., पी.एच.डी सम्प्रति : शोधछात्रा निवासी : राजेन्द्र नगर, महासमुंद प्रकाशन : आंचलिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित सम्मान : श्रेष्ठ सृजक सम्मान, साहित्य साधना सम्मान अन्य : समाजसेव...
गुजरात गौरव और वॉरियर्स
कविता

गुजरात गौरव और वॉरियर्स

आकाश प्रजापति मोडासा, गुजरात ******************** गुजरातने तो बड़ी से बड़ी, मुसीबतों का सामना किया है। सब एकजुट होकर मुसीबतों को, दूर कर जीत को हासिल किया है।। आज एक बार फिर गुजरात पर, एक नई मुसीबत आई है। कोरॉना नामकी महामारी सब पे, डर बन के छाई हैं।। ये वाइरस ने गुजरात पर, ऐसा प्रभाव डाला है। खाना-पीना तो छोड़ो, जीना भी मुश्किल कर डाला हैं।। भैया ये चीन का वाइरस है वाईरस, इसे तो कुछ पता नहीं। इसका सामना गुजरातवालों से पड़ा हैं ये अभी जानता नहीं।। यहां के डॉक्टर्स, नर्स, पुलिस, सफाई कामदारों में वो ताकत है। इस वाईरस को जड़ से निकाल देने में, ये सब सक्षम है।। हम भी अपना पूरा, सहयोग इनको देंगे। इनकी हर बात मानकर, इनकी मदद करेंगे।। ये तो हमारे लिए, गुजरात के कॉरोना वॉरियर्स हैं। ऐसी मुश्किल समय में भी हमारे बारे में, सोचते ये ही हमारे रियल हिरोज हैं।। ग...
प्यार का सिलसिला
कविता

प्यार का सिलसिला

डॉ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) ********************** एक छोड़ता दूसरा पाता है प्यार सिलसिले बनाता है। अँधेरा छाता,उजाला आता है जीवन यही कहलाता है। जलजला जब आता है कश्ती से साहिल छूट जाता है। बहुत आसान है विखर जाना जुड़ने में जीवन निकल जाता है। टुकड़ों में भी मुस्कुराता है खिलौना फलसफे सिखाता है। अजब बस्ती है ये शायरों की जिसे देखो ग़ालिब कहलाता है। है सांस सांस मौली पली डोर से डोर का नाता है। . परिचय :-  डाँ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' जन्म : २० अप्रैल माता : श्रीमिती रामदुलारी विश्वकर्मा पिता : श्री रामकिशोर विश्वकर्मा निवासी : आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) शिक्षा : ऑनर्स डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (एक वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा) बी. एड., एम. ए.(भूगोल), एम. फिल. (नगरीय भूगोल), पी-एच. डी.(कृषि भूगोल)। प्रकाशन : राष्ट्रीय एवं अंतरास्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं ...
हमने क्या-क्या देखा
आलेख

हमने क्या-क्या देखा

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** जब से हमने कोरोना को देखा ना पूछो, हमने क्या-क्या देखा इंसान में हमने भक्षक को देखा इंसान में हमने रक्षक को देखा इंसान को हमने लूटते देखा इंसान को हमने लुटाते देखा पकवान खाते अमीरों को देखा ठोकरें खाते मजदूरों को देखा धनवानोंं को भंडार भरते देखा गरीबों को रोड़ पर मरते देखा विदेशों से लोगों को आते देखा देश में लोगों को पैदल जाते देखा स्वास्थ्यकर्मी पुलिस और निगम कर्मी के रूप में भगवान को देखा उनसे दुर्व्यवहार करने वाले हैवान को भी देखा लोगों की सेवा करते साधक योगी को देखा स्वस्थ होकर धन्यवाद देते रोगी को देखा दूरदर्शन पर महाभारत व रामायण को देखा दुनिया को व्यायाम और योग में परायण देखा साथ समय बिताते परिवार को देखा बैर भाव की गिरते दीवार को देखा जब से हमने कोरोना को देखा ना पूछो, हमने क्या-क्या देखा . परिचय :-  डॉ. सर्वेश व्यास ...
कोरोना के बाद की दुनिया
आलेख

कोरोना के बाद की दुनिया

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** कोरोना, यह शब्द कुछ माह से मन को झकझोर जाता है, इसने मानव सभ्यता की वर्तमान व भविष्य की योजनाओं को उथल पुथल कर के रख दिया। इस संक्रमण के बाद के जन जीवन पर इसका बहुत प्रभाव रहने वाला है, आने वाले कई वर्षों तक हमें संक्रमण से सावधान रहना होगा, प्रदूषण को रोकना और प्रकृति के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विश्व की महाशक्तियों को युद्धक जैविक हथियारों की होड़ को समाप्त करने के विषय में महत्वपूर्ण व कठोर निर्णय लेना होंगे। क्योंकि संदेह यह है कि चीन के वुहान प्रान्त की रासायनिक लैब से फैला यह कोरोना वायरस वैज्ञानिकों द्वारा युद्ध में जैविक हमले के लिए बनाया जा रहा था, इस संदेह को चीन का डब्लूएचओ अधिकारियों को चीन में जांच न करने देना बल देता है। मास्क, सेनेटाइजर, हाथ धोना, दूर रहकर व्यवहार करना ये आम जन जीवन का अंग बन जाएंगे। ...
सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हुए सम्मानित
साहित्य समाचार

सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हुए सम्मानित

देहरादून : उत्तराखंड देवभूमि समाचार द्वारा आयोजित गद्य एवं पद्य लेखन प्रतियोगिता में सर्वोश्रेष्ठ रचनकारों को सम्मान मिला प्रतियोगिता का विषय "महामारी और जीवन" था जिसमें देश के सभी राज्यों से रचनाकारों ने स्वरचित रचना लेखन कार्य किया! कवयित्री मीना सामंत दिल्ली, कल्पना सिंह रीवा एवं कवि आशीष तिवारी निर्मल ने अत्यंत मार्मिक रचना दिए गए विषय में लिखकर यह सम्मान पत्र प्राप्त किया देवभूमि समाचार पत्र उत्तराखण्ड के संपादक राजशेखर भट्ट सहित सभी नौ निर्णायक कहानीकार ललित शौर्य, विजयानन्द विजय, सलीम रज़ा, कैलाश झा ‘किंकर’, डाॅ. कविता नन्दन, भुवन बिष्ट, निक्की शर्मा ‘रश्मि’, डाॅ. राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ ने रचना का मूल्यांकन करते हुए कल्पना सिंह, मीना सामंत, आशीष तिवारी की काव्यात्मकता की प्रशंसा करते हुए ढेर सारी बधाई दी एवं उज्जवल भविष्य की कामना वहीं देश के सुप्रसिद्ध साहित्यिक जनों ने रचनाकार...
इतना मुश्किल भी नहीं है
कविता

इतना मुश्किल भी नहीं है

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** इतना मुश्किल भी नहीं है अपने लक्ष्यों को पाना, उसी तरह जिस तरह चिड़िया अपना पेट भरती है चुग कर दाना दाना, पर कभी गलत राह पर मत जाना, वरना जिंदगी भर पड़ेगा तुम्हें पछताना। लेकर अपने गुरुओं का ज्ञान जिंदगी को अपनी कोहिनूर बनाना, इतना मुश्किल भी नहीं है अपने लक्ष्य को पाना। यह भी निश्चित है लक्ष्य को पाने की राह में कठिनाइयों का आना, परंतु तुम कभी मत घबराना, क्यों चुना था ये लक्ष्य अपने मन में एक बार जरूर दोहराना, फिर करना मजबूत अपनी कमजोरियां और सच्ची मेहनत को अपना मित्र बनाना। इतना मुश्किल भी नहीं है अपने लक्ष्य को पाना। . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
अबाॅर्शन
कहानी

अबाॅर्शन

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** कान्ताप्रसाद अभी-अभी बाज़ार से लौटे थे। मंद ही मंद बड़बड़ाएं जा रहे थे। "क्या समझते है अपने आपको? हमारा कोई मान-सम्मान है की नहीं! बड़े होंगे अपने घर में! हम भी कोई ऐरे-ग़ेरे नत्थू खेरे नहीं है।" कान्ता प्रसाद का क्रोध सातवें आसमान पर था। जानकी ने गिलास भर पानी देते हुये पुछा- "क्या बात हो गयी माया के पापा! इतना गुस्सें में क्यों हो?" "अरे! वो माया के होने वाले ससुर! मुझसे कहते की हाइवे वाली सड़क पर जो हमारी जमींन है उन्हें बेच दूं! हूंsssअं! कहने को तो कहते है कि हमे दहेज नहीं चाहिये। तो फिर ये क्या है?" कान्ता प्रसाद दहाड़ रहे थे। माया ने चाय की ट्रे सामने टी टेबल पर रख दी। जीया कुछ दुरी पर खड़ी होकर सब देख सुन रही थी। "क्या उन्होंने आप से स्वयं जमींन की मांग की!" जानकी ने पुछा। "हां! जानकी। मुझे लगा की कोई जरूरी बात के लिए मुझे वहां बु...
मुस्कुराती वो
कविता

मुस्कुराती वो

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** कुछ उदास सा मैं और मुस्कुराती वो ये वो, कोई वो (?) नहीं बल्कि मेरी ज़िन्दगी है। हाँ दोस्तों ! ये ज़िन्दगी, मुझसे ही जंग लड़ रही है। कभी कभार ही तो मैं हँस पाता हूँ खुलकर तब भी वो, मेरी ज़िन्दगी ग़मगीन गीत गाती है। मैं चलूँ जो पूरब, वह चल पड़ेगी पश्चिम । मुझको गहरी तान लुभाती, खो जाता हूँ आलापों में। वो जाने किसके विलाप में मद्धम सुर रखती थापों में। मैं प्रेम उससे करता हूँ वह भी तो मुझे चाहती है। फिर भी हैं दूर दूर हम नदी के दो किनार से। मैं आदर्शवादी हूँ तो वह मेरी अवहेलना है। जीवन भर ये आपाधापी, मुझे अकेले झेलना है। उसका रात का समझौता टूट जाता है उजाले में। वो तो जैसे सारा ही दिन, नाता तोड़ लेती है मुझसे। शाम ढले शरमाती आती रात मेरे पहलू में बिताती, नवजीवन की अलख जगा के हर रोज़ सुबह गुम जाती वो ! मेरी मुस्कुराती वो !! . परिचय ...
कान्हा
कविता

कान्हा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** कान्हा-कान्हा बोला, सखे! पार्थ-पार्थ बोला सखे! नेहदेव की सघन छांव सा मन वृंदावन में डोला, सखे! राधे-राधे बोला सखे, मन तेरे बिन डोला सखे। प्रीत लगाकर तेरे संग, हृदय रास रचाया सखे। पीतांबर सा रास रचा कर, मुरली धुन पर नचाया सखे। प्रीत राधा कृष्ण सी, तेरी मेरी हो गई सखे। मिलन कभी ना हो पाएगा, ये हृदय से जाना सखे। कान्हा सा अपने हृदय में, प्रेम तेरा जगा रखा सखे। अमर प्रेम है तेरा मेरा, राधा कृष्णा सा होगा सखे। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindiraks...
लोकतंत्र का राजा “मतदाता”
कविता

लोकतंत्र का राजा “मतदाता”

धर्मेन्द्र शर्मा "धर्म" इन्दौर (म.प्र.) ******************** लोकतंत्र की अलख जगाने सब लोगो को यह बात बताने...! लोकतंत्र के हवन कुंड मे याचक नही, तुम दाता हो...! सरकार बनाने वाले सिर्फ तुम ही तो मत+दाता हो....! राजा को तुम रंक बना दो और रंक को तुम राजा.....! कमजोर ना समझो तुम अपने को....! तुम ही तो लोकतंत्र के सुंदर, सुघड़ भाग्य-विधाता ....! जनतंत्र मे जनता का राज, जिसकी चाहे बनाऐ सरकार...! मौका अब तुम चूक गए तो, फिर पांच साल पछताओगे...! कोसोगे तुम खुद अपने को मन ही मन पछताओगे...! लालच,लोभ मे तुम मत आना, झूठे वादो पर ना तुम भरमाना...! अपनी बुद्धि तुम काम मे लाना, निर्भय होकर तुम करना मतदान...! जागो,उठो, दौडो, भागो, बाकी काम सब इसके बाद...! सबसे पहले करो ये काम, करो मतदान, करो मतदान...! इसलिए सोचो समझो करो विचार फिर करो मतदान, करो मतदान....!! परिचय :- धर्मेन्द्र कला-नारा...
कलम, आज उनकी जय बोल
कविता

कलम, आज उनकी जय बोल

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** भारत है अपना बहुत महान, जन्में है यहाँ पे वीर, ये उन वीरों की कहानी है, जिन्होंने दी कुर्बानी है। जो चढ़ गए हँसकर फाँसी पर, बिना किये गर्दन का मोल कलम, आज उनकी जय बोल कलम, आज उनकी जय बोल माँ के आँचल में रहने वाले, आँचल से ही दूर गए भारत की रक्षा करने में, माँ बहनों के सिंदूर गए बिना रुके करते है सेवा, जैसे रुके न कभी चक्र वो गोल कलम, आज उनकी जय बोल कलम, आज उनकी जय बोल याद करो उन वीरों को जिन्होंने जान गावाई थी, देकर अपने प्राण, लहू की नदियां जब बहाई थी। दुश्मनों की छाती पर चढ़कर, जब वीरों ने बजाई ढोल, कलम, आज उनकी जय बोल कलम, आज उनकी जय बोल   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
स्वप्न नही
कविता

स्वप्न नही

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पलको के पीछे छुपा है एक और संसार सुनहरी धूप लिए गुनगुनाती हवा के साथ। करते ही बंद पलके होती है हर कामना पूरी जब चाहो आता है बसंत अल्हड़ पवन के साथ। शीतल दव बिंदु करते है स्वागत आदित्य रश्मि का पंकज नृत्य करता है सरोवर के साथ। कुहू कुहू गाती कोयल आम्रकुंज महकाती है नभ से उतर आता है अरुण संध्या के साथ। श्याम वर्ण घन अंबर में आवारा विचरते है पीयूष आता है चुपके से सावन के साथ। कुसुम करती प्रणय याचना मधुर मधु सुवाषित कब आएगा मधुप कामदेव के साथ। विरह वेदना का हुआ अंत श्रृंगार किया सौभाग्यवती ने तृप्ति आयी प्रियंकर के साथ। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ।...
उपन्यास : मै था मैं नहीं था भाग : १४
उपन्यास

उपन्यास : मै था मैं नहीं था भाग : १४

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** कुछ दिनों बाद की बात है। उस दिन शाम के समय मैं छज्जे में बैठ कर रामरक्षास्त्रोत कह रहा था। अब मुझे सब श्लोक अच्छी तरह से कंठस्थ हो गए थे। मैंने देखा पंतजी लाठी टेकते हुए धीरे-धीरे मेरी और आ रहे थे। उनका ध्यान मेरी ओर ही था। मुझे अकेला छज्जे में बैठ कर श्लोक बोलते देख उन्हें आश्चर्य हुआ। मेरे पास आकर वें बोले, 'दियाबाती के समय ऐसे अकेले यहां छज्जे में बैठे क्या कर रहे हो? नीचे जाओं सब बच्चों के साथ झूले पर।' मैंने कोई जवाब नहीं दिया। पंतजी को मुझसे बोलता देख काकी भी नीचे बरामदे से ऊपर मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। हम को आपस में बात करता देख नानाजी भी हमारे पास आकर खड़े हो गए। अरे, मैं क्या पूछ रहा हूं?' पंतजी बोले, 'तुम्हें अब सारे श्लोक, रामरक्षा और मन के श्लोक समेत सब सीखना और याद करना चाहिए। जाओं नीचे बच्चों के साथ जाकर बैठो, कुछ सीख लो।' ...
स्नेह भोज
लघुकथा

स्नेह भोज

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** स्नेह भोज बस नाम ही रह गया है। वर्तमान में विवाह आदि समारोह में होने वाले भोज को स्नेह भोज तो कदापि नहीं कह सकते। हाल ही में हुए ऐसे ही एक आयोजन में मेरा जाना हुआ। भांति भांति के भोजनोकी व्यवस्था थी। महक से मन ललचा रहा था। मुंह में पानी भी आ रहा था, किंतु भोजन प्राप्त करने की होड़ लगी हुई थी। और मेरा तो प्लेट लेना ही मुश्किल हो रहा था। एक कदम आगे बढ़ाती तो किसी का धक्का दो कदम पीछे कर देता। बड़ी मशक्कत के बाद प्लेट तो मिल गई, पर असली जंग तो अभी बाकी थी।१५-२० प्रकार की सब्जियां, रोटी, पराठा, पुरी, चार पांच तरह की मिठाइयां, नमकीन, दही बड़ा और हां आइसक्रीम इन सब तक पहुंचना और उन्हें पाना बहुत मुश्किल था। मैंने भी साड़ी के पल्लू को कमर में दबाया और आगे बढ़ी। सलाद तो बेचारा लोगों की राह ही देख रहा था। मैंने कुछ टुकड़े ककड़ी, टमाटर के उठाए और फिर क...
स्नेह भोज
लघुकथा

स्नेह भोज

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** स्नेह भोज बस नाम ही रह गया है। वर्तमान में विवाह आदि समारोह में होने वाले भोज को स्नेह भोज तो कदापि नहीं कह सकते। हाल ही में हुए ऐसे ही एक आयोजन में मेरा जाना हुआ। भांति भांति के भोजनोकी व्यवस्था थी। महक से मन ललचा रहा था। मुंह में पानी भी आ रहा था, किंतु भोजन प्राप्त करने की होड़ लगी हुई थी। और मेरा तो प्लेट लेना ही मुश्किल हो रहा था। एक कदम आगे बढ़ाती तो किसी का धक्का दो कदम पीछे कर देता। बड़ी मशक्कत के बाद प्लेट तो मिल गई, पर असली जंग तो अभी बाकी थी।१५-२० प्रकार की सब्जियां, रोटी, पराठा, पुरी, चार पांच तरह की मिठाइयां, नमकीन, दही बड़ा और हां आइसक्रीम इन सब तक पहुंचना और उन्हें पाना बहुत मुश्किल था। मैंने भी साड़ी के पल्लू को कमर में दबाया और आगे बढ़ी। सलाद तो बेचारा लोगों की राह ही देख रहा था। मैंने कुछ टुकड़े ककड़ी, टमाटर के उठाए और फिर क...
अक्षय वट
कविता

अक्षय वट

डॉ. भवानी प्रधान रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** भारत भूमि त्यौहारों का देश विविधताओं का है समावेश प्रकृति संरक्षण का देता सन्देश वट मूल के नीचे बैठे महेश प्रकृति के सृजन का प्रतीक छाया लेते आते जाते पथिक जेठ मास अमावस तिथि मानते सब वट सावित्री सुहागिने रखती व्रत उपवास पति आरोग्यता का आश वट जैसी घनी प्रेम हो अटल सौभाग्य मेरा हो वट वृक्ष कराता धार्मिकता वैज्ञानिकता, अनश्वर का शोध कराता दीर्घायु, अमरत्व बोध दुनियां में वट वृक्ष अकेला दीर्घायु और अलबेला कल्पांत प्रलय काल में खड़ा मुस्कुराता अकेला यह त्रिमूर्ति का प्रतीक ब्रम्हा, विष्णु और शिव वसुंधरा हमारी माता है नदी, ताल तलैया वस्त्र आभूषण वृक्ष वनस्पतियाँ जीवन दायिनी उसकी घनी शीतल छांव में आते जाते पथिक सुस्ताते स्वच्छ वायु थके को डेरा इसकी डाली चिड़ियों का बसेरा जाने कितने युगों से बड़ा हरा-भरा शांत खड़ा . परिचय :- ड...
लॉकडाउन
कविता

लॉकडाउन

आकाश प्रजापति मोडासा, गुजरात ******************** आज सब की झूबा पे सिर्फ एक का ही इजहार हैं। चीन से आया मेहमान कब जाएगा बस इसका ही इंतजार हैं।। लॉकडाउन के आज ६० दिन हो गए। लोगो के आंख के आंसू भी सुख गया गऐ।। सबकी हालत आज बेहाल हैं। हम स्टूडेंट्स भी इस कॉरोना से बड़े परेशा हैं।। सोचा था कॉलेज से कुछ दिन ही दूर रहना है। कॉरोना चला जाएगा फिर कॉलेज से रोज मिलना है।। अब ना तो कॉरोना जा रहा है, ना ही लॉकडाउन खत्म हो रहा है। कॉलेज और दोस्तो को याद कर घर में ही कैद होकर रहना हैं।। जब कॉलेज के दिनों में कॉलेज जाने में पक जाते थे। अब लॉकडाउन समझा रहा हे की कॉलेज के दिन ही तुम्हारे अच्छे अफसाने थे।। १२ बजे की कॉलेज होती थी तो, दोहपर का नास्ता दोस्तो के संग होता था। शाम आते आते दिन मस्ती कब गुजर गया, पता ही नहीं चलता था।। अब बस बहुत ठहर लिया, इस बिन बुलाए चीनी मेहमान ...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...
कोरोना:  सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक एवं आर्थिक आपदा
आलेख

कोरोना: सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक एवं आर्थिक आपदा

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                           भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में शुमार हैं, इसके मूल्य और विश्वास, सत्य, अहिंसा, त्याग सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करते हैं। जन-जन से परिवार, परिवारों से समाज, समाजों से राष्ट्र का निर्माण होता है। अपने देश भारत का निर्माण इसी संकल्पना पर आधारित है। शाश्वत मूल्य, 'अनुव्रत:पितुः पुत्रः' (पुत्र पिता का अनुवर्ती हो) अर्थात निर्धारित कर्तव्य का समुचित रूप से पालन करने वाला हो। 'सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम' से भारतीय संस्कृति अनुप्राणित है। हमारे यहां कहा गया है कि मनुष्य दूसरों का अध्ययन न कर स्वयं के अध्ययन में समय व्यतीत करे, हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में विचार करे। इस वैश्विक परिदृश्य में कोविड-१९ को हमें सम्मिलित प्रयास से ही अपने इन्हीं प्राचीन शाश्वत म...
मजदूर
कविता

मजदूर

डॉ. रिया तिवारी कबीर नगर (रायपुर) ******************** एक दिन आँखों में सपने लेकर निकल पड़ा था छोड़कर गाँव मजबूर उस वक्त भी था निकले थे जब घर से पाँव माँ की आँखे रोई थी घर का आँगन सुना था पर अभाव के कारण ही तो ये रास्ता मैंने चुना था अब भी मजबूरी है कठिन अभी भी है मेरा रास्ता माँ कहती तू लौट आ आ तुझे मेरी ममता का वास्ता निकल पड़ा हूँ फिर वीरान सड़कों पर ये राह कही तो जाएगी एक एक कदमो से ये मीलों की दुरी तय हो जाएगी मैंने तो दुनिया देखी है भरी गर्मी में खुद को तपाया है क्या करू अपने लाल का जिसने कुछ साल पहले ही जन्म पाया है उसके सूखे होंठ .. ठन्डे पानी को तरस गए उसके नन्हे पाँव .. अब गर्म सड़कों से झुलस गए कितनी दूर चल कर आ गए अभी और कितनी दूर जाना है संघर्षों का कैसा ये दौर ना छत .. ना ठिकाना है ना कोई मदद की आस है ना कोई मेरे साथ है ... पर मैं पहुच जाऊंगा मंजिल तक मेरे मन में विश्वास है ....
हल
कविता

हल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र को बढ़ता देख मन ठिठक कर हो जाता लाचार विचारों की लहरें लगने लगती सूनामी सी। चेहरा आईने में देख खामोश हो जाता मन ये सोचता संक्रमण की आपदा से कैसे बचा जाए कब तक लड़ा जाए। चिंता की लकीरों को अपने माथे पर उभारता मानो ये कुछ कह रही हो बता रही हो आने वाले समय का लेखा जिसे स्वयं को हल करना। शिक्षित बेरोजगार बेटे की नोकरी और जवान होती लड़की की शादी की चिंता देख वो खुद की बीमारियो पर ढाक देता - स्वस्थ्यता का पर्दा और बार -बार आईने में देखता है अपना चेहरा मन ही मन झूठ कहता मै ठीक हूँ। आखिर खामोश आईना बोलने लगता ये हर घर का मसला जहाँ हर एक के मन में आते इसतरह के छोटे- छोटे भूकम्प। ईश्वर और कर्म से कहे कि वो ऐसे इंसानो की मदद करें जो अपने भाग्य में खोजते रहते इन मसलो का हल। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा...
कैसे पढ़ेगा गरीब का बच्चा
कविता

कैसे पढ़ेगा गरीब का बच्चा

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** अरे अब क्या अच्छा हो रहा है, जो इतनी बड़ाई हो रही हैं, अरे अब क्या अच्छा हो रहा है, जो इतनी बड़ाई हो रही हैं, और कैसे पढ़ेगा अब गरीब का बच्चा जब ऑनलाइन पढ़ाई हो रही हैं। सुना है भारत देश को डीजिटल अब बनाया जा रहा है, शिक्षा पे हक समान है, सबको यह बताया जा रहा है। पढ़ेगा तो बढ़ेगा इंडिया सबको यह समझाया जा रहा है, गरीबी मिटाने के नाम पर गरीब को ही मिटाया जा रहा है। धर्म बना है संकट अब हर बात पर लड़ाई हो रही हैं, और कैसे पढ़ेगा अब गरीब का बच्चा जब ऑनलाइन पढ़ाई हो रही हैं। जरा देखलो उन गरीबों को सरकार पे विश्वास है, क्या पढ़ेगा उनका बच्चा साधन न जिनके पास है। जमाना डिजिटल टीवी का है और बात भी ये है सही, और उनका क्या होगा जिनके घर टीवी हैं ही नही। बात रखेंगे जब हम सामने बड़ी देर से अब सुनवाई हो रही हैं, और कैसे पढ़ेगा अब गरीब का बच्चा जब ऑनलाइन प...
मुश्किल में मुस्कान
कविता

मुश्किल में मुस्कान

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** जिंदगी के सफर में मुश्किलें बढ़ती है आना जाना लगा है उसका जैसे उसके आने से लगे हैं सजा जीवन को सफल बनाने के लिए मुश्किलों का करना है सामना करते रहे निरंतर संघर्ष मुश्किलों और संघर्षों से बढे़ हम, गिरे हम, वक्त के पहले, ना मिले हैं सब कुछ, ना ज्यादा और ना कम यह सोचकर करे निरंतर संघर्ष सुदूर अंचल तक पहुंचना था इतना मुश्किल रास्ते को नापे बिना थम जाये हम यह ना था कर्म के पथ पर करे निरंतर संघर्ष करें निरंतर संघर्ष सफलता से है मिले हैं मुस्कान यही सोचकर मैं मजदूर, मैं विद्यार्थी, मैं डॉक्टर, मैं पुलिस, मैं प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति गांव से निकला शहर की ओर अब है ऐसी विपत्ति आई प्रत्येक वर्ग से आवाज आई मुझे पहुंचना है अपने घर चाहे पथ पर हो कितनी मुश्किलें न छोडू मैं अपनी मुस्कान ले चल पथ मुझे अपनी मंजिल एक मुस्कान लेकर मैं चला मुश...
इशक़्या
कविता

इशक़्या

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** क्या सोचते हो मैं तुम्हे सब गम दिखाना जानती हूँ। अरे दिल हूँ आईने से भी खुद को छुपाना जानती हूँ। गर आ जाए आँखों मे नमी का सैलाब कभी तो फिर, मुस्कान से अपने चेहरे कि चमक बदलना जानती हूँ। तुम सोचते हो इजहार-ऐ-सूरत से भांप लेंगे दिल का हाल, गजब की अदाकारी से हाल-ऐ-दिल बदलना जानती हूँ। तुम घाव पर घाव दे सोचते हो मरहम लगाना तो, मैं आँसुओं से जखम पर लेप लगाना जानती हूँ। ये मान गई, गजब की ठंडक थी तुम्हारी फूंक में तो भी, मैं चोंट को छुपाने का हुनर, अब बख़ूबी जानती हूँ। दावा गर करता है वो, मुहब्बत का ऐ "नवपमा"तो, सुनले! मैं रूहें-इश्क़ से उसकी रग-रग जानती हूँ। . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य...