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छोटी बहन
लघुकथा

छोटी बहन

जितेन्द्र गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  एक प्रौढ़वय स्त्री प्रतिदिन बाजार से गुजरती। शांत सौम्य, सुंदर सा अलंकृत चेहरा। बातें जैसे मनमोहनी जब भी बात शुरू करती तो लगातार कहती रहती और लोग भी पुरे चाव से सुनते। कुछ समय बीतते-बीतते लोग का जैसे मन भरने लगा था कि एक नई स्त्री उस प्रौढा के साथ बाजार में दिखने लगी। इसकी वय ज्यादा नहीं थी। परिपक्वता चेहरे और बातचीत से झलकती थी। ये थोड़ा कम बोलती थी मगर जो भी बोलती सारगर्भित और भावनात्मक रूप से लबरेज। प्रौढा के बहुत से चाहने वाले और कुछ नये रसिक इसके दिवाने हो गये। सब उसके पीछे-पीछे बतियाते, चुहलबाज़ी करते घुमने लगे। सब आनंद में चल रहा था कि अचानक उन दोनों के साथ एक बहुत कमसीन, मासूम सी किशोरी बाजार में दिखी। एकदम शर्मिली, चुप-चुप सी। सारे शोहदे उसके पीछे लग लिये। सब अपने-अपने तरीके से शब्द बाण चला रहे थे। पहली दोनोें स्त्रीय...
खामोशी
कविता

खामोशी

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तेरी प्रीति निश्चल थीं वो अनुराग पावन था जब तुमने दस्तक दी मेरा रीता रीता मन था था पहरा उदासी का मेरे मन के आंगन में गहरा घना अंधियारा छाया था जीवन में मेरे मन का अम्बर था ज्यो पतझड़ का मौसम थीं नीरवता जीवन में ना भ्रमरो का गुंजन था जब तुमने दस्तक दी मेरा रीता रीता मन था ना भावो को समझा ना अन्तर को परखा मुझको समझ ना आई वो मौन की भाषा तुम कहते रहे मुझको मै सुनती रही तुमको पर गढ़ ना पाई मै प्रेम की परिभाषा मै जिस खुशबु से महकी और बेला सी बहकी ना वो चंपा ना ही जूही तेरे मन का चंदन था जब तुमने दस्तक दी मेरा रीता रीता मन था . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
अगर ख्वाब ना होते
कविता

अगर ख्वाब ना होते

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** अम्बर के तारों में टिमटिमाहट न होती चंदा की चांदनी में चमचमाहट न होती सूर्य की तपन में गरमाहट न होती जगती हुई आँखो में अगर ख्वाब न होते ठंडी सी बयार में इठलाहट न होती मेघ की धड़कन में गड़गड़ाहट न होती बारिश की बूंदों में झमझमाहट न होती जगती हुई आँखो में अगर ख्वाब न होते चिड़ियों की बोली में चहचहाहट न होती पेड़ों के पत्तों में सरसराहट न होती फूलों के कलियों में खिलखिलाहट न होती जगती हुई आँखों में अगर ख्वाब न होते भवरों की गुंजन में भनभनाहट न होती बच्चों के चेहरे की मुस्कराहट न होती राही के गीतों में गुनगुनगुनाहट न होती जगती हुई आँखों में अगर ख्वाब न होते दुल्हन के घूँघट में शरमाहट न होती गाँव की गोरी में छमछ्माहट न होती प्रणय हृदय में प्रेम की आहट न होती जगती हुई आँखों में अगर ख्वाब न होते . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहे...
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान का ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न
साहित्य समाचार

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान का ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान के ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया! संस्था के संस्थापक/अध्यक्ष नवलपाल प्रभाकर'दिनकर' जी के द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया! संस्था के सचिव रुपेश कुमार जी के द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार किया गया एव अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कवित्रि निक्की शर्मा 'रश्मि',मुंबई, प्रोफेसर डॉक्टर विजय लक्ष्मी'अनु', आगरा एव ऋचा मिश्रा'रोली' जी, बलीरामपुर, उत्तरप्रदेश के द्वारा मंच संचालन भव्य तरीके से किया गया ! माँ वीणापाणी की पुजा अर्चना माननीय कवित्री कीर्ति जायसवाल एव पदमा साहू जी के द्वारा किया गया तथा वंदना विजय पंडा, आशीष पाढक"अटल" जी के द्वारा किया गया! मंच सहयोग कवित्री प्रिया सिंह, प्रेरणा कर्ण, एव अनामिका रोहिल्ला जी के सन्निध्य हुआ! कार्यक्रम मे पूरे भारत के ७१ कवियों के द्वारा महा कविसम्मेलन का भव्य आयोजन मे भाग लिया जिस...
मज़दूर और मौत
कविता

मज़दूर और मौत

डॉ. प्रीति सतपथी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** क्या हुआ वो मर गया तो था तो एक मजदुर ना ऐसे ना मरता तो भूख से मरता गरीबी से मर जाता उसके थके बदन के दर्द ने कई बार तो जवाब दिया होगा ना परिवार की दुर्दशा पर कई बार रोया भी तो होगा ना कोई आस विश्वास नहीं दिखा कही उम्मीद की किरण भी नहीं नज़र आयी कुछ ठीक होते भी तो नहीं दिखा होगा ना कितना मायूस हुआ होगा वो वरना मीलों पैदल चल आने वाला ऐसे तो नहीं टूटा होगा ना चला गया वो कई सवालो को मन में लिए दूर .... सबसे बहुत दूर अब कभी ना लौट आने के लिए . परिचय :- डॉ. प्रीति सतपथी सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक (विधि) निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
मज़दूरों का दर्द
कविता

मज़दूरों का दर्द

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** मज़दूरों का दर्द निवारण कौन करेगा उनके ग़म पर भला प्रवारण कौन करेगा यक्ष प्रश्न है सत्ता शासन साहूकार से इन तकलीफ़ों का निस्तारण कौन करेगा दाना पानी से वंचित बदहाल हो गए श्रमिकों में आशा विस्तारण कौन करेगा सौतेला व्यवहार श्रमिक संग होता आया श्रम वीरों संग उचित आचरण कौन करेगा महल मकान टावर निर्माता सब बेबस है उम्मीदों का स्वर संचारण कौन करेगा भूखे प्यासे फटे हाल सड़कों पर रेला उनकी मुश्किल का उच्चारण कौन करेगा हुए सृजक फ़ुटबाल थपेड़े झेल रहे हैं साहिल मन में धीरज धारण कौन करेगा . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्त...
सोने का पिंजरा
कविता

सोने का पिंजरा

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** घर से बाहर अभी पाँव मत रख साथ मित्रों का जमाव मत रख गर पार करना चाहते हो दरिया तो फिर छेदवाली नाव मत रख पत्थर में देखनी हो प्रभू प्रतिमा तो किसी संग भेदभाव मत रख तन के जैसे ही मन भी साफ रख किसी भेद का भी दुराव मत रख चलता रहे दुखों का आना-जाना किसी भी तरह से तनाव मत रख ज्ञान से कर ले इस मन पर काबू अभक्ष्य चीजों का चाव मत रख भले ही सोने का बना है 'परिंदा' पिंजरे से इतना लगाव मत रख परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप ...
भीड़
कविता

भीड़

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** मैं नहीं बनना चाहती उस भीड़ का हिस्सा जिसकी कोई मंजिल नहीं कोई गंतव्य नहीं भीड़ का हिस्सा बन मैं गूंगी बहरी अंधी और लंगड़ी नहीं बनना चाहती आज इसी भीड़ में शामिल हो हम मानवीय संवेदना को भूल गए हैं सिर्फ अपने स्वार्थ में जी रहे हैं इन सभी से दूर मैं पक्षियों की तरह स्वतंत्र हो उड़ना चाहती हूं इसलिए नहीं बनना चाहती भीड़ का हिस्सा   परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ह...
भगवान बचाए रखना
कविता

भगवान बचाए रखना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** भटक चुका है कितना बचपन, भगवान बचाए रखना, हाथों में है मोबाइल, सिगरेट, गन भगवान बचाए। रोती हैं बेबस कितनी सीते और द्रोपती अब भी, घूम रहे दुर्योधन रावण, दु:शासन, भगवान बचाए रखना। गलियों में निर्वस्त्र घुमाया इक अबला को मिलकर सबने , घोषित कर के उसको डायन, भगवान बचाए रखना। सड़कों से संसद तक जा पहुंचे जेबकतरे जितने थे, जेलों से भी जीत रहे हैं इलेक्शन, भगवान बचाए रखना। तबाही के मुहाने पर है खड़ी युवा पीढ़ी अब तो निर्मल, ले रहे दवाई देख-देख विज्ञापन, भगवान बचाए रखना।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-प...
खामोश
कविता

खामोश

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** उनका चुप रहना अब सहा नहीं जाता ख़त में खाली जगह छोड़ा नहीं जाता।। यहां तक आ गए साथ हम इस कदर अकेला अब चला नहीं जाता।। सफर है काट लेंगे चलते चलते मगर तेरे बगैर ये सफर भी चला नहीं जाता।। लौट गए बातों के डर से हर ख्वाब इस तरह पूरा किया नहीं जाता।। ख़त में खाली जगह छोड़ा नहीं जाता।। . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें h...
गहन अंधकार
कविता

गहन अंधकार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** गहन अंधकार मुझे निगलने के लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था मैन एक दिप रख दिया उसके सामने वो कड़कती आवाज़ में खंजर लहराते मुझसे बोला जो कुछ है निकाल कर रख दे फ़क़ीर मैंने, दुआएँ, क्षमा शुभेच्छाएँ निकाल कर रख दी उसके सामने। वो बेहद डरा सहमा निराशा से घिरा मदद की गुहार करता आया मेरे पास मैंने, आशा, विश्वास, साहस निकाल कर रख दिये उसके सामने। मैं जानता हूँ तुम सत्य, अटल हो परंतु तुम्हे असमय नही आने दूंगा। मैं जीवनगीत गाने लगा उसके सामने। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कवित...
उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग १३
उपन्यास

उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग १३

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** तीन वर्ष पूरे कर आठ माह हो चुके थे और अगले कुछ माह में मैं चार वर्ष का होने वाला था। दिन मजे में गुजर रहे थे। काकी पूरी सदिच्छा और आनंद के साथ मुझे सम्हाल रही थी। मेरा सब नियमित रूप से कर रही थी। अब मैं थोड़ा-थोड़ा बोलने भी लगा था। अपनी जरुरतें मैं सब को बोल कर बताने लगा था। अच्छी तरह से चलने भी लगा था इसलिए काकी अब अपने साथ मुझे लेकर बाहर भी जाने लगी। परेठी मोहल्ले में भी काकी की ससुराल हम कभी-कभार जाने लगे। प्रत्येक गुरूवार काकी बिना नागा शाम के समय मुझे अपने साथ ढोलीबुआ के मठ में ले जाने लगी। मुझे सम्हालना काकी के लिए अब आसान हो गया था। फिर भी उनका सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा रहता। काकी के जीवन जीने के कठोर नियम और उससे भी बढ़कर उनके कठोर अनुशासन से मेरा रोज ही सामना होता था। बाकी किसी से भी उनका कोई लेना देना ही नहीं था । काकी का सारा ज...
हमसब उसके बन्दर हैं
कविता

हमसब उसके बन्दर हैं

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ना जाने कब छुटकारा, मिलेगा इस महामारी से। स्वास्थ्यकर्मी और वर्दीवाले, हुए ग्रसित बीमारी से। कोई मर रहा भूख से, तो कोई किसी लाचारी से। कोई फसा है दूर देश, कोई कैद घर की दिवारी से। घर बैठे मजदूर उनकी अब, बेरंग दुनियादारी है। भगा दिया उन सेठों ने, ईनके सर बेरोजगारी है। क्या पालेंगे बच्चों को, अब क्या ज़िम्मेदारी है। नही निकलना घर से अब, आदेश ये सरकारी है। हरपल अब तो लगता है कि जाने की तैयारी है। ऐसा खौफ लगा है इसका, ये घातक बीमारी है। फिर भी ईश्वर ठीक करे सब, ये आस्था हमारी है। कुछ गलतियां हमारी, कुछ गलतियां तुम्हारी है। दिखलाएगी खेल प्रकृति, अब उन सबकी बारी है। की जिसने भी जीवहत्या वो हर कलाई हत्यारी है। युग चौथा व चरण भी चौथा कुछ होने की बारी है। हम सब उसके बन्दर है, वो ऊपर बैठा मदारी है। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर वि...
अनेक रूप नारी के
कविता

अनेक रूप नारी के

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** जगत् की पहचान है नारी, समाज का एहसान है नारी घर की आन-बान है नारी, सबसे बड़ा मां का रूप है नारी। घर का सम्मान होती नारी, घर को स्वर्ग बनाती नारी कांटे जितनी कठोर होती नारी, धर्म-कर्म से बंधी है नारी। अपनों का एहसास है नारी, सबकी परवाह करती है नारी अपनों की खुशी में, सब कुछ त्याग करने वाली है नारी। नारी की है ऐसी सूरत, सब की खुशियों को समेटे है नारी सब का अभिमान है नारी, भारत का गुण- गौरव है नारी। जिसने भारत को ऊंचा उठाया, वह परम वीरांगना है नारी काँटों जितनी कठोर होकर भी, फूल जैसी कोमल है नारी। हर क्षेत्र में अव्वल है नारी, बिन नारी खुशियां सूनी है सारी सब का सौभाग्य है नारी, देश-समाज का वरदान है नारी। परिवार का मान है नारी, समाज की मर्यादा है नारी अपनों के लिए सब कुछ त्याग-बलिदान करती है नारी। . परिचय :- उषा शर्मा "मन...
हकीकत-ए-जहाँ
ग़ज़ल

हकीकत-ए-जहाँ

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिकवा उन्हें हैं कि, अब सजते नही बाजार, अब दौरे-ए-उम्र में, वो कशिश कहा से लाये... आती थी महक जिस, दरगाह से अबतल्क, क्यु न चादर-ए-गुल पर, लोबान चढ़ा आये... वक्त ही सिखाता है, फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का, भरा है हाथ लकीरों से, कभी काम ना आये... माना कि हूँ इंसा, ओर गलतियाँ फ़ितरत मेरी, कोई उस ख़ुदा को भी, जरा शीशा दिख आये... इतनी भी बेतकल्लुफ़ी, ठीक तो नही हैं "निर्मल", दाम-ए-क़फ़स हैं कम, वो तिजारत ना कर आये . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कह...
मीठी ईद लगे फीकी है
कविता

मीठी ईद लगे फीकी है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गहरी पीड़ा धरती की है। मीठी ईद लगे फीकी है! कोरोना के जाल बिछे हैं! नयनों से आंसू बरसे हैं ! सारे कारोबार थमे हैं! बन्द सभी बाज़ार हुए हैं! दशा यही हर बस्ती की है! मीठी ईद लगे फीकी है! बेटी गई मुरारी बा की! सखी सिधारी है सुखिया की! लाठी छिनी बनू बाबा की, विधवा हुई पड़ोसन काकी! यही कथा सलमा बी की है! मीठी ईद लगे फीकी है! कई घरों में हैं रमज़ान! हुए कई चूल्हे वीरान! भिन्न उपनगर हैं सुनसान! सीमित हैं भोजन-जलपान! बाहर सख़्ती कर्फ्यू की है! मीठी ईद लगे फीकी है! मस्जिद,मंदिर औ' गुरुद्वारे! बहुत समय से मौन हैं सारे! घर में ही पूजन-अर्चन है, कहाँ जाएँ पीड़ित दुखियारे! आँख सजल हर श्री जी की है! मीठी ईद लगे फीकी है! नहीं लग रहे हैं अब मेले! कहाँ गए लोगों के रैले! उदासीन बन्दी जैसे हैं, घर में ही परिवार अकेले! मेरी क्या चिन्ता सबकी है...
मन के दीप का धीर न खोना
कविता

मन के दीप का धीर न खोना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जब सूर्य का उगना क्षितिज से नियति का वरदान है, तो फिर भला क्यों हर सुबह यूँ रात का आभास देती। इन हवाओं में प्रवाहित हो रहा है ज़हर कोई, ज़िन्दगी की बाट जोहती मौत दिखती पास बैठी। मानते हैं आज शोषण है कथानक ज़िन्दगी का, पर जियेंगे पात्र क्या अलसाई मुर्दा लेखनी से? आदमी और आदमी के बीच का अंतर बढ़ा है, या कि साँसों का गणित मुद्रा के आगे गौण है? प्रश्नों का तो चक्रव्यूह है लड़ना ही होगा जीवन में, लड़ना होगा अपने मन से झूठे सपनों के दरपन से। समाधान की एक झलक मिलती है सागर के तट पर, जहाँ प्यार पाते हैं अजनबी दुलराती है लहर लिपट कर। यहाँ लहर ही जीतती है और लहर ही हारती है, कभी उछलती कभी मचलती मन के मैल निगल जाती है। लहरों की भाषा सीखकर हम तूफानों से बात करेंगे, अब तक जो भी घात सही उन सबका प्रतिघात करेंगे। सभी दुखी हैं देख देखकर सत्य को प्र...
भवरसेन की जलेबी
कविता

भवरसेन की जलेबी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** विन्ध क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली को बघेली बोली कहते हैं जो अपनी मधुरता मिठास के लिए जानी जाती हैं आइये एक रचना बघेली में, सीधी जिले में भवँर सेन नाम का ऐतिहासिक स्थान है जो बाण भट्ट की तपोस्थली है, कहते भगवान राम के अनुज लक्ष्मण जी ने यही भ्रमरासुर का अंत किया था १४ जनवरी मकर संक्रांति को इसी स्थान पर मेला लगता हैं उसी मेले का एक दृश्य ... इया भवरसेन के मेला मा सुक्खू काकू आये हैं दीखि परी दुकानि जलेबी की सुक्खू ओहि कई धाए है ताऊलाय जलेबी दोना मा जाय बइठे सुक्खू कोना मा मुह मा दांत न आँत पेट मा धरि बइठे बगल जलेबी दोना मा अउ रही जलेबी गरम गरम सुक्खू जइसे मुह मा डारिन गई चपकि जलेबी तरवा मा भट्टा जइसन मुह ऊ फारिन हम कहेन की काकू का होइगा उ कहिन दादू न कुछ न पूछा हम रामो सत्य कहे देइत अब कबै जलेबी खाइब ना . ...
तिरंगा
कविता

तिरंगा

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** तिरंगा वतन की मिट्टी की शान है। हमारा देश भारत सबसे महान है। इसी मिट्टी में जन्मे भगत ,सुभाष बिस्मिल । मिटने ना देंगे हम विरासत की शान। तेरे आंगन में है मंदिर, मस्जिद,गुरूद्वारे। मिटा के रख देंगे जातिवाद का विवाद। इंसानियत के दम पर रचेंगे नया इतिहास । मानवता की विश्व में रखेंगे हम मिसाल। सरहद की चौखट पर रखेंगे अपना सर। व्यर्थ न जाने देंगे वीरों का ये बलिदान । स्वप्न था तिलक का आजाद की थी कल्पना आजाद है भारत मेरा, आजाद रहना चाहिए। सोने की चिड़िया सोने की रहना चाहिए। आजाद है भारत मेरा आजाद रहना चाहिए।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐ...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** जिंदगी एक प्रश्न है और यह हम कैसे जीते हैं यह हमारा उत्तर है। इसलिए, "जिंदगी में कभी किसी बुरे दिन से रुबरु हो जाओ, तो उस चांद को जरूर देखना जो अंधकार के बाद भी चमकता है।। जिंदगी में कभी तुम गिरने लगो तो, उस झरने को जरूर देखना जो ऊंचाई से गिरकर भी बहता रहता है ।। जिंदगी में कभी अकेले हो जाओ तो, उस फूल को जरूर देखना जो कांटो के बीच में भी मुस्कुराता है।। जिंदगी में कभी ठोकर लगे तो, उस हीरे को जरूर देखना जिसका मूल्य ठोकर खाकर और भी बढ़ जाता है" "इसलिए जिंदगी से यही सीख है मेहनत करो रुकना नहीं, हालात कैसे भी हो किसी के सामने झुकना नहीं" .... . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
बिगड़ना मेरा जायज़ है
कविता

बिगड़ना मेरा जायज़ है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगता हूँ जिसको मैं कुंठित, वजह उन्ही का साथ है। खुद ने मुझको सरपे चढ़ाया, तभी तो यह हालात है। जब मानते हो मुझको बेटा, तो बिगड़ना मेरा जायज़ है। क्या इस हक को भी छीन लिया, अब बताओ ना फिर क्या बात है? बन जोहरी की मेरी परख तो, में हीरा था पत्थर का। जब तराशना शुरू किया तो, प्रश्न मिला मेरे उत्तर का। रहा ढूंढता जिसे जहाँ में, वो गुरु आपमे पाया है। नही भान था लिखने का, अब जाके लिखना आया है। क्या बीच राह में छोड़ मुझे, अब इतनी बड़ी सज़ा दोगे। अब तो कर दो क्षमा मुझे, क्या और परीक्षा भी लोगे। बिना आपके कुछ नही मैं, दिन काले अँधेरी रात है। खुदी ने मुझको सर पे चढ़ाया, तभी तो यह हालात है।। लगता हूँ जिसको मैं कुंठित, वजह उन्ही का साथ है। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश...
घूँघट
कविता

घूँघट

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कभी किसी की लाज है घूँघट सुहागन के सिर का ताज है घूँघट दुल्हन के मुख का राज है घूँघट ब्याह में सूरत सजाती है घूँघट सजनी के चेहरे दमकाती है घूँघट भारतीय नारी का प्रतीक है घूँघट प्रेमी की अभिलाषा की प्रीत है घूँघट फूलों की सेज की खुशबू है घूँघट माँ बाप के सपनों की आबरू है घूँघट कहीं इज्जत कहलाती है घूँघट नारी पर सबको भाती है घूँघट चाँद से चेहरे की दीवार है घूँघट चंदा चकोरी का प्यार है घूँघट पिया के प्रणय की शुरुआत है घूँघट प्रणय जोड़े की नव प्रभात है घूँघट ... . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
आसमानी संकट
बाल कहानियां

आसमानी संकट

राजनारायण बोहरे इंदौर मध्य प्रदेश ******************** प्रोफेसर गगन की नींद टूटी तो उन्होंने खड़े होकर अपने हाथ-पांव फैलाये, और अंगडाई ली। फिर आगे बढ़कर सामने रखे टेलीविजन का बटन दबा दिया। टेलीविजन के पर्दे पर सुनहरे रंग के अक्षरों में एक वाक्य लिखा हुआ दिखाई दिया- ’’आज दिनांक एक जून सन् २१४५ है। भारत की जमीन से आठ लाख किलोमीटर दूर घूम रहे इस अंतरिक्ष केन्द्र पर आपका स्वागत है। चलिये हम अंतरिक्ष केन्द्र की पूरी बस्ती के हालचाल जानें।’’ प्रोफेसर गगन ने आवाज लगाई-’’संजय जल्दी से मेरी कसरत की मशीन ले आओ।’’ कुछ सैकेण्ड बाद ही उस कमरे की दांयी दीवार में बना दरवाजा खुला और उसमें से मशीन का बना एक आदमी (रोबोट) अपने हाथों में पाइपों से बनी झूले जैसी एक मशीन घसीटता हुआ कमरे में दाखिल हुआ। प्रोफेसर गगन इस मकान में अकेले रहते हैं। उनकी सेवा करने के लिये एक मात्र रोबोट है। वह...
नारी जीवन
कविता

नारी जीवन

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** नारी जीवन संघर्षो की, उपमा नही उदाहरण हैं। इस श्रृष्टि की भाग्य विधाता, वह जन मानस की तारण हैं॥ उसनें हीं नींव रखी घर की घर कों परिवार बनाया हैं। भूली बिसरी उस अबला नें हर संकट कों अपनाया हैं॥ त्याग दिया घर उसनें अपना पति का संसार बसाने कों। वो सर्वस्व लुटा बैठी हैं अपना घर बार चलाने कों॥ उसके हीं बलिदानों से हमनें इतिहास सजाया हैं। माँ, बहन, बहु, बेटी, बनकर हम पर स्नेह लुटाया हैं॥ उसका बलिदान अतुलनीय हैं अनुपम स्वरूप हैं ममता का वह क्षमा रूप का सागर हैं कोई मोल नही उस क्षमता का॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान ...
माँ
कविता

माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** किसी शब्द में न बांध पाऊं तुम्हें क्योंकि पूर्ण शब्द तुम ही हो माँ अंधेरे में भटकती खोजती हूं तुम्हें मेरे हृदय में करती उजास हो माँ धूप में जल जाये न कहीं मेरे पैर इसलिए अपना पैर जला लेती हो माँ सूखे में मैं सोऊं रात भर इसलिए खुद गीले में सोती हो माँ सुख रहे सदा मेरे साथ इसलिए जीवनभर दुख मेरा ले लेती हो माँ अमृत की चाह नहीं तुझे, मुझे कभी न पीना पड़े जहर इसलिए स्वयं नीलकंठ बन जाती हो मां आराम से सो सकूं मैं इसलिए झूला, गोद में बना लेती हो माँ अश्क मेरी आँखों से न बह पाये कभी इसलिए खुद समंदर बन जाती हो माँ एक रोटी मांगू तो देती हो चार और भूखा न रहूं मैं इसलिए गिनती ही भूला देती हो मां जीवन गणित के सूत्र में कहीं फेल न हो जाऊं मैं इसलिए इस शून्य की दहाई बन जाती हो माँ नजर न लगे दुनियां की मुझे इसलिए आँखों से अपनी माथे पर मेरे, काजल का ...