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सुनो प्राणप्रिय
गीत

सुनो प्राणप्रिय

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का मोर संग लहरों का शोर संग पतंग का डोर संग चांद का चकोर संग रातों का जो भोर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। नदी का किनारों संग फूलों का बहारों संग डोली का कहारो संग नैनों का इशारों संग मौसम का नजारों संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। मन का जो मीत संग जग का जो रीत संग पाती का जो प्रीत संग बाती का जो दीप संग स्वाति का जो सीप संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। गीत का संगीत संग प्यासे का जो नीर संग पंछियों का जो नीड़ संग काजल का जो दीठ संग आंसू का जो पीर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। जग बैरी रूठे चाहे सांसों की ये माला टूटे शूल मिले चाहे मुझे ...
अंगा री हड़ताल
आंचलिक बोली

अंगा री हड़ताल

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक्क दिन सबीं अंगा ने बैठक बुलाई... सोचि बचारी के, गल्ल गलाई। ऐ पेट नहीं करदा, काम्म ना कार,,,,, जेब देखो, खाई के रोटी, मारुंआं डकार। सारा दिन हांए, मरदे-खपदे।। थकि के हुई जाउंआं बुरा हाल। पैरा ने आपणी तौंस जमाई, हांए, हांडि फिरि के करुंए कमाई। हाथ्थां ने भी दुखड़ा सुणाया... खाणे-पिणे रियां चिजां ल्याओ, तेब ऐस पापी पेटो तिकर पहुंचाओ, पर बसर्म पेटो ने कदि जस नी गाया। नाक, कान्न, जीब बी तुनके, आकड़ि के बोले,,,,, आलसी पेटो जो देयो दो-चार छुनके। दान्दा ने भी दांद द्खाए... ऐ-पेट, खसमां जो खाए।। करि के हड़ताल...बोले.. मोटा पेट हाए-हाए। चंउं दिन्ना बाद, अंगा री अक्ल ठकाणे आई।। पैर अकड़े, हाथ्थ सुकड़े, कान्ने सुणणा बंद। हाखिं री बी हालत माड़ि, जीब सुकिगी सारी। सिर चकराया, कांदा नाल टकराया।। पंजुए दिन्...
जय मां बगलामुखी
कविता

जय मां बगलामुखी

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** पीतांबरा है नाम तुम्हारा। दसमहाविद्या में आठवां स्थान तुम्हारा।। सिद्धिदात्री तुम कहलाती। वाक् सिद्धि को सिद्ध कर जाती।। वाद-विवाद में विजय दिलाती। शत्रु का स्तम्भन कर जाती।। पीतरूप मां को है प्यारा। जन-जन को लगे हैं न्यारा।। पाप पाखंड को दूर है करती। शत्रु की जीवा को हरती।। "वीर रात्रि" की जो साधना करता। छत्तीस अक्षर मन में धरता।। कमी कोई रहने ना पाएं। तंत्रिका-मंत्रिका सिद्ध कर जाएं। बगला सिद्ध विद्या वह पाएं। एकाक्षरी मंत्र जो सिद्ध करे जाएं। हर संकट से मां बचाएं। बुद्धि-सिद्धि जय मां से पाएं। वीरवार को ध्यान जो करता। मां से उसको ज्ञान है मिलता।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
मै कामगार हूँ
कविता

मै कामगार हूँ

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बहुत उम्मीदें बांधी थीं हमने तुमसे हम भी देखे थे कितने सारे सपने, अपना समझकर सत्ता पर बिठाया पर तुम नहीं निकले कभी अपने। समझने की कभी कोशिश नहीं की कैसे बनायें रखें हमारा स्वाभिमान, जब बुनियादी हक ही हमें न मिले तो समझो ये मानवता का अपमान। हम तो कामगार है हम कामचोर नहीं पर हमें उचित रोजगार और काम दो, खैरात बांट बांट कर पंगु बना दिये हो अब हमें कामचोर का न बदनाम दो। अशिक्षित अनपढ़ और गंवार हूँ भले ही पर मैं आत्मसम्मान के लिए लड़ता हूँ, हो सकता है तुम ढेरों पुस्तक पढ़े होंगे पर मैं तो जिन्दगी का किताब पढ़ता हूँ। हैसियत की बातें मत करो तुम मुझसे पूंजी है मेरी जिंदादिली की खुद्दारी, उॠण होने के लिए बहाता हूँ पसीना नहीं कर सकता हूँ धरती माँ से गद्दारी। पर शोषण के खिलाफ ऊंगली उठाता हूं जो हक के लिए संघर्ष करना है जरूरी, इंसानियत का तका...
तुम कब जाओगे…! अतिथि…!
आलेख

तुम कब जाओगे…! अतिथि…!

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** अतिथि! तुम्हारा जब आगमन हुआ था, तो हम सबने यही सोचा था कि मेहमान हो कुछ दिन ठहर कर चले जाओगे। लेकिन अब तो बार-बार पूछना पड रहा है.... अतिथि तुम कब जाओगे? तारीख पर तारीख और फिर तारीख! लेकिन तुम तो बेशर्म की तरह यहाँ पैर पसारे जमने की कोशिश कर रहे हो। तुम अपने खौफनाक डरावने चेहरे की छाप मेरी जमीन पर डाल तो चुके हो पर तुम ये भी जान लो कि तुम मेरी जमी और मेरे अपनों को बहुत आहत कर चुके। क्या तुम नहीं जानते ये हौसलो की जमी है, तुम्हे मूँह की खानी ही होगी। जब तुमने अपने आने की आहट दी थी, तब मेरा मन अज्ञात आशंका से धडक उठा था। अंदर ही अंदर मै मेरे अपनो के लिए काँप गई थी। हम सतर्क भी थे, हमने वितृष्णा से तुम्हारा तिरस्कार भी कर दिया था। फिर भी तुम न जाने कैसे बेदर्दी से मेरे अपनो को लील गए। मेरी आशंका निर्मूल नही थी ! तुम नहीं गए ! तुम्हें भगाने के ...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०८
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०८

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** दोपहर एक बजे के लगभग उज्जैन से इस घर के दामाद और मेरे पिताजी पंढरीनाथ उनके घर छत्रीबाजार न जाते हुए सीधे इधर इस बाड़े में ही आ गए। पुत्र प्राप्ति का तार मिलने के बाद तुरंत यहां आते हुए रास्ते भर वे प्रसन्नचित्त ही होंगे। लेकिन यहां इस बाड़े में सर्वत्र ख़ामोशी का माहौल था। उन्हें विचित्र लगा। पर उन्हें अन्दर आंगन में आते देख एक बार फिर से औरतों का जोर से रोना शुरू हो गया। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। पर अगले ही क्षण उनकी नजर मंदिर से सटे बरामदे में रखी मृत देह पर पड़ी। आशंकित मन से, हाथ की थैली एक ओर फेंक कर वें तुरंत उस ओर तेज कदमों से चल कर गए। देखा तो उनके होश उड़ गए। उनकी पत्नी की मृत देह जमीन पर रखी थी। 'शा ..लि...नी ...! 'उन्होंने जोर से चिल्लाने का प्रयास किया, परन्तु सदमे से उनके शब्द गले में ही अटक गए। वें नीचे जमीन पर बैठ गए। मृतद...
मेरी आरज़ू
ग़ज़ल

मेरी आरज़ू

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ अरकान- मु-त-फ़ा-इ-लुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन   मेरी आरज़ू रही आरज़ू युँ ही उम्र सारी गुज़र गई। मैं कहाँ-कहाँ न गया दुआ मेरी बे-असर ही मगर गई।। की तमाम कोशिशें उम्र भर न बदल सका मैं नसीब को। गया मैं जिधर मेरे साथ ही मेरी बेबसी भी उधर गई।। चली गुलसिताँ में जो आँधियाँ तो कली-कली के नसीब थे। कोई गिर गई वहीं ख़ाक पर कोई मुस्कुरा के सँवर गई।। वो नज़र जरा सी जो ख़म हुई मैंने समझा नज़र-ए-करम हुई। मुझे क्या पता ये अदा थी उनकी जो दिल के पार उतर गई।। मेरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मेरा ला-इलाज ये मर्ज है। मुझे देखकर मेरी मौत भी मेरे पास आने में डर गई।। ये तो अपना अपना नसीब है कोई दूर कोई करीब है। न मैं दूर हूँ न करीब हूँ युँ ही उम्र मेरी गुज़र गई।। ये खुशी निज़ाम कहाँ से कम कि हैं साथ अपने ...
मेहनतकश
कविता

मेहनतकश

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना ठौर कि हैं, आज फ़िकर, कल का भी,ना था कोई गम, चल पड़े ले पल के स्वप्न, कल की फिर, क्यो सोचें हम... मेहराब बन के, क्यो सजे, जब तृप्ति हो बन नीव हम, आज यहां, पल जाने कहा, निर्माण नव की शान हैं हम... ये आशिया तुम्हें ही मुबारक, हमें हैं यही, जहाँ का सुकू, हूँ ओढ़ता, खुला नील गगन, मिला जमी पे,गोदी सा सुकू... तन खारा सिंधु साथ मेरे, हमें जहाँ से, कोई आस नही, दिन भले हो मशक़्क़त भरा, पर रात हम सुकू के धनी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
कोरोना काल
कविता

कोरोना काल

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हिंदी साहित्य जगत में अब तक आया है चतुर्थ काल भक्ति रीती वीर और आधुनिक काल यह पंचम काल बनकर उभरा है यह भयावह विस्मयकारी कोरोना काल यह किसी? प्रकृति की नियति है की मानव है कैद महाभूल में भविस्य काल की अंधकार में। वुहान सहर चीन राष्ट्र ने। पूरी मानवता को झोंक चुका लॉकडौन की हाहाकार और अंधकार में। पंचम सुर में बज रहा यह कोरोना की दुखद भयावह राग। हाय यह कैसा आया? कोरोना का दुखद काल मानव मानव से संसंकित है वेहद दुखद यह संतप्त घड़ी है दिख रही सामने आने वाली भूख मेरी और विपदा की घड़ी है जागो जागो है त्रिपुरारी घट घट के वासी फिर से तू विश पान करो कोरोना का संघार करो अमृत कलश को छलकवो है अभ्यंकर हे नटराज फिर दे दो अभय दान मिट जाए यह मानवता का दुखद काल तेरे चरणों मे है इस अकिंचन का सहस्त्रो प्रणाम। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्या...
तुम कितना हमको भूल सके
कविता

तुम कितना हमको भूल सके

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** खुशियों संग आबाद रहीं पर कुछ यादें नाशाद रही, हमें छोड़ जो हुए बेवफा हर पल उनकी याद रही। यादें तो काफिला बनाकर बढ़ती ही चली आती हैं, कर के गुज़रे लम्हों का उजाला नयी रौशनी लाती हैं। नींद में झकझोरते हैं हमको उनकी खुश्बू के झोंके, वही सुहाने ख्वाब दिखाने खुल जाते खामोश झरोखे। उनको पाकर के ज़ेहन में लहराते हैं प्यार के साये, वक्त थमे दिल कहता है बीते पल फिर जी जायें। धुआँ है ग़र माज़ी तो क्या वो भी है यादों का हरम, रोज़ वहाँ भी देखा हमने हो जाना पलकों का नम। मगर कहाँ ये मेरी किस्मत यादें मुझे सुला जायें, और मेरी हस्ती, बस्ती अपनी मस्ती में भुला जायें। मैंने तो यादों की रातें काटी हैं अपनी ही आँखों में, तुम कितना हमको भूल सके पूछो अपनी ही साँसों से। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शा...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** कोरोना से युद्ध हुआ, संघर्ष में कई दिन बीत गए। घर में बैठे हार गए, और रोजे वाले जीत गए।। हमने अपना विश्वास रखा, लॉक डाऊन और कर्फ्यू पर, खुला बाजार, लगी भीड़, गली, नगर चौराहों पर। तुष्टिकरण की राजनीति में सारा हर्ष समाप्त किया, रमजान की शुभकामनाएं मिली, माँ दुर्गा और भगवान को बिसरा दिया।। मजदूर, श्रमिकों, किसान की खातिर, लॉक डाऊन पर विचार होना ही था। ३ मई को निश्चित हुआ, संकल्प को दृढ़ तोलना ही था।। सौंपकर कमान प्रदेशों को मनमर्जी का रास्ता खोल दिया, देशभक्ति के ह्रदय में खंजर सस्ती राजनीति ने घोंप दिया। योद्धाओं के बलिदानों का थोड़े दिन और मान रखा होता, खुलना ही था लॉक डाऊन, सभ्य समाज का ध्यान रखा होता।। नही हटेंगे प्रतिबंध, संदिग्ध गलियों और चौबारों से, फिर भी कितना पालन होगा देकर छूट त्यौहारों में। त्यौहार ही मनाना हो तो घर में...
इंतजार
कविता

इंतजार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मुझे पता है बेकार है इंतजार तेरा, अब ये भी ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है दोस्त है तू मेरा, तेरी दोस्ती का एहसास ना करूं तो क्या करूं।। मुझे पता है प्यार है तू किसी और का, तेरे प्यार का इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है दोस्त है दोस्ती है मेरी, इस वफा का इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है ये सिर्फ एहसास है मेरा, इस तन्हाई में तेरा इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है तू किसी और की अमानत है नहीं मिल सकता इस जन्म में मुझे, अगले जन्म की दुआओं में तेरा इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे चाहने से पहले आजमाने से पहले कुछ कहने से पहले दूरियां बना ली मुझसे, अब इन दूरियों का गम भी ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है बेकार है इंतजार तेरा, अब ये भी ना करूं तो क्या करूं।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक ...
इंसान बड़ा बन गया हैं
कविता

इंसान बड़ा बन गया हैं

मारोती गंगासागरे नांदेड (महाराष्ट्र) ******************** शोनो-शौकत और पैसों से इंसान सुधर गया है उतना ही वह वह अपने-अपनो से दूर गया है इंसान आज बड़ा बन गया है भूल गया सब रिश्तें-नाते छोड़ दिया उसने देहात जितना वह आगे बड़ा गया है उतना ही इंसानियत में नीचे गिर गया है इंसान आज बड़ा गया है नीति छोड़कर अनीति अपनानी हैसियत से ज्यादा की कमाई माता-पिता को छोड़ दिया है अरे ईसने तो सच्ची दौलत ठुकरायाँ है इसलिए तो आज इंसान बड़ा गया है खुदको छोड़कर मोबाइल निहारता है आज के दौर में इंसान मशीन बन गया है रात -दिन मेहनत करके भूखा सो जाता है इसलिए तो मैं कहता हूँ कि इंसान आज बड़ा बन गया है . परिचय :- मारोती गंगासागरे निवासी - नांदेड महाराष्ट्र आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
बेटियाँ
कविता

बेटियाँ

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बेटियाँ घर की रौनक है बेटियाँ घर की शान है जिस घर में बेटी नहीं वो घर बहुत सुनसान है फूलों की खुशबू है सँझा का दीपक है जिनके घर में बेटी नहीं वो पिता बहुत महान है बेटी दो कुल की जननी बेटी माँ की परछाईं जिस घर की बेटी करे पढ़ाई वो घर जग में नाम कमाए बेटी को पढ़ा लिखा कर देश का करो कल्याण बेटी पढ़े तो मिल जाये मात पिता सबको सम्मान . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hin...
हक़ीक़त
लघुकथा

हक़ीक़त

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** गीजर खराब हो जाने से मधु ने रॉड लगाकर बाल्टी में पानी गरम करने रखा, कचरा गाड़ी आ जाने से फ्लेट की सीढ़ियों से उतरकर कचरा डालने नीचे सड़क तक गई। सीमित समय मे बहुत से काम निपटाने की हड़बड़ी से घबराई हुई मधु पुनः सीढ़िया चढ़कर ऊपर पहुँची तो देखती है सीढ़िया विभाजित है। नीचे उतरकर दूसरी तरफ से सीढ़ियां चढ़ती है फिर वही मंजर! तीसरे फ्लेट की तरफ भागती है फिर चौथे फ्लेट.....इसी तरह हर सीढ़ी गन्तव्य तक पहुँचने से पहले टूट चुकी हैं। जहाँ पहुँचना है वो जगह हर बार दिखाई दे रही है पर रास्ता नहीं सूझ रहा। याद आया उसे पानी गरम करने रखा था, बेटा उठकर वॉशरूम में कहीं अनजाने हाथ ना लगा ले! सोच कर रूह काँप गई। मधु पूरी तरह पसीने में लथपथ, ठंडी पड़ गई। धड़कन बढ़ी हुई, बोलने की कोशिश में जबान लड़खड़ाई। बेचैन, उद्विग्न, चीख कर लगभग रोती हुई उठ बैठी। ओ..ह!! ये सपना ...
मेरा सपना सच हो जायें
कविता

मेरा सपना सच हो जायें

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** काश मेरा सपना सच हो जायें, जीवन के बहुमुल्य समय सत्य हो जायें, सबको अपना लक्ष्य प्राप्त हो जायें, मन को छू लेने वाली कोई बात हो जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, विज्ञान की प्रगति से दुनिया को आलोकित किया जायें, भौतिकी, रसायन , जीव की जीवनदान मिल जायें, मनुष्यों मे जग-ज्योत जलाया जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, साहित्य से समाज का ज्योत जलाया जायें, राजनीतिक की स्तंभ को रोशनी दिखाया जायें, जीवन के दृव्य-दृष्टि को नई पहचान दिलाया जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, मौत के मुह से कैसे बचा जायें, साँसो के साँस से कैसे बचा जायें, नवजीवन को नव नवल नई नयन मिला जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, जीवन मे प्यार को प्यार मिला जायें, आँखो से ओझल होकर दुनिया मिला जायें, आरजू - गुस्त्जू से याद मिला जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, जीवन मे गणि...
लाचारी
कविता

लाचारी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जो राशन मिला था ख़तम हो गया। गरीबों पर हाय क्या सितम हो गया। भूख लगती अधिक, दोष उनका नहीं, कल मिले न मिले ऐसा मन हो गया। बंद पाउच हुए,पान गुटका ख़तम। कोरोना ने ढाया...ये कैसा सितम। तम्बाखू रुलाती..कहीं आती नहीं। ज़िन्दगी बिन उसके...भाती नहीं। दीन नेता हुए,अब दिखते नहीं हैं। न निकलें घरों से, मिलते नहीं हैं। वोट बस्ती के उनको लुभाने लगे। घर भरे हैं जहाँ, फिर भराने लगे। चंद पैकेट लेकर निकलते हैं वो। बनके हीरो कोरोना मचलते हैं वो। खींच फोटो....दनादन डाला करें। आपदा है विकट, मुंह काला करें। मोहल्ले में बांटों, ये व्यवस्था रहे। मन शुद्ध हो, सच्ची आस्था रहे। झाँकी न तुम यूँ दिखाया करो। कभी मेरी गली में आया करो। मुँह सुरसा हुआ, देश खाने लगा। कोरोना अब सच में रुलाने लगा। काम भी है जरूरी...मिलता रहे। पेट खाली और होंठ सिलता रहे? बना ठीक दूर...
कोलाहल
कविता

कोलाहल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** श्रेष्ठ अभिनेता श्री इरफ़ान खान हमारे बीच नही रहे। उनका अभिनय कौशल रजत पट व हमारे ह्रदय पर सदा अंकित रहेगा। कहते है कलाकार अपनी कला में सदैव जीवित रहते है। कला उन्हें अमरत्व प्रदान करती है। शब्द सुमन उन्हें अर्पित है। बाहर का कोलाहल थमे तो, मन की बात सुनू। जब मौन मुखर हो कर बोलेगा, अंतस के कपाट खोलेगा। आत्मा से बोलेगा, मैं, धीरे धीरे गलेगा। नेति नेति जानेगा, परमात्मा से मिलेगा। दिव्य प्रकाश में घुलेगा। होगा बंद आवागमन परम पद पायेगा। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्म...
आत्मविश्वास
लघुकथा

आत्मविश्वास

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** किसान दीनालाल के खेत में रबी की फसल पक गयी है। कोरोनावायरस के कारण पूरे राष्ट्र में लाकडाउन लगा है। एक सच्चे देशभक्त होने के कारण मजदूरों को फसल काटने के लिए नहीं कह रहे हैं। फसल कटाई के लिए बहुत चिंतित है। "दादाजी आप सवेरे-सवेरे क्यों चिंतित हैं? आपके चेहरे पर बारह बज रहे हैं।" उनका बारह वर्ष का पोता रोहन पूछा। "खेत में रबी की फसलें सूख गयी है। अगर इसको यूं ही कुछ दिन छोड़ देंगे तो सारी मेहनत पर पानी फेर जाएगी। क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मजदूरों से कटवा नहीं सकता। मैंनें कभी फसल काटी नहीं है। "दीनालाल उदासी स्वर में बोले। "ओहो दादा जी! रोहन के रहते हुए आप क्यों चिंतित हो जाते हैं। चलिए खेत, हमलोग स्वयं फसलें काटकर ले आएं। मैंनें मजदूर चाचा जी सबको फसल काटते ध्यान से देखता रहता। "राहुल आत्मविश्वास के साथ बोला। "पर रोहन त...
कुत्‍ते की पूँछ
कहानी

कुत्‍ते की पूँछ

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सीहोर, (म.प्र.) ******************** ''मैंने क्‍या किया.....?'' सदा की तरह यह आश्‍चर्य मिश्रित प्रश्‍न दागकर इतराते हुये, शरीर को गठीली रस्‍सी की भाँति ऐंठते दूसरे रूम में बुदबुदाते चली गई वह। मैं विचारों के दलदल में सिर धुनता हुआ छटपटाता रह गया। अपनी औलाद की जि़न्‍दगी के महत्‍वपूर्ण फैसले में सहायता के वजाय अड़ंगा डालकर उसे तनिक भी अफसोस नहीं। मैं उस क्षण को कोस रहा हूँ, जब ऊपरवाले ने किसी प्रायश्चितके तहत हमारी जोडी़ मिलाई! लगभग पैंतीस सालों में फैले दाम्‍पत्‍य जीवन का सम्‍भवत: ऐसा कोई पल नहीं है, जब मन-माफिक पत्नि-पति का एहसास हुआ हो। ‘’तो फिर बच्‍चों का जन्‍म.......?’’ यह प्रश्‍न कोई भी पूछ सकता है। ‘’जोरजवरजस्‍ती में भी तो......।‘’ जब कभी रिश्‍तों में असन्‍तुलन आता है। कुछ परस्‍पर विरोधाभाषी स्थिति निर्मित होती है। तो उसके निराकरण के लिये, एक-दूसरे को सम...
मजदूर की मजदूरी
कविता

मजदूर की मजदूरी

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** बिना श्रमिक हो जाते हम मजबूर, समझते हैं उस को केवल मजदूर। मेहनतकश की मेहनत से ही है, हमारे जीवन में खुशी। कोशिश करें समझें मजबूरी, करें सही आंकलन और दें उचित मजदूरी। मजदूर चाहता है दो वक्त की रोटी, तन को कपड़ा और सिर पर छत। नहीं है जिसके बिना सम्भव प्रगति, समझें हर जरूरत और रखें अच्छी दोस्ती। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में आलेख, ललित निबंध, कविताएं, व्यंग्य, लघुकथाएं संस्मरण आदि प्रकाशित। लगभग १९८५ से सतत लेखन जारी है । १९९७ से इन्दौ...
दिल आईना
कविता

दिल आईना

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** दिल के आइने से देखा तू रकीब बन पड़ा है, उजाड़कर घरौंदा किसी का, सुकून पा रहा है। दिल न था तो पत्थर ही सही पिघला-पिघला सा था, तुम्हारी बेपरवाही से तनहा-तनहा सा था। हजारों जख्म देकर तुम इजाद थे, मरहम के इंतजार में हम बेकरार थे। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो ...
ऐ कवि तुम अङ्गार लिखो
कविता

ऐ कवि तुम अङ्गार लिखो

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** अब श्रृंगार नहीं, सिर्फ अङ्गार लिखो। ऐ कवि प्रेम नहीं बस प्रहार लिखो। तुम रूप माधुर्य नहीं सिर्फ वेदना लिखो। ऐ कवि तुम प्रणय नहीं अब परित्याग लिखो! तुम राग दीप नहीं भर्तसना का मल्हार लिखो! तुम प्रार्थना नहीं अब केवल तिरस्कार लिखो! लिखो टूटी हुई तुम, चूड़ियों की गाथा। रचो काव्य सहस्त्रों तुम अपमानित हुई मनुजता पर! . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कह...
वो लड़की
कविता

वो लड़की

निशा शर्मा जिला चापा छत्तीसगढ़ ******************** सुनी ना किसी ने भी उसकी जुबानी होती है क्या एक लड़की की कहानी चंचल, अलबेली, अपने माँ की दुलारी घर की सुमन, पापा की लाडो प्यारी! तेज आवाज सुन घबराती वो लड़की अकेले में कुछ गुनगुनाती वो लड़की! मिले जो उसपे नाज करती वो लड़की ऊंची नही आवाज करती वो लड़की! दो कुलों की लिहाज करती वो लड़की घर में सुखद आगाज करती वो लड़की! . परिचय :- निशा शर्मा निवासी : जिला चापा छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें ...
खटकती हैं
कविता

खटकती हैं

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** हर बात हर बार खटकती हैं। मेरे लबो पर हर बात अटकती है।। कभी साँसे अटकती हैं, कभी यादे भटकती हैं । हर बात हर रोज अटकती हैं। झूठों पर सटकती हैं।। जब भी सटकी, हर बात ही खटकी। जो नहीं सोता नींद वहीं भटकती हैं। जिसको हैं सोना नींद वहाँ सटकती हैं।। जहाँ मंजर हो विकट, छते वही टपकती हैं। ये ही बात खटकती हैं।। जहाँ फसले हो हरी-भरी, बून्दे वही टपकती हैं। ये बात ही खटकती हैं.....।। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...