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कर्तव्य की वेदी पर
कविता

कर्तव्य की वेदी पर

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ लेकर हाथों में हाथ संबल दे रहा हूँ सता रही है घर की यादें यादों में ही जी रहा हूँ। दरवाजे तक आती होगी बिटिया, मेरी राह तकती होगी बिटिया, सुनी-सुनी नजरें माँ से कुछ पूछती होगी सपनो का दुशाला ओढ़े फिर सो जाती होगी बिटिया। मैं उसके सपनो में जाने की सोच रहा हूँ। कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। वसुधैवकुटुम्बकं के संस्कारो में पला बढ़ा हूँ कैसे तज दू किसी को विपत्ति में, मानवता का फर्ज निभा रहा हूँ। कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। नर में हो रहे दर्शन नारायण के, देख कर निःसहाय होठों पर मृदुल हास्य की लकीर, जीवन सार्थक कर रहा हूँ कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी...
जिंदगी बचाना है
कविता

जिंदगी बचाना है

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मजबूत इरादों संग, कोरोना को हराना है, अनमोल है ये जिंदगी, इसको हमें बचाना है। कठिन समय है लेकिन, हम भी तो कमजोर नहीं, प्राकृतिक आपदा का, होता किसी पर जोर नहीं, हम सब मिलकर, एकता की मिसाल देंगे, हवा में जहर घुल रहा, जिसका ओर छोर नहीं, बार-बार हाथ धोएं, स्वच्छता अपनाना है, अनमोल है ये जिंदगी, इसको हमें बचाना है। संक्रमण के बचाव में, घर पर ही रहना होगा, हाथ नहीं मिलाना, अपनी संस्कृति अपनाना होगा, काल बनकर घूम रहा है यह कोरोना, पास-पास नहीं हमको, दूरी अपनाना होगा, भारत में आशा के, दीप जलाना है, अनमोल है यह जिंदगी, इसको हमें बचाना है। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी टी आई. व्यवसाय - शासकीय शिक्षक सन् १९७७ से वर्तमान म...
गौरी मौसी
लघुकथा

गौरी मौसी

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** लोकडाउन के तीसरे दिन पडोसन गौरी मौसी दीन भाव से अध्यापिका डॉ. अर्पिता से कहती हैं : "बहन जी पाँच सौ रूपये की मदद हो सके तो करो न ! तीन दिन से मेरी अगरबत्ती का ठेला बन्द है। जब लोकडाउन पूरा होगा तब आपको लौटा दूँगी।" डॉ. अर्पिता बिना कुछ कहे, पूछे मधुर स्मित के साथ एक हज़ार रूपये उनके हाथ में थमा देती है। "चिंता मत करो, जरुरत पड़े तो माँग लेना, पर अपने घर में ही रहना। "इसके बाद डॉ. अर्पिता रोज जान बूझकर ज्यादा रसोई बना के उसे देती है : मौसी आज मुझसे ज्यादा बन गया है, लीजिए। "गौरी मौसी का चेहरा अहोभाव से खिल उठा....।। . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच...
अफवाह
लघुकथा

अफवाह

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** वह बदहवास सी दौड़ती आई थी। अम्माजी मुझे काम से न हटाइये, अम्माजी मुझ गरीब पर दया कीजिए। क्या हुआ कमली..... अचानक ऐसे क्यों दौड़ी चली आई है। कहा था ना तुझे अभी काम पर नहीं आना है। नहीं-नहीं अम्माजी मुझे कुछ नहीं हुआ है। कुछ लोग बोल रहे थे .... अब काम बंद तो पैसा बंद। महिने की पगार नहीं मिलेगी। अम्माजी बच्चों को क्या खिलाऊंगी। काम पर आती हूं तो सब घर से मुझे थोड़ा बहुत बचा हुआ खाने को मिल जाता है, मुझे भी चाय मिल जाती है। पगार भी नही और बचा-खुचा भोजन भी नहीं? बच्चें बीमारी से नहीं भूख से ...? नही-नही कमली तू इन फालतू की अफवाह पर ध्यान न दे और घर जा। रूलाई आ गई कमली को... बेबस कमली बस आंखों में बोल पड़ी... महामारी का नाश हो। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद...
शुभ संकल्प
कविता

शुभ संकल्प

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कर्म अगणित हैं जीवन अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! करें कुछ पर हित के भी कर्म! यही तो कहता है हर धर्म! सुनें अपने अंतर की बात, नित्य इंगित करता है मर्म! मनुजता का कुछ नहीं विकल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! मनुज-सक्रियता है अनिवार्य! कथन से उत्तम होता कार्य! क्लांति है जड़ता की सूचक, व्यस्तता प्रकृति को स्वीकार्य! करें सब विश्रामों को अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प गेह में भी संभव है योग! दूर इससे रहते हैं रोग! सुलभ साधन कितने ही हों, रहे मर्यादा में उपभोग! करें अपनी आवश्यकता अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प ! संतुलित-सीमित हों संवाद! निरर्थक हो न वाद-विवाद! निरन्तर शैली हो शालीन, नहीं हो शब्दों में उन्माद! व्यर्थ है मर्यादाधिक जल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०...
संदेश
कविता

संदेश

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन के चमकते प्रकाश में स्वच्छ नील हँसता नभ गंगा पर छाई रवि किरणे अविरल बहता यह जल तटो से सटी बंधी ये नावो से देख आर -पार दृश्य मनोरम स्फटिक सा गंगा जल में चपल पवन होता स्पन्दित हिलोरे लेता शान्त ह्रदय में तन मन से हो अल्हादित विहंगो की जल क्रीडा में जानव्ही रूप मस्त मनोरम प्रकृति के सुन्दर नीड में मानस होता व्यथा मुक्त उर को स्नेहासिक्त करते जीवन नैय्या करते सुगम इस धूप छाँव की छटा में कलरव करते पक्षी अनेक प्राणीमात्र को अंक में समाये गंगा देती अनुपम संदेश   परिचय :- ८ अगस्त १९४७ को जन्मी इंदौर निवासी श्रीमती अमिता अनिल मराठे को लिखने का शौक है आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। नई दिशा एवं जीवन मूल्यो के प्रेरक प्रसंग नाम से आपकी दो किताबे भी प्रकाशित हुई है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिं...
तुम फिर एक दिन मिलने आना
कविता

तुम फिर एक दिन मिलने आना

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** चाँद का चमकीला उजास, जगा रहा इस दिल की प्यास, फैला है ऐसा प्रकाश, जैसे मोती जड़े हों टिमटिमाते तारों पर, मन आज फिर खड़ा है़ यादों के चौराहे पर। मुझे न ये चाँद चाहिए न ये फलक चाहिए, मुझे तो बस तेरी एक झलक चाहिए, आज भींगी है पलकें फिर तुम्हारी याद में, काश! कुछ ऐसा होता की हम तुम होते साथ में। याद है जब आँखों में सजा के सपने, हम तुमसे मिलने आए थे, याद है क्या वो पल जब देख तुम्हें मुस्कुराए थे, वो पहली बार छुअन से मेरी तुम छुईमुई से शरमाए थे, धड़कनों में तुम्हारी बस हम ही हम समाए थे । याद है़ वो हाथों में हाथ लेकर, हम साथ-साथ थे टहले, पर अब तो ये कमबख्त दिल ए बहलाने से न बहले, तेरी लहराती जुल्फों ने मेरे मन को भरमाया था, पाया था सर्वस्व प्रेम का जब तुमने गले लगाया था। तुम्हारे बदन की खुशबू मेरी सांसों मैं समाई है, सपनों में तो जाने कित...
भारत भावना
कविता

भारत भावना

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** हम दधीचि के वंशज है अरि के अरमान मिटा देंग़े बेजोड़ है जज़्बा भारत का दुश्मन को धूल चटा देंग़े राणा सांगा का जज़्बा है घावों की फ़िक्र नहीं करते भारत का अक्षुण मान रहे हम अपना शीश कटा देंगे भारत की जनता बेमिसाल हर मोर्चे पर डट जाती है दुश्मन को शौर्य एकता से दिन में तारे दिखला देंगे मर्यादा राम से सीखी है कृष्णा से है रणनीति लिया भयभीत नहीं असुरों से हम हम उनके नाम मिटा देंग़े अश्फ़ाक भगत आज़ाद विस्मिल का साहस पाया है जीतेंगे हम हारेगा अरि हम तोप का मुँह ही घुमा देंगे लड़ने को करोना से हमको संसाधन जो भी चाहेगा बन भामा शाह आज के हम पूरा धन धान्य लुटा देंगे गांधी भूखे रह करके भी अंग्रेजो से लोहा लेते थे बन साहिल एक दूसरे का कोविड उन्नीस हरा देंग़े . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर ...
मातृभाषा हिंदी
कविता

मातृभाषा हिंदी

हिमांशु कलन्त्री इंदौर (म.प्र.) ******************** बिछड़ते वक्त तू गुजर जाएगा... मगर मेरी जड़ तू ना उखाड़ पायेगा... निष्ठायुक्त चरित्र है हिंदी... पुरातन प्रतिष्ठा है हिंदी... सतयुगी प्रतिज्ञा है हिंदी... भारतियों का सौभाग्य है हिंदी... हिमांशु का गौरव है मातृभाषा हिंदी... भाषाओं में चमकता तारा है हिंदी... भारत माता का मस्तक अभिमान है हिंदी... संस्कारो का स्वागत-संस्कार है हिंदी... शब्दार्थों की अनन्त पराकाष्ठा है हिंदी... संस्कृति का मूल आधार है हिंदी... बुजुर्गों को किये प्रणाम का आशीष है हिंदी... हिमांशु की आजीवन प्रतिष्ठा है हिंदी... शिव-वंदन जैसा है गुणगान-हिंदी... . परिचय :- हिमांशु कलन्त्री जन्म दिनांक - २६-०५-७४ निवासी - इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अ...
तब ही महका संसार मिला
कविता

तब ही महका संसार मिला

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** मन के नन्हें पंछी को मैंने, कैद से यूँ आज़ाद किया। जीभर उसकी बात सुनी, फिर सपनों को आकाश दिया। रीति रिवाज़ों ने रोका था, बहुत रूढ़ियों ने टोका था। पर मुझको मंज़िल पाने का, सौ फीसदी भरोसा था। खूब लड़ा हूँ सच की खातिर, लोग कहा करते थे क़ाफिर। भटकाते थे गलत राह में, मगर ना भटका कभी मुसाफिर। बहुत शूल थे राहों में पर फूलों का भी प्यार मिला। सीख लिया जब साथ निभाना, तब ही महका संसार मिला। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कवित...
सम्हल जाइये
कविता

सम्हल जाइये

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** वक्त बड़ा नाजुक है यार, सम्हल जाइये, बेदाग दामन को बचाके, निकल जाइये! कदम-कदम पर ठगी मिलेंगे दुनिया में उनकी मोहक अदा पे ना फिसल जाइये! जो खेला करते हैं किसी के जज्बातों से उनके लिए यूँ मोम सा ना, पिघल जाइये! ना जाने किस घड़ी बुझे जीवन का दीप छोटी-छोटी बातों पर ही ना उबल जाइये! सच्चाई का वजूद मिटता नही मिटाने से इसलिए झूठ के प्यालो में ना ढल जाइये दम घुटने लगा है गीत, ग़ज़लों का दोस्तों यूँ चुटकुले सुन-सुनाकर ना बहल जाइये!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीय...
अलविदा
कहानी

अलविदा

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** आज उसके घर के बाहर भीड़ लगी थी, लोग तरह -तरह की बातें कर रहे थे। ७० साल के भगवानदास कह रहे थे, लालची है ये लोग, बेचारी को पति सुख की चाह थी पर इन लोगों के लिए तो वह सोने की मुर्गी थी, हर माह मोटी रकम उसे मिलती थी, बेचारी की इच्छाओं की किसी को भी परवाह नही थी। रोज-रोज फरमाइश, पर उसके विवाह की किसी को चिंता नही थी। पहले पति की प्रताड़ना का शिकार हो वह अपने वालों के बहकावे मे आकर तलाक ले चुकी थी। १० वर्ष हो चुके थे। दोबारा शादी के लिए इतने फजिते होंगे ये वो जानती तो शायद तलाक ही न लेती ! किराने वाली सुशीला मां कहने लगी, वो भी मुवा ठीक नही था री। किसी की बेटी को ले गया और छोड़ दी केवल काम करनेवाली व "सोने का अंडा देने वाली" बाई बनाकर। उसकी बचपन की सहेली जिसने ज्योत्स्ना के साथ अंतिम क्लास तक पढ़ाई की थी, बबली जो उसी की उम्र की थी कहने लगी, ...
देश राग
लघुकथा

देश राग

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां.. इतनी सी है दिल की आरज़ू.... .. दीदी आज तो आपने सबको भावुक कर दिया, आप कितना मीठा गाती हो, प्रीति का गाना पूरा होते ही पास में खड़े बिट्टू ने प्रीति से कहा और सभी ने अपने अपने घरों से तालियां बजायीं। प्रीति कॉलेज में प्रोफेसर है, गरीब बस्तियों के बच्चों की शिक्षा पर भी काम करती है साथ ही अच्छी गायिका भी है। लॉक डाउन के दौरान आसपास वालों की फरमाइश पर वो रोज शाम को अपने घर के सामने ट्रैक पर माइक और स्पीकर लगाकर सभी को गाने सुनाती है। आज जब उसने ये गीत गाया तो सभी लोग देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत होकर भावुक हो गए। गाते गाते प्रीति की आंखें भी भीग गयीं, दीदी मुझे भी गाना सीखना है, आप मुझे सिखाओगी, बिट्टू ने माइक और स्पीकर उठाते हुए पूछा, हाँ हाँ बिट्टू क्यों नहीं? जरूर, प्रीति ने...
उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग-०४
उपन्यास

उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग-०४

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रात्री के सात बजे मेरे नानाजी दाई को बुलाने जो घर के बाहर निकले, वे परिवार में सबका खाना निपटने के बाद भी वापस नहीं लौटे थेI बाद में सबके सोने का भी समय हो गया और सब सोने भी चले गए, तब तक भी नानाजी का कही पता नहीं था। नानी जरुर खूब परेशान और चिंतित हो गयी। नींद का तो सवाल ही नहीं था। मेरी माँ के पास बैठे उसे लगातार धीरज दिए जा रही थी। शायद अब शीघ्र ही सबसे मेरी मुलाकात का समय हो चला था। माँ का दर्द असहनीय हो चला था। वेदनाएं अलग थी। इधर नानाजी का पता ही नहीं था, इसलिए दुर्गाबाई दाई की भी किसी को खबर नहीं थी। माँ तो रोने ही लगी। "अक्का …। धीरज रख। मै माई को बुला कर लाती हूं। "इतना कह कर नानी कमरे के बाहर गयी। अब माई का परिचय भी आपको करवाना ही चाहिए। माई मतलब मेरी माँ की सौतेली दादी। सखारामपंत की दूसरी पत्नी गोपिकाबाई। मेरी नानी की सास।...
गुल्लक
लघुकथा

गुल्लक

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ आशा आंटी का फोन है... बेटा मुझे फोन देते हुए बोला... मैने पोछा बाल्टी में फेकते हुए दुपट्टे से हाथ पोछे और बेटे के हाथ से फोन झपट लिया। कैसी हो दीदी उधर से आवाज आई ! .ठीक है हम सब तू कैसी है? और तेरे परिवार के लोग.....मैं एक सी सांस मे कह गई? नहीं दीदी...वह रूकती हुई बोली - पर आपको सब काम हाथ से ही करना पड रहा है ना? और आपके पैरो का दर्द कैसा है? उधर से बुझी सी आवाज आई। हम लोग मिलजुल कर मैनेज कर रहे है। बच्चें भी काम मे हाथ बँटा रहे है.... वो सब तो ठीक है पर तू बता तुम लोग गाँव तो नहीं गए ना? और तेरे पति क्या अभी भी सब्जी बेचने जाते है? मै उसकी खैरियत पूछने के लिए एक सांस मे सब कह गई। वो दीदी मालिक मकान किराया मांगने लगा था। और फिर हमारे घर में खाने का सामान भी इन आठ दिनों मे खतम होने लगा था। आटा दाल का इंतजाम तो करना ही था सो जान जोख...
स्वप्न सुनहरे
कविता

स्वप्न सुनहरे

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** हर ढाल बनकर जो खड़े हैं अपनें-परायों से लड़े हैं। विश्वास बनूंगी मैं उनका इतिहास रचूंगी इस युग का।। इक तड़ित सा तेज़ बनकर माता पिता का ओज बनकर। पर्वतों के जैसे तनकर, उनके जैसे ही मैं थमकर।। जाग जाऊं सुबह बनकर शांत हो जाऊं निखरकर। क्रांति लाऊंगी जो अब मैं अपने जीवन के सफ़र में।। रोशन हो जाऊं कहर में जीत जाऊं हर लहर में। रोशन होकर जगमगाऊ, इक नई सुबहो जगाऊं।। . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
बचपन
कविता

बचपन

डॉ. प्रभा जैन "श्री" देहरादून ******************** क्या बचपन का जमाना था ना अपना, ना पता क्या सुहाना था भागते कभी तितली के पीछे कभी उड़ाते, छत पर पतंग। कभी झूलते सावन के झूले कभी रिमझिम वर्षा में नहाते, बना कागज की नाव बहाते रख पैर रेत में घर बनाते। कोई तोड़ता कट्टी क़र जाते मन था निर्मल गंगा समान, फिर से हप्पा क़र जाते था तनाव रहित जीवन। बदला समय, जीने का ढंग जन्म लेता आज बच्चा, समय बाद ए बी सी डी करने लगता, लाद भारी बस्ता स्कूल जाता दादी-नानी से कहानी सुनता बचपन। देख जिन्हें दिल खिल जाता भंवरों की तरह मचल जाता, बड़ों की तरह बात करता बचपन कुछ का बचपन सड़क पर सोता स्कूल का सपना चाँद का सपना हर चीज में दो समय की रोटी दिखती कहीं छोटी-छोटी टोकरी में नींबू धनिया बेचता बचपन। क्यूँ होता अपहरण क्यों चौराहे पर फैला हथेली खड़ा बचपन। कहाँ खो गया वो मासूम सहज सरल बचपन, कहाँ खो गया देखते-देखते वो गु...
होमियोपैथी….  प्रयोग नहीं विज्ञान
आलेख

होमियोपैथी…. प्रयोग नहीं विज्ञान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व होमियोपैथी दिवस’ प्रत्येक वर्ष १० अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. हैनीमैन की जयंती १० अप्रैल को विश्व होमियोपैथी दिवस के रूप में मनायी जाती है। होम्योपैथी के संस्थापक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन महान विद्वान, भाषाविद् और प्रशंसित वैज्ञानिक थे। होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति दुनिया के १०० से अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी देश है कई महामारियो का उपचार होम्योपैथी से संभव है। लेकिन अभी तक इसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो सका है। होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। होमियोपैथी के उपचार का आधार खासतौर पुराने तथा असाध्यय कहे जाने वाले रोगों के लिये रोगी की केस हिस्ट्री लेते समय उनके लक्षणो को प्राथमिकता...
कोरोना वियोग
कविता

कोरोना वियोग

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** हम इधर है और वो उधर है, कोरोना के कारण मिलन दूभर है ....!! करे तो करे भी क्या इस लॉक डाउन में, वियोग इधर है तो इंतजार उधर है ...!! दोनों और पलता है प्रेम, इस घोर विकट घड़ी में अथाह ... ...!! मन मे मिलन की है पराकाष्ठा, पर संक्रमण काल मेअधूरी है चाह . .!! लॉक डाउन बाद खुलेगी शायद, मिलन की कोइ न कोई राह .. ....!! होगी नजरे इनायत भी और, उमड़ेगा पारावार प्रेम का अथाह . ...!! होंगें फिर प्यासे दिलो के, गिले-शिकवा भी दूर सभी ........!! खाएंगे कसमे की, विकट हालातों में, फिर रहेंगे न दूर कभी .............!!! हाँ मितवा रहेंगे न दूर कभी .....!!! . परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच ...
नव भोर की ओर
कविता

नव भोर की ओर

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चमक रहा वो, देख! शीर्ष, हैं ज्योत्सना मुसकाई, महक रहा हैं धीर मेघपुष्प, चल वैतरणी पार लगाई... मचल उठा मन मयूर सा, नयन निहारें, विहंगम दृश्य, वारिधर भी रहे मचल हैं, थिरके अर्श, अंशु अदृश्य... मस्ती में झुमें हैं, तरुध्वज, जल-थल चर, विहंग सारे झुम रही सँग, मंद समीरण, तृण, टीप "निर्मल" पे वारे ... बिखर रही, रौशनी राहों में, नई उमंगें सँग भर बाहों में, तज तिमिर, बन नई चमक, जा निकल सँग नई राहो में उपमाएँ : शीर्ष-आसमा/ज्योत्सना-चाँदनी/धीर-शांत/मेघपुष्प-जीवन,जल/वैतरणी-ब्रह्म नदी/वारिधर-मेघ/अर्श-नभ/अंशु-किरण/तरुध्वज-ताड़,वृक्ष/चर-प्राणी विहंग -पँछी/समीरण-वायु/तृण,टीप-घास से शाख तक परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौ...
महँगाई की मार
कविता

महँगाई की मार

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** महँगाई की मार है, पैसा है तो कार हैं। करते सब इनकार हैं, महँगाई की मार है।। आलू हूआ बीमार गोभी को आया बूखार। पालक ने सीना ताना, तोरी ने रूख अपनाया सख्त। बोलो महँगाई की------------।। शक्कर बोली दाल से बहिन क्या हैं, हाल! दाल बोली आज-कल तो दाल ही दाल, ऐसा मेरा हाल।। बोलो महँगाई की ----------।। क्योंकि तेल चढा पहाड़ है, चावल का बंटाधार। गेहूँ थोड़ा उदास हैं, देखो ऐसा वार है।। बोलो महँगाई की --------।। गाँव-गल्ली और नुक्कड़ में, शहरों के चोराहो में। भरे हुए बाजारो में, आज के ये हाल हैं।। बोलो महँगाई की --------।। न चाल हैं, न ढाल हैं, लोग बिचारे बेहाल हैं। अंगूरों की देखभाल है, चीकू- संतर 'आम 'हैं।। बोलो महँगाई की -------।। क्योंकि 'घी' आपे के बाहर हैं, कोने में बैठा अनार हैं। देखो ऐसा वार है। बोलो महँगाई की ---------।।...
शौर्य गाथा
कविता

शौर्य गाथा

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वीर रस भगवा रक्त बहे इस तन में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। वीर शिवाजी सा रणकौशल राणा सा वो भाल दो। चेतक सा बल शौर्य मुझे दो गुरु गोविंद सिंह: कृपाण दो श्री रामकृष्ण जी परमहँस सा मुझको हृदय विशाल दो। रौद्र रुप धर सँकु युद्ध में वह देह मुझे विक्राल दो।। मंगल पाण्डे सा बल दो माँ डटा रहूँ रणभूमी में। भगत सिह: सा साहस दो माँ हँस कर झूलुं सूली में।। दो शक्ति आज़ाद सी मुझको मात्र भूमी पर मिट जाऊँ। संत विवेकानंद बनु तन भूमि माथ लिपट जाऊँ।। मर - कर फ़िर जनमु भारत में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजि...
तूने गजब कर डाला
कविता

तूने गजब कर डाला

जसवंत लाल खटीक देवगढ़ (राजस्थान) ******************** वाह रे, कोरोना ! तूने तो गजब कर डाला, छोटी सोच और अहंकार को, तूने चूर-चूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... पैसो से खरीदने चले थे दुनिया, ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में, तूने तो पैसो को भी, धूल-धूल कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... धुँ-धुँ कर चलते दिन रात साधन, लोगों की चलती भागमभाग वाली जिंदगी, तूने एक झटके में सारा जहां, सुनसान कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... दिहाड़ी करने वाले मजदूर, खेत पर काम करते गरीब किसान, तूने तो इनको बिल्कुल, कंगाल कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... अमीरी मौज कर रही बंद कमरों में, गरीबों को अपने घर आने के खातिर, कोसों पैदल चलने को, मजबूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... लोग कहते थे सौ-सौ रुपये लेती है पुलिस, देखो ! सुने चौराहों पर खड़ी हमारी सुरक्षा खातिर, हम सब लोगों का, विचार बदल डाला।। वाह ...
गृहणि
कविता

गृहणि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बढ़ गया है बोझ उस पर देहरी पर जो खींच दी है लक्ष्मण रेखा। घर के भीतर कोई नही आता घर के भीतर कोई नही जाता उसे ही रखना है सारे काम का लेखा जोखा। घर का फर्श, फर्नीचर जब चमक उठते है। आवाज़ देते है किचन में रखे बर्तन। बर्तनों की चीख पुकार बंद होते ही। वाशिंग मशीन में कैद कपड़े फुसफुसाने लगते है। कर उनकी धुलाई टंग जाते है वे रस्सियों पर करते है हवा से अठखेलियाँ एक गहरी सांस खींच भी पाती है की। गमले में उगा मोगरा, गुलाब, निशिगन्ध उसे याचक की नज़रों से देखते है। दे कर पानी गमलों में जैसे ही पोछती है वो स्वेद कण जो दव बिंदुओं के समान उसके माथे पर मोतियों से उभर आए है। तभी उसके कानों में पड़ती है मेरी आवाज कुछ तो काम किया करो मुझे अभी तक चाय नही मिली। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म...
कोरोना वायरस का प्रभाव
आलेख

कोरोना वायरस का प्रभाव

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** सारे विश्व में कोरोना के कहर ने हंगामा मचा दिया है। अंबर और अवनि पर सन्नाटा छाया हुआ है। प्रदूषण फूँकते वाहन के पहिए थम गये हैं। सड़कों, दुकानों, मोल, शाला-कॉलेजों, ऑफिसों, कंपनियों, उद्योगों, मण्डी-बाजारों, आदि भीड़ वाले स्थान एक ही रात के आह्वान से कुछ ही घंटों में शून्य सा नजर आ गया है। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक वातावरण के साथ ही प्राकृतिक वातावरण भी शांत हो गया है। लोग अपनी, परिवार की और देश की जान बचाने के लिए अपने घरों में बैठकर देश को सहयोग दे रहे हैं। लोगों में निरंतर सावधानी जागृत करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से मीडिया कर्मी सतत सूचना देते रहते हैं। लोगों को मुश्किलें कम हो इसके लिए जितना हो सके उतना समाज सेवकों और सरकार द्वारा खयाल रखा जाता है। लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान, ...