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मालवी लोकगीतों की पृष्ठभूमि एवम सामाजिक परिस्थिति
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मालवी लोकगीतों की पृष्ठभूमि एवम सामाजिक परिस्थिति

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" लोकगीत मानव ह्रदय की सरल, सहज एवम नैसर्गिक अभिव्यक्ति है। जिसमे भाव, भाषा और छंद की नियमितता से मुक्त रहकर स्वच्छंद रूप से निःसृत होने लगते है। इन सहज-स्वाभाविक गीतों के मूल में सम्पूर्ण विश्व की प्रतिपल घटित एवम परिवर्तित परिस्थितियां ही प्रेरणा रूप में विद्यमान है। लोकगीत भावों की अभिव्यक्ति की एक विधि है। लोकगीतों की मूल प्रेरणा वही है जो अभिव्यक्ति की अन्य विधाओं की है। मालवी लोकगीतों की पृष्ठभूमि के रूप में भी अभिव्यक्ति की इन मूल प्रेरणाओं को स्वीकार किया जा सकता है। ये है- सामाजिक,धार्मिक आर्थिक, राजनैतिक, पारिवारिक आदि परिस्थितियां। इसमे हम केवल सामाजिक परिस्थितियों पर ही हम मंथन करेंगे.............. समाज, मानव द्वारा निर्धारित व स्वीकृत वह जीवन पद्धति है जिसके द्वारा प्रत्येक मनुष्य जीवन पर्यंत संचालित ह...
लोकतंत्र जयघोष हुआ
कविता

लोकतंत्र जयघोष हुआ

========================================== रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर केशर क्यारी महक उठी है, लोकतंत्र जयघोष हुआ। नागों के फन कुचल दिए है। तन-मन में उठ जोश हुआ।।.. देश की सीमा में होकर भी, सौतेला व्याहार रहा। भारत मां के बच्चों का पर, सदा अनोखा प्यार रहा।। विषधर के सब दांत निकाले, दूर-दूर विषदोष हुआ।।... केशर क्यारी महक उठी है, लोकतंत्र जयघोष हुआ।।.. परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirak...
फ़िर से शेर दहाड़ा है
कविता

फ़िर से शेर दहाड़ा है

==================================== रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित काश्मीर की घाटी में फ़िर से शेर दहाड़ा है। आतंकी बिल में छुपे हुए है,ढंग से उन्हें पछाड़ा है। कल तक जो गुर्राती थी,हाथ जोड़ कर कहती है। घर में हो गई नज़रबन्द, आंखों से नदिया बहती है। भौंक रहे हैं नहीं कहीं भी,,,,,श्वान आज कश्मीर में। स्वाद नहीं आ रहा उन्हें अब पकवानों या खीर में। घोर विरोधी भी होकर जो ,,,,,,,एक साथ गुर्राते थे। नफ़रत फ़ैलाकर नेता,,,, वो देशभक्त कहलाते थे? खुद की संतानों को जिनने,,, बड़ा किया विदेशों में। खौफ़ जहर की खेती करके,फ़सल उगाई खेतों में। हिन्दू मुस्लिम कभी न लड़ते,लड़ती सदा सियासत है। चैन अमन अब लौटेगा,,,,,,क्यों कहते हो आफ़त है? अमित शाह, मोदी जी की जोड़ी के हाल निराले हैं। पहली बार लगा है सबको,,,ये भारत के रखवाले हैं। पैंतीस ए तो ख़त्म हो गई,राज्य केंद्र के आधीन हुआ। पूरी तरह कश्मीर हमारा,समझो ...
सावन आयो रे
कविता

सावन आयो रे

============================== रचयिता : रीतु देवी सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे हरी हरी चादर बिछी चहुँ ओर, प्रफुल्लित तन मन नाचे होकर विभोर। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे सब सखी हिलमिल झूले झूला, प्रेम पंखुरी सबके अंतर्मन खिला। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे बरसे रिमझिम वर्षा फुहार, पग बढ चले शिव जी द्वार। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे शिव जी से मांगे सजनी, सजना का प्यार बेशुमार आकर भोले बाबा धरा पर, भक्तों को दें मनवांछित उपहार। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे दिल में बजे नव धुन की शहनाई हरकर सूखापन सबने ली आंगराई। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
काव्यदीप है कविता
कविता

काव्यदीप है कविता

================================== रचयिता : मनीषा व्यास आत्मा के सौंदर्य का ख़्बाव है कविता काग़ज़ रूपी खेतों में शब्द रूपी क़लम से बीजों का अंकुरण है कविता — आत्मीय सौंदर्य का काव्यदीप है कविता पल पल संजोकर सपने भी सच कर हौसलों की उड़ान भर जाती है कविता - मन जब अकेले पन के आग़ोश में छिपा हो तो उस अकेलेपन का भी साथी बन न जाने कब साथ आ जाती है कविता _ मन जब भावना के अधीन बहक रहा हो तो भावना के साथ अश्रु बन कर बह जाती है कविता __ आसमान सी नीली धवल चाँदनी बन चंचल मन की चपलता में भी भाव गढ़ जाती है कविता __ तिमिर में जब राह भूल जाय कोई राही तो पथिक की राह में भी दीप जला जाती है कविता ........... लेखिका परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्...
मखोल्या की खीर भाग 2
कहानी

मखोल्या की खीर भाग 2

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" उको सरीर दुबलो ने दो असाढ़ जैसो थो। सरीर गठिलो करने सारू उ सेर में पड़ने गयो थो। अय गांव में तगड़ी बारिस होने लगी गय ने ४-५ पावणा अय गया। घर मे समान भी कम थो ने इतरा सारा लोग ! हिम्मत वाली थी पटलन, दाल चडई दी चू ला पे ने सोचने लागि के मीठा में तो कय बनाने सारू हेज नी। चावल भी खुटी गया। कय करू। मेहमान पटेल का इन्तजार कर रहे थे। चाय पिलाने का बाद पटलन ने जल्दी-जल्दी दाल-रोटी, खीर ने अचार परस्यो। मेहमान ने भरपेट भोजन करी ने पटलन से खीर का बारा में पूछ्यो तो वा बोली नी। बड़ा लोग ना का सामने वा आवाज भी नि निकालती। सो मेहमान राते रुक्यया ने हवेरे-हवेरे वापस जाता रया। रास्ता में पटेल हरिसिंह अपनी लाडी का साथे पैदल पैदल चल्या अय रया था। आमनो-सामनो होने पे पटेल से सबी जना प्रेम से मिल्या ने मेहमान नवाजी की बात बतय के खीर की त...
शरारत
कविता

शरारत

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका शरारत अंबर ने कर दी,झुक गया धरा पर ऐसे। घनी जुल्फों के साये हो,धरा गौरी बनी जैसे। नभ खिलखिला रहा,दौडता उड़ता रहता है। कभी नीचे को आता है,कभी उपर ही रहता है। करता है अठखेलियां, शरारत वो करता है। न जाने किस मौज में फिर, धरा पर बरसता है। वसुधा तृप्त होती है,बरसो की प्यासी हो जैसे। शरारत अंबर ने कर दी,झुक गया धरा पर ऐसे। घनी जुल्फों के साये हो,धरा गौरी बनी जैसे। झीलमिल सितारे जब, गगन में,चमकते हैं। धरा की ओट में फिर, जुगनू से दमकते है। इठलाती है धरणी, रिमझिम सुर सजते हैं। टपटप बूंदो की बारिश ,सरगम बजते हैं। भीनी खुशबू माटी की ,गगन को चूमती जैसे। शरारत अंबर ने कर दी,झुक गया धरा पर ऐसे। घनी जुल्फों के साये हो,धरा गौरी बनी जैसे। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय मा...
तलाश
लघुकथा

तलाश

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" ४ बज गई ..... सभी सहेलियाँ एकता के घर पहूँच गई थीं ,,,,, आशा :- अरे अन्नू ,,,,, शीला नहीं आई ,,,, हाँ, आशा भाभी, वो अपनी बेटी के घर गई है। सुधा :- अरे कुछ समय पहले ही तो गई थी ,,,,,, पूरे २० दिन में आई थी। क्या करे बैचारी, खुशी ढूंढती रहती है। गहरी सांस लेते हुऐ रमा ने कहा। मैं नहीं मानती ,,, अरे घर हमारा है ,,, तो हम क्यों छोड़े अपना घर ,,,,,,, भाई पूरी ज़िंदगी का निचोड़ है ये आज ,,,,,, अब तो सुख भोगने के दिन है। कल कि आई लड़की के लिए तुम क्यों अपना घर छोड़ती हो ,,,,, यहाँ तो शीला ही गलत है, बेटा हमारा है, फिर क्यों हम किसी ओर से उम्मीद रखें ----- बड़े आत्म विश्वास के साथ आशा ने कहा था ,,,,,,, बैग में कपड़े रखते हुए आशा को ये सारी बातें याद आ रही थी ,,,,,,, अब समझ में आ रहा था कि ,,,,, भरा-पूरा...
आईना
लघुकथा

आईना

======================================== रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी "भैया प्लीज़ रुक जा ना| मैं अकेला मम्मी-पापा को कैसे सम्हालूँगा? मेरी इंजीनियरिंग का भी आखिरी साल है| प्लीज भैया| "बेरंग चेहरा, आंसुओं को बहने से रोकती हुई ऑंखें, और सूखा कंठ - ऐसी ही स्थिति हो गई थी अखिल की| बहुत डरता था अपने बड़े भाई निखिल से, पर आज जैसे-तैसे हिम्मत करके भैया और भाभी को रोकने की नाकाम कोशिश कर रहा था| पर निखिल और नमिता अपना मन बना चुके थे| उन्हें तो केवल अपने होने वाले बच्चे का भविष्य दिख रहा था| इसीलिये सीधे ना कहते हुए, गलतफहमियों की इमारतें खड़ी करके अलग होने का रास्ता चुन लिया था दोनो ने| निखिल बहुत सुविधाओं में पला था वहीं अखिल जन्म से ही अभावों का चेहरा देख चुका था| इसीलिए अंतर था दोनों की सोच और नीयत में| 'अब तक मैंने सम्हाला, अब तू देख अक्खी ' कहते हुई निखिल ने अपने कदम बढ़ा...
ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

=================================== रचयिता : बलजीत सिंह बेनाम जवानी यूँ ही तन्हा जाएगी तेरी गुज़र इक दिन मोहब्बत का भँवर हूँ मैं तू मुझमे आ ठहर इक दिन मेरे हाथों के छालों में तेरी तस्वीर है क़ायम तेरी फ़ुरक़त में मैंने जो रखे थे आग पर इक दिन कहाँ वो चैन पाएगा जला बस्ती ग़रीबों की ख़ुदा उसको भी कर देगा जहां में दर बदर इक दिन यही है सोचता गर तू रहेगा तू सदा प्यासा कभी तो तज़करा होगा मेरी भी प्यास पर इक दिन सदा सैय्याद कहता तेरा जीवन क़ैद में बुलबुल अगर छोड़ा क़फ़स तो तेरे दूँगा पर कतर इक दिन लेखक परिचय : नाम :-बलजीत सिंह बेनाम सम्प्रति: संगीत अध्यापक उपलब्धियाँ: विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के स...
सिर्फ़ तस्वीर
कविता

सिर्फ़ तस्वीर

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ये तन्हाई करीब आई है खुदा से पूछो कैसी किस्मत बनाई है रह रह कर जी रहा हूँ फ़िर भी सामने कई जंग आई हैं चल खुदा तेरा वादा किया पूरा जो मेरे पूर्वज गुज़र गए अब हिस्से में मेरे उनकी है सिर्फ़ तस्वीरें आई लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी मे...
है बहुत कुछ मगर…
कविता

है बहुत कुछ मगर…

============================== रचयिता : नेहा राजीव गरवाल है बहुत कुछ... मगर देखा नही जा सकता, महसुस किया जा सकता है मगर, महसुस किया नही जाता। राते अंधेरी होती है !! मगर..... मंजिल के मुसाफिरो के लिए, ये किसी रोशनी से कम नही, ये जो लमहा गुज़र रहा है ना यार, ये भी किसी मंजिल को पाने के लिए कम नही। मुश्किलें है......हज़ारो होती है मगर, मंजिल से हार जाने से बडा....और कोइ गम नही। हालाते बस सताती है यारो!! इनसे बहक जाना.....हमारा मकसद नही। आलसय आबाद है मगर, आलसय और मंजिल का, को......इ मेल नही। चाहे तो आज कर दिखा सकते है यारो!! मगर, कल करने वाले भी कम नही। सोच तो बेमिसाल है मगर, बस!!! सोचते ही रहना...... मंजिल तक का रास्ता नही, सोचते तो कई है यारो!! मगर अपनी सोच के मुकाम न दे पाने  वाले भी....... इस दुनिया मे कम नही। लेखीका परिचय :-  नाम - नेहा राजीव गरवाल दूधी (उमरकोट) जिला झाबुआ (म.प्र.) ...
जीते हैं, जीतेंगे हम
कविता

जीते हैं, जीतेंगे हम

============================== रचयिता : रीतु देवी हमने पीछे पलटकर देखना नहीं, मुश्किलों से हमें घबराना नहीं, दृढ अटल होकर बढाना है कदम, जीते हैं, जीतेंगे हम। सहना है काँटों की चुभन, चलना है बिना परवाह किए तपन, छू लेंगे आसमां, है हममें दम जीते हैं, जीतेंगे हम। जब साथ है करोड़ों हाथों का साथ, न कम होने देंगे आत्मविश्वास हमारे नाथ, नयी ऊर्जा से लबरेज रहेंगे हरदम, जीते हैं, जीतेंगे हम। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल...
नाव चली
कविता

नाव चली

================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख हौले-हौले संभल संभल कर नाव चली! मौसम के सांचे में ढल कर नाव चली! रंग-ढंग परिदृश्य बदलते रहे सभी सीमाओं से निकल निकल कर नाव चली! पतवारों ने समय-समय पर साथ दिया लहरों की छाती पर पल कर नाव चली! तूफानों ने कसर नहीं छोड़ी कुछ भी जीवन पथ पर फिसल फिसलकर नाव चली मंज़िल की चाहत में था उत्साह बहुत लहरों के संग उछल उछल कर नाव चली! पल-पल 'कलकल- कलकल' कहती रही नदी प्रेमातुर को मगर विकल कर नाव चली! पथ पर आड़े आई हवा 'रशीद' अगर अपने तेवर बदल बदल कर नाव चली! लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, क...
कबीर सिंह
फिल्म

कबीर सिंह

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" फिल्म की वास्तविक कहानी:-शुरुआत से फिल्म एक सीन के साथ शुरू होती है जहां एक आदमी और औरत बिस्तर पर सो रहे हैं और पीछे से समुद्र की तेज़ लहरों की आवाज़ आ रही है। इन्हीं लहरों की आवाज़ के साथ हम कबीर सिंह की तूफानी ज़िंदगी में एंट्री लेते हैं। वो एक मेडिकल सर्जन है और फुटबॉल चैंपियन है। लेकिन अंदर ही अंदर कई समस्याओं से घुट रहा है जिनमें बेतहाशा गुस्सा एक है। कबीर सिंह की नज़रें जैसे ही प्रीति (कियारा आडवाणी) पर पड़ती हैं, वो बागी बन जाता है , ऐसा बागी जिसके पास अब एक मक़सद भी है। एक शरमाई सी सहमी सी लड़की, प्रीति भी कबीर को अपने दिल की बात बताती है लेकिन उनका रिश्ता ज़्यादा दिन तक नहीं चलता है। इसके बाद कबीर खुद को तबाही के रास्ते पर ले चलता है। शराब, नशा और सेक्स, हर चीज़ उसे उसके दुख से दूर ले जाने की कोशिश...
समाज सेवा
लघुकथा

समाज सेवा

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सारा हॉल लोगो से भरा हुआ था। भ्रांत परिवारों की महिलाओं द्वारा समाजिक उत्सव मनाया जा रहा था।पीछे किसी प्रतिष्ठित संस्था का बेनर लगा था।पूरे हॉल में रौनक बिखरी पड़ी थी। उच्च परिवार की कुछ महिलाये स्टेज पर जमकर नाच रही थी।डोनेशन देकर बने अधिकारी लोग आगे की पंगतियो में विराजमान थे। अपनी महिला को चार दिवारी में कैद कर समाज सेवा के नाम पर भ्रांत महिलाओ के अंग प्रदर्शन की झांकी खुले आम देखी जा रही थी। अधिकारी लोगो के सामने वह महिलाये अपने आप को किसी समाजसेवी संस्था की सदस्य होने पर गर्व महसूस कर रही थी। लेकिन अधिकारियों के लिए मात्र एक मनोरंजन का माध्यम था। ओर ऐसा कार्यक्रम हर मौके पर होना चाहिए यही उनका धेय था।उसमे से एक अधिकारी ने तिरछी नजरो से पास बैठे अधिकारी की ओर देखकर कुटिल मुस्कान बिखेरी। परिचय :- नाम : वन्दना प...
मददगार
कविता

मददगार

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" अस्वस्थता में पहचान होती ईश्वर और इंसान की कौन था मददगार श्मशान के क्षणिक वैराग्य ज्ञान की तरह भूल जाता इंसान मदद के अहसान को फर्ज के धुएँ में सांसे थमी आँखे पथराई रतजगा से आँखों में सूजन अपनों की राह निहारती आँखे झपक पड़ती हुई निढाल सी आवश्यकता का भान मन  बेभान भरोसे का  वजन करने की चाह में ईश्वर और इंसान बन जाते तराजू के पलवे गुहार का कांटा झुकता है किस और किसी को पता नहीं किंतु एक विश्वास थमी सांसों के लिए जो मांग रहा  दुआएँ पीड़ित  की सांसे चलने अपनों की आबो हवा में फिर से साथ जीने का नए  जीवन का अहसास एक आस के साथ खोजता मददगारों को वो ईश्वर हो या इंसान परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्य...
उस पार
कविता

उस पार

  ====================== रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव एक वादा तो दे देते की लड़ाई इस पार की उस पार न होगा, जो कहानी लिखा है ख़ुदा ने इस पार वो उस पार न होगा, वादा है तुझसे इस जहां से अच्छी कहानी मैं उस जहां में लिखूँगा। कुछ लिखूँगा ,कुछ कहूँगा आवाज सदियों पार भेजनी है, माना आज कुछ बंदिशे हैं जमाने की जिससे बंधे हैं हम दोनों, इतना तो वादा चाहूंगा तुझसे, इन्तेजार तेरा उस पार मेरा ज़ाया न होगा। बात एक रात की होती तो सो भी जाता, अब ये अश्क़ अपना अंजाम पूछता है, जहाँ ठहरना है वो मुकाम पूछता है, अब तू ही बता क्या आशियाना हमारे गमों का उस पार भी होगा? ज़ार-ज़ार होकर रोने को वहाँ क्या तेरा कान्धा होगा? जिसमे लिपट कर ये रूह फ़ना हो जाए, क्या वो दामन तेरा होगा? सड़क बहुत लंबा है इस तरफ का, तू साथ दे उस पार तो हर कदम मेरा तेरे साथ होगा। लेखक परिचय :-  नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव निवासी : ग...
तेरे बिन
कविता

तेरे बिन

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' कितनी राते कितने दिन   मैं जिया हूँ तेरे बिन मिलती थी तन्हाई मुझसे      मेरे यारा जब         तेरे बिन होकर द्रवित तन-मन मेरा बहस खुद से कर लेता था बनकर के लहू के आँशू मेरा दिल रो उठता था         तेरे बिन ख्वाब सजाए वो बैठा था कई भोरों से शामों तक शीशा जैसी बिखर गई थी    उसकी खामोशी फिर            तेरे बिन कई सपनें व वादे      टूटे थे लाखों पथिक निकल     चुके थे उसके दिल की राहें सूनी थीं        तेरे बिन लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती...
चुहिया और बुढ़िया
कहानी

चुहिया और बुढ़िया

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" एक बुढ़िया कचरा जलाकर खाना बना रही थी, एक चुहिया उधर से गुजरी, देखकर बुढ़िया से बोली-का हम लकड़ी लाय दे तुमको। बुढ़िया ने कहा-लाय दो । चुहिया दौड़ी-दौड़ी गई और लकड़ी लाकर बुढ़िया को दे दी। बुढ़िया रोटी उतार रही थी, ठीक उसी वक्त चुहिया रोटी पर उछलकूद करने लगी । बुढ़िया बोली--ए चुहिया ये का कर रही। चुहिया बोली--मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने तोए दय। का एक चंदिया भी नय देगी? बुढ़िया --ले जा । चुहिया चंदिया लेकर जा रही थी, उसकी निगाह एक कुम्हार पर पड़ी जी बच्चे को मिट्टी की गोली दे रहा था। चुहिया --ए भाई तेरे को चंदिया दूँ। वह तुरन्त बोल उठा--हाँ-हाँ.. चुहिया ने चंदिया कुम्हार को दी और उसकी मटकियों पर उछलकूद करने लगी। कुम्हार बोला--ए चुहिया! ये का कर रही? चुहिया --मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने...
ख्वाब
कविता

ख्वाब

========================== रचयिता : संगीता केस्वानी  अजीब दास्तान है ख्वाबों की, हक़ीक़त से परे, फिर भी नज़रबंद रहते है, खोये सेहर के उजालों में, निशा में समाए रहते है, बदरंग इस दुनिया मे, रंगीन जिंदगियां सजाये रखते है, बिखरी खाली झोली में, उम्मीदों की रोशनी भरते है, दूर क्षितिज खड़ी मंजिलों को, कदमों से नही हौसलों से करीब कर जाते है, थकी हारी इन साँसों मैं, जीने की नई उमंग भर जाते है, यूं तेरे-मेरे ख्वाब मिलकर, हक़ीक़त का घरोंदा सज्जा जाते है।। लेखिका परिचय :- संगीता केस्वानी आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबा...
कुछ बातें अनकही सी
कविता

कुछ बातें अनकही सी

======================== रचयिता : रुचिता नीमा कुछ बातें अनकही सी, अनसुनी सी हर बार रह जाती है बताना चाहती हूँ बहुत कुछ और बहुत कुछ जानना भी हर बार कोशिश करती हूँ पर न जाने क्यों तुम्हारे सामने आते ही सब कुछ, वही का वही रह जाता है कहना होता है कुछ और और कुछ और ही बयां हो जाता है पर जो कुछ भी हो, बस सार यही है, की तुम खुश रहो जहाँ भी रहो।।।।।। मैं तो हमेशा तुम्हें, तुम्हारी परछाई में नजर आऊँगी।। बस एक बार दिल की आँखों से देख लेना ..... लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने...
बिलखे धरा
कविता

बिलखे धरा

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका मत रो धरा मत रो धरा, निर्मोही बादल नहीं झरे। निर्मोही बादल नही झरे, बेदर्दी बादल नहीं झरे। मत रो धरा मत रो धरा_____ हरियाला आंचल तेरा तरस रहा। आंचल का फूल, देखो तरस रहा। वसुंधरा का कैसे हो श्रृंगार । कैसे उपवन में आये बहार। कब तक अवनी बाट जोहे, कब तक प्रतिक्षा करे। मत रो धरा मत रो धरा_____ वन उपवन, बाग सूखे हो जाये। कलियां और फूल न मुसकाये। एक एक बूंद बूंद की प्यास रहे। बादल से मिलने की आस रहे। धरती घट हुआ रीता,बिन बादल इसे कौन भरे। मत रो धरा मत रो धरा_____ मां अचला बड़ी दयालू है तू। अन्नदात्री धरा, अन्नपूर्णा है तू। धरणी तेरे बिन मानव भूखा। कभी  न अकाल न पड़े सूखा। बिन तेरे माता, जीवनयापन कौन करे। मत रो धरा मत रो धरा____ लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीन...
डॉ. अमिता नीरव को कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार
साहित्य समाचार

डॉ. अमिता नीरव को कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार

इंदौर। कथाकार एवं कहानीकार अमिता नीरव को प्रतिष्ठित कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें उनकी कहानी "झरता हुआ मौन' पर पाठकों के अभिमतों के आधार पर प्रदान किया गया है। साहित्यिक पत्रिका कथाबिम्ब में छपी इस कहानी पर देश भर के सुधि पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। अमिता नीरव की कहानियां देश-विदेश की सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं यथा हंस, पाखी, नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी इत्यादि में प्रकाशित हुई हैं। आपका एक कहानी संग्रह "तुम जो बहती नदी हो" भी प्रकाशित हो चुका है, जिसे बेस्ट सेलर घोषित किया गया है। इसके पूर्व प्रतिलिपि पत्रिका द्वारा अमिता नीरव को देश के २५० प्रतिष्ठित रचनाकारों में सम्मिलित किया गया है। अमिता नीरव के दो उपन्यास एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। कमलेश्वर कथा पुरस्कार मिलने पर देश भर के साहित्यकारों ने अमिता नीरव को बधाई दी है।...
आश
लघुकथा

आश

============================== रचयिता : रीतु देवी चाची जोर, जोर से रोए जा रही थी, "अब मैं किसके सहारे रहूँगी? जीवन का अंतिम आश का धागा भी टूट गया। मंगला ग्वालिन लड़की को भगाकर ले गया। अब दिल्ली से कभी नहीं आएगा।" "हमलोग आपके साथ हैं। आपकी हर मुसीबतों को हंँसते-हँसते सुलझा देंगे। मंगला आपका सच्चा लाल है, अवश्य आएगा। पड़ोस की औरते चाची की आँसू पोछते हुए बोली। रो-रोकर चाची आँखें फुला ली। आपस में सभी औरते बात कर रही थी,  बेचारी चाची, किस्मत में ही हर्ष के क्षण विधाता नहीं लिखे हैं। मंगला जब छ: महीने का था तब ही पति का स्वर्गवास कैंसर बीमारी से हो गया। वह खुद को बहुत मुश्किल से संभालकर मंगला का पालन-पोषण की थी। मंगला चाचाजी की जीने की आश था, वह भी छोड़कर बिन कहे लड़की के साथ भाग गया।" "हाँ बहन, आज के बच्चे माता-पिता के ममता, प्यार को महत्व नहीं देते।" पड़ोस की सुषमा बहन बोली। लेखीका परिचय :-...