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आँखों के आंसू
कविता

आँखों के आंसू

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" बेटी के ससुराल में पिता के आने की खबर बेसब्री तोड़ देती बेटी की आँखे निहारती राहों को देर होने पर छलकने लगते आँसू दहलीज पर आवाज लगाती पिता की आवाज -बेटी रिश्तों, काम काज को छोड़ पग हिरणी सी चाल बने ऐसी निर्मल हवा सूखा देती आँखों के आंसू लिपट पड़ती अपने पिता से रोता - हँसता चेहरा बोल उठता पापा इतनी देर कैसे हो गई समय रिश्तों के पंख लगा उड़ने लगा मगर यादें वही रुकी रही मानो कह रही हो अब न आ सकूंगा मेरी बेटी मगर अब भी आँखे निहारती राहों को याद आने पर छलकने लगते आँसू दहलीज पर आवाज लगाती पिता की आवाज -बेटी अब न आ सकी पिता की राह निहारने के बजाय आकाश के तारों में ढूढ़ रही पापा कहते है की लोग मरने के बाद बन जाते है तारे आंसू ढुलक पड़ते रोज गालों पर और सुख जाते अपने आप क्योकि निर्मल हवा कभी सू...
ऐसे थे दासाब
कविता, स्मृति

ऐसे थे दासाब

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे प्रस्तुत रचना मैंने “पिता दिवस” पर अपने ससुर जी स्व.पं.नारायण राव जी दुबे, जिन्हें हम दासाब कहते थे, की स्मृति में लिखी है। मेरे ससुर जी मां दुर्गा के अनन्य भक्त रहे। उनका जन्म दुर्गा अष्टमी को हुआ और दुर्गा अष्टमी को ही वे इच्छा मृत्यु को प्राप्त हुए। इन्दौर, उज्जैन और देवास जिले के लगभग ४०-५० गांवों में वे कर्मकाण्ड के साथ जीवनपर्यन्त भागवत प्रवचन करते रहे। उनके जीवन से जुडे एवं इस रचना में समाहित, उन संस्मरणों को प्रत्यक्ष देखने समझने का अवसर तो मुझे नहीं मिला। लेकिन जो कुछ मुझे इस परिवार में आकर देखने-सुनने को मिला उसी के आधार पर यह कविता मेरी उनके प्रति स्वरचित श्रद्धांजली है। जब दासाब भागवत प्रवचन कर लौटते खादी का धोती कुर्ता पहने दिखते थे तालाब के पार हम पगडंडी-पगडंडी दौडते हो लेते थे उनके सा...
पिता
कविता

पिता

===================================================== रचयिता : संगीता केस्वानी निशब्द पर्दे की ओट से झांकते है पिता, नन्ही हथेलियाँ थाम बादलों के पार ले जाते है पिता, ना लोरी की थपकियों में, न रोटी के कोर में, ना इंतेज़ार की टकटकी में होते है पिता, की थाली के व्यंजनों को सजाने में व्यस्त होते है पिता, न आरती के दिये में, न रोली में, ना तावीज़ में होते है पिता, ना ममता में, ना वात्सल्य के स्पर्श में जुड़े होते है पिता, पहुंचाए मुझे अर्श पे इसके जिम्मेदार होते है पिता, तन कोख से जोड़े, लहू से सींचे है माँ, चिंता से परे, सोच -समझसे सींचे है पिता, ईंट-पत्थर के मकान की विशाल  अम्बर सी छत है पिता, गिद्दों की दुनिया में देखो सुरक्षा का वटवृक्ष है पिता, माना कठोर नारियल से होते है पिता, मगर नन्ही बिटिया के छूते ही भावुक होते है पिता, दामन में अश्कों को समेटे रहते है पिता, मगर बिटिय...
माँगे
कविता

माँगे

======================= रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर हक के लिए आवाज उठाया तो सही, आवाज में हमारे वजनदारी चाहिए। देश हमारा प्यारा, श्रेष्ठ और सच्चा है, बस देशवाशियों में भी ईमानदारी चाहिए। भ्रष्टाचार अभी चरम सीमा पर है, बस हमें सच्चे अधिकारी चाहिए। आरोपियों को कड़ी-से-कड़ी सजा मिले, जल्द-से-जल्द हमारी माँग पूरी चाहिए। आरोपियों को सजा दे सकें हम, हमे भी ये हिस्सेदारी चाहिए। सारे-के-सारे देशवासी एकजुट हो, अब नही हमें वो गद्दारी चाहिए। हम किस तरह सुरक्षित रह सकते हैं, इस बात की हमें समझदारी चाहिए। अपराधों को खत्म करते हुए, भारत माता हमे अब प्यारी चाहिए। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन - १७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प...
मसाज
कविता

मसाज

============================================================= रचयिता : शशांक शेखर तुम गए सुबह और दिन गए और हम ओस बन कर घास पर बिछ गए और हम आसमान से टपकते रहे आँसू बनकर और हम आज भी बारिश की बूँदे छतरी से टकराती हैं गीत कोई तुम्हारे नाम की गाती हैं और हम भागते हैं यहाँ से वहाँ तुम्हारी तलाश में और हम सायों को पकड़ते हैं जैसे चिढ़ा कर हमें तुम चुप गयी हो कहीं ओट में और हम उँगलियाँ शाम की थामे हुए पुकारते हैं तुम्हें मासूम का चेहरा तुम्हारा आवाज़ देता है हमें और दूर से धड़कन अपनी आप ही सुनते हैं और हम   लेखक परिचय :- आपका नाम शशांक शेखर है आप ग्राम लहुरी कौड़िया ज़िला सिवान बिहार के निवासी हैं आपकी रुचि कविताएँ आलेख पढ़ने और लिखने में है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
सिर्फ हम
लघुकथा

सिर्फ हम

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर आज उमा जीवन के अंतिम पड़ाव के साथ आश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। कल ही उसका चश्मा टूट चुका था। दो दिनों से अपनी समस्या को आश्रम संचालक को बयां कर चुकी थी। किसी के पास इतना समय नही था। कि उसकी समस्या का समाधान करें। कमजोर आँखों से वह उठी। धुंधलाई नजरो से अपने जर्जर शरीर को संभालते हुए बाहर आई। अभी कुमुद ने देखा की बिना चश्मे से उमा को देखने मे परेशानी हो रही हैं, तभी कुमुद ने आगे हाथ बढ़कर उसको सहारा दिया। ओर मुस्कुराती हुई "बोली उमा अब  यहाँ किसकी आस रखती हो  हमारा यहाँ कोई नही है, जब तक हम यहाँ है, हमे ही एक दूसरे का साथ  देना होगा। कहकर अपने को उम्र से कम समझकर उसका हाथ थाम दोनों बिना दाँतो के एक प्यारा सा ठहाका लगा उठी। दोनों को मुस्कुराहट बहुत ही प्यारी ओर सलोनी लग रही थी। परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर...
सुरभि
लघुकथा

सुरभि

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका बहुत भीनी खुशबू आ रही है, मां आपने फिर क्यारी में कोई महकने वाले फूलों की कलम लगाई है। घर की दहलीज पर कदम रखते ही बिटिया सुरभि ने अपनी मां की क्यारी में लगे पुष्पों को निहारा। सुरभी आते ही बस दौड़ पड़ी तुम बगीचे में। चलो आओ घर के अंदर। मां बेटी बहुत दिनों के बाद मिली थी। पहले बेटे पढ़ने जाते थे,अब बेटियां भी पढ़ने के लिए की साल बाहर रहती है तो घर आना जाना कम होता है। सुरभी अपनी पढ़ाई के दौरान छुट्टियों में आई थी। कुछ दिन रहकर सुरभि अपनी महक बिखकाकर फिर लौट गई। मां हर पौधे को जतन से रखती, उसे हर पौधा अपने बच्चों सा लगता और पौधै भी जैसे मां को देख झूमते। पढ़ाई पूरी हुई, सुरभि के लिए लड़का पसंद किया गया। आपसी रजामंदी पर शादी हो गई। लेकिन सास, ससुर जेठानी, पति सभी का व्यवहार सुरभि के नाजुक मन सा कहां था, वह तो सब जैसे...
वो पालता है
कविता

वो पालता है

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =================================== कर्ज पर कर्ज लेकर बाप जिस औलाद को पालता है      वही पिता बनते ही  अपने पिता को दुतकारता है कितनी दुश्वारियाँ सहकर वो      उसे पालता है लेकिन बुढापा के समय वही बेटा बाप से मुहँ    क्यों मोड़ता है आज तक बाप से सीखने वाला    कल तक अन्जाना था वही आज़ लौटकर बाप को     ज्ञान बाँटता है कुछ औलादे पैरों पर   खड़े होते ही अपने माँ-बाप अशब्द     बोलते हैं वक्त के बिगड़ते ही (गर्ज़) बाप से रिश्ता जोड़ता है लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता...
वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल
आलेख, नैतिक शिक्षा, स्मृति

वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" बालमन के भी स्वप्न है, वे भी कल्पना लोक में विचरण करते है उनके भी मन मे लालसा के साथ जिज्ञासा होती है। बच्चों के बचपन को पुस्तकों, ग्रीष्म कालीन,शीतकालीन शिविरों में झोंका जा रहा है। छुट्टियां भी कम होती जा रही है। प्रातःकाल घूमना, दौड़ लगाना, खेलकूद आदि तो जैसे जड़वत होते जा रहे है। उनकी जगह मोबाइल फोन दूरदर्शन आदि ने ले ली है। वीडियो गेम से खेल की कमी को पूरा किया जा रहा है। इससे एक तेजतर्रार व मजबूत नस्ल की अपेक्षा नही की जा सकती। कमजोर बच्चे भले पढ़ने - लिखने में आगे हो जाये लेकिन उनमें सामान्य ज्ञान का अभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। पहले हम पढ़ाई के साथ पट्टी पहाड़े में पाव, अद्दा, पौन आदि भी सीखते थे। लेकिन आज के बच्चों को यह सब समझ नही आता। आज बच्चों को कोई सामान लाने का कहा जाए तो वह आना कानी शुरू कर देते है या बहाना बना लेते है। जबकि पहले अगर पड़ोसी भी...
रंग बदलती दुनिया
कविता

रंग बदलती दुनिया

=================================================== रचयिता : रुचिता नीमा आज जब आईने में खुद को देखा तो यकीन ही नही हुआ,,, गाड़ी , बंगला सबकुछ था , पर जिसे होना था पास मेरे।।। वो न जाने कहा खो गया था, घिरा हुआ था दूसरों के साये से खुद मेरा साया ही नही था।।। बहुत खोजा उसे लेकिन वो अंत तक नहीं मिला, इस दुनिया की दौड़ में मेने खुद को ही खो दिया।।। अब पाना है बस खुद को छोड़कर बाहर की जंग जीतना है खुद से ही करकर खुद को बुलंद लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
चाँद से चेहरे
कविता

चाँद से चेहरे

============================== रचयिता : रीतु देवी न आए कभी शिकन चाँद से चेहरे पर, देख उसे अंग-अंग होता मेरा तर। मुसीबतें सारी निगल जाऊँ पल भर में बस जाऊँ उसके मन मन्दिर में वारती उस चाँद पर अपना सर्वस्व, बंध गया दिल उससे अपना स्वत्त्व। लगन लगी प्रीतम संग सुबह-शाम, होठों पर रहे सिर्फ उनका नाम, प्रेम रस पी रहे हर्षित हरदम, प्रेम गली मस्त रहे बनकर हमदम। जहां में जाए कहीं भी, सूरज की तपिश न सताए कभी।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कवि...
पेड़ लगाओ – जीवन बचाओ
कविता

पेड़ लगाओ – जीवन बचाओ

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" प्रकृति को सहेजने को अब सब मिलके तैयार हो, विनाश ना हो प्रकृति का यह प्रयास बार - बार हो, जागो सभी बचाओं अब इस सृष्टि के आधार को, पेड़ लगाओ और बचाओ जीवन और संसार को, पेड़ कट रहें है अंधाधुंध अब  तेजी  से   चहुंओर, जंगल करके साफ फैक्ट्रियां लगाने में दे रहे जोर, धुआं निकल रहा है जानलेवा सांस भी लेना है दूभर, पर्यावरण क्षरण की ओर अब  मानव जाएगा  किधर, जिंदगी में जहर घोल रहा प्रदूषण से  मानव  परेशान है, जनजीवन और लोग प्रभावित जंगल खाली सुनसान है, पर्यावरण बचाकर  हमको इस जग  को  बचाना है, वृक्षारोपण करके मानव जीवन को सुखी बनाना है,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म...
विश्व पर्यावरण दिवस
कविता

विश्व पर्यावरण दिवस

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा पेड़ पौधों से हमारी श्वास, इन्हें बचाए रखने का करें प्रयास। प्रकृति का न हो शोषण-दोहन, मिलकर बचाना होगा पर्यावरण। नदी तालाब पोखर जलस्रोत, रखें स्वच्छ रखें ध्यान हर स्तर। अगर,न चिड़िया चहकेगी, न नदियां कल कल गान करेंगी। जीवन बोझ सा बन जाए, उससे पहले जागो। प्रकृति के प्रति कर्तव्य निभाओ, सौर ऊर्जा को अपनाओ। हरी भरी रहे धरा हमारी, जीवन में भी हो हरियाली। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में ...
अपने हुए पराए
कविता

अपने हुए पराए

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा किसको कहें दिल खोलकर सारा जमाना वीरान है जो अपने भी अपने न हुए खुद भी अकेले परेशान है। परेशान यूं ही कब तलक गुजर जाएंगे राहत की सांस आखिर कब तलक ले पाएंगे। बेजार जिंदगी से उम्मीद ही क्या करें पलके की ओट से आखिर कितना छुपाया करें। रुसवाई से से कब तक यूं ही घाव मिलते रहेंगे रुंधे गले से ऐसे ही बिरह के गीत गाते रहेंगे। हम सफाई देते कैसे अपने बेगुनाही के करते रहे भरोसा  अपने उम्मीद ओर खुदाई के। तुम्हारा विस्वास का डगर ही डगमगाता हुआ था पराए पन के अनुभूति ने हमे भी  तोड़ दिया था। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak1...
एक पहल ऐसी भी
लघुकथा

एक पहल ऐसी भी

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे सचिन  का ट्रांसफर पूना हो गया था। एक नये बने काम्प्लेक्स के केम्पस में सचिन ने फ्लेट ले लिया था। जिसमें स्विमिंग पुल, पार्क, बच्चों के लिये प्ले ग्राउंड, झूले, फिसलपट्टी, कम्यूनिटी हाॅल, सभी कुछ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी। सचिन की पत्नि सुचिता और छः साल का बेटा प्रमेय बहुत खुश थे। रोजाना शाम सभी बच्चे पार्क में एकत्रित होकर खेलते। बच्चों की मम्मियों में भी आपसी परिचय अच्छा हो गया था। सुचिता को बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत लगाव था। साथ ही स्वच्छ वातावरण में रहने की वह आदि थी। शाम के समय पार्क में छोटे-बडे़ सभी बच्चे  इकट्ठे होते थे। कुछ बच्चों की मम्मियां बच्चों के खाने-पीने की सामग्री भी अपने साथ लेकर आने लगी थीं। बच्चे प्ले एरिया में कागज व फलों के छिलके फेंक देते! तो सुचिता को यह पसन्द नहीं आता। उसने एक-दो...
कल पेड़ आया था सपने में
कविता

कल पेड़ आया था सपने में

================================================== रचयिता : भारत भूषण पाठक कल पेड़ आया था सपने में एक मेरे आकर वो बोला यूँ मुझसे। मैं एक बात पूछता हूँ तुझसे।। बताना यह तुम सच-सच मुझको। आती कभी दया नहीं तुम सबको।। उखाड़ते हो अंग-प्रत्यंग सब हमारे। मन में आती नहीं यह बात तुम्हारे।। हैं प्राणयुक्त तुम सब की भांति हम सब भी। असहाय वेदना होती है हमें उखाड़ते हो जब भी।। सोचा कभी है तुमने हम हैं तभी तुम हो। गर हम नहीं तो तुम सब भी तो नहीं हो।। जीवित हैं जब हम रहते कितना सुख तुम्हें पहुँचाते। सोचो तुम ही न भला अन्न,जल,छाया कहाँ तुम पाते।। कहाँ बैठकर थककर भला यूँ सुस्ता तुम कभी पाते। बताओ न कहाँ बीतता बचपन तब तुम सबका। कहाँ से मिलते कुछ क्षण वो अति आनन्द का।। सोचो न जीवित थे तो तब भी जीते थे तुम्हारे लिए। आज मर रहे हेैं हम सब जब हरदिन तो तुम्हारे लिए।। वृक्ष लगाएं ..... जीवन बचाएं ..... लेखक ...
सूखा सावन
लघुकथा

सूखा सावन

=========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान आंगन में लगा आम का पेड़ पूरी कॉलोनी में एकमात्र फलदार, छायादार वृक्ष जिसकी छांव में आज भी मां - बाबूजी कुर्सी डालकर हरियाली का आनंद लेते हैं। फ़ल के समय लटालूम आम ना केवल इंसानों को बल्कि परिंदों को भी तृप्त करता है। अल सुबह मिट्ठू, दिनभर गौरैया और कोयल की कूक से आँगन चहक उठता.... तो कभी, गिलहरी की अठखेलियां देख मन का सावन झूम उठता। हरा भरा आंगन अब सड़क चौड़ीकरण की जद में आ गया। कल ही विकास के नाम पर रंगोली डाली थी और कुल्हाड़ी, आरी वृक्ष के नीचे रख गए थे ....सरकारी मुलाजिम। रात भर से पक्षियों का उपवास है, पक्षियों के चहकने और अठखेलियो पर विराम लग चुका, यही नही बादल का एक झुण्ड पड़ोस के मोहल्ले से गुजर गया। अबकी बार लगता है, मां-बाबूजी सूखा सावन देखेंगे, अपने आंगन। लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन...
मैं आजाद हूँ
कविता

मैं आजाद हूँ

============================== रचयिता : रीतु देवी पंछी बन मैं डाल-डाल उड़ती हूँ , प्रगति रथ पर चढ अग्रसर होती हूँ, जमाने की बंदिशें रोक न सकती, पिंजरे में कैद हो न सकती, हिन्दुस्तान देश की मैं नाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। नील गगन को चूमने चली हूँ , ऊँचे शिखर चढने चली हूँ , अनंत शक्ति है मेरे बाँहों में रोड़ें हटाकर आगे बढूँ राहों में घर-आँगन संगीत की मैं साज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। करती रहती हूँ नव-क्रांति की आगाज, संग मेरे है अरबों भारतीयों की बुलंद आवाज, शिक्षा की पाठ पढ लौ जलाने चली हूँ , इंसानियत की पाठ पढने -पढाने चली हूँ , मिली है मुझे तीव्र गति मैं बाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। विचार अभिव्यक्ति करने की मिली है स्वतंत्रता, फूल से अंगार बन करूँगी दमन सभी परतंत्रता , कार्य करने की है मुझमें असीम उर्जा , बनना है मुझे राष्ट्र का नवीन सूर...
पर्यावरण दिवस पर तोहफा
कविता

पर्यावरण दिवस पर तोहफा

================================= रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" इक-दूजे से हौड़ की, खतम् करें यह रेस। पर्यावरण दिवस पर ये, तोहफा दे विशेष।। खाली पड़ी जमीन पर, रोपे इतने झाड़। हरा-भरा हो जायगा, मालवा औ निमाड़।। मानव इस प्रकार चले, जैसे चलते भेड़। एक लगाये पेड़ तो, सभी लगाये पेड़।। किसान से अपील यही, इतने रोपे पेड़। खेतों में छाया रहे, खाली न रहे मेढ़।। 'परिंदा' अब तो बचती, यही आखिरी आस। एक शख्स एक वृक्ष का, नियम बने यह खास।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव...
संगीत
कविता

संगीत

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका जीवन एक मीठी धुन, मधुर संगीत है। प्यार का निर्झर झरना, अनुपम गीत हैं। आओं संवारे प्रेम से यह, फूलों की डलियां। चुन चुन कर इसमें लगाये, प्रेम की कलियां। मनुज जन्म उपहार ईश्वर का, यूं मिलता नहीं। नफरत,धोखे छल, कपट पर नेह की जीत है। जीवन एक मीठी धुन, मधुर संगीत है। प्यार का निर्झर झरना, अनुपम गीत हैं। बजने दो जीवन में, शहनाईयों का गान। भर दो झनकती, मीठी बांसुरी की तान। झूमे गगन, धरा झूमती फूलों की डालियां। अंबर से धरा तक पसरी, प्यार की रीत है। जीवन एक मीठी धुन, मधुर संगीत है। प्यार का निर्झर झरना, अनुपम गीत हैं। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बधेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी)...
आओ बच्चों
कविता

आओ बच्चों

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गोड़ "मीनू माणंक" आओ बच्चो, तुम आज की खुशहाली। आने वाले कल का भविष्य हो।। आस लगाए, तकती तुम्हैं धरती। प्रकृति है, देखो बाहें पसारे।। किया है हमने खिलवाड़ पर्यावरण से। तुम दो सम्मान धरती को हरियाली फैला के।। ओ नौनिहालों, फूलों से करो प्यार। पौधे तुम लगाओ, बारम्बार।। रूठ गई है जो चिरैया हमारी, देख, फल-फूल से लदी डाली वो भी लोट अएगी।। कल-कल करती बहेगीं, जब नदियाँ बूझेगी, तब प्यास धरती की।। मद-मस्त बादल, गरज कर शंखनाद बजाएगें। झूम कर बदली, रिमझिम बूंदों से घूंघरू की झनकार सुनाएगी।। इंद्रधनुषी ये चुनरी सतरंगी। जब चारों ओर छा जायेगी।। रंग-बिरंगें इन फूलों से। वसुंधरा, दुल्हन सी सज जायेगी।। आओ बच्चों, तुम आज की खुशहाली। आने वाले कल का भविष्य हो।।   लेखिका परिचय :-  नाम...
जानलेवा तम्बाकू का सेवन
आलेख

जानलेवा तम्बाकू का सेवन

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" विश्व मे ८० लाख लोग प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन के पश्चात होने वाले असाध्य रोगों की वजह से काल के गाल में समा रहे है, वही भारत देश मे प्रतिवर्ष १० लाख लोग जान गंवा रहे है।       विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ विश्वभर के राष्ट्र और समाजसेवी संगठन तम्बाकू के सेवन से होने वाले रोग और होने वाली मौतों से बचाने के लिए विश्वव्यापी अभियान चलाए हुए है। इतना कुछ होने के बावजूद लोग इस कचरे को खाना नही छोड़ रहे है। इसके बनाये उत्पादों पर स्पष्ट चेतावनी लिखी होने के पश्चात भी इसका सेवन करने वालों की संख्या में कमी ना के बराबर हो रही है।      मैं दो घटनाएं और तम्बाकू के उत्पादन के बारे में बताने जा रहा हूँ, घटनाएं तो दिलचस्प है पर उत्पादन गन्दगी से सराबोर......        मैं कक्षा तीसरी का छात्र था, मेरे समाज बन्धु और पुराने घर के सामने वाले जो मेरे साथ पढ़ रहे थे, मुझे बड़े प्य...
तेरे बिन
कविता

तेरे बिन

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =================================== कितनी राते कितने दिन   मैं जिया हूँ तेरे बिन मिलती थी तन्हाई मुझसे      मेरे यारा जब         तेरे बिन होकर द्रवित तन-मन मेरा बहस खुद से कर लेता था बनकर के लहू के आँशू मेरा दिल रो उठता था         तेरे बिन ख्वाब सजाए वो बैठा था कई भोरों से शामों तक शीशा जैसी बिखर गई थी    उसकी खामोशी फिर            तेरे बिन कई सपनें व वादे      टूटे थे लाखों पथिक निकल     चुके थे उसके दिल की राहें सूनी थीं        तेरे बिन लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को न...
विछोह की पीड़ा
कविता

विछोह की पीड़ा

============================================ रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर पता नही किस शहर में, किस गली तुम चली गई। मै ढूँढ़ता रह गया,तुम छोड़ गई। पता नही हम किस मोड़ पर फिर कभी मिल पाएँगे। इस अनूठी दुनिया में फिर किस तरह से संभल पाएँगे। पता नही तेरे बिन हम, जी पाएँगे या मर जाएँगे। हम बिछड़ गए उस दिन,जिस दिन तुम मुझसे मिलने वाली थी मै तुमसे मिलने वाला था। इस अंधी दुनिया ने कभी हमको समझा ही नही। काश समझ पाती दुनिया, तो हम कभी बिछड़ते ही नही। प्यार करते थे हम तुमसे, पर कभी कह ही न पाएँ। आज भी सोचता हूँ की, काश वो दिन वापस लौट आए। बहुत समय लगा दिया हमने इजहार में। कब तक भटकेंगे हम तेरे इन्तजार में। हम बिछड़ गए थे उस दिन,जिस दिन, तुम मुझसे मिलने वाली थी, मै तुमसे मिलने मिलने वाला था। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला...
पानी की महामारी
लघुकथा

पानी की महामारी

========================================================== रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शहर में पानी के लिए त्राहि-त्राहि हो रही थी सप्ताह में एक दिन नल आते थे लोग मीलों दूर लंबी कतार बनाकर पानी के लिए भागते नजर आते थे। वह बड़े घर की बहू थी नौकर चाकर ठाट बाट सब कुछ था, महलनुमा घर के पिछवाड़े में गहरा कुआं था जिससे पाइपलाइन जोड़कर घर के सभी नलों में पानी आता था उन्हें पानी की कमी कभी न होती किंतु इस बार तो उसके कुएं से भी लोग पानी ले जाने लगे, धीरे धीरे वह भी सूख गया। अब तो पाइप सेभी पानी नहीं चढ़ता उन्हें भी पानी की परेशानी होने लगी किंतु अब तो गजब हो गया जिसे कुएं से पानी खींचना आता था वह नौकर बीमार पड़ गया। तीन दिन बाद हालात ये थे कि घर में केवल दो लोटे पानी बचा था, मालकिन ने दो दिन का निर्जला व्रत रख लिया, क्योंकि बच्चों को पानी बचाना जरूरी था किंतु वह भी खत्म हो गया। सड़क प...