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मातृत्व
लघुकथा

मातृत्व

मातृत्व रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== अपनी बेच में टॉप करने के कारण आज काॅलेज के दिक्षांत समारोह में शिवांश का विशेष सम्मान होने वाला  था। परिवार  के सदस्यों को भी इस कार्यक्रम में आमन्त्रित किया गया था। शिवांश जब पाँच वर्ष का था तब मां ललिता का देहांत हो गया था। पिता संदीप ने रिश्तेदारों के दबाव में आकर अनमने मन से दूसरी शादी ‘सुजाता’ से कर ली थी। सुजाता भले ही सौतेली मां थी, लेकिन उसकी बदोलत ही आज शिवांश डाॅक्टर बन पाया था। संदीप को पी एम टी की परीक्षा की फीस भरने के लिये सुजाता ने ही मनाया था। शिवांश के माता पिता को भी आज के समारोह में सम्मान मिलना था। सुजाता सोच रही थी कि स्टेज पर बेटे शिवांश के साथ संदीप और स्वर्गीय ललिता का ही नाम पुकारा जायेगा। एकाएक उसके कानों में आ...
आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है…
कविता

आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है…

आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है... रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ===================================================================================================================== आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है... कॉलेज के गलियारे में बैठ ठिठोली करना चाहता हुँ, बिना पूछे दोस्त की टिफिन को चट करने का मन करता है, बेवजह झगड़ कर फिर माफी मांगने को जी करता है, क्लास की पहली बेंच पे अधिकार जमाने को जी करता है। आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है... सब व्यस्त होंगे अपने दो पल की जिंदगी में, छोटा सा लमहा खरीद कर बाँट दूँ उन दोस्तों को, जिसमें सब एक साथ मिलकर खिलखिलाए, ऐसे वख्त को बांधने को जी करता है। आज पुराने दोस्तों से मिलने को जी करता है... क्रिकेट के मैदान में कि मैं आज खेलूँगा या नही, ऐसे कोने में रूठ कर खड़ा होने को जी चाहता है, मैच हारने पर एक दूसरे...
क्या है मेरा दोष ?
कविता

क्या है मेरा दोष ?

क्या है मेरा दोष ? रचयिता : मनोरमा जोशी ===================================================================================================================== व्यथा से परिपूर्ण, श्वेत वस्त्रों में बंधी, एक असहनीय दुःख को उर मे समेटे, जी रही संसार में बस एक याद के सहारे, बच्चों के खातिर, एक रोटी के लिए, रहती हूँ सहमी, सास के द्धारे, है बढ़ा कठिन पल, क्या था कल, और आज क्या हो गया सब कुछ तो जल गया, कुछ बाकी न रहा। रह गयी तो बस  एक वीरान सी जिंन्दगी। करता हैं समाज मुझसे घृणा, इसमें क्या हैं मेरा दोष ? इस समाज में मेरा कोई अस्तित्व नहीं ,कोई पहचान नहीं। क्या है मेरा दोष ? लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्य...
मां
लघुकथा

मां

मां रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" ===================================================================================================================== जंगल में अपनी मां के साथ किलोल करते हुए हिरण शावक बहुत दूर चला गया था। हिरणी जितना उसका पीछा करती, वह उतना ही आगे बढ़ता जाता। अंत में वह एक ऐसे स्थान पर पहुंच गया जहां एक शेरनी आंखें बंद कर लेटी हुई थी तथा अपने शावकों को दूध पिला रही थी तथा ममता वश उन्हें चाटे भी जा रही थी। अबोध हिरण शावक को क्या पता था कि "शेर और हिरण का कोई मिल नहीं होता,..... यदि होता भी है तो...... "बस भूख और भोजन का!" जब हर ने उसका पीछा करते-करते वहां पहुंची तो यह दृश्य देख वह आतंकित हो उठी। हिरणी को समझते देर न लगी कि "अब तो उसके बच्चे की जीवन लीला कुछ ही क्षणों में समाप्त होने वाली है!" यह सोच कर वह अंदर तक हिल गई थी। ..... "परंतु.. कर भी क्या सकती थी?" अब वह...
जरा मरकर देखें
कविता

जरा मरकर देखें

जरा मरकर देखें रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== अब जरा मरकर देख लेने दे मुझे कैसा लगता है अहसास कर लेने दे मुझे मैं भी तो जानूँ इंशानियत क्या है, मरने की इजाजत जरा सी दे दे मुझे, बनकर हवा आसमान में उङ लेने दे मुझे, नए जीवन में पिछले जन्म की कुछ तो यादें पास रखने दे मुझे, उस स्वर्ग की खबरें कुछ तो नर्क में बताने दे मुझे अब जरा मरकर देख लेने दे मुझे... लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग...
समंदर
कविता

समंदर

समंदर रचयिता : अर्चना मंडलोई ============================================================================================== क्या समां है, कि बन गया एक समंदर और। उभर आये जो आँसू तो ,पलको से बाँधा है, एक दरिया और। दोस्त मेरा जब सरे शाम रूठता है एक तूफान जनम लेता है ,मेरे अंदर और। घुटन फीक्र बेवक्त की आवाजे इसके अलावा होता नही अंदर मेरे कुछ और। सुबह की पहली किरण,बन जाए कब ख्वाब ये जिन्दगी का बसेरा है ,सहर कर ले रात भर और। तारीफ सुन जिन्दगी़ इठला गई ,मूझे देख कतरा सी गई , जिस नज़र से मैने उसे देखा,नजर आती गई दूर और। लेखिका परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधि...
प्यार जब पास होता है …
कविता

प्यार जब पास होता है …

प्यार जब पास होता है रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) ===================================================================================================================== यही तो स्वर्ग होता है,फूलों से करें बातें। दिन में काम हों ज्यादा,बातों में कटें रातें। तीरथ सब लगें फ़ीके,प्रकृति के पास जाते हों। गीत में मीत रहता हो,सुनकर कुछ सुनातें हों। अंतिम बार जब भगवन मांगेगा हिसाबों को। थोड़ी देर पढ़ लेना मेरी ,,,,,,उन किताबों को। मोहब्बत के बिना जीवन, का कोई सार ना होता। कुछ भी बन न पाता मैं, अगर ये प्यार ना होता। तुम्हारे मुस्कराने से,बस ये अहसास होता है। लिखता ही रहे बिजू,प्यार जब पास होता है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत 36 वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य ...
गीत
गीत

गीत

गीत रचयिता : मोहम्मद सलीम रज़ा ===================================================================================================================== हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए oo मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें रंगीन ज़माना क्यूँ महकी हुई क्यूँ सांसें हूँ दूर मय-ख़ाने से फिर भी क्यूँ ख़ुमार आए oo बुलबुल में चहक तुम से फूलों में महक तुम से तुम से ये बहारे हैं सूरज में चमक तुम से रुख़्सार पे कलियों के तुम से ही निखार आए oo बस इतनी गुज़ारिश है बस इतनी सी चाहत है जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मोहब्बत है उन चाहने वालो में मेरा भी शुमार आए oo गुलशन में बहारों की इक सेज लगाया है फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है ऐ बाद-ए-सबा कह दे अब जाने बहार आए oo मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें जीवन के हर इक लम्हें खुशिओ...
फर्क
लघुकथा

फर्क

फर्क रचयिता : सुषमा दुबे ===================================================================================================================== बेटी के साथ हुई ज्यादती कि रिपोर्ट लिखवाने पहुचे पिता -पुत्री से थानेदार ने उल जुलूल प्रश्न करना शुरू कर दिए। लड़की का पिता ने कई सवालों के जवाब में सर झुका लिया। फिर शुरू हुआ प्रवचन का सिलसिला, अरे आजकल कि लड़कियां मौज मस्ती के लिए लड़को से दोस्ती करती है, जब बात नहीं बनती इल्जाम लगा देती है............ कहकर एक लम्बा चौड़ा लेक्चर दे दिया। दोनों बाप-बेटी सर झुकाये उसकी बाते सुनते रहे। तभी थानेदार लड़की के पिता की और मुखातिब होकर बोला -"धिक्कार है तुम्हे जो ऐसी बेटी को जन्म दिया, इसकी जगह यदि मेरी बेटी होती तो तो मैं पुलिस थाने में आने कि जगह उसे आग लगा कर ख़त्म कर देता। अब तक चुपचाप सुनती रही लड़की ने मुहं खोला वह थानेदार से बोली -"सर एक बात पूछू...
आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”
आलेख

आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”

आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का "अन्तिम-संस्कार" रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ===================================================================================================================== विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी धर्मो को मानने वाले लोगों का बसेरा है एवं सभी जातियों व संप्रदायों के अनुयायी यहाँ निवासरत है। भारत देश प्राचीनकाल में 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था क्योंकि यहाँ पर निवासरत समस्त लोगो में एकता और एकजुटता के प्रमुख गुण सहजता से मिलते थे। लोगो के लिये उनके संस्कार और संस्कृति व सभ्यता सबसे महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी थे। उस समय लोगों में सामजिकता और सामंजस्यता के बड़े अद्भुत नजारें देखने को मिलतें थे। उस समय की लोगों के मन में दया, प्रेम एवं परोपकार के भाव बड़ी ख़ूबसूरती से विद्यमान होते थे। सभी एकजुट होकर एक दूसरे की मदद के लिये तत्परता से आगे आते...
गीतों चलन होता अमर 
आलेख

गीतों चलन होता अमर 

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ===================== गीत  की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन  की मधुरता  कानो  में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों  की राग, संगीत  जरिए  घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी, रेडियों, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान होता का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी - प्रे...
उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो
आलेख

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो रचयिता : डॉ सुरेखा भारती ===================================================================================================================== अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है सनातन धर्म में उत्सवों की एक श्रृंखला होती है। दीपावली, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, नववर्ष प्रतिपदा, श्रीरामनवमी जितने भी उत्सव आते हैं, उन्हे धर्म से, आध्यात्मिकता से जोड़ा गया है। इसी सच्चाई के लिए यह घोषणा की गई की मनुष्य जाति एक है। जो भौतिकवाद से जुडे़ हैं, वह नहीं कहतें कि हम एक है। क्योकि वहाँ एक-दूसरे का स्वार्थ आता हेै। जिस मंच से, जिस धरातल से यह बोला गया है कि मनुष्य जाति एक है वह आध्यात्मिक धरातल है। अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है और भौतिकता व्यक्ति को तोडती है। आधात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है आध्यात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है। आध्यात्मिक व्यक्ति समाज म...
निश्चिंतता
लघुकथा

निश्चिंतता

निश्चिंतता रचयिता :  कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== मनन शादी के बाद पहली बार पत्नी माला को लेकर लखनऊ से भोपाल आ रहा था। उसने पहले से किराये का घर लेकर गृहस्थी की आवश्यक सामग्री जुटा रखी थी। मकान के ऊपरी तल पर मकान मालिक सिंह दम्पती रहते थे। उनकी एक ही बेटी थी जो शादी के बाद दिल्ली में सेटल थी। मनन ने माला को शादी के पहले बता रखा था कि पापा के बिजनेस के कारण माँ और पापा भोपाल में हमारे साथ नहीं रह पायेंगे। मेरा ऑफिस रहेगा, तुम्हें दिनभर घर में अकेले ही रहना होगा। माला समझदार थी, उसने सहजता से आने वाली परिस्थिति को स्वीकार कर लिया था। फ्लाईट में बैठे मनन सोच रहा था कि संयुक्त परिवार में पली-बडी माला, दिनभर अकेले कैसे रहेगी ? वह सोच में डूबा हुआ था कि फ्लाईट भोपाल पहुँच गई। मनन ने ...
गणित संग मेरी वार्तालाप
कविता

गणित संग मेरी वार्तालाप

गणित संग मेरी वार्तालाप रचयिता : भारत भूषण पाठक ===================================================================================================================== हे गणित तू फिर आ गयी । काली घटा बन कर मुदित मन को आह्लादित करने।। परन्तु कोई बात नहीं आ ही गयी है तो मित्रवत ही रहना। था बचपन से अपन दोनों का एक दूसरे को मुश्किल सहना।। अब तो मेरे उम्र का लिहाज कर। शिक्षक हूँ मैं  आज अब तो कुछ समझा कर।। मत ला वो बड़े-बड़े सवालों का महासागर । करने में पार आती थी जिसमें समस्याएं अपरम्पार ।। ऐ गणित अब कितना रुलाएगी। क्या होगा ऐसा कोई दिन जब तूँ समझ आ जाएगी ।। अभी  भी  त्रिभुज के सर्वांगसम होने का भय बड़ा सताता है। ले यह जान और जान के खुश हो जा। मुँह मोड़ ले या प्रेयसी बन जा।। क्यों एक भयकारी पत्नी सम प्रतीत होती है। चाहता हूँ मनाता हूँ फिर भी  रुठती ही जाती है।। कहता ह...
कविता

शाश्वत सत्य

शाश्वत सत्य रचयिता : महिमा शुक्ल ===================================================================================================================== जो सम्पूर्ण विश्व का परमात्मा है, वहीं हम-तुम में समाया है। जो जल में हैं, जो थल में है, अम्बर में भी है, और सागर में है। हर काया में हर कण कण में, हर जीव में, हरेक जन्तु में। हर उस पेड़ में, हर उस लता में जो प्रकृति की एक सुन्दर रचना में। सूरज, चाँद और सितारो में वो रोशनी है उस जीवात्मा की जो कभी जलता नही कटता नही वही अमर और अजर आत्मा है। प्रकृति का हर रूप सत्य है। शिव सा मृत्युंजय और सुंदर भी है। लेखिका परिचय :-  महिमा शुक्ल हिंदी साहित्य के परिवार से पूर्व प्राध्यापक (लोक प्रशासन एवं पत्रकारिता) सामाजिक कार्यों और संस्थाओं से सम्बंधित लिखने पढ़ने की अभिरुचि आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के स...
अपने घर सा ना ही कोई द्वार देखा है 
कविता

अपने घर सा ना ही कोई द्वार देखा है 

********** रचयिता : वंदना शर्मा   अपने घर सा ना ही कोई द्वार देखा है   घूम-घूम  कर मैने  संसार देखा है | पर अपने घर सा ना ही कोैई द्वार देखा है || पूरब से लेकर पश्चिम तक | उत्तर से लेकर दक्षिण तक| बस एक सा ही हाल हर ओर देखा है ||.............||1|| घर के अँगने  से सड़कों तक | धरती से लेकर अम्बर तक | रोते ही सबको मैने हर हाल देखा है ||........||2|| कुटिया से लेकर बँगले तक | नीडो़ से लेकर महलों तक | बस सबको ही जाने क्यों परेशान देखा है ||......||3|| स्कूल से लेकर संसद तक | चपरासी  से  मंत्रीजी तक | सबको अपनी ही जेबों  की चिंता करते देखा है ||..............||4| सारे जग में घूम -घूम कर के मैने ये जाना है | अपने अनुभव के दम पर मैने तो ये पहिचाना है | बस माँ के आँचल में ही सच्चा प्यार देखा है ||...............||5|| लेखीका परिचय :-  नाम - वंदना शर्मा आत्मजा श्री देवकी नंदन शर्मा जन्म - ...
जीवन हो राष्ट्र समर्पित
कविता

जीवन हो राष्ट्र समर्पित

जीवन हो राष्ट्र समर्पित रचयिता : रीतु देवी ===================================================================================================================== हमारा जीवन हो राष्ट्र समर्पित, तन, मन, धन सब अर्पित। वीर शहीदों भाँति करें राष्ट्र प्राण न्यौछावर, राष्ट्र हित कार्य कर, लाऐं खुशियाँ बहार। हमारा जीवन हो राष्ट्र रक्षा हरदम तैयार, बुरी नजर डालने वालो को फोड़ दे आँखें हर बार। भूखे भेड़ियों को भगाए सात समुंदर पार, साजिश रचनेवाले सत्ता की कुर्सी लोभियों को करें मिलकर हम बारम्बार तिरस्कार। याद रखकर शहीदों की जीवन कुर्बानी, राष्ट्र प्रेम कर दे बारम्बार जीवन बलिदानी। हमारा जीवन हो राष्ट्र समर्पित, तन, मन, धन सब कुछ अर्पित।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय ...
बैरी जग में
कविता

बैरी जग में

बैरी जग में रचयिता : मित्रा शर्मा ===================================================================================================================== बैरी जग में आने के बाद कौन भला देखेगा तुम्हे, नियति है यह समझे नही तुम आने को ब्याकुल हो गए। दुनिया की रीत यही है रोते देख और रुलाना रस्म यही सोचकर अपने मनको समझाना। जब खबर लगेगी दुनिया को टूट चुके हो भीतर से ओर तोड़ेंगे चोट करेंगे वॉर करेंगे शिद्दत से। सच की नाव हिलती पर कभी डूबती नही है यह सोचकर अपने मनको समझाना रोना नही है परिचय :- मित्रा शर्मा महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० ...
बिना बेटियों के
कविता

बिना बेटियों के

============================ डॉ. बी.के. दीक्षित बिना बेटियों के घर सूना तो होता है। उत्साह हमारा देख इन्हें,दूना होता है। रूह तलक ठंडी ठंडी है,,,,,,,बेटी की बातों से। सो जाऊँगा आज बेफिकर,जगा हुआ हूँ रातों से। रीति पुरानी सदियों की,क्यों कमतर बेटी मानी जाती? जिम्मेदारी में हर बेटी,,,,,,इक़ तरुवर सी जानी जाती। नहीं सुधार हुआ दुनिया में,महिलादिवस मनाते क्यों? हक़ होना बेटी पर कितना,कुछ लोग हमें समझाते क्यों? संस्कार ,व्योहार ,प्यार और अदब ज्ञान की खूबी है। खुशियों भरा खज़ाना बेटी,वाकी दुनिया झूठी है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के ...
मेरे अधूरे स्वप्न
कविता

मेरे अधूरे स्वप्न

मेरे अधूरे स्वप्न रचयिता : रुचिता नीमा ===================================================================================================================== कैसे बया करु मैं अपने उन जज्बातों को जो तूफानो से उठा करते है हरदम कुछ कर दिखाने को, और फिर सब अंतर्मन को ध्वस्त करके वही शांत हो जाते हैं जब भीतर जाकर के देखा तो पाया कुछ अनकहे, कुछ ख्वाब मे ही, कुछ अधूरे , कुछ खाक से ही दफन हो गए कई मेरे अरमान अकसर और हम सम्हल ही न पाए कि खुद को दे सके कोई अवसर, डूब ही गए कई दिवा स्वप्न मन के तूफानों की गहराई में, जो सँजोये थे हमने भी कभी आशाओं की अंगड़ाई में, अबकि जो तूफान थम गया , नए स्वप्न उदित होने लगे, मेरे मन की डाली पर फिर से नव कोपल उगने लगे अब फिर से नव पुष्प खिलेंगे नव स्वप्नों से महक उठेंगे मेरे मन की बगिया में आशा की कोयल चहकेगी नव जीवन की बेला महकेगी लेकिन नव त...
कैसे बांटोगे ?
कविता

कैसे बांटोगे ?

कैसे बांटोगे ? रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" ===================================================================================================================== जमीं बांट लिये-आसमान कैसे बांटोगे ? धर्म बांट लिये - भगवान कैसे बांटोगे ? ग्रंथ बांट लिये - अरमान कैसे बांटोगे ? घर बांट लिये - मेहमान  कैसे बांटोगे ? डिग्री बांट लिये- सम्मान कैसे बांटोगे ? संतान बांट लिये - श्मशान कैसे बांटोगे ? शब्द बांट लिये- जबान कैसे बांटोगे ? वस्त्र बांट लिये -गिरेबान कैसे बांटोगे ? नाम बांट लिये- पहचान कैसे बांटोगे ? जख्म बांट लिये -निशान कैसे बांटोगे ? पानी बांट लिया - तूफान कैसे बांटोगे ? परिवार बांट लिया-दिलोजान कैसे बांटोगे? साज बांट लिये - स्वरगान कैसे बांटोगे ? परिंदे बांट लिये - उड़ान कैसे बांटोगे ? लेखक परिचय : -  नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा ...
दबी आवाजे
कविता

दबी आवाजे

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" कौन उठाए आवाज समस्याओं के दलदल  भरे हर जगह रोटी कपडा मकान का पुराना रोना रोने के गीत वर्षो से गा रहे गुहार की राग में भूखे रहकर उपवास की उपमा ऊपर वाला भी देखता तमाशे दुनिया की जध्धो जहद जो उलझी मकड़ी के जाले में फंसी ऐसे जीव की हालत जिसे निचे वाला भले ही पद बड़ा हो सुलझा न सका वो ऊपर वाले से वेदना के स्वर की अर्जी प्रार्थना के रूप में देता आया अपने आराध्य को धरा पर कौन सुने गुहार जैसे श्मशान में मुर्दे को ले जाकर उसकी गाथाएं भी श्मशान के दायरे में हो जाती सिमित भूल जाते इंसानी काया की तरह हर समस्या का निदान करना परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- 2-5-1962 (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व ...
वक्त
लघुकथा

वक्त

वक्त रचयिता : माधुरी शुक्ला दसवीं कक्षा में पहुंचे पोते मनु के बदले रंग ढंग को दादा ब्रजकिशोर की बूढ़ी और अनुभवी आंखों ने मानो पढ़ और समझ लिया है। फिर कल उसे मोहल्ले के बिगड़ैल लड़कों के साथ घूमते  देख उनकी फिक्र बढ़ गई है। ब्रजकिशोर बेटे दिनेश से कह रहे हैं सिर्फ कमाने में ही मत लगा रहा कर घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान दे। मनु की फिक्र भी किया कर वह बड़ा हो रहा है और गलत संगत में भी पड़ता दिखाई देने लगा है। उनका इतना कहना था कि बहू सरिता बरस पड़ती है बाबूजी की तो पता नहीं क्यों मनु से आजकल कुछ दुश्मनी हो गई है। वह कुछ भी करे इन्हें गलत ही लगता है। यह सुन ब्रजकिशोर खामोश हो जाते हैं। जानते हैं अब कुछ बोले तो बहस हो जाएगी। इस बीच दिनेश ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगता है खूंटी पर टंगा मनु की पैंट गलती से उससे नीचे गिर जाती है। जब पैंट  टांगने लगता है तो जेब से सिगरेट का पैकेट बाहर झांकता ह...
वाह क्या नजारा था
कविता

वाह क्या नजारा था

वाह क्या नजारा था रचयिता : वंदना शर्मा एक दिन घर से निकलते ही दिखा वाह क्या नजारा था? एक आदमी एक हाथ में खंजर लिए दूसरे को काट रहा था |  पहले तो देखकर कुछ समझ नहीं आया | फिर सोचा कि शायद कोई पागल है या कोई जादूगर, क्योंकि एेसा अचम्भा जीवन में पहली बार देखा था | देखकर रहा नहीं गया, जाने लगी उसे रोकने तो सहेली ने मुझे रोक दिया कि रहने दो क्यों व्यर्थ के पचड़े में  पड़ती हो | पर समस्या गम्भीर है स्त्री स्वभाव और कवि हृदय पूछना आवश्यक हो गया था | नहीं पूछें तो पेट दर्द | मुझसे रहा नहीं गया | पास जाकर बोली , कि चाचाजी क्या कर रहे हो? अपने ही हाथों स्वंय अपने ही हाथ क्यों काट रहें है ? आप शक्ल से पागल भी तो नहीं लगते तो ये पागलपन क्यों? त्यौरियाँ  चढ़ाते हुए उन्होने मुझे घूरा|  क्षण भर ठहर कर फिर कहा, कि बिटिया  बात तो समझ की करती हो| पर  ये नहीं  दे...
प्रहार कर
लघुकथा

प्रहार कर

प्रहार कर रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== कुनाल अपनी जिंदगी से इतना नाखुश था कि उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था, उसकी जिंदगी मानों थमती और चलती जा रही थी, कुनाल की जिंदगी में सबने ही दखल डाला था यहाँ तक की उसकी खुद भी जिंदगी ने उसपर दखल ऐसे दी थी कि उसने हार मानते मानते भी हार नहीं मानी थी, कुनाल के परिवार में छः सदस्य थे जिसमें कुनाल सबसे छोटा है उसके ऊपर लेकिन बोझ इस प्रकार है मानों वो परिवार में सबसे बङा हो, घर का सारा काम देखना अपने पिता की खेती का सारा काम देखता और स्वयं खेती में काम भी मेहनत से करता फसल आती बेची जाती और सारा धन घर के कामों व भाई बहन की पढ़ाई में खर्च होता है जिसपर कुनाल ने कभी भी जरा सा सोच भी नहीं किया कि आखिर मुझे भी पढ़ना है और क्या करना है सिवाय क...