कानून की चक्की
हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य'
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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कानून की चक्की में रिश्ते - नाते,
सगे - संबंधी सब पीस जाते हैं।
अदालत की चक्कर काटते-काटते,
जूता - जूती सब घिस जाते हैं।।
मौका देख सुनसान गली - चौराहों में,
शातिर जुर्म करते हैं रात के अंधेरे में।
जोर है पक्ष - विपक्ष के दलीलों में,
अदालत को सबूत चाहिए सवेरे में।।
कभी - कभी कानून की चक्की,
चलते - चलते जाम हो जाती है।
लोगों को इंसाफ मांगते - मांगते,
सुबह से लेकर शाम हो जाती है।।
अच्छा वकील ढूंढने के लिए,
खुद को वकील बनना पड़ता है।
काले - कोट वालों की भीड़ से,
एक को ही चुनना पड़ता है।।
वकीलों को भगवान समझकर,
नोटों का चढ़ावा देना पड़ता है।
अपने दिल पे पत्थर रखकर,
रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना पड़ता है।।
परिचय :- हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य'
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
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