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विराम
दोहा

विराम

हेमलता भारद्वाज "डाली" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो विराम करते नहीं, योगी वही महान। नित विकास के दिन वही, होते स्वर्ण समान।। मन उदास हो तो कभी, करना नहीं विराम। मन पसंद धुन को सुने, देख नयनाभिराम।। जो पथिक लेता कभी, पथ में नहीं विराम। तो सुलक्ष्य के साथ ही, मिले सफलता धाम।। जो विराम कर लिया कभी, होता वहीं प्रमाद। फिर विकास होता नहीं, मिलता नहीं प्रसाद।। परिचय : हेमलता भारद्वाज "डाली" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : योग प्रशिक्षिका, कवियित्री एवं लेखिका रुचि : संगीत, नृत्य, खेल, चित्रकारी और लेख कविताएँ लिखना। साहित्यिक : "वर्णावली छंदमय ग्रंथ"- (साझा संकलन), आगामी साझा संकलन- "छंदमय वृहद व्याकरण", आलेख एवं कविताएँ अखबारों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
ऐ ! चौथ के चांद
कविता

ऐ ! चौथ के चांद

निरूपमा त्रिवेदी "नीर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐ ! चौथ के चांद तुम आना हर साल लाना आशीष साथ करूं मैं पूजन उपवास दमके बिंदिया मेरे भाल लगाके मेहंदी अपने हाथ सजा के टीका भी माथ पहन के नथ सुहाग ओढ़कर चुनरिया लाल खनकाऊं चूड़ियां हाथ पहनूं पायल बिछिया पांव मंगलसूत्र रहे सदा साथ नैनन लगा कजरा केश सजाऊं गजरा पिया का पाऊं संग प्रीत का घुले रंग गले में बाहों का हार मिले सजना का प्यार रहे मेरा सुहाग अमर सजाऊं मांग सदा सिंदूर परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी "नीर" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
शिव भक्ति
स्तुति

शिव भक्ति

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का महीना अति पावन करते सब भोले का वंदन, श्रद्धा विश्वास के प्रतीक है शंकर शक्ति के आराध्य है शंकर। अमर कथा के व्यास हे शंकर, गोरा को कथा सुनाएं शंकर, पार्वती ने तब किया सावन मैं, "श्रावणे पूजयते शिवम्" दान धर्म का फल है सावन अविरल भक्ति का महीना है सावन। समुंद्र मंथन हुआ सावन में, विष का पान किया शंकर ने, नीलकंठ प्रभु नाम धराया, जग को विष से बचाए शंकर, चंद्रमा शिव शीश सुहाय, जटा में गंगा हे लिपटाए, गले मुंड की माला सुहाय, शेषनाग धारे शिव शंकर। त्रिनेत्र त्रिशूल हाथ में अंग भस्म लगाए शंकर, बेलपत्र शिव शंकर प्यारा, सत रज तम का प्रतीक हे न्यारा। सौम्य रूप कभी हे प्रलयकर, रौद्र रूप धारी शिव शंकर, हाथ में डमरू जटा सजाए, तांडव नृत्य करे शिव शंकर, त्रिनेत्र प्रलयंकरकारी पल में प्रलय करे शिव श...
चांद की टीस
कविता

चांद की टीस

माधवी तारे लंदन ******************** चांद आधा आज गगन में कहता है धरती को मन में क्यों मैं पूरी चमक दिखाऊं जब श्रद्धा ही न हो विश्व में जनता भटके भ्रमण ध्वनि में समय नहीं है उनको घड़ी पल बंद कमरे में वीडियो गेम पर देखा करते कृत्रिम चांद बेदर्द पड़े दिल सर्द पड़े भटक-भटक ये कहां चले मुझ पर न किसी की नज़र पड़े कहता है चांद मायूसी में सत्ता की धुन में खोए कुछ अमर्यादित चाल चले ऐश्वर्य का संचयन करते-करते कुमार्ग का चयन कई लोग करें कैसे चमकूं पूरा मैं फिर भारत की संस्कृति छूटी चलते सब पश्चिमी पथ पर कैसे चमकूं पूरा अब मैं यह सोच रहा है चांद मन में अकूत ऐश्वर्य का था वो मालिक स्वयं रहा सदा सादगी में विकास के उस रतन को आखिरी नमन करने आधा ही आया मैं नभ में परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय ह...
बिखरे ना प्रेम का बंधन
कविता

बिखरे ना प्रेम का बंधन

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** अबकी जो तुमसे बिछड़ा, जीते जी मैं मर जाऊंगा। भले रहूं जग में चलता फिरता, फिर भी लाश कहलाऊंगा।। रह लो मुझ बिन तुम शायद, पर, जहां मेरा तुम बिन सूना। छोड़ तुम्हें अब मैं ना जाऊंगी, भूल गई क्यों ऐसा कहा अपना? एक प्रेम तरु के हम दो डाली, कैसे तुम बिन हवा के टूट गई? जीना चाहा था तुम्हारे वादों संग, फिर तुम मुझसे क्यों रूठ गई? कभी तुम सुना देती थी कभी मैं, लड़ रातें सवेरे एक हो जाते थे। जिस रात तुम्हें पास न पाया, उस रात मेरे नैना नीर बहाते थे।। सात जन्मों का है जो वादा, हर हाल है उसे निभाना। मिलकर हम खोजेंगे युक्ति, जग बना यदि प्रेम में बाधा।। अबकी जो तुमसे बिछड़ा, आहत मन से टूट गया हूं। पढ़ रही हो तो वापस आओ, तुम बिन मैं अधूरा हूं ...।। मांगता हूं गलतियों की क्षमा, हाथ जोड़ कर रहा कर वंदन। गलत...
सुहाग का सिंदूर
गीत

सुहाग का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही प्रिय...
दिल की गहराईयों में …
कविता

दिल की गहराईयों में …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** तुम्हारी याद मुझे हर वक्त आती है। दिल की गहराईयों में समा जाती है। ******** इतना लम्बा साथ था कैसे भूलूंगा तुम्हे। जब तक जिंदा रहूंगा याद करता रहूंगा तुम्हें। ******* जब कभी तुम्हारी कही कोई बात याद आती है। फिर तुम्हारी मोहिनी सूरत मेरे सामने आती है। ******* तुम रहती हो मेरे दिल में कोई तुम्हें नही निकाल पायेगा। किराया दो या मत दो पर यह तुम्हारा घर कहलायेगा। ******** मैं किसी को याद नही करता दिल की गहराइयों से। केवल एक तुम हो जो रहती हो दिल की गहराइयों में। ******** जब तक जिंदा हूं तुम्हे याद करता रहूंगा। हर जन्म में तुमसे मिलने की फरियाद करता रहूंगा। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर...
प्रश्न घनैरे उठते भीतर
कविता

प्रश्न घनैरे उठते भीतर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रश्न घनैरे उठते भीतर और समाधान भी पाया है. पर एक प्रश्न सदा से बाकी समझ नहीं जो आया है। यक्ष-प्रश्न से होते तो मैं भी उत्तर कब के दे देता. निजी-प्रश्न मुझी से मेरा पर अपनों में कह लेता। बडा़ सहज सा प्रश्न स्वयं से अक्सर करता रहता हूँ. मै-मैं-मैं-मैं करूँ रात-दिन, हूँ भीतर कहाँ रहता हूँ? आँत-औज़ड़ी हृदय-फेफड़ें हड्डी़-पसली भरी पड़ी है. आमाशय भी भरा फेफड़ें साँस के उपर साँस खडी़ है। मकड़-जाल से जटिल-जाल सिर में सारे नसें भरी हैं. और नसों में रक्त दौड़ता ऐसे-जैसे नस नगरी है। नयनों में भी दृश्य समाये और कानों में घुस आया शोर. आधा-जीवन रात भर गई आधा ही जीवन होती भोर। बाहर तो मैं देखूँ सबको भीतर भी सब जान गया हूँ. कोई जगह नहीं खाली भीतर मैं हूँ तो फिर रहे कहाँ हूँ। इतना त...
माँ की कैसे करें विदाई?
भजन

माँ की कैसे करें विदाई?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नौ दिन नवराते में माँ के, खुशियाँ खूब मनाईं। नवविवाहिता सभी बेटियाँ, जैसे घर हों आईं। सजे-धजे माता के मंदिर, अनुपम छटा निराली। कहीं शैलपुत्री, कुष्मांडा, कहीं-कहीं माँ काली। पूजन अर्चन और जवारे, शोभा अनुपम प्यारी। मनमोहक परिधान सजी माँ, करती सिंह सवारी। अलख भोर से भक्त जनों ने, पूजा थाल सजाया। ले नैवेद्य, प्रसादी, चूनर, माँ को भोग लगाया। नवमी पूज, प्रसाद लगाया, और नारियल फोड़े। होती माँ की आज विदाई, तन प्राणों को छोड़े। लगा गुलाल एक दूजे को, पर्व विदाई मनाया। अब विदाई की बेला आई, सबका मन घबराया। चरण शरण पाई जिस माँ की, शुभाशीष भी पाई। ममतामयी मातु की बोलो, कैसे करूँ विदाई? कैसे करें विदाई माँ की, है दिमाग चकराया। नौ दिन तक सेवा कर माँ-सा, जिसका आँचल पाया। सोच नहीं ...
छोटी दिवाली
व्यंग्य

छोटी दिवाली

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दीवाली दो होती हैं - बड़ी दीवाली और छोटी दीवाली। कब से दीवाली को इस तरह विभाजित किया गया है, इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन मुझे लगता है इसका भी कोई राजनीतिक कारण होगा। शायद एक मांग उठी होगी जैसे पाकिस्तान देश से अलग हुआ था, वैसे ही। लेकिन गनीमत ये रही कि छोटी दीवाली ने अपना नाम नहीं बदला, जबकि छोटे भारत ने अपना नाम बदलकर पाकिस्तान कर लिया। मैंने देखा है कि बड़ा जो होता है, वह अपनी तानाशाही गाहे-बगाहे चला ही लेता है, छोटे को छोटेपन का अहसास ही बड़ा ही कराता है, चाहे छोटे के दो-चार छोटे और क्यों न हो गए हों। अब पाकिस्तान चाहे अपने आकाओं के इशारे पर नंगा नाच दिखाए, लेकिन हम भारतवासी तो भारत को पाकिस्तान का बाप ही मानते हैं! छोटी दीवाली भी अपनी शिकायत लेकर पहुँची कि मुझे छोटी कहकर सब चिढ़...
अब आदमी जलने लगा
कविता

अब आदमी जलने लगा

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** देखके दूसरों की सम्रद्धि, अब आदमी जलने लगा, करता जो जिनकी मदद, वो ही उनको छलने लगा। कैसे आयेगा ज़िंदगी में, कोई किसी के काम अब, स्वार्थ सिद्ध होते हो जाते, लोग नमक हराम तब। लोभ, मोह-ओ-कुंठा की, तन-मन में भरी गंदगी, धरके बगुला जैसा भेष, करे प्रभु की नित बन्दगी। बिखरा है दिग-दिगन्त, छल-छदम भरा व्यवहार, बनकर हम सब रौशनी, मुखरित करें यह संसार। भलाई से नही तोड़ना, भूलकर भी नाता कभी, एक दिन मिट ही जाएगी, बुराई से पोषित छवि। अपनी आंखों के सामने, देखना दगाबाज़ का नाश, होगी विजय सत्य की ही, अंर्तमन ऱखना तू विश्वास। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
चलो खुलकर मुस्कुराते हैं
कविता

चलो खुलकर मुस्कुराते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुस्कुरा लो यार तलब न दबाओ, हर एक क्षण खुश नजर आओ, इसके फायदे एक नहीं अनेक है, महत्व इसका बहुत ही विशेष है, सोचो हमने कब कब मुस्कुराया है, हमें हर पल उन्होंने सिर्फ जलाया है, पर हम निराश नहीं हैं, उदास भी नहीं हैं, क्योंकि उपलब्धि की वो कील मेरे बाप ने ठोंके है, विषमताओं का प्रवाह सिर्फ उसने रोके है, वरना मुस्कुराने के पहले गिड़गिड़ाना होता था, हर देहरी पर सर झुकाना होता था, बाबा साहेब ने हर मिथक तोड़ा, अपने पैरों पर खड़ा कर हमें छोड़ा, हम अब शिक्षा की अलख जगा रहे हैं, इत्मीनान से यदि मुस्कुरा रहे हैं, तो इसका कारण सिर्फ बाबा भीमराव है, स्वतंत्र अस्तित्व की ओर जिनका झुकाव है, पुरखों का अहसास सोच भी सिहर जाते हैं, हर पग की कठिनाइयां जो बताते हैं, तो चलो खुलकर मुस्कुराते हैं, हमा...
श्वासें हुई उदास
गीत

श्वासें हुई उदास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...
शरद पूर्णिमा
हाइकू

शरद पूर्णिमा

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** श्री राधा कृष्ण महारास रचावे बृंदावन में! गोपियों संग खेले नाच नाचवे बृंदावन में! माता अमृत, महाखीर बनावे वृंदावन में! भोग लगा के, अन्नपूर्णा ख़िलावे वृन्दावन में! पूजा उत्सव खूब मैया को भावे वृंदावन में! शरद ऋतु, चंदा चकोरी भावे, बृंदावन में! करत लीला, श्याम राधा संग बृंदावन में! खेले चंद्रमा चंचल किरणों से, वृंदावन में।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
अपनी माटी
लघुकथा

अपनी माटी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्यों कलुआ की माँ, शहर चलना है क्या?" "नहीं कलुआ के बापू हमें तो अपना गाँव ही भलौ है। क्या, करेंगे शहर जाकर?" "हां! दो-चार दिन जाकर रहने की बात और है, पर हमेशा को बिल्कुल नहीं, कलुआ की माँ।" "हाँ! आप ठीक कह रहे हो। कलुआ तो सरकारी नौकर हो गया है, अब वह तो गाँव लौटने से रहा, कलुआ के बापू।" "बिल्कुल सही! पर हमारे तो अपने गांव, अपनी ज़मीन-जायदाद, अपनी माटी, अपनी खेती-बाड़ी में जान बसती है, कलुआ की माँ।" "अच्छा ठीक है हम कहीं नहीं जा रहे, पर तुम खाना तो खा लो। गरमागरम रोटियाँ चूल्हे पर सिकी।" "हाँ सही बात है, पर उधर शहर में तो सब कुछ मशीनों से चलता है। चाहे रोटी हो चाहे ज़िन्दगी, यह देशी स्वाद कहाँ।" इस पर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदे...
अस्तित्व की स्मृतियाँ
कविता

अस्तित्व की स्मृतियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्तित्व की स्मृतियाँ कभी व्यथित मन को सूकून दे ने वाली थपकियाँ भी बन जाती हैं कभी किसी कोने मे खुद की पहचान बनाने के लिए संघर्षरत रहतीं हैं!! वक़्त के बेरहम घाव पर मरहम बन जाती हैं समय मिले तो कभी सुनना मेरे अस्तित्व की स्मृतियाँ ! अगर कभी गुम हो जाए अचानक ये स्मृतियाँ तो ढूंढ लेना फ़ूलों की मीठी खुशबू में ओस की चमकती किरनों में नीले अम्बर में सूकून से उड़ते परिंदों में किसी जीव की करुणामयी पुकार में, किसी जीव की मुस्कराती आँखों में!! फिर भी ना ढूँढ पाओ तो ढूँढ़ना चिता की अग्नि में समाई हुई, यहीं मिलूंगी, यही से समझना है जीवन जीने की परिभाषा, थाम सको तो थाम लेना मेरी थोड़ी सी स्मृतियाँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म :...
क्या रावण मर गया बता दो?
कविता

क्या रावण मर गया बता दो?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर उसे जलाया सबने, ठोक रहे निज छाती। क्या रावण मर गया बता दो, लाज नहीं क्यों आती? पुतला एक विशाल बनाकर, दस सिर उसे लगाए। राम बने बालक ने पल में, लंकाधीश जलाए। रावण जला, गिरा धरती पर, खड़ा हुआ पल भर में। मुझे जलाने से क्या होगा, रावण हैं घर-घर में? जिसने मुझे जलाया उस पर, प्रकरण हैं थाने में। छेड़ चुका कई बार बच्चियाँ, सकुचाता आने में। राम बने बालक से पूछा, क्यों कर मुझे जलाया? देखे नहीं आचरण खुद के, मुझे जलाने आया। हो गंभीर बताया उसने, मिलकर तुझे जलाते। दोष ढाँक लेते सब अपने, पापी तुझे बताते। दोषारोपण करें और पर, दोष न देखें अपने। मुझे जला, अच्छे बनने के, खूब देखते सपने। गुस्से में रावण झल्लाया, मैं सीता हर लाया। मेरी पुष्प वाटिका में पर, फिर भी कष्ट न पाया। पावनत...
वियोग की पीड़ा में श्रृंगार
कविता

वियोग की पीड़ा में श्रृंगार

शिवम यादव ''आशा'' ग्राम अन्तापुर (कानपुर) ******************** श्रृंगार का अंदाज था। वियोग का भाव। बिछड़ने का डर था, संयोग का अभाव। मिलन का ख्वाब था, बातों का लोभ था। दृश्य ऐसा अपनाया, मिट गई सुंदर काया। संयोग पर हस्ते, वियोग पर रोते। अस्थाई प्रेम पर वचन सुनाते, वियोग होने पर रोते ही जाते। वियोग और संयोग-संयोग से होता है, वियोग खुद संयोग से रोता है। रोद्र भरे मन से निर्वेद की ओर चले, श्रृंगार ऐसा करें अद्भुत सबको लगे। .परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह : ...
खाली आसमान
गीत

खाली आसमान

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले -हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। रोती चाँदनी मुँह छिपाकर, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर -मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवान...
बार-बार जल जाने को
कविता

बार-बार जल जाने को

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** बार-बार जल जाने को बार-बार मर जाने को बार-बार मिट जाने को प्रतिवर्ष आ जाता है रावण अन्याय और अत्याचार असत पूर्ण दुर्व्यवहार का होकर प्रतीक और कटु और कटुतर बनकर लेकिन, रावण ही नहीं आता है बारम्बार! आते राम भी हैं बारम्बार कलेवर बदल बदल कर। अन्याय के ध्वंस हित अत्याचार के विध्वंस हित रुक नहीं पाते हैं राम वह भी आते हैं प्रतिवर्ष रूप, वेश भूषा बदल-बदल कर हम पहचान नहीं पाते हैं पर, वह आते अवश्य हैं। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति...
बेरोजगार चालीसा
दोहा

बेरोजगार चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** नमो-नमो बेरोजगार युवाओं। तुम्हारो दर्द न कोई जानों।। नमो नमो बेरोजगार युवाओं। ऐसे ही तुम बेगार रह जाओ।। हमने समझा तुम सब बेकार हो। पर तुम तो सबसे घातक प्रहार हो।। जब से तुम घर से बाहर निकले हो। उस दिन से घर की है रोशनी भागी।। पूरी दिन-रात तुम मेहनत करते हो। कर पढ़ाई-लिखाई परीक्षा देते हो।। फिर भी न होत है तुम्हरी भलाई। दूर न जात हैं ये बेरोजगारी बलाई।। बेरोजगार चालीसा जब कोई भी गावे। ऐसा लगे सबके कान में ठेपी घुस जावे।। तुम्हरे हाथ में है पूरी देश दुनिया। पर तुम्हरा दर्द न कोई सुनत है।। बेरोजगारी वंदना जो नीत गावे। जीवन में वो कभी हार न पावे।। हैं हथियार ये दोनों हाथ तुम्हारा। जब चाहों तुम किस्मत अजमाना।। जो नहीं माने रोब तुम्हारा। तो दिन देखी तिन तैसी।। जब कभी तुम आवाज उठाते। लाठी...
बंद करो अब जयकार
कविता

बंद करो अब जयकार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का, पर्व है दशहरा, छूपा निज ह्रदय में रावण कहते गर्व है दशहरा। जन-जन का अंर्तमन लगता, दशानन जैसा ही, क्षण-क्षण पर छल-कपट करते रावण वैसा ही। जला रहे सिर्फ़ पुतले असली रावण तो जिंदा है, देख मनुज का दोगलापन लगे रावण शर्मिंदा है। सत्य खड़ा पहरेदारी में, कैसे संभव होगा न्याय, पाखंडी पग-पग प्रतिष्ठित, कैद हैं लाखों बेगुनाह। कथनी-करनी का अंतर, स्पष्ठ दिखे कण-कण में, बगुले-सा लिया रूप धर, विष भरा है तन-तन में। निज ह्रदय बैठे रावण की बंद करो अब जयकार, सत्य न्याय ईमान धर्म से, करो सुरभित ये संसार। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण
आलेख

हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि में विश्व की लगभग सभी भाषाओं की ध्वनियों केलिए पृथक ध्वनिचिह्न प्राप्त हैं। कुछ नहीं भी हैं तो हिंदी का ´विकासशीलता´ का गुण उसे अपना कर नया चिह्न दे देता है यथा, क=क़, ग=ग़, ज=ज़ आदि। चूँकि अंग्रेज़ी स्वयं में एक वैश्विक भाषा का रूप ले चुकी है तथा हिंदी के लगभग सभी पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेज़ी में प्राप्त हैं, प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे मे समस्या तब आती है जब राम को Rama कृष्ण को Krishna, सुग्रीव को Sugriva, Omkara, Veda, Chanakya, Ashoka आदि लिखा जाता है तथा रामा, कृष्णा, नारदा, चाणक्या ओमकारा, वेदा, अशोका लोग बोलने भी लगे हैं। इससे मूल शब्दों के अर्थ का अनर्थ भी हो रहा है। अहिंदी भाषियों, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले प्रवासी भारतीयों, विदेशों में जन्मे भारतीय बच्चों तथा भारत म...
चाहे जितनी पीड़ा दे दो
कविता

चाहे जितनी पीड़ा दे दो

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो। नैनों नीर भरा रहता मैं, तुम इतना कैसे हँसती हो। कल तक उर में समा रही थी, आज नदी सी निकल पड़ी हो। मैं पर्वत सा रुका वहीं हूँ, तुम सागर से पहुँच मिली हो। बस एकम अब ध्येय तुम्हारा, एक ही इच्छा बस बाकी है.. 'कुछ अतीत की बात रहे ना, वर्तमान ही बस साथी है।' जुड़े न तुम सँग नाम हमारा... षडयन्त्रों को यों रचती हो। चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो।। मैं गीतों के फूल बिछाऊँ, काँटो के तुम तानें रखती। मैं वाणी मधुरस बरसाता, चुभी-बात से तुम हो डसती। कोयल की जब ‌ तान सुनाऊँ, तुम दादुर के ढोल बजाओ! मेरे सम्मुख हर विरोध में कुटिल भाव से फिर मुस्काओ! लाज नहीं अब रही हमारी, क्या कहती हो, क्या करती हो? चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, ...
सफ़र
कविता

सफ़र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती चलती हैं पतवार के सहारे सागर मचलता हैं लहरों के सहारे दर्दे दिल रोता हे अतीत के सहारे कहां खोजे हम किनारा समन्दर में पत्थरों की फिसलन के मारैं। दरख्तो के सायों का हुजुम चलता हैं साथ-साथ पगडंडी के सफ़र मे कांटे जो हैं साथ आसमां से झांकता आफ़ताब हंस रहा था हम पर कह रहा था मानों मुड़ हो अब निकले हों सफ़र पर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्री...