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पढ़ ले संविधान को
कविता

पढ़ ले संविधान को

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नीम करेले क्या जानेंगे बाबा जी की शान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, बाहरी बातों में आकर भूले उनके ज्ञान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, स्कूल के बाहर रहकर क्या तू पढ़ पाता रे, रो रो पाठशाला छोड़ घर को चला आता रे, याद कर झाड़ू पीछे गले थूकदान को, भूल जा पाखंड बांटे ऐसे विद्वान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, मुसीबतें सह सह कर भी बस्ता उसने उठाया था, जातिवादी ताने सुन-सुन आंसू खूब बहाया था, प्रचलित ढोंगों पर उसने उंगली प्रतिपल उठाया था, चमत्कार को नहीं मानकर तार्किक प्रश्न लाया था, अभावों में पढ़कर उसने कई डिग्री लाया था, भीमराव की नजर से आ देख ले जहान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, ढोंगियों की ढोंग के आगे नतमस्तक होना पड़ा, मुश्किलों से मिला हुआ अधिकार खोन...
भारत पथ के हम पथिक
कविता

भारत पथ के हम पथिक

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** ख़ौफ़ नही आंधी-तूफां का बढ़ते आगे हम हैं, अथक। अंगारों पर जाते चलते नित भारत पथ के हम हैं पथिक।। देश की खातिर मरना सीखा वीर शहीदों की कुर्बानी से। दुश्मन से लोहा लेना सीखा लक्ष्मी बाई महारानी से।। यह देश है आंखों का तारा कण-कण लगता स्वर्ग समान। यह धरती है जननी हमारी शहादतों से गर्वित श्मशान।। विंध्य-हिमालय यमुना-गंगा है जहां हमारे अरमानों के। खिलते यहां नित सुखद सुमन देश-धर्म के आख्यानों के।। देकर लहू जिगर का अपना रखना यह अमर कहानी है। त्याग भेद उर से अब सारे भारत की लाज बचानी है।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
दायित्व
जीवन मूल्य

दायित्व

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** बस बहुत हुआ अब ओर नहीं ना एक शब्द ना एक और दायित्व कुछ नहीं। कुछ नहीं करेंगे अब मेरे माँ पापा किसी के लिए भी सिवाय नानी माँ के क्योंकि वो उनकी जिम्मेदारी है जो उन्होंने अपने पूरे मन से ली है और सच्चे मन से निभा भी रहे है। पर आप लोग उनकी जिम्मेदारी नहीं है फिर भी वो आप लोगों को निभाते आ रहे है पर बस अब ओर नहीं। देख मीनल तुझे बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं। ये तेरी नानी मेरी भी माँ है मौसी हूँ मैं तेरी। इस घर पर मेरा भी बराबर का हक है। हक के लिए कौन मना कर रहा मौसी लेकिन दायित्वों का क्या वो भी तो बराबर है आपके और मेरी माँ के अपनी माँ यानि मेरी नानी के लिए। वो क्यों भूल जाते हो आप? खैर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप केवल हक जताना जानते हो फर्ज निभाना नहीं। वो आपके और नानी जी के बीच की बात है लेकिन मेरे माँ-पापा को परेशान करने या उनकी बे...
उषाकाल
कविता

उषाकाल

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उषाकाल में सागर तट पर रवि की सारथि बन अरुण की अरुणाई छा गई विश्वपटल पर। उसकी सुखद मृदु छाया भा गई धरती को बन माया आभास दिवस का आया कर्म को गति, प्रकाश छाया अविरलअनन्त अस्तित्व उसी का जिससे बहती जीवनधार जिससे ही आल्हादित, स्पंदित हो अग्र बढ़े यह संसार। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
तुम ब्रह्मज्योति हो
कविता

तुम ब्रह्मज्योति हो

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** मैं सूखा पत्ता हूँ, पतझड़ का, तुम नये बसंत का नया कँवल, मेरा परिचय खोने वाला है, तुम बीजांकुर जड पौध नवल, मैं सुर्ख तना, अब त्यक्तमना, तुम मधु मधुकर शुक पिक अरू फल, मैं आज शाम का ढलता सूरज, तुम ऊषा भोर अरुणोदय कल, मैं उलझी समस्या, बुझता दीपक, तुम ब्रह्म-ज्योति हो, सबका हल, मेरा जीवन, मैली चादर, तुम अमृत, निर्झर का पावन जल, हाथ पकडकर चढ़े शिखर, तुम छांँव बनाओ, ठाँव सफल, अंधक्षितिज, मैं पथिक त्राण का, तुम पथ, ज्योति, किरणें उज्ज्वल, मैं प्रतिबिंब, बिखरती, जर्जर कृति, तुम अनुपम आभा बलराम संबल, मैं ठहरा नीर, पीर हूँ गहरी, तुम प्रबल प्रवाह शिव सत्य अटल, मैं आतुर व्याकुल नम सिकताकण, तुम्हें पाना हिम के शिखर धवल, चट्टानें टूटी, अनुनादों से, दीपक-राग रतन ठुमरी है, उर में कितने तिमिर समेटे, तब मोहन मूरत उभरी है, मेरी र...
जय शिवाजी
गीत

जय शिवाजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शाहजी भोंसले बाबा थे माँ थी महान जीजाबाई पुणे के शिवनेरी दुर्ग में अवतारे लाल शिवाजी थे वंदेमातरम... माँ ने दी थी शिक्षा दीक्षा शस्त्र शास्त्र का ज्ञान मिला बुद्धिमानी निडरता पाई बहादुरी का थे दम भरते रामायण महाभारत पढ़ते सर्वधर्म समभाव वे रखते जातिभेद से नफ़रत करते सबको अपना ही समझते कद छोटा और छोटा घोड़ा पर भारत का नक्शा बदला छुरी कटार जैसे हथियार कपड़ो में छुपाकरके रखते गुफ़ा और कंदराओं से छापामारी खूब करते थे मुट्ठीभर सैनिक लिए वे पहाड़ी चूहों से दुबकते थे आदिल शाह ने चालाकी से शाह जी को किया नज़रबंद फ़िर भी आदिल तोड़ न पाया वीर शिवा का चक्रव्यूह बड़ी साहिबा बीजापुर ने अफ़ज़ल खान को भेजा था उसने जो गड्डा खोदा था वो ख़ुद ही जमीदोज हुआ शाइस्ता खान बराती बनकर औरंगजेब का संदेसा लाया तीन उंगलियाँ कटवा...
उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल
गीत

उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। अश्वमेघ को दौड़ रहा है, अहंकार का...
विश्व में हिन्दी का परचम
आलेख

विश्व में हिन्दी का परचम

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा था कि हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है‌। दुनिया भर में हिन्दी का विकास, प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल विश्व हिन्दी दिवस दस जनवरी को मनाया जाता है। हिन्दी अब अपने साहित्यिक दायरे से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना गौरव फ़ैलाने की तैयारी में है‌। संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाने का प्रयास अविरत चल रहा है। इसके पूर्व देश में सरल, सुबोध, सशक्त, मीठी हिन्दी भाषा के प्रति सम्पूर्ण जागरूकता एवं अनुराग पैदा कर देश का हर बच्चा कहें हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा है। हिन्दी की वैश्विक प्रभुता, उपयोगिता और महत्ता दर्शाने के उद्देश्य से आयोजित हो रह...
सोरठा छंद- माघ-स्नान वृत
छंद

सोरठा छंद- माघ-स्नान वृत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पावन बहुत प्रयाग, चलो करें वंदन अभी। गुंजित सुखमय राग, रहें हर्षमय हम सभी।। कितना चोखा मास, कहते जिसको माघ हम। जीवित रखता आस, हर लेता हर ओर तम।। तीर्थ सुपावन नित्य, माघ माह की जय करो। खिल जाये आदित्य, सदा नेहमय लय वरो।। गंगा में हो स्नान, जीव करे यश का वरण। मिलता नित उत्थान, तीर्थराज में जब चरण।। देता माघ सुताप, गंगा माँ की जय करो। करो तेज का माप, पापों का सब क्षय करो।। करना चोखे काम, कहे माघ का माह नित। पूजन सुबहोशाम, करता सबका नित्य हित।। देती है आलोक, माघ माह की चेतना। परे करे सब शोक, हर लेती सब वेदना।। गाओ मंगलगीत, माघ माह कहता हमें। प्रभु बन जाएँ मीत, सुमिरन करना नाथ को।। जीवन हो आसान, छँट जाता सारा तिमिर। बढ़े भक्त का मान, बस जाता पावन शिविर।। गंगाजल की शान, कहता शब्द प्रयाग नित।...
मैं शून्य हूँ
कविता

मैं शून्य हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मै शून्य हूँ अपूर्ण हूँ पूर्ण होने की कोई चाह भी नहीं मेरा ख़ुद का कोई वजूद नही कोई अहंकार नहीं कोई आग्रह भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं है कोई चाहत भी नहीं है मै तनहाई में भी अकेला नहीं होता और भरी महफिल में भी मेला नहीं होता मेरा कोई मोल नहीं है मै सत्ता के गलियारों मे नहीं मिलता मैं दुनिया के बाजारों मे नहीं मिलता मैं तपस्वी के मन मे मिल सकता हूँ मै निर्जन वन मे मिल सकता हूँ मैं आकाश के सुनेपन में मिल सकता हूं मै किसी के अकेलेपन मे मिल सकता हूँ तुम शून्य को अपने मे से घटा भी दोगो तो तुममे कुछ कम नहीं होगा हाँ तुम चाहो तो मुझे अपने में मिला सकते हो कुछ मै तुम में जुड़ जाऊंगा कुछ तुम मुझ में जुड़ जाना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
मोर की गुहार
कविता

मोर की गुहार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मोर पंख मोर जैसे नहीं होने से मोरनी अपने पंख से नहीं ढाक पाती अपना तन ढक लेता है मोर अपने पंखों से अपना तन। ना घर ,ना घोसला मुंडेरो और कुछ बचे पेड़ों पर बैठकर मोर ये सोच रहे ? इंसानों को रहने के लिए कुछ तो है जंगलों के कम होने से क्या हमारे लिए कुछ भी नहीं मेरे इस बचे खुचे जंगल मे। पिहू -पिहू बोल के बुद्धिजीवी इंसानों से कह रहा हो जैसे इंसानों के हितों के साथ हमारे हितों का भी ध्यान रखो क्योंकि हम राष्ट्रीय पक्षी है। नहीं तो कहते रह जाएंगे जंगल मे मोर नाचा किसने देखा? और यह सवाल अनुतरित बन रह जायेगा महज किताबों में। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग...
ठौर नहीं होगा
कविता

ठौर नहीं होगा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** यलगार करने के लिए कोई वक्त मुक़र्रर नहीं होता, हर समय किया जा सकता है, वो दौर और था कि महिलाएं, बच्चे, दलित, आदिवासी, खामोश रह सब सहा करते थे, डर कहें या अमानवीय नियम ये हद से ज्यादा हद में रहा करते थे, पर आज का दौर और है, हर जगह इनका हक़ व ठौर है, ये हक़ हमें संविधान ने दिया है, जिनकी रक्षा का हमने प्रण लिया है, वो संविधान जो सबको सम मानता है, अधिकारों को छीनना अक्षम्य मानता है, एक स्त्री को घर तक सीमित क्यों रखना? वह किसी पुरूष से कम नहीं, उसके बाद भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को दमित करना, किसी का हक़ मारना, जान कर जातिय दुर्व्यवहार उभारना, कुछ कुंठितों का शगल है, मगर वे मत भूलें कि ये सब यदि अपने पर उतर आए, तो मुंह छिपाने के लिए कहीं भी सुरक्षित ठौर नहीं होगा। ...
गणपति
दोहा

गणपति

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्रतुंड गणपति सतत, मंगलकारी नाथ। लंबोदर गजमुख सदा, मोदक प्रिय है हाथ।। शंकर पुत्र गणेश हैं, गौरी सुत प्रथमेश। कार्तिकेय के भव अनुज, दयावान रूपेश।। भालचंद्र गज शीश है, सुखदायक गुणवंत। हरें सभी के दुख सदा, एकदंत भगवंत।। क्षेमंकर गजकर्ण हैं, करते सब यशगान। ऋद्घि सिद्घि देते सदा, धूम्रवर्ण भगवान।। बुद्धिनाथ हैं गज-वदन, रक्षक दिव्य गणेश। शाम्भव हो योगाधिपति, धवल रूप हृदयेश।। गणपति बप्पा मोरया, शुभकारी है रूप। सुख दायक धर्मेश हैं, महिमा नाथ अनूप।। विघ्नविनाशक सब कहें, करते भक्त प्रणाम। सकल लोक है पूजता, निसदिन आठों याम।। विद्या वारिधि हो अमित, मूषक पीठ विराज। करो कृपा हे रुद्रप्रिय, आओ घर में आज।। सर्वात्मन हेरम्ब हो, तुम गणराज कवीश। यज्ञकाय प्रभु भीम हो, शंभु सुवन अवनीश।। वंदन करो...
आया पतझड़ में बसंत
कविता

आया पतझड़ में बसंत

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** धरती पर यौवनता उमड़ी, मदहोश हुआ दिग्दिगंत, कली-कली कौमार्य दहके, आया पतझड़ में बसंत! नैन मिलाके खोया चैन, उड़ गई निदियां रातों की, तन-वदन में लगी आग, पुलकित बगिया बातों की! मन-मधुकर मदहोश हुआ, पा पावन स्नेह मकरंद, हो उठा प्रण पूर्ण प्रियतम, जुड़ा ह्रदय का अनुबंध! बदल ना जाना मौसम-सा, रहना बन परछाई तुम, बहल ना जाना कलियों संग, बनकर हरजाई तुम! परिमल-से पल प्यार के, कर रहे प्रमुदित पोर-पोर तेरी यादों में कटती शामें, तेरे ख्वाबों में होती भोर! भाया ना सिवा तेरे कोई, ये सांसें तेरे ही नाम की स्वीकार ख़ुशी-ओ-गम, नही फ़िक्र है इल्जाम की! गुजरे ज़िंदगी सारी, प्रिय! अब तेरी ही पनाहों में होना ना दूर आँखों से, मांगा मैंने तुम्हें दुआओं में! परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" ...
समर्पित
कविता

समर्पित

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कभी झाँककर देखा तुमने, मात पिता के जीवन को, ठंडा बासी खाकर के पाला है अपने लालन को। नही महँगे कपडे हे पहने, नही ऐश का जीवन वो, कंधे पर बोझा हे ढोकर, पैदल ही वह चलते जो, पैसो की कीमत वह जाने, बूँद-बूँद वह भरते है, ठंड गर्मी बारिश नही समझे, वह मौसम को सहते है, त्याग और बलिदान समर्पण, हे नींव गहरी जीवन की, शिखर तो जब ही हे चमकता त्याग के आँसू सिंचे वो, (बच्चे) कंचन भी तपकर तभी दमकता, अंगारों पर चलते हे वो, ज्ञान विवेक संस्कार धैर्य को जीवन्त ह्रदय मै रखते जो, कितने काँटे भाटे रोडे आये, पर विचलित नहीं होते हे वो, दृढ़ संकल्प मन मै हे रखकर, मंजिल को छू (पा) जाते हे वो। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस ...
आत्ममंथन
कविता

आत्ममंथन

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** क्या खोया, क्या पाया, क्या अपनों से पाना है, जो भी है मुट्ठी में है, यहीं छोड़ कर उठ जाना है I परिन्दे पर निकलते ही घोंसला छोड़ चले जाते हैं, फिर कभी वे लौटकर घोंसला में नहीं आते हैं I जीवन की तो अब एक-एक साँस नित्य प्रति घटी, विघ्न बाधाएँ जीवन के हर मोड़ पर डटी I कल-कल करते, आज हाथ से आरजू निकले सारे, भूत भविष्यत् की चिंता में वर्तमान की बाज़ी हारेI पहरा कोई काम न आया, रसघट रीत चला, कालचक्र के वशीभूत, बस जीवन बीत चला I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
खुद की खोज कर
कविता

खुद की खोज कर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दुनियां दारी के चक्कर में हमने खुद को भुलाया है। हम कौन हैं ये आज तक कोई समझ नहीं पाया है। ******* सारे जमाने की खबर हमें होती है। पर हम कौन है? यह जानने की कोशिश हमसे नही होती है। ******* सबसे पहिले आप खुद पर दे ध्यान । जब आप स्वास्थ्य रहेंगे तो ही सब पर दे पायेंगे ध्यान। ****** जिसने खुद को समझा है उसने खुदा को पाया है। बाकी ने तो अपना जीवन व्यर्थ में गावायां है। ******* में कौन हूं? दुनियां में क्यों आया हूं? इन प्रश्नों को जिसने हल किया है। वास्तव में जिंदगी जीने का मजा उसने लिया है। ****** भले करें चिंता जमाने की परन्तु खुद का भी ध्यान रखें। सबके साथ चलते रहें पर खुद का भी ध्यान रखें । परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शप...
अच्छे सत्कार्य
आलेख

अच्छे सत्कार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर्यटन कई प्रकार के होते है। सबका उद्देश्य भी अलग होता है। यूँ तो बहुत बदनाम हुए है बाबा उनके आश्रमो ने बहुत गंदगी व दरिंदगी फैलाई। उससे अच्छे व सच्चे बाबा जी जनकल्याण की गतिविधियों से जुड़े थे उनका बहुत नुकसान भी हुआ। पर कहते है बादल आकाश को ढक के अंधेरा तो कर सकते है पर सूर्य को कौन निगल सकता है सिर्फ हनुमान, पर जो संत महात्मा कुम्भ में अपने डेरे डाल के देश विदेश के ज्ञान पिपासुओं को तृप्त करते है। उनके प्रताप को कोई आच्छादित नही कर सकता है। सदियों से चलने वाले मेले चार जगह लगते हैं। अर्ध कुम्भ भी लगते है। अन्य सारे पर्यटन को अलग करदे तो ये पर्यटन कितना बड़ा है कितना अर्थव्यवस्था को लाभ देता है। हां टेक्नोलॉजी बढ़ी है, पर इसरो के वैज्ञानिक भी लॉन्चिंग के पहले अपनी उत्तेजना पर काबू पाने अपने इष्टों को याद करते टीवी पे दिखाए गए थे।...
वसंत पंचमी
कविता

वसंत पंचमी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** वसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, ज्ञान की देवी सरस्वती और धन की देवी लक्ष्मी का अवतरण दिवस भी वसंत पंचमी को हुआ था, इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती का कलश स्थापन‌ कर पूजन, आरती किया जाता है, वसंत पंचमी पर वाणी की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की पूजा, प्रार्थना का विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और देवताओं की प्रतिनिधि विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी हैं, माता सरस्वती की पूजा आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित है, माता के रहस्योद्घाटन का दिन भी वसंत पंचमी को ही माना जाता है। ये दिवस सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, माता सरस्वती को वागेश्वरी, भगवती, शारद...
मनभावन ऋतु है बसन्त
कविता

मनभावन ऋतु है बसन्त

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बसन्त ऋतु का मौसम है कितना सुनहरा जिधर देखो दिखे प्रकृति का रूप सुनहरा सुहावना प्यारा मौसम खिलता हरा भरा अनुपम मनोरम दिखे नजारा हरा भरा वृक्ष होतेहरेभरे चढ़े लता रँगभरे फूल पत्ते प्रकृति का मनवभावन खिलता नजारा प्रकृति पर अनोखी चढ़ती है लालिमा नया नया रूप सुनहरा वादियों में मनोरमा जब आता है ऋतुओं का महीना फागुन उत्साह ऊर्जा यौवन ऋतु बसन्त की धुन खिलखिलाती है प्रकृति, महकता है मन मनमोहकता मस्ती में रहता ऋतु बसन्त चढ़ाता है प्रकृति में अपरिसीम उमंग तरंग कुदरत की फैलती हर कोने में खुशबू खुशियों की बहार में उमंग तरंग संग करती है बसन्त ऋतु मन ह्रदय प्रसन्न बसन्तपँचमी का आये शुभ मंगल दिन बीणापाणी के साधक करते आराधना मांशारदे तनमन से करते पूजा और वंदन सरस्वती पूजा में साहित्य सँगीत साधक लगाते ध्यान करते विनती दे दो...
बचपन
कविता

बचपन

सुमन मीना "अदिति" दिल्ली ******************** वो छोटी-छोटी शरारतें वो मस्तियां, वो नादानियां वो परियों वाली कहानियां वो कलियां, वो तितलियां वो खिलौनों वाली दुनियां वो गुड्डे गुड़ियां का खेल वो आंचल में जा छिप जाना वो थपकियां, वो लोरियां वो हर बात पर जिद्द करना वो लाड़ प्यार, वो दुलार वो बारिश बूंदों की रिमझिम वो पैरों की छप छप वो बारिश का पानी वो कागज़ नांव की कश्तियां वो मासूमियत भरी मुस्कान वो धूल मिट्टी, वो शोर वो कच्ची आम की कैरियां वो पगडंडियां, वो खुशियां वो सुनहरे सपनों से सजी रातें वो सुकुनियत, वो बेफिक्री वो सीधा सरल जीवन वो नासमझी, वो निश्छलता। “कीमत जो भी होगी चुका दूंगी..., गर कोई लौटा देगा बचपन के इन दिनों को।” परिचय - सुमन मीना "अदिति" निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
तो समझो बसंत आया है
कविता

तो समझो बसंत आया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पलाश भी अब झूम उठे नव कोपल भी खिल उठे पत्ता और डाली हर्षाया है तो समझो बसंत आया है कोयल की राग है नियारी सबकी लगती अति प्यारी सुन्दर राग भी तो गाया है तो समझो बसंत आया है करवट बदलती है फिज़ा सबसे अलग और है जुदा प्रकृति में खुमार आया है तो समझो बसंत आया है तन प्रफुल्लित हो जाये मन प्रफुल्लित हो जाये प्रीत मन में गर समाया है तो समझो बसंत आया है फिज़ा में निखार है आई मदमस्त बाहर भी है छाई भंवरों का मन ललचाया है तो समझो बसंत आया है जीवन में नव-नव हर्ष देने सौन्दर्य का सहज स्पर्श देने हरियाली से जग सजाया है तो समझो बसंत आया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(ब...
आगे बसंत
आंचलिक बोली, कविता

आगे बसंत

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पियर-पियर सरसो फूले, पियर उड़े पतंग, पियर पगड़ी पहिर के, आगे ऋतु राज बसंत। अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन हा पुलकत हे। सरर-सरर चले पुरवाही, मन मयुर झूमें नाचे, फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे। पातर-कवर गांव के गोरी, झुले कान के बाली, मया-पिरीत के बांधे, डोरी हंसी अऊ ठिठोली। मन भावन उत्साह, अऊ उमंग ज्ञानी, गुनी ,संत, मन मा खुशी गजब, सुग्घर लागे आगे बसंत। कतिक करव बखान, तोर हे ऋतु राज बसंत, तोर महीमा ल बताइन, दिनकर, वर्मा अऊ पंत। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
वसन्त जब आये
कविता

वसन्त जब आये

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** आम्र वृक्ष पर बौर आए, पलास खिलकर मुस्कुराए, कोयल मीठे तराने गाये, वसन्त आये, वसन्त आये। अमलताश मन को है भाये, पतझड़ से क्यों घबराए, परिवर्तन का उत्सव मनाये, वसन्त आये, वसन्त आये। शीत ऋतु लौट के जाये, खुशनुमा मौसम हो जाये, झरबेरी के बेर ललचाये, वसन्त आये, वसन्त आये। विविधरंगी पुष्प खिले, पीतवर्णी सरसों फूले, सुरभित सी पवन बहे, वसन्त आये ये कहे । वसन्त ऋतुराज कहाये, शोभा इसकी बरनी न जाये, उर में है आनंद समाये, वसन्त आये, वसन्त आये। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
मेरा गाँव
दोहा

मेरा गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगे, लगता नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ही ख़...