हिंदी
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान।
यशवर्धक मन मोहिनी, हिन्दी सरल सुजान।।
भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान
देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।।
अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान।
सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।।
सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान।
पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।।
आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान।
अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।।
उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान।
सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।।
पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान।
भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।।
पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान।
स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।।
दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान।
इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...























