अब आ जाओ गौरैया
सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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बालपन की सखियाँ
फुदकती आ जाती थी
नन्हीं मुन्नी गौरैयाए
कभी भी आँगन में
बेझिझक बेधड़क
अपना ही घर समझ
बिन न्योते ही
ची-ची करके दाने चुगती
गुड़िया की कटोरी से
दाल भात भी खा जाती
धान चुनती दादी से
मनुहार नहीं कराती
नाच दिखाती थाली में
ठंडे पानी में छपछपकर
छककर प्यास बुझाती
पेपर पढ़ते दादा की
ऐनक धुंधली कर जाती
कुछ दानें चोंच में भर
फुर्र से उड़ जाती
चूज़ों का ख़्याल रख
जिम्मेदारी निभाती
यूँ कई सीखें दे जाती
जाने कहाँ कही गई तुम?
क्या नीलकंठ बन गई ?
दाना पानी भरे सकोरे
तेरी राह हैं तकते
डोरियाँ रेशम के झूले
हवा में लहराते
रँगरंगिले फूल पत्तियाँ
तेरे दरस को तरसे
अब बच्चों को नानी दादी
बस सुनाती तेरी कहानी
या बच्चों की चित्रकारी में
दीवारों पर टँग गई
परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्...























