Friday, May 10राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

भैया बोल कर चली गई

डॉ. सर्वेश व्यास
इंदौर (मध्य प्रदेश)

**********************

कविता की प्रेरणा- बात उन दिनों की है, जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था। परीक्षा के दिन चल रहे थे, रात में महत्वपूर्ण प्रश्न मॉडल पेपर बांटे जाते थे। जब लड़कियों को पेपर की जरूरत होती थी, तो वह लड़कों से हंसकर बात करती थी, उन्हें बुलाती थी। लड़के समझते थे, हंसी मतलब……..! बेचारे लड़कियों के पेपर के इंतजाम के चक्कर में रात भर जागते थे, पेपर पहुंचाते थे और खुद का पेपर बिगाड़ते थे। लड़कियों को प्रथम लाने में वे नींव का पत्थर बनते थे। यह क्रम आखरी पेपर तक चलता था। परीक्षा पूर्ण होने के पश्चात लड़की उन्हें घर बुलाती, नाश्ता करवाती, चाय पिलवाती और विदाई समारोह स्वरूप (फेयरवेल) अंत में धन्यवाद भैया कह कर विदा कर देती। बेचारा लड़का शब्द-विहीन, अपनी सी सूरत लेकर विदा हो जाता। उसी घटना को स्मरण कर आज यह कविता लिखने की प्रेरणा हुई।

अचानक वह आई जीवन में, किस्मत खोल कर चली गई।
स्वप्न सुनहरे, महक, रस-रंग जीवन में घोल कर चली गई।।
जिसे समझते थे हम, हम कदम, रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई

चेहरा उसका देखा नहीं, पर उसकी आंखों में था राज गहरा।
बात करते उससे कैसे दिल की, रहता साथ सदा भाई का पहरा।।
आंखों आंखों में बढ़ा मेल-जोल कर चली गई,
जिसे समझते थे हम, हमकदम रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई

उसकी सरलता, सहजता, शालीनता में हम खो गए।
जीवन की बगिया में नवजीवन के कई ख्वाब हम बो गए।।
उन्हें चरने के लिए बगिया का दरवाजा खोल कर चली गई,
जिसे समझते थे हम, हमकदम रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई l

जब से उसकी झील सी आंखों में हम डूब गए ।
दोस्त, परिवार, नौकरी सबसे हम उब गए।।
हमारी नींद, चैन, खुशी सबका मोल कर चली गई,
जिसे समझते थे हम, हमकदम रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई

उसके मन को हम समझते हैं, यह हमारा गुमान था।
वह हमें समझती है, यह हमारा अनुमान था।।
बातों बातों में वह हमारे मन को टटोल कर चली गई,
जिसे समझते थे हम, हमकदम रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई

चंद्रमुखी वो, मृगलोचनी, गजगामिनी, मुख की छटा दामिनी सी।
नव किशोर वय कालिदास की शकुंतला एवं प्रसाद की कामायनी सी।।
मेरे जीवन का गांभीर्य/ मेरे मनोभावों का बना मखोल कर चली गई,
जिसे समझते थे हम, हमकदम रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई

एक दिन सोचा, चलो प्रेम का इजहार कर दें।
उसकी सुनी सी जिंदगी में प्यार का रंग भर दे।।
समझ मन की चाल वो, वह टाल-मटोल कर चली गई,
जिसे समझते थे हम, हमकदम रहगुजर,
वह भैया बोल कर चली गई

परिचय :-  डॉ. सर्वेश व्यास
जन्म : ३० दिसंबर १९८०
शिक्षा : एम. कॉम. एम.फिल. पीएच.डी.
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
लेखन विधा : व्यंग्य, संस्मरण, कविता, समसामयिक लेखन
व्यवसाय : सहायक प्राध्यापक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *