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कविता

पता नहीं क्यों
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पता नहीं क्यों

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कार्यक्रमों में लेटलतीफी तो सुधरती नहीं कभी, आमंत्रितों को समय कम होता, पता नहीं क्यों? कुछ कवियों को शायद श्रोता रूप कबूल नहीं अपनी सुनाकर चले जाते लोग, पता नहीं क्यों? सुंदर संदेश कथन काव्य संपदा भगवत कृपा है सुनने का रोग नहीं पालते कुछ, पता नही क्यों? वक़्त वक़्त के वक्ताओं से व्यक्तित्व छाप मिलती अनावश्यक ज्यादा बोलते कुछ, पता नहीं क्यों? जुबान में कमान और साथ साथ लगाम है जरूरी तर्क विहीन तथ्यों पर टिके रहते, पता नहीं क्यों? बड़े-बड़े वादे संकल्प तो केवल प्रदर्शन रूपी शान प्रतिबद्धता में अति गरीब रहते हैं, पता नहीं क्यों? सम्मान कोई खेतों से उगती फसल तो नहीं विजय पाने और काटने जैसा समझते रहे, पता नहीं क्यों? सामान्य व्यवहारों की कद्र कर पाना मुमकिन नहीं कुछ भला भी भुला डालते हैं लोग, पता नहीं क्यों? कमजो...
राष्ट्र याद करेगा
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राष्ट्र याद करेगा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** विपिन तुम्हें राष्ट्र याद करेगा, विपिन तुम्हें राष्ट्र याद करेगा | उत्तराखंड की धरा में जन्म लेकर, तुमने देश का नाम अमर किया || विपिन .... सेना के सर्वोच्च पद पर जब बिपिन, तुमने अवकाश ग्रहण किया | संकल्प केवल सच्ची सेवा का, शुभसंकल्प तुमने तो कर लिया || विपिन .... इसलिए अतिरिक्त पदभार लिया, विधि ने तो कुछ और स्वीकार किया | निकले माँ भारती के लाल तुम, सेना में जो परिवर्तन किया || विपिन .... शिखाकर समयबद्धता सैनिकों को, अंकित स्वर्णाक्षरों में नाम किया | भौगोलिक विषम परिस्थिति में, सर्वोच्च पदभार ग्रहण किया || विपिन .... गर्व करता उत्तराखंड तुम पर, तुमने जो यह पद ग्रहण किया | राह थी अत्यंत कठिन पर, माँ भारती के लाल तुमने ग्रहण किया || विपिन .... रहकर प्रतिकूल परिस्थितियों में, जो तुमने कुछ कर दिखाया है | कर ...
काशी
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काशी

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** महिमामय शिवत्व को प्रकाशित करती काशी शिव के पावन त्रिशूल पर विराजित काशी नृप हरिश्चन्द्र की सत्य साधना बताती काशी राम चरित के रचयिता तुलसीदास की काशी पंडितों, विद्वानों, संगीतज्ञों, गुणज्ञों की काशी गंगा के अति पावन जल को सरसाती काशी भौतिकता में अध्यात्म की अलख जगाती काशी शिव की अवर्णनीय दुति दमकाती काशी सगरे जग में पावनता की छटा दिखाती काशी धरा पर पुनीत धर्म की ध्वजा लहराती काशी रहते हैं यहाँ अर्द्धनारीश्वर ईश्वर अविनाशी पुण्य सलिला अविरल गंगा है यहाँ सुखराशी मोक्षदायिनी, सुखदायिनी यव कल्याणी काशी नत मस्तक हैं आकर यहाँ सब भारतवासी। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : द...
रुख़सारो से लाली
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रुख़सारो से लाली

आरिफ़ असास दिल्ली ******************** आंसू तेरे अब्सारो से गिरने नही देंगे दर्द दिल को तेरे किसी को देने नही देंगे शिक़वा कोई हो तो शिक़ायत करना रुख़्सारों से लाली तेरे जाने नही देंगे हर लफ्ज़ कहता है कहानी मेरे दिल की दिल की दुनिया मे किसी को आने नही देंगे मर्ज़े मोहब्ब्त की दवा है तेरे पास जख्म दिल के किसी को दिखने नही देंगे यादें तेरी छुपाके रखी है हम ने सीने में क़तरा क़तरा यादों को बहने नही देंगे रातो को जागकर मांगा है तुझे रब से ज़ुदा तुझे जिंदगी से अब होने नही देंगे !! परिचय :- आरिफ़ असास नर्सिंग अफसर निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
फिर से मिल जाये
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फिर से मिल जाये

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** वह नशा कहां, जब निशा जगाकर, बातों में खो जाते थे, दशा दिशा से श्वास मिलाकर, हाथों में सो जाते थे, बचपन में लौट के देखा तो, मिली कहीं ना तन्हाई, जाड़े की रातें, घोर अंधेरा, लिपट भाई के रात बिताई, सपने लेकर, भोर जगाते, सूर्यदेव से गर्मी पाते, बाहों में बाँह डाल इतराते, सबकुछ खोकर मुझे मनाते, जंगल में दंगल कर रूठा तो, मेरे हंसने पर खुशी मनाये, काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाये। एक पेट से जन्म लिया है, एक ही मां का दूध पिया है| पोशाक सिलाई, थान एक, पढे पढ़ाये, एक दीया है, मुझे जिताकर, जोर की ताली, मेरी थाली रहे न खाली, होती कोई चीज निराली, अपने हिस्से की मुझको डाली, भूलूं कैसे, मुझे चोट लगे, तेरी आंखों से आंसू आये, काश! मेरे बचपन का भाई,एक बार फिर से मिल जाये। चुका देता, मेरा उधार, लड्डू मुझको,चूरा खुद खाये,...
हम और सर्दी
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हम और सर्दी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** ठंडी हवा ठंडा मौसम प्रिय की याद दिलाती है रजाई में मोबाइल चलाना चैटिंग की पुरानी याद सताती है।। चले आये अब कहाँ सर्दी में घर मे छुप जाते है दोस्तो के संग चाय पीना कड़ाके की ठंड में याद बहुत आती है।। ठंड की ढेरो कहानी है बचपन मे बिन नहाये स्कूल जाना और टीचर को धूप में क्लास लगाने की फ्री सलाह दे डालना।। अब तो बस इत्ती सी कहानी है चार दोस्त मिलकर कचड़ा जला देते है ओर चार पड़ोसी ओर आ जाते है सेक के सब अपने हाथ सरकार को बुरा कहते है।। ठंड है चली जाएगी मुश्किल वक्त भी कहा टिकता है मफलर स्वेटर पहनो सर्दी का मजा ले लो।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधु...
तिरस्कृत मन
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तिरस्कृत मन

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** स्तब्ध मन हो रहा है जब क्रोध बांटा जा रहा है। अनगिनत अवहेलनाओं से पुकारा जा रहा है। खुद की कुंठा को छिपाने मुझको रोका जा रहा है। कटु वचन से शब्दभेदी बाण मारा जा रहा है। मगर भ्रम उत्पन्न करके सत्य छुपता क्या कभी? अन्ध बन स्वीकारने से द्वन्द छिड़ता क्या कभी? मूक बन खुद की जिसे अवहेलना स्वीकार है। द्वन्द क्या छेड़ेगा वह कायर उसे धिक्कार है। ये लड़ाई हो गई है अब मेरे अधिकार की। रोक ना पाएँगी मुझको वेड़ियाँ संसार की। प्रत्येक जीवन के सफर का यह अनोखा पर्व है। जिसको अपनी स्वाभिमानी पर सदा ही गर्व है। निन्दकों की बात का उसपर न पड़ता फर्क है। उसके लिए द्युलोक क्या यह धरा ही स्वर्ग है। परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
हवा तेरे शहर की
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हवा तेरे शहर की

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** तेरे शहर की हवा बड़ी सर्द थी उस पर तेरा ख़य्याल तेरे ख़य्याल से मेरा दिल बेताब सा पर कुछ मलाल तुझे सीने से लगाने का सबब उफ्फ तेरी गर्म साँसे क्या ख्वाहिशें थी कि उफ्फ रूह का खो गया होश तेरी चाहत या तेरी तलब किस्मत में ना कहीं मिली तलब बे-सबब हाथ दुआ में उठाकर सुकून ना मिली आधी रात में जो बात थी चाँद भी पूरे शबाब पर था तुझसे जुदा चैन ना मुझे ना ही चाँद दिल बेताब था उस सर्द हवाएँ सुरमई शाम की कुछ जुदा जुदा सी थी मेरे सिहरती जिस्म की सिहरन तेरे जिस्म की कसक थी छेड़ कर गुजर जाती थी वो तेरे शहर की सर्द हवाएँ ना जाने कितनी देर तक खामोशी थी दिल-ए-समंदर ऐसे सर्द फिजाओं में कोई चिराग जला ना आतिशदान तेरे इश्क़ की गर्म जर्द अगन से जिंदा रहा ऐ दिल-ए-नादान फिजाँ में हवा भी खफा खफा दिल रहा जवां जवां सर्द ...
भाव भीनी श्रद्धांजलि
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भाव भीनी श्रद्धांजलि

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देश संताप में था डूबा, भारत वासी की आँखें नम वीर जाँबाज़, भारत सपूत विपिन रावत अपने अनेक वीर फ़ौजी व सहचरी मधुलिका के साथ छोड़ चला सबको। करते हम नमन सत् सत् प्रणाम। छा गई वीरानी पंछी भूल गया गुनगुना, सागर ने समेट लिया लहरों को पुरवाई भूल गई राह को, काँप उठी धरती बन्देमातरम उदघोष गूंज उठा नभ में। सात फेरे के बंधन में बंध मधुलिका ने साथ निभाया, जीवन मरण में रही साथ । अनेक फ़ौजी ने वीरगति पाईं वीर शौर्य महान थे देश के पहरेदार थे निष्काम भाव से सेवारत थे, जीवन के हर पल सक्रिय थे मानव की आशा के नव निर्माण थे। करते हम नमन सत् सत् प्रणाम।। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफ...
शहादत
कविता

शहादत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** भारत मां की आंखों से गंगा-जमुना बह निकली। महावीरों की सांसें जब काल विमान ने निगली। मातृभूमि के रखवालों को कैसे भारत भूलेगा, फटती है छाती धरती की बर्फ हिमालय पिघली। वीर क़फ़न तिरंगा ओढ़कर मां के आंचल सो गये, पाकर वीरों का सान्निध्य पुण्य हुईं धरती जंगली। शून्य हुईं पिता की आंखें बिलख रहे इनके बच्चे, मातृभूमि के सच्चे रक्षक छोड़ गए मां की अंगुली। हे बलिदानी वीरों व्यथित रहेगा ऋणी देश हमारा, हृदय से स्वीकार करें मेरे श्रद्धा सुमन भर अंजलि। जनरल बिपिन महान का दिया मधुलिका ने साथ, बरसों याद रहेगी शहादत यह केसरिया रंगीली। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
जीवन हारी
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जीवन हारी

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्पन्दित उर जग, कटु सत्यों से, विस्मित उर जग, के क्रन्दन से, मांग रहा है मुझसे, मैं जाऊं बलिहारी, जीवन क्या हारी? कोमल पग ध्वनि, मम उर अंकित, नयनों में करुणा, धन संचित, नेह प्यालियां भर भर, लुटवाऊँ में झारी। जीवन क्या हारी? सुख मम जन, पीड़ा हर लेवें, उर मंदिर तव प्रतिमा, मैं हूँ एक पुजारी। जीवन क्या हारी? परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंद...
हौंसला मेरा बढ़ाओ जरा
कविता

हौंसला मेरा बढ़ाओ जरा

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** हौंसला मेरा बढ़ाओ जरा, तुम मेरे साथ आओ जरा दुश्मनों से तो मार खाए नहीं, दोस्तों को भी आजमाओ जरा मार डालेगी वरना जहनी शिकन, होश में हूं, और थोड़ा पिलाओ जरा कौन अपना है कुछ पता तो चले, शम्मा कुछ देर बुझाओ तो जरा दिल में महसूस धड़कने होंगी, हाथ संजीव से मिलाओ तो जरा हम तो तैयार ही बैठे हैं, हो सके यारों, गले लगाओ जरा आस्तीन में छुपा के रखते हो, दोस्तों मौका है, चलाओ तो जरा परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
स्त्री हूं मैं
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स्त्री हूं मैं

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों स्वतन्त्र होकर भी परेशान हूँ मैं अपनी हस्ती से अनजान हूँ मैं कहने को तो हूँ सब ऐशो आराम में, लेकिन फिर भी सबकी मर्जी की ग़ुलाम हूँ मैं।। न कभी मन की चाह व्यक्त कर पाई मैं, और खुद को भी तो न कभी समझ पाई मैं हमेशा झुकती रही सबकी खुशियों की खातिर लेकिन कभी अपनी ही खुशी नही समझ पाई मैं हमेशा बस बन एक गुड़िया सी इठलाई मैं भरा है फौलाद मुझमें भी, दुनिया को कहाँ समझा पाई मैं?? हाँ नारी हु, झुकना मेरा स्वभाव है लेकिन अकड़ना मुझे भी आता है, अगर बात हो स्वाभिमान की तो, खुद को साबित करना भी भाता है।। कमजोर नहीं, खुद्दार हुँ मैं इस धरा पर जीवन की सूत्रधार हु मैं।। आदर मान सम्मान की हकदार हूं मैं, हाँ इस दुनिया मे बराबर की हिस्सेदार हु मैं।। स्त्री हूँ मैं, हाँ स्त्री हूँ मैं.... परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ ...
तुम में हम
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तुम में हम

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं लिख रहा हूं तुमको तुम पढ़ लेना खुद को अगर न समझ आये कुछ तो पूछ लेना फिर हमको। वैसे तुम बहुत समझदार हो फिर भी कुछ समझ ना आए अपने बारे में कुछ तुमको तो नासमझ समझ कर ही पूछ लेना हमको। मैं सोच रहा हूं तुमको मैं लिख रहा हूं तुमको। फिर भी तुमको लगे हम नहीं है आपके तो पढ़ लेना हर बार हमारी शायरी में खुद को। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
रघुवीर सहाय
कविता

रघुवीर सहाय

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** नौ दिसंबर उन्नीस सौ उनतीस लखनऊ में जन्में थे रघुवीर सहाय, उन्नीस सौ इक्यावन में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. पास किया। करने लगे फिर पत्रकारिता प्रतीक, वाक, कल्पना पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल में जगह मिले, आकाशवाणी के आल इंडिया रेडियो में हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे। उन्नीस सौ इकहत्तर से उन्नीस सौ बयासी तक ग्यारह वर्ष रघुवीर सहाय जी दिनमान के संपादक भी रहे, "दूसरा रुप" से कवि रुप मे ख्याति पथ पर चमक गये। अपनी लेखनी से सहाय जी दृढ़ता से आईना दिखाते थे भ्रष्टाचार हो या समाज का चित्रण बखूबी कलम चलाते थे। मध्यमवर्ग के जीवन चित्रण पर अद्भुत वो लेखनी चलाते थे, व्यंग्यात्मक शैली से अपने आईना भी खूब दिखाते थे। सांस्कृतिक, राजनीतिक चेतना कलम से अपने जगाते थे, समकालीन समाज को ...
भीगे नयन विदा
कविता

भीगे नयन विदा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मांँ भारती के वीर सपूत ! सब की गई है हिम्मत टूट !! विधि का बड़ा निर्मम घात है ! दिन में ही हो गई रात है !! राष्ट्र ने हिम्मत खोई है ! हा, हर आँख आज रोई है !! वीर प्रसु धरा है सिसक रही ! हाय, चिंता पास खिसक रही !! सिंह सा तू दहाड़ता रहा ... अरि को सदा ही पछाड़ता रहा ... ऊंँचाई पर जंग तुम लड़े ... जंग विशेषज्ञ अव्वल बड़े !! सर्जिकल स्ट्राइक का कहर ढा... आतंकी शिविर करके ध्वस्त !! उरी पुलवामा शहीदों का ! बदला विपिन ने लिया समस्त !! जवाबी कार्रवाई विशेषज्ञ ! दुश्मन बढ़ा न पाए निज पग !! वीर सैनिक परम देशभक्त ! स्वाॅर्ड ऑफ ऑनर अलंकृत !! की देश सुरक्षा की सेवा ... मिला विशिष्ट पदकों का मेवा !! राष्ट्रहित को परिवार अर्पित ! कई पीढ़ी तव रही समर्पित !! लेफ्टिनेंट लक्ष्मण के सपूत ! नमन तुझे भारती के प...
आज नही रहे
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आज नही रहे

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** आज नही रहे विपिन रावत कर गये हैं सभी को आहत समय का पहिया चला हे वर्ना नही थी उनको इजाजत जल थल सेना के थे नायक कर रहे थे देश की हिफाजत जीवन जिसका देश हीत रहा बने रहे वो दुश्मनो के आफत हिले न ड़ूले बढते रहे आगे वो नही हुए वो पथ से विचलीत बस याद मुझे रखना तुम यारो रहूंगा सदा जुबा पर मे चर्चित शेरो का देश हे ये यारो मेरा इसकी फ़िक्र न करना किंचित जाबांज जिसके कण कण मे ऐसी दे गए मोहन वो विरासत परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक...
वाह री किस्मत
कविता

वाह री किस्मत

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** आह! वाह री किस्मत, तू भी कितनी निराली है ! आँखों से नींद ओझल, ताकता हूँ रात काली है ! सोच सोचकर सोचता हूँ, हाथ में मय की प्याली है ! करने वालो ने कर दी, हद अपने वाली है ! समझ नही पा रहा हूँ, क्या ये दुनिया, इतनी फरेबी और जाली है ? सदमे खा-खा कर जिंदगी में पत्थर बन चूका है शायद दिल मेरा, तभी तो सह जाता कड़वी गाली है ! कहते है कि साँच को कभी आँच नही, खुदा के दरबार में, दूध का दूध और पानी का पानी है ! रे मन रखले धीरज, क्यूँ करे अपनी बदहाली है! सोने की कोशिस कर अब तो ! बोतल भी हो गई खाली है ! हाँ बोतल भी हो गई खाली है ! हाँ बोतल भी हो गई खाली है !!! परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान घोषणा पत्र :...
कितनी पावस… कितनी मनोहर…
कविता

कितनी पावस… कितनी मनोहर…

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** है पावस यह कितनी है कितनी मनोहर हमारी यह धरोहर, हमारी यह धरोहर बहती युगों से आ रही है गंग की धारा यमुना, कावेरी औ गोदावरी की धारा ये सब बुझा रहीं हमारी प्यास निरंतर गुंजायमान है यहाँ वेदों की रिचायें गीता की श्लोकें रामायण की दोहायें जन्मे हैं यहाँ राम औ अर्जुन से धनुर्धर तप करके इसे ऋषि औ मुनियों ने सं वारा है गूंज रहा नाम जगत भर में हमारा आये यहाँ तैमूर या आए हैं सिकंदर संसार भर को ज्ञान तो हमने ही बिखे रा संसार ने पाया है सदा हमसे सवेरा झुकता रहा है जगत भारत के चरण पर सुनते हैं हम वसंत में कोयल की पुकारें सावन है लाती यहाँ मंद फुहारें जीवन में भर जाते हैँ मीठे औ मधुर स्वर हमारी यह धरोहर, हमारी यह धरोहर परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार...
हर लम्हा तन्हा
कविता

हर लम्हा तन्हा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर लम्हा तनहा है तन्हां ही गुजरेगा हर कोई आया और चला गया तनहाई को सजा गया एक एक लम्हा गुजारा, गुजारा हमने किसी के साथ जमाने को गवारा नहीं किसी का होकर रहना हर जख्म गहरा है जिंदगी का और गहरा जावेगा हर कोई बहलाकर जिंदगी से कुच कर जावेगा हर लम्हा तनहा तनहा है जिंदगी का उदासी तकतीहै हरदम। है साये साथ जरूरी जमाने से टकराने के लिए क्या करेंगे हम अकेले तनहाइयां मुंह चिढ़ाती है तन्हाइयों से घबराते नहीं ना समझे कोई हमें दीवाना घुटकर रह रह जाएंगे मगर ना दिखावेगे जमाने को दीवानगी अपनी। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ल...
हर रोज तुम
कविता

हर रोज तुम

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हर रोज तुम ख्वाबों में आया करो रोज की तरह तुम हमें सताया करो गलती से रूठ भी जाएं हम कभी रोज की तरह तुम हमें मनाया करो पल दो पल की दूरियाँ खलती हे करीब आकर, तुम सहलाया करो परेशां हो जाते हे कभी मानलो खूशबू-ए-गुलाब तुम ले आया करो बे खबर हो जाएं जिंदगी से कभी करीब आकर तुम जगाया करो तुम्हारे होने से हमारी ये सांसे रहती ओर बातों मे हमें न फंसाया करो जहां रहता हो उस चाँद का पहरा मोहन वही रात मेरे लाया करो प्यार तुम से किया हे ज़माने से नहीं ओर का ड़र बताकर डराया न करो परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ...
किस्मत के भरोसे मत बैठो
कविता

किस्मत के भरोसे मत बैठो

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन पथ पर लड़ सकते हो आगे तुम भी बढ़ सकते हो त्याग दो आलस का दामन किस्मत के भरोसे मत बैठो….!!! मिला नहीं उसे ला सकते हो श्रम कर आगे बढ़ सकते हो जो चाहो तुम पा सकते हो किस्मत के भरोसे मत बैठो…...!! रगो में साहस भर सकते हो मुसीबतों से लड़ सकते हो दौड़ नहीं तो चल सकते हो किस्मत के भरोसे मत बैठो….!! सूरज सा निकल सकते हो लक्ष्य हासिल कर सकते हो इतिहास नया तुम गड़ सकते हो किस्मत के भरोसे मत बैठो….!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
कुछ देर सही…पर
कविता

कुछ देर सही…पर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। जब सब करने के बाद भी, खुद पे इलजाम होता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। आँख सूखी भी रहे, पर दिल जार-जार रोता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। शब्द दिल-दर्द चीर जाता है, और कहने वाले को...कहाँ थोड़ा-सा भी अहसास होता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। हमारा कसूर तो बतायें। बात बिगडे नही, खामोशी की सजा, हमारे ही हिस्से आयें। हम सह...क्यों रहे है। यह जबाब मिल भी न पायेें। सवालों की वो झड़ी, जवाब में डर कर रब भी सामने ना आयें। अपना समझा पर, किसी को अपना बना नहीं पायें। रिश्तों के नाम बहुत थे। पर हकीकत जान ना पायें। करें कोई फिर भला ...क्या??? जब कोई अपना ही पहचान न पायें। जिंदगी निकल गई हर हालात से, जिंदगी जीने की हर कोशिश पर, जब-जब जी...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने की आईने से दोस्ती संवारता खुद को जाने क्यों लगता मुझे प्यार हो गया। नयन कह जाते बिन बोले आँखों की नींद जाने कौन उड़ा गया निहारते रहते सूनी राहों को। प्रेम के शब्दों को गढ़ता बन शिल्पकार किंतु दिल के अंदर प्रेम के ढाई अक्षर की बात कहने को डरता मन। अंगुलियां बनी मोबाइल की दीवानी किंतु शब्दों को जाने क्यों लगता कर्फ्यू अटक जाते शब्द उन तक पहुँचने में। नजदीकियां धड़कन की चाल बढ़ा देती लगता फूलों की सुगंध हवा में समा गई हो तब लगने लगता उनको मुझसे प्यार होगया। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और...
आजीवन
कविता

आजीवन

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जीवन के पथ पर यहां से वहां जा रहा हूं, समझ नहीं आता क्या कर रहा हूं और क्या नहीं कर रहा हूं। जीवन की डगमग करती नाव में बैठकर ज़िंदगी का सफर तय कर रहा हूं। कभी तूफानों का मंजर देख रहा हूं तो कभी बदलती हवाओं का रुख महसूस कर रहा हूं। कभी शिखर पर चढ़कर क्षितिज को ढूंढ रहा हूं, तो कभी क्षितिज के पार जाकर आसमा को छू रहा हूं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...