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कविता

हिचकी
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हिचकी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दरवाजा बंद करता हूँ तब घर में खालीपन महसूस होता अकेला मन बिन तुम्हारे तुम्हारी यादें देती संदेशा मै हूँ ना मृत्यु नाप चुकी रास्ता अटल सत्य का किंतु सात फेरों का संकल्प सात जन्मों का छोड़ साथ कर जाता मुझे अकेला फिर आई हिचकी से ऐसा लगता क्या तुम मुझे याद कर रही हो ? परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थ...
उस रोज़
कविता

उस रोज़

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। इंसान का मानता हूँ..... कोई वजूद नहीं। उस रब ने साथ मिलकर मेरी हस्ती मिटाई थी। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। शगुन-अपशगुण की, कोई बात ना आई थी। समझ ही ना पाया, किसने नज़र लगाई। किसने नज़र चुराई थी। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। ना दुआओं ने असर दिखाया। ना ज्योतिषी कोई गिन पाया। ना हवन-पूजन काम आया। ना मन्नत का कोई धागा किस्मत बदल पाया। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। सजदे में जिसके हम थे। लगता था ..... नहीं कोई गम थे। उसने भी हाथ छोड़ा। विश्वास ऐसा तोड़ा। जिंदगी ने,मार कर फिर से जिन्दा छोड़ा। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। मै समझा नहीं..... क्योकि अनगिनत विश्वाशों... ने आँखों पर एक गहरी परत चढ़ाई थी। रब है....
बेटियां
कविता

बेटियां

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उड़ती हुई चिडि़या सी, होती है बेटियां, इस डाल से उस डाल, पे रौशन है बेटियाँ। दो कुल की लाज निभाती है बेटियां, सुख दुःख में साथ निभाती है बेटियां। माँ की मददगार होती, है बेटियां, पापा का अभिमान होती है बेटियां। घर की शान होती है बेटियां, शुभ मंगल कार्य में आगे आती है बेटियां। घर को सजाती संवारती है बेटियां, ममता की खान चंद दिन की मेहमान होती है बेटियां। बेटी बहू के रुप पत्नी माँ होती है बेटियां। बेटे से ज्यादा प्यारी, होती है बेटियां। अब तो अग्नि संस्कार भी करती है बेटियां। कितनी महान होती है प्यारी बेटियां। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्...
विसर्जन
कविता

विसर्जन

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** अपने अंदर के अहंकार का जलन द्वेष और कड़वाहट का सकुनी जैसे रिस्तेदारो का विसर्जन करना जरूरी है। चोर नेताओ का फर्जी पत्रकारो का नई पीढ़ी को बर्बाद करती बोतल,गांजा,ओर स्मेक का विसर्जन बहुत जरूरी है। जात-पात के सरनेमो का धर्म के ठेकेदारों का निर्भया के दोषियों का विसर्जन अब जरूरी है नई पीढ़ी को अब समझना है करना गलत चीजों का विसर्जन है तभी होगा देश मेरा खुशहाल ओर तभी बनेगा मेरा देश महान।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स्वरचित रचना, विचारो हेतु विभाग उत्तरदायी नही है, इनका संबंध स्वउ...
पोती आई
कविता

पोती आई

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** छब्बीस नवंबर दो हजार। इक्कीस को पोती आई। कितनी प्यारी पोती आई। सबसे न्यारी पोती आई। मेरी पोती मेरे परिवार में आई। संग में ढेरों खुशियां लाई। हम सबके उर उमंग छाई। हमने प्रभु से अनमोल भेंट पाई। परिवार में दीप बन आई। परिवार में प्रकाश फैलाने आई। हमारे अंतस मधुर गीत गुनगुनाई परिवार में तारे सी टिमटिमाई। हमने तो पोती पा जन्नत पाई। परिवार को परी सी भाई। मैया उसकी हरषाई। मैया ने बेटी जाई। मैया गोद संतान सुख समाई। बेटे-बहू तपस्या सफल वर पाई। हमने दादा-दादी पदवी पाई। मात-पित नाना-नानी पद पाई। कोऊ मौसी,कोऊ भुआ-फूफा बन लज्जाई, शरमाई। मोहे आज परिवार लगे स्वर्ग सम, मेरे अंगना लक्ष्मी आई। पायल झंकार सुनाने। मेरा अंगना तेरे अधरों की मुस्कान से सुमन सा खिला। सुंदर उपवन सा बना। परिचय :-...
तिनका-तिनका जिंदगी…
कविता

तिनका-तिनका जिंदगी…

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सिमटती रही मरुस्थल जैसी धारा पर मिट्टी के, रेत में लिपटे हुए इस शरीर में सारी खुशियां सारे दर्द मट मैले हो गए पर जिंदगी है तो जहां भी है मन रमता भी है उचटता भी तो है कभी सीलन सी हवाओं में, एक तिनका कहीं पकड़ आता, कभी गुम हो जाता किसी तूफान में तलाशती हूं, फिर भी अपनी सौगातों में कुछ बचे हुए अवशेष, लकीरें बन मिल जाते हैं सहेज लेती हूं इन टुकड़ों को नहीं देख सकती यूं ही व्यर्थ होते एक भी तिनका बेशकीमती हैं .... ये जिंदगी है तिनका-तिनका !! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की...
प्यार बाँटना सीखो
कविता

प्यार बाँटना सीखो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अपनो के लिए हम सभी जी लेते हैं कभी गैरों के लिए भी जीना सीखो। सिर्फ अपने लिए जिया तो क्या जिया कभी गैरों के लिए कुछ करना सीखो। इंसान है तो इंसानों का फर्ज भी निभा कभी गैरों के लिए इंसानियत सीखो। यह खुशियाँ तुझ पर खूब मेहरबान है कभी गैरो के लिए इसे लुटाना सीखो। किसी को गम देना तुझे खूब आता है कभी गैरों के लिए आँसू पोछना सीखो। किसी के चेहरे को रुलाना खूब आता है कभी गैरों के लिए मुस्कान देना सीखो। यह जिंदगी सदा खुशियों से भर जाए कभी गैरों के लिए प्यार बाँटना सिखो परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
चूडियाँ
कविता

चूडियाँ

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ऊर्जा सकारात्मक आती घर में, जब-बजती हैं सुहागन की चूडियाँ | कलियुगी सुहागिनें नहीं जानती , क्या होती सुहागन की चूडियाँ || नवग्रह शांत नव चूडियाँ गृह में, एकादश शांति प्रदान करें चूडियाँ | सम संख्या की संतान बचाती, सौभाग्य प्रदान करें पाँच चूडियाँ || आधुनिक शब्द सँवारे देवी तो, भला क्यों धारण करेंगी चूडियाँ | कर लिया यदि एक कडा धारण, उपकृत हो जायेंगी सारी चूडियाँ || होता है अपमानित अब श्रृंगार तो, रहकर करेगी क्या ये चूडियाँ | नहीं हो रहा है संमान इनका तो, जीवन में रहेगी क्या ये चूडियाँ || होंगी सम्मानित अगर ये चूडियाँ, सदा ही घर में बजेगी चूडियाँ | रखती सुरक्षित गृहस्थी चूडियाँ, यदि हाथों में रहेगी चूडियाँ || पहचान सृष्टि में बनी है चूडियाँ, जो जाती आधुनिकता में चूडियाँ | न निशानी किसी की अब चूडिय...
देश के लिए
कविता

देश के लिए

भोलाराम सिन्हा गुरुजी धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** भारत के वीरों से देश के लिए संघर्ष करना सीखें। अपनी पावन धरती के लिए बलिदान करना सीखें। देश को आजाद कराने के लिए अनेकों वीर शहीद हुए। ऐसे वीर शहीदों का सम्मान करना सीखें। अपने लिए जिये, तो क्या जीये यारो दीन दुखियों का सहारा बनना सीखें। हम भारत के और भारत हमारा। बाती की तरह जलकर प्रकाश करना सीखें। परिचय :-भोलाराम सिन्हा गुरुजी निवासी : ग्राम डाभा पो. करेली छोटी, वि.ख. मगरलोड़ जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
चौकीदारी छोड़ तू
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चौकीदारी छोड़ तू

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** सड़कों पर गुंडई दिखा वह खास हो गए, बदमाशी की परीक्षा में अब पास हो गए । ये राजा क्यो किताब से बाहर नहीं चलता- जब, टेड़ी अंगुलियों के सभी दास हो गए । सब हो गए हैं स्वार्थी, इस जंगल के पेड़ ये- झूंठे शब्द ही इनका अब विस्वास हो गए । इस घर का होगा क्या ये भगवान ही जाने- सारे ही नियम यहाँ के, बकवास हो गए । विकास के पहाड़ पर हम चढ़ते चले गए- पर ये हृदय क्यों हमारे बदहवास हो गए । डंडा की जगह गधों को जब पान दोगे तुम- तो आरोप तो लगेंगे ही क्यों उदास हो गए । ये चौकीदारी छोड़ तू, ग्वाले का काम कर- ये विकसित-खंडहर, ढोरों का वास हो गए । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार क...
हिंद रक्षक
कविता

हिंद रक्षक

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** खून खौला था कभी हम भारतीय सिंहों का जब काल बनकर किया तांडव विदेशी कायरों पे तब फिर से गरम खून वाली वो जवानी चाहिए भर दे ज्वाला इन रगों में वो रवानी चाहिए हम क्यों बने रहते हैं अंधे भोंके जब दुश्मन कटार अनसुनी करते हैं क्यों अपनों की सुनकर चीत्कार हो गया अब बहुत आग हर सीने में जलनी चाहिए फिर से गरम खून वाली वो जवानी चाहिए भर दे ज्वाला इन रगों में वो रवानी चाहिए भूलकर इतिहास से हम सीख कुछ लेते नहीं मूढ़ बनकर चुप हैं रहते अब भी कुछ चेते नहीं प्रताप भगत सुभाष की घर-घर कहानी चाहिए फिर से गरम खून वाली वो जवानी चाहिए भर दे ज्वाला इन रगों में वो रवानी चाहिए कुचक्र चालें चल रहें फिर देश के दुश्मन सभी भूलकर भी हम ना भूलें दुश्मनों के छल कभी भाँप लें छलियों को वो आंखें सयानी चाहिए फिर ...
इतना आसान है क्या
कविता

इतना आसान है क्या

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** तुमने कह तो दिया भूल जाओ भूलना इतना आसान है क्या, मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं जीना बिन तेरे आसान है क्या। सूख जाता है जब कोई शज़र छूट जाता है पत्तों का घर, टूटे पत्तों से जाकर के पूछो टूटना इतना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं.... जाने कितनी दफा हम तुम एक दूजे से छुप-छुप मिले, भूल जाते थे शिकवे सभी जब भी नैना से नैना मिले। इतने पहरो में मिलना कोई जान बोलो ना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं... याद तुमको वो वादे भी है क्या तुम थे मैं था और कोई नहीं, जाने कितनी ही रातें बिताई मैं जगा तुम भी सोई नहीं। इश्क़ की ऐसी लहरें उठी तैरना इतना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं... मैने माना था सब कुछ तुम्हें तुमने धोखा दिया क्यू मुझे, तुम सजाओगी घर को मेरे हाय सपनो के दीपक बूझे। ते...
एक अनजाना फरिश्ता
कविता

एक अनजाना फरिश्ता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी के किसी मोड़ में जब खुद को तराशने जी जरूरत हुई अनजाने राहों में अचानक ही एक अजनबी से मुलाकात हुई वो अपनापन का पहला एहसास आज फिर महसूस हुई और वो अजनबी अपना जाना पहचाना जरूरत बन गई कभी तन्हा का साथ था कभी कल्पना की दुनिया साकार हुई वो अजनबी वो अनजाना रिश्ता खास अजीज बन गई वो अजनबी जीवन के राह में अनजाना फरिश्ता बन गया मेरे हर अनकहे, अनजाने लब्जों को समझने लग गया हर दुःख हर सुख हर विपत्ति का सशक्त हमदर्द बन गया जीवन की अस्मिता का रक्षक बिखरते रिश्ते को संवारने लग गया गम के बहते हुए आंखों के अश्कों को शबनम की बूंदे बना गया आसमानी फरिश्तों के बारे में मैंने किताबों में पढा था जिंदगी के किसी मोड़ पे उस जमीनी फरिश्ते से मुलाकात हो गया मेरा दिल उसके मनमोहक छवि के आईने में कैद हो गया पता नही...
धुंध इश्क़ की
कविता

धुंध इश्क़ की

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** गहरे कोहरे सा है इश्क़ मेरा । तुमसे आगे कुछ दिखता नहीं ।। क़ोशिश करना इंसानी फ़ितरत है । हर सीप में मोती मिलता नहीं ।। तबस्सुम को तरसे बैठें हैं सब । उनके लबों पर गुलाब खिलता नहीं ।। हमसे शुरू है आशिकों की पीढ़ी । ज़माना उसमें हमको गिनता नहीं ।। ये इश्क़ है नायाब नूरानी हीरा । हर चौराहे पर "काज़ी" ये बिकता नहीं ।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
जो भूल गए
कविता

जो भूल गए

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** जो भूल गए इतिहास हमारा मैं उसे बतलाया करता हूं निद्रासन में सोए समाज को मैं जगाया करता हूं सुनो ध्यान से आज मैं तुमको ज्ञान की बात बतलाता हूं आदिकाल और स्वर्ण काल को वर्तमान में खींच लाता हूं मैं हूं वह जो अपनी कलम से रीतिकाल को जगाया करता हूं मेवाड़ मराठा राजपूत और वीरांगना लक्ष्मीबाई का गुण गाया करता हूं जो भूल गए इतिहास हमारा मैं उसे बतलाया करता हूं सुनो ध्यान से आज मैं तुमको ज्ञान की बात बतलाता हूं मैं रूढ़िवादी समाज में परिवर्तन की विविध आयाम लाया करता हूं भावनाओं को शब्दों में उकेर कर मानव में मानवता का प्रेम जगाया करता हूं पिता पुत्र सा स्नेह हो राजा प्रजा में ऐसा अटूट बंधन बनाया करता हूं जो भूल गए इतिहास हमारा मैं उसे बतलाया करता हूं सुनो ध्यान से आज मैं तुमको ज्ञान की बात बतलाता हूं वक्...
कौन सही है कौन ग़लत है
कविता

कौन सही है कौन ग़लत है

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कौन सही है कौन ग़लत है मुश्किल करना फ़र्क़ अपनी अपनी धारणा अपना अपना तर्क घन दौलत का है जीवन में जिसके भी अम्बार वही आज है बड़ा आदमीं बाक़ी सब बेकार सीधे सच्चे और शरीफ़ों को कौन डालता घास ग़ुरबत के मारे लोगों का होता है उपहास अनपढ़ और मवाली सारे बन बैठे सिरमौर डिग्रीधारी भटक रहे हैं नहीं पा रहे ठौर जो पथ भ्रष्ट नियत के खोटे है वही हैं आज कुबेर मुफ़लिस और मेहनतकाश की कौन पूछता ख़ैर कोई देश नहीं बन सकता जग में कभी महान श्रम को अगर नहीं मिलता है समुचित सम्मान बड़ा नहीं वह होता जिसमें परहित भाव नहीं बच के रहिए साहिल उससे दे न दे कुछ घाव कहीं परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्त...
तेरा सानिध्य
कविता

तेरा सानिध्य

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं तेरे पास रहूं तेरे साथ रहूं यही काफी है। मंत्रों का बोझ तंत्रो का ओज भारी सा लगता है। तेरी गोद में ममता भरी छाया में सोया रहूं यही काफी है। जन्म जन्मांतर की सिद्धियां युगों-युगों की रिद्धियां अब भारी सी लगती है तेरा हाथ पकड़ कर बस चलता रहूं हर जगह हर क्षण यही काफ़ी है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ...
ये दिल कहीं लगता नहीं बिन आपके…
कविता

ये दिल कहीं लगता नहीं बिन आपके…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! तन्हाई में ये दिल अक्सर बातें करता है तेरी अपनी बातों ही बातों में उलझा करता है ये पागल हो गया है ये दिल दीवाना एक ना सुने दुनिया के रिवाज माने ना जिद करे एक ना सुने जब देखूँ आईना मैं सिर्फ अपना ही अक्स देखूं ये दिल कहीं लगता नहीं आपके बिना क्या करूँ साथ तेरा चाहे हरपल बस तुझे चाहे ये दिल लम्हा लम्हा जीना चाहे साथ तेरे चाहे ये दिल नादां दिल तेरे सिवा कोई और ना चाहे ये दिल हाथों मेरे तेरा हाथ रहे हर लम्हा साथ चाहे ये दिल ऐ साथी तेरे बिना ये अधूरा जीवन भी क्या जीवन है मैं चकोर तुम चाँद हो मेरी हम दोनों ही एक हो गए है एक अनजानी चाहत में मैं खुद को खो बैठा तुममें तुझमें अपने आप को ही पाता हूँ सुध खो बैठा तुममें रोक न सकेगा जमाना हमको हम हो गए हैं आपके सोनू! हम बताएं ये दिल कहीं लगता न...
सुहानी भोर
कविता

सुहानी भोर

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुनो ना ! उषा के आलोक हुई आलोकित मैं तुम्हें विलोक अंतस: में मेरे फैला उजियारा तमस का न रहा कोई गलियारा सुहानी भोर भर रही नव चेतना किसी ठौर न रही अब कोई वेदना पल-क्षण दिवस-निसि निर्निमेष भरा उजास अंतस: तम न रहा शेष नव आशा संग उषा का हो आगमन नव उमंग संग हरषे सब के अंतर्मन नित-नित उषा आ वातायन से आलोकित करें आंगन जीवन में रहो आलोकित उषा के आलोक तुम हो तिरोहित जग के सब रंजो-गम आलोक नाम तुम्हारा हो सार्थक हर लो अज्ञान तिमिर सब निरर्थक सुनो ना ! उषा के आलोक होती प्रफुल्लित मैं तुम्हें विलोक उषा संग नित-नित तुम आना घर आंगन संग अंतर्मन जगमगाना परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
अपना संविधान
कविता

अपना संविधान

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** श्रेष्ठ बना अपना संविधान । लगता है यह खूब महान ।। इस पर हम सबको है नाज । है संविधान दिवस यह आज ।। कड़ी साधना से बन पाया । इसको हम सबने अपनाया ।। भारत का यह मान बढ़ाता । हम सब का इससे है नाता ।। चलती है सरकार इसी से । ऊपर है संविधान सभी से ।। नीति धर्म और न्याय इसी में । नही बात ये अन्य किसी में ।। भीमराव अम्बेडकर जी थे । मुखिया इस संविधान सभा के ।। छब्बीस नवंबर का दिन प्यारा । पूर्ण हुआ संविधान हमारा ।। सन् था उन्नीस सौ उन्चास । सबके मन में जागी आस ।। अपना देश अपना संविधान । गाएँ भारत माँ का गान ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षि...
रूठे-रूठे रवि
कविता

रूठे-रूठे रवि

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रूठे-रूठे रवि रविराज रूठे-रूठे से हाय रवि रश्मि धुंधलाई ओस कणो की रजत माल है करती जग की अगुवाई शीत समीर तन कांप रहा भरता रोमांच मन में मेरा मन खिले-खिले जाता देख का प्रकृति को प्रांगण में ठिठुरे से लगते हैं धुंध से गिरे करोगी शांत चीड़ के नीड़ से है आती आवाज खगवृद की मेरा चित्त चंचल हो जाता करने सैर उपवन की परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखि...
चलो धरा को स्वर्ग बनाएँ
कविता

चलो धरा को स्वर्ग बनाएँ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घृणा विश्व में बहुत हो गई, हम सब इसको दूर भगाएँ चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा को स्वर्ग बनाएँ। नहीं त्यागना कभी मीत को, सम्बन्धों को तोड़ न देना। रार अगर कुछ हो जाए तो, मुखड़ा अपना मोड़ न लेना। गए रूठ कर किसी बात पर, उन रूठों को आज मनाएँ। चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा को स्वर्ग बनाएँ। नही असंभव कहीं कर्म कुछ, संभव है सब आप करें तो। घृणा-उष्णता अगर घोर हो, प्रेम-पुष्प से ताप हरें तो। करें यत्न सब मिले जीत ही बंजर भू पर फूल खिलाएँ। चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा को स्वर्ग बनाएँ। कथन प्रेम के रहें नित्य ही, शब्द मधुर हों,क्रोध न आए। उसे रोक दें सदा प्रेम से, जो अनबन के राग सुनाए। सभी ओर हो मधुर रागिनी, सरगम ऐसी नित्य सुनाएँ। चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा...
वृक्ष लगाओ
कविता

वृक्ष लगाओ

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** वृक्ष लगाओ, वृक्ष लगाओ वृक्ष लगाओ रे हरियली को इस धरती पर फिर से लाओ रे हरी भरी धरती से जीना हो जाता आसान भोजन, पानी और हवा सब मिलते सगरे ठाम मिटी में तुम बीज को बो कर अंकुर लाओ रे वृक्ष लगाओ.... धीरे-धीरे नन्हे पौधे पादप में बदलेंगे हरे हरे पत्तों से अपने निज तन को ढक लेंगे फूल फलों से वृक्षों को फिर से सजवाओ रे वृक्ष लगाओ.... मीठे-मीठे फल खा करके उदर जीव भर लेंगे चिड़िया भी घोषाला बनाकर बच्चों को जन्मेंगे विश्व बनेगा स्वर्ग सरीखा हाथ बटा ओ रे वृक्ष लगाओ.... परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशि...
मेरा भारत
कविता

मेरा भारत

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत के लिए मरूँ मैं भी, यह गीत हृदय से गाता हूँ । नयनों के मध्य तिरंगा है, मैं नित नित शीष झुकाता हूँ ।। कर्तव्य यही बस मेरा हो, भारत की सेवा कर जाऊँ । खुशहाल रहे भारत मेरा, यह देख नजारा मर जाऊँ ।। १ ओ आदिशक्ति जगदंबे माँ, तन मन में बल भरदो मेरे । भारत की सेव करूँ मन से, अद्भुत क्षमता कर दो मेरे ।। यह कलम लिखे नित भारत को, हे वींणावादिनि वर देना । सपनों में भारत हो मेरे, कल्मष स्वारथ के हर लेना ।।२ बस एक रहे भारत मेरा, बलपौरुष में सबसे आगे । भारत की क्षमता देख-देख, दुश्मन पीछे को ही भागे ।। चहुँ ओर सुरक्षित भारत हो, बस ध्यान यही नित मैं ध्याऊँ । हर भारतवासी के उर में, केवल भारत को ही पाऊँ ।।३ स्निग्ध प्रबल उर भाव वसे, भारत के लिये हमेशा ही । शास्त्र शस्त्र हो कर मेरे, यह लक्ष्य रहे बस ऐस...
सबसे बड़ी अमानत
कविता

सबसे बड़ी अमानत

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्राणों को इस माटी में न्योछावर करता। देश का सैन्य बल, हमारी सबसे बड़ी अमानत है। सीमा पर डटे वीर जवान, कर्तव्य निभाना मात्र लक्ष्य है। कड़कड़ाती ठंड में, चिलचिलाती गर्मी में, धुआं धार बारिश में, माँ भारती की रक्षा यही समर्पण भाव है। फ़र्ज़ है देशवासियों का सैन्य शक्ति का करें सम्मान। मुख्य पदासीन नेतृत्व को, मिलकर करना हमें मजबूत। जल, थल, नभ सैन्य शक्ति, देश रक्षा में जी जान से जुटी है। कर्तव्य हमारा हौसला बढ़ाना, करें शुभ भावना का दान। सेना की सुविधाओं में, नयी तकनीकों के साधन हुए बहाल, सेना की ताकत है, योग्य सरकार। सरकार की शक्ति, योग्य जन समुदाय। देश का सैन्य बल हमारी सबसे बड़ी अमानत है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुके...