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कविता

मशाल
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मशाल

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कलम को चिराग बना कर अज्ञान का तमस फ़ना कर सोया है सदियों से वो जगा उसे शोला बना कर अहिंसक है या नपुंसक पूछ उससे मर्द बना कर कुछ मूषक है कुछ विदुषक ला सामने शेर बना कर जिसने इसे सुलाये रखा पेश कर गुनहगार बना कर रोक ले जाने वालों को वो जा रहे बात बना कर मुझे ज़मीर जिंदा चाहिए लाना मत मुर्दा बना कर नूर पर डाल रखा पर्दा जला उसे आग बना कर दिया है धोका लोगो को भेड़िये को भेड़ बना कर हर तरफ उजाला कर दिया कलम को मशाल बना कर परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वार...
अच्छा हमें अब लगने लगा है
कविता

अच्छा हमें अब लगने लगा है

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हमें अब लगने लगा है, मार्केट जो फिर से खुलने लगा है, रहती थी जो वीरान गलियां, वहां भी अब रस होने लगा है। बच्चों को डर सा लगने लगा है, स्कूल खुलने की आहट जब से वो सुनने लगा है, अब तक मजे करे थे वो छुट्टियों में, अब दिल उनका घबराने लगा है। श्रमिकों का चेहरा खिलने लगा है, लाॅकडाउन खुलते जब से वो देखने लगा है, बैठे थे वो बेरोजगार अब तक घरों में, उन्हें फिर से अब कामधंधा मिलने लगा है। सच में सबकुछ पहले जैसा होने लगा है, मिलने जुलने का चलन फिर से जो बढ़ने लगा है, डर था इस वायरस का जो मन में भरा हुआ, वो भी अब कम होने लगा है। पर खतरा अभी कहाँ पूरी तरह टलने लगा है, फिर ना जाने क्यों इंसान कोरोना अनुरूप व्यवहार को छोड़ने लगा है, दूसरी लहर असावधानी और लापरवाही का ही परिणाम थी, क्या ये बात व...
मोक्षदायिनी गंगा
कविता

मोक्षदायिनी गंगा

मंजुला भूतड़ा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत की सबसे लम्बी नदी, पुण्य सलिला हिमालय पुत्री गंगा। गंगा दशमी अवतरण दिवस, सभी गंगा स्नान कर पाते यश। हिन्दुओं की सबसे पवित्र नदी, हर घर में गंगाजल पूजन-नमन, पूर्वजों का स्मरण श्राद्ध तर्पण, पिंडदान जल-अर्पण, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, जमनोत्री गंगा किनारे ये चारों धाम। हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद पाते गंगा सामीप्य का लाभ। शिव की जटाओं से प्रवाहित, गंगा शक्ति और भक्ति। अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी हुगली नामों से भी जानी जाती। फरक्का, टिहरी आदि बांध, अनेक नहरों का जीवन, उपजाऊ गंगा का डेल्टा, गंगा स्वयं सिंचाई का स्त्रोत। गंगा में होता अस्थि विसर्जन, न जाने कितने अवशेषों का वहन, निरन्तर कर रही सरकार प्रयत्न, प्रदूषण से बचाने का हरेक जतन। जीवनदायिनी, पापनाशिनी, मोक्षदायिनी पुण्य स्थली, भारत की भाग्...
पुरवैया
कविता

पुरवैया

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** प्रेम नगर से चली आई पुरवैया ये तो बता प्रियतम कैसे है जिनके पास है दिल हमारा सनम बिना मेरे कैसे है? कोई संदेशा देजा पुरवैया साजन की बगिया से आई है उनके नाम से शर्माती अखियां वो भी क्या मुझ बिन तड़पे है? आंचल लहराए जब पुरवैया रंग चुनरिया का तो बता दे जिनकी याद में रहे जागते उनकी शामें ढलती कैसे है? कोई निशानी प्रेम की पुरवैया उनकी सुगंध संग ले आना जिनकी चाहत में खोए रहते वो भी तलाश में क्या मेरे है? झोका हवा का लाई पुरवैया ये तो बता साजन की गली की हंसी ठिठौली कैसी है सनम याद में क्या रोते हंसते है? परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
किंकरी  देवी
कविता

किंकरी  देवी

सपना दिल्ली ************* किंकरी  देवी न तो वह शिक्षित नहीं क़ानून का ज्ञान बेहद आम सी औरत हिमाचल में था आशियाना उनका किंकरी देवी था जिनका नाम...... पहाड़ों से  बेहद लगाव खनन माफिया से बचाने पहाड अकेली ही विरुद्ध खड़ी हो गई उनके.... डराया गया, धमकी भी मिली फिर भी अजब निडर थी जान की परवाह किये बिना डटी रही अपने लक्ष्य पर.... हिम्मत न हारी, विरोध हुए बहुत कर खुद पर विश्वास, न्याय खातिर भूख हड़ताल भी की उन्नीस दिन.. आखिर वह समय आया सपना हुआ पूरा, अधिकार मिला खनन माफिया का मिटा कारोबार.... जाते जाते लोगों को पर्यावरण का महत्व सिखा दिया नई पीढ़ी को दिए कई ऐसे उपहार .. ऐसी नारी शक्ति को नमन शत् शत् नमन। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) सा...
मुझसे बात नहीं करोगी
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मुझसे बात नहीं करोगी

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** मुझसे बात नहीं करोगी तो मेरी रात नहीं होगी, अगले कल से कभी भी मेरी मुलाक़ात नहीं होगी। तुमसे ही बात करके ही जो जीता हूँ मैं, मेरी ज़िन्दग़ी में अब "खुशी" की बरसात नहीं होगी। तुम्हारा मुझे डाँटना मुझ पर गुस्सा करना सबकुछ मुझे प्यारा लगता है, बिना इसके मेरी ज़िन्दग़ी की कभी सुबह-ओ-शाम नहीं होगी। जबसे दोस्ती हुई तुमसे हर कोई मेरी तारीफ़ करने लगा, बिना तुम्हारी दोस्ती के मेरी ज़िन्दग़ी कभी खास नहीं होगी। माँ का दर्जा दे दिया हूँ तुमको मेरी "खुशी", बिन माँ के किसी मोहब्बत की शुरुआत नहीं होगी। सारी उम्र आपको अकेले ही याद करता रहूँगा, शायद इससे हमारी दोस्ती में कोई खटास नहीं होगी। भूलने का नाटक भले कर लेना "खुशी" पर मुझे भूल नहीं पाओगी, इससे ज्यादा किसी की दोस्ती कभी खास नहीं होगी। भगवा...
माता और पिता
कविता

माता और पिता

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** शुक्र है भगवान तेरा जो तूने माता पिता को बना दिया सूर्य और चंद्रमा की तरह तूने माता और पिता को बना दिया पिता को सूर्य की तरह तेज तो माता को चांद की तरह शीतल एक आशा की किरण देता तो दूजी जीवन मे शांति शुक्र है तेरा भगवान जो तूने माता पिता को बना दिया फूल और नारियल की तरह तूने माता और पिता बना दिया माता को पूजा का फूल तो पिता को नारियल के जैसा बना दिया एक पूजा को सुगंधित करती तो दूजा पूजा को पूर्ण शुक्र है तेरा भगवान तूने माता पिता को बना दिया परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
जीवन के मूलाधार पिता
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जीवन के मूलाधार पिता

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन का मूलाधार पिता सुख स्वप्नों का साकार पिता ऊबड़ खाबड़ पगडंडी पर पथ सत्य दिखाती राह पिता।। कलुषित तम में प्रकाश पिता निराश हृदय की आस पिता आपाधापी दुर्गम पथ पर पुष्पों संग सजा हे थाल पिता जीवन का मूलाधार पिता।। मेरा जीवन अभिमान पिता स्वावलंबन स्वाभिमान पिता कच्ची मिट्टी के लोंदें हम गढने वाला कुम्हार पिता। सुख स्वप्नों का साकार पिता।। संघर्षों के आधार पिता संकट में ढालाकार पिता दुख सुख लाभ हानि समक्ष पर्वत सी अटल दीवार पिता।। हम सबकी जीवन आस पिता।। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
मेरे पिता
कविता

मेरे पिता

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** मुझे था अपने पिता जी पर बहुत नाज था कोमल मन और सदृढ आवाज शांत स्वभाव और खुश मिजाज ना कभी गुस्सा ना ही कभी नाराज शायद मेरी हर बात जानते थे मेरी हर नब्ज पहचानते थे हर काम में सहयोग करते और मेरी हर बात मानते थे कड़ी मेहनत और लग्न से हमे पढाया ऊँची शिक्षा दिला कर डाक्टर बनाया आर्थिक, सामाजिक शिक्षा का ज्ञान बताया धार्मिक और परिवारिक संस्कार का पाठ सिखाया क्या लेना क्या देना का गणित समझाया चोरी और झूठ से कोसो दुर भगाया नीति और नियत का मतलब बताया भूखे को रोटी असहाय की मदद का फर्ज सुनाया मेरे गुरु मेरे मित्र थे मेरे पिता मेरा अस्तित्व, मेरा मान, थे मेरी पहचान मेरी माँ के माथे का सिंदूर, थी माँ की शान स्पष्टवादी, राष्ट्रवादी थे नेक दिल इंसान हे भगवान, हे पालनहार, हे दाता मोहन करे बिनति मुझे हर जन्म ...
राजनीति
कविता

राजनीति

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** राजनीति कुत्सित हुई और लोकतन्त्र लाचार हुआ आदर्शों की बात न पूछो मन में व्याप्त विकार हुआ निज हित ही सर्वोपरि सबसे राष्ट्र नहीं चिंता उनकी वीर शहीदों का सपना तो सब का सब बेकार हुआ संविधान की खिल्ली उड़ती संसद के भीतर बाहर जाति और मज़हब का मुद्दा अच्छा कारोबार हुआ भोग तंत्र में बदल गया है लोकतंत्र इस देश में सत्ता के ऊँचे आसन पर उल्लू का अधिकार हुआ पढ़ालिखा तो बेल बीनता अनपढ़ मंत्री मालिक हैं रोटी कपड़ा का भी सपना कब उनका साकार हुआ बापू अपने अनुयायी से कोई एक सवाल करो फटेहाल जो कल थे आख़िर अरबों का संसार हुआ साहिल जिनको समझ रहे थे वो ही नाव डुबोते हैं दीमक जैसा चाट रहे हैं घर का बंटाधार हुआ परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मन...
रक्तदान कार्य महान
कविता

रक्तदान कार्य महान

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रक्त दान सब मिलकर अपनाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। हुई दुर्घटना मानव खून बह रहा, देखो प्राण संकट अब बढ़ रहा, रोगी के लिए फरिश्ता बन जाओ जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... आज मानव ईर्ष्या अग्नि में तप रहा, मानव ही मानवता का शत्रु बन रहा मानवता संग प्रेम का दीप जलाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... जीवन में कुछ कुछ दान सभी करते, अन्न, धन, विद्यादान तो सभी करते, एक विशिष्ट दान का संकल्प उठाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... इस जगत में रक्तदान है कार्य महान, मानव के प्राण रक्षा का सुंदर विधान, विधान में पुण्य भागीदार बन जाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शि...
खामोशी
कविता

खामोशी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हर जुबां कुछ कहती है, खामोशी से हर दर्द सहती है...! कुछ दर्द का नाम खामोशी है तो कुछ खामोशी दर्द के नाम है..!! रात के अंधेरों मे निकलते है, जो आँसू उनको सह लेती है खामोशी...! दिन के उजालों मे झूठी सी मुस्कान दे जाती है खामोशी..!! न जाने कितनी ही फाइलों मे दर्ज हुई है, खामोशी...! कुछ खुली तो कुछ अभी-भी छुपाई गई है खामोशी..!! खामोश है आज भी वह अखबार इस बात से...! कि फेल न जाए, कोई अफवाह सच के नाम से..!! खामोशी से आज भी सह लेता है, वो टूटा हुआ दिल हर गम...! कि कोई आँख न हो जाए उसकी वजह से नम..!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
अदाकारा नहीं है वो
कविता

अदाकारा नहीं है वो

रुखसाना बानो अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर) ******************** अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर किरदार निभाने पड़ते हैं। माँ के रूप में है ममता का अम्बार, बेटी के रूप में है वो सम्मान। ज़रूरत से ज़िम्मेदारी तक, वन्दनवार सजाने पड़ते हैं। अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर किरदार निभाने पड़ते हैं।। बहन के रूप में है वो अभिमान, पत्नी के रूप में है वो स्वाभिमान। विश्वास से लेकर वफादारी तक, हर रिश्ते पिरोने पड़ते हैं। अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर किरदार निभाने पड़ते हैं।। संगी, साथी और मित्र क्या नाम दे उसे, हर क़दम पर जिसने संभाला है हमें। अँधेरे बनकर रौशनी की किरण, उजालों के दिए जलाने पड़ते हैं। अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर क़िरदार निभाने पड़ते हैं।। परिचय :-  रुखसाना बानो विद्यालय : कम्पोजिट विद्यालय अहरौरा निवासी : अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर)। घ...
अनंत प्यास जरूरी है।
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अनंत प्यास जरूरी है।

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** हर दिन के बाद रात आती है सही है, पर रात हमेशा टिकती नहीं, जाती है। फिर प्रभात के साथ गुनगुनाता हुआ सूर्य अपनी लालिमा बिखेरता जीवन के लय में मगन खुशी के गीत गाता है। रे मन अंत से निराश न हों क्योंकि हर अंत के बाद नया आरंभ होता है। टूटते है स्वप्न, चुभती है काँस। गले में अटक-सी जाती है हारने की फाँस। पर हार से हारना नहीं झुकना नहीं, रुकना भी नहीं। रे मन हार से निराश न हो क्योंकि हर हार नई जीत का संदेश लाती है। नए जीवन के प्रस्फुटन के लिए विध्वंस जरूरी है। विरह के स्वाद को चखे बिना प्रीत होती कहाँ पूरी है? तो विध्वंस से डर कैसा? रे मन प्यास से व्याकुल न हो क्योंकि संपूर्ण तृप्ति के लिए अनंत प्यास जरूरी है। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड...
हमें समझना है
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हमें समझना है

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** अब तो हमें समझना है, प्राण वायु के लिये कुछ करना है, जो कटने जा रहा है बकस्वाह जंगल, उसको हम सब को रोकना है। पर यह सब कैसे करना है, प्रश्न तो यह मन में उठना है, जैसे चला था वो चिपको आंदोलन, बस वैसा ही तो करना है। किसी एक तो बहुगुणा बनना है, फिर सब को एकजुट करना है, और इस तरह सामूहिक प्रयास से, इसे खत्म होने से रोकना है। पर प्रयास यहाँ तक ही सीमित नहीं रखना है, हमें इससे आगे भी काम करना है, क्यों कुर्बान कर दिये जाते हैं लाखों जीव जंतुओं के आश्रय स्थल, इस पर भी विचार करना है। हमें विकास का माॅडल बदलना सिर्फ मानव जाति पर ही फोकस नहीं करना है हो सके सभी का संतुलित विकास ऐसी रणनीति पर काम करना है। यह धरती है सभी जीव जंतुओं की भी, अतः सभी का ध्यान रखना है। यह धरती है सभी जीव जंतुओं की भी, अत...
दिल की गहराइयों में
कविता

दिल की गहराइयों में

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल की गहराइयों में दर्द तेरा शामिल है मेरे अश्क़ों का समंदर ही मेरा साहिल है ऐसे पीछे से चलाया गया खंजर मुझ पर हर तरफ़ जैसे लबे-बाम मेरा क़ातिल है मन की बातों को मसोसे हुए मैं बैठ गई आरजू़ कैसे बयाँ हो जो खडा़ जाहिल है मर तो जाऊंगी पर हिम्मत नहीं हारूँगी मैं मेरी रग-रग में मेरी माँ की दुआ शामिल है कब से बैचैन हूँ तन्हाइयों में रोती हूँ दोस्त क्या मेरी जिस्त में पैवस्ता यही हासिल है सुर्ख़ कदमों में लिये फिरती हूँ गाहे-गाहे आबले कौन भला समझे कहाँ आकिल है खू़ब मालूम है तूफ़ां है ये साहिल तो नहीं तू ही कहदे इसे 'कोमल' तो यही साहिल है गाहे-गाहे (जगह/जगह) आबले (फफोले/छाले) परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी...
चौखट पर ससुराल की
कविता

चौखट पर ससुराल की

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ससुराल की चौखट पर कुमकुम के पैरों से उसका पहला प्रवेश थोड़ी सहमी, थोड़ी शरमाई सी सेज पर अपने मन के भावों को समेटती वो। नए जीवन की उमंग लिए प्रीतम के इन्तज़ार में सिमटी सी बैठी हुई सोच रही है। नये रिश्तों का ताना-बाना कैसे बुनेगी वो? कोशिश रहेगी कि सब को ख़ुश रखेगी वो। उम्मीद कि जो ब्याह कर लाया है उसे समझेगा वो? ग़लतियों की गुंजाइश के डर के साथ बस यही तानाबाना बुन रही है वो। कुमकुम के पैरों से ससुराल की चौखट पर उसका पहला प्रवेश परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
योग
कविता

योग

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** योग कृष्ण के गले में हे सुन्दर माला, विश्व के लोगों ने भी बनाई है योग माला मुलाकात होती है एक संजोग २१ जून को पूरा देश करेगा योग अंग्रेजी में ट्यूज़ड़े, वेडनसडे एंड थरसड़े फ्री स्टाईल से मनाते हैं लोग यहा बर्थ डे भारत देश हे प्यारा और लवली बाबा रामदेव कराते हैं रोज नावली यदि रोग के बारे में तुमने जाना योग से बच सकते हैं दवाई के पेसा यदि रोजाना करेंगे तुम योग नहीं रहेगा आप के शरीर में रोग मुस्लिम समुदाय को सूर्य नमस्कार में बाधा कोई बात नहीं चाँद के सामने करो तुम आधा मी. नरेंद्र मोदी ने लगाया सफाई का नारा रोग भगाने के लिए स्वच्छ रहेगा देश सारा लोग कहते हैं, जगत हे मिथ्या किन्तु योग से बन सकता है विश्व प्यारा योग करने के लिए मे विनती करू मत पीना तुम कभी बीड़ी सिगरेट दारू पोरबंदर की प्रख्यात हे ख़ाजली योग ग...
पिता
कविता

पिता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता का दाहसंस्कार कर घर के सामने खड़े होकर अपने पिता को पुकारने की प्रथा जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती भर जाती आँखों में पानी वो पानी बढ जाता गला रुँध जाता, तब जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला और सामने जल रहा हो दीपक बचपन की स्मृतियाँ संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर जो काम पिता कर लेते थे वो लोगो से पूछकर करना पड़ता होंसला अफजाई और परीक्षा में पास होने पर पीठ थपथपाई भी गुम सी गई अब में पास हुआ किंतु शाबासी की पीठ सूनी सी है और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके और रौशनी रास्ता भूल गई पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में इंतजार है श्राद पक्ष का पिता आएंगे पूर्वजो के संग धरती पर अपने लोगो से मिलने जब श्राद में पूजन तर्पण और उन्हें याद कर...
ओ माँ मुझे बतलादे
कविता

ओ माँ मुझे बतलादे

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** तुझको कैसे बतलाउँ तुझे कितना में चाहूँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ अपने मन मंदिर में तेरी मूरत बसाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ तूने जनम् दिया है मुझको तूने मुझको पाला हे हर मुश्किल में हर विपदा में तूने मुझे संभाला हे तू मुझसे रूठी हे सबको कैसे बताऊँँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ नो महीने मुझे रखा पेट में खुद में मझको ढाला हे दुःख सह सह कर आँसू पीकर तूने मुझको पाला हे इतना प्यार दिया हे उसको कैसे भुलाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ जब भी घिरा अंधेरों में माँ तू ही तो उजियारा थी तेरी करुणा की छाती में प्रेम सुधा की धारा थी तेरी हर इक साँस का ऋण मैं कैसे चुकाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ मेरे गम में मेरे दुःख में ...
कोरोना काल से निर्भयता की ओर…
कविता

कोरोना काल से निर्भयता की ओर…

जितेन्द्र पटैल (कुशवाहा) गाडरवारा नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर मिलेगी दरख़्तों की छांव, फिर वही माहौल होगा गाँव-गाँव, देखना फिर से चौपालें लगेंगीं, और चबूतरे श्रृंगारित होगें गली-गाँव। हर एक, हर एक से मिल पाएगा, यह निबिड़ अंधेरा, समाप्त हो जाएगा, और फिर से मिलेंगे मेरे आपके हँसी के दाँव, खुशी आएगी हर जगह, हर गाँव। यह माहौल भी अस्थाई है, चिरंतन तो खुशी और निर्भयता होगी, हमें मिलती रहेगीं बड़े बुजुर्गों की आशीष छाँव, खुशियां फैलेगीं, गाँव-गाँव। अंधकार कभी नहीं रोक पाया है सबेरे को, शोर को शांति कभी जीतने नहीं देगी, फिर हम मिलेंगे, फिर वही माहौल होगा, आध्यात्मिक वातावरण होगा गांव-गांव। जगह-जगह मिलेगे प्राकृतिक पडाव, खत्म होगें इस आशंका के भाव, अब देर नही है यारों देखिएगा, जब मधुवन होगा हर गली, हर गाँव परिचय :- जितेन्द्र पटैल (कुशवाहा) निवासी...
मानव मन
कविता

मानव मन

राजीव रंजन पांडेय राजधनवार गिरिडीह (झारखंड) ******************** सच में तारुण्य एक अंधी होती है जिसकी अपनी एक गति होती है संकल्प विकल्प क्रिया मन से ही जीवन जीने हेतु सुबुद्धि होती है हर तरफ गहरा अंधेरा दिखता है हर हृदय सूखे सरोवर सा लगता है पूरब में लालिमा अब आने लगी है अब मानव शक्ति प्रगट होने लगी है बहुत कुछ मिला हमें यहां औघड़ दानी उस ईश से जिसने प्रेम किया यहां के हर प्राणी प्राणी से परिचय :-  झारखण्ड प्रदेश के गिरिडीह मंडलान्तर्गत राजधनवार क्षेत्र में रहने वाले राजीव रंजन पाण्डेय पिता संजय कुमार पाण्डेय की शैक्षिक योग्यता संस्कृत से स्नातकोत्तर और बी.एड है जो कि बिनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग से पूर्ण हुई है। आप लगभग दो साल तक राज्य सरकार द्वारा अनुदानित एक विद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवायें दे चुके हैं, वर्तमान समय में आप आज अपने पिता और...
खुद को जानो
कविता

खुद को जानो

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** खुद को जानो और खुद की अहमियत पहचानों क्योंकि ये स्वर्णिम वक्त निकल जाने के बाद कोई भी नहीं लौटा पायेगा आपके माता पिता भी नहीं छोटे थे हर बात भूल जाया करते थे दुनियाँ कहती थी याद करना सीखो बडे़ हुए तो हर बात याद रहती है दुनियाँ कहती है भूलना सीखो सभी समय-समय की बातें है बैठे-बैठे कैसा दिल घबरा जाता है जाने वालों का जाना याद आ जाता है ज़िंदगी से बड़ी सजा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं खुद को जानो और खुद की अहमियत पहचानों परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
जहाँ के तहाँ रह गये
कविता

जहाँ के तहाँ रह गये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** वक़्त पर बेजुबां रह गये वे जहाँ के तहाँ रह गये नानुकुर कुछ भी आया नहीं बस निवाले जहां रह गये जुल्म सहते रहे उम्र भर सोचते खामखां रह गये फर्श से अर्श तक ले गये ऐसे काँधे कहाँ रह गये आँख के खून बादल हुये और बन के धुआंँ रह गए पीर बस कसमसाती रही तीर तो बदगुमां रह गये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
अमर सपूत महाराणा प्रताप
कविता, संस्मरण

अमर सपूत महाराणा प्रताप

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** राजपूती शान हैं राणा! देश का अभिमान हैं राणा!! मुगलों के समक्ष नग सम अटल! चित्तौड़-आन रक्षक थे राणा!! राणा भरे जब-जब हुंकार! समर में गूंँज उठे टंकार!! भयभीत मुगल कांँप उठे थे! राणा के शौर्य कि जयकार!! हल्दीघाटी विकट संग्राम! टकराया असि सँ असि का जाम!! अरिदल शीघ्र हुए भू-लुंठित! पर चेतक पहुंँचा परमधाम!! गिरि-सा साहस था राणा का! चेतक भी अद्भुत राणा का!! इतिहास- अमर जिसका उत्सर्ग! स्वामी -भक्त अश्व राणा का!! जंगलों की खाक थी छानी! घास की रोटी पड़ी खानी!! पर गुलामी नहीं स्वीकार! यशोगाथा जग की जुबानी!! मरुभूमि हो गई रे निहाल! पाकर राणा-सा वीर लाल!! स्वाभिमानी औ पराक्रमी! गौरव तिलक भारत के भाल!! आज स्वार्थ का ऐसा चलन! राष्ट्र हित नित हो रहा दहन!! दिव्य चरित स्मरण कर भारत! राणा का देश-हित-स्व-हवन!! परिचय...