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कविता

बारिश आई
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बारिश आई

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रिमझिम रिमझिम बारिश आई, भीग रहा गुड़िया का भाई। दौड़ी गुड़िया छाता लाई, बूंदों से झट उसे बचाई। झम झम झम अब बरसा पानी, छत पर भीगें दादी नानी। रानी गुड़िया शोर मचाये, छत से नीचे उन्हें बुलाये। पापा भी ऑफिस से आए, अपना गीला छाता लाए। छाता टपके टप टप पानी, देख देख हँसती है नानी। पानी पानी पानी पानी, चारों ओर भर गया पानी। बच्चे पल-पल शोर मचाये, आज पकौड़ी हमको खानी। सुन बात पकौड़ी मन डोला, पापा ने भी झटपट बोला। गरम पकौड़ी आज बनाओ, बारिश में यह लुफ्त उठाओ। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतर...
चलो कहीं घूम आए
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चलो कहीं घूम आए

मीनाक्षी झा रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** चलो दोस्तों कहीं घूम आये सारे गम को भूल जाये फिर से जी ले एक बार अपने लिये बारिश में वो कागज की कश्तिया बनाऐ आसमान में गुब्बारे उड़ाये रेत में घरौंदे सजाऐ बचपन के दिन लौटा आये चलो दोस्तों कहीं घूम आये ... खिन्न होता सा ये जीवन फिर से इसे बेबात हंसना सीखाऐ बिना किसी खौफ के जीना सीखाऐ वक्त के पहिए ने इसे पेचीदा सा बना दिया चलो मिल कर ‌ एक-एक गांठ हम खुद सुलझाए चलो दोस्तो कहीं घूम आये ... परिचय :- मीनाक्षी झा निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) शिक्षा : स्नातकोत्तर (शिक्षा मनोविज्ञान) सम्प्रति : शिक्षिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
बारिश का मौसम
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बारिश का मौसम

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** इंतजार की घड़ी हुआ खत्म भूरे-काले बादल वर्षा की चांदनी बूंदे धरती के चरणकमल पखारे सूखी मिट्टी की ढेर पथरीली मैदान नजरें जिधर भी निहारते हरी भरी वसुंधरा नजर आए देख परिदृश्य ह्रदय शांति भर आए... संगत मधुर बड़ी है कुदरत की फल स्वरुप पल रहे जो प्राणी भुरे-काले बादलों की छांव हरे भरे पेड़ों का रूप रंगों का संयोजन चमत्कृत करता... गीली राह तस्वीर बनाएं इन गलियों को हम कैसे भूल जाए जल से संभव मानव जीवन धरती का श्रृंगारगार बढ़ाएं हरियाली से वातावरण अनुकूल हो जाए... पौधों की कुलगियो पर कंधे सा फेरती जाए बदलता पल-पल प्रकृति स्वरूप अपना दिखलाएं भुरे- काले बादलों की झुंड धरती पर वर्षा बनकर बिखर जाए... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा प...
गुज़र गया एक और साल
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गुज़र गया एक और साल

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** इश्क़ की मीठी बतियां और तक़रार भी हुई। कभी आया पतझड़, कभी बहार भी हुई।। तेरी चाहत की छांव में ज़िंदगी गुज़ार दी। सौंपा ख़ुद को मैंने अपनी ख़ुशियाँ वार दी।। कहाँ से कहाँ पहुंच गये बात ही बात में। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। ख़ुशबू की तरह आयी थी तुम ज़िंदगानी में। हो ख़ूबसूरत एक परी मेरी कहानी में।। साये की तरह साथ रही धूप-छांव में। बस गई हो अब मेरी चाहत के गांव में।। लगता नहीं है डर मुझे अब दिन और रात में। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। इश्क़ के हसीं सफ़र की रहगुज़र हो तुम। मंज़र ए ख़ुशगवार हो, मेरी नज़र हो तुम।। हूँ दुआ-गो इस सफ़र में साथ तुम रहो। हूँ तुम्हारी, बस तुम्हारी, दिन-रात तुम कहो।। कुछ भी नहीं रक्खा है शह और मात में। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। पर...
आबादी की मार
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आबादी की मार

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** समय से पहले चेतो भैया ख़बरदार सरकार नहीं झेल पाएगी पृथ्वी आबादी की मार दाना पानी दुर्लभ होगा भूखे मरेंगे लोग लूट-पाट का आलम होगा मचेगा हाहाकार मार-काट का मंजर होगा वीरानी गलियाँ रक्त से रंजित सड़कें होंगी उफनेगी नलियाँ मतलब क्या जीवन का होगा इस पर गौर करो मचेगा तांडव चौतरफ़ा फिर बिलखेगा संसार अभी वक्त है संभल जाइए वरना पछताएँगे बहुत भयावह मंजर होगा भूखों मर जाएँगे खेतों में ही पैदा होगा तेरा रोटी दाल हमें दीख पड़ता भविष्य में दुर्दिन का आसार मरेंगे लोग अकाल मृत्यु से कदम कदम यमराज उदर कचोटेगा तड़पेंगे नहीं हो पाएगा इलाज संकट में है सृष्टि सोचिए अब तो कोई उपाय साहिल नहीं दिखेगा कोई जो छाये घर द्वार परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति ...
सिस्टम से बाहर
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सिस्टम से बाहर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जो सिस्टम से बाहर जायेगा... अपनी अलग एक सोच रखकर। भीड़ की मूर्खता से टकरायेगा। सिस्टम की मशीन में, सबसे पहले वहीं काटा जायेगा। जो सिस्टम से बाहर जायेगा... भेड़-बकरी की सोच रख, और झुंड में ही जो जीवन बितायेगा। अपनी-अपनी दुनिया में मस्त होकर। भीड़-सा व्यस्त जो नही रह पायेगा। नयी सोच से जब-जब भी, दुनिया को तू जगायेगा। यह दुनिया वैसे ही चलेगी। बस तू सिस्टम से कटकर, सदा की नींद सो जायेगा। जो सिस्टम से बाहर जायेगा... इस भीड़ की अपनी दुनियां है, तू किस-किस को समझायेगा। बहुत आयें बदलने इसको, लेकिन नई सोच दे नही पायें है। जिस-जिस ने भी सिर उठाया है। सिस्टम की मशीन से, खुद को कटा हुआ पाया है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्व...
वो सलामत रहे
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वो सलामत रहे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आना जाना जीवन में लगा रहता है। हर रंग का आनंद जीवन लेता है। कौन कब कहाँ अपना मिल जाए। और वर्षो के पुराने किस्से याद करा दे।। हम तो आपके दिल में कब से हैं। आपने कभी दिलको टटोला ही नहीं। और दिल की हर बातें जान के। जनाब हम आप पर लिखते हैं।। हम यूं ही शब्दों की कविता को पन्नों पर उतारकर नहीं लिखते। हम अपने उस अजीज को दिलकी गहराइयों से समझते है। इसलिए बेपनाहा मोहब्बत करते है। और सलामती की दुआएं मांगते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती है...
गांव और शहर
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गांव और शहर

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* जहां पनघट पर गांव की, बालाओं को चढ़ते देखा था। जहां खेत जाते किसानों को, हल चलाते देखा था।। बरगद के पेड़ के नीचे जहां, चौपाल लगाई जाती थी। और फैसला होने पर, बात पंचों की मानी जाती थी।। जहां गन्नों के खेतों में, कोल्हू से रस निकलता था। मीठे गुड़ की खुशबू से, तब वातावरण महकता था।। हर घर का आंगन भी, मां तुलसी से सुशोभित था। जहां ढोलक और मजीरों पर, स्त्रियों का संगीत गूंजता था।। छोटे-छोटे बच्चों को दादी, नानी की कहानी में लगाव था। गायें थी हल था अलाव था, वही मेरा गांव था।। और यहां प्रदूषण फैलाती हुई, बसें हैं कारें हैं टैक्सी हैं। चौराहे दर चौराहे पर , भीड़ भरी गैलेक्सी है।। नल है कल है कारखाने हैं, इंसान का इंसान से कोई नहीं रिश्ता है, मशीनों में जीता है मशीनों में पिसता है।। हर घर में टीवी है मोबाइल...
सावन मनभावन
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सावन मनभावन

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सावन तेरे संग-संग धरा पे निखरे अनेकों रंग हरितिमा के कालीन पर मेघ शिशु अठखेलियां करते तितलियों संग उड़ते छुपते, करते कभी अट्टहास वर्षा बूंदों से नहाए पल्लव सूरज रश्मियों से पा गरमाहट मंद सुगंध हवा के संग हाथ हिला करते अभिवादन राग मल्हार गाते भंवरे कोकिल गान कानों में पसरे घनघोर शोर लिए मोर हरषे बहुरंगी बादल उमड़े क्षण भर में रुप बदले.. भयानक रूप बना सबको डराए गड़गड़ ध्वनि से सब थर्राए अगले ही क्षण वर्षा की झड़ी लगाए देख कृषक मन ही मन हर्षाए सावन की है महिमा निराली हर जीव जंतु की चाल हो जाए मतवाली नेह संचार हृदय में होता वियोग में प्रेमी युगल छुप कर रोता हर कोई सावन की बाट है जोहता सबसे तेरा नाता है सबको तू भाता है मन में मधु उपजाता है इसीलिये तू मधुमास कहलाता है। सतरंगी इंद्रधनुष का हार तू पहने स...
सावन का महीना
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सावन का महीना

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** ये सावन का महीना ये चंचल जवानी । जा के शुरू करें, कहीं अपनी प्रेम कहानी ।। ये मन्द - मन्द मदमाती गगन में घनघोर घटाएं । दिल यूँ कहता है, जाके बसाएं कहीं प्रेम नगर रांनी ।। रिमझिम-रिमझिम सावन के बादल बरसा रहे हैं पानी। मुस्कानों की आंधी में छुप जाओ, मेरी बाहों में आकर रांनी ।। भीगी पलकें - भीगे गेसू गोरे मुख से टपक रहा पानी । चिलमन से पलकें गिराके, आहों की बाहों में आजा रांनी ।। चमक-चमक के बिजली चमके गालों पे गिर निहारे गोरी को पानी । सावन की भीनी भीनी-ठंडी ठंडी, हवाएं अठखेलियां आँचल से करे रानी ।। आंखों का काजल-होठों की लाली गिर के यूँ तडप जगा रहे । साजन से कहे सावन के बादल, दिल की प्यास बुझा लो संग रानी ।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह...
परदेशी पिया
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परदेशी पिया

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** उम्र आधी वहाँ गुजारी, आधी मे कैसे पूरी करू जिम्मेदारी। माँ बहुत याद आ रही है तुम्हारी। सात वचन अनेक विधियाँ है झूठी, सच्चे है माँ-बाप दृश्य-अदृश्य हमेशा साथ निभाते है। परदेशी पति से मै हूँ कुछ नाराज़ वादा किया था तुमने हाथो मे देकर हाथ अब वक्त पे नही देते साथ क्यू अपनी समझ नही समझाते जब बिगड़ जाती है बात कंधे का सहारा न साथ तुम्हरा कितनी तन्हा है हमरी रात उम्र आधी वहाँ गुजारी आधी मे कैसे पूरी करू जिम्मेदारी माँ बहुत याद आ रही है तुम्हारी परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम : गंगापीपर जिला :पूर्वी चंपारण (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
बारिश हो रही है शहर में
कविता

बारिश हो रही है शहर में

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** पल-पल मौसम बदल रहा, बूंदाबांदी हुई है दोपहर में, ठंडी-ठंडी हवा चल रही है, बारिश हो रही है शहर में। पोखर भर गये गांव-गांव, कौवे कर रहे कांव-कांव, दादुर सुर में गीत गा रहे, बच्चे चलाए कागज नाव। काले-काले बादल चलते, नये विचार मन में पलते, चहुं ओर हरियाली छाई, प्रेमी युगल राहों में मिलते। छतों पर मच रहा है शोर, जंगल में नाच रहे हैं मोर, बादल गरजे घटा घनघोर, लुक्का-छिपी करते चितचोर। गलियों में बह रहा पानी, पैदल चले याद आये नानी, पानी की हो अजब कहानी, नहाये बच्चे करते मनमानी। नभ पर उड़ते रंगीन पतंग, पेच लड़ाये छेड़ रहे जंग, वो मारा वो काटे का शोर, बरस बरसकर हो गई भोर। छपाक-छपाक करते चले, पनपे प्यार अंबर के तले, कहीं सर्प करते फुफकार, पपीहा को वर्षा से प्यार। वाहन चलते तेज रफ्तार, वर्षा का ...
काश ऐसा होता
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काश ऐसा होता

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** काश ऐसा होता ये विरह ना होता वो मेरे पास होती मैं उसके पास होता काश ऐसा होता सुबह वो आती भीगे पालो को झटक मुझे रोज जगाती काश ऐसा होता वो खाना बनाती खीर मैं नमक होने पर भी मैं उसे मीठी बताता काश ऐसा होता मैं दफ्तर ना जाता वो मुझे बैग देती प्यार से जाने को कहती काश ऐसा होता जब मैं रूठ जाता वो मुझे मनाती जब वो रूठ जाती मैं उसे मनाता काश ऐसा होता मैं कही उसे घुमाता आइसक्रीम खिलाता जब होठ उसके सनते तो जीभ से हटाता काश ऐसा होता उसको खुशियाँ देता दुख उसके लेकर अकेला उन्हें सहता काश ऐसा होता वो मायके जब जाती मैं अन्दर अन्दर रोता मैं खाना ना खाता मुझे नींद ना आती काश ऐसा होता जब विस्तर पर वो सोती मैं तकिया उसका होता वो आराम से सोती मैं बडा़ खुश होता काश ऐसा होता वो राधा ना होती मै...
बेरोजगारी
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बेरोजगारी

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** भारत देश एक महान देश है, पर ये अभी कर रहा सामना कई बीमारियो का, कर लो इसे स्वीकार, पढ लिख कर भी खाली बैठे, नही है रोजगार! सबसे बडी बीमारी है इसमे से बेरोजगारी, जनसंख्या वृध्दि से जंग लग गई डिग्रीया सारी! रोजगार ना होने से है युवा लाचार, कैसे करवाए इलाज मां का, जो है घर मे बीमार! जनसंख्या वृध्दि होती जाती दिन रैन, लगाम लगा लो इस पर, तो आए थोडा चैन! कल सुनने मे एक किस्सा दयनीय आया, हो गया बेरोजगार कोरोना मे, उसने बताया, ले कर डिग्री घूम रहा था, रोजगार कही ना पाया! भूख पेट की शांत करनी थी बच्चे की, तो ख्याल इक मन मे आया, ईमान ताक पर रखकर, चोरो संग हाथ मिलाया! मजबूर था वो इक बाप के रूप मे, फंसा बीच मंझधार! क्योकि रोजगार ना होने से है युवा लाचार ! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली ...
महिमा सावन की
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महिमा सावन की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तप्त धरा है बाट जोहती, आओ बरसो सावन प्यारे; धधक रही मन की ज्वाला को, शांत करो घन मतवारे। रिमझिम रिमझिम बरखा बरसे, घिरे काली घटा गगन में; देख प्रकृति की छटा अनोखी, मयूर झूमे नाचे वन में। सूखी धरती सजी ओढ़कर, हरी चुनरिया मोती वाली; नदियां झरने बहते कल कल, तोड़ के बंधन चारदीवारी। वैभव प्रकृति का ठगी निहारें, चहुं दिशाएं और गगन; महिमा मंडित कर देवों ने, बना दिया सावन को पावन। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, क...
जीवन को फूलों सा महकाना है….
कविता

जीवन को फूलों सा महकाना है….

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** (यह मेरी प्रथम कविता है, जीवन के चालीस बसन्त पार कर लेने के पश्चात्, ससुराल में सभी का प्रेम, अपनापन, सम्मान, प्रशंसा पाने की आस में अपना सर्वस्व लुटाती महिला को जब यह महसूस होता है कि उसका भी तो अपना जीवन है, उसकी अपने प्रति भी कोई जिम्मेदारी है, तो वह कैसा अनुभव करती है? उन्हीं पलों को अभिव्यक्त करती है यह कविता…) यह मेरा जीवन है, मुझे इसको पार लगाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... उम्मीद से ज्यादा, उम्मीद करते हैं मुझसे, मुझे इससे ना मुरझाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... मायके के सब रिश्ते छूटे, दूजे के घर आने से, पीड़ा इसकी कोई ना समझे, किसी के समझाने से, इन रिश्तों से भी मुझको, कोई उम्मीद ना लगाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... ससुराल के सारे रिश्ते-नाते झूठे हैं,...
आया सावन
कविता

आया सावन

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** आया सावन देखो आया सावन कितनी खुशी लेकर आया सावन प्राकृतिक स्वयं को सजा रही है कोयल गीत गा रही है ... मेंढ़कों की टर- टर लगी है नाच रहे वन में मयूर... मेरी आंखें तरस जाती है जब सावन की बारिश आती है... महादेव की पूजा, नाग पंचमी, भाई बहन का प्रेम कितना पवित्र होता है ये सावन का माह.... फूलों की खुशबू मिट्टी की महक प्रेम की उमंग मिलन की आस.... आया सावन देखो आया सावन कितनी खुशी लेकर आया सावन!! परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
उड़ान
कविता

उड़ान

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। कभी गिरा कभी चढ़ा हूँ मुफलिसी में पला बढ़ा हूँ लक्ष्य जमीन पर नही है आसमान पर कहि तैयार भरने को उड़ान अपनी और खिंचे आसमान कोई छोड़े उसे छोड़ जाने दो रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। वक़्त बड़ा संगीन है मुझे खुद पर यकीन है कदम रुक नही सकते इरादे झुक नही सकते जो माना वो ठाना है दुनिया को दिखाना है मिटते है निशान मिट जाने दो रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। कुछ जाना कुछ पहचाना अपना वजूद है दिखाना इरादों ने घमासान की नेकी ने राह आसान की उम्मीद छोडूंगा नही अब मुड के देखूंगा नही निराशा जा रही उसे जाने दो रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। तिमिर कुछ ही पल है रौशनी हर पल है उजाला ऐसे जोड़ा हूँ ज...
मन नहीं लगता
कविता

मन नहीं लगता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सावन निकले जा रहा, दिल भी मचले जा रहा। कैसे समझाये दिल को, जो मचले जा रहा। लगता है अब उसको, याद आ रही उनकी। जिसका ये दिल अब, आदि सा हो चुका है।। हाल ही में हुई है शादी, फिर आ गया जो सावन। जिसके कारण हमको, होना पड़ा जुदा जो। दिल अब बस में नहीं है, राह देख रहा है उनकी। कब आये वो यहां पर, लेने के लिए हमको।। कितने जल्दी हो जाता, प्यार एक अजनबी से। मानो उनसे करीब अब, कोई दूजा नहीं है। पल भर में कैसे बदल, गया ये दिल हमारा। अब जी नहीं सकती, उनके बिना एक दिन। कर क्या दिया उन्होंने, जो उनमें समा गये हम। दो जिस्म होते हुये भी, एक जान बन गये हम।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री...
मित्र
कविता

मित्र

शिव चौहान शिव रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** मित्र चेहरे की मुस्कान हैं जिंदगी की उलझनों का निदान हैं विपदाओं में पहचान है दिल की खुली किताब हैं रोशनी का आफ़ताब हैं गम को हरले वो शादाब हैं के अपमान को सह नहीं पाता वो दुर्योधन-सा साथ हैं कृष्ण-सुदामा के मिलन-सा हाथ हैं मित्र चेहरे की मुस्कान हैं! परिचय :-  शिव चौहान शिव निवासी : रतलाम (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
व्योम के उस छोर से
कविता

व्योम के उस छोर से

कल्याणी गुप्ता "कृति" इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** व्योम के उस छोर से क्षितिज के अंतिम बिंदु तक, जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है, मैंने तुम्हें खोजा, बहुत खोजा, पर तुम नहीं मिले। घंटियों के शोर में, कंदराओं में, खोह में, नहीं भीड़ में, जलसों में, ढोल बाजों में, नगाड़ों में तुम्हारा कोई अता-पता नहीं था। मैं गौर से देखती रही श्रंगारों में, खुशबुओं में, सुसज्जित प्रासादों में, तुम्हारी एक झलक भी नहीं थी। रोज़ ढूंढती रही मैं तुम्हें नगर-नगर। भटकते हुए यूँही एक दिन पैर पड़ा उस धरा पर जहाँ कुछ दिन पहले मैंने बोया था एक बीज वहाँ अब एक पौधा लहलहा रहा था। मैं मुस्कुरा उठी वहीं तो तुम थे। परिचय : कल्याणी गुप्ता "कृति" शिक्षा : एमएससी., एम ए., डी एड. निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मेरी यह रचना, पूर्ण रूप से मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित है।। आप भी अप...
मित्रता
कविता

मित्रता

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मित्रता करनी हो तो दोस्त सुदामा कृष्ण सा करना कसम ये खालो तुम आज कि संग है जीना और मरना किसी की हैसियत न आये दरमियां तेरे और मेरे जो आये बीच में दौलत किनारे उसको तुम करना यकीं तुम दोस्त की बातो पर हरदम इस कदर करना जो कह दे आकर खुदा तुमसे तो कहना माफ करना बचपन की है ये दौलत इसे संभाल कर रखना बहुत अनमोल है रिश्ते हमेशा तुम नज़र रखना दुनिया के सारे रिश्तों को तुम जांचना परखना इसे तुमने बनाया है हमेशा याद ये रखना ऐ मेरे दोस्त सुन इस दोस्ती को ऐसे निभाना मिसालों में रहे हम तुम और देखे सारा जमाना परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
मित्र
कविता

मित्र

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मित्र शब्द श्रवण । कर्ण करते ही मित्र का । चित्र मुख सम्मुख उपस्थित । हो उर अति उमंग भरता । अंतर भावविभोर हो शीतल । निर्झर हिलोरे ले मंद-मंद मुस्कान व्याप्ति,मित्र एक सुखद अनुभूति विश्वास मधुरता युक्त । मित्र प्रति स्थिति,परिस्थिति संग। संबल देता अटूट दृढ स्तंभ सम। ज्यो कर्ण अरू दुर्योधन मित्रता । कृष्ण-सुदामा सम सखा । मित्रता विशाल वृक्ष सम छाया । ज्यो राम-सुग्रीव मित्रता । यत्र-तत्र-सर्वत्र मित्र कथा । पौराणिक कथा प्रमाण । सुख-दुख में संग-साथ निभाना । प्राप्त हुए,मित्र संसार की अमूल्य निधि है,अनमोल धरोहर । मित्रता की महिमा । निराली अरू बहु सरस । मित्रता पावन सुगंध चंदन सम । परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
अच्छे मित्र
कविता

अच्छे मित्र

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** पाप कर्म से बचाने वाले व सत्कर्म में लगाने वाले अच्छे मित्र कहलाते हैं । विपरीत कर्म करने वाले गुप्त भेद बताने वाले मित्र नहीं कहलाते हैं। मित्र गुण जताने वाले आपत में न छोड़ने वाले मित्र सहायक होते हैं। कभी न ईर्ष्या करने वाले मित्रहित में खुश होते जो वे ही मित्र कहलाते हैं। परहित सरिस धर्म नहि भाई उपकार भावना जहां समाई ऐसे योग्य मित्र कहलाते हैं। परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी निवासी : पुणे (महाराष्ट्र) शिक्षा : डी. लिट. (केंद्रीय मध्य अमेरिकी विश्वविद्यालय, बोलिविया) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
मुंशी प्रेमचंद
कविता

मुंशी प्रेमचंद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** लमही बनारस में ३१ जुलाई १८८० को जन्में अजायबराय, आनंदी देवी सुत प्रेम चंद। धनपतराय नाम था उनका लेखन का नाम नवाबराय। हिंदी, उर्दू, फारसी के ज्ञाता शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक कथाकार, उपन्यासकार बहुमुखी, संवेदनशील मुंशी प्रेमचंद सामाजिक कुरीतियों से चिंतित अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन लेखन को हथियार बना परिवर्तन की राह पर चले, समाज का निचला तबका हो या समाज में फैली बुराइयाँ पैनी निगाहों से देखा समझा कलम चलाई तो जैसे पात्र हो या समस्या सब जीवंत सा होता, जो भी पढ़ा उसे अपना ही किस्सा लगा, या अपने आसपास होता महसूस करता, उनका लेखन यथार्थ बोध कराता समाज को आइना दिखाता, शालीनता के साथ कचोटता चिंतन को विवश करता शब्दभावों से राह भी दिखाता। अनेकों कहानियां, उपन्यास लिखे सब में कुछ न कुछ...