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कविता

विश्वास का आधार
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विश्वास का आधार

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मात पिता एक बार मिले, होते विश्वास का आधार, निज बच्चे पर कुर्बान हो, लुटा देते हैं पल में प्यार। सृष्टि के हम साथ जी रहे, वो है विश्वास का आधार, बेशक कोई लाख दुख दे, जगत में मिले सुख हजार। विश्वास का आधार होते, भाई बहन का जग प्यार, भाई मिलता हर विपत्ति, जान देने को बहन तैयार। विश्वास का आधार कहे, शिक्षा दीक्षा देते जो गुरु, हर कदम पर देते साथ, होता है नव जीवन शुरू। विश्वास का आधार कहो, दोस्त, दोस्ती और संसार, भ्राता से कम नहीं दोस्त, जग का अमूल्य हो प्यार। लेन देन जब जन से हो, कहलाए विश्वास आधार, कहीं न कहीं झलकता है, गहन दोस्ती रूपी प्यार। विश्वास का आधार कहो, आपस में संबंधों का दौर, संबंध विच्छेद अगर होता, मच जाता है जग में शोर। रिश्तों नातों में छुपा हुआ, विश्वास का एक आधार, सं...
मृत्यु
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मृत्यु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मृत्यु क्षण-क्षण घूम रही दिखाकर ख़ौफ़ न जाने क्यों ? इस धरा को चूम रही। न जात देख रही है न धर्म देख रही है, बस हर किसी को अपनी क्रूर नज़रों से चूर कर रही है। किसी बिगड़े हुए आशिक की तरह, न किसी की सुनती है न किसी की मानती हैं। अपनी ही निगाहों से अपनी ही मर्जी से हर किसी को घूर रही हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
बेटियां होगी सुरक्षित
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बेटियां होगी सुरक्षित

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक अख़बार में निविदा विज्ञापन दहेज़ के दानव के विनाश हेतु चाहिए एक बाण ऐसी निविदा पढने के बाद दिल को हुआ आराम। पूर्व परिदृश्य में बहुए उत्पीड़न का शिकार होती थी ऐसे हादसों के कारण गावों के कुएं की चरखियां, घट्टीयों की आवाजें ख़त्म होती थी। अब बहुए दहेज उत्पीड़न से जली या जलाई जा रही है ऐसे हादसों के कारण शहरों के मोबाइल संदेश, उत्पीड़न रोकने की आवाजें समाधान हेतु पहुँच नही पा रही। बाजारों में फ्रेमों के और कब्र के पत्थरों के दाम यकायक बढ़ते जा रहे सूने घर और आँचल में बच्चे छुपे कैसे छुपा-छाई का खेल वो भी खोते जा रहे रिश्तों में कड़वाहट, लालची युग का विष घुलता जा रहा। लगने लगा जैसे दहेज़ के लालची दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का कारण यह भी हो सकता कलयुग में बाण चला...
दो वक़्त की रोटी
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दो वक़्त की रोटी

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** किसानों की मेहनत भी क्या खूब रंग बिखेरती है, लहू पसीना बनकर उनके रगों से जब निकलती हैं,, किसानों की मेहनत भी क्या खूब रंग बिखेरती है, लहू पसीना बनकर उनके रगों से जब निकलती हैं,, जब नंगे बदन किसानों की उस कड़ी धूप में तपती है, तब जाकर इन महलों में दो वक्त की रोटी बनती है ।। दो वक्त की रोटी बनती हैं ।। करके मेहनत खेतों में, वो फसलें भी खूब उगाते है, बंजर भूमि जो सोया है, उसको उपजाऊ बनाते हैं। खेतों से अन्न ले जाकर, हर शहर मे वो पहुँचाते है, इसीलिए इस जग में वो एक अन्न दाता कहलाते है। उनकी ही तो श्रेय से हर घर दीप-दीवाली मनती है तब जाकर इन महलों में दो वक्त की रोटी बनती है ।। दो वक्त की रोटी बनती हैं ।। खेतों में जब जब फसलें उपजाऊ हो जाती है, अन्नदाता के मन मे खूब खुशियां लहलहाती है । हुवे भोर तो खेतों में कोयल भी ...
आज का भारत
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आज का भारत

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** जहाँ कभी पुष्प वाटिका हुआ करती थी, वहाँ आज लाशों का अंबार लगा हुआ है , जो जमीन कभी सोने की चिड़िया होती थी, वहाँ आज लाशों का विछावन बिछा है , जो कभी विश्व का भाग्य विधाता हुआ करता था, वो आज भिखारी बना घुमाता है, जहाँ कभी मंदिरो मे मेले लगते थे, आज वहाँ शमशानों पर मेले लगते है, जहाँ कभी सभी धर्मो का सम्मान हुआ करता था, आज वहाँ धार्मिक कट्टरता हुआ करती है, जो कभी साधु-संतों की नगरी हुआ करती थी, आज वहाँ आज बाजार बना बैठा है, जहाँ कभी ईमानदारी की आवाजें गूँजती थी, आज वहाँ बेईमानों का अड्डा हुआ करता है, जहाँ के ज्ञान व विज्ञान की कभी विश्व पूजा करता था, आज वहा अज्ञानता का पर्याय बना बैठा है, जहाँ कभी दानी ज्ञानी महाराजाओं का राज हुआ करता था, आज वहाँ अनपढ़ बेईमानों का राज हुआ करता है, जहाँ क...
जिंदगी का फ़लसफ़ा
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जिंदगी का फ़लसफ़ा

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** जिंदगी का फ़लसफ़ा आओ तुम्हें मैं जिंदगी का फलसफा समझाऊ़ँ कुछ एहसास भरे अच्छे पल याद दिलाऊं। भरोसे वाले चाहत भरे दोस्त बनाऊं, इंतजार करूं वक्त का मै फैसला कोई ना सुनाऊं। गम में ना होऊं परेशान, हिम्मत रख‌ में मुस्कुराऊ़ँ इंसानियत कीजरूरत है को‌रोना काल चल रहा है, ख्याल रखें सभी का, लम्हे तो गुजर जाएंगे। मेहनत, मोहब्बत से अपना बना मास्क लगा, थोड़ी दूरी बना ले। नाराजगी ना मन में लाइए, ओम नाम उचारिये। प्यार भरे गीत गाइए किस्मत पर भरोसा रख मेहनत की चाबी घुमाइए। रिश्ते अनमोल है थोड़ा, निभकर संभालिये। समझौता प्यारा है, जिंदगी का एहसास हमारा है तमन्नाओं को यूं ना मारिए। उम्मीद, विश्वास की डोर से पूरा करते जाइए। वादा है परमपिता का आपसे, जिंदगी प्यार भरा गीत है प्यार से गाइए। एक्सप्रेशंस, यादें, जबरदस्त जिंदगी इन स...
मुट्ठी भर धूप
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मुट्ठी भर धूप

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** किसने कहा तुमसे अपराध मेरे रगों मे बहता है मेरे खून का रंग सफेद है तुम्हारे आन्तरिक दुर्बलता को महिमा मंडित करती हैं ये संकीर्ण भावनाएं अपने स्वयं के कल्मशो से प्रेरित तुम चच्छुहीन चिंतन करने के अभ्यस्त हो अत:सोच भी नही सकते की मेरे भी खून का रंग लाल है मेरी भी अस्थियां तुम जैसी हैं फिर भी मैं तुम्हारी संवेदनाओं का अभिनंदन करता हूँ , जिसमे मेरे लिये अपावन ही सही स्थान तो है हमारे बीच विभाजक हैं अन्शुमाली की दस्यू किरणें जो तुम्हारे जन्म के साथ संचित हो जाती हैं तुम्हारे खातों मे किन्तु मेरे जन्म पर गुमनाम पिता की याद मे आँसू बहाती माँ, तड़प उठती है और मुझे पहचान नही देती गौरव से शीष उठाने का अधिकार नही देती धरती मुझे बिछौना देती है परन्तु संदेहों के शहर मे रोटी नही देती। दुनियाँ के कोलाहल मे 'मुट्ठी भर...
सेवादार बनिए
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सेवादार बनिए

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए आज हम सब अपनी संस्कृति और परंपरा का एक नया अध्याय लिखें, सेवाधर्म का नया आयाम गढ़ें पुरातन व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही सही सेवाधर्म का नया पाठ पढ़ें । कोरोना महामारी की जब हर ओर दहशत है, सेवाभाव से आओ मिलकर इसका प्रतिकार करें। दो गज दूरी का संदेश फैलाएं मास्क, सेनेटाइजर कितना जरूरी है ये सबको बताएं, समझाएं,। रोजी रोजगार की समस्या बहुत कठिन है लेकिन, कोई भूखा न रहे आसपास हमारे हम सब की जिम्मेदारी है कि उसके खाने का प्रबंध कराएं। सबका टीकाकरण हो ये सुनिश्चित कराएं, कोरोना पीड़ितों का मनोबल बढ़ायें। अफवाह, भ्रम, दहशत न फैलने पाये जनमानस को इससे हम सब बचाएं। कोरोना रोग है महामारी है, हौसला रखें, डरें नहीं, इलाज कराएं ठीक हो जायेंगे विश्वास दिलाएं, ये दौर भी गुजर जायेगा सबके मन मे...
प्रकृति
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प्रकृति

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! प्रकृति की शक्ति निहित हैं, वायु ऊर्जा जल थल अकास! और अनंत हैं सूक्ष्म शक्तियां, सबमे समाहित इनकी उजास! जगत में जीवन का आधार! मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! जगति ने हैं दिया मनुज को, आनंद का अक्षय वरदान! पर भौतिक तृष्णा ने इसको हैं बना दिया दुखो की खान! न कर खुशियो को तार-तार! मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! कुदरत से मिली जो शक्ति, उससे अक्षयपात्र को भरले! स्वयं विकास के हेतु मनवा, प्रकृति से बस प्रीत तू कर ले! न कर इस शक्ति का व्यापार! मनुज हे, प्रकृति अपरंपार! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
प्रकृति और हम।
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प्रकृति और हम।

स्वरा त्रिपाठी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रकृति से प्रेम करे हम। आओ प्रकृति से प्रेम करे हम।। जिसको भूल गये हैं हम। आओ प्रकृति से...........।। वृक्ष लगायें बरगद, पीपल और नीम। ये हमको आक्सीजन देगें, इससे जीवन पाएँगे हम।। आओ प्रकृति से... पेड़ नहीं तो जीवन नहीं। पेड़ नहीं तो आक्सीजन नहीं। पेड़ों से मिलता आक्सीजन।। आओ प्रकृति से... ईश्वर हमसे लेते नहीं आक्सीजन की कीमत। इसके लिए कीमत क्यों चुकाएँ हम ? आओ पेड़ लगाएँ हम।। आओ प्रकृति से प्रेम करें हम। आओ प्रकृति से प्रेम करें हम।। परिचय :-स्वरा त्रिपाठी उम्र : ७वर्ष कक्षा : ३ निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
मेरी प्यारी दीदी
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मेरी प्यारी दीदी

निशा रायपुरिया अजमेर (राजस्थान) ******************** मेरी दीदी सबसे प्यारी माँ जैसा प्यार दिया भाई जैसा दुलार दिया राखी का त्योहार है भाई का भाई नही है तो रक्षा का वचन दिया कभी लगाई डाँट मेरी कभी प्यार से गले लगाया हरदम मेरा अच्छा चाहा हरदम मेरा भला किया तानो मे भी प्यार भरा था गुस्से में सम्मान भरा था सच में सबसे प्यारी दीदी परिचय :- निशा रायपुरिया निवासी : बरल २ जिला- अजमेर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
प्रेम सदा जिंदा रहता है
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प्रेम सदा जिंदा रहता है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** दशक उम्र के बीत जाए जवानी पर चांदी चढ़ती जाए शहर बदल ले जीने के सलीखे मेरी यादो से दूर जाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे जीवन की हजार समस्याएं दुनियादारी की समझाइशे मौसम पर चढ़ जाए धुंध की चादर जो लम्हा जी लिया उसे भूलाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे हर ख्वाहिश पर भगवान बदलते हर मौके पर रिवाज बदलते दिल तो तेरे पास भी एक ही है सासो पर लिखा था नाम बदलेगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
कोरोना
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कोरोना

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** है यह कोरोना महामारी अति घातक बच के रहना। ये काल कोरोना धरा पर अपने पांव पसार रहा है। हो कोई समाज बचा नहीं महामारी से सावधान रहो। हे नर अब भी समय है संभल जाओ खिलवाड़ रोको। ये धरा सबकी मातृभूमि पालन हार सबका आश्रय। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हा...
मिट्टी सी बेटी हूं मैं
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मिट्टी सी बेटी हूं मैं

अंशिता दुबे लंदन ******************** कभी नम हो जाती हूं गम से, कभी सख्त हो जाती हूं श्रम से, कभी सौंधी खूशबू सी जाती हूं बिखर, कभी हौसले से चढ़ जाती हूं शिखर, कभी दरिया संग बह जाती हूं इक छोर, कभी तट पर रुक जाती हूं बन डोर, कभी उलफत की लहरों से जाती हूं मिलने, कभी शांत सरोवर में जाती हूं खिलने, कभी एहसासों की नदी में जाती हूं डुबने, कभी लगती तूफानी भंवर सी हूं ऊबने, कभी आसमां को मुटठी में बांधने हूं लगती, कभी जमीन को ही अपना आसमां मानने हूं लगती। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी : लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस
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अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** महान स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस! कर देश सेवा माँ-कोख को दिया गरिमामय तोष!! बोस! जन्म तेरा वर्धमान जिला पश्चिम बंगाल! जापान के टोक्यो में हा! आंँखें मूंँद लीं लाल!! तुम देश की कई राष्ट्रीय भाषाओं के ज्ञाता! अमर क्रांतिकारी हो तुम मांँ भारती के त्राता!! सशस्त्र क्रांति से राष्ट्रभक्ति की जलाई जोत! प्रख्यात वकील महान शिक्षाविद पर गौरव होत!! गवर्नर जनरल की हत्या-योजना बनाए बोस! असफल हो पहुंँचे जापान ले पूर्ण क्रांति जोश!! अज्ञातवास में किया जापानी तोशिका से विवाह! ब्रेकरीसुता थी छिपे बोस को खिलाया कई माह!! आजाद हिंद फौज के तुम श्रेष्ठ संगठनकर्ता! इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के स्थापनाकर्ता!! देश तज जर्मनी पहुंँचे नेताजी को योग्य जान! सौंपी लीग, इंडियन नेशनल आर्मी की कमान!! और स्वयं को सीमित किया सिर्फ सलाहकार त...
काढ़े की महिमा
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काढ़े की महिमा

संजय डागा हातोद- इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब से कोरोना ने आकर करी भारत मे घुसपैठ हमारी प्यारी हिन्दी भाषा मे भी अग्रेंजी शब्दों की होने लगी घुसपैठ, माॅस्क और सेनेटाइजर हिन्दी शब्दकोष मे पहले-पहल आ गऐ पिछे क्वारेन्टाइन, होम आइसोलेशन प्लाज्मा और एंटी-बाॅडी भी हिन्दी के जरूरी शब्द हो गऐ फिर आया रेमडेसिविर और आई वैक्सीन की बारी पर हमारा काढ़ा आज भी इन सब पर पड़ता है भारी, भले ही हम इसे पीने मे आज भी नाक-भौ सिकोड़ते है पर काढ़े को हम सब आज भी हिन्दी मे काढ़ा ही तो बोलते है।। परिचय :- संजय डागा निवासी : हातोद जिला इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
तुम वादा करो
कविता

तुम वादा करो

रंजीत शर्मा "रंग" सिखरा, हाथरस (उत्तर प्रदेश) ******************** हम तुमको भुला देंगें गर तुम वादा करोगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे में हूं पतझड़ वृक्ष तुम मुझको आवाज ना दो ना खिले कोई फूल ऐसी रस्मों रिवाज ना दो राजनीति के चक्रव्यूह में ना मुझको अब घेरो मैं दरवारों की शान बनूँ ऐसा समाज ना दो अब ये चांदनी रातें हम बिन कैसे बिताओगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे जानता है ये फाग महीने का रंगीन मेला तुम्हारे बिन ये अबके निकला है अकेला कभी खाते थे जलेबी उस हलवाई की आज पूछता है गुड्डे गुड़ियों वाला ठेला बताओ अबके सावन कैसे तुम मनाओगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे ये बैरी पवन क्यूँ मुझको तपन दे रही है ये चांदनी रात क्यूँ मुझको जतन दे रही है डूबती किरणें मेरे सूरज की देख ले "रंग" अब तारों की छांव सासों की घुटन दे रही है मेरी मईयत पर क्यूँ तुम आंसू ब...
दुनिया देखे नाही
कविता

दुनिया देखे नाही

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** बुद्धि ये कहती है सयानों से मिलकर रहना हदय ये कहता है दीवानों से मिलकर रहना अपने टिकने नहीं देते हैं कभी चोटी पर जान-पहचान अनजानों से बनाए रखना अब आसान नहीं है उसे रोक के रखना वह मृत्यु है किसी की नहीं सुनती कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूढै वन मांहि.. ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नांहि..! परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak1...
“बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा” (नारी व्यथा)
कविता

“बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा” (नारी व्यथा)

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** नाम बदलेगा, गाँव बदलेगा, शहर बदलेगा, यहां तक की प्रदेश भी बदल जाएगा.... ज्यादा कुछ नही बस पहचान और पता ही तो बदलेगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... दर्द वहीं रहेगा... सहना भी रोज की तरह ही होगा... कुछ भी तो नही बदलेगा... सहनशीलता की सीमा को थोड़ा ओर बड़ाना होगा... ज्यादा कुछ नही बस खामोशी से ही हर आँसू भी पीना होगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... ना तो कोई माँ की तरह बिस्तर पर खाना लाएगा... ना ही पापा की तरह कोई सुबह की सलाह देने वाला होगा... अंदर से रहकर अकेला ओरों के सामने हँसना होगा... ज्यादा कुछ नही बस अपना वजन खुद को ही उठाना होगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... सारे अरमानों की करके हत्या इल्जाम खुद पर ही लगाना होगा... बेबस चीखती जुबान को मन ही मन में दफ़न करना हो...
मानव की मानवता
कविता

मानव की मानवता

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** मानव की मानवता का हो गया पतन, इसलिए बीमार है विश्व व सारा वतन। खो रहे है सभी अपने चयन व अमन, मानव ही ने किये सारे दूषित ये पवन। जंगल काट बनाये कारखाने व भवन, कोरोना बीमारी के जिम्मेदार है कवन। मानव आंक्सीजन के स्रोत करे गमन, कैसे बचाये मानव स्वयं का ये जीवन। प्राकृति से बधि है हमारी जीवन डोर, कोरोना ही कोरोना फैला चारों ओर। हे!मानव तुम हैवानियत को दो छोर, निकाल दो मन से छिपा है जो चोर। चल नहीं रहा है मानव का कोई जोर, हे! मानव मानवता ही धर्म-कर्म मोर। सच्चाई से मानव आप मुख न मोड़, प्राकृति से सच्चा रिश्ता लो तुम जोड़। लौट आयेगा सबका चयन और अमन, खुशहाल हो उठेगा अपना सारा वतन। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना...
बाकी है
कविता

बाकी है

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी तो कदमों को राहों पर लाया है उड़ान अभी बाकी है, इम्तिहान कहाँ खत्म हुआ है मेरा मंज़िल-ए-मुकाम अभी नहीं हासिल है, वक्त बेवक्त चल पड़ती हूँ उस ओर अभी तो सारा नजारा बाकी है, जिंदगी जो रूकी हुई थी मेरी कल तक उसे आगे बढ़ना बाकी है, पल भर की रौनक नहीं अब यहाँ माथे पर मेरे निशान बाकी है, रूकना अभी कहाँ मयस्सर है मेरे लिए अभी काफिलों का मेरे पिछे चलना बाकी है, रौनक तो है अभी भी महफ़िलो में मगर महफ़िल का मेरे नाम होना बाकी है, तुम्हारा इतराता भी ठीक है मगर मेरे गूरूर की आंधी का आना अभी बाकी है, शहर भले ही तुम्हारा क्यूँ न हो मगर भीड़ मेरे नाम की हो, ये नजारा भी बाकी है, चल देखते हैं कब तक खत्म नहीं होती ये जंग अभी वक्त का मेरी तरफ होना भी बाकी है। परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्त...
खो देते है
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खो देते है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मत पिलाओं अपने आँखों से इतना की हम उठा न सके। मत दिखाओ अपने हुस्न को कि हम नजर हटा न सके। जब भी होते है दीदार तुम्हारे खो देते है अपना सुध-बुध। और तुम्हें ही अपनी नजरो से देखते रहते है।। खोलकर उलझे हुए काले बालों को जब तुम सुलझती हो। ऐसा लगता है जैसे काली घटायें घिर आई हो आंगन में। अपने हाथो से जब तुम बालों को सहलती हो। तब कभी-कभी चाँद सा सुंदर चेहरा दिख जाता है।। भले क्यों न हो अमावस्या की रात पर उसमें भी पूनम का चाँद दिखते हो। जो देखने वालो की दिलकी धड़कनो को बड़ा देती है। और अंधेरी रात में भी तुम चाँद सी खिल जाती हो। और चाहने वालो के दिल में मोहब्बत के दीप जला देते हो।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कं...
मोहब्बत
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मोहब्बत

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** श्रद्धा का दूसरा नाम है मोहब्बत दो दिलों का पावन एहसास है मोहब्बत किसी के दर्द से किसी का रोम-रोम कांपने लगे उसी चाहत का नाम है मोहब्बत जिसको हृदय दुआओं में मांगे रब से उसी इबादत का नाम है मोहब्बत जिसकों आँखों में छुपाकर रखा जाए उसी ख्वाब का नाम है मोहब्बत जो नफ़रत की गर्म धूप से बचाए उसी प्यार की छाँव का नाम है मोहब्बत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
स्त्रियां
कविता

स्त्रियां

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्त्रियां समाहित होती हैं घर के कोने कोने में अखबार की घड़ी से चाय की चुस्की में सलीके से बिली गोल रोटी और सोंधी-सोंधी खुशबू में आंगन में दाना चुगते चह-चहाते पंछियों के सुर में गमलो और बैलों में निकली नव कलियों में स्त्रियां समाहित है ... तुलसी चौबारे पर जलते दिए में सुघडता से चमकते घर और लीपे पुते आंगन में स्त्रियां समाहित होती है... अभावों को खूंटी टांग चेहरे की सहज मुस्कान में दुख दर्द की विभीषिका में सुख का आंचल बंन कर स्त्रियां समाहित होती हैं... पेपर की संभाली कतरन ओ पन्नों में पुरानी चीजों से फिर नई साज सवार का कौशल बनकर स्त्रियाँ समाहित है .... पेंसिल से लिखें नए नवेले कच्चे अक्षरों में जीवन सुख दुख का सहज गान और लोरी बनकर स्त्रियां समाहित है... संध्या दीपक आरती और घंटी के सुर में...
अटरिया
कविता

अटरिया

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कारे-कारे बदरा रे, तुम मत आना मेरी अटरिया पर मे नीद मे सोया था सपना मे खोया था कारे कारे बदरा रे, हमे नीद से क्यू जगाया रे? हमने सुन्दर सपना देखा था तुमने सपना क्यू तोड़ दिया रे? आकर मेरी अटरिया पर तुमने हमे क्यू जगाया रे? सपने में वो आई थी, क्यू तुमने भगा दिया रे? बदरा तुम पापी हे आंखो से नीद भगा दी रे कभी तुम पवन संग आया रे प्रीत का संदेश तुम लाया रे पवन संग हमे भगा ले गया रे बारिश के संग प्रिया को पाया रे कारे कारे बदरा तुम मेरी अटरिया पर जरूर आना. प्रिया का संदेश तुम जरूर लाना परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...