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खो देते है

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मत पिलाओं अपने आँखों से
इतना की हम उठा न सके।
मत दिखाओ अपने हुस्न को
कि हम नजर हटा न सके।
जब भी होते है दीदार तुम्हारे
खो देते है अपना सुध-बुध।
और तुम्हें ही अपनी
नजरो से देखते रहते है।।

खोलकर उलझे हुए
काले बालों को
जब तुम सुलझती हो।
ऐसा लगता है जैसे काली
घटायें घिर आई हो आंगन में।
अपने हाथो से जब तुम
बालों को सहलती हो।
तब कभी-कभी चाँद सा
सुंदर चेहरा दिख जाता है।।

भले क्यों न हो अमावस्या की रात
पर उसमें भी पूनम का चाँद दिखते हो।
जो देखने वालो की दिलकी
धड़कनो को बड़ा देती है।
और अंधेरी रात में भी
तुम चाँद सी खिल जाती हो।
और चाहने वालो के दिल में
मोहब्बत के दीप जला देते हो।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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