अजीब दुनिया
प्रीति शर्मा "असीम"
सोलन हिमाचल प्रदेश
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बड़ी अजीब दुनिया है....तेरी
समझ नहीं पाता हूँ।
बन के धर्मात्मा,
गीता उपदेश सुनाती हैं।
भीतर से,
अपने मतलब को,
पूरा करने के लिए,
शकुनि की तरह,
चालबाजियों की,
विसात सजाती हैं।
दूसरे ही पल,
बुरा नहीं करना,
लम्बा भाषण दे जाती है।
फिर कानों में,
कानों से,
कितनी बातें कह जाती है।
झूठ और सच को बड़ी,
सफाई से तराश लाती है।
सच सुन नही पाती।
झूठ के पुलिंदे उठा लाती है।
फिर अपने पापों को,
छुपाने के लिए गंगा नहा आती है।
कितने नाटकीय सोपानों को,
एक साथ कर जाती है।
बुरा जमाना आ गया।
यह राग तो गाती हैं।
अपने भीतर के जहर को,
कहाँ निकाल पाती है।
प्रेम की बातें तो करती है।
प्रेम से खाली ही रह जाती है।
कितनी सुंदर दुनियाँ बनाई तूने।
क्या अहसास छीन लिए......
जब लोगों से दुनियां सजाई तूने।।
यह दुनियां तेरी......
कितने चेहरे लिए जीयें जाती है।
बदल जात...