अन्तिम जश्न
शरद सिंह "शरद"
लखनऊ
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"हास्य-व्यंग"
बैठे बैठे एक ख्याल आया,
अब तो बैकुन्ठ जाने का समय आया,
पर वह अन्तिम जश्न, जश्न क्या?
जिसमे होठो ने न गुनगुनाया
जिसमे जोर जोर से ताली न बजाया|
कौन होगा जो आँसू
के साथ नगमे भहाये,
और यदि किसी ने सुनाया
तो तरन्नुम मे न सुनाया,
भगैर तरन्नुम के कौन बजायेगा ताली,
न बजी ताली तो क्या
अन्तिम जश्न मनाया,
किससे कहूँ जो लिखे कुछ नगमे,
फिर सुनाये मस्त हो मृत्यु जश्न में,
सोचा न जाने कौन क्या लिखेगा,
किसी के मन मस्तिष्क मे भी चढे़गा?
चलो छोड़ो खुद ही लिखते है
कुछ पंक्तियां अपनी मौत की,
पकी पकाई कौन न खाना चाहेगा,
हर कोई पढ़ नाम करना चाहेगा|
यह सोच लिख डाला
दो पन्नों का मृत्यु काव्य
पढ़ कर हुआ सन्तुष्ट हृदय
एक काम निबटा डाला
अब पढेंगा कौन?
विकट प्रश्न आ मडराया
फिर चिडि़या के पंजो से
निशां जैसे शब्दो को समझेगा कौन
लेखिनी दाँतों मे दबा
होठो के ए...