काँटे क़िस्मत में हो
गोपाल मोहन मिश्र
लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
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काँटे क़िस्मत में हो
तो बहारें आयें कैसे,
जो नहीं बस में हो
उसकी चाहत घटायें कैसे I
सूरज जो चढ़ता है
करते है उसको सब सलाम,
डूबते सूरज को भला
ख़िदमत हम दिलायें कैसे I
वो तो नादान हैं
समंदर को समझते हैं तालाब,
कितनी गहराई है
साहिल से बतायें कैसे I
दिल की बातें हैं
दिल वाले समझते हैं जनाब,
जिसका दिल पत्थर का हो
उसको पिघलायें कैसे I
परिचय :- गोपाल मोहन मिश्र
निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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