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कविता

आत्मीयता का उपहार
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आत्मीयता का उपहार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** छोड़कर धन दौलत हार तनमन से बांटो आत्मीयता का अनमोल उपहार ना सोना, ना चांदी, ना आभूषण का कहलाता है सच्चा उपहार, तनमन से बांटो आत्मीयता के प्रेमबन्धन का फूलों की महकती खुशबू सा अपनापन का बांटो अपनों में अपनत्व का अनमोल उपहार जन्मदिन, वर्षगांठ पर दिखावटी आडम्बर से भरे क्या सचमुच कहलाते अनमोल उपहार ? स्वेच्छा से बांटो अनमोल आत्मीयता का सच्चा समन्वय का आत्मीयता से भरा प्रेमबन्धन का अपनो में अनमोल उपहार परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
अयोध्या चले
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अयोध्या चले

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज तो है अलौकिक दिवस, हर तरफ खुशी के दीप जले। मेरे राम, सिया को संग लेकर, आज अयोध्या धाम चले।। सरयू की लहरों की रागिनी, संगीत मधुर सुना रही है। अयोध्या की पावन धरा से, महक मेरे श्री राम की आ रही है।। प्रफुल्लित हुआ हर जीव मन, मगन होकर नाच रहे हैं मोर। कोयल की मधुर वाणी सुन, खिल उठा अयोध्या चहुँओर।। कैसा अदभुत मिलन है यह, एक परिवार बनी पूरी नगरी। प्रेम के फूलों से खिला राजा दशरथ का घर, और महक गई पूरी अयोध्या नगरी।। धन्य-धन्य हो राजा दशरथ, जो प्रभु ने अंगना मे जन्म लिया। बड़ा पुण्य कमाया होगा माँ कौशल्या ने, जो पालनहार ने ही रिश्तों को मान दिया।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित...
मैं और मेरी कविता
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मैं और मेरी कविता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें ? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर , ...
सबको रोना आ गया
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सबको रोना आ गया

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा आया कोरोना, सबको रोना आ गया। घूमने वालों को बिस्तर पर सोना आ गया।। चीन से शुरू हुआ, चीन के हीं कारणों, विश्व को रुला दिया, दवा भी मिलेगी नो, डर लगे निकलें बाहर कैसे टोना आ गया। ऐसा आया कोरोना, सबको रोना आ गया। बंद हो गए यातायात के भी साधन सब, मर रही है जनता सो रहे कहाँ हैं रब, वैज्ञानिकों के भी माथे पर पसीना आ गया। ऐसा आया कोरोना, सबको रोना आ गया। लॉक डाउन की घड़ी है लॉक हो गए सभी, मास्क है जुबान पर अब घूमना कभी, बिना मिले-जुले सबको अब जीना आ गया। ऐसा आया कोरोना सबको रोना आ गया। तुलसी का पत्ता अजवाइन और आदी का, काढ़ा ईलाज है कोरोना जैसे बादी का। ग्रीन टी पिने का अब जमाना आ गया। ऐसा आया कोरोना, सबको रोना आ गया। घरेलू उपचार हीं अब इसका ईलाज होगा, लहसुन चबाना हल्दी दूध पीना आज होगा, स्वस्थ रहने का म...
यादों से एक याद चुन लिया है
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यादों से एक याद चुन लिया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** वक्त के धुप मे चलते-चलते हुये उष्ण से नित जलते-जलते हुये सफर मे तेरा साथ चुन लिया है यादों से ही एक याद चुन लिया है तू ही इबादत और मोहब्बत मेरी तू ही दरकार और सरकार मेरी मैंने वही एक प्रसून चुन लिया है यादों से ही एक याद चुन लिया है मधुरस से सराबोर हो ये जीवन जैसे संगीत से बना हो नया धुन एकान्त के लिए धुन चुन लिया है यादों से ही एक याद चुन लिया है सजदे के लिए रब चुन लिया है रब को अपना सब चुन लिया है जीवन में नई कहानी बुन लिया है यादों से ही एक याद चुन लिया है सुकून के लिए एकांत चुन लिया अपने लिए खुद कांटा चुन लिया नवीन ताना-बाना बुन लिया है यादों से ही एक याद चुन लिया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छ...
भीष्म–कृष्ण संवाद
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भीष्म–कृष्ण संवाद

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** मृत्यु शैया पर लेटे-लेटे, भीष्म के मन में ये विचार आया। भीष्म ने श्री कृष्ण के सामने, अपनी बात को दोहराया।। क्या सही है और क्या गलत, इसका उत्तर ना कोई दे पाया। अपनी बात को अपने-अपने ढंग से, सभी ने सही ठहराया।। क्या सही है और क्या गलत, हे माधव ! मुझको बतलाओ। मृत्यु आने से पहले हे माधव, मेरी दुविधा को दूर भगावो।। इस पर श्री कृष्ण बोले- हे पितामह भीष्म, तुम्हारी दुविधा का समाधान बतलाऊंगा । क्या सही है और क्या गलत, इसका भेद बतलाऊंगा।। पूछो राजन, जो संशय हो मन में। यूँ चिन्तित रहना अच्छा नही, कुरुक्षेत्र के रण में।। पितामह भीष्म बोले- हे माधव! माना द्रोपदी का चीर हरण पाप था। पर इतना बताओ हे नाथ! द्रोणाचार्य के साथ हुआ क्या वो इंसाफ था।। माना माधव पांड्वो के साथ हुआ वो छल था। पर माधव जो धृतराष्ट्र और गा...
जंगल में चुनाव
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जंगल में चुनाव

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन चुनाव की बात समूचा, जंगल ही हो उठा अधीर। माँस चीथनेवाले हिंसक, खाने लगे घास की खीर।। धर्म-कर्म का हुआ जागरण, आलस उड़ कर हुआ कपूर। देने लगे दुहाई सच की, असत् हो उठा कोसों दूर।। बिकने लगे जनेऊ जमकर, दिखने लगे तिलक तिरपुण्ड। जानवरों के मरियल नायक, बन बैठे हैं सण्ड-मुसण्ड।। ऊपर से मतभेद भुलाकर, भीतर भरे हुए मन भेद। तू-तू मैं-मैं करके सरके, आसमान में करके छेद।। एक दूसरे के सब दुश्मन, हुए इकट्ठे किया विचार। किसी तरह इस बबर शेर का, देना होगा नशा उतार।। टिकट बाँट की नीति बनाई, किया मसौदा यूँ तैयार। जिसके जितने अधिक वोट हों, सत्ता पर उसका अधिकार।। श्वान न्यौतने लगे बिल्लियाँ, बिल्ली न्यौते मूषक राज। देखी दरियादिली चील की, बुलबुल की कर उठी मसाज।। लूलों ने तलवार थाम ली, लँगड़े चढ़ने लगे...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग-२
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दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग-२

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ।।ब।। गली-गली से हुए इकट्ठे, बाँधे पट्टे निकले हैं। अपनी जाति देख गुर्राने, वाले पट्ठे निकले हैं।।१।। जितनी ताकत है दोनों में, उतनी धूम मचायेंगे। जितनी पूँछ उठा सकते हैं, उतनी पूँछ उठायेंगे।।२।। धरती खोद रहे पैरों से, इक-इक टाँग उठा ली है। गुर्राहट बढ़ रही कि, गुत्थम गुत्था होने वाली है।।३।। कुछ भौं-भौं करके भागेंगे, कुछ इस रण को जीतेंगे। बुरी तरह कुछ चिथ जायेंगे, बुरी तरह कुछ चीथेंगे।।४।। जितनी जबर खुदाई होगी, उतनी लोथल खतरे में। जितना अधिक जिन्न उछलेगा, उतनी बोतल खतरे में।।५।। बेशर्मों में शर्म न मिलती, करुणा नहीं कसाई में। माँ के मन में बैर न मिलता, मिरची नहीं मिठाई में।।६।। अकली कुछ ऐसे हावी हैं, नकली असली लगते हैं । और असलियत वाले असली, सचमुच नकली लगते हैं।।७।। फिर भी चाल-...
विजय का उत्सव
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विजय का उत्सव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** घरों-घर में देहली-दीपकों की लगी है कतार। नए पटाखे की ध्वनि से गूँज रहा सारा संसार।। खुशियों की सौगात लेकर आई है दिवाली। पर्व की तैयारी करो, चहुँओर है उजियाली।। सूर्य है दानवीर, प्रकाश और ऊर्जा का दाता। युति में भू पर पड़ती नहीं चंद्रमा की आभा।। जनता में अपार हर्ष है, देख रहे हैं राह तुम्हारी। रामराज लाने के लिए आएँगे विष्णु अवतारी।। श्रीराम ने सीता को रावण के कैद से छुड़ाया। वनवास काटकर अयोध्या को वापस आया।। घी के दीप से आरती उतार कर अभिनंदन करेंगे। पतित पावन राघव के चरण कमल की वंदन करेंगे।। अंधकार की ओर नहीं, प्रकाश की ओर जाना है। बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाना है।। अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य की जीत हो। निराशा पर आशा, जनों में एकता और प्रीत हो।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसग...
कुछ तो दोष मेरा भी है
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कुछ तो दोष मेरा भी है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सारा दोष दूसरों पर मढ़ कर मैं अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता, लोग स्वेच्छा से चलने लगे हैं सामाजिक जागरूकता की राहों पर तो क्या मैं खुद जाग नहीं सकता, ताउम्र मैं, मैं, मैं की नीति पर चला हूं, अपना कर्तव्य भूल बहुतों को छला हूं, स्वार्थी परमारथ की राह में नहीं जाते, कांटे बोने वाले कभी कांटे नहीं उठाते, मगर राह के हमें ही उठाने होंगे, उन टेढ़े-मेढ़े राहों पर हमें ही आने जाने होंगे, पढ़ने की औकात नहीं थी पर पढ़ा, बाबा साहब के अहसानों से एक उचित स्थान गढ़ा, खुद को देखता रहा अपनी राह गया आया, अभी तक समाज को कुछ नहीं लौटाया, न किसी की शिक्षा में सहयोग, न किसी के उत्थान में सहयोग, सारी कमाई का करता रहा स्वयं उपभोग, प्रचलित परिपाटी के विरुद्ध मुंह नहीं खोला, सामाजिक मुद्दों पर कभी खुल कर नहीं बोला...
मेरा भाई
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मेरा भाई

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** मेरे जीवन के सच्चे साथी, तुझ बिन मै कुछ नहीं, तुझसे ही तो मेरी सुबह और शाम है, इस जग मे मेरे भाई जैसा कोई और नहीं।। मेरे आँखो की चमक है तू, मेरे जीवन की हर रौनक है तू। तुझ से ही खिलता हमारा घर आँगन, तेरी मुस्कान से ही चलती हमारी धड़कन।। हमारे घर का उजाला है तू भाई, मम्मा-पापा की आँखों का तारा है तू। तुझसे ही बढ़ती हमारी खुशियो की उम्र, श्री राम जैसा पुत्र है, मेरे भाई तू।। गुलाब की जैसी महक हो तुम, अंधेरों को मिटाता पूनम का चांद हो तुम। तुमसे ही तो रोशन है हमारा जीवन, लक्ष्मण के जैसा ही भाई हो तुम।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
सबसे खास दिन
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सबसे खास दिन

सुशी सक्सेना इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सबसे खास दिन था, वो मेरे लिए, जब तुमसे मुलाकात हुई थी और तुमने मुझे अपना कह कर पुकारा था पहली बार दिल की बात हुई थी। मगर गुजर गए वो लम्हें और पराएपन का अहसास दिला दिया। गुजरे हुए लम्हे वापिस नहीं आते मगर वो दिन हमेशा के लिए ऐ साहिब, मेरे दिल में बस गए सबसे खास दिन था, वो मेरे लिए जब तुमने इस बात का अहसास दिलाया की मैं बहुत खूबसूरत और हुनरमंद हूं और मुझे सिखाया प्यार का मतलब इस दिल में जगाया जो प्यार वो झूठा भी नहीं है और सच्चा भी नहीं लगता एक अधूरा ख्वाब था, हकीकत न बन सका सबसे खास दिन था, वो मेरे लिए जब तुमने, मुझे लाल गुलाब दिया था तेरी यादों की ख़ुशबू को आज भी मैंने सहज कर रखा है इनकी पंखुड़ियों में ये बात और है कि वो गुलाब सूख गए। सबसे खास दिन था, वो मेरे लिए जब तुमने मुझे अपना फेवरेट कहा था ...
अपराजित
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अपराजित

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुझे दीवाना न समझना मुझे इश्क का परवाना न समझना , मैं रहता हूं अक्सर ह्रदय में तुम्हारे मुझे आवारगी का किनारा न समझना। मुझे बेगाना मत समझना मुझे अपना भी मत समझना मैं रहता हूं अक्सर ख़ुदा की आवारगी में मुझे यूँ ही बेचारा मत समझना। मुझे हारा हुआ मत समझना मुझे पराजय का सितारा मत समझना मैं रहता हूं अक्सर बड़ी जीत की तलाश में मुझे यूँ दुनिया से हारा मानव न समझना। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।  ...
अपना घर का सपना
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अपना घर का सपना

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मेरा अपना आलीशान बंगला है नहीं बड़ी आलीशान इमारत भी है नहीं कहीं कोई बड़ी कोठी भी नसीब है नहीं न कहीं कोई है बड़ी ऊंची हवेली है नहीं, मेरा कहने को है घर कहता हूँ चाव से गर्व से अपना घर घर मकान बस है कच्ची झोंपड़ी का है बना सबको गर्व से कहता हूँ अपना घर, टपकता है घर की चहारदीवारी छत में, बरसात का पानी बाढ़ में जलमग्न हो जाता हफ्तेभर जलमग्न की रहती कहानी, जीवनभर, आंधी बरसात में छत घर की उड़ा ले जाता हर बार कहना चाहता हूँ घर बना नहीं पाता, कहता हूँ फिर भी उसे ही अपना घर, आंनद में रम जाता, सपना मन में हर बार आता सच कभी सपना, कर नहीं पाता मेहमान का आवभगत घर की हालात से कभी कर नहीं पाता बारिश में टप-टप बून्द में भीग जाता तेज गर्मी घूप से बैचैन ओलावृष्टि में घर हर बार टूटकर बिखरकर धाराशायी हो जाता, उ...
नारी के दो मन
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नारी के दो मन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक नारी के दो मन की कहीं व्याख्या नहीं मिलती !! एक मन जो सब कुछ चुपचाप सहन करता है, तो दूसरा विद्रोह करने को आतुर ! एक मन छोड देना चाहता है सबकुछ, क्योंकि वो जानता है सब निरर्थक है, दूसरा मन लालायित होता है सब सुविधाएं भोगने हेतु ! एक मन सदैव झुका रहता है, करुना, ममता और परवाह में, दूसरा मन निश्चिन्त-मस्तमौला बन चलना चाहता है ! कभी-कभी ये दोनों मन शांत हो जाते हैं, भीतर ही भीतर संवाद करते हैं ! एक मन दूसरे को मौन साधने को कहता है, बोलने से बिखराव का भय दिखाता है, दूसरा मन मंद मंद ध्वनि में अपनी व्यथा कहना चाहता है ! वो पूछना चाहता है, कितनी पीड़ाओं से और गुजरना होगा, सब कुछ सम्भालने के लिए?? स्वयं के अस्तित्व को खो जाने का डर भी बताना चाहता है ! वह शांति और प्रकृति ...
दिल की धरती
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दिल की धरती

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** माटी बोले, सूरज हँसे, पवन सुने हर राग। इस धरती के आँचल में, छिपा है अनुपम भाग। हर बूँद यहाँ पर अमृत है, हर आँसू में एक गीत। जो झुका तिरंगे के आगे, वो अमर हुआ हर प्रीत। मंदिर बोले, मस्जिद गाए, गुरुद्वारा दे ज्ञान। यहाँ प्रेम ही पूजा है, यही देश की पहचान। कृषक का पसीना सोना, मजदूरों की शान। शब्द नहीं, ये कर्म हैं, जो लिखते इतिहास महान। नारी यहाँ ममता बनती, शक्ति का अवतार। उसके आँचल से ही बंधा, भारत का संसार। बच्चों की हँसी में गूँजे, भविष्य की परछाई। हर मासूम के स्वप्न में, भारत की झलक समाई। सैनिक जब सीमाओं पर, लेता ठंडी साँस। हर धड़कन कह उठती है, “जय हिंद” का एहसास। यौवन में जोश यहाँ का, रग-रग में अंगार। हर दिल बोले एक सुर में, “मेरा भारत अपार!” यहाँ दुख भी संकल्प बनें, सपने हों...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १
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दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ।।अ।। किसे दोष दूँ किसे सराहूँ किसकी जय-जयकार करूँ। दुविधा नहीं मिटाए मिटती कितना ही उपचार करूंँ।। लो चुनाव आ गए कपट की किलकारी कोरों पर है। हर नेता कस उठा कमर फिर तैयारी जोरों पर है।।१।। सबके अपने-अपने मतलब सबके ठिए ठिकाने जी। सब ने अपनी सांँस रोक कर साधे नये निशाने जी।।२।। कोई जोड़-जुगाड़ों में है, कोई जल भुन उबल रहा। कोई तिकड़म भिड़ा रहा है, कोई दल बल बदल रहा।। इधर उधर से ईंटें लेकर रोड़ा रोड़ा जोड़ा है।। भानुमती ने अपने सुत के हित में कुनबा जोड़ा है।।३।। यै कहते हैं इस कुनबे ने चोरी कर अन्धेर किया। वे कहते हैं चण्ड-मुण्ड ने पूरा भारत घेर लिया।।४।। ये कहते कमजोर अकल से सत्ता क्या चल पाएगी ? सिर पर गुड़ की भेली धरकर क्या चींटी चल पायेगी ??५?? करना हो तो करो सामना गुर्दे में दम...
बेखबरी का आलम
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बेखबरी का आलम

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये मेरी बेखबरी ही है कि लुटता जा रहा है मेरा सब कुछ, बढ़ता जा रहा मेरा दुख पर दुख, पर्दे डाले गए मेरे सुनहरे इतिहास पर, विरोधी इतना घातक है कि तुला हुआ है करने मेरे सत्यानाश पर, है उनके पास अजीब हथियार जो है रासायनिक अस्त्रों से भी घातक, जिससे हो जाते हैं मदहोश सब देख उनके निश दिन का नाटक, गिरवी पड़ा है मेरे अपनों का मष्तिष्क किसी नापाक इरादों वाले के चरणों में, हम पूरी तरह फंसे हुए हैं उन्हीं विरोधियों के विभिन्न धारणों में, ऊपर से हमारी पेट की आग, दिन भर इसी में उलझे रहते हैं और अपनों के प्रति कर्तव्य नहीं पाता जाग, अपने कर्तव्यों के प्रति मेरी सोच व समझ आखिर बेखबरी ही कहा जाएगा, मेरा यह रुख आगामी पीढ़ी से नहीं सहा जाएगा, मेरे जैसे लाखों करोड़ों लोग कब जाग पाएंगे, जोश, जुनून, जज्बे की कब आग जला...
बदलता परिवार
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बदलता परिवार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** एक-एक सदस्य से कहलाता परिवार परिवार की सदस्यता बिना, सुना संसार कहीं भी रहे, कहीं भी बसे, भुलाये भूल नहीं सकते, परिवारजनों को, अक्सर उनके संग ही लगता है, अपना प्यारा कितना अनूठा है परिवार।।१।। कभी किसी जमाने में आन बान शान में संयुक्त परिवार एक जगह सोते रहते खाते पीते मिल-जुलकर हाथ बंटाते सारे काम कर लेते आसान दुःख सुख की नैया चलाने लेते सबजन आपस में हाथ थाम।।२।। संयुक परिवार की असली शक्ति लुटाते उस परिवार पर अपनी जान बदलती दुनिया में बदलते गए है विचार कहीं भी देखो, दिखलाई नहीं देता खुशहाल संयुक्त परिवार, युगपरिवर्तन में सब, अब दीखता एकल परिवार।।३।। परिवार से मिलती खुशियां परिवार से मिलता प्यार एकता का सूत्र बंधा रखता भरापूरा स्नेहभरा परिवार।।४।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खल...
ऐसी हवा चली कि …
कविता

ऐसी हवा चली कि …

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** ऐसी हवा चली कि रिश्ते बिगड़ गाये जो कुछ बचा था दुनिया की आँखों में गाड़ गाये हमने तो उनको अपना बनाया था जिगर से वो देखते ही देखते पत्ते से झड़ गाये माँ बाप किसके साथ रहेंगे सवाल पर दो भाई इस विरोध में आपस में लड़ गाये क्या दोष अहिल्या का था जो शपित हुई भला गौतम ने उसको नारी से पत्थर में जड़ गए द्रोपदी की एक गलती से क्या क्या न झेली वो सारे ही कौरव पाण्डेवों के पीछे ही पड़ गए परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
कृष्ण-कर्ण संवाद
कविता

कृष्ण-कर्ण संवाद

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाहे तुम, केशव कवच कुण्डल उतार लो। कर्ण को मंजूर नहीं, कि प्राण उधार दो।। देकर वचन विचलित नहीं होते सुरमा... चलो कुरुक्षेत्र में, और सुन मेरी हुंकार लो। मित्रता निभाना सीखा है तुमसे माधव। अश्रु से पग धो तीन लोक वारे तुमने माधव।। धर्म क्या?? अधर्म क्या?? नर्क ही भला.... जाओ नहीं मानता कर्ण तुम्हारी सलाह।। रहेंगें माँ कुन्ती के, पुत्र पांच ही जीवित। कि शीश उसका रहेगा, सदा ही गर्वित।। पाषाण हुआ हृदय, उपहार में मिले आघातों से, प्रेम है अस्त्र-शस्त्रों से, रहा मोह नहीं श्वासों से।। तुम रचयिता जग के बड़े ही छलिया हो। देखो, जन्म से छला है अब न छलो....। जाओ पार्थ, तुम अर्जुन का रथ हांको, और निश्चिंत रहो, मुझ शुद्र पुत्र से न डरो।। कि हाहाकार तो होगा रण भूमि में। भस्म होगा इक निरपराध धुनि में।। वीर बलिदान...
अनुभव
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अनुभव

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कहा गया है चलती का नाम है जिंदगी इंसान चलता है ता-उम्र पर... क्या सब को मिलती है मंजिल.... इंसान चलता है कदम दर कदम पर... मंज़िल दूर रहती है खिसकती रहती है राहें सिसकती रहती है डगर न जाने कितने चाहे-अनचाहे आते हैं उतार-चढाव जिंदगी की दुर्गम राहों में..... कहीं उपस्थित है उन्नत श्रृंग शिखर सी विकट समस्यायें कहीं उछल रहे हैं दंश मारने को आतुर फुँफकारते विपदा नाग कभी रजनी का स्याह तमस कभी आंनद ओतप्रोत उर्जावान दीप्त दिवाकर कहीं खुशियों के लहराते सागर..... समेटे है अपने आप में ये सर्पीली राहें पग पग कटींली राहें कभी मिलते हैं सुरभित उपवन तो कहीं उगे हैं सरल,गरल, तरल सलिल सींचित कैक्टस मिश्रित अहसास लिए साथ साथ दौड़ती राहें मगर... मंजिल से पहले बहुत कुछ समझाती है ये...
विकसित भारत की दिवाली
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विकसित भारत की दिवाली

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** न मैं दिवाली मनाता, न ये धूम धड़ाम मुझे भाता है, मेरा मन तो उस कर्ज़ को गिनता, जो गरीब चुकाता है। न ये मेरा उत्सव है, न आतिशबाजी का शृंगार, मैं तो देखता हूँ, धन की चिता पर, चढ़ता बाज़ार। जिस लक्ष्मी को घर बुलाने, लाखों का व्यापार हुआ, चंद मिनटों की आतिशबाजी में, उसका सर्वनाश हुआ। जिस पूँजी से संवर सकता, किसी का पूरा संसार, तुम उसी को धूल बनाते, ये कैसा अंध-अधिकार? पूंजी का यह प्रदर्शन, यह कैसा व्यंग्य रचता है? जब फुटपाथ पर बैठा मानव, आज भी अन्न को तरसता है। दीवारों के भीतर दीप जले, पर द्वार अँधेरा बोल रहा, पत्थर की मूरत के लिए, तू लक्ष्मी को ही तोल रहा। लाखों के रॉकेट से ऊँचा, वह गरीब का घर भी हो, जो इस आस में बैठा है, कि 'आज वह भी ख़ुश हो।' हज़ार जलाओ तुम दीप भवन में, पर एक दीया क्यों नहीं? जहाँ भूख से सूख गए ह...
स्नेहपाश
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स्नेहपाश

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ तुमको अपनी कहानी का पात्र बनाऊ करे लोग सजदा तुमको भी मेरे नाम से ऐसा मुकाम बनाऊ। कहते हैं लोग कि मोहब्बत में बड़ी गहराई होती है आओ तुम्हें दोस्ती के समुद्र में डूबाकर भी तैरना सिखाऊ। सुना है तुमको लोगों पर ऐतबार नहीं है आओ तुमको स्नेहपाश में बांधकर अपनेपान का ज़रा एहसास करवाऊ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
दिप जलाएं
कविता

दिप जलाएं

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** राम घर आये हैं, सब मिलकर दिप जलाएं। सज गई पुरी नगरी, आओ मिलकर खुशियाँ मनाएं।। राम है मर्यादा पुरुषोत्तम, वचन के लिए वन को चुना। हसते- हसते महलों को छोड़ा, अयोध्या का हो गया हर कोना सुना।। सीता भी पतिव्रता नारी, महल सुख छोड़, हरी संग चली। फूलों पर चलने वाली, अब पानी भी पिये भर-भर अंजलि।। लक्ष्मण जैसा जग में भाई नहीं, राज छोड़ भाई के चरण शरण ली। कहीं नहीं लक्ष्मण जैसा और भाई, चौदह वर्ष में नींद की झपकी न ली।। ऐसे युगों-युगों के पैहरी, आज घर आये है। रौशन करें अपना घर, और मंगल गीत गाये हैं।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...