मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
रामेश्वर दास भांन
करनाल (हरियाणा)
********************
साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे,
अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे,
तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया,
दूर जाकर इस दिल से मेरे,
बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे,
जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे,
तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे,
अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे,
लेकर आया था संदेशा घर पर,
उस थाने का थानेदार मेरे,
कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें,
जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने,
बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती,
अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे,
तूने एक बार अपना घर नहीं समझा,
मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे,
इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने,
किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए,
मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर,
घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए,
तू जीत रही है हर बार मुझसे,
मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए,
सामान तो उठवा ल...