अपनी प्रीति का आया प्रिये प्रसंग
भीमराव झरबड़े 'जीवन'
बैतूल (मध्य प्रदेश)
********************
दोहा सप्तक
जब भी अपनी प्रीति का, आया प्रिये प्रसंग।
अंग-अंग में जीव के, कुसुमित हुआ अनंग।।१
नैन मिले मन फिर बदन, हुई प्रीति की वृष्टि।
पुलक-पुलक कर दे रही, शुभाशीष कुल सृष्टि।।२
दिवस कोकिला की तरह, गाये राग मलार।
पिया मिलन पर हो गई, रातें हरसिंगार।।३
मेरे दिल के ओर है, उसके नैन गवाक्ष।
चुंबन के शर छोड़ती, विहँस विहँस मंदाक्ष।।४
प्रणय निवेदन भेज कर, भूला तन दुष्यंत।
मन शाकुन्तल खोजता, पर्ण-पुष्प में कंत।।५
चंचरीक प्यासे नयन, बन कर तुलसीदास।
जिधर पुष्प रत्नावली, करते उधर प्रवास।।६
शृंगारित विद्योतमा, आ न सकी जब पास।
विप्रलंभ गढ़ता गया, तन मन कालीदास।।७
परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन'
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
आप ...