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मानवता-धर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मानव का जन्म लिया पुण्य से,
मानवता ना समझ सके
प्रभु वरदान है जीवन
ये भी ना पहचान सके..???

मनुष्यता का कवच ओढ़े,
धर्म अधर्म को तौल रहे
क्रूरता अट्टहास लगाती,
निज इच्छाओं से मौन रहे???

करुणा-प्रेम, सेवा-सम्मान, है
मानव धर्म की परिभाषा
ईन दैव गुणों से भी तुम ये
जीवन-व्यक्तित्व ना संवार सके

घोर विडंबना व्याप्त हुई
मानव दानव से भिन्न नहीं
प्रलय विनाश के द्वार
निज स्वार्थ वश खोल रहे

पाशविकता है चरम चढी
मनुजता पर अधम बढ़ा है
करुणा हृदय से सूख गई
मानव प्राणों का भूखा है…??

क्यूँ भटक गया है धर्म तत्व,
उलझा है अधम अंधेरों में
क्या था पौरुष कैसा मानव
जब जीवन ही असंवेदनशील हुआ

हे मनुज, उठो, अब भी
पुण्य कमा सकते हो
सत्य आचरण का संकल्प लिए
इस सृष्टि को संचित कर सकते हो

मत होने दो संहार यहां
धरती का बोझ मिटा सकते हो
करुणा संरक्षण यह धर्म तुम्हारा,
दया-दान हैं कर्म तुम्हारे
कर धर्म-साधना इस जीवन मे
धरा को स्वर्ग बना सकते हो …. !!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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