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कविता

मुस्कान सौंदर्य
कविता

मुस्कान सौंदर्य

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अंग सौंदर्य आभा हीरक दिव्यमान। सुरलोक की अप्सरा मेरी मुस्कान।। काले कुंतल कमर झूले वृहद रेशमी। लट मुख शोभित घुंघराले लुभावनी।। सुरम्य मुख चंद्रमा की सोलह कलाएं। निशा की प्रहर जगमग करती लीलाएं।। कनिष्ठ कर्णफूल लटक कर टिमटिमाते। लाल भाल बिंदिया प्रिय देख शरमाते।। ग्रीवा शोभित मोती जड़ित नौलखा हार। प्रियतम दृश्य अंकित छवि झलका प्यार।। हस्त कोमल साजन नाम मेहंदी चित्रकारी। विश्व सुंदरी, मोहिनी लगती हो बड़ी प्यारी।। मानसरोवर हंसिनी सदृश कृश कमरिया। मोंगरा, चमेली की खुशबू लेता सांवरिया।। चंचल चाल मृगी चलती बन मिस इंडिया। मैं छूलूं तुझे और पालूं तब आए निंदिया।। जिस दिन जब छुओगी आसमान की बुलंदी। तब मिलेगी सुख,शांति, अशोक, गर्व, आनंदी।। आपके जीवन में सदा खुशियों की बहार हो। चारों दिशाओं में तुम्हारी ही जय-जयकार ...
रोना
कविता

रोना

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** रोने में कोई बंदिश नहीं रोने में कोई मनाही नहीं रोने में टैक्स नही लगता रोने को कोई नहीं रोकता। जब इच्छा हुई रोलो रोना व्यक्तिगत भावना है आंसू हमारी संपत्ति है रोलो हल्के हो जाओ। सारी समस्याओं का हल रोना किसी को इससे आपत्ति नही रुंधे गले से रो, हिचकियां ले रो अविरल रो, सिसक के रो। आर्तनाद करो, चीख के रो छुपके रो, असहाय हो तो रो छाती पीट के रो, रुदाली बनो बेतहाशा, फफक के रो। रोना एक ऐसी कुंजी है जो हर विपदा से बचने हेतु राहत का ताला खोलती है रोना आंखों को धोता है रोना मन को निर्मल करता है। अश्रुसिक्त नयन सौन्दर्य सूचक, मनमोहक आकर्षण के द्योतक कमल नयन, मृगनयन रोने के पश्चात, मन में उत्साह, उम्मीद के संचारक आंसू, पुनः हंसी और मिलन का स्वागत करते हैं । परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवा...
दशहरा
कविता

दशहरा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दस विकारो को जीत बढ़ चले प्रगति पथ पर जीत सार्थक तब, जब अछून्न रह सके जीत पर जब मरे विचारों का रावण तब दशहरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा संकल्प लेंगे नहीं हटेंगे अच्छाई की राह से दूर ही रहेंगे काम, क्रोध व लालच की चाह से पवित्र हो विचार तो स्वाभिमान जाग जायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा सत्कर्म की राह पर चलकर पायेंगे लक्ष्य को कर्म करके बताएँगे, जीवन के सब साक्ष्य को कर्मो से ही जीवन मे नित नया सवेरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा मन के गलियारे मे सज्जनता का होगा बसेरा अरमानो का नित होता हो जहाँ सुखद सवेरा ऐसे नर ही जग मे लक्ष्मी नारायण बन पायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा राम बनना है तो राम सा चरित्र बनाना होगा भीतर के रावण को खुद ही हमें मिटाना हो...
नवरात्रि और नारी
कविता, स्तुति

नवरात्रि और नारी

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** नारी जिससे देवता भी हारे काली जिससे स्वयं शंभु हारे द्रौपदी जिससे पांडव कौरव हारे वो स्वयं किल्ला कंकालिन तो आदि दुरगहीन माँ चण्डिका है कभी नरसिंह अवतार की भगिनी रतनपुर की माँ महामाया है राजा कामदल की आशापुरा वो डोंगरगढ़ बमलाई है वो बाबा बर्फानी की आरध्या नंदगहिन माँ पाताल भैरवी है वो बस्तर की माई महतारी देवी दंतेश्वरी शक्ति स्वरूपा है कोरबा की मंगल धारणी सर्वमंगला देवी स्वरूप है वो झलमाल गंगा मइया जैसे शीतल गांव-गांव की शीतला महारानी है। दुर्गम राक्षस मर्दानी देवी दुर्गा चण्ड मुण्ड संघारणी महिसासुरमर्दिनि है शशि शीश धारणी, त्रिनेत्र शोभनी वो त्रि देव पूजनीय माँ शक्ति है नारी है वो जग अवतारी वो सृष्टि की महतारी है। जिससे रावण, पांडव, राम, कृष्ण, विष्णु, स्वयं शंभु भी हारे है वो नारी है जिससे देवता...
जिद
कविता

जिद

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** वो जिद में अड़े रहे कि घर में लक्ष्मी आयी है, कुछ के मन में था कि खुशियां लायी है, पर उनके मन में था मुसीबत आयी है, पता नहीं किन मनहूसों ने कब से ये भ्रांतियां फैलायी है, वो जिद पर अड़े रहे लड़की है सिर्फ चूल्हा फूंकेगी, वो चूल्हा फूंकती रही, क़िताबों से हवा देते चूल्हे को, अक्षरों के भंडार लूटती रही, पर वह भी जिद पर थी अज्ञानता, निरक्षरता को चूल्हे में आग के हवाले निरंतर करती रही, फिर चुपके से सायकल चलायी, स्कूटी चलायी, कार चलायी, ट्रेन चलायी, एरोप्लेन चलायी, पर वो पुराने खयालात वाले का जिद अभी भी है लड़की चूल्हा फूंकेगी, जनाब अब तो अपने भंवर से बाहर आकर देख, तुम्हारे कलुषित अरमानों की धज्जियां उड़ाते हुए वो देश भी बखूबी चला लेती है, तुम्हारे दूषित संस्कार, ढकोसले, पाखण्डों को मटियामेट करती हुई, सार...
दो अक्टूबर दो पुष्प
कविता

दो अक्टूबर दो पुष्प

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** भारत-भू पर दो अक्टूबर। दो पुष्प अवतरित हो। भारत उपवन में खिले। पहले लाल बहादुर शास्त्री। दूजे महात्मा गांधी। दोनों पावन आत्माएं। भारत-भू पर श्रेष्ठ कर्म। करने आई, दोनों महान। विभूतियां दोनों का व्यक्तित्व। अद्भुत गुणों की खान। लाल बहादुर शास्त्री। विनम्र स्वभाव धनी। गुदड़ी के लाल। जय जवान जय किसान। नारा लगा दोनों का सम्मान। सदा किया। गांधीजी चले सत्य। अहिंसा मार्ग बापू कहलाए। करो या मरो नारा अपना। मौन रह सत्याग्रह कर। भारत स्वतंत्र करावाएं। अंग्रेजों की गुलामी से। अंग्रेजों को भारत से बाहर। खदेड़ भारत बापू बन गए। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
साथिया
कविता

साथिया

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** जीवन के विकट मोड़ पर , जब थाम लिया तूने मेरा हाथ .......!! सफर रहा मुश्किलो में भी, अपना हर मौसम में साथ-साथ .....!! बेदर्द जमाना लगाए बैठा था घात, सहते रहे हम दिलो पर आघात .....!! दिल करता हैं, चीर दू , अपने जिस्म के ज़खीरे को ...........!! और डाल के भीतर हाथ, मुट्ठी में भींच कर निकाल लूं .........!! उसे खींचकर बाहर औऱ , जोर से उछाल कर फेंक दू .........!! तुम्हारे पद - पंकजो में , फिर  तो यकीन होगा मुझ पर .......!! कि मुझे  तुमसे  बेइंतहा , मुहब्बत है जन्म -जन्मान्तर से ......!!! परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं म...
क्या है समाज…?
कविता

क्या है समाज…?

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** क्या है समाज...? मैं पूछती हु क्या है समाज ? लड़का- लड़की में भेदभाव करता है समाज... लड़को को आजादी और लड़की को बंधन में बाँधता है समाज...। मुँह पर तारीफ और पीठ- पीछे हीन बाते करता है समाज...। इक्कीस मी सदी के लोग यह कैसा जीवन जीते है ...... हर-पल समाज-समाज की रट लगाते रहते है...। मैं मानती हुँ... ! हर इंसान समाज के आधीन होता है... समाज क्या कहेगा यह सवाल सब के दिल में होता है...। अपनी इस सोच को मिलकर बदलते है...... एक आधुनिक एवं नवीन विचारशील समाज की रचना करते हैं...। परिचय :- उषा बेन मांना भाई खांट निवासी : वालीनाथ ना मुवाडा, जिला- अरवल्ली (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ की रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
ठहाके जनकपुर में
कविता

ठहाके जनकपुर में

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जनकपुरी में सखी करें मजाक, राम लखन से करें तकरार। दशरथ के घर एक अचंभा? बिना पिता के भये संतान, खीर खाए पैदा बेटा भये, एक नहीं चार चार महाराज।। सखी सहेली करे ठिठोली, गजब खीर से हुए हैं पुत्र रत्न, दशरथ घर भयी संतान। हंसी मस्करी कर लक्ष्मण मुस्काने, गजब अचंभा जनक के घर का, हमरे तो माता के भय ललना, तुमरे जनक में नहीं माता-पिता से, पैदा भयी देखो संतान।। तुम्हारे यहां तो धरती उपजे है, खेती कर निबजे संतान। ले ठहाका लक्ष्मण मुस्काने, राम लला मंद-मंद मुसकाने, सखियों के चेहरे कुमलाने, सखी राम सब करें मजाक, जनकपुर में गारी खावे हे राम। "किरण विजय" कहे जनक सखी यू, हंसी-खुशी रहे युगल जोड़ी सरकार।। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं य...
सुन्दर कहानी
कविता

सुन्दर कहानी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बचपन की सुन्दर कहानी, एक राजा एक रानी और होते थे राजकुमार एवं राजकुमारी, कहानियाँ मासूम और प्यारी थी, उनका संदेश अर्थ पूर्ण होता था. निश्छल किरदार होते थे, कुछ ही बेकार होते थे, समय के साथ कहानियां बदली, उनके मायने बदले कहानी के कलाकार भी बदल गए ! अब तो है राग द्वेष की कहानी, अमीर गरीब की कहानी मरने मारने की कहानी, ऊंच नीच की कहानी इन कहानियों में गुम हो गई सच्चे जीवन की कहानी बाकी बची सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ की कहानी!! हर एक की है अलग और अपनी कहानी, पर कौन सुने किसी और की कहानी सभी हैँ अपने में उलझे से और अभिमानी, किसी को किसी की परवाह कहाँ, इंसान को इंसान से प्यार कहाँ काश हम लौट पाते उन्हीं पुरानी कहानियो और किरदारों में जिनमें डूब कर जीवन संवार लेते कुछ पल ही सही वापस बचपन को...
स्मृति
कविता

स्मृति

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** स्मृति के पथ पर तुमको खोज पाना थोड़ा कठिन था। फिर भी तुमको खोज पाया मैं स्वयं की आत्म अनुभूति में। स्मृति के पथ पर जो शेष रह गया था वो सब धुंधला-धुंधला सा ही था। फिर भी तुम को खोज पाया मैं स्वयं के आत्ममंथन में। स्मृति के पंथ पर तुमको भूल जाना नामुमकिन था फिर भी भूल कर भी न भूल पाया अंतर्मन में तुमको। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
क्या लिखूँ
कविता

क्या लिखूँ

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** काली कजरारी तेरी आंखों को लिखूँ। या फना होता तुम पे अपनी हालातों को लिखूँ। क्या लिखूँ? लटकती कानों में बाली को लिखूँ। या रसभरी होंठों की लाली को लिखूँ। क्या लिखूँ? मेहंदी से सजे खूबसूरत हाथों को लिखूँ। या कोयल सी मीठी बातों को लिखूँ। क्या लिखूँ? पहाड़ियों में बसा तुम्हारा गांव लिखूँ। या तेरी घनी बिखरी बालों का छांव लिखूँ। क्या लिखूँ? छन-छन करती तेरी पायल की झनकार लिखूँ। या तीर नजरों से घायल सीने के आर-पार लिखूँ। क्या लिखूँ? चाहता हूँ दिल की अपनी हर बात लिखूँ। सपनों के सागर में डूबा अपना जज्बात लिखूँ।। और क्या लिखूँ? दे दो हाथों में हाथ फिर एक नया आगाज लिखता हूँ। मिला दो सुर में सुर फिर एक नई आवाज लिखता हूँ।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
दुनिया में सभी सुखी रहें
कविता

दुनिया में सभी सुखी रहें

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** दुनिया में सभी सुखी रहें जीवन भर सभी के मन शांत रहें दूसरों की परेशानी में मदद करें यह भाव हर मानवीय जीव में रहे कभी किसी को दुख का भागी ना बनना पड़े यह कामना हर मानवीय जीवन में रहे जीवन में किसी जीव को परेशान बुराई ना करने का मंत्र ज्ञान मस्तिष्क में रहे सभी जीवन में सुखी रहें दुनिया में कोई दुखी ना रहे सभी जीवन भर रोग मुक्त रहे मंगलमय के हर पल के सभी साक्षी रहे सभी श्लोकों को पढ़कर जीवन में आनंद करें महापुरुषों के ग्रंथों को पढ़कर सही रास्ते पर चलकर सभी में यह सोच भरें किसी की बुराई और परेशान ना करें भारतीय संस्कारों को जीवन में अपनाते रहें सभी जीवो का कल्याण का कार्य करते रहें किसी के दुखों का भागी कारण न बने सभी की भलाई निस्वार्थ करते रहें परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) ...
सात गुण सात रोग
कविता

सात गुण सात रोग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात गुण सात रोग शक्ति स्वरूपा देवियों से प्राप्त गुणों से भगाएँ रोग। स्नेह प्यार की शीतल बयार ह्रदय रोगों से बचाती संसार क्यों न प्यार दें और प्यार ले शान्ति का चहुँ ओर हो प्रसार श्वास अस्थमा नहीं आए द्वार तभी कहते शान्ति से सांस लो संतोष व सुख का करो संचार पेट रोग अपच सब मानेंगे हार सुना है, सुख से दो जून खाओ फैलाओ सदा ज्ञान का प्रकाश मानसिक रोगों का होता नाश चिंता नहीं, चिंतन में लीन रहो शरीर के दर्दों से पाओ निज़ात जाग्रत अष्ट शक्तियाँ है निदान अन्तर्निहित ऊर्जाएं न गवाओ कर्मेन्द्रियां अपना ले पवित्रता प्रतिरोधक दिलाए रोगमुक्तता सोचो-सब अच्छे, सब अच्छा संतोषी सदाचारी निर्विकारी बने परम् आंनद के अधिकारी दुआ दो, भला करो, मगन रहो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
जड़ों का अस्तित्व
कविता

जड़ों का अस्तित्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमीन में दबी हुई जड़ों के जंजाल को जीवित रखने के लिए। वृक्षों की विभिन्न शाखाएं देखिए कैसे अवनी अंबर में समझौता करने के लिए अडिग है। उच्च श्रृंग शिखरवृक्ष का संदेश सुनाता अंबर को कहता अवनी आश्वस्त है तप्त रवि जब किरणें फैलाता। फैले वृक्ष छाया करते अवनी पर गोलाई, चौड़ाई, चतुर्भुज, लंबाई गणित बैठाती है शाखाएं। पर्णों का स्वर संगीत सुनाती तपती दोपहरी में ठंडी पवन आड़ी तिरछी शाखाएं वृक्षों की आलिंगन करती अवनी का। मानोकहो रही हो वृक्षशाखाएं हे अवनी हम तुम्हें संभाल लेंगे क्योंकि नीचे की जड़ों का तुम ही तो आधार हो। वृक्षों के कई आकार छोटे लंबे गोलाकार देते सदैव अंबर को अवनी का अस्तित्व आभास। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी ...
भगत सिंह को दिल करे प्रणाम
कविता

भगत सिंह को दिल करे प्रणाम

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** कोटि-कोटि नमन है शहीद तुझे, मन पर हस्ताक्षर ले मातृभूमि का, करते रहे सदा देश की सेवा तुम मिट गए पर झुके नहीं गैरों के आगे करते हुए इस समाज का कल्याण ।। अपने से विचारों से ला दी थी तुमने, युवाओं में क्रांति आजादी के नाम की हर घर एक भगत हो रहा था तैयार सत्य सभी को दिखलाया देश हित में, ऐसे भगत को हैं कोटि-कोटि प्रणाम ।। ना भूलेंगे हम तुम्हारी शहादत कभी कैसे किया तुमने मातृभूमि का सम्मान, ऊंच-नीच का भेद नहीं था तुमको कभी, सिखलाया हंसकर जीना सबको गले लगाकर किया सभी से सदैव भगत ने प्रेम अपार ।। गुलामी की जंजीरों से करना थे बस तुमको स्वतंत्र इस देश में सभी के विचार इसीलिए हर मार्ग चुना सावधानी से स्वतंत्रता की खातिर करते गए तुम साथ लेकर सबको ही अपना काम ।। तुम्हारे बलिदान को व्यर्थ नहीं समझा हम...
श्रम
कविता

श्रम

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** श्रम पूजा श्रम ईश्वर श्रम ईश्वर का रूप कर्म विधान श्रमिक तु ईश्वर का प्रतिरूप।। पत्थर फोड़े नहरें खोदी खोद रहा खदान गगन चुंबी इमारतों में चढ़ करता विश्व से आह्वान।। जलते पग जलती भू जल रहा आकाश पानी की एक एक बूंद को ढूंढ रहा हताश।। जलता ज़मीर जलता ख़्वाब पिस रहा लाचार भाग्य के हम भाग्य विधाता श्रम करता प्रतिगान।। जलते अंगारों में सुसज्जित निर्धन का गलियार जर्रे जर्रे मर मर कर श्रम करता फरियाद।। श्रम जीवन का मार्ग प्रशस्त करता काया कल्प शोषक शासक नाम मात्र का करता राजतंत्र।। शोषित शोषण के अंधकार में जलता निमग्न काम ऐश्वर्य के पूर्ण अर्थ से देश बना विपन्न।। लोकतंत्र के शासन में नीति दलों का द्वंद देश की अर्थ व्यवस्था दाव में जलमग्न।। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७...
माँ तुम ही मेरा आधार
कविता

माँ तुम ही मेरा आधार

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** माँ जगदम्बे के चरणों में, शीश झुकाये ये जग सारा। आदिशक्ति माता भवानी, भक्त लगाये जय जयकारा। तुम हो बड़ी कृपालु माता, याचक की सुनती हो पुकार। झोली सबकी तुम भर देती, आता है जो तुम्हरे द्वार। तेरा रूप है जग से निराला, नयनों को लगता है प्यारा। तुम मेरा एकमात्र सहारा, तुम बिन मेरा कौन आधारा। संकट से माँ तू ही उबारे, जीवन नैया तेरे हवाले। शरणागत हम आये माता, हे! जगजननी भाग्य विधाता। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
काश ये सपना पूरा हो जाएं
कविता

काश ये सपना पूरा हो जाएं

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** एक सपना है मेरा जो पूरा हो जाए मैं तेरा बन जाऊं, तू मेरी बन जाए तू नाराज हो मुझसे, तो मैं तुझे मनाऊं और कभी मैं नाराज हो जाऊं तो तू मुझे मनाए काश ये सपना पूरा हो जाए... हमारी खट्टी-मीठी थोड़ी नोकजोख हो जाए कभी परेशान करके मैं तुझे सताऊं कभी ऐसे नखरे भी बताए थोड़े झगड़े करके फिर प्रेम जताए काश मेरा ये सपना पूरा हो जाए... रज़ा के दिन मैं तेरा हाथ बटाऊं तू दाल बनाएं तो मैं रोटी बनाऊं कभी हम बारिश में भीगकर आए अपनी साड़ी से तू मेरे बाल सुखाए काश मेरा ये सपना पूरा हो जाए... कभी हम ऐसे सफर पर जाए तू थक जाएं तो मैं तुझे गोद में उढाऊं तू ख्याल मेरा बने और मैं "आकाश" तेरा शायर, प्रेमी बन जाए यहीं बस सपना है मेरा काश ये पूरा हो जाए इसे पूरा सिर्फ तू कर सकती है तो तू जल्द से जल्द इसे पूरा बनाएं काश ये मेरा...
शहीद भगत सिंह
कविता

शहीद भगत सिंह

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** होंठो पर मुस्कान, हथेली में लेकर जान। वीरों के वीर शहीद भगत सिंह महान। निकल पड़े थे अकेले दुश्मनों को हराने। बचपन से ही सिर्फ आजादी के दीवाने।। रग-रग में भरी थी साहस चलते सीना तान के। मौत से कभी न डरा, जीते थे जो शान से।। जीवट, जुनूनी व एकाकी भावना। देश पर फ़ना होने को ठाना दीवाना। वीर भगत सिंह की मूँछो पर ताव। गोरे दुश्मन को करते रहे थे घाव।। बाँध चले थे जो सिर पर कफन। जोश-ए-जुनून से लबरेज क्रांतिकारी। वीर भगत सिंह, राजगुरु, सुकदेव। तीनों वीर अंग्रेजी हुकूमत पर भारी।। असेम्बली में बम फेंका, सलाखों को सीने से लगाया। खुद को देश पर कुर्बान किया, हर सीने में देशप्रेम जगाया।। खून में था देशभक्ति का जज्बा, नारा था साम्राज्यवाद मुर्दाबाद।। वतन कि फिजां में आज भी गूँज रही है। भगत सिंह जिन्दाबाद, इंकलाब जिंद...
स्वावलंबन
कविता

स्वावलंबन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** इतना भी इन्सान स्वावलम्बी न हो जाए कि दीन दुनिया को जीवन के मूल्यों को भूल जाए कि परवरिश परिवार की, घरबार को भूल जाए मित्रों का आना, पड़ोसी का मुस्कुराना स्नेह का बंधन ही टूट जाए कामना की पूर्ति में इतना न मग्न हो जाए कि घर की सुरक्षा,nआँगन की देहरी संवेदना की झोली, मित्रों की टोली रिश्तों की डोरी को भूल जाए केवल स्वयम् में इतना न डूब जाए कि नैतिकता का दामन, अनुशासन की सीमा बुज़ुर्गों की चाहत, अपनों की आहट, नन्हों की झप्पी, बच्चों का बचपन वो भूल जाए नदियों की कलकल, वर्षा की रिमझिम मुस्कान कलियों की, भौंरों का गुंजन भोली सी सूरत, मेहनत की सीरत कुनबे के माली की हैसियत न भूल जाए चिडियों की चहक, फूलों की महक झरनों की कलकल, लताओं की झिलमिल मेघों का गर्जन, दामिनी की तड़पन जाड़ों की गुनगुनी न धूप भूल ...
गर धरा ना होती तो
कविता

गर धरा ना होती तो

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गर धरा ना होती तो तो रिश्ते ना होते भू लोक का नाम ना होता प्राण वायु कहा से पाते जीवन का आधार ही खत्म हो जाते ना दिन ना राते होती न तारों को गिन पाते जन्म जन्म का साथ हम कहाँ से पाते गर धरा ना होती तो सभी जीवों को हम कहा देख पाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित संस्थाओं से सम्बद्ध...
बिटिया
कविता

बिटिया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** बिटिया तू है, अपने। परिवार की राजकुमारी। तू परिवार की राजदुलारी। तू आज बगिया की सुंदर। कली सम कल तू तरूणी। आज तू कली सम देवकन्या। रूप धर धरा पर आई। तू है परमपिता परमात्मा। प्रदत्त अद्भुत रचना। बिटिया तेरे रूप अनेक। बिटिया इस धरा पर जब भी। कोई तुझे कुत्सित भाव। संवाद करें या कुदृष्टि डाले। तो तू ऐसे दुष्कर्म करने वाले। दुष्टो का संहार करने के लिए। तत्काल तू काली अरू रक्तदंतिका बन जाना। बिटिया तू ईश्वर की रचना हैं । तू कोमलांगी हैं परंतु जब। विषम परिस्थिति में लज्जा। संकट में हो तब दुष्टों का सर्वनाश कर देना। कुकर्म करने वाले दुष्टों को। निसंकोच अस्त्र-शस्त्र से काट। देना तनिक संकोच मत करना। तू आज की अबला नारी नहीं। आज की सबला नारी है। बिटिया तू ही दुर्गा, तू ही काली। तू ही जगद...
मेङ पर बैठा संगिनी साथ
कविता

मेङ पर बैठा संगिनी साथ

इंद्रजीत सिहाग "नोहरी" गोरखाना, नोहर (राजस्थान) ******************** देखा भी तो क्या देखा अगर देखा नहीं गोरखाना। देखता हुं दृश्य अब जब मैं मेङ पर खेत की बैठा संगिनी साथ। यह हरा ठिगना मौठ बांधे मुरैठा रंगिन शीश पर, फूलों से सजकर खङा हैं। देखा भी तो क्या देखा, अगर देखा नहीं गोरखाना। बीच में बाजरी हठिली देह पतली, कमर लचीली बांध शीश पर चांदी मुकुट लहर-लहर लहराव है देखा भी तो क्या देखा अगर देखा नहीं गोरखाना। और ग्वार की न पूछो, सबसे अलग अकङ दिखावै। हरे पत्तों से लदा फंदा हैं हरे पन्ने सी फली चमकावै है। प्रकृति अनुराग रस बरसावै है। देखा भी तो क्या देखा अगर देखा नहीं गोरखाना।। परिचय :-  इंद्रजीत सिहाग "नोहरी" उपनाम : "नोहरी" पिताजी का नाम : श्री भानीराम सिहाग माताजी का नाम : कांता देवी अर्धांगिनी का नाम : माया देवी जन्म दिनांक : १३/०७/१९९...
मृतात्मा
कविता

मृतात्मा

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जन्म लिया था मानव बन कर इस पावन भू-भाग। कब दानव बना पता नहीं चला उगलने लगा आग।। मोह में फंसा था जीवन भर, लिया ना प्रभु का नाम। अपने लिए, अपनों के लिए करता रहा ताउम्र काम।। गरीबों से लेता था धन, अमीरों का किया काम मुफ्त। कहता सभी से बताना नहीं किसी को, रखना गुप्त।। देखकर पहनावा उनका निर्धनों को बिठाता जमीन। जब आता कोई धनवान, उठ खड़ा होता आसीन।। भिक्षु को कभी ना दान दिया ना किया समाज सेवा। भक्ति की ना धर्म के मार्ग पर चला, खुद खाता मेवा।। ईश्वर समान माता-पिता को भेज दिया वृद्धा आश्रम। माया और मांस-मदिरा में लिप्त पाल बैठा था भ्रम।। भटक रहा हूं स्वर्ग और नर्क में रूप लिए श्वेत छाया। निर्मल, पुण्य वाले मिट्टी में दफन है मेरी हाड़ काया।। जला था आजीवन दूसरों से, गुरुर अग्नि की लपटों में। धवल धुआं उड़ गया ग...