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कविता

तुमको गाँव बुलाता
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तुमको गाँव बुलाता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जाकर जो बस गये शहर में, उन्हें शहर ही भाता। याद सताती जिन्हें गाँव की, उनको गाँव बुलाता। बावन बीघे का घर छोड़ा, छोड़ा अँगना प्यारा। जाकर बसे शहर में निर्मम, बना बसेरा न्यारा। आँगन के अमरुद छोड़कर, और छोड़ गलियारे। शीतल छाँव छोड़ अमुआँ की, शहर बसे हुरयारे। कच्चा चूल्हा धर आँगन में, अम्मा खीर बनाती। जब जब तू रूठा करता था, तुझको खूब मनाती। कल कल करती नदी गाँव की, तुझे याद ना आती। बचपन के यारों की यादें, तुझको नहीं सताती। गाँवों की गलियाँ सूनी हैं, पनघट भी सुने हैं। सपने लेकर शहर जा बसे, गए आसमां छूने। दौलत सँग रसूख पाने को, गाँवों को विसराया। कंक्रीट के अंदर रहते, जहाँ प्रदूषण छाया। कोयल मोर पपीहा मिलकर, बागों में थे गाते। घर के बाहर बड़े ताल में, छोटी नाव चलाते। भाभी ननद और बह...
वर्ण पिरामिड
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वर्ण पिरामिड

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ण पिरामिड महादेव १... ॐ शिव ओंकार निराकार परमेश्वर त्रयम्बकेश्वर करो विश्व उद्धार २... हे शंभू त्रिचक्षु संकटी भू कल्याण कुरु बजा दो डमरू करो तांडव शुरू ३... ओ रुद्र शंकर विश्वेशर ओंकारेश्वर महाकालेश्वर आओ परमेश्वर परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ड...
प्यारी बेटी
कविता

प्यारी बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां के मन का भाव है बेटी, पिता के दिल का अहसास है बेटी। आत्मा की आवाज है बेटी, चित ज्ञान और विवेक हे बेटी। घर की रौनक हे बेटी, आंगन में बहार है बेटी। मां की जिगरी दोस्त है बेटी, पिता का मनोबल है बेटी। दुख का साथ बेटी, सुख का मार्ग है बेटी। निस्वार्थ भाव है बेटी, घर का मान है बेटी। घर का सम्मान है बेटी, घर की आन बान और शान है बेटी। पिता का सम्मान है बेटी, घर मौहल्ला और समाज देश की नाक हे बेटी। "इसे हम क्यों मारे गर्भ मैं" फिर सीता राधा अनुसूया, लक्ष्मी इंदिरा सुषमा अहिल्या। ललिता प्रतिभा द्रोपदी, और किरण विजय के होंठो की, "मुस्कान" कहां से लाएगे हम। बेटी को बचाए हम, "बेटी है तो कल है, बेटी है तो सकल है" परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ...
जिंदगी का भरोसा नहीं
कविता

जिंदगी का भरोसा नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** पल-पल निहारती जिंदगी कब कहां किसे देख रहा तू ? कब होगा आखिरी क्षण ज्ञात नहीं है तुझे भी तो फिर क्यों लगी भागदौड़? जो है कर गुजारा उसमें देखा-देखी दौड़ में लगा पल भर का भरोसा नहीं आज तेरा कल होगा किसी का फिर क्यों जकड़ रखा खुद को? फिसलेगा तेरे हाथ से सब रोक ना पायेगा तू कहर को सुख-दुख का फेर निराला तू गठरी क्यों बांधे दुख की? दुःख की माला फेरता रहता सुख को क्यों नहीं जपता परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्...
प्रेम भाव नज़र आता है
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प्रेम भाव नज़र आता है

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** कुछ पल का मिलना उनसे मेरा, अपने पन का अहसास दिलाता है, बातें जब वो करते हैं मुझसे, जज़्बात निखर कर आता है, कुछ रिश्ते कुछ नाते होते हैं प्यार भरे, उनसे मिलो उनको देखो संसार नज़र आता है, देखकर प्रेम मन में उनकेे, प्यार का अहसास नज़र आता है, हो कोई दिल में बात नयी, या हों कुछ बातों की रायसुमारी, सब बातों को उनसे करके, हर बात का सार नज़र आता है, मन में हो निराशा कोई, या बातें हों दुनियादारी की, कर के सारी बातों को उनसे, उनका समाधान नज़र आता है, रखो साथ जीवन में अपने, ऐसे प्यार करने वाले साथियों को, जिनके साथ रहकर बातें कर, दिल से दिल का प्रेम भाव नज़र आता है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
ख्वाहिश
कविता

ख्वाहिश

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** ख्वाहिश है मेरी उड़ने की मुझे गिरना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी मोहब्बत की मुझे नफ़रत न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी जीतने की मुझे हारना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी मुस्कुराने की मुझे रुलाना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी जीने की मुझे मरना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी दिल लगाने की मुझे दिल बहला न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी तेरे साथ रहने की मुझे दूर रहना न सिखाइए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित क...
महफ़िल
कविता

महफ़िल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमी थी ख्वाबों की महफ़िल जमीन पर जिंदगी की हो गया खूशूबहे के पड़ाव में बचा गया दामन कोई शूबहे की आड़ में।। चुप दरख़्त चुप फासले चुप है राही कदम की जंजीरे मकसद की मंजिल अभी दूर है तन्हाई का आलम अभी से क्यों है। और बढ़ा दी तनहाई इस सन्नाटे ने रफ्ता, बे रस्ता चलना मुमकिन नहीं है मुमकिन है जिंदगी की फिसलन में फिसल जाऊ संभालो यारो, मंजिल हासिल करना अभी बाकी है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...
सूरज देता है
कविता

सूरज देता है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सूरज की किरणें प्रकाश देती है। जीवो को जीने की ऊर्जा देती है। भूमि की नमी को दूर करती है। और फसलों को पकाती है।। दिन रात का अंतर हम लोग। सूर्य के प्रकाश से लगाते है। अंधरो में रोशनी फेलते दिखते है। और भू मंडल का खिला रूप देखते है।। सभी को सूरज की जरूरत होती है। ऋतुओं की गणना सूरज से होती है। मौसम का मिजाज सूरज बताता है। इसलिए सूर्य के बिना दिन नहीं होगा।। भारत में सूरज को सभी भगवान का दर्जा देते है। तभी तो हर चीज की गणना सूर्य उदय से करते है। इसलिए सुबह सबसे पहले सूर्य को जल अर्पण करते है। और अपने दिन की शुरुआत करते है फिर सुख शांति और नई ऊर्जा पाते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद...
अपनी उलझने
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अपनी उलझने

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** न मन पढ़ने में लगता है न दिल लिखने को कहता है। मगर विचारो में सदा ये उलझा सा रहता है। करू तो क्या करू अब मैं समझ में कुछ नहीं आ रहा। इसलिए तो हमारा दिल अब एकाकी सा हो रहा।। ख्यालों में डूबकर भी कुछ देख नहीं पा रहा। जुबा से कुछ भी अब ये कह नहीं पा रहा। करू तो क्या करू अब मैं समझ में कुछ नहीं आ रहा। इसलिए तो अब ये मन यहां वहां भटक रहा।। माना की मन और दिल पर किसका जोर नहीं चलता। समस्या कितनी भी बड़ी हो सुलझाना तो उसे पड़ता। जरूरी है नहीं ये की सभी प्रश्न हल हो जाये। हमें कोशिश हमेशा ही करते रहना चाहिए।। बनाई है हर मर्ज की दवा विधाता ने दुनियां में। तुम्हें ही खोज कर उसे सामने लाना पड़ेगा। और अपनी बुध्दि विवेक का परिचय देना पड़ेगा। जिससे मानव होने का तुझे एहसास हो जायेगा।। परिचय :- बीना (म...
रामधारीसिंह दिनकर
कविता

रामधारीसिंह दिनकर

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** दिनकर कवि बङे निराले। बिहार भू जन्मे। मानो गगन मध्य दिनकर। उदित धरा पर अपनी अरुणिमा। फैला ऊषा का अभिनन्दन करें। जाके तात रवि अरू माता। मनरूप, दिनकर अल्पायु में ही पितु। छत्रछाया से हुए विलग। वेदना की बदली छाई। स्नातक पश्चात शिक्षा हुई। अवरूद्ध। हुए आरुढ़ विविध पदों पर। प्रधानाचार्य पद पाया। हिंदी विभाग के उपकुलपति। संसद के राज्यसभा सदन सदस्य भी भए। दिनकर की कलम कमाल। दिन प्रतिदिन दिखाती चली। हिंदी सलाहकार बने। असंख्य अनमोल रचनाएँ। रच-रच दिनकर कलम ने। रचनाओं के खजाने बनाएँ । जिनमें मुख्य रचना रेणुका। हुँकार, कुरुक्षेत्र महाकाव्य। नाम अपार छाया। भारत सरकार से पद्मभूषण पदवी, ज्ञानपीठ पुरस्कार पाया। दिनकर उर अपार हर्ष छाया। दिनकर कवि की कविताएं। बङी निराली आज भी सबके। उर उमंग सं...
दीप जलाएं बैठा हूं
कविता, भजन, स्तुति

दीप जलाएं बैठा हूं

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** चकाचौंध की रौनक न मां, दीप जलाएं बैठा हूं। संगीत-गीत न तंत्र-मंत्र न, जय माता दी कहता हूं।। स्वर्ण कलश न, न स्वर्ण मूर्ति, न स्वर्णजड़ित सिंघासन है। काष्ठ आड में रखा है तुझको, जर्जर वस्त्र का आसन है। नैवेद्य नहीं फल-फूल नहीं मां,, मैं, गुड चढ़ाएं बैठा हूं।। चकाचौंध की रौनक न मां, दीप जलाएं बैठा हूं। कर्पूर नहीं मां धूप नहीं, न कर पाऊं श्रृंगार तेरा। नूपुर नहीं, करधनी नहीं, ना भोगने योग्य आहार तेरा। इत्र नहीं, सिन्दूर नही मां, सर झुकाए बैठा हूं।। चकाचौंध की रौनक न मां, दीप जलाएं बैठा हूं। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
यादो की परछाई
कविता

यादो की परछाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** यादो की परछाई बार-बार आती रही धुंधली तस्वीर बचपन की दिखाती रही वो स्कूल के दिन वो बचपन की बाते दोस्तों का साथ दुनिया के रिश्ते नाते बचपन के खेल माँ की फटकार याद है लाड़ प्यार और दुलार आज भी याद है बचपन के खेल, राजा रानी की कहानी बचपन की बातें, लड़कपन की शैतानी सितारों की गिनती, गुड्डे गुड़िया के खेल उमंग की उड़ान, मस्ती से भरा हर खेल अब यादें बन गई है सारी पिछली बातें अब केवल जेहन तक ही रहती है बातें फिर से बचपन मे जाने का मन करता है माँ के आँचल मे छुपने का मन करता है यादो की परछाई अक्सर मुझे घर लेती है तन्हाई मे आकर अक्सर झकझोर देती है काश फिर से वही बचपना मिल जाये पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ...
हम तुमको न भूल पायेंगे
कविता

हम तुमको न भूल पायेंगे

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** राजू जी, आपने हमें हँसाया, आपकी बातों ने गुदगुदाया। हमारे मन को भी बहलाया, काॅमेडी किंग का तमगा पाया। समाज को नया रास्ता दिखाया, कॉमेडी में भी कैरियर है ये समझाया। युवाओं ने आपको मिशाल बनाया, बन काॅमेडियन जग को हँसाया। विधाता ने ये कहर क्यों बरपाया? हँसाने वाले ने है आज रुलाया। अब ये कैसा मौन है छाया, सब ईश्वर की है माया। अब यादें ही आपकी शेष रह जायेंगी, दुनिया आपको कभी भूल नहीं पाएगी। आपके किरदार आपको अमर बनायेंगे, बनके सितारा आप सदा झिलमिलायेंगे। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
ज़िंदगी
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ज़िंदगी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आपाधापी, भागादौड़ी, रेलमपेल हो गयी ज़िंदगी मैट्रो शहर की कोई रेल हो गई । दो पाटों के बीच में पिस रहा हर कोई ऐसे ज़िंदगी डालडा कभी सरसों का तेल हो गई। बाबाजी के प्रवचन सुनके घर को लौटा हूं मैं खबर चल रही है टीवी में, उनको जेल हो गई। हुस्न के कारागृह में चक्की चला रहे कितने ही मुझ निरापराधी की चंद दिनों में बेल हो गई। टिकते कहां है मोबाइल युग के रिश्ते ऐ-निर्मल कस्मे, वादे और मोहब्बत जैसे कोई सेल हो गई। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक सं...
अपनी प्रीति का आया प्रिये प्रसंग
कविता

अपनी प्रीति का आया प्रिये प्रसंग

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** दोहा सप्तक जब भी अपनी प्रीति का, आया प्रिये प्रसंग। अंग-अंग में जीव के, कुसुमित हुआ अनंग।।१ नैन मिले मन फिर बदन, हुई प्रीति की वृष्टि। पुलक-पुलक कर दे रही, शुभाशीष कुल सृष्टि।।२ दिवस कोकिला की तरह, गाये राग मलार। पिया मिलन पर हो गई, रातें हरसिंगार।।३ मेरे दिल के ओर है, उसके नैन गवाक्ष। चुंबन के शर छोड़ती, विहँस विहँस मंदाक्ष।।४ प्रणय निवेदन भेज कर, भूला तन दुष्यंत। मन शाकुन्तल खोजता, पर्ण-पुष्प में कंत।।५ चंचरीक प्यासे नयन, बन कर तुलसीदास। जिधर पुष्प रत्नावली, करते उधर प्रवास।।६ शृंगारित विद्योतमा, आ न सकी जब पास। विप्रलंभ गढ़ता गया, तन मन कालीदास।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
दोस्त कुंदन बन जाता है
कविता

दोस्त कुंदन बन जाता है

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** दोस्त दिल में रहता है बिना शर्तों के आता है। खुशी हो या गम के पल हमेशा साथ रहता है। हमारे हर कदम पर साथ-साथ चलता जाता। हमारी मुस्कुराहट में भी आँसू खोज लेता है।। दोस्ती ही वो रिश्ता जिसमें कोई बंधन नहीं है। खून का नाता नहीं उससे बढ़कर दोस्त होता है। दोस्त ही है वो जिसको हम खुद से ही चुनते । दोस्त के लिए दोस्त ही तो सबकुछ लुटाता है।। दोस्त के लिए तो जान भी कुर्बान कर देते हैं। अपनी दोस्ती की मिसाल कायम कर जाते हैं। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती आज भी मिसाल। दोस्ती में कभी दगाबाजी नहीं किया करते हैं। दोस्ती में कभीं गरीबी और अमीरी नहीं होती है। दोस्त का दिल खरे सोने सा चमकता रहता है। इसकी चमक को तुम कभी कम न होने देना। वक्त की आग में तपा दोस्त कुंदन बन जाता है।। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शि...
गिरने की तालियां
कविता

गिरने की तालियां

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** गिरती है वस्तु कोई, आकर्षण ही खींचता न्यूटन नियम से ही, धरा पर जाती है। नेता ठेकेदार देखो, ऊंचे बड़े बोल संग गूंगा जैसा बनकर, गिरना सिखाती है। रोक टोक मन भर, डॉन सुख भोग रहे मुहर बड़े आदमी की, जलना दिखाती है संग चलो की चाहतें, सहन करो आदतें स्वार्थ रोग लग जाए, गिरना दिखाती है। नियम बना स्वार्थ का, पूछ परख खूब हो दबाव रहे गुट का, होहल्ला मचाती है। मान ज्ञान परे रख, बदले के भाव जागे दबाव की राजनीति, अति गरियाती है।। राय बहादुर राय, उपयोगी माने कोई, चलके ही खुद आए, ढंग बतलाती है। मान न ही मेहमान, तेवर नजर तान, गिरने की शान बान, तालियां बजाती है। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अ...
सफर जिंदगी का
कविता

सफर जिंदगी का

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** खुद की लडाई खुद को लड़ना पड़ता है, राहें कठिन हो फिर भी चलना पड़ता है..!! थम जाने में नहीं है अस्तित्व किसी का, अस्तित्व बचाने के लिए चलना पड़ता है..!! कभी दूर तो कभी पास रहना पड़ता है, कभी मिलना, कभी बिछड़ना पड़ता हैं..!! कभी कुछ पाना तो कभी खोना पड़ता है, कभी हँसना तो कभी रोना पड़ता है..!! खुशियाँ और गम तो आएंगे जिंदगी में, कभी ख़ुशी, तो कभी गम सहना पड़ता है..!! कभी टूटना तो कभी जुड़ना पड़ता है, कभी चलना तो कभी रुकना पड़ता है..!! परिंदों कि तरह हर सुबह जगना पड़ता है, सूरज कि तरह हर शाम ढलना पड़ता है..!! जिंदगी की सफर में रोज़ निकलना पड़ता है मोड़ आए राहों में तो मुड़ना पड़ता है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्र...
सागर की उत्ताल तरंगें
कविता

सागर की उत्ताल तरंगें

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर की उत्ताल तरंगें हतभागी हैं तट सारे। निष्प्रभ व्यथित मनुज बौराता, अनुगामी हैं अँधियारे।। मनुज -रक्त से कूप भरे हैं, लुप्त भोर का है तारा। सम्मोहित हैं अरुण-रश्मियाँ, चादर ओढ़े उजियारा।। मधु गुंजन को उपवन तरसे, सन्नाटे से सब हारे । मौन हुईं अब साँसें-धड़कन, भंग शांति है मरघट की। दहक रहा है सूर्य आज तो, मृत्यु निकट है पनघट की।। छाई धुंध अनाचारों की खंडित हैं भोले तारे। क्रूर काल ने डाका डाला, पुष्प हीन होती डाली। जीवन की क्षण भंगुरता में, खोई ओंठों की लाली।। पीड़ित है मानवता सारी, मूक-बधिर भाई चारे। बहुत दूर है मोती घर का, छलती है ठगिनी माया। आडंबर की तूती बोले, भ्रम में मिट्टी की काया।। संकट में है मैना घर की। बने शिकारी रखवारे। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलप...
मुफ़लिसी में जीता रहा हूँ
कविता

मुफ़लिसी में जीता रहा हूँ

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** सपनों की दुनिया में, मैं पंख लगाए उड़ता हूँ। हकीकत से रूबरू होता हूँ मैं तिल-तिल घुटता मरता हूँ।। ये कैसी है कश्मकश ये कैसी है उलझनें। फुटपाथ पर गहरी नींद में आशियाने के सपने बुनता हूँ।। जीवन में चलता रहा हूँ मैं एक अकेले मुसाफिर की तरह। न ही किसी से दोस्ती और न ही किसी से बैर रखता हूँ।। दुनिया की दुत्कार,नफ़रतें मैं तो प्रतिदिन सहता हूँ। फिर भी पूरी कायनात के लिए दिवास्वप्न अमन, चैन ही चुनता हूँ।। मुफ़लिसी में जीता रहा हूँ मैं कभी ईमान नहीं डिगने दिया। ईमान खातिर सर्वस्व अर्पण मैं ऐसी हैसियत रखता हूँ।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
मुझको न्याय दिलवाओ तुम
कविता

मुझको न्याय दिलवाओ तुम

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** पग-पग भरे पड़े हैं दरिंदे, उन दरिंदों से कैसे लाज बचाऊंँ मैं, मैं गरीब दलित की बेटी हूंँ, उन दरिंदों से कैसे जान बचाऊंँ मैं, हर पल ठगा है जिन्होंने ने मुझको, खिलवाड़ किया मेरी लाज से, वहशी दरिंदों ने मारा है मुझको, उन दरिंदों को कैसे सजा दिलाऊंँ मैं, जो समझते ना है उनकी बेटियों जैसी मुझको, उन दरिंदों को कैसे समझाऊंँ मैं पेड़ पर लटका दिया लाश को मेरी, उन दरिंदों को कैसे अपनी तड़प बताऊंँ मैं, धर्म के ठेकेदार भी मेरी मौत पर, अब विरोध नहीं करते, उनको मेरी पीड़ा का, कैसे अहसास दिलाऊंँ मैं, मन की बातें करने वाले को, कैसे अपने मन की बात सुनाऊंँ मैं, मैं गरीब दलित की बेटी हूंँ, कैसे जान बचाऊंँ मैं, ए सत्ता के राजाओं , मुझको न्याय दिलवाओ तुम, उन वहशी दरिंदों को, चौराहों पर लटकाओ तुम, कर दो उनका एनकाऊंटर,...
चाँद मुझे भी छूना है
कविता

चाँद मुझे भी छूना है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चेहरा नजर नहीं आता वो, उसके बिन सब सूना है। कहती थी हर बार पिता से, चाँद मुझे भी छूना है। जिस दिन घर में जन्मी बेटी, ढोल बजे ना शहनाई। सारे घर में मातम छाया, लगता था आफत आई। कानाफूसी परिजन करते, ऊपर ऊपर हँसते थे। बेटी की माता के ऊपर, मिलकर ताने कसते थे। माँ ने धैर्य नहीं खोया था, सब की बातें सुनती थी। बेटी आसमान चूमेगी, सपने मन में बुनती थी। लालन-पालन कर बेटी को, मन से खूब पढ़ाया था। खेलकूद में किया दीक्षित, सबका मान बढ़ाया था। नित नित कर अभ्यास स्वयं ही, लंबी दौड़ लगाती थी। अपने श्रम के बलबूते पर, सोया भाग्य जगाती थी। ओलंपिक में दौड़ लगा कर, सोना लाई थी घर में। मिला पदक, सम्मान उसी को, लगी सलामी घर-घर में। अब तुम ही बतला दो साथी, बेटी बेटे से कम है। बेटा बेटी एक मान लो, इस सल...
जीत की अंधाधुंध तैयारी
कविता

जीत की अंधाधुंध तैयारी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आखिर एक दिन जीत जाऊंगा मेरे मन में है विश्वास। किए जा रहा हूं तुम्हें पाने के लिए मैं अंधाधुंध प्रयास।। अब नहीं करूंगा बर्बाद समय को यह है अमूल्य निधि। मंजिल हासिल करने अपनाऊंगा तरह-तरह के विधि।। यही अंतिम अवसर है मेरे लिए निरंतर चलूंगा कर्म पथ। विजेता बन दिखाऊंगा दुनिया को आज लेता हूं शपथ।। एक बार विफल हो गया क्या बार-बार असफल होऊंगा। बेबस और निराश होकर अपनी चेतना को नहीं खोऊंगा।। अनुकरण करके हो उत्साहित गलतियों में करूंगा सुधार। अपनी कमियों को दूर करके ज्ञान अर्जिन करना है अपार।। विद्यासागर को बनाकर हमराही बनूंगा अब किताबी कीड़ा। सभी पन्नें को याद करके बूंद-बूंद में भरेगा ज्ञान का घड़ा।। मन, वचन, कर्म अपना, परीक्षा एक सांप सीढ़ी का खेल। काटे विषैला सांप तो अंतिम पायदान पर देता है ढकेल।। चलूंगा इस बार मुंह स...
ये पितृ-श्राद्ध है पूर्वजों का
कविता

ये पितृ-श्राद्ध है पूर्वजों का

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ये तर्पण है पितरों को तिल का ये श्राद्ध है पुर्वजों को अन्न का। ये आस्था है बिछड़ों के सेवा का ये विस्वास है अपनो के प्रेम का। ये पर्व है जीवआत्मा के तृप्ति का ये स्मृति है अदृश्य आत्माओं का। ये मोक्ष् है स्व के सभी पुरखों का ये पक्ष है अपने पितर सुतृप्ति का। ये पितृ पक्ष है देवों के भोगों का ये पक्ष है ऋषिमुनि के भोगों का। ये पितृ पक्ष है अनन्त में मिलने का ये पक्ष है ब्रम्हांड में मिलने का। ये पितृ पक्ष है दान–पुण्य देने का ये पक्ष है जीव-ब्रम्ह की सेवा का। ये पितृ पक्ष पुरखों के पिंडदानो का ये पितृ पक्ष है भाद्र के पूर्णिमा का। ये पितृ पक्ष है पवित्रवी आश्विन का ये आस्था है कुलवंश के विकास का। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र...
हम बेवफा नहीं
कविता

हम बेवफा नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** त्याग देते तुझे, भाग जाते हम भी पर दिल जो तुम्हारे पास हमारा है बन फरेबी, लेक सारा झूठ का महान बनते, पर कसम तुम्हारी जो खाई रूसवा हम भी कर देते गलियारों में पर हर सांचे पर लिखा नाम तुम्हारा है बदल तो हम भी लेते तुम्हें औरों से उसे पर चित में बैठा, निकालते नहीं जुबां, निगाहें, तन दे दिया तुम्हें भला पराई चीजें बांटता कौन है? लेकर चंद पैसे लगा देते मोल हम भी मेरे लिए अनमोल रिश्ता जो तुम्हारा है लग जाते हमें भी हसीन शहर में कई पर नैन देखना ही नहीं चाहते औरों को पीछे से आवाज हमें भी मारी थी किसी ने पर कमबख्त कर्ण सिर्फ सुनते तुम्हारी आवाज है परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी...