तुमको गाँव बुलाता
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
********************
जाकर जो बस गये शहर में,
उन्हें शहर ही भाता।
याद सताती जिन्हें गाँव की,
उनको गाँव बुलाता।
बावन बीघे का घर छोड़ा,
छोड़ा अँगना प्यारा।
जाकर बसे शहर में निर्मम,
बना बसेरा न्यारा।
आँगन के अमरुद छोड़कर,
और छोड़ गलियारे।
शीतल छाँव छोड़ अमुआँ की,
शहर बसे हुरयारे।
कच्चा चूल्हा धर आँगन में,
अम्मा खीर बनाती।
जब जब तू रूठा करता था,
तुझको खूब मनाती।
कल कल करती नदी गाँव की,
तुझे याद ना आती।
बचपन के यारों की यादें,
तुझको नहीं सताती।
गाँवों की गलियाँ सूनी हैं,
पनघट भी सुने हैं।
सपने लेकर शहर जा बसे,
गए आसमां छूने।
दौलत सँग रसूख पाने को,
गाँवों को विसराया।
कंक्रीट के अंदर रहते,
जहाँ प्रदूषण छाया।
कोयल मोर पपीहा मिलकर,
बागों में थे गाते।
घर के बाहर बड़े ताल में,
छोटी नाव चलाते।
भाभी ननद और बह...





















