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कविता

मैं विपंथ न हो जाऊं
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मैं विपंथ न हो जाऊं

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं पंथ से विपंथ न हो जाऊं मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। मैं भक्त से अभक्त न बन जाऊं मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। मैं पुण्य से पाप की तरफ न बढ़ जाऊं मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। मैं न्याय से अन्याय न करने लग पड़ूँ मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। मैं जीत कर भी हार न जाऊं मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। मैं हंसता हुआ कभी रो न पडूँ मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। मैं इंसान से हैवान न बन जाऊं मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
मेरी प्यारी हिन्दी भाषा
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मेरी प्यारी हिन्दी भाषा

बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** हिन्दी ममता की मूरत है, हिन्दी हर हिंदुस्तानी की सूरत है। हिन्दी भारत की पहचान है, हिन्दी फौजीओ की जबान है। हिन्दी संस्कृत की बेटी है, फिर भी संस्कृत के बराबर है। हिन्दी ज्ञान का भंडार है, हिन्दी समूह संचार है। हिन्दी हम हिन्दी भाषीयों की शान है, हिन्दी भारत देश की जान है। हिन्दी भाषा की उन्नति ऐसे ही होती रहे, आओ सब मिलकर ऐसी ईश्वर से दुआ करे। परिचय :- उषा बेन मांना भाई खांट निवासी : वालीनाथ ना मुवाडा, जिला- अरवल्ली (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ की रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
सैर उपवन की
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सैर उपवन की

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि राज रुठे-रुठे से है, रवि रश्मि धुंधलाई ओस कणों की रजत माल करती जग की अगुवाई। शीत समीर तन कांप रहा भरता रोमांच मन में मेरा मन खिल-खिल जाता देख प्रकृति को प्रांगण में। ठिठुरे-ठिठुरे से लगते हैं धुंध से छाए तरू भी शांत चीड़ के नीड़ से। हैं आती आवाज खगवृद की मेरा चित चंचल हो जाता करने सैर उपवन की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से ...
न करो हिन्दी की चिन्दी
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न करो हिन्दी की चिन्दी

वीणा मुजुमदार इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिखो हिन्दी पढो हिन्दी सुनो हिन्दी कहो हिन्दी गुनो हिन्दी समझो हिन्दी भाषाओँ के माथे की बिंदी हिन्दी-दिवस मनाते हो दो दिनों बाद भूल जाते हो कहते हो राष्ट्रभाषा है हिंग्लिश में घुस जाते हो प्रांत अनेकों भाषाओं के ये एक राष्ट्र है हिन्दुस्तान नानाविध भाषाईयों की एक राष्ट्रभाषा है जान सरल सहज मीठी बोली लगती हमको प्यारी है भाव सभी अभिव्यक्त करती मनभाती शान हमारी है देश-विदेश में मान बढाती भाषा गौरव देती सम्मान हम हिन्दी के हिन्दी हमारी हिन्दी हमारी है पहचान छिद्रान्वेषी न बनकर करो हिन्दी का सम्मान मातृभाषा ये राष्ट्रभाषा ये दे दो इसको इसका सम्मान। परिचय : वीणा मुजुमदार निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ह...
वर्णमाला कविता
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वर्णमाला कविता

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अ- अवर्णीय है जो आ- आदि अगम अगोचर इ- इस चराचर का पालनहार वो ई- ईश्वर सर्वे सर्वा उ- उमंग व उल्लास भर ऊ- ऊंची पहाड़ सी मुश्किलों में ऋ- ऋषियों समान स्थितप्रज्ञ रहने की ए- एक सीख देता है। ऐ- ऐसी क्या विडम्बना कि ओ- ओम नमः: शिवाय जप कर भी औ- औरों की तरह हम एकाग्र चित्त नहीं होते। अं- अंग अंग में व्याप्त प्रभु यदि कृपा करें, अ: - अ: तो क्या कुछ नही मिलता! क- कहां कहां नहीं ढूंढा तुम्हे ख- खंडहरों में, ग- गरजते बादलों मे, घ- घर के हर कोने में, च- चहुं ओर, छ- छोटी-छोटी बातें समझाती है हमें ज- जगावतार तेरी महिमा। झ- झगडे़ हजार होते हैं ट- टूटते रिश्ते मजहब के नाम, ठ- ठिकाने टूटते हैं अयोध्या मे, ड- डर लगता है सचमुच ढ- ढेर ना हो जाएं आशाएं त- तहस- नहस ना हो जाएं धरा, थ- थर्रा कर फिजूल उसूलों से, द- दनादन ...
आज फिर उनसे मुलाकात हो गई
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आज फिर उनसे मुलाकात हो गई

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** आज फिर उनसे मुलाकात हो गई इस रुकी हुई जिंदगी में फिर से फूलों की सौगात हो गई। आज फिर उनसे मुलाकात हो गई। बहुत दिनों बाद देखा उसको बदली बिलकुल न थी होठों पर वहीं मुस्कुराहट आखों में वहीं पुरानी नमी सी थी जुल्फें फिर से उड़कर चहरे पर छा रही थी देखकर मुझे जो शर्माती थी वो शर्म फिर उसे आ रही थी हाथों की चूड़ियां खनका कर वो कुछ तो कहना चाहती थी यह मुलाकात मुझे कुछ तो जतलाना चाहती थी सच्ची आज फिर उनसे मुलाकात हो गई इस रुकी हुई जिंदगी में फिर से अखियां चार हो गई। आज फिर से उनसे मुलाकात हो गई कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर दिल तुम्हें देख कर बैचेन होता जा रहा था लोगों की भरी इस महफिल में सिर्फ तुम्हारा ही चहरा नजर आ रहा था बस हर दम सामने रहो तुम मेरे यहीं प्रभु मैं मांग रहा था किस लिए आज फिर से तुमसे...
मेरी मुस्कान हो तुम
कविता

मेरी मुस्कान हो तुम

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** पापा, मेरी मुस्कान हो तुम। मां मेरी धड़कन, तो मेरी जान हो तुम।। आसमानों को छूने की, अरमान हो तुम। रोटी कपड़ा और, मेरा मकान हो तुम।। चाह खिलौने की हुई, तो सारा दुकान हो तुम। हमारी प्यारी सी अंगने की, रोशन दान हो तुम।। पापा, मेरी जान मेरी मुस्कान हो तुम।। पापा, मेरी जान मेरी मुस्कान हो तुम।। मेरे हर एक दर्द का, इलाज़ हो तुम। दो शब्द की, एक बढ़ी क़िताब हो तुम।। दुखों को आंखों में रखने वाले, एक फ़िराक हो तुम। मुसीबतों में मिले, प्यारे से अल्फाज़ हो तुम।। मैं नन्हा सा परिंदा, तो सारा आसमान हो तुम। मां की चूड़ी बिंदिया, और सुहाग हो तुम।। अंधेरे में जल रहे, एक चिराग़ हो तुम। पापा, मेरी जान मेरी मुस्कान हो तुम।। पापा, मेरी जान मेरी मुस्कान हो तुम।। पापा, मेरी आन बान शान, और मेरा पहचान हो तुम। छो...
भ्रष्टाचार
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भ्रष्टाचार

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** भ्रष्टाचार करके परिवार को पढ़ाया टेबल के नीचे पैसे लेकर परिवार बढ़ाया कितना भी समेट लो साहब यह वक्त है बदलता जरूर है सरकारी पद था उसकी यादें बहुत है जिंदगी गुजर गई सबको खुश करने में परिवार कहता है तुमने कुछ नहीं किया सुनकर कहता हूं समय है बदलता जरूर है अनुभव कहता है उस समय ठस्का था पद पर बैठकर रुतबा मस्का था भ्रष्टाचार में जीवन खोया पैसों का चस्का था पद कारण भ्रष्टाचार का चस्का था अब स्थिति जानवर से बदतर है अब खामोशियां ही बेहतर है पाप की कमाई का असर है अब जिंदगी दुखदाई बसर है खामोशियां ही बेहतर हैं शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं बात बात पर लोग चिढ़ते बहुत हैं गुस्से में रिश्ते टूटते बहुत हैं परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्...
देखो ओ काल्या की काकी
आंचलिक बोली, कविता

देखो ओ काल्या की काकी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** देखो ओ काल्या की काकी उमड़ घुमड़ कर बादल आए पनिहारीन पानी हे चाली गाय तो में दुवा ने जाऊं बोकड़ा तो छोरा है लईग्या गाय तो चरवा मैं हूं लई जाऊ मक्कयां तो पाकन है लागा कागला आईने तू है उड़ाय कड़वा नीम की डाली पे देखो छोरिया झूला दे रे लगाए देखो काल्या की काकी उमड़ घुमड़ कर बादल आए टापरो ऊपर मै तो ढाकू कवेलू तू मने झेलाए छाछ तो मैं बिलोवन लागी छोरा हाको देरे लगाए आबा पर तो मोड़ है अईग्या कोयलड़ी है शोर मचाए देखोओ काल्या की काकी उमड़ घुमड़ कर बादल आए खेत पर मैं तो हूं जाऊं रोटा लइने तु हे आए छोरा छोरी आंगण में खेले प्रेम घणो उनमें है आए पड़ोसी मिल बाता में लागी छोरा छोरी टेर लगाएं चालो मिल झूला है झूला आपस में है गीत सब गाय किरण तो मालवी है बोले प्रेम घणों इनमें ...
हमें प्यार जताना आता है
कविता

हमें प्यार जताना आता है

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सूरज और संध्या के जैसा हमें प्यार निभाना आता है प्रेम और समर्पण के संग 'हमें प्यार जताना आता है।' भारतीय संस्कृति के परिवेश में रिश्ते-नातों के निवेश में प्रेम और समर्पण के संग 'हमें प्यार जताना आता है।' परिवार समाज के बंधन में रीति-रिवाजों के पालन में प्रेम और समर्पण के संग 'हमें प्यार जताना आता है।' पीड़ा को दबा हृदय में अधरों से मुस्कुराना आता है प्रेम और समर्पण के संग 'हमें प्यार जताना आता है।' मौन रहकर निःशब्द होकर भी हमें बात करना आता है प्रेम और समर्पण के संग 'हमें प्यार जताना आता है।' परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
बांसुरी वादन
कविता

बांसुरी वादन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बांसुरी वादन से खिल जाते थे कमल वृक्षों से आँसू बहने लगते स्वर में स्वर मिलाकर नाचने लगते थे मोर गायें खड़े कर लेती थी कान पक्षी हो जाते थे मुग्ध ऐसी होती थी बांसुरी तान। नदियाँ कलकल स्वरों को बांसुरी के स्वरों में मिलाने को थी उत्सुक साथ में बहाकर ले जाती थी उपहार कमल के पुष्पों के। ताकि उनके चरणों में रख सके कुछ पूजा के फूल ऐसा लगने लगता कि बांसुरी और नदी मिलकर करती थी कभी पूजा। जब बजती थी बांसुरी घन, श्याम पर बरसाने लगते जल अमृत की फुहारें अब समझ में आया जादुई आकर्षण का राज जो की आज भी जीवित है बांसुरी की मधुर तान में। माना हमने भी बांसुरी बजाना पर्यावरण की पूजा करने के समान है जो की हर जीवों में प्राण फूंकने की क्षमता रखती हमारी कर्ण प्रिय बांसुरी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता ...
गुरुओं का आभार
कविता

गुरुओं का आभार

इंद्रजीत सिहाग "नोहरी" गोरखाना, नोहर (राजस्थान) ******************** गुरु क्या होते हैं सबको आज बताने आया हूं, मैं सभी गुरुओं का आभार जताने आया हूं। अगर गुरु वशिष्ठ ना होते तो शायद राम श्री राम ना होते, अगर गुरु सन्दीपन ना होते तो शायद कृष्ण घनश्याम ना होते। गुरु द्रोणाचार्य बिन कोई कैसे अर्जुन बन सकता है, गुरु रमाकांत आचरेकर बिन कोई कैसे सचीन बन सकता है। गुरु नरहरिदास बिन कोई कैसे सगुण का पाठ पढ़ा सकता, गुरु रामानन्द बिन कोई कैसे निर्गुण का पाठ पढ़ा सकता है। गुरु गोखले ने गांधी जैसा उज्ज्वल भविष्य दिया, गुरु रामावतार, बलवंत ने आपको नादान बालक दिया।। गुरु क्या होते हैं सबको आज बताने आया हूं, मैं सभी गुरुओं का आभार जताने आया हूं। परिचय :-  इंद्रजीत सिहाग "नोहरी" उपनाम : "नोहरी" पिताजी का नाम : श्री भानीराम सिहाग माताजी का नाम :...
बचपन
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बचपन

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** कभी मेरे चहरे पर खुशी होती थी, गमों से दूर का रिश्ता था, आज जो कुछ हुँ मैं, उससे अच्छा तो मेरे बचपन का जीवन ही अच्छा था। कोई कुछ भी कहे, उनकी बातो का, मुझे जरा भी बूरा नही लगता था, आज जो कुछ हुँ मैं, उससे अच्छा तो मेरे बचपन का जीवन ही अच्छा था। दिन भर खेलती रहती थी, ना पढ़ाई की चिंता थी, ना नौकरी पाने की तमन्ना थी, आज जो कुछ हुँ मैं, उससे अच्छा तो मेरे बचपन का जीवन ही अच्छा था। स्कूल जाती थी, मैडम से रोज मार खाती थी, उनकी मार का मुझ पर कोई असर नहीं होता था, आज जो कुछ हुँ मैं, उससे अच्छा तो मेरे बचपन का जीवन ही अच्छा था। बचपन पुरा हुवा बड़े हुए, जिंदगी में एक नया मोड आ गया, इस नये मोड से अच्छा तो मेरे बचपन का जीवन ही अच्छा था। आज जो कुछ हुँ मैं, उस से अच्छा तो मेरे बच...
साहित्य की देवी
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साहित्य की देवी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हे ! महादेवी हिंदी साहित्य की तपस्विनी तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। नीहार में भरी रसधार प्रेम की तुम आधुनिक मीरा हिंदी साहित्य की बनीं। दुख, संवेदनशीलता तो कभी सुख व प्रसन्नता के भावों की रचनाओं में प्रकाशित मिश्रित अभिव्यक्ति बनीं। हिंदी छायावादी युग का सशक्त स्तंभ बनीं। इतना ही नहीं तुम गद्यलेखन व रेखाचित्र की भी महान हस्ताक्षर बनीं। नवीन आयामों को स्थापित करती हिंदी छायावादी युग का एक सशक्त स्तंभ बनी नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, अग्नि रेखा, सप्तपर्णा यामा में मानो आपकी ही आत्मा हैं रची बसी। हे ! महादेवी, तपस्विनी तुम भारत माँ की स्वतन्त्रता में सहभागी बनीं। सामाजिक कल्याण, महिला उत्थान की नवल पथप्रदर्शक बनीं। तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। परिचय :-  प्रभ...
किरदार पुराना है…
कविता

किरदार पुराना है…

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** वो भी क्या जमाना था! इन्सानियत का दौर था, रिश्तों मे गहरा विश्वास था, बातों मे भी अपनापन था! बडा सुनहरा वो समा था, दोस्ती का भी मकाम था, बुजुर्गो का सही सम्मान था, उनको भी सब समान था! ये भी क्या एक जमाना है? जरूरतों का सिर्फ सामान है, बस मतलब का माहौल है, रिश्तों मे करारा मलाल है! लोग तो यूँही पूछ बैठते हैं, किस जमाने मे हम रहते हैं? रहते नये जमाने मे जरूर है! आदतों मे किरदार पुराना है! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
“सिरतोन म संस्कार नंदा जाही का”
आंचलिक बोली, कविता

“सिरतोन म संस्कार नंदा जाही का”

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बिटिया रानी महतारी ले कहिथे दाई तै तो बड भागी हो गेस वो अपन जिगर के टुकड़ा ल दुरिहा डारें, तोर मया मोर बर थोरकुन नई पल पलईस सुने हव महतारी बर लईका मन आंखी के तारा होथे फेर देखत हव मैय तो नामे हव मोर संजोए सपना म पानी फेर दे बड दिन ले मोरों एक ठन आस रीहिस सुने हव महतारी मन लईका ऊपर कोनो आंच नई आवन दे फेर ये कईसन टाईप ले लापरवाही ? महु ल तो घालो एक बार अपन छाति ले ओधा लेतेस, अऊ खंधेडीं म बिठाके धुमा लैय आतेस वो दुरूग अऊ भिलाई फेर नई ...! तहु ह दुनिया बर एक झन मिसाल बन गे वो अपने लईका के मुंह म पेरा गोंजे अऊ आनी-बानी के जिनिस चबरहा कुकर ल खावाए देखेव तोर मया ल मोर मन कलप जथे वो सिरतोन म घर अऊ परिवार दुरिहाय खातिर तैय तो बड़े जन उदिम निकाल डरें ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनि...
धरती पर पितृपक्ष में आए हैं
कविता

धरती पर पितृपक्ष में आए हैं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** भारत में प्राचीन मान्यता है पितृपक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने मुक्त करते हैं इसलिए धरती पर पूर्वज आए हैं मान्यता है कि श्राद्ध करने से घर में सुख शांति पाए हैं यह समय पुण्य करने का है समस्याओं का निवारण पाए हैं पितृपक्ष आए हैं। पूर्वजों की याद लाए हैं।। आशीष भरपूर हम पाए हैं। परिवार वालों की स्मृति संजोए हैं।। जीवन से मुक्त हुए। जो शाश्वत क्रम वो हुए।। जीवन भर प्रेरणा दिए। हम सबका जीवन संजो दिए।। आज फिर छाया तुम्हारी। पूरे परिवार ने महसूस किए हैं।। कन्याओं को भोजन के रूप में। तुम्हारे पवित्र मुख में भोज अर्पण किए हैं।। परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरच...
प्रेम
कविता

प्रेम

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** प्रेम उम्र नहीं एहसास देखता है। प्रेम लगाव नहीं तड़प देखता है। प्रेम मुस्कुराहट नहीं आंखों में बहते अश़्क देखता है। प्रेम हमउम्र नहीं हमराही देखता है। प्रेम बहस नहीं झुकाव देखता है। प्रेम बहता हुआ पानी नहीं जलती हुई आग देखता है। प्रेम ह्रदय का रूप नहीं चेहरे का महकता स्वरूप देखता है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
कश्मीर
कविता

कश्मीर

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कश्मीर ऋषि कश्यप की भूमि, अदिति माँ से सिंचित नगरी भारत के मस्तक की बिंदी, कश्मीर है भारत का प्रहरी ऋषि च्यवन की तपोभूमि, तनमन-रोग किया उपचार सुश्रुत संहिता की जड़ी बूटी है, मानवता को अनुपम उपहार। कश्मीर है कवि कल्हण की भूमि, जिस पर अभिमान रहा हमको 'राजतरंगिणी' की रचना कर, कश्मीरी इतिहास दिया सबको। 'पंचतंत्र 'की जन्मभूमि यह, विष्णुशर्मा के ज्ञान की नगरी धरती पर्वत और पठारों की, भारत के सम्मान की नगरी। सोमदेव की 'कथासरित्' की, देववाणी के अतुल ज्ञान की रामायण काल की 'खीर भवानी', भृगु ऋषि की' अमरेश्वर 'नगरी यह भारत की प्राचीन है नगरी, कश्मीर है भारत की देहरी इतिहास रचा इसने भारत का, कश्मीर है भारत का प्रहरी।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (म...
गुरुदेव
कविता, भजन

गुरुदेव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जय हो! महाज्ञानी गुरुदेव ज्ञानदाता। सच्चा पथ प्रदर्शक भगवान विधाता।। सूर्य के समान चमक रहा है विद्याधर। साक्षात अंतरात्मा को प्रकाशित कर।। अबोध बालक में जागृत किया बोध। विशेषज्ञ बन किए वृहद नवीन शोध।। ज्ञानी गुरु जड़ बुद्धि में ला देता चेतन। प्रेरणा से लक्ष्य का करवाता है भेदन।। मन में जगा देता है सीखने की इच्छा। मूल्य निर्धारण के लिए लेता परीक्षा।। नैतिकता और संज्ञान में बनाता प्रवीण। खेल, नृत्य, गीत, संगीत में करता उत्तीर्ण।। अंधकार का बनाया उज्जवल भविष्य। सत्य की पहचान कर दिखाया दृश्य।। कोविद ही लाता है जन-जन में सुधार। समाज कल्याण करता प्रभु के अवतार।। वंदना करो गुरु का चरण कमल पकड़। मांग लो तुम आशीष विवेक का जड़।। सहज मानव को योद्धा बना जीतवाता। जीवन जीने की आदर्श कला सिखाता।। परिचय : अशोक कुमार ...
कुरुक्षेत्र
कविता

कुरुक्षेत्र

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** धर्म युद्ध का शंखनाद बज उठा काल चक्कर चला ऐसा यहां पर ऐसा धर्म चक्र चलाया श्री कृष्ण ने पांच पड़े सौ पर भारी यहां पर ज्योतिसर में दिया गीता उपदेश धर्म की खातिर छिड़ा ऐसा युद्ध यहां पर ब्रह्मसरोवर, शक्तिपीठ, थानेश्वर मंदिर तीर्थ, सरोवरों से भरी धरा यहां पर सांस्कृतिक विरासत समेटे हुए मारकंडा, सरस्वती की बहती धारा यहां पर उगाता गेहूं, बासमती चावल प्रदेश ये मिटती जनमानस की भूख यहां पर रौनक रहती साधु-संतों की हमेशा देश-विदेश से आते पर्यटक यहां पर लाल मिट्टी की बात अनोखी बताती भू शौर्य की गाथा यहां पर गिना जाता पावन नगरी में इसे अभिषेक करने आते सभी यहां पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की बात अनूठी विद्यार्थियों के ज्ञान का भंडार यहां पर परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) ...
बसेरा होगा
कविता

बसेरा होगा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चहकने दो मुझे आंगन में झूलती बेलो के साथ। दौड़ने दो मुझे देहरी के उस पार बहने दो मुझे निर्बाध गति से कल-कल मत बांधो हमें चहकनदो, दौड़ने दो हमें। फूलों से आंगन सजेंगे कल-कल करता जल धरा को सींचेगा हरित करेगा श्यामला धरा को हरियाली नाचेगी टेसू फूलेंगे रवि वर्ण में बिखरेंगे बसंत बहार में फूलों से आंगन सजेंगे। काटो मत वृक्षों को कहीं पंछी ठौर होगा किल-किल का कलरव होगा चुग्गा चुगने मुंह खोलता होगा चहक-चहक चिड़िया गाती होगी कोयल कूक सुनाती होगी काटो मत उसे वह किसी का बसेरा होगा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर...
हिंदवासी तुम हिंदी बोलो
कविता

हिंदवासी तुम हिंदी बोलो

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** ज्ञान की भाषा हिंदी है विज्ञान की भाषा हिंदी है जन मन के संप्रेषण के कौशल की भाषा हिंदी है। मीरा की भाषा हिंदी है कबीरा की भाषा हिंदी है गीत संगीत और महाकाव्य को गढ़ती भाषा हिंदी है। पूरब की भाषा हिंदी है पश्चिम की भाषा हिंदी है उत्तर से दक्षिण तक के विस्तार की भाषा हिंदी है। शासन की भाषा हिंदी है शिक्षण की भाषा हिंदी है रविंद्रनाथ के जन-गण में गूंज रही भाषा हिंदी है। दर्शन की भाषा हिंदी है प्रदर्शन की भाषा हिंदी है मन में भावों के कोपल के अंकुरण की भाषा हिंदी है मेरी भाषा हिंदी है तेरी भाषा भी हिंदी है भारत के जनजीवन की गौरव गाथा भी हिंदी है फिर क्यों हमने भुलाई हिंदी है पर भाषा की लगाई बिंदी है भूल गए हम सब पल में रिश्तों की भाषा हिंदी है। भाषा की रानी हिंदी है फिर भी बेगानी हिंदी है अपने...
यही तो है हिन्दी
कविता

यही तो है हिन्दी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** हिंदुस्तान की पहचान जो जन गण का अभिमान जो भावो की है जो आरती यही तो है हिन्दी ग्रंथो का आधार जो सुरसरी की धार जो भारत माता की बिन्दी यही तो है हिन्दी गीत, गजल और कविता पर्वत, सागर और सरिता समृद्धि की पहचान जो यही तो है हिन्दी भारतीयो की अस्मिता भाव से सदा सुपुनीता आवाम की आवाज जो यही तो है हिन्दी आन, बान, शान है सबका स्वाभिमान है संस्कृति की करे आरती यही तो है हिन्दी मन के सभी भावो मे कंही चंचल कंही ठहराव मे समृद्ध जो है समुद्र सा यही तो है हिन्दी व्याकरण से प्रबुद्ध जो सात्विक और शुद्ध जो सुवासित है जो अलंकार से यही तो है हिन्दी भिन्न-भिन्न राग रंग मे जीवन के प्रत्येक रंग मे संस्कार की झलक जिसमे यही तो है हिन्दी भारत की मातृभाषा बने देश एकता के रंग मे सने बने देश का अब शान...
अधरों की अमर वाणी है हिन्दी
कविता

अधरों की अमर वाणी है हिन्दी

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे नन्हें अधरों की किलकारी है हिन्दी। हर तोतली आवाज में, बड़ी प्यारी है हिन्दी। जवां हुई जो मेरे संग-संग हाँ, मेरा हमसफर, मेरा हमराही है हिन्दी। मेरी आन, मेरा गुरुर, मेरा अभिमान है हिन्दी। मेरा नाम, मेरा काम, मेरी पहचान है हिन्दी। ये मेरा व्यक्तित्व है, अस्तित्व है मेरा, और मेरे लिए तो मेरा हिंदुस्तान है हिन्दी। सबको अपनें आँचल में समेटे हुए, संस्कृत से जन्मी, मॉं का अवतार है हिन्दी। अनुपम, अलंकृत, अनमोल, अनुशासित, और पूर्ण परिभाषित संस्कार है हिन्दी। मानों चिरकाल से चिरपरिचित, चिरस्मरणीय, चिरयौवना और चिरस्थायी है हिन्दी। हर रूप में है अति सुशोभित, कभी दोहा, कभी छंद, कभी चौपाई है हिन्दी। सुरभित सुमन की भाँति महकती, साहित्य की शुभाषितानी है हिन्दी। शब्दों का जो अथाह सागर है, अधरों की अमर वाणी ...