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चाँद मुझे भी छूना है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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चेहरा नजर नहीं आता वो,
उसके बिन सब सूना है।
कहती थी हर बार पिता से,
चाँद मुझे भी छूना है।

जिस दिन घर में जन्मी बेटी,
ढोल बजे ना शहनाई।
सारे घर में मातम छाया,
लगता था आफत आई।

कानाफूसी परिजन करते,
ऊपर ऊपर हँसते थे।
बेटी की माता के ऊपर,
मिलकर ताने कसते थे।

माँ ने धैर्य नहीं खोया था,
सब की बातें सुनती थी।
बेटी आसमान चूमेगी,
सपने मन में बुनती थी।

लालन-पालन कर बेटी को,
मन से खूब पढ़ाया था।
खेलकूद में किया दीक्षित,
सबका मान बढ़ाया था।

नित नित कर अभ्यास स्वयं ही,
लंबी दौड़ लगाती थी।
अपने श्रम के बलबूते पर,
सोया भाग्य जगाती थी।

ओलंपिक में दौड़ लगा कर,
सोना लाई थी घर में।
मिला पदक, सम्मान उसी को,
लगी सलामी घर-घर में।

अब तुम ही बतला दो साथी,
बेटी बेटे से कम है।
बेटा बेटी एक मान लो,
इस सलाह में भी दम है।

नव विहान हो हर बेटी का,
नव वितान देना होगा।
वरना बेटी बनकर प्रभु को,
स्वयं जन्म लेना होगा।

घर से दूर जा बसी बेटी,
सच में अब घर सूना है।
बात बात में कहती थी जो,
चाँद मुझे भी छूना है।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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