Tuesday, December 16राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

गुरूब्रम्हपद को  नमन
कविता, स्तुति

गुरूब्रम्हपद को नमन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** अमन चैन शांति का जब पाठ पढ़ाते हैं, हमारी संस्कृति सभ्यता संस्कारों परम्पराओं का भारतीयता लिए मातृभाषा शब्दों में उभर कर ब्रह्मा विष्णु महेश का सार्थक स्वरूप हर भारतीयों में नज़र आती हैं। गुरू की महिमा गुरू ही जाने, गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूं पाय बलिहारी गुरु आपकी जो गोविंद दियो बताए, जाने प्रतिभा लक्ष्य साधकर समर्पित एकलव्य ने परिभाषा किया गुरूचरणों में, अमृततुल्य निस्वार्थ अपनी प्रतिभा से गुरूपद निखार दिया जनमानस में भारतीयता लिए नज़र आतीं हैं। प्रलोभन निस्वार्थ भाव से जो भारतीयता में मिलती हैं समर्पण भाव सृष्टिकर्ता ईश्वर के प्रति एकरूपता विश्व में कहीं नहीं मिलती तभी तो भारतीयता गुरूचरणों में पथप्रदर्शक बनकर के आ जाती हैं। सदीयों से जिन्दगी सुख दुःख का मेला है महापुरुषों ने हम...
पितृ दिवस प्रतियोगिता
कविता

पितृ दिवस प्रतियोगिता

डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** पितृ दिवस पर, बेटा पिता के पास आया. साथ में नया शर्ट पैंट लाया. अपने हाथों से, उनका मुह धुलाया. पिता मन ही मन हर्षाया. आज सूरज, पश्चिम में कैसे निकल आया. पिता अबाक् था, उसी घर में रहने बाला बेटा. बरसों बाद उनके पास था. पिता ने उसके चेहरे पर, प्रश्न वाचक दृष्टि दौड़ाई. आज पितृ दिवस है, उसने यह बात बताई. बोला जल्दी से कपड़े पहनो, मुझे देर हो रही है. तुम्हारे साथ सेल्फी लेनी है. आफिस में प्रतियोगिता चल रही है, तुम्हे फोटो में खूब मुस्कुराना है. दूसरों के पिता से, ज्यादा खुश हो यह दिखाना है. प्रतियोगिता में जिसका पिता, ज्यादा खुश नजर आयेगा. पितृ दिवस की प्रतियोगिता में, वही पहला पुरस्कार पायेगा. परिचय :-  डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" निवासी : शाहजहाँपुर (उत्तर प्र...
जीवन के नित संघर्षों में
कविता

जीवन के नित संघर्षों में

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ सपने थे जो टूट गए, कुछ अपने थे जो रूठ गए। जीवन के नित संघर्षों में, हम कांच सरीखा टूट गए। जब बिखरे तो ऐसे बिखरे, फिर एक कभी भी हो न सके। माला के मोती मंहगे थे, हम पक्का धागा हो न सके। जब वक्त हुआ की हार बनूं, मैं भी उनका श्रृंगार बनूं। कच्चे धागे को तोड़ दिया, वो सारे मोती लूट गए। कालचक्र के घड़ी की सुइयां, कुछ ऐसे ही चलती है। गिरगिट तो बदनाम है केवल, दुनियां रंग बदलती है। जिसको चाहा उसको खोया, हंसना चाहा हरदम रोया। रिश्ते नाते बने भी ऐसे, चंद क्षणों में टूट गए। हम रात जगे और दिन जागे, जितना जागे उतना भागे। हम समय का पीछा कर न सके, हम पीछे वो हरदम आगे। जो चाहा था वो नहीं मिला, जो वक्त ने चाहा वही मिला। पाने खोने की विरहन में, आंखों से आंसू छूट गए। कुछ जीत मिली, कुछ हार मिली, पर...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का तानाबाना, चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मैला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना, मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत, जीने की जिजीविषा, और संघर्षों का झमेला। सीख कसौटी मीठी घुड़की, आंगन में मिलती, जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार, बहन भाई का युद्ध और दादा दादी की माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन, संबंधों में नैतिकता, परिवार सद् काव्य शाला। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र :...
जीना सीखो
कविता

जीना सीखो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अपने लिए न सही दूसरों के लिए जीना सीखो। गम से भरे चेहरों को ज़रा खिलखिलाना सीखो। मोहब्बत में तो हर कोई मुस्कुराता है दिल टूट जाने पर भी ज़रा जीना सीखो। अपनो ने दगा दे दिया तो क्या हुआ ? गैरों को अपना बनाकर गले लगाना सीखो। मिट्टी हुए जीवन के संजोये हुए ख्वाब तो क्या हुआ ? उस मिट्टी को ही अपने सीने से लगाकर अपना बनाना सीखो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
सावन मनभावन
कविता

सावन मनभावन

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सावन तेरे संग-संग धरा पे निखरे अनेकों रंग हरितिमा के कालीन पर मेघ शिशु अठखेलियां करते तितलियों संग उड़ते छुपते,करते कभी अट्टहास वर्षा बूंदों से नहाए पल्लव सूरज रश्मियों से पा गरमाहट मंद सुगंध हवा के संग हाथ हिला करते अभिवादन राग मल्हार गाते भंवरे कोकिल गान कानों में पसरे घनघोर शोर लिए मोर हरषे बहुरंगी बादल उमड़े क्षण भर में रुप बदले.. भयानक रूप बना सबको डराए गड़गड़ ध्वनि से सब थर्राए अगले ही क्षण वर्षा की झड़ी लगाए देख कृषक मन ही मन हर्षाए सावन की है महिमा निराली हर जीव जंतु की चाल हो जाए मतवाली नेह संचार हृदय में होता वियोग में प्रेमी युगल छुप कर रोता हर कोई सावन की बाट है जोहता सबसे तेरा नाता है सबको तू भाता है मन में मधु उपजाता है इसीलिये तू मधुमास कहलाता है। सतरंगी इंद्रधनुष का हार...
बादल
कविता

बादल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उमड़ घुमड़ घटागहराती उपवन के तरु लहराए मेरी बगिया के आंगन में तुम आते आतेसकुचाऐ। बादलों की बौछार देती निमंत्रण बार-बार हरित पणृ और पुष्पा भी करते प्रतिक्षा बार बार।। मादक सुगंध माटी ने बिखराई झरना, झिले झूम झूम कर करते तेरी अगुवाई।। जैन कहते प्रकृति भरमाई।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
इकु किसानु कै पीरा
आंचलिक बोली, कविता

इकु किसानु कै पीरा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बदरा रूठि गईल हे धनियाँ कैसे के होई रोपनियाँ ना। बेहनु खेतवा माहीं झुराइलि कैसे के होई रोपनियाँ ना।। जेठु महीना जसु तपा असाढ़ी यैसिनि मा के हौ गोड़ु काढ़ी बरसतु भिनुसरहिनु ते अगिया कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... तालि-तलैइया मा दर्रौ फाटयि झुलसी घांसि दूबिउ नाहीं जागतु लागतु सावनु झूरौ झूरौ कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... सावनु-भादौउं जौ सूखा-सूखा चिरई-चुनुंगा सबै रहिहैं भूखा कहिजा बदरा काहे रूठल कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... लखि-लखि बदरा कोयलरि कूकैयि उपरा तकि-तकि जियरा हूकैयि अँसुवा ते भीजल मोरु बदनियाँ कैसी के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... उमड़ि-घुमड़ि काहे ललचावतु आतुरि हुयि सबै रहिया जोहारतु झूमिके बरसौउ भलु सेवनियाँ जमके होई रोपनियाँ ना।...
अमूल्य निधि
कविता

अमूल्य निधि

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है, स्वाभिमान का रूप संजोए, सनातन संस्कृति जीवन की विधि है। पेड़ पौधे,नदी और पर्वत, पशु पक्षी पूज्यनीय यहां हैं, ऋतुओं को सम्मान मिला है भारतीय संस्कृति अखंड यहां है l मात पिता, ज्येष्ठ का आदर, गुरु ईश्वर तुल्य यहां है, नारी देवी, अतिथि देवो भव, संस्कार की पहचान यहां है l अभिमान करें अपनी धरती पर, इंद्रधनुष से पर्व हमारे, उदारता, सदाचार, समर्पण, रग रग में शिष्टाचार यहां है l जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है l परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प...
हे कैलाशपति
कविता, भजन, स्तुति

हे कैलाशपति

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** हे कैलाशपति ! हे गिरिजापति ! हम भक्त हैं तेरे, भोले भाले हे जगतपति! हे गौरीपति ! तुम सगरे जग से हो निराले हे देवाधिदेव ! महेश हो तुम तेरी महिमा को पार न पावे त्रिलोक के स्वामी हो तुम लंगड़ा, गिरि पर चढ जावे तेरी भक्ति की शक्ति से स्वामी असंभव सब संभव हो जावे हे योगी महा ! हे अन्तर्यामी ! तुम से प्रलय में, लय हो जावे हे त्रिशूल धारी ! डमरू निनाद कर भक्ति की डगर, आज बता दे हे विषपायी! गंगा को बहा कर पावनता की लहर, अब जगा दे। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्त...
आराधना की ऋतु
कविता

आराधना की ऋतु

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बारिश के पानी से देखो। भर गये नदी नाले तलाब। सूखी उखड़ी भूमि भी अब हो गई है गीली-गीली। वृक्षों पर भी देखो अब नये हरे पत्ते आने लगे। चारो तरफ पानी-पानी अब जमा हो गया बारिश का।। रास्ते पहाड़ और टीले आदि शीतल और नम होने लगे। बारिस की गिरती बूंदे से पेड़ फूल पत्ते खिल उठे। रुका हुआ पानी भी देखो वह भी अब बहने लगा। पशु पक्षी जीव जंतु आदि उछल कूद करने लगे।। दूर दराज गये पक्षी भी अब घरों को लौटने लगे। छोड़ छाड़कर अपने कामों को प्रभु आराधाना अब करने लगे। शरीर की शिथिलता भी अब मानव का साथ देने लगी। व्रत नियम संयम आदि लेकर ध्यान प्रभु का करने लगे।। चार माह का ये चौमासा साधु संत आदि को भाता है। स्थिर एक जगह रहकर के खुद का और जन कल्याण करते है। जियो और जीने दो के लिए एक स्थान को ही चुनते है। और ये सब हम और आप भी...
बेबसी
कविता

बेबसी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां से स्नेह पाया पिता ने दुलार लुटाया, मैं घड़ी की सुई की तरह कभी इधर , कभी उधर प्यार समेटती, सहेजती दोनों में एक अनचाहा रिश्ता जोड़ती। संपूर्ण प्यार की चाह जीवन की इकलौती आस, बंटी हुई ज़िंदगी के क्या मायने जब माता पिता नदी के दो किनारे? हॉस्टेल की खिड़की से किसे देखती मेरी मायूस निगाहें छन-छन कर सूर्य की किरणें उदास करती मेरी राहें मम्मी डैडी को लगाने गले तड़पती मेरी छोटी छोटी बांहें। गले लगती पिता से जब मां याद आती हर पल, मां के चरण जब छूती पिता कैसे होंगे मैं सोचती, क्या सोचा मेरे मां बाप ने कभी बेटी किन दौरों से गुजरी? होठों पर मुस्कान है फीकी आंखें हैं उसकी गीली गीली, अगर तुम ना बिछड़ते रहते हमेशा साथ-साथ तो क्या बेटी होती दुखी? क्या बेटी होती दुखी? यहीं है बेटी की बेबसी। परिचय :- ...
पानी ही पानी है
कविता

पानी ही पानी है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** धरती से अम्बर तक, एक ही कहानी है। छाई पयोधर पै, कैसी जवानी है।। सूखे में पानी है, गीले में पानी है । आँख खोल देखो तो, पानी ही पानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। नदियों में नहरों में, सागर की लहरों में। नालों पनालों में, झीलों में तालों में।। डोबर में डबरों में, अखबारी खबरों में। पोखर सरोबर में, खाली धरोहर में।। खेतों में खड्डों में, गली बीच गड्ढों में। अंँजुरी में चुल्लू में, केरल में कुल्लू में।। कहीं बाढ़ आई है, कहीं बाढ़ आनी है। मठी डूब जानी है, बड़ी परेशानी है।। सोचो तो पानी है, घन की निशानी है। जानी पहचानी है, यही जिन्दगानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। हण्डों में भण्डों में, तीर्थ राज खण्डों में।। कुओंऔर कुण्डों में, हाथी की शुण्डों में। गगरी गिलासों...
अपना गम
कविता

अपना गम

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** पास आकर बैठो तो बताएंगे अपना गम दूर से पूछोगे तो कहेंगे बहुत खुश है हम..!! घर की तलाश में घर छोड़ आए है हम, अपने ही घर से मानो बेघर हो गए हम..!! चार पैसे कमाने गांव से शहर क्या आ गए लोगों की नजरों में मेहमान बन गए हम..!! न गांव के रहे अब ना शहर के रहे हम मेहमान की तरह जिंदगी बिता रहे है हम…!! शहरों तक नहीं आती मिट्टी की खुशबू, गांव की मिट्टी से बहुत दूर आ गए हम..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
भीतर की बारिश
कविता

भीतर की बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीग रही है धरती सारी झूम रहा है नील गगन हर तरफ है छटा निराली नाच रहा मयूर हो मगन तेरे करम की बारिश में तर बतर है सारा चमन मुझ पर भी रहम कर मालिक धोकर मेरे अंतर का अहम मुझको भी कर तू निर्मल बहाकर मेरे सारे अवगुण कि तुझमें ही रम जाऊ मैं भूलकर सारे रंज ओ गम कर दे तेरे करम की बारिश बाहर भी और भीतर भी तर हो जाए और तर जाएं अबकी बारिश में फिर हम।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
शोषण और महंगाई
कविता

शोषण और महंगाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिधर देखो उधर शोषण और महंगाई भुखमरी और गरीबी में जीते हर बहन भाई कैसे सच हो सपना गांधी के ग्राम स्वराज का न जाने क्या होगा इस समाज का भ्रष्ट नेता भ्रष्ट सिस्टम भ्रस्ट पॉलिसी सारी भ्रष्टाचार की अगन में जलती भारती प्यारी जैसे बज रहा हो यहां हर स्वर बिना साज का न जाने क्या होगा इस समाज का बेरोजगारी की कगार पर खड़ा हर युवक चाहत नौकरी की या बने नेता का सेवक चिंता कल कि नहीं उसे फिक्र है आज का न जाने क्या होगा इस समाज का निजी स्वार्थ में जुटे जब देश के ही रक्षक कैसे हो विकास जब बने रक्षक ही भक्षक ऐसे बेईमान कर रहे हैं सौदा मां की लाज का जाने क्या होगा इस समाज का जवानों सुनो पुकार भारत भारत मां की रक्षा करनी है बलि देकर अपने जां की संकल्प ले करेंगे, रक्षा भारत मां की लाज का तभी सुधार होगा इस समाज का पर...
ज़ुल्म और दर्द
कविता

ज़ुल्म और दर्द

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होती जब-जब अस्मिता की हानि, उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी, पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा, स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।। भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं.., गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,, हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।। झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र, हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे, ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं, बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।। खींचता है जब साड़ी दुर्शासन., झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता, तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं, और अम्बर से चीर बढ़ा वो..., रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।। कटी थी जब ऊंगली केशव की.., कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़, कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था..., कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...
उद्यमशील पिता की बेटी
कविता

उद्यमशील पिता की बेटी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** खनन उपकरण काँधे पर रख, खेती करने जाती। पढ़ी-लिखी, शिक्षित श्रमिका है, हरसाती मुस्काती। खेतों में श्रम बिंदु बहाते, बाबुल थक जाते हैं। लिए कुदाल हाथ में अपनी, बेटी को पाते हैं। निकल पड़ी है वीर यौवना, मेहनत गले लगाने। हँसती और मुस्कुरा गाती, है बरसाती गाने। स्वयं पिता का हाथ बटाने, खेतों पर जाती है। खेती के सब काम देखती, हरबोला गाती है। नारी को जो अबला कहते, उनको है बतलाती है। कुछ भी कर सकती है नारी, जब अपने पर आती। कठिन परिश्रम करके तन से, जब श्रम बिंदु बहाती। उद्यमशील पिता की छाती, गजभर फूली जाती। साहस और समर्पण लख कर, युवा शर्म खाते हैं। चुल्लू भर पानी में कायर, डूब मरे जाते हैं। बिटिया की मेहनत रँग लाई, फसल लहलहाती है। हरे भरे खेतों को लखकर, बिटिया मुस्काती है। हम सबको श...
अपनी ख्याति में
कविता

अपनी ख्याति में

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** व्यक्ति व्यक्ति का निर्बल संगम कर रहा मानवता को कायर बढ़ रही आज अमानवता कर रहे मानवता में दानवता। सत्य, स्पूर्ति स्पंदन गया आज उड़ मानवता से जागे आज अनेक रावण करवातेे नित नए क़दम। एक पुरुष का पौरूष जागे करें क्या एक अकेला इस नर्तन में। रक्त देख रक्त खौलता था शिराएं थी तनजाती वर्कका मनु, मनु सानहीहै मग न केवल अपनी छाती में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तम...
बरसात
कविता

बरसात

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन के नवगीत मनोहर, चारों ओर सुनाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। बूँदों की मोती मालाएँ, अंबर से भू तक आएँगी। गहन घाटियों से शिखरों तक, चाँदी की पर्तें छाएँगी। तपते कण-कण को सुखदाई, शीतलता पहुँचाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। सावन में रिमझिम झड़ियाँ तो, भादौ में घनघोर घटाएँ। वन-उपवन में मेघपुष्प की, बिखराएँगी रम्य छटाएँ। नयनों को आकर्षक सुन्दर, अनुपम दृश्य दिखाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। मतवारी बदरी के पीछे, कजरारे बादल आएँगे। गाज गिरेगी जब अलगावी, नीर नयन से बरसाएँगे। प्रेमी युगलों को अनुरागी, पाठ कठिन सिखलाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१...
रिति गागर
कविता

रिति गागर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की रीति गागर में आ गया समंदर का घेरा इन अलको में इन पलकों में भटक गया चंचल मन मेरा। कंपीत लहरों सी अलके है। ्दृगके प्याले भरे भरे। तिरछी चितवन ने देखो कर दिए दिल के कतरे कतरे,। द्वार खुल गए मन के मेरे मनभावन ने खोल दिए बैठे किनारे द्वारे चौखट दृग पथमे है बिछा दिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
तेरी तलाश में
कविता

तेरी तलाश में

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तेरी अनकही बातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तेरी खामोश हुई चुपी में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन बरसती हुई बरसातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन मखमली सी शामों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन बहती हुई हवाओं में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन गुमशुम रातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तुम से हुई मुलाकातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तुम से हुई छोटी-छोटी बातों में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
कोई तो चीत्कार  सुने उसकी
कविता

कोई तो चीत्कार सुने उसकी

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** भरी बरसात के मौसम में भी नदियाँ वीरान सी लगती है कोई तो चीत्कार सुने उसकी वह खाली-खाली लगती है। सारी नदियाँ दूर-दूर तलक बंजर जमीन सी लगती है बन गई शहर का कूड़ादान इसे देख नदियाँ सिहरती है। आज नदियाँ मैली लगती है नाली सी वह काली हो गई गंदे पानी से हुई वह कुत्सित मीठे जल से वंचित हो गई। सारे घाटों का बंदरबाट हुआ सुना-सुना पनघट घाट हुआ सब जीव-जंतु पानी को तरसे पूरी नदियाँ श्मशान घाट हुआ। यह नदियाँ हमेशा चीख रहीं कोई तो उसकी पुकार सुनो गङ्गा की तरह यह भी लहराए कोई तो उसकी गुहार सुनो। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
माँ मै दौडूंगा
कविता

माँ मै दौडूंगा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ मै तुम्हारे लिए दौडूंगा जीवन भर आप मेरे लिए दौड़ती रही कभी माँ ने यह नहीं दिखाया कि मै थकी हूँ। माँ ने दौड़ कर जीवन की सच्चाइयों का आईना दिखाया सच्चाई की राह पर चलना सिखाया। अपने आँचल से मुझे पंखा झलाया खुद भूखी रह कर मेरी तृप्ति की डकार खुद को संतुष्ट पाया। माँ आप ने मुझे अँगुली पकड़कर चलना बोलना लिखना सिखाया और बना दिया बड़ा आदमी मै खुद हैरान हूँ। मै सोचता हूँ मेरे बड़ा बनने पर मेरी माँ का हाथ और संग सदा उनका आशीर्वाद है यही तो सच्चाई का राज है। लोग देख रहे खुली आँखों से माँ के सपनों का सच जो उन्होंने मेहनत भाग दौड़ से पूरा किया माँ हो चली बूढ़ी अब उससे दौड़ा नहीं जाता किंतु मेरे लिए अब भी दौड़ने की इच्छा है मन में। माँ अब मै आप के लिए दौडूंगा ता उम्र तक दौडूंगा दुनिया को ये दिखा संकू ...
किताब मैं तस्वीर
कविता

किताब मैं तस्वीर

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किताबों मैं तेरी तस्वीर छुपा दी थी कभी तस्वीर नहीं दिखती खोजता हूँ तुझे अब किताबों में। हाथों की लकीरों में तेरा नाम देखूं अब यादों में कहीं उनका जिक्र हो । भीगी पलकों से याद करते हुए तुम्हें खोजा चाहत ही रही । तुम्हें पाने की ... किताबों में छुपी तस्वीरें अब सपने में ही देखता अब तो अनजान रिश्तों के लिए बेचैन हूं। ढूंढता हूँ तस्वीर को जो किताबों में छुपा दी। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...