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कविता

ओ मेरी लाड़ली
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ओ मेरी लाड़ली

गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" बारां (राजस्थान) ******************** ओ मेरी लाड़ली, नन्ही सी मेरी गुड़िया। तुमको सुनाऊँ मैं लौरी, ओ मेरी प्यारी बिटिया।। ओ मेरी लाड़ली ....।। एक था राजा और रानी, उनकी सुनाऊँ तुमको कहानी। उनके थी एक राजकुमारी, तेरी तरह मेरी गुड़िया रानी।। बहुत ही सुंदर थी वह, करती थी प्यार उसको दुनिया। ओ मेरी लाड़ली ....।। आयेगा तेरा चंदा मामा, लाल परी तुमसे मिलने। नाचेगा तेरा बंदर मामा, लायेंगे तेरे लिए खिलौने।। फूलों सी है सूरत तेरी, महकी है तुमसे मेरी बगिया। ओ मेरी लाड़ली ....।। चंदा- तारे सो गये, दोस्त तेरे सभी सो गये। देख रहे हैं सोकर सपनें, फूल-पंछी भी सो गये।। सो जा मेरी राज दुलारी, सो जा मेरी प्यारी मुनिया। ओ मेरी लाड़ली ....।। परिचय :- गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" निवासी : बारां (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
धरती की पुकार
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धरती की पुकार

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन मे कुछ उमंगे सी जग उठीं हैं, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है। प्रतिदिन पर्यावरण बिगङ रहा है, वृक्ष काटे जा रहे हैं, रो रही धरा है। इस धरा पर कोई तो महा रथी है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। इस धरा पर पाप इतना बढ़ रहा, हर व्यक्ति पाप की सीढ़ी चढ़ रहा। पाप करके लोग यहाँ साधु कहलाते, साधुओं के वेश में अधर्मी पूजे जाते ये धरा पवित्रता की भूमि सी है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। नारी सम्मान क्षीण हो रहा, अधर्मी व्यक्ति उत्तीर्ण हो रहा। धर्म का प्रचार कोई न करें, धरा पर धर्म संकीर्ण हो रहा। सहनशीलता की ये तो मूर्ति है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। सहनशीलता का ये प्रमाण हैं, ये धरा सुधा के ही समान है। धरती माँ का कष्ट क्या है देखलो, गौरव के काव्य में ये विघमान है। जन्म होता है धरा पर,धरती माँ ही ...
दया प्रेम करुणा
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दया प्रेम करुणा

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** हर मानव मे हर जीव के प्रति दया की भावना होता है अच्छे मानव कि पहचान है, सुख दुख मा हर पल साथ दे दयावान व्यक्ति महान हे.! प्रेम कि बोली से हर व्यक्ति की मन को करते है आकर्षण, सच्चा प्रेम और सही शिक्षा लोगो को सही राह दिखाता है भूले को रास्ता, दिलो मे प्रेम बस जाता है.! बिना वजह के साथ दो दीनहिन असहाय सेवा सम्मान करो, नारी कि इज्ज़त, असहाय लोगो पर करुणा का प्रसार करो.! छोटी सी जिन्दगी दिलो मे हर किसी के लिए इज्ज़त सम्मान प्यार रखो, बेसहारा, दीनहिन, कमजोर की हमेशा मदद करो अच्छा व्यवहार बना लो.!! परिचय :-परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आया बसंत
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आया बसंत

डॉ. अखिल बंसल जयपुर (राजस्थान) ******************** बसुधा पर लहराया बसंत आया बसंत, आया बसंत। ऋतुराज प्रकृति का प्यार लिए कोयल की मृदुल पुकार लिए। भावों का नव संसार लिए, रस भीनी मस्त बयार लिए। तरुओं का यौवन वहक रहा, वन गंधित मादक महक रहा। सरसों की छटा निराली है, गाती कोयल मतवाली है। पागल पलास लो दहक उठा, 'अखिल' मानस लख चहक उठा। मन मस्ती में डूबा जाता, अनकहा एक सुख में पाता। फूलों पर भोंरे मंडराते, खगवाल फुदकते मुस्काते। मंजरित हो उठे आम्र कुंज, चुम्बन करता आलोक पुंज। हो चला शिशिर का पूर्ण अंत, आया बसंत, आया बसंत। परिचय :- डॉ. अखिल बंसल (पत्रकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी), डिप्लोमा-पत्रकारिता, पीएच. डी. मौलिक कृति : ८ संपादित कृति : १७ संपादन : समन्वय वाणी (पा.) पुरस्कार : पत्रकारिता एवं साहित्यिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु...
मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये
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मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** तारों से जब आंचल सजाओगे सीपों से गहने जड़वाओगे प्रीत में तेरी राधा सी बनकर मन में जब संदल महकाओगे मैं मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये.... नागफनी में भी फूल खिलाओगे छूकर मुझे तुम राम बन जाओगे आशा के तुम ख्वाब सजाकर जब जब मुझसे प्रीत निभाओगे मैं मिलुंगी तुम्हें वहीं प्रिये.... कोयल की कूक सुनाओगेे भवरें सी मधुर गुंजार करोगे अमावस की अंधेरी रातों में जुगनू से रोशनी ले आओगे मैं मिलूँगी तुम्हें वहीं प्रिये .... हरी चुड़ियाँ जब तुम लाओगे आस के हंस को मोती चुगाओगे सावन में लहराने लगा मन मेरा प्रणय के गीत जब तुम गाओगे मैं मिलुँगी तुम्हें वहीं प्रिये .... जब जब भी तुम याद करोगे चाँदनी को चाँद से मिलाओगे गुनगुनाती हवाओं के साथ साथ अहसासो में जब मुझे सवांरोगे मैं मिलूँगी तुम्हें वहीं प्रिये .... परिचय :- मधु टाक ...
अच्छा लगता है
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अच्छा लगता है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अपने अनुभव से जो कर पाता जीवन में, देख सुन समझकर बस अच्छा लगता है। देखकर दूसरों की कुछ उपलब्धि प्रगति गूंगा ठगा सा रह जाना अच्छा लगता है। कब कहाँ किसने क्या क्यों कैसे कहा था हर वक़्त याद रख लेना अच्छा लगता है। जरूरी कार्य ताकीद के बावजूद भी देखा अनजाने की भूल कहना अच्छा लगता है। संस्था समाज का ठेकेदार बनता है मनुज, ठेकेदारी चाल बदल लेना अच्छा लगता है। कथा व्यथा लहू में समाई शक्ति कहलाती सूत्र सिद्धांत उपयोग बस अच्छा लगता है। आध्यात्म और सिद्धि साक्ष्य अदभुत मिलते आंखों देखा वृतांत सुनना अच्छा लगता है। मां बाप गुरु सम्मान है किताब व्याख्यान में, साक्षात प्रमाण दिखे कभी अच्छा लगता है। नदी सदृश्य किरदार भी बहता रहा जमीं पर, चुल्लू भर जल में श्रम गंध अच्छा लगता है। चौकीदार सी चौकस निगाहों वाली परवरिश, च...
संविधान
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संविधान

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हर शख्स संविधान का सन्मान करेगा। हर शख्स का सन्मान संविधान करेगा। हर शख्स अपना अपना न कानून बनाओ, हर शख्स वतन पे इतना एहसान करेगा। मिलजुल के रहो प्यारा हमें मुल्क चाहिए, मुल्क में न किसी का कोई अपमान करेगा। कुछ मुल्क के दुश्मन हैं जो गद्दार यहां पर, वही गद्दार अपने हिन्द को वीरान करेगा। बहू,बेटी पे हाथ डाले,उसे शूली पे चढ़ा दो, फ़िर काम कोई ऐसा न कभी शैतान करेगा। जो ईमान पै चलते उन्हे मिलती यहाँ ठोकर, जो न कर सके कानून यहाँ बेईमान करेगा। "बेज़ार" मन में आये तुम वो कानून बना लो, संविधान की इज्जत यहाँ इंसान करेगा। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भारत का झंडा ऊँचा कर
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भारत का झंडा ऊँचा कर

डॉ. केवलकृष्ण पाठक आनद जवास, गीता कालोनी, जींद ******************** कर्म ही है देश भक्ति, अपना कार्य पूरा कर सत्य का ले आसरा, चल सत्पथ पर हो निडर सेवा ही हो भावना, जो दीं पीड़ित जन मिले सत्कर्म- व्यवहार से, दुष्कार्य बाधा दूर कर देश की संपत्ति को, हानि न पहुंचाए कोई भावना हो देश भक्ति, सबके मन में पैदा कर निष्ठा पूर्वक कार्य मेरे, देश का हर जन करे स्वर्ग ही फिर उतर, आएगा हमारी धरती पर हो न कोई जाति बंधन, सब में भाईचारा हो देश में अलगाव का, वातावरण न पैदा कर सारे ही संसार में है, मान भारत देश का उस प्रतिष्ठा को बढ़ा, भारत का झंडा ऊँचा कर परिचय :- डॉ. केवलकृष्ण पाठक निवासी : आनद जवास, गीता कालोनी, जींद घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हम भारत माता की संतान है
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हम भारत माता की संतान है

ऐश्वर्या साहू महासमुंद (छत्तीसगढ़) ******************** न धर्म से संबंध है मेरा न वंश से संबंध मेरा हिन्दुतान से है l कहते है दुनिया वाले हमे बहुत अभिमान हैl तो हाँ हमे बहुत अभिमान है अभिमान हमे इस बात का की हम भारत माता की संतान है | इस भारत भूमि में जन्मे कई वीर पुरुष महान है l हमे अभिमान इस बात का है कि हम भारत माता की संतान है ल अमृत सा इसकी नदियों का जल इसकी भूमि पावन है , जिसके चरणों मे खड़ा हिमालय करता इसका अभिवादन है l जिसके चरणों मे समर्पित सबका जीवन, चाहे मजदूर, सिपाही, नेता, चाहे किसान है l हमे अभिमान है इस बात का की हम भारत माता की संतान है ल विविधताओं का देश है हमारा हर धर्म, हर संस्कृति का आदर करना हमारी पहचान है l हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी पुत्र जिसके लिए समान है l हमे अभिमान है इस बात का की हम भारत माता की संतान है ल विकाशशील व...
कुछ बर्फ सी
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कुछ बर्फ सी

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में.... एक ख्वाब सा लगने लगता है.. यह लाल रंग सा इश्क लिए... मन शोर शराबा करता है ... फिर एक खामोशी सी छा जाती है... कैसे बताऊं ए ग़ालिब तुझे मैं... तन्हाइयो मैं खामोशी जान ले जाती है.... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में... वह मेरा ख्वाब उलझता जाता है.. फिर यह इश्क बिखर सा जाता है... ओस की इन बूंदों के तले ....... वह पत्थर सा जम जाता है .... फिर से पिघल के बहने को..... उस भोर की सुनहरी रोशनी में... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में... फिर खामोशी से निंदिया में ... तेरा अक्स कुछ कह जाता है... चुरा के फिर मेरी नींदों को... पलकों को सहलाता है... दर्द भी यही मेरा मर्ज भी यह... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांद...
साथ
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साथ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तेरा मेरा साथ रहे मेरा तेरा साथ रहे। दिलकी फर्याद रहे तेरे दीदार मिले। मिलने मिलाना का दौर चलता रहे। सुखदुख के साथी बने साथ जो तेरा रहे।। तेरा मेरा साथ रहे..। जब से तुम मिलो हो तकदीर गई है बदल। मेरे जीवन की तुम अब एक तस्वीर हो। इसलिए तो मैं हूँ तेरा दिवाना। अब तुम ही मेरी एक पहचान हो।। तेरा मेरा साथ रहे...।। करता हूँ ईश्वर से रोज मैं प्रार्थना। बना रहे जीवन भर अपना ये प्यारा रिश्ता। अब तुम ही हो मेरी जिंदगी की डोर। चल रही है साँसे अब तेरे साथ रह कर।। तेरा मेरा साथ रहे मेरा तेरा साथ रहे।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं...
हे माँ तु शारदे
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हे माँ तु शारदे

गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" बारां (राजस्थान) ******************** हे माँ, ओ माँ, हे मॉं तु शारदे। जीवन का मिटा तु अंधेरा। दे दे हमको नया तु सवेरा।। तुमसे करते हैं विनती यह हम। कर दे हम पर तू यह उपकार।। हे मॉं, ओ माँ, हे मॉं शारदे ...।। सुषिर स्वर मुखरित वीणा से, सुमधुर हो जीवन संगीत। शोभित निर्मल नीरज की सुरभि से, जीवन हो महकित।। तेरी पूजा करें हम रोज, दे दे जीने का हमको आधार। हे माँ, ओ माँ, हे मॉं शारदे ...।। दृग रश्मि आलोक से हो, जीवन में सुप्रभात। नव आशा से सुपथ पर, यह जीवन हो सुफलित।। करें अर्पण सुमन तुझ पर, दे दे हमको तु ऐसा संसार। हे माँ, ओ माँ, हे माँ शारदे ...।। प्राचीन स्वर्ण सुसज्जित वसुंधरा, नव भारत में मण्डित हो। सुसभ्य सुभाषित नव कृति से, सुसंस्कृत जीवन निर्मित हो।। तुझसे करें यही मनुहार, दे दे हमको तु ऐसे अधिकार। हे माँ, ओ माँ, हे माँ शारदे ...।।...
वसंतोत्सव
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वसंतोत्सव

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आया वसंत, मन आल्हादित। गूँजे भँवरे, फूली सरसों। वृक्षों पर अमराई छाई, नव सृजन हुआ सृष्टि में ज्यों।। प्राकट्य दिवस माँ शारदे का! शत-शत वंदन और अभिनंदन। विद्या, बुद्धि,सुर, लय दो माँ, करती हूं पुष्प गुच्छ अर्पण।। मंडराती तितली फूलों पर। सुंदर परिदृश्य उभर जाता। देता संदेशा है वसंत, उल्लसित काम फिर हो जाता।। गीता में कहते वासुदेव, ऋतुओं का राजा मैं वसंत। आप्लावित रस श्रंगार युक्त, प्रमुदित होता जन-जन अनंत।। ढक जल को कमल सरोवर में, देते संदेश मनुज को यों। खुलकर जीवन को जियो सदा, दारुण दुख में अब डूबे क्यों? खग कलरव चहुँ दिशि गूँज रहा, वसुधा ने नव श्रृंगार किया। वरदान सदृश है ऋतु वसंत, नव ऊर्जा का संचार किया।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह...
बसंत ….नहीं आया
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बसंत ….नहीं आया

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत ....नहीं आया। इस बार बसंत नहीं आया। धूमिल-धूमिल धरा पर छाया। बादल बरसे निसदिन-निसदिन. भरे हृदय की व्यथा कोई समझ ना पाया। इस बार बसंत नहीं आया। मौन प्रकृति व्यथा संग मरण सन थी। कैसे गुंजन करते भंवरे बागों में, जब कोई पुष्प ही खिल ना पाया। इस बार बसंत नहीं आया। जीवन की उमंगे उम्मीदें पिघली पल-पल। जीवन को एक सजा-सा बिताया। उम्मीदों-आशाओं से खिलते हैं उपवन। ना चांद चमका ना कोई तारा आया। धरती सूखा ना पाई अपनी सीलन को। इस बार पेड़ों का पत्ता ना कोई मुस्कुराया। इस बार बसंत नहीं आया। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
आ गए ऋतुराज बसंत
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आ गए ऋतुराज बसंत

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आ गए ऋतुराज बसंत , बसंत पंचमी मनाते हैं | हटा गए शिशिरता बसंत, बसंत पंचमी मनाते हैं || स्वागत में ऋतुराज बसंत के , पूजन शारदे का हम करते हैं | लेकर ज्ञानदायिनी का आशीष , कल्याण जीवन का हम करते हैं || अस्थि कँपाकर चले गए हैं , अब शिशिर का हो गया है अंत | शुभागमन तो कुसुमाकर का है, अब आ गए ऋतुराज बसंत || आलिंगन करेंगे खग-मृग भी , स्वागत करेंगे ऋतुराज तुम्हारा | मन मंदिर में एक आस जगी भी, स्वागत करेंगे हमराज तुम्हारा || नवकिसलय तरुवर लेकर , हवा बसंती जब लहराते हैं | कुसुम कलियाँ विकसित खुलकर, उन्मत्त भ्रमर तब मंडराते हैं || हो जाती शस्य श्यामला धरा , वन-उपवन सब खिल जाते हैं | ऋतुराज वसंत के आगमन पर, तन मन सबके खिल जाते हैं || तन मन सबके खिल जाते हैं, तन मन सबके .................. परिचय :- सुरेश ...
आ गया ऋतुराज बसंत
कविता

आ गया ऋतुराज बसंत

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। मनोहर छटा बिखेरता मदमस्त गगन, खिल रहा सूर्यरश्मियों से धरा का मुखमंडल समस्त भूमण्डल बन रहा उत्तम उपवन। पुहुप रस पी-पीकर मधुकर कर रहे गुंजन, बन रहा प्रकृति में सहज संतुलन। आ गया ऋतुराज बसंत मन हो रहा मगन। धारण किया धरा ने पीत वसन, प्रकृति ने किया श्रंगार सहज। आज सज रही ऋतुराज की दुल्हन, मानो कामदेव-रति का हो रहा मंगल-मिलन। आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
हे ! वाग्वादिनी माँ
कविता

हे ! वाग्वादिनी माँ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हे ! वाग्वादिनी माँ हे ! वाग्वादिनी माँ तू हमें ज्ञान दें तू हमें ध्यान दें। भटक रहें हम जीवन पथ पर आकर हमें तू अब थाम लें। तू ब्राम्ह की माया तू ही महामाया हम फंसे मोहजाल आकर हमें तू अब निकाल लें। तू ज्ञान की मुद्रा तू ध्यान की मुद्रा हम गिरे अज्ञान में आकर हमें तू अब ज्ञान दें। तू सुर की वन्दिता तू ही सुरवासिनी हम हो रहें बे-सुरे आकर हमें तू सुर का ज्ञान दें। तू विद्या की धात्री तू ही विद्युन्माला हम धंस रहें अविद्या में आकर हमें तू विद्या का वरदान दें हे ! वाग्वादिनी माँ हे ! वाग्वादिनी माँ तू हमें ज्ञान दें तू हमे ध्यान दें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
वैभव तेरा चहुँ ओर रहे
कविता

वैभव तेरा चहुँ ओर रहे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** माता लक्ष्मी दारिद्र हरो, मम जीवन में उल्लास भरो मिट जाए दुख पीड़ा सारी, वर मुद्रा में निज हाथ धरो। हे विष्णु प्रिया लक्ष्मी माता, तुमसे है दुनियाँ का नाता। जिस पर ना कृपा आपकी हो, जीवन भी उसको भरमाता। हे कमला माता कल्याणी, जीते अभाव में जो प्राणी धनवर्षा उन पर माँ कर दो, खाली झोली उनकी भर दो। तुम उनका भाग जगा दो माँ, सारा दुख दर्द मिटा दो माँ उनके जीवन में शुचिता कर, सारा संताप हटा दो माँ। हे सिंधु सुता, धन की देवी, धनधान्य युक्त जीवन कर दो निर्धन के घर धन की वर्षा, शरणागत को सुख का वर दो जीवन में कर दो खुशहाली, सज्जित हो पूजा की थाली जगमग हो सबके जीवन में, मिट जाय रात सब की काली। खुशहाली चारों ओर रहे, दारिद्र ताप ना कोई सहे हर घर में रोशन हो चिराग, वैभव तेरा चहुँ ओर रहे। परिचय :- अंजनी क...
परीक्षा
कविता, बाल कविताएं

परीक्षा

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** वैसे तो हमारा जीवन भी एक परीक्षा है जो कदम कदम पर हम अनुभव करते हैं यह भी एक शिक्षा है जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए हम रात दिन पुस्तक पढ़ते हैं उम्मीदों की सीढ़ियां चुनकर प्रतिदिन आगे बढ़ते हैं हमें जो मुकाम हासिल करना है उसके लिए करते हैं मेहनत और सपने बूनते है बच्चे अपनी पसंद का सब्जेक्ट चुनते हैं मन लगाकर पढ़ाई करने वाले बच्चे आसानी से सफल हो जाते हैं अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं फिर मनचाहा फल पाते हैं पेपर हो चाहे किसी भी सब्जेक्ट का उससे नहीं घबराते हैं जो बच्चे टेंशन नहीं लेते हैं परीक्षा का वह बहुत ही आसानी से सफल हो जाते हैं मेरी सलाह है आपसे परीक्षा से कभी नहीं घबराना चाहिए बनाकर टाइम टेबल पढ़ाई में जुट जाना चाहिए समय पर खाना, समय पर पढ़ना समय पर सोना और ...
एक दिए ने धूम मचा दी
कविता

एक दिए ने धूम मचा दी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** विकट अँधेरे लगे हुए थे, रातों के जयकारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।। तुम दिनकर के वंशज होकर, असमंजस में जीते‌ थे। देख अँधेरोँ की ताकत को, घूँट खून का पीते थे।। तुमको शक था जिस दीपक पर, क्या इकलौता कर लेगा। अँधियारों से डरकर, चुपके से समझौता कर लेगा।। उसी दीप ने दिखा दिया दम, तम बदला उजियारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।१।। अपने आप नहीं मिटते तम, इन्हें मिटाना पड़ता है। खुद को दीप बनाकर खुद का, दीप जलाना पड़ता है।। तब ही कान्ति केश तक छाती, तिमिर तोम हर लेती है। दीपशिखा सूरज बन जाती, ज्ञान व्योम कर देती है।। फिर अन्तर क्या रहा दीप में, तारे और सितारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।२।। आभा के कारण रवि का तम, दरश नहीं कर पाता ...
बसन्ती बहार
कविता, स्तुति

बसन्ती बहार

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसन्त लेकर प्रेम की नई तरंग हर तरफ सुनहरी छटा है बिखरी प्रकृति दुल्हन जैसी है निखरी खेतों में पक गई सरसों की बाली फलों से लद गई अम्बुआ की डाली प्रेम रंग में रंगी है धरती सारी फूलों पर मंडरा रही तितलियाँ प्यारी चल रही शीतल मन्द बयार मतवाली हर तरफ फैली है खुशहाली माँ भगवती भी लेकर अवतार देने आई बुद्धि-विद्या का उपहार करें हम माँ की आराधना बार-बार सब पर हो माँ शारदा की कृपा अपार श्वेताम्बर धारिणी, वीणा वादिनी दे दो माँ मेरे भावों को शब्दों का आकार नित नव रचना का सृजन करू मैं दो मेरी लेखनी को अपना आशीर्वाद परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप ...
ऋतुराज बसंत 
कविता

ऋतुराज बसंत 

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उषा की लालिमा निराली कुंज-कुंज छाई हरियाली लो आ गया ऋतुराज बसंत सखी महक उठे दिग् -दिगंत ठंडी-ठंडी मदमस्त बयार आई लेकर बासंती उपहार शाख-शाख खिले प्रसून हर्षित बेलें करें आलिंगन फैली चहुं ओर मकरंद सुगंध मंडराते-गुनगुनाते भ्रमर वृंद विथियों में फैला वासंती वैभव प्रीतियों में भूला सुधि प्रणीत मन आम्र मंजरी से सजी अमराई देख-देख उनको पिक बौराई प्रकृति पीली-पीली चुनर ओढ़े मन की कोयल कुहू-कुहू बोले जिया मेरा बन बैठा अनुरागी वन-वन डोले जैसे बैरागी मन के आंगन फिर सजी खुशियों की रंगबिरंगी रंगोली ऋतुराज बसंत श्रृंगारित फूलों की डोली अलंकृत बासंती चांद बासंती चांदनी बहका अंबर महकी यामिनी परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वा...
कदम बढ़ा कर देखो
कविता

कदम बढ़ा कर देखो

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** होगा काम नहीं क्यों तुमसे कदम बढ़ा कर देखो साहस को अपनाओ प्यारे सोच बदल कर देखो प्रभु राम गर वन ना जाते कैसे रावण मरता कृष्ण अगर ना बल दिखलाते कंस कहो क्या डरता गांधी जी गर घर में रहते देश स्वतंत्र न होता पराधीनता की जंजीरें अब तक जकड़ा रहता दशरथ मांझी चेनी लेकर अगर न पथ को बनाते गाँव के लोग कहो कैसे सुविधा का लुत्फ़ उठाते इसीलिए कहता हूँ सबसे भाव बदल कर देखो होगा कोई काम नहीं क्यों सोच बदल कर देखो परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
नई सदी का बसंत
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नई सदी का बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नई सदी के प्रथम बसंत कैसे करूं स्वागत तेरा पहले जब तुम आते थे स्वागत अमीर शाखाएं झुकती वंदना सजाते आमृ पणृ पलाश अगन लगाते थे कुंद, कदंब कचनार लजाते चंपा चमेली जहु़ ओर महकते वृक्षवल्ररी यौवन पर होती थी तो पाषाणो में पुष्प थे खिलते। पर वर्तमान में आमृ कुंज में कम बौराऐ आमृ वृक्ष है। नहीं कोयल की कुक कहीं चकवा, चातक, चकोर चोंच भी नहीं मारते पत्तों पर शायद उन्हें विश्वास नहीं वृक्षवल्ल्ररी तनों पर तज, तज कर निड अपने नील गगन में उड़ते हैं सोच यही गगन तले प्राण वायु मिल जावे कहीं।। तुम आए हों हे बसंत स्वागत तुम्हारा करती हूं। पुनः परंपराएं दोहराओ यह इच्छा रखती हूं, अमराई में बौराऐ आमृ वृक्ष और कूकेँ कोयल की कूक केसरिया पीला बाना पहने अमल ताश सरसो फूल चटक, चटक चटके सब कलियां कुंद चांदनी की डाली मोगरा, गुल...
मधुमास
कविता

मधुमास

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति बसंत बौछार, मधुप गूंजे कलीयन कली रे अली। प्रेम डगर आसान नहीं, श्वेत दंत मुस्कान चली रे अली।। गजगामिनी पदचाप धरे, नेह भरें मादकता चली रे अली। कलीयन सब फूल खिले, गुंजन मिलिंद सब अली रे अली।। सुरभि बयार जोबन सखी, हास करत संचार चली रे अली। कुसुम तारुणाई भयी, मकरंद भरी महक चली रे अली।। यौवन मंजरी अंत चली अफवाह चली अली रे अली। काल के कपाल में, राम नाम सत्य अली रे अली। एही भांति मानव मधुमास, चार चरण जीवन चली रे अली।। प्रकृति बसंत बौछार, मधुप गूंजे कलीयन कली रे अली।। परिचय :-  राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्त...