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विश्व के महामारी
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विश्व के महामारी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** शिव बंदना (वार्णिक छंद) नगर मा महेश के महामारी विकसित बासी नरनारि बहुतए भयभीत हैं। छिकरत खहरात हहरात मरि जात कौनो बैद अब तक ऐसे नहीं जीत है। भूमिचोर भूमिपाल भूलि गए हाल-चाल देश मा तेज से बढ़ गए पाप रीत हैं। महादेव भोरेनाथ भवत भवानीनाथ तेरो हि सहारो सब जंग जग जीत है। ____ २._____ ठाकुर महेश जहां गनपति- सेनापति हाल बेहाल नहि होत ओह शहर की। भूतनाथ दीनानाथ गौरीनाथ जहां बसे मारन कि शक्ति छिन जाति है जहर की लोकरीति राखि-नाथ महामारी दूर करौ नष्ट करो रोग सिन्धु पापनी ठहर की। आए दिन एक-एक जाए रहे यमपुरी बीज ही को नष्ट करो प्रभु ऐसो फर की। ____३._____ उमा जुके भरतार हर-तार देश कष्ट मंगल के दाता दास देशबासी तेरो हैं। बढत-दुखारि बाल-वृध्द परेशान सब गिरिनाथ गौरीनाथ हम सब चेरो हैं। घर को कंगाल कर मालिक करेगा क्या हे भूमिप...
नहीं तुमने न हमने ही
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नहीं तुमने न हमने ही

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधाता छंद - मापनी १४-१४ मात्रा, ७-७ मात्रा पर यति नहीं तुमने न हमने ही, कभी भी है इसे देखा। वायरस चीज क्या होता, देखा है या अनदेखा।। जानकर इसे क्या करना, मगर इससे नहीं डरना। तुम निकलो न अभी बाहर, भटक रहा है कोरोना। घरों पर अभी तुम रहलो, थोड़ा और कष्ट सहलो। विनती करता भारत है, लोगों आज तुम सबसे। रहलो बन्द अभी थोड़ा, कहता भारत है हमसे।। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
बदली है ऋतु आज
छंद, धनाक्षरी

बदली है ऋतु आज

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** बदली है ऋतु आज, छेड़ती नवीन साज, बासंती हर मिजाज, दिखे हर ओर है। पीला नीला हरा लाल, हर दिशा में धमाल, प्रकृति करे कमाल, बहुरंगी जोर है। कोयल की मीठी तान, गातें हैं भृमर गान, धरती की बढ़ी शान, मानस विभोर है। पल्लव पे शीत ओस, तपन है डोर कोस खुशियाँ देती परोस,प्यारी हर भोर है। होली पर्व आ रहा है, खुमार सा छा रहा है। मौसम भी भा रहा है, डूब जायें रंग में। प्रसून रंग-रंग के, पल्लव नव ढंग के, दृश्य हैं बहुरंग के, झूमिये तरंग में। कबीरा फाग गा रहे, रंग मन को भा रहे, ठंडाई भी चढ़ा रहे, आता मजा भंग में। ढोलक धमक रही, झाँझर झनक रही, बुद्धि भी बहक रही, खुशी हुड़दंग में। संग होलिका दहन, मैल मन का दहन, कुरीतियों का दहन, यह शपथ लें सभी। आपस में न द्वेष हो, दूर सबके क्लेष हों, यत्न अब विशेष हों, दुविधा तज दें सभी। नहीं तनातनी रहे, मित्रता भी बनी रहे, प्रीति नित...
जयकरी छंद
छंद

जयकरी छंद

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत चरणान्त गुरु लघु (२१) से अनिवार्य मानव जीवन बहुत महान, समझो प्रभु का यह वरदान, इसे व्यर्थ मत करिये आप, वरना झेलेंगें संताप। मचा हुआ चहुदिश आतंक, धनी धनी, निर्धन अति रंक, बीच पिस रहा मध्यम वर्ग, नहीं मिला मनचाहा स्वर्ग। राजनीति है अब अनमोल, सभी दल नित्य बजाते ढ़ोल, खोजें डफली छेड़े राग, ओ! सोई जनता अब जाग। जाति धर्म अब है व्यापार। हुआ देश का बंटाधार। नित्य नवेले होते क्लेश। बदला समजिक परिवेश। हे मानव! तू रह मत मौन। बागडोर थामेगा कौन। सुप्त अवस्था त्यागो आज। जागृत कर दो सर्व समाज। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...
तो सुख सदा समाय
छंद, दोहा

तो सुख सदा समाय

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दर्शन- टूटते घर और जिम्मेदार बहु। जी खूब कही। माता पिता की नाज़ो पली आपके लिए बिल्कुल ना भली। सोचा है इसका कारण कभी? कारण क्या है अचानक उसके लक्ष्मी से दुर्गा बन जाने के? कली जो थी फूल की उसके अंगारे बन जाने के? आपका बुढ़ापा बिगड़ जाने से लेकर वृद्धाश्रम की दहलीज़ तक पहुंचा दिए जाने के। बेटी हमेशा सुकुमार, नादान, चंचल चित्त युक्त सुंदर शालीन युवती वाचाल, चपला है। बहु स्वर्ग से उतरी महान वुभूति सब उलूल-जुलूल सहने वाली अच्छी, सभ्य, संस्कारी घूँघट धारिणी, गुस्से वाला थप्पड़ खाकर भी शांत रस विचारिणी, एक निरीह अबला है। अजी ख़ूब सोची, हाड़ मांस की देह धारी दोनों बेटी-बहु में भेद कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है। तो बस यही आपकी उल्टी गंगा वाली सोच आपको भुगतवाती है। स्त्री हो चली शिक्षित जान चुकी अपना स्तर आपको आप, ही की भाषा में, ब्याज सहित जब लौटती ह...
बसंत चालीसा
चौपाई, छंद

बसंत चालीसा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** मधुमासी ऋतु परम सुहानी, बनी सकल ऋतुओं की रानी। ऊर्जित जड़-चेतन को करती, प्राण वायु तन-मन में भरती। कमल सरोवर सकल सुहाते, नव पल्लव तरुओं पर भाते। पीली सरसों ले अंगड़ाई, पीत बसन की शोभा छाई। वन-उपवन सब लगे चितेरे, बिंब करें मन मुदित घनेरे। आम्र मंजरी महुआ फूलें, निर्मल जल से पूरित कूलें। कोकिल छिप कर राग सुनाती, मोहक स्वरलहरी मन भाती। मद्धम सी गुंजन भँवरों की, करे तरंगित मन लहरों सी। पुष्प बाण श्री काम चलाते, मन को मद से मस्त कराते। यह बसंत सबके मन भाता, ऋतुओं का राजा कहलाता। फागुन माह सभी को भाता, उर उमंग अतिशय उपजाता। रंग भंग के मद मन छाये, एक नवल अनुभूति कराये। सुर्ख रंग के टेसू फूलें, नव तरंग में जनमन झूलें। नेह रंग से हृदय भिगोते, बीज प्रीति के मन में बोते। लाल, गुलाबी, नीले, पीले, हरे, केसरी रंग रँगीले। सराबोर होकर नर-नारी, ...
शिव स्तुति
छंद, दोहा

शिव स्तुति

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** संग गौरीश, गंग धर शीश। शिवा के रंग, पान कर भंग।। मनोहर रूप, अखिल के भूप। कंठ धर नाग, वरे वैराग।। काम के काल, वस्त्र सिंह खाल। गरल रस प्रीत, हरि के मीत।। भस्म श्रृंगार, क्रोध विकराल। चंद्रमा भाल, प्रभु महाकाल।। जयति अवनीश, राम के ईश। नमित दशशीश, एव सुरजीत।। नाश कर दंभ, नृत्य बहुरंग। मगन नित योग, भेष जिम जोग।। छंद- भव-स्वामी नमामि हे नाथ प्रभो। अविकार विकार सदा ही हरो।। जड़ बुद्धि जो बैरी रिपु सी लगे। निर्वाण मिले संताप मिटे ।। त्यज भूधर को हिय आन बसो। तुम कोटिक सूर प्रकाश प्रभो।। तम को जिम मन अज्ञान रुँधे। अलोक जिमि हिरदय मा शुभे।। बड़वार बतावत भूल भगत। अभिमान के दंश सराबर हो।। तब क्षीर से नीर को थोथा करे। तुम ऐंसे ही दिव्व मराल प्रभो।। . परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम जन्म - २१/१०/१९८७ मूल...
जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
त्वदीयं नमः
छंद, दोहा

त्वदीयं नमः

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा अगम्य अगोचर विशेश्वर वराह वमन मत्स्य कश्यप रूप धरा चरण गंग साजे कंठम स्वरा.. हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा.. राम मनोहर परशु बुद्ध रूपम् सूर्यम् मयंक पावक प्रकाशम् दुःख पाप नाशी क्षीरं निवासी सदा भक्ति प्रीतम् प्रियम् अक्षरा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा वीरम च धीरम मिथक दोष घातम भवसिंधु तारम् वरण बृंदिका अधर देह सुन्दर भुजा चार धारम् कल्याणकारी असुर मर्दणा हृदय कुञ्ज स्वामी गौ पूजयामि त्वदीयं नमामि चरण वंदना प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा सवैया - हम तो हरि मूरख देख के मूरत रीझत गावत आन पड़े.. यह नेह भी देह भी केवल रेह सी श्री चरणों में आन धरे मुस्कान की तान के तीर किये गंभीर हिय जब आन धसे तुम एक हमें हर एक से प्यारे बोलो प्रमाणित कैसे करें यह नेह भी देह भी केवल रेह सी ...
मां वाणी … कुंडलिया
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मां वाणी … कुंडलिया

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** मां वाणी कुछ दीजिए, ऐसा आशीर्वाद। भारत भू से हो सके, खत्म सभी उन्माद। खत्म सभी उन्माद, जिहादी हिंसा रोको, यदि मानें वह नहीं, उन्हें काली बन ठोकों, फेंक रहे जो पत्थर, हिंसक मूढ़ अनाड़ी। भर शुभत्व दो, उनके मन में भी मां वाणी। . परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज स्मारक संस्थान सम्मान २०१९ संपादन - द...
हाँ मैं वही सिपाही हूँ
कविता, छंद

हाँ मैं वही सिपाही हूँ

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल, सदियों से खड़ा स्थाई हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। घर,परिवार व प्यार त्याग मैं, सरहद पर तैनात खड़ा हूँ। करुँ मौत से मस्ती हरदम, खतरों से सौ बार लड़ा हूँ। हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर, मैं उसी रक्त की स्याही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। है धरती सा धीरज मुझमें, व आसमान सा ओहदा है। हिम्मत हिमालय सी रखता, सदा किया मौत से सौदा है। अपनों पर जान गँवाता हूँ, दुश्मन के लिए तबाही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। बाहों में सिसके दर्द सदा, आँखों में निंदिया रोती है। सपनों में दिखता दुश्मन को, चिंता मुझको ना खोती है। मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता, होता उतना उत्साही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हू...
वंदना …
छंद, धनाक्षरी

वंदना …

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** वीणा वादिनी विभव वारिए विकल वत्स वंदना विडंबना वरंच विलगाईये। लाल लाल लहू लक्ष्म लोचन ललाम लुप्त लूला लाल लग लक्ष्य लकुट लड़ाईए। स्वर सुधा सरिता सलिल सरसाए स्याम सूत्र सार सबको सुदामा सा सुनाईए। कामना कि कमलासिनी कपट कलुषों को काटके कलंकहीन कीर्ति करवाईए। . लेखक परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज ...
घनश्याम नहीं आते
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घनश्याम नहीं आते

*********** भूपधर द्विवेदी अलबेला रीवा (म.प्र.) काल का कुचक्र कण-कण में है व्याप्त आज। भीष्म, द्रोण पापियों की पीठ सहलाते हैं।। सुंदरी, सुरा के मोहजाल में उलझकर। मछली की आँख पार्थ भेद नहीं पाते हैं।। शकुनी की चाल देख मारते ठहाके भीम। सत्यवादी धर्मराज तालियाँ बजाते हैं।। द्रोपदी जलील नित्य हो रहीं सभा में किंतु। चीर को बढ़ाने घनश्याम नहीं आते हैं।। लेखक परिचय :- नाम - भूपधर द्विवेदी साहित्यिक उपनाम - अलबेला पिता - श्री रमाकांत द्विवेदी माता - श्रीमती श्यामकली द्विवेदी जन्मतिथि - बसंत पंचमी १९९२ शिक्षा - स्नातक (गणित), डीसीए, डी. एलएड. पेशा - शिक्षक पता - जमुई कला तहसील - त्योंथर जिला रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
छिड़ गई बहस
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छिड़ गई बहस

*********** रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' छिड़ गई बहस अब बंद नहीं होने वाली। सेना भारत की नहीं धैर्य खोने वाली। . अब पहले जैसी कोई भूल नहीं होगी। कोई भी रेखा अब प्रतिकूल नहीं होगी। . यह धरा कभी भी रिक्त हुयी न वीरों से। हमने हरदम युद्ध लड़े तदबीरों से। . कश्मीर हमारा है हम छोड़ नहीं सकते। जो व्यूह रचे हैं क्या हम तोड़ नहीं सकते। . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
चाणक्य छला जाता है
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चाणक्य छला जाता है

*********** रचयिता : अंजुमन मंसूरी' आरज़ू' आधार छंद - सार/ललित छंद जलता है खुद दीपक सा पर, ज्ञान प्रकाश दिखाता । बांट के अपना सब सुख जन में, आनंदित हो जाता । इसके बदले शिक्षक जग से, देखो क्या पाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ इंद्रासन ना ले ले तप से, मधवा भय से बोला । अहिल्या गौतम के अमृत से, जीवन में विष घोला । विश्वामित्र की भंग तपस्या, छल से करवाई थी । सत्ता रक्षा को पृथ्वी पर, इंद्र परी आई थी । काम क्रोध मद लोभों का फिर, दोष मढ़ा जाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नेतृत्व से परिपूर्ण बनाके, गढ़ता कितने नेता । मंत्री हो या भूप सभी को, रुप यही हे देता । पर सत्ता धारी बनते ही, लोग मदांध हुए हैं । काट दिए सिर उनके जिनके, झुक कर पांव छुए हैं । शस्त्र निपुण कर देने वाला, वाण यहां खाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नंद वंश ने एका ...
16 वर्ण तथा 16 मात्राओं का छंद
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16 वर्ण तथा 16 मात्राओं का छंद

========================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी अकबर झटपट चल पनघट पर, तपन बढ़त अब जल भर कर धर। चल हट बस अब मत खटपट कर, मत मर करवट बदल बदल कर। चलत पवन गरम ,अब सरर सर, कल कल जल ,हलक कर तरबतर। अब शबनम शरबत रख भरकर। मत छलकत छल छल डगमग कर। छल व कपट मत कर मरघट पर, रब जप करत तन बदन मल कर।। कदम दर कदम घर घर तप कर, भटक भटक कर जनम सफल कर।। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन मुंबई, टेलीविजन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई प्रतिनिधित्व :- विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
मालिनी छन्द
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मालिनी छन्द

========================== रचयिता : भारत भूषण पाठक विधा :- मालिनी छन्द विधान :- नगण नगण मगण यगण यगण होत अलौकिक प्रकाश, जेल में देख के कंस मन,हिय अकुलायो। है ये कैसो प्रकाश जो ऐसो ताहि के पार न देखि पायो।। द्वार खुले अरू बेड़ी टूटे चहुँओर देखो धुँध है छायो। लेत वसुदेव जग तारण को। यमुना जी में पाँव बढ़ायो।। है ये कैसो भाग वसुदेव को। घर में जो जगतारण आयो। फूल गिरे अरू अम्बर से जो। स्वयं हरि के ऊपर आयो।। देख हरि को यमुना जी में यमुना जी भी ऊपर धायो। है यह कैसो भाग जो हमरो आयो स्वयं नारायण आयो।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास :- साहित्य...
रोटी
कविता, छंद

रोटी

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सायली छन्द की कविता रोटी तुम हो छोटी मोटी पतली भूख तुम्ही मिटाती। *** कही घी चुपड़ी कही सूखी रहती तृप्ताति आत्मा माँ। *** तुम्हारे हाथों भाती गर्म रोटी जीवन सन्देश सिखलाती। *** भूख तृष्णा तुम्ही ज्वाला पेट की बुझती तुम भाति।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,  कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि। प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन सम्मान : "भाषा सहोदरी" दिल्ली द्वारा आप भी अपनी क...