घनाक्षरी
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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१ -
परतन्त्रता की बेड़ियों को काटने के लिए,
ध्येय गीत था यही स्वतन्त्र वन्दे मातरम्।
षडयन्त्र के विरुद्ध कई घोष हुए किन्तु,
क्रान्तिकारियों का रहा मन्त्र वन्दे मातरम्।
मात्र इसी मन्त्र के सहारे जीत सके जंग,
गोरों के विरुद्ध बना तन्त्र वन्दे मातरम्।
चूम गए फांँसियों के फन्दे झूम-झूम "प्राण",
गाते हुए बलिदानी मन्त्र वन्दे मातरम्।।
२ -
सीधी-सादी बातचीत में भी लोकगीत जैसा,
युद्ध का सघोष भूतभीत वन्दे मातरम्।
स्याह रजनी में आशातीत चन्द्रमा सी आभ,
दिन में दिनेश तमजीत वन्दे मातरम्।
शत्रु भयभीत मानों पड़ा हो परीत पीछे,
रूह काँप उठती अधीत वन्दे मातरम्।
विपरीत राजनीति के विरुद्ध बनी नीति,
पी गया अतीत प्राण जीत वन्दे मातरम्।
३ -
गाँव नगरों की गलियों मे ले सुहाना राग,
गूँजा ऊँची तान क...













