Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

ग़ज़ल

दम में नहीं है दम
ग़ज़ल

दम में नहीं है दम

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन दम में नहीं है दम कोई फिर भी नहीं है कम। हर शख़्स कह रहा है कि आगे रहेंगे हम।। शेरो सुख़न की दुनिया में कुछ ऐसे खो गया। सुख में रहा न खुश कभी दुख का रहा न ग़म।। कुर्सी पे बैठकर वही औक़ात भूला है। झूठा है खानदानी जो मक्कार है परम।। कलियुग का सच यही है कि सच पे है भारी झूठ। सच-सच है प्यार कर ले तू नफ़रत करे अथम।। झूठी चमक है दुनिया की झूठी है साॅस ये। नाड़ी हकीम पकड़े है फिर भी गई वो थम।। अच्छे बुरे का फैसला तो होगा हश्र में। करता है काम नेक जो आहिस्ता निकले दम।। भौं ऑंख सब फड़क रही उल्टी निज़ाम की। विद'अत को मानता नहीं चाहे जो हो सनम।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत श...
दर्द दिल का
ग़ज़ल

दर्द दिल का

डॉ. रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द दिल का तेरी आँखों से बयाँ हो जाए। तू भी ख़ामोश रहे शोर-ए-फ़ुग़ाँ हो जाए। तू मेरे दिल में बसा है मेरी धड़कन की तरह, तेरा एहसास न गर हो तो मकाँ हो जाए। मेरे दिल को भी मिले कोई मरासिम ऐसा, जिसकी चाहत में रहूँ मस्त-समाँ हो जाए। कोई शबनम सा ठहरता है अगर दिल में तो, ख़ूबसूरत ये मुहब्बत का जहाँ हो जाए। चाहतों की मैं हसीं कुछ तो तरफ़दारी में, 'रागिनी' गर ये ग़ज़ल हो तो गुमाँ हो जाए। परिचय :- डॉ. रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०१८" से सम्मानित शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, ए...
जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही
ग़ज़ल

जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************         २१२२ २१२२ २१२२ २१२ जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही हंसते गाते ही गुजर जाए जरूरी तो नही मुश्किलों के साथ इसका है पुराना राब्ता रात ना हो दिन ही दिन आए जरूरी तो नही उम्र भर का साथ मिल पाना तो मुश्किल है बहुत अब वफा हर वक़्त मिल जाए जरूरी तो नही रात दिन में ही बदल जाते हैं रिश्ते आजकल जिंदगी भर को निभा जाए जरूरी तो नही दर्द अपना दर ब दर गाना नही अच्छा जरा हर समय पर हँस के दिखलाएजरूरी तो नही कब से आंखों में समंदर सा है इक ठहरा हुआ इस वजह भीगी नजर आए जरूरी तो नही कश्मकश जद्दोजहद में कैसे होती है बसर चीख कर ये बात बतलाए जरुरी तो नही आदमी जिंदा है गर तो दर्द भी होगा उसे मुर्दा कुछ अहसास कर पाए जरूरी तो नही परिचय :- मुकेश सिंघानिया निवासी : चाम्पा (छत्तीसगढ़) शपथ : मेरी कविताएँ और गज...
झूठी है ज़िंदगी यहाॅं
ग़ज़ल

झूठी है ज़िंदगी यहाॅं

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन झूठी है ज़िंदगी यहाॅं मेहमान हम सभी। असली है घर ॲंधेरे में सोचा है कुछ कभी।। आ जाए मौत कब ये किसी को नहीं पता। मौका है तौबा कर ले गुनाहों से तू अभी।। नेकी का फल है नेक बुराई का फल बुरा। नेकी करोगे नेकी मिलेगी वहाॅं जभी।। आवाज़ हक़ की हमने हमेशा उठाई है। सच बोलता रहा हूॅं बुरा बन गया तभी।। मतलब निज़ाम समझा जो दुनिया में आने का। जाने पे हॅंस रहा वही बाक़ी दुखी सभी।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
ग़ज़ल मेरे नाम की
ग़ज़ल

ग़ज़ल मेरे नाम की

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन पहचान ही मेरी है ग़ज़ल मेरे नाम की। बूढ़ा हूॅं मेरी अब नहीं तस्वीर काम की। आए न जो समझ में गजल वो ग़ज़ल नहीं। भाषा सरल हो शेर में अदबी पयाम की।। वह दानियत के सच का ये जब से चढ़ा नशा। चाहत नहीं है अब मुझे साक़ी के जाम की।। मंजिल है क़ब्र मेरी मैं उसके क़रीब हूॅं। तारीफ़ हो रही मेरे फिर भी कलाम की।। मेहनत की खाऍंगे वो जो ईमानदार हैं। मक्कार झूठे खा रहे सारे हराम की।। ख़ामोश हो गए हैं वो कुर्सी पे बैठ कर। आवाज पहले जो थे उठते अवाम की।। बे-ख़ौफ़ हैं दरिंदे ये जिनकी पनाह में। हाथों में उनके आ गई चाबी निज़ाम की।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर...
कल का पता नहीं
ग़ज़ल

कल का पता नहीं

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन जो आज तेरा सच वही कल का पता नहीं। देखा हो जिसने कल कोई ऐसा मिला नहीं।। जितना मिला बहुत है ज़ियादा करोगे क्या। कुछ ले के जाते क़ब्र में इंसाॅं दिखा नहीं।। कल पर न छोड़ कुछ भी जो करना है कर अभी। आ जाए कब बुलावा कोई जानता नहीं।। दौलत तेरी तेरी नहीं शोहरत नहीं तेरी। बस इक वहम था तेरा जो मर कर रहा नहीं।। साथी बहुत थे जीते जी तनहा है क़ब्र में। दो गज़ ज़मीं है गहरी कोई दूसरा नहीं।। आगे से पीछे आ गए कब पीछे चलते हम। आई है अक़्ल देर से जब कुछ बचा नहीं।। इक वक़्त था निज़ाम वो तेरा उरूज था। पीछे हो आज रहनुमा अपना चुना नहीं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और...
ख़ुद को बचा ख़ुदी से
ग़ज़ल

ख़ुद को बचा ख़ुदी से

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन ख़ुद को बचा ख़ुदी से बचे ही रहेंगे हम। कल भी भले थे सबके भले ही रहेंगे हम।। साज़िश तमाम हो रही सच को मिटाने की। मिटने न देंगे सच को अड़े ही रहेंगे हम।। होता नहीं रईस कभी जो अमीर है। पैदा हुए रईस बने ही रहेंगे हम।। नफ़रत है उनके दिल में हमारे लिए भरी। अच्छा करेंगे फिर भी बुरे ही रहेंगे हम।। हमको गिराने वाले तो ख़ुद गिर गए निज़ाम। जब तक ख़ुदा है साथ उठे ही रहेंगे हम। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
मुर्दों की बस्ती में
ग़ज़ल

मुर्दों की बस्ती में

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन मुर्दों की बस्ती में यहाॅं ज़िंदा कोई नहीं। आवाज़ हक़ की डर से उठता कोई नहीं।। हद पार हो गई है ज़ुल्मों सितम की अब। किस पर करें भरोसा की अपना कोई नहीं।। अपने भी अपने अब यहाॅं अपने रहे कहाॅं। नफ़रत की ऑंधी चल रही अच्छा कोई नहीं।। मरना है सबको पैदा यहाॅं पर हुआ है जो। ज़िंदा रहा जहाॅं में हमेशा कोई नहीं।। ऑंखों में पट्टी बाॅंध के बे-अक़्ल जीते हैं। ये चार दिन की ज़िंदगी समझा कोई नहीं।। किसका शिकार हो रहा किसका विकास है। सब दिख रहा है मुल्क में अंधा कोई नहीं।। बेख़ौफ़ है दरिंदे ये कैसा निज़ाम है। इस बे-लगाम भीड़ में इंसाॅं कोई नहीं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी...
तक़दीर
ग़ज़ल

तक़दीर

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** लेकर अपने घर का सारा बोझ मुंख पर सूकून रखते है .... वो शहर में रहने वाले खुद का गाँव में मकान रखते है .... कोई कैसे पढ़ पाएंगा दर्द -ए- दिल हमारा, हम दिल में जख़्म और चेहरे पर मुस्कान रखते है .... जिनकी सारी इच्छाएँ पूरी कर चूंकि है तकदीर वह फिर भी दिल में अब भी कई अरमान रखते है .... जो रख देते है दिल पर हमारे हाथ अपना, फिर हम भी उनके हाथ में अपनी जान रखते है .... किस्मत वालों को भला कौन याद रखता है, मेहनत करने वालों से पूछिए वोह पैरों में जमीन और मुठ्ठी में आसमान रखते है .... परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है
ग़ज़ल

ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है। आ जाए कब बुलावा सफ़र ये अजीब है।। ऐसी गुज़ारी उम्र की गुमनाम हो गए। अपना न कोई दोस्त न कोई रक़ीब है।। नफ़रत उगल रहा है जबाॅं से जो रात दिन। कैसे कहूॅं उसे कि वो अच्छा नजीब है।। लाशों का ढेर देख के आता नहीं तरस। होता है क़त्ल-ए-आम तो हॅंसता मुहीब है।। कैसा फ़क़ीर है ये जो घूमे विमान से। किस्मत हो सबकी ऐसी की फिर भी ग़रीब है।। आवाज जो उठाते थे ख़ामोश हो गए। दरबारी बन गया जो वो अच्छा अदीब है।। जिसको मैं ढूॅंढता रहा दुनिया की भीड़ में। वो पास है न दूर ये कैसा नसीब है।। जैसा करेगा जो वहाॅं वैसा भरेगा वो। मैदान-ए-हश्र सबका ख़ुदा ही हसीब है।। जन्नत निज़ाम उसकी है जो है रसूल का। ...
कैसा मुकद्दर हुआ
ग़ज़ल

कैसा मुकद्दर हुआ

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** मुद्दतों आसमां गलतफहमी में तर हुआ दिल मेरा जलता रहा कैसा मुकद्दर हुआ I मैं दरिया हूँ, दरिया ही सही, दरिया तो हूँ ? यहाँ तो कतरा भी सोचता है समुंदर हुआ I इस कदर उदास दर-बदर भटकते हो बताओ कैसा मोहब्बत का सफर हुआ I चलने दो ये तूफ़ान तुम दिल ही में अब क्या हो गया जो ये किसी का घर हुआ I आग का दरिया सब पार करके आया है इक गुमनाम मुसाफिर भी पार डगर हुआ I हर शख़्स के हाथों में है जहर का खंजर शहर में अब न जाने कैसा बवंडर हुआ I जहां को जीतना तो बहुत आसान था दिल जीतने वाला कहाँ सिकंदर हुआ I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
डूबी बस्तियां सैलाब में
ग़ज़ल

डूबी बस्तियां सैलाब में

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
अवध में राम आये हैं
ग़ज़ल

अवध में राम आये हैं

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुमंगल गीत गाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सुमन-श्रद्धा लुटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सकल ब्रम्हांड के स्वामी, विधाता वो जगत के हैं। चरण उनके पखारो तुम, अवध में राम आये हैं। सहज, सुंदर, सलोना है, मेरे भगवान का मुखड़ा, कि मन-मंदिर बसाओ तुम, अवध में राम आये हैं। नयन कजरा, तिलक माथे कि कुंडल-कान धारे हैं, नजर अब तो उतारो तुम, अवध में राम आये हैं। सदा ही भाव वो देखे, सभी स्वीकार है उनको, कि शबरी बन खिलाओ तुम, अवध में राम आये हैं। समझते हैं, सभी के कष्ट, वो पालक-पिता जग के, सभी दुख को मिटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। वचन की लाज रखनें को, गये चौदह बरस वन में, पुकारो लौट आओ तुम, अवध में राम आये हैं। कि लक्ष्मण जानकी है संग, अब कर्तव्य के पथ पर, पवनसुत जी पधारो तुम, अवध में रा...
कहीं मन का, कहीं तन का …
ग़ज़ल

कहीं मन का, कहीं तन का …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहीं मन का, कहीं तन का, किसी से वास्ता जो भी। रहे थोड़ा, ज़ियादा या किसी से फ़ासला जो भी। किसी की याद लेकर ही चलें हैं साथ हम लेक़िन, जताते हैं, निभाते हैं, किसी का क़ायदा जो भी। तकाज़ा उम्र का होगा, रही होगी फ़िकर सबकी, नहीं आई हमें नींदें, किया हो रतज़गा जो भी। समझदारी इसी में थी कि पहले साध लें मन को, बुरा कोई, भला कोई, मिले फिर सामना जो भी। मिला अब तक हमें उतना नहीं उम्मीद थी जितनी, कभी इतनी, कभी उतनी, रहे फिर इल्तिज़ा जो भी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान ...
यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है
ग़ज़ल

यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है। जो अब तक किसी की नज़र में नहीं है। सुने जो सभी की, करे अपने मन की, वो बन्दा किसी के असर में नहीं है। चला आ रहा है बराबर से लेक़िन, वो रस्ता किसी के सफ़र में नहीं है। उतारे जो दरिया में कश्ती अकेले, वो जज़्बा सभी के ज़िगर में नहीं है। निकलते ही सूरज रहे जिसमें गर्मी, मज़ा एक ऐसी सहर में नहीं है। जो नेकी के बदले इज्ज़त मिले वो, बुराई से जीती क़दर में नही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है ...
एक रात आप …
ग़ज़ल

एक रात आप …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** साहब एक रात आप यतीमखाने में रहिए, दौलत के भूखे न बन खुदगर्ज जमाने में रहिए। हर शहंशाह ने लिखवाए कसीदे अपने दौर में, चर्चे रहे फकीरों के फकीर बन ज़माने में रहिए। मेरे संगे बुनियाद की तामीर में तो पत्थर नहीं है, आप हुजूर एक रोज मेरे भी गरीबखाने में रहिए। प्यार खुलूस इज्ज़त चाहत सब है मेरी बस्ती में, त्यौहार में कभी आप मेरे आशियाने में रहिए। मुसीबतों से जो लड़ते-लड़ते फौलाद बना हूं मैं, लाख हो नशा दौलत का मगर पैमाने में रहिए। तख्तियां कितनी भी हो मगर दरार नहीं मुझ में, वो शख्स जैसा हो आप रिश्ता निभाने में रहिए। मेरे घर के तमाम पाए ज़मींदोज़ हो चुके आब, आप सच लिख के जालिम के निशाने में रहिए। खुले आसमान में रहते हैं बहुत से लोग शाहरुख़, कभी एक रात आप उनके शामियाने में रहिए। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया...
बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है
ग़ज़ल

बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …
ग़ज़ल

कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** होती नहीं उजागर, तो और बात होती। होती जो बात घर पर, तो और बात होती।। पहरे लगे हुए थे, वातावरण था भय का, होता नहीं अगर डर, तो और बात होती।। कुछ दूरियाँ बना लो, सब लोग क्या कहेंगे, होते कहीं जो बाहर, तो और बात होती।। सरनाम थे कभी जो, बदनाम इश्क में हैं, करते न प्यार पथ पर, तो और बात होती।। मन में दबा रखी है, हर बात बावरी ने, होती जो बात खुलकर, तो और बात होती।। आकाश के सितारे, लटके हुए टंँगे हैं, बसते अगर धरा पर, तो और बात होती।। कैसा सवाल था यह, तुम भी न कर सके हल, देते सटीक उत्तर, तो और बात होती।। पानी यहाँ कहाँ है, मरुथल मलाल का है, मिलता अगर सरोवर, तो और बात होती।। यह जान भी न जाती, नुकसान भी न होता, लाते जो "प्राण" को घर, तो और बात होती।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौर...
दोगले दाग़दार होते हैं
ग़ज़ल

दोगले दाग़दार होते हैं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दोगले दाग़दार होते हैं। फिर भी वे होशियार होते हैं।।१।। सावधानी यहाँ जरूरी है, चूकते ही शिकार होते हैं।।२।। आप जितने सवाल करते हो, तीर से धारदार होते हैं।।३।। जिन पलों में कमाल होता है, बस वही यादगार होते हैं।।४।। दाँत होते नहीं परिन्दों के, क्यों कि वे चोंचदार होते हैं।।५।। चोर शातिर मिजाज ही होंगे, या कहो आर - पार होते हैं।।६।। शूल क्या आजकल बगीचे के, फूल भी धारदार होते हैं।।७।। वार करते न सामना करते, इसलिए ही शिकार होते हैं।।८।। नोंक तीरों की रगड़ पत्थर पर, तब कहीं धारदार होते हैं।।९।। बालकों को अबोध मत समझो, वे बड़े होनहार होते हैं ।।१०।। "प्राण" कहते न बोलते उनके, हर जगह इन्तजार होते हैं।।११।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य ...
सागर गहरा कितना क्या है
ग़ज़ल

सागर गहरा कितना क्या है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सागर गहरा कितना क्या है। मछुआरों ने ही समझा है। तेज हवा, लहरों से लड़ना, पतवारों की जीवटता है। गिर-उठकर चलना कश्ती ने, तूफानों से ही सीखा है। भाप बने या बर्फ वही जल, जाकर सागर में गिरना है। सूरज - अग्नि से बनकर भी, धरती का जल से रिश्ता है। मंथन के दौरान जो चाहा, सब कुछ सागर से निकला है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
खुश्क तबियत
ग़ज़ल

खुश्क तबियत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुश्क तबियत हरी नहीं मिलती। और फिर रसभरी नहीं मिलती।।१।। लोग कहते कि चाँदनी देखो, चाँदनी साँवरी नहीं मिलती।।२।। नाज़ नखरे हजार होते हैं, रूपसी बावरी नहीं मिलती।।३।‌। नाज़नीनों को भटकते देखा, आप सी सहचरी नहीं मिलती।।४।। हूर तक को उतार लेता पर, आप जैसी परी नहीं मिलती।।५।। इश्क नमकीन हुस्न मीठा है, प्रीति भी चरपरी नहीं मिलती।।६।। "प्राण" की प्यास आखिरी होगी, ज़िन्दगी दूसरी नहीं मिलती।।७।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
ज़वानी में क्या रखा है
ग़ज़ल

ज़वानी में क्या रखा है

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** तू मेरी आँखों के सामने है तो माज़ी में क्या रखा है तेरी फ़लसफ़ी तस्लीम करूँ कहानी में क्या रखा है। ज़हनी नफ़सियाती का कोई मर्ज़ नहीं दर्द क्यों ज़र्द तो टूटे दिल–ए–मशरिक़ की रवानी में क्या रखा है। मेरी साँसें इतनी आरिज़ी थी जितनी बेकल थी बेख़ुदी तेरी आँखों में तैर जाऊँ तो फिर सूनामी में क्या रखा है। कोहिनूर क्या है पत्थर है तू तो जीता जागता हुस्न है तेरे इश्क़ में डूब न जाऊँ तो सुहानी में क्या रखा है। तेरी निगाहों की जाज़बियत दिल में दवा सा असर करे तुझसे प्यार मैं क्यों न करूँ यूँ बेइमानी में क्या रखा है। सारे आईनों को जंग लग जाए आँखें धुँधली हो जाए तू न बन पाए हमसफ़र तो फिर ज़वानी में क्या रखा है। शब्दार्थ :– माज़ी :– अतीत ज़हनी नफ़सियाती :– दिमाग़ी मनोरोग मशरिक़ :– पूरब, पूर्व दिशा आरिज़ी :– व्यथित सु...
बर्फ़ाब
ग़ज़ल

बर्फ़ाब

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** जो मिल गया सो मिल गया अब तो दिल में ख़्वाब सजा लीजिए ले के मुझे बाँहों में तुम यूँ आँखों में क़दह-ए-शराब बना लीजिए। कहते है जोड़े आसमान में बनते है हमने तो कभी सोचा नहीं ये बात है तो कच्चे डोर में बाँधके मुहब्बत के बाब आ चलिए। इश्क़ में जुर्म कर बैठे कोई बात नहीं इश्क़ की तामीर की जाए अब पीछे भी क्या हटना आप फ़र्द–ए–हिसाब सुना दीजिए। हाए! नाक पे गुस्सा फिर भी बड़े शौक़–हसीं लगते हो तुम तो हमने तो होंठों पे लिया नाम तुम्हारा चलो इताब बना लीजिए। ख़्यालों को ज़ेहन में रखते हैं छोटे से दिल में अरमान बड़े रखते है सुनो मीठे मीठे सवालों का मज़ा अपने ही हिसाब का लीजिए। हल्की हल्की बारिश की बूंदें मेरे गालों पे क्या पड़ने लगी कि जैसे फिज़ा साजिशें करनी लगी बहाके ले जाने को सैलाब बना दीजिए। आ बैठ मेरे सम्त काली नज़...
चलो इसमें पते की बात तो है
ग़ज़ल

चलो इसमें पते की बात तो है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलो इसमें पते की बात तो है। सफ़र में इक सहारा साथ तो है। ज़ुबाँ ये पूछती है इन लबों से, भला दिल में कहीं ईमान तो है। तबीयत है बड़ी नासाज़ लेक़िन, चलो इसमें ज़रा आराम तो है। हमारा है, हमेशा, ये जताकर, कि हमसे शख़्श वो नाराज़ तो है। बनाता है सभी जो काम अपने, किसी का सिर पे अपने हाथ तो है। कही वैसी, रही है सोच जैसी, हमारी शायरी बेबाक़ तो है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
ख़्वाब जो नींद में देखा होगा
ग़ज़ल

ख़्वाब जो नींद में देखा होगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ख़्वाब जो नींद में देखा होगा। जागकर सोचने से क्या होगा। आपके जो क़रीब आया है, जान पहचान का रहा होगा। जान पाया है हाल महफ़िल का, शख़्श वो रात भर जगा होगा। साथ चलकर कहीं बिछुड़ना फिर, इस ज़माने का सिलसिला होगा। जो निभाया गया है मुश्क़िल से, सख़्त वो दिल का क़ायदा होगा। पास आएगा छोड़कर सबको, साथ में जिसके वास्ता होगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...