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ग़ज़ल

आम को इमली बताने आ गए
ग़ज़ल

आम को इमली बताने आ गए

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** ज़लज़ला दिल में मचाने आ गए जाम आँखों से पिलाने आ गए आम को इमली बताने आ गए ह़क़ ग़रीबों का चुराने आ गए है नहीं ईमां बचा दिल में ज़रा झूठ के किस्से सुनाने आ गए बेच कर अपने वतन की आन को मूर्ख जनता को बनाने आ गए कब समंदर से बुझी है तिश्नगी लब के साग़र में डुबाने आ गए साग़र-जाम रह न पाए वे हमारे बिन तभी शाम को मिलने मिलाने आ गए क़त्ल करते हो स्वयं ऐ दिलरुबा ख़ून फिर मुझ पर लगाने आ गए माँ के आँचल में पला खुद ईश है हम वहीं सिर को झुकाने आ गए अम्न की बातें न जिनको हैं पसंद अब्र वे अंबर पे छाने आ गए क़ह्र कम होता न *रजनी* पे कभी नैन से नैना लड़ाने आ गए परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मति...
सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का
ग़ज़ल

सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मिली जितनी कभी सोची नहीं थी। हमारी ख़्वाईशें इतनी नहीं थी। न कर पायी असर हमपर कभी वो, कही जिस बात में तल्ख़ी नहीं थी। सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का, रिवायत आपकी वैसी नहीं थी। फ़िक्र रखती तो जाकर लौट आती, हवा थी वो कोई कश्ती नहीं थी। मिली तो मिल गई जब उसने चाहा, ख़ुशी हालात से रूठी नहीं थी। किसी का नाम लेकर भूल जाना, ये आदत आपकी अच्छी नहीं थी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
चलें फिर लौटकर अपनें घरों को
ग़ज़ल

चलें फिर लौटकर अपनें घरों को

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलें फिर लौटकर अपनें घरों को। परिंदे कह रहे हैं अब परों को। तकाज़ा नींद का टूटा है जबसे, समेटा जा रहा है बिस्तरों को। रहें हैं साथ लेक़िन दूरियों पर, निभाया है सभी ने दायरों को। अग़र है इम्तिहाँ जैसा सफ़र तो, हटा दो रास्तों से रहबरों को। शिक़ायत वक़्त से कब तक रखेंगे, भुलाया है कि जिसने अवसरों को। निकाले काम के बदले चुकाकर, बिगाड़ा है सभी ने दफ़्तरों को। पते की बात भी दम तोड़ देगी, सुनाई जाएगी जब मसखरों को। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प...
तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए
ग़ज़ल

तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए जो सुकूं दे दिल को वो अल्फ़ाज़ तो दिखलाइए बेटियों के पैर में बेड़ी है इन को खोल दो इन परिंदों को ज़रा आकाश तो दिखलाइए कट गई शब ख्वाब में ऊंची उड़ानें साथ थी अब सहर की खुशनुमा परवाज़ तो दिखलाइए मैंने तो दिल को मेरे अब कैद करके रख लिया आप अपना थोड़ा सा अंदाज़ तो दिखलाइए हम चलेंगे साथ जब तक है इशारा आपका क्या क़दम है आपका आगाज़ तो दिखलाइए तितलियों को इस तरह पकड़ो ना नाज़ुक हैं बड़ी साथ में इनके यही इकरार तो दिखलाइए देश की खातिर जो सीना तान करके हैं खड़े आपको है इन पे कितना नाज़ तो दिखलाइए परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रका...
बदली आबो-हवा देख रहा हूं
ग़ज़ल

बदली आबो-हवा देख रहा हूं

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** शहर की बदली आबो-हवा देख रहा हूं, बीमारों की कतारें हाथों में दवा देख रहा हूं। मुर्दा खोर इंसानों से मिलना है तो देखिए ये बस्ती, कितने इंसानों को पूछते मैं रास्ता देख रहा हूं। खुशियों के आंसू गम के आंसू देख रहा हूं, कितने लबों पे अभी उसका चर्चा देख रहा हूं। इंसानों की लुटती दुनियां जंगली बस्ती देख रहा हूं, कदम-कदम पर पैसों को रुपए बनते देख रहा हूं। आनी जानी दुनिया में बैठा तमाशा देख रहा हूं, सोच में हूं हकीकत देख रहा हूं या सपना देख रहा हूं। बेरोजगारों की बस्ती में भुखे सियार कितने हैं, मिट्टी के इंसानों को "शाहरुख" खाते मुर्दा देख रहा हूं। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
खुद को उड़ती चिड़िया कर ले
ग़ज़ल

खुद को उड़ती चिड़िया कर ले

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टूट पड़ें बस ग्राहक इतनी मोहक पुड़िया धर ले। बेशक घटिया माल रहे पर पैकिंग बढ़िया कर ले।। हाथों हाथ बिकेंगीं तेरी चीज़ें बाजारों में, जीत भरोसा जनता का फिर काली हँड़िया भर ले।। पाँव और ये पंख सलामत दोनों रखने होंगे, उड़ना ही है तो फिर खुद को उड़ती चिड़िया कर ले।। भरी जवानी में बुढ़िया सी सूरत ठीक नहीं है, रंगत बदल और खुद को खुद कमसिन गुड़िया कर ले।। ये रनिवास महल की रौनक सब मिटने वाली है, अच्छा होगा भव्य भवन को छोटी मढ़िया कर ले।। प्राण किसी के नहीं बचे हैं लाखों ने की कोशिश, इसीलिए खुद को कागज सा उड़िया मुड़िया कर ले।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
हमेशा याद रहता वो
ग़ज़ल

हमेशा याद रहता वो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हमेशा याद रहता वो अग़र हर बार होता तो। कहानी में कहीं उतना असर क़िरदार होता तो। उठा लेता सभी के साथ उनमें हाथ वो अपना, हमारी बात रखने के लिए तैयार होता तो। लगा लेते गले उसको शिक़ायत भूलकर सारी, कि दिल का हाल जब लब पर खुला इज़हार होता तो। वहाँ उसकी ख़ता सारी समझकर माफ़ हो जाती, रिवायत में किसी ज़ज़्बात का इकरार होता तो। उसे दिखता, उसे मिलता, उसे ही चाहता अक्सर, कि उसकी वो कभी उतनी हसीं दरकार होता तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जा...
कहीं हमारी कहीं तुम्हारी
ग़ज़ल

कहीं हमारी कहीं तुम्हारी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कहीं हमारी कहीं तुम्हारी, विरोधियों ने कमी बता दी। हक़ीक़तों का बयान आना, शुरू हुआ तो ज़ुबाँ दबा दी।। दलील देने लगा खलीफा, कि पंख तेरे नये नये हैं, भरी ज़रा सी उड़ान भर तो, ज़मीन पर ही हवा खिला दी।। भला बता दो किसे मिला है, सुकून दौरे जहाँ में आके, सदा सताता रहा जमाना, कभी घुटन तो कभी सजा दी।। हजार मुँह हैं हजार बातें, हजार दुखड़े खड़े दिखे हैं, जहाँ जहाँ भी गया वहाँ जो, मिला उसी ने कथा सुना दी।। कहा हटो सब खलास राशन, अमीर का तब गरूर टूटा, फक़ीर भूखा चला गया पर, सलामती की दिली दुआ दी।। न देह होगी न रूह होगी, न प्राण प्यारे कहीं मिलेंगे, कई पढ़ेंगे हमारी ग़ज़लें, मेरी गजल ही मुझे पढ़ा दी।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
ज़िन्दगानी लिख गया
ग़ज़ल

ज़िन्दगानी लिख गया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** एक खतरों से लबालब ज़िन्दगानी लिख गया। दूसरा भी कम न था कुछ सावधानी लिख गया।। बहुत कम शब्दों में समझाते मिलेंगे लोग अब, आज फिर कोई कहावत में कहानी लिख गया।। वह कभी कोई नशा करता न था फिर भी स्वयं, रोज रहती है नशे में यह जवानी लिख गया।। जो न बीवी को कभी अपना सका भर जिन्दगी, आज मरते वक़्त उसको रातरानी लिख गया।। झूठ को सच और सच को झूठ लिखता था न वह, किन्तु अपने मुहल्ले को राजधानी लिख गया।। जो कभी रुख़सार से बहकर गिरे तेरे लिए, अश्क़ के उन मोतियों को वक़्त पानी लिख गया।। प्राण हैं तो महफिलें भी जी उठेंगीं दोस्तो, फिर न कहना बात यह कितनी सुहानी लिख गया।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित ए...
कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने
ग़ज़ल

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने या मुहब्बत बची हैं दरमियां अपने हर इक चेहरा नया, अभी प्यार हुआ कुछ नजाकत बची हैं दरमियां अपने वो मुहब्बत नहीं शायद नादानिया थी अपनी शरारत बची हैं दरमियां अपने चाँद तोड़ लाते थे मुहब्बत में लोग इक नदामत बची हैं दरमियां अपने कह न पाए आपस मे बारहा हम तुम यही शिकायत बची हैं दरमियां अपने जीना किसको हे ताअबद यहाँ पर एक कयामत बची हैं दरमियां अपने हम छुपा भी गए ख़ामोशियों को यही हकीकत बची हैं दरमियां अपने बारहा नज़र उठतो तेरी सूरत पर मेरो कोई चाहत बची हैं दरमियां अपने तेरा अतीत मेरी ज़िंदगी बन गई यारो यही इमारत बची हैं दरमियां अपने मेरे अलफ़्फ़ाज सुनाइ नहो देते मोहन यही मुसीबत बची हैं दरमियां अपने नजाकत-कोमलता नदामत-पश्चाताप ताअबद-अनंत काल तक पर...
अपनापन तो होली
ग़ज़ल

अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** समझें अपनापन तो होली। रक्खें अच्छा मन तो होली। साथ हमारे आज अगर हो, सम्बन्धों का धन तो होली। आपस में रहने ,जीने का, सीखें सच्चा फ़न तो होली। साथ-साथ जो मन को भाये, भीगे ऐसा तन तो होली। खुल जाएँ गाँठे रिश्तों की, मिट जाएँ अनबन तो होली। ऊँच -नीच का भेद भुला कर, मिल जाये जन-जन तो होली। रंगों में हैं सच जीवन का, कर लें सब मंथन तो होली, परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
पी गया वह पीर
ग़ज़ल

पी गया वह पीर

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** पी गया वह पीर ताड़ी की तरह । सकपकाया फिर अनाड़ी की तरह ।। लोग उसकी बात कैसे मानते, जीभ चलती थी कुल्हाड़ी की तरह ।। जिन्दगी पर अब मुसीबत नित नई, टूट पड़ती है पहाड़ी की तरह ।। सिन्धियों सी कर ख़रीदी माल की, बेच दे फिर मारवाड़ी की तरह ।। एक बदली एक पागल के लिये, सज रही थी एक लाड़ी की तरह ।। जा रहा था दूर कछुए सा चला, लौट आया रेलगाड़ी की तरह ।। "प्राण" पंछी तो उड़ेगा डाल से, लोग ढूँढेगे कवाड़ी की तरह ।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
बहुत याद आया भुलाने से पहले
ग़ज़ल

बहुत याद आया भुलाने से पहले

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बहुत याद आया भुलाने से पहले। कि जी भर रुलाया हँसाने से पहले। शिकायत,हिदायत,अदावत,बग़ावत, इन्हें आज़माया निभाने से पहले। रखूँगा सजाकर जिसे अपने दिल में, वही सब जताया छुपाने से पहले। यही आसमाँ की रिवायत रही है, सभी को उठाया गिराने से पहले। मिला यार मुझसे कभी जब कहीं तो, वो रूठा-रुठाया मनाने से पहले। भरोसा नहीं था जिसे गा सकूँगा, उसे गुनगुनाया सुनाने से पहले। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
मुकतदी बनते हैं हालात
ग़ज़ल

मुकतदी बनते हैं हालात

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** मुकतदी बनते हैं हालात ग़म इमामत करते हैं, हर रोज फरिश्ते टूटी झोपड़ी की जियारत करते हैं। पहन के कीमती लिवास कुछ लोग दिखाबत करते हैं, जर्रे-जर्रे में है खुदा तभी तो हम कहीं भी इबादत करते हैं। अमीरे शहर खुश हैं अब बादशाहत पे अपनी, हमको नाज़ है घर में हमारे बच्चे शरारत करते हैं। जो बदल सकते नहीं हालात तो जुल्म करना छोड़ दो, फिर ये न कहना इंकलाबी लोग बगावत करते हैं। तेरी मनमानी से गिरा सकते नहीं हम अपने हद को, पारखी लोग पारखी नजर कब कोयले की तिजारत करते हैं। मुफलिसी में नहीं जलते कितने घरों के चूल्हे, शाहरुख मेरी कौम में ऐसे लोग भी सदारत करते हैं। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बेड़ियाँ लाचारियों की
ग़ज़ल

बेड़ियाँ लाचारियों की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** लगी है बेड़ियाँ लाचारियों की। कठिन है राह जिम्मेंदारियों की। करेंगे हम हमेशा बात उनकी, रिवायत सीख ली ख़ुद्दारियों की। अग़र हो वक़्त पर, वो काम पूरा, ज़रूरत है बड़ी तैयारियों की। जहाँ राजा दिखाये रोब अपना, वहाँ चलती नहीं दरबारियों की। रखेंगे किस तरह वो भाईचारा, रही आदत जिन्हें ग़द्दारीयों की। उन्हें वो देखता है, सीखता है, जिसे दरकार है फ़नकारियों की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
मुँह मीठा मन खारा
ग़ज़ल

मुँह मीठा मन खारा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मुँह मीठा मन खारा मत कर। जीती बाजी हारा मत कर। धूप, हवा से डर कर अपने, आँगन को चौबारा मत कर। रुक जाए पैमाना लब पर, इतना मन को मारा मत कर। न कहने की कहकर बातें, दिल का बोझ उतारा मत कर। अपनी है उस हद से ज़्यादा, अपने पैर पसारा मत कर। साथ रहें हैं जो रस्ते भर , उनके साथ किनारा मत कर। मिलना है मिल जाएगा वो, इतना, उतना, सारा मत कर। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
परिंदे उड़ चले दिनमान छूने
ग़ज़ल

परिंदे उड़ चले दिनमान छूने

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** परों पर होंसले परवान छूने। परिंदे उड़ चले दिनमान छूने। चले अपने इरादे साथ लेकर, नई मंज़िल ,सफ़र अन्ज़ान छूने। कभी आँखों में जो सपनें पले थे, वही निकले सही पहचान छूने। किसी को आसमाँ का डर नहीं है, उठें हैं दिल सभी अरमान छूने। हवाओं से रुकेंगे वो भला क्या, चलें हैं जो वहाँ तूफ़ान छूने। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
साथ अपने जहाँ मिल गए
ग़ज़ल

साथ अपने जहाँ मिल गए

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने जहाँ मिल गए। हाथ उनसे वहाँ मिल गए। फ़ासलों का पता न चला, रास्ते कब कहाँ मिल गए। कट गया मुश्किलों का सफ़र, लोग सब मेहरबाँ मिल गए। जो तलाशे वहाँ दूर तक, वो सभी अब यहाँ मिल गए। था मिलेंगे किसी दौर में, वो इसी दरमियाँ मिल गए। ख़ुश-नसीबी रही वास्ते, फिर से हमकों जवाँ मिल गए। साथ रहकर गए जो निकल, फ़िर वही कारवाँ मिल गए। हाल ऐसा हमारा रहा, सख़्त कुछ इम्तिहाँ मिल गए। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर...
हर्फ़-हर्फ़ जानने से
ग़ज़ल

हर्फ़-हर्फ़ जानने से

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** हर्फ़-हर्फ़ जानने से ही कहाँ बना करती है ग़ज़ल । है इसके लिए तो पर्त-दर-पर्त रूह में उतरना होता ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक जाए बनती रही ग़ज़ल ।। साँसों में भरके निक़हत उतरे सुरूर दिल में । ज़ज़्बात मचल जाए उड़ती रही ग़ज़ल ।। बर्दाश्त करे कब तक कोई लू के थपेड़े । कुरब़त में उलझ जाए छलती रही ग़ज़ल ।। शिकवे-गिले वफ़ा के दोनों के दरमियाँ बस । अरमाँ बिखर जाए पिसती रही ग़ज़ल ।। नजरें बचा-बचा के अदा गुफ़्तगू करे है । महफ़िल में गज़ब ढ़ाये जमती रही ग़ज़ल ।। छोटी सी ज़िन्दगी के किस्से हैं अनगढ़े से । बिन बात बहक़ जाए चलती रही ग़ज़ल ।। बे-क़ैफ़ी कैसी भी हो हाँ तंज़ नहीं करना । अश्आर सँवर जाए कहती रही ग़ज़ल ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक ...
कहानी में हक़ीकत तो रही
ग़ज़ल

कहानी में हक़ीकत तो रही

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** भले थोड़ी मुसीबत तो रही। कहानी में हक़ीकत तो रही। मिला उतना, लगाया जितना, चलो इतनी ग़नीमत तो रही। रहा कोई कहीं हो दूर पर, उसे हमसे अक़ीदत तो रही। बुलाये वो हमें या हम उसे, सफ़र में ये ज़रूरत तो रही । कभी मानी नहीं जिसकी कही, हमें उसकी नसीयत तो रही। बिताई जिंदगी हमनें जैसी, अभी तक वो तबी'अत तो रही। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
हम रहे देखते कुछ दूर तक
ग़ज़ल

हम रहे देखते कुछ दूर तक

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हम रहे देखते कुछ दूर तक जाते लेकिन। रह गया फ़ासिला ज़द उनकी जताते लेक़िन। नाम पूछा नहीं इस देखने की हसरत में, बढ़ गया काफ़िला हाथों को हिलाते लेक़िन। पेंच उनसे कभी बातों का लड़ाया होगा, ज़िंदगी कट गयी रिश्तों को निभाते लेक़िन। दूरियाँ सोचती है हमसे तो ये राह भली, राह चलती रही बोझों को उठाते लेक़िन। रात ढ़लती गई फिर चाँद ने छुपना चाहा, आसमाँ रह गया तारों को जगाते लेकिन। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
सितारे चमकते रहें
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सितारे चमकते रहें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये दिये यूँ सदा रोज़ जलते रहें सब घरों में सितारे चमकते रहें आज आया बड़ा दिन नजारे नए रोज सब चेहरे यूँ चहकते रहें सब घरों में रहें शांति सुख चैन हो रोज़ परिवार सारे विहसते रहें आज आया बड़ा दिन नजारे नए रोज सब चेहरे यूँ चहकते रहें सब घरों में रहें शांति सुख चैन हो रोज़ परिवार सारे विहसते रहें बेटियाँ और बेटे बराबर यहाँ वे सदा मुस्कुराते व हँसते रहें झूठ बोलो नहीं सत्य की जीत है सत्य को लोग तानें ही देते रहें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक...
दिल में ग़म की किताब रखता है
ग़ज़ल

दिल में ग़म की किताब रखता है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** लिख के सबका हिसाब रखता है दिल में ग़म की किताब रखता है। कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या खुद को खानाखराब रखता है। आग आँखों में और मुट्ठी में वो सदा इन्किलाब रखता है। जिसने है देखें जमाने की सूरत खुद को वो कामयाब रखता है। उसकी नाजुक अदा के क्या कहने मुट्ठी में वो माहताब रखता है। बाट खुशियों की जोहता है तू दिल में क्यों फिर अदाब रखता है। आइने से न कर लड़ाई, कि वो कब किसी का हिजाब रखता है। समय से गुफ़्तगू करोगे क्या वो सभी का जवाब रखता है। समय चितचोर, नचनिया है कैसे-कैसे खिताब रखता है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो
ग़ज़ल

जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जले हैं दीप इन्हें खूब झिलमिलाने दो ख़ुशी को पास में आकरके गीत गाने दो चमन को आज विरासत में जो मिली खुश्बू उसे दिलों में हर मकाम पे लुटाने दो ग़रीब और अमीरी में फ़र्क छोड़ो जी सभी से हाथ मुस्कुराके अब मिलाने दो ये जिंदगी तो तीन दिन का बुलबुला ही है इसे बेख़ौफ़ होके और खिलखिलाने दो न रोककर उसे मायूस करो अब रंजन उसे भी अपना क़दम एक तो बढ़ाने दो परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्...
हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती।
ग़ज़ल

हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सदा जिसकी हक़ीक़त में सुनी, समझी नहीं जाती। हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती। घटा से दोस्ती रखकर, हवा में उड़ चलें लेक़िन, ज़मीं से दुश्मनी हमसे बड़ी रख्खी नहीं जाती। उठाई है ख़ता हमनें वफ़ा देकर सभी उनको, करें हम लाख कोशिशें लगी अपनी नहीं जाती। बड़ा ही ख़ौफ़जादा है जहाँ का क़ायदा लेक़िन, हँसी को देखकर हमसे हँसी रोकी नही जाती। उड़ें चाहे कहीं ऊपर, उठे हम आसमानों तक, ज़मीं पाँवों तले जो थी कभी छोड़ी नहीं जाती। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित क...