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ग़ज़ल

हमारा हौसला इश्क़ था
ग़ज़ल

हमारा हौसला इश्क़ था

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** याद ने उनकी जहां-जहां क़दम बढ़ाये हैं । अश्कों ने मेरे वहां वहां ग़लीचे बिछाये हैं ।। क्या करें.. हम अपनी आँखों का हमदम । ख़्वाब इसने हमें बेहद हसीन दिखाये हैं ।। डर लगने लगा है अब तो वस्ल से हमको । हम बदनसीब....... तो हिज्र के सताये हैं ।। हमारा हौसला इश्क़ था... सफ़र में यारों । रास्ते के पत्थर....... ख़ुद हमने हटाये हैं ।। लेते हैं इम्तिहान मेरी दोस्ती का "काज़ी" । दुश्मनों से भी रिश्ते शिद्दत से निभाये हैं ।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
चाँद को देखा मन बहला
ग़ज़ल

चाँद को देखा मन बहला

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** चाँद को देखा मन बहला चाँदनी में तेरा चहरा खिला कितनी अकेली रातों में खोयें न मेरी मंजिल तेरे बिना, चाँद को देखा... न कोई राहें भाती नहीं है न कोई मौसम कटती नहीं है साथ हमेशा छाया हो तेरी तुझ से बनी है तकदीर मेरी, चाँद को देखा... ग़म से भरी है राहें हमारी बिखरी हुई है ख्वाबें हमारी छावों में तेरी सजाते रहूँ मैं जन्नत्‍त मेरी तब होगी पूरी, चाँद को देखा... बगियन के फूल शरमा रहे हैं जब तुम को देखें शरमा रही हैं नूर तुम्हारी नज़रों में बोये रंगें हज़ारे दुनिया में मेरी, चाँद को देखा... परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
यूँ ही मुझसे बात करती हो
ग़ज़ल

यूँ ही मुझसे बात करती हो

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ ही मुझसे बात करती हो भोर की रोशनी निराली है सुबह की ये हसीन लाली है जब गए छोड़कर अकेली तो ज़िन्दगी राम ने संभाली है साज सजने लगे जमी महफिल ये मेरा दिल तो आज खाली है सायबा आपने जुदा होकर क्यूँ बनाया मुझे रुदाली है घोर फांके पड़े गरीबों में ये महल में सजी दिवाली है कह न पाई तुझे कहानी मैं शर्म की आँख पे ये जाली है मान मुझको नहीं पराया सा देख दिल में जगह बना ली है भूलकर भी कभी नहीं आया याद कर मैं वही घरवाली है खाइए जी ज़रा नफ़ासत से रोटियाँ ये सभी रुमाली हैं कम न समझो हमें जगतवालों हम हैं दुर्गा हमीं तो काली हैं राजरानी लगूँ सभी को मैं लग रहा तू बड़ा मवाली है फूल कलियों सजा ये कुनबा है बाग का तो पिता ही माली है क्यूँ ये दुल्हे दिखा रहे नखरे दुलहिने तो देखी भाली है दाल बाटी व चूरमा ल...
बस हॅंसी हैं वो तो होने दो
ग़ज़ल

बस हॅंसी हैं वो तो होने दो

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २१२२ २१२२ २१२२ १२ बस हॅंसी हैं वो तो होने दो नज़र में मेरे नइं। यूॅं किसी से झूठ कह दूॅं ये हुनर में मेरे नइं।। तुम कहीं अपना चलाओ जाके जादू हुस्न का। औरों को होगी ज़रूरत तेरी घर में मेरे नइं।। ज़िंदगी तो एक धोका है फ़ना होंगे सभी। हैं मुसाफ़िर सब कोई साथी सफ़र में मेरे नइं।। सच हमेशा कहता हूॅं मैं लड़ता हूॅं सच के लिए। बस ख़ुदा का डर है डर दुनिया का डर में मेरे नइं।। जो अगर कुछ सीखना है तुमको मुझसे ऐ 'निज़ाम'। तो अदब से पास बैठो मेरे सिर में मेरे नइं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
ख़ता से दूर बन्दगी रखना
ग़ज़ल

ख़ता से दूर बन्दगी रखना

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ख़ता से दूर बन्दगी रखना। निभा सको तो दोस्ती रखना। बना रहे हो जब मकाँ अपना, यहाँ, वहाँ से इक गली रखना। जहाँ मुश्किल कभी सुनो,समझो, वहाँ सभी से कुछ बनी रखना। हवा अक्सर जिधर से आती है, उधर की खिड़कियाँ खुली रखना। जुबाँ कहने में चूक जाएगी, बुरी-भली में कुछ कमी रखना। कभी मिले, कभी नहीं भी मिले, ज़रा सम्भाल कर ख़ुशी रखना। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
संसार हमारा है हिंदी
ग़ज़ल

संसार हमारा है हिंदी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** व्यवहार हमारा है हिंदी। आचार हमारा है हिंदी । लिखने, पढ़ने की बातों का, आधार हमारा है हिंदी। बदले बोली, पग-पग दूरी, विस्तार हमारा है हिंदी। पद, गीत, कविता, छंदों में, सब सार हमारा है हिंदी। रिश्ते अपने, सच्चे इससे, संसार हमारा है हिंदी । जन-जन के सच्चे भावों में, सब प्यार हमारा है हिंदी। इस दौरे जहाँ की शिक्षा में, हथियार हमारा है हिंदी। अपनायी भाषाएँ सबकी, इक हार हमारा है हिंदी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जात...
ग़मों का काफ़िला
ग़ज़ल

ग़मों का काफ़िला

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ग़मों का काफ़िला जाता नहीं है। ख़ुशी का सिलसिला आता नहीं है। हमेशा मैं कहूँ क्यों बात अपनी, मुझे ये क़ायदा भाता नहीं है । भरोसा ही उसे मुझ पर नहीं जब, मुझे उस पर यकीं आता नहीं है। जताता है वो मेरी गलतियों को, कभी जो राह दिखलाता नहीं है। लबों पर भी हँसी आती नहीं है, कभी दिल भी सुकूँ पाता नहीं है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी
ग़ज़ल

कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२ कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी हँस के पहनो तो हँसी है जिंदगी तिश्नगी से ही भरी है ज़िंदगी पूछो मत कैसे कटी है ज़िंदगी मुफ़लिसी में तो खली है ज़िंदगी सबके क़दमों में गिरी है ज़िंदगी ख़ूबसूरत शेर हैं सब इसलिए मेरी ग़ज़लों में ढली है ज़िंदगी काम आए जो वतन के वास्ते सच कहूँ तो बस वही है ज़िंदगी शाम ढलती है न ढलती रात है बिन पिया के यूँ खली है ज़िंदगी प्यार से जग जीत लो "रजनी" कहे चार दिन ही तो मिली है ज़िंदगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन...
इतने हो बेगाने क्या
ग़ज़ल

इतने हो बेगाने क्या

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** इतने हो बेगाने क्या। हमसे हो अंजाने क्या। आँख झुकाये बैठे हो, रूठे हो दीवाने क्या। रुख़ पर थोड़ा गुस्सा है, आये हो समझाने क्या। खट्टे- मीठे जीवन की, बातें हो पहचाने क्या। होश लिए हो रात ढले, टूट गए पैमाने क्या। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
जब अरमान फलेगा तो
ग़ज़ल

जब अरमान फलेगा तो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जब अरमान फलेगा तो। मन के साथ चलेगा तो। आँखें जी भर सो लेगी, सूरज, शाम ढलेगा तो। पत्थर भी कतरा-कतरा, आख़िरकार गलेगा तो। रिश्ता गिरकर संभलेगा, गर व्यवहार पलेगा तो। होगा सब पर हक सच का झूठा हाथ मलेगा तो। मिलकर, मिल न पायेगा, मौका दूर टलेगा तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
खुशबू
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खुशबू

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरी है रात की खुशबू अनकही अधूरी हर बात की खुशबू साँसों की थिरकन पर चूड़ी का तरन्नुम माटी के जिस्म में बरसात की खुशबू पतझड़ पलट गया दहलीज तक आकर जीत गई अंकुरित ज़ज्बात की खुशबू अहसास-ऐ-मुहब्बत तड़प तड़प के मर गया जिंदा रही पहली मुलाकात की खुशबू पलकें झुका के कैफियत कबूल की मगर ज़वाबों से आती रही सवालात की खुशबू जुल्फों की कैद में कुछ अरसा ही रहे उम्र भर आती रही हवालात की खुशबू कली रो पड़ी हूर के गजरे में संवर कर भूल ना पाया पड़ोसी पात की खुशबू I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
ग़मज़दा क्यूँ है
ग़ज़ल

ग़मज़दा क्यूँ है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। हम समझते हैं जिसे जानेज़िगर, जानेमन मन का दुश्मन वही बना क्यूँ है। हजारों ख्वाहिशें कुर्बान हैं जिस पर मेरी जान करके भी बुत बना क्यूँ है। जख़्म देता है जो दिल को मेरे तड़पा के दिल का मालिक वही बना क्यूँ है। मैंने अश्कों को बड़ी मुश्किलों से रोका है फिर भी दिल उसका तलबग़ार बना क्यूँ है। दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
राह कब तन्हा रही है।
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राह कब तन्हा रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ रही है , जा रही है। राह कब तन्हा रही है। रास्तों के सिलसिले सब, जिंदगी समझा रही है। जब दिलों की गाँठ उलझें, इक हँसी सुलझा रही है। बैठकर कोयल शज़र पर, तान ऊँची गा रही है। जीत उसकी जब ख़ुशी भी, हार को अपना रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
आ गई मझधार फिर से
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आ गई मझधार फिर से

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ गई मझधार फिर से। खुल गई पतवार फिर से। मौज से कश्ती मिली तो, मिल गई रफ़्तार फिर से। कर नहीं पायी कही जब, घिर गई सरकार फिर से। बात अपनी ज़िद पकड़कर, बन गई तकरार फिर से। ज़िन्दगी आकर के हद में, हो गई घर-बार फिर से। आ गया किरदार रब का, जब हुई दरकार फिर से। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
कहीं मुश्किल… कहीं आसां
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कहीं मुश्किल… कहीं आसां

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहीं मुश्किल, कहीं आसां मिला है। यही इस जिंदगी का सिलसिला है। रखी हमनें हमेशा ही तसल्ली, भले सबसे हमें हक कम मिला है। मनाही में रज़ा हम ढूंढ लेंगे, यहाँ हमको किसी से क्या गिला है। बचा है बाग में वो ही अकेला, कहीं इक फूल जो छुपकर खिला है। हमारे सामने होकर जो गुज़रा, कहीं रुकता नहीं वो काफ़िला है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
दर्द की दवा बना ली मैंने
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दर्द की दवा बना ली मैंने

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** किसी ने वाह-वाह की किसी ने अपना ही मुंह फेर लिया तुमने जो दर्द दिया उस दर्द से अपनी ये गजल बना ली मैंने दर्द भरी गजल लिखकर इस जमाने को सुना दी मैंने। किसी ने वाह-वाह की किसी ने अपना ये मुंह फेर लिया ऐसी मशहूर हुई गजल मेरी सोई किस्मत जगा ली मैंने। तुम्हारे दिए दर्द ने तो दुनिया में नाम कर दिया मेरा दर्द भरी गजल को गाकर शोहरत अपनी जमा ली मैंने। कई शायरों ने अपने इस दर्द को अपनी शायरी में पिरोया है लेकिन इसी गजल से शायरों पर धाक जमा ली मैंने। जो दर्द दिया था तुमने अब उसी दर्द की दवा बनाई है यारों इस दर्द की दवा देकर कई रोशन दुआ कमा ली मैंने। रोशन दुआओं के असर से हमारे यह दर्द फना हो जाते है इन्हीं दुआओं के कारण तकदीर के द्वार खुलवा लिए मैंने। तुम्हारे दिए दर्द से ही मैंने भी यहां दौलत और शोहरत पाई है...
मैं मुर्दो की आवाज़ था
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मैं मुर्दो की आवाज़ था

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** दुःख है मुझे कि मैं मुर्दो की आवाज़ था ज़मीर न था उन्ही का मै रखता राज़ था। करते रहे सितमगर, मेरे कंधे की सवारी, मुझे लगा, मैं गगन का शिकारी बाज़ था। मकसद मे होते रहे, अकसर वो कामयाब भ्रम मे जीया जैसे मैं ही उनका आज़ था। जब हुआ जुदा कोई आंख, मायूस न थी मुस्कुरा रहे थे लोग जिन पे मुझे नाज़ था। बढ़ता रहा बेखौफ, अंगारो की जानिब मैं मेरा हर जो कदम, जैसे नया आगाज़ था। अपनी धून मे जीता गया मैं शायर "जैदि" ख़्यालो मे मेरे, कभी न तख्त-ओ-ताज़ था। परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल कोलेज, बीकानेर। रुचि : लेखन, आकाशवाणी व...
वो जुबाँ पर सवार होती तो
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वो जुबाँ पर सवार होती तो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वो जुबाँ पर सवार होती तो। बात कुछ धार-दार होती तो। जान लेती मलाल भीतर के, जब नज़र भी कटार होती तो। बात अपना कहा बदल लेती, एक की जब हज़ार होती तो। उनके चहरे की वो हँसी नकली, अब हमें नागवार होती तो। आज जिसकी ख़ुशी रखी हमनें, जीत वो बार -बार होती तो। इन बहारों से दोस्ती रखती, तितली गर होशियार होती तो। पास रहती वो दूर होकर भी, मुझ सी वो बेकरार होती तो। फिर अंधेरो का डर नहीं होता, रोशनी आर -पार होती तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
बरसते आँसुओं को देखो
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बरसते आँसुओं को देखो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** देखना है तो बरसते आँसुओं को देखो मुस्कुराते हुए इन होठों में क्या रखा है। पोछना है तो बहते आँसुओं को पोंछो बेवजह!दुख व दर्द देने में क्या रखा है। देखना है तो कराहते आहों को देखो किसी के झूमते कदमो में क्या रखा है। बाँट सको तो किसी को खुशियाँ बाँटो बेवजह!खुशियाँ छिनने में क्या रखा है। देखना है तो तरसते आँखों को देखो किसी के खुश जिंदगी में क्या रखा है। दे सको आंखों को चैन का चमक दो बेवजह!आँसु को देने में क्या रखा है। देखना है तो बेबस लाचारों को देखो किसी के मस्त जिंदगी में क्या रखा है। दे सको तो उनको कुछ सहारा दे दो बेवजह!बेसहारा करने में क्या रखा है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...
घबरायी होगी
ग़ज़ल

घबरायी होगी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ख़त मेरा वो पायी होगी। जी भर वो इतरायी होगी।। घर लगता है घर सा मुझको। शायद घर वो आयी होगी।। देख दरीचे से फिर मुझको। मन ही मन शरमायी होगी।। दी होगी द्वारे पर दस्तक। पर थोड़ा घबरायी होगी।। मुझे देखकर तस्वीरों में। अपना मन बहलायी होगी।। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आश...
अब तक है शेष डगर साथी
ग़ज़ल, गीतिका

अब तक है शेष डगर साथी

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अब तक है शेष डगर साथी। आओ चलते मिलकर साथी।। यदि मानव हो तुम भी मैं भी, फिर क्यों इतना अंतर साथी।। तुम उच्च महल मैं हूँ झोपड़, पर मैं भी तो हूँ घर साथी।। उपयोग हमारा दोनों का, है बिल्कुल ही रुचिकर साथी। यदि तुमने वैभव पाया है, पाये नौकर चाकर साथी।। तो मैं आध्यात्म भक्ति सेवा, सत्कार वरित किंकर साथी। हो तुम अपूर्ण मैं भी अपूर्ण, पूरा केवल ईश्वर साथी।। फिर क्यों तन तान मदांध हुए। आओ मुड़कर भीतर साथी। यह जग तो केवल एक स्वप्न, इसमें क्यों मद मत्सर साथी। सबको जब जाना परमस्थल, उस परमात्मा के दर साथी।। फिर क्यों है इतना भेद भला, क्या सेवक क्या अफसर साथी। हम एक पिता की संतानें, है एक जगह पीहर साथी।। तुम 'नित्य' सही को भूल गये, है सबके जो अंदर साथी।। परिचय :- आचार्य...
तलबगार हम भी थे
ग़ज़ल

तलबगार हम भी थे

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** नशा बनकर होठो पर पैमानों की शराबों में मिलेंगे दुआ बन कर आपको आपकी फरियादो में मिलेंगे प्यार का खत बनकर आपको किताबों में मिलेंगे करोंगे जब याद कभी तुम हमको अपने दिल से खुदा कसम तन्हाई में आपको ख्वाबों में मिलेंगे। इश्क है तो इश्क का इजहार करना भी जरूरी है। कोशिश तो करो हम आपको उन इरादों में मिलेंगे। सुना है इश्क का अक्सर नशा सर चढ़कर बोलता है नशा बनकर होठो पर पैमानों की शराबों में मिलेंगे। जब कभी देखोगे तुम अपने आपको आईने में हम आपको आपके चढ़ते हुए शबाबो में मिलेंगे। तुमने भी पूछा था कि क्या हमको तुमसे इश्क है तुम भी हमारा खत पढ़ लेना उत्तर खत के जवाबों में मिलेंगे। कभी तुम्हारी खूबसूरती के तलबगार हम भी थे। कभी अपने चेहरे से लगाओ हम रेशमी नक़ाबो में मिलेंगे। परि...
दर्द सहना, दर्द लिखना मेरी पहचान रहने दो …
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दर्द सहना, दर्द लिखना मेरी पहचान रहने दो …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** दिल में खौफ ए ख़ुदा मंदिर में भगवान रहने दो, करम इतना तो हो हमारे सब अरमान रहने दो। रोटी की कीमत, भूख की तलब पूछिए गरीब से, बेघर खुश हूं ऊंचे महलों के तो दरबान रहने दो। ठोकड़ों में जी रहे लिवास दवा न दुआ मिलती है, खुली किताब हूं मेरे सर पे आसमान रहने दो। लफ्जों का कोई ख़ास नायाब कारीगर नहीं हूं मैं, दर्द सहना दर्द लिखना मेरी ये पहचान रहने दो। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
साथ उसके हबीब है कोई
ग़ज़ल

साथ उसके हबीब है कोई

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ उसके हबीब है कोई। शख़्स वो खुशनसीब है कोई। पास जिसकी हर दुआ उस पर, यार उसका ग़रीब है कोई। नींद के हाल मुस्कुराता है, ख़ाब उसके करीब है कोई। देखकर रह गया वहीं थमकर, वो नज़ारा अजीब है कोई। जान देने को अपनी हाज़िर है, वो परिंदा अदीब है कोई। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।
ग़ज़ल

बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे। तब जा के मुझे तुझमें भी अनवर दिखाई दे।। मज़हब की सियासत ही है इंसान की दुश्मन। नीयत से मुझे इसकी सरासर दिखाई दे।। फ़िरते हैं हवस अपनी मिटाने को भेड़िये। बेशक़ न अभी तुमको ये मंज़र दिखाई दे।। उड़तीं हैं गरम रेत से जो झिलमिलाहटें। मुमक़िन है तुम्हें ये भी समंदर दिखाई दे। अब क़त्ल के सारे वो तऱीके बदल गये। वाज़िब कि नहीं हाथों में खंज़र दिखाई दे। शैतां ने तिलिस्मात बिछाया सियासतन। हर सर है खूँ-ब-खूं नहीं पत्थर दिखाई दे। बस ज़िस्म पे शैदा न हुआ कर ऐ नित्यानंद। हो सकता क़े चूनर में दु-नश्तर दिखाई दे।। हे! हरि के अवतंस प्रभो तुम, हो करुणा निधि श्री भगवान।। परिचय :- आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” जन्म तिथि : ३० जुलाई १९८२ पिता : भगवद्विग्रह श्री जय ज...