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पद्य

चुन्नू मुन्नी दोनों प्यारे
धनाक्षरी, बाल कविताएं

चुन्नू मुन्नी दोनों प्यारे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी भाव- ममता चुन्नू मुन्नी दोनों प्यारे, दोनों मिल कुल तारे, भाग्य पे मैं इतराऊँ वारी वारी जाऊँ रे। उठे मेरे साथ साथ, दोनों ही बटाए हाथ, मेरी आँखों के हैं तारे, मैं तो इतराऊँ रे। दादा दादी के दुलारे, इनके तो वारे न्यारे, आशीष सदा ये पाते, खुशियाँ मैं पाऊँ रे। लोग कहे मुझे अच्छा, यही फल होता सच्चा, सफ़ल जनम हुआ, प्रभु गुण गाऊँ रे। परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
बिरवा हम लगाबो
आंचलिक बोली, कविता

बिरवा हम लगाबो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आवव संगी आवव, बिरवा हम लगाबो आवव संगी साथी, भुइया हम सजाबो गांव के गली पारा म चउक-चउक हटवारा म धरती म बिरवा जगाबो आवव संगी आवव.... खेत-खार सुन्ना होंगे, मेड़ घलो सुन्ना बनिस नावा डाहर त, कटगे पेड़ जुन्ना छइहा ह नोहर होंगे, कहां सुख पाबो आवव संगी आवव.... चिरई-मन खोजत हावे, रुखुवा के थइहा तरसत हे छइहा बर, गांव के हे गंवतरिहा झिलरी अउ झाड़ी छईहा रद्दा ल बनाबो आवव संगी आवव.. घर-अंगना खोर गली, अउ जमो मोहाटी खेत-खार, मेड़-पार अउ घलो चौपाटी गोकुल के धाम सही चला अब सुघराबो आवव संगी आवव.... नरवा के तीर घलो, पारे-पार तरिया फुलवारी लागे कलिन्दी कछार नदिया गाँव-गाँव शहर-नगर ल मधुबन बनाबो आवव संगी आवव.... धरती के तापमान तभे तो सुधरही झमाझम रुखुवा म धरती सवँरही आही बादर करिया अउ पानी बरसाबो आवव संगी आवव.... ...
कविता

कर लो इरादों को अटल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आत्म निर्भरता से हीं तेरा मनोरथ हो सफल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। विश्व में अपना पताका तुमको लहराना हीं होगा। जिंदगी की दौड़ में अव्वल तुम्हें आना हीं होगा। एक हो निर्णय तुम्हारा देश तब होगा प्रबल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। खुद बनों मालिक तु अपना कह रही माँ भारती। अपने जीवन रथ का खुद हीं बनना होगा सारथी।। सोंचने में मत बिताओ अपना सुनहरा आज-कल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। बेवजह की बात में अपना समय बर्बाद मत कर। कौन क्या कहता है इन बातों में घूंट-घूंट के न तु मर।। मेरी इन बातों को तु अपने जीवन में कर अमल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। कश्मकश जीवन में है इस कश्मकश से तु उबर। जिंदगी की राह में तुझको तो चलना है निडर।। कौन है अपना-पराया इस मुसीबत से निकल। बांध लो कस...
मिलने से होती है
कविता

मिलने से होती है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** न हम उनको समझ सके न वो हमको समझ पाये। पर हम फिर भी निरंतर आपस में मिलते जुलते रहे। और एक दूसरे से अपने दुख दर्द बाटते रहे। इसलिए लोगों ने इसे अलग ही रंग दे दिया।। हमारी इस मित्रता का उन्होंने अलग ही नाम दे दिया। करे तो क्या करे हम अब इस हवा को रोकने के लिए। जो दिखता है जमाने को वो सच भी नहीं होता। और हालातों के शिकार बहुत लोग हो जाते।। माना की मोहब्बत का रंग चढ़ते देर नहीं लगती। निगाहों से निगाहों का मिलन भी जल्दी होता है। दिलो की चाहत भी जल्दी बढ़ने लगती है। और मोहब्बत का भूत दिल पर छा जाता है।। समय के साथ साथ फिर सब कुछ बदलने लगता है। समझने और जानने की समझ भी फिर आ जाती है। दिलो में फिर प्यार का रंग ही रंग दिखता है। और मिलने जुलने से ही मोहब्बत का उदय होता है।। परिचय :- बीना (मध्यप्र...
आज की हनुमत कृपा
भजन, स्तुति

आज की हनुमत कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** "राम" की पग धूल को, मस्तक लगा चंदन बनेगा। पायेगा हनुमत्कृपा और, शीघ्र ही कंचन बनेगा। राम की पग धूल... राम ने सृष्टि रची, और वो ही इसको पालता है। जिसमे हो आशक्ति जिसकी, उसमे उसको ढालता है। कर्म में है स्वतंत्र तू, प्रभु में रमा तो रतन बनेगा। राम की पग धूल... भक्त हनुमत सबको ही हैं, " राम नाम" का मंत्र देते। आस्था दृढ़ होती उनकी, जो है इसको मान लेते। डूब जा सुमिरन में तो तू, भक्ति पथ पर बढ़ चलेगा। राम की पग धूल... भूत को तू भूलकरके, नाम गंगा में नहा ले। वो तो है करुणा का सागर, तू भी उसकी कृपा पा ले। नाम सांसो में रमा पाया, तो मुक्ति रथ चढ़ेगा। "राम" की पग धूल... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
इंदौर नगरी आलीशान
कविता

इंदौर नगरी आलीशान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** इंद्रावती से बनी नगरी इंदौर होलकरों ने इसे सजाया है शबे मालवा की रौनक यहां अहिल्या माता की छत्रछाया है राजवाड़ा में बिखरी राजसी शान गांधी हाॅल ने समय को जाना है शीशमहल की कारीगरी यहां भारत माता मंदिर पाया खजराना गणेश इसकी पहचान बड़ा गणेश आलीशान कैट और शिक्षालयों से शिक्षित औद्योगिक राजधानी भी कहलाती महाकाल बाबा है एक ओर दूसरी ओर ममलेश्वर का छोर रुपमती को आवाज देती नर्मदा मैया की यह आभारी है सामाजिक कार्यकलापों की भरमार धार्मिकता का भी है कारोबार लता, किशोर की यह नगरी हुकुमचंद सेठ को भाई थी स्वच्छता का पंच परचम लहराया अहिल्या माता इसकी शान इंदौर नगरी बन गयी आलीशान। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अमृतपान करातीं हैं मां
कविता

अमृतपान करातीं हैं मां

  गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन देने वाली मां मर-मर कर तुम्हें जन्म देकर अपने खून अमृत बनाकर अमृतपान करातीं हैं मां। अपनी भूख प्यास मिटाकर हर परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता और संघर्षपूर्ण जीवन में तुम्हें अमृतपान करातीं हैं मां। खूबसूरत विशालकाय इस सुंदर दुनिया में लाकर, अनमोल इस धरा पर जीना सिखाती हैं मां। ज्ञान का वह सागर जिसमें ढुबकर ईश्वर भी जन्म लेते हैं सांसारिक मर्यादा रहकर मां ने निसंकोच उन्हें भी गुणवान बनाया अमृतपान कराया मां ने। प्राकृतिक सौंदर्य की जननी भी हैं मां सृष्टिकर्ता ने अद्भुत प्रकाशमान बनाया मां को सूर्य का प्रकाश भी फिका ऐसा व्यक्तित्व से गगन रोशन किया हैं तभी तो मां ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है हमें जीवन दान दिया है अमृतपान कराया है मां ने। परिचय :- गगन खरे क्...
निर्गुण ब्रह्म धरूँ
कविता

निर्गुण ब्रह्म धरूँ

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गोपी-उद्धव संवाद संदेश है मोहन का निर्गुण ब्रह्म धरूँ अनुनय है मोहन का मथुरा से आए हैं बनि के इक योगी उद्धव कहलाएँ हैं कान्हा रस में डूबी ना जानूँ कुछ भी क्या खूबी मधुकर की उड़-उड़ के है बूमे गुन-गुन-गुन करते रस चूसे औ झूमे हम सगुण उपासक हैं हम तो ना माने यदुनंदन बाधक हैं वो नैनों का तारा कैसे हम भूलें? है वो ही उजियारा वाकी बंकिम चितवन चित को भरमाए है याही तो उलझन ये कैसे हम कह दें ? बैठा जो भीतर बाहर कैसे कर दें ? आती जब भी यादें रास रचाने की हैं करतीं फरियादें हे निष्ठुर आ जाते भूल गिले शिकवे करतीं जी भर बातें उद्धव का ज्ञान धरा कुछ भी ना समझे उनका सब राग हरा परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
पूनम
कुण्डलियाँ

पूनम

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां पूनम की आई तिथी, दिन है आज विशेष। शिव की करलो साधना, रहे नहीं कुछ शेष।। रहे नहीं कुछ शेष, भरे झोली जो खाली। पूरण हो हर काम, सदा आए खुशहाली।। कहे *राम*कवि राय, सभी को खुशियाॅं दें हम। लेकर खुशी अपार, आज आई है पूनम।। पूनम की शुभ चाॅंदनी, जगमग करे प्रकाश। श्वेत धवल है रश्मियाॅं, तम का करें विनाश।। तम का करे विनाश, सभी के मन को भाए। नील गगन में आज, रहें ‌तारे हर्षाए ।। कहे *राम*कवि राय, जपो शिव शंकर बम-बम। शिव जी का है वार, तिथी पावन है पूनम।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
माँ की दुआ
कविता

माँ की दुआ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** उस आँगन में रहे ना कभी सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का जिस घर अँगना में हो अनुपालन। नव पीढ़ी में वहाँ होता सदा संस्कारित गुणों का परिपालन। मातृशक्ति हमारी होती सदा कुटुंब समुदाय की आन। बढ़ाती मांगलिक कार्यों में खानदानी विरासत की शान। राह भटकते बच्चों को बीच जीवन में है टोकती। जो कर्तव्य पथ हो अडिग उन्हें बढ़ने से नहीं रोकती। देवें सदैव उन्हें सम्मान जीओं चाहे अपने उसूल। हृदय विह्वल हो उनका करें न कभी ऐसी भूल। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
तन्हाइयों का आलम
हिन्दी शायरी

तन्हाइयों का आलम

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होता है वाकई तन्हाइयों का आलम बुरा दिलों को डुबोती है, उतराती है, गम के समंदर में दिल जिगर तनहाई में जीत सको तो जाने पाएंगे कहां ऐसा समा ये नजारे। घबराते नहीं कसमे वादे से तहे दिल से चाहने वाले चलतें है साथ तब तक, जब तक जिंदगी साथ चले। शेर बब्बर ना करना गम, कसमे वादे तोड़ कर किसी का तड़पें गा दिल दिलो जिगर याद रखना। गुजर जाएगा शमा उदासी का, ए दिल तू गम ना कर फिर मिलेंगे हर लम्हा, इंतजार करते-करते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों क...
जिंदादिल इंसान
कविता

जिंदादिल इंसान

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** खुशनसीब है वो लोग जो खुशियां बांटते हैं। मोहब्बत का राग और मोहब्बत के गीत सब को सुनाते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता उनको कि लोग उनको हँसाते हैं या फिर रुलाते हैं। वो बस चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कान लिए जिंदगी बिताते हैं। वो नहीं देखते कि राह में फूल पड़े हैं या फिर चुभते कांटे, वो बस मस्ती के आलम में खोए, कांटों को भी फूल समझ निकल जाते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
कविता

ये काश्मीर हमारा है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ वैष्णों का धाम यहाँ की शोभा और बढ़ाता है, खड़ा हिमालय इसकी महिमा, मूक स्वर में हीं गाता है। मैं कितना गुणगान करूँ प्रकृति ने रूप सँवारा है, बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। सोने की चिड़ियाँ कहते हैं, ये भी क्या कुछ कम है। जो आँख दिखाये इसको उसका, काल बन खड़े हम हैं।। इसी हिमालय से निकली गंगा की निर्मल धारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई, चारो धर्म समान यहाँ। अनेकता में भी एकता है, होता नित है गान यहाँ।। धूल चटाया वीरों ने जिसने इसको ललकारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। संजीवनी सी कितनी जड़ी, बूटियों का ये संगम है। हिंदुस्तान से बाहर भी इसकी, महिमा का वर्णन है।। गीतकार आनंद ने अपना तनमन इसको वारा है। बोले हिन्द के रखवाले ...
वो जुबाँ पर सवार होती तो
ग़ज़ल

वो जुबाँ पर सवार होती तो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वो जुबाँ पर सवार होती तो। बात कुछ धार-दार होती तो। जान लेती मलाल भीतर के, जब नज़र भी कटार होती तो। बात अपना कहा बदल लेती, एक की जब हज़ार होती तो। उनके चहरे की वो हँसी नकली, अब हमें नागवार होती तो। आज जिसकी ख़ुशी रखी हमनें, जीत वो बार -बार होती तो। इन बहारों से दोस्ती रखती, तितली गर होशियार होती तो। पास रहती वो दूर होकर भी, मुझ सी वो बेकरार होती तो। फिर अंधेरो का डर नहीं होता, रोशनी आर -पार होती तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
पंख
कविता

पंख

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दिए है जिसने पंख, उसने आस्मां बख्शा होगा। आज को देख मनुज, कल किसने देखा होगा। व्यर्थ न कर चिंता, चिंता! चिता का स्वरूप है, चिता जलाती मुर्दे को, चिंता जलाती जिंदा होगा। पंख फैलाए उन्मुक्त गगन में, उड़ान भरकर देख, आसमां के तारे तेरे, तू सितारों का आसमां होगा। कोशिश अगर करेगा, जमीं कदमों से नाप लेगा, हसरतों के शहर में, खुशियों का बाजार होगा। ख्वाहिशों के घोड़ों को, लगाम देना सीखिए, दुनिया उसी की है, बुलंद जिसका हौसला होगा। हर आंगन में दरार, यह स्वार्थ का रिवाज है, अपने हो गए पराएं, बस गैरों से परिवार होगा। पंख कतरनें को बैठे हैं, गगन की दहलीज पर, जीत उसी की होगी, जो अपनों से सावधान होगा। बेगैरत है दुनिया, दूध में चलती तलवार देखी है, खंजर पीठ में उतारने वाला, कोई अपना होगा। परिचय :- डॉ. भगवान सहा...
युद्ध की विभीषिका
कविता

युद्ध की विभीषिका

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** युद्ध की विभीषिका का साक्षी इतिहास है क्या समर से हुआ कभी मानव का विकास है? वसुंधरा पर जब-जब गूंजा रणभेरी का नाद है मिटी सभ्यता, समूल नाश का हुआ शंखनाद है। क्या शक्ति से जीतकर बनता कोई महान है? युद्ध शोक से रोता हर पल मानव का अंतर प्राण है। अब तक इतने युद्ध हुए क्या भला किसी का होता है? बल हिंसा और शस्त्र प्रयोग से धरती का मन भी रोता है। अहं भाव जब मानव मन पर हावी होता जाएगा पर पीड़ा को भूल सदा वह रण में डूबा जाएगा। कब तक युद्ध सहेगी धरती सोचो और विचार करो विश्व बंधुत्व और शांति, अहिंसा का मिलकर सभी प्रचार करो। मन का द्वेष मिटाकर ही तो होगा नित सबका उत्थान युद्ध रोक कर लाना होगा फिर से नवजीवन का विहान।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम....
अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस
गीतिका, छंद

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
नर्स दिवस
कविता

नर्स दिवस

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। देखभाल को सदा मरीजों के, घर -घर तक जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। उपयोग सदा ही करती है, वह शारीरिक विज्ञान का। देखभाल में ध्यान रखे वह, रोगी के सम्मान का। कितनी मेहनत संघर्षो से, एक नर्स बन पाती है फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है सदा बचाती है रोगी को, दुख, दर्दो, बीमारी से । भेदभाव को नहीं करे वह, नर रोगी और नारी से। देख बुलंदी को नर्सों की, बीमारी डर जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देती शिक्षा और सुरक्षा, बीमारी से बचने की। कला नर्स को आती है, रोगी का जीवन रचने की। असहाय मरीजों की केवल, परिचायक ही तो साथी है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देखभाल का जिसके अंदर, एक अनोखा ग्यान ...
माँ
कविता

माँ

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** सबने कहा माँ कि तू चली गई है, कभी ना लौटने के लिए। इस जहांँ से दूर उस दीनबंधु के पास तू चली गई है । पर मैं कैसे मान लूँ ? तू ही बता माँ इन बातों पर विश्वास मैं कैसे करूँ? जबकि मुझे पता है कि तू यहीं है। सामने जो तुमने पौधे लगाए थे, जो कभी तेरी ममता पाकर मुस्कुराए थे, वे अब लहलहा रहे हैं। जैसे तेरा स्नेहिल स्पर्श उन्हें आज भी मिल रहा है। फिर कैसे मान लूँ कि तू चली गई है? तेरे आँचल में जो स्नेह, दुलार और संस्कार मैंने भर-भर के पाए थे, मुझसे होते हुए वे बच्चों तक पहुंँच रहे हैं । तेरी दी हुई उन्हीं सीखों को अपनाकर वे पुष्पित, पल्लवित हो रहे हैं। ये सत्य दिख रहा हर पल मुझे। फिर कैसे स्वीकार लूँ कि तू चली गई है? मायके की हर एक दीवार को छूने से तेरे मृदुल स्पर्श का अहसास होता है। और वहा...
चारो खाने चित्त
दोहा

चारो खाने चित्त

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** चारो खाने चित्त हो गए अब खत्म हो गया खेल अहम खा गया बबुआ को अब जी भर बीनें बेल मुर्गा मदिरा मज़हब जैसा चला न कोई चारा हाथ मल रहे लुटिया डूबी अब्बा हुए बेचारा चचा भतीजा और बहन जी सभी हो गए पस्त हाथ मल रहा हाथ हुआ जो हर मंसूबा ध्वस्त राजनीति की पिच पर देखो खा गए ऐसा धक्का क्लीन बोल्ड बबुआ हुए अब हैं हक्का बक्का मिट्टी में मिल गए ख्वाब सकते में सैफई कुल ओम प्रकाश बड़ बोले की भी सिट्टी पिट्टी गुल गढ़ते रहे समाजवाद की नित्य नई परिभाषा ताक में बैठी जनता ने पलट दिया ही पासा स्वामी की भी अक्ल गुम बिखर गई हर आस बुत्त हो गया कुनबा सारा हुआ पुनः वनवास अक्ल के मारे चौधरी की देखो चर्बी गई उतर हेल का मारा बेल हुआ ना सूझे कोई डगर रहो सदा औकात में बंधु कहते यही बुजुर्ग अहंकार में ढह जाएगा बन...
गीत तुम्हारे स्वर मेरे
कविता

गीत तुम्हारे स्वर मेरे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी गमो का साया भी नहीं पड़े तुम पर। खुशी की गीत गाओ उदासियों की महफ़िल में। बहुत सुकून मिलेगा मायूसो के चेहरे पर। महफ़िल में रोनक आ जायेगी तुम्हारे गीतों को सुनकर।। मिले गमो का साया भी, उसको भी गीत बना लेंगे। तेरी जुल्फों की साया में हम सारी रात बिता देंगे। क्योंकि सुनकर तुम्हारे गीत मै मोहित हो गया हूँ। भूल गया सारे गमो को और दिवाना हो गया हूँ। दिलकी धड़कनो में अब तुम ही तुम धड़क रही हो।। अब मुझे न नींद आ रही न ही मन मेरा लग रहा है। अब तेरी याद सता रही है और बेचैनी बड़ा रही है। मुझे अपना मीत बना लो होठों से मेरे गीत सजा लो। तुम्हारी बेचैनी मिट जायेगी जब दिलमें शमा जाओगी।। अब तुम्हें देखकर लिखता हूँ। और बस तुम्हें ही गाता हूँ। आवाज़ मेरी होती है पर दिलसे तुम गवाते हो। और मेरी वाह-२ करवाते हो।। ...
नशा
हाइकू

नशा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नशा धुंए का तम्बाखू से है भरा भस्माने वाला फैशन बनी जहरीली धौंकनी सेहत हानि जले फेफड़े केंसर के दुखड़े नुक्सान बड़े धुँआ फैलाते संगी साथी भोगते गन्दी आदतें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आप...
मातृ दिवस
कविता

मातृ दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मां की छवि ईश्वर सम, मत खोजो तुम तोड़। सपने सच करती चले, व्यर्थ मां से होड़।। प्रेम हिफाजत ध्यान में, गुजरे सालों साल। बाल न बांका हो सके, हरदम ठोके ताल ।। रोटी टुकड़े चार जब, खाने वाले पांच। भूख नहीं है मां कहे, चरम स्नेह की आंच।। कष्टों में मां घिरी रहे, दब जाती है हूक। मुंह खुले आशीष में, अकसर दिखती मूक।। करे बच्चों की पैरवी , बनती रहती ढाल। बरसो बरस राज रहे, ये ममता की चाल।। मातृ दिवस याद सिर्फ, चल न सके परिवार। ममत्व छांव पले सदा, जल थल नभ संसार।। जनम जनम न उतर सके, मां का ऐसा कर्ज। भाग्य यदि मां देखती, कोख पले का फर्ज।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
कविता क्या है
कविता

कविता क्या है

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** कविताएं तो होती हैं एहसास मन के उड़ान दी गई हो जिन्हें पंछियों की जैसी चुन-चुन के कलियां बागों से पिरोया गया हो जिन्हे शब्दों के हार जैसे सुरों की मधुर सरगम देकर एक लय में डाला गया हो संगीत जैसे हृदय के कोमल स्पर्श से छू कर पानी की ठंडी छींटो से नहलाया हो जैसे कविताएं तो है दास्तां प्यार भरी नव विवाहित जोड़े की हंसी हो जैसे दिल के किसी कोने में पड़ी राह तलाशती हो मंजिल जैसे सकून मिलता हो जहां जीवन का प्रफुल्लित हो जाते बाग बगीचे जैसे लोरी सुनाकर कोई बचपन की मां ने गोदी में सुलाया हो जैसे परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
बरसते आँसुओं को देखो
ग़ज़ल

बरसते आँसुओं को देखो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** देखना है तो बरसते आँसुओं को देखो मुस्कुराते हुए इन होठों में क्या रखा है। पोछना है तो बहते आँसुओं को पोंछो बेवजह!दुख व दर्द देने में क्या रखा है। देखना है तो कराहते आहों को देखो किसी के झूमते कदमो में क्या रखा है। बाँट सको तो किसी को खुशियाँ बाँटो बेवजह!खुशियाँ छिनने में क्या रखा है। देखना है तो तरसते आँखों को देखो किसी के खुश जिंदगी में क्या रखा है। दे सको आंखों को चैन का चमक दो बेवजह!आँसु को देने में क्या रखा है। देखना है तो बेबस लाचारों को देखो किसी के मस्त जिंदगी में क्या रखा है। दे सको तो उनको कुछ सहारा दे दो बेवजह!बेसहारा करने में क्या रखा है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...