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पद्य

जो आसमां को छूने के ख्वाब देखते हैं।
ग़ज़ल

जो आसमां को छूने के ख्वाब देखते हैं।

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जो आसमां को छूने के ख्वाब देखते हैं। हम तो उन्हें दर-दर ठोकरें खाते देखते हैं।। हम तो सदा अपनी औकात में ही रहते हैं। क्योंकि हम तो ख्वाहिशें ही नहीं रखते हैं।। नजूमियों के चक्कर मे न पड़ मेरे दोस्त । हम तो मेहनत व दिमाग से काम करते हैं।। दुनियां में धन-दौलत की तो कमी नहीं । हम तो किस्मत के लिखे पर विश्वास रखते हैं।। "नाचीज़" हम मज़हब के घेरे से कोसों दूर हैं। हम तो सर्वधर्म-समभाव में विश्वास रखते हैं।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन...
खुद को गढ़ना…. होगा
कविता

खुद को गढ़ना…. होगा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपनी तकदीर से, अब तुम को, खुद ही लड़ना होगा। तुम हाथों की, कठपुतली नही। अपने अस्तित्व को, खुद ही गढ़ना होगा। खुद ही लड़ना होगा। अपनी तकदीर से, अब तुम को, युगों-युगों से, हाथों के कारागृह बदलते आये है। तुम को कैसे जीना है। यह सीखाने वाले, बस नाम बदलते आयें है। अपने नाम को, नारी तुम... आयाम नये भर दो। खोखले आडंबरों पर, पलट अब वार जरा कर दो। खुद को गढ़ कर, अपनी पहचान बिना... किसी के मोहताज तुम कर दो। जीवन को असितत्व देती हो। तुम क्यों रहो मोहताज। खुद को गढ़ लो। फौलाद से, तोड़ दो अबला का ताज। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्...
बादल मन मेरा
कविता

बादल मन मेरा

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गरम रेत पर बरसता बादल मन मेरा ! बूंद-बूंद को तरसता बादल मन मेरा ! हमेशा हालात हवाओं ने बदला किए कतरा-कतरा बिखरता बादल मन मेरा ! समंदर सी खारी किस्मत बनी हमारी ऊंची लहरों से मचलता बादल मन मेरा ! काली घटाओं के साथ मिलता कभी पहाड़ों पर फिसलता बादल मन मेरा ! काली बदलियों के झुंड आकर घेर लेते बिजलियां देख गरजता बादल मन मेरा ! जलाती गर्मियों में आकाश पर चढ़ाई प्रेम सागर को भटकता बादल मन मेरा ! युगों से वाष्प बनकर खुद को छलता बार-बार मन बदलता बादल मन मेरा ! अपूर्णता से पूर्णता प्राप्ति की ललक सदा नदियों संग बहता बादल मन मेरा ! अजब आकर्षण वसुधा और व्योम में गिरता, छुपता, निकलता बादल मन मेरा ! परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्व...
सिंदूरी बंधन
कविता

सिंदूरी बंधन

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सिंदूर का यह सिंदूरी बंधन बांधे रहे तुम्हें मुझसे ... और मुझसे तुम्हें ।। चमको मेरे माथे पर बिंदिया की तरह महको मेरे तन मन में गुलाबों की तरह बिखरी हुई ये सांसे बांधे रहे तुम्हें मुझसे .... और मुझसे तुम्हें ।। बस जाओ मेरी आंखों में काजल बन कर बिखरो मेरी जुल्फों में फूलों की तरह संदली सी ये खुशबू बांधे रहे तुम्हें मुझसे और मुझसे तुम्हें ।। लिख दो मेरे आंचल पे कहानी अपनी भर दो मेरे दामन में सारी रवानी अपनी डूब जाऊं कि तेरे रंग के सिवा कोई रंग ना भाई मुझको रंगों का यह सतरंगी बंधन बांधे रहे तुम्हें मुझसे .... और मुझसे तुम्हें ll परिचय :- अर्चना लवानिया निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
भंवर में सफीना
ग़ज़ल

भंवर में सफीना

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** गजल - १२२,१२२,१२२,१२२ भंवर में सफीना न हिम्मत डरी है। न गम जो झुके हैं खुशी कब झुकी है।। उधर एक कंधों पे वो जा रहा है। इधर एक दुल्हन चली आ रही है।। यही जिंदगी है मुसलसल लड़े जो। गमों में खुशी गुनगुनाती फिरी है।। महामारिया भी बहुत देख ली हैं। डरें तो डरें क्यों खुदा तो नहीं है।। खिंजा है कभी तो कभी हैं बाहरें। झरे पात शाखे शजर तो हरी है।। भले रात कितनी ही लंबी रही हो। मगर रात की भी सहर तो हुई है।। हकीकत यही है बता दो सभी को। चली कब किसी की भी दादागिरी है।। खुशी कब किसी की ऐ "अनंत" हुई है। बड़ी बेवफा है बड़ी मनचली है।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प...
मां सरस्वती के चरणों में वंदना
कविता, भजन

मां सरस्वती के चरणों में वंदना

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखो वसंत पंचमी का शुभ दिन आया, मां सरस्वती के अवतरण का मंगल दिन आया, सफेद वस्त्रों में सुसज्जित मुख पर असीम शांति, होठों पर मीठी मुस्कान, आंखों से छलक रहा स्नेह का निर्झर, कितनी सुंदर मेरी मां है भारती-वागेश्वरी। हाथों में है तेरे वीणा, सुरों की तु सुरीली देवी, तुझसे ही है सारा संगीत, राग-रागनियाँ और मधुर लहरियाँ, कितनी मीठी शहद सी तेरी वाणी, मेरी मां है वीणापाणी। हंस पर तु विराजित, मोतियों सी तु दमकती, तेरे चेहरे पर छलकता नूर कर देता मन का सारा संताप दूर, हर लो हमारा अज्ञान, दे दो हमें ज्ञान मेरी मां है हंसवाहिनी। तु बह्मा पुत्री-वेदों की अधिकारी, शब्द-शब्द में तु समायी, मां से शुरू हुआ संसार, तुझसे ही पाया अक्षर अंक का ज्ञान, दे दो हमें वरदान, बना लो अपना अधिकारी -वारिस मेरी मां हे शारदे...
चरित्र निर्माण
कविता

चरित्र निर्माण

कीर्ति दिल्ली विश्वविद्यालय ******************* मानव चरित्र का निर्माण कभी एक दिन मे नही होता जो गिर जाने पर दोबारा एक दिन मे उठा लोगे उम्र के कई साल निकल जाते हैं इसे मोतियो सा चमकाने में आभा होती हैं ऐसी चरित्र की जो करती है गुणगान तुम्हारे चरितार्थ का चरित्र दोष व्यक्ति के चरित्र को बहुत औछा बना देता हैं विशिष्टता चरित्र की समाज में उसको एक नया दृष्टिकोण देता हैं मुख से निकाला गया अपशब्द तुम्हारा स्थान गिरा देता हैं तुम्हारी चरित्र की शोभा को एक छण में फिर मिट्टी में मिला देता हैं सम्मान यहाँ तुम्हारा तुम्हारे रूतबे का नही घुमा लेने पर पीठ रूतबा भी यहाँ परिहास का कारण बनता हैं चरित्र हो ऐसा तेरे न होने पर भी गुणगान का कारण बनता हो। परिचय :-  कीर्ति (एम.ए) निवासी : दिल्ली विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक ...
लक्ष्मण ने खींची मर्यादा की रेखा
कविता

लक्ष्मण ने खींची मर्यादा की रेखा

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** लक्ष्मण ने खींची मर्यादा की रेखा थी यह अपनत्व भरी सुरक्षा की रेखा सीता साध्वी सुलक्षिणी गुणखानी कुल वंश मर्यादा उससे ही थी जानी था चित्त व्याकुल, अशांत व आकुल चिन्ताओं के उठ गिर रहे थे बुलबुल धर साधु वेश कपटी रावण आया भिक्षानंदेहि, की गुहार है लगाया सतवन्ती कर्त्तव्यनिष्ठ प्रिया रघुवर लेकर भिक्षा आयी, देने को सत्वर जान मर्म रेख की, छली ने बाहर बुलाया किंचित रुकी, पुन: भिक्षा देने, कदम बढाया असुर विनाशन हित कैकेयी बनी ज्यों कारण सीता भी, दु:ख सहने हित, बढ चली अभगन यह लक्ष्मण रेख, रामकथा का है शिलालेख संपूर्ण कथा की संरचना का भी है आलेख। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य स...
काश मेरा भी एक …
कविता

काश मेरा भी एक …

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** काश मेरा भी एक घर होता, इस छांह में, मेरा सर होता, राह में भटकनें पर भी, यहां, मेरा भी यार एक, दर होता, मायूस थे दुश्वारियों, से हम, अदावट का फिर, ड़र होता, इल्म की राह, कभी चले नहीं, सफे पर हमारा, अक्षर होता, देखी, दुनिया की खुशनसीबी, काश, अपना भी मुकद्दर होता, जेहन में है गजब का जज़्बा, काश, जोश का, समंदर होता" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुय...
उद्वेग
कविता

उद्वेग

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अछूते मन को छू गया कोई अछूते मन को छू गया कोई समीर का झोका बन दिल किसी का चहक गया हैं कहीं अकुलाहट सी कहीं दामिनी ने रोक दिया कहीं पवन आने थाम लिया उलझनों के साये में क्यों तिमिर डोल गया भावों के उद्वेग मैं लिख दूं सोपानों पर चढ़ते-चढ़ते कहीं भावो का ज्वार कम न हो शब्दों की माला पिरो लूं परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं...
गाँव
कविता

गाँव

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुन्दर शोभित शीतल गाँव हमारे हैं। उनपर मोहित सूरज-चाँद-सितारे हैं। हरे-भरे हैं वहाँ खेत-खलिहान सभी। श्रम करते हैं कृषक आलसी नहीं कभी। हरियाली के कारण भू पर न्यारे हैं। सुन्दर शोभित शीतल गाँव हमारे हैं। सजती है चौपाल नीम के वृक्ष तले। वहाँ प्रश्न हल करते हैं कुछ लोग भले। वहाँ स्नेह बन्धन है, भाईचारे हैं। सुन्दर शोभित शीतल गाँव हमारे हैं। पर्यावरण प्रदूषण पीड़ित गाँव नहीं। कहाँ बताओ वहाँ मनोहर छाँव नही। वहाँ शुद्धता के पग-पग उजियारे हैं। सुन्दर शोभित शीतल गाँव हमारे हैं। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, ...
गुनगुना
कविता

गुनगुना

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन ये गीत है जीवन संगीत है बिसार सारे गम ,कर कड़वी बाते अनसुना गुनगुना गुनगुना जीवनगीत गुनगुना ।। देख बहारे फूलों की सावन के झूलो की खुशियों से भरे चेहरे जीवन के रंग गहरे पलके उठा के देख जरा जीवन मे है रस भरा मीठा मीठा कुनकुना गुनगुना गुनगुना जीवनगीत गुनगुना ।। बादलों की छांव में मेरे अपने गांव में है चहरे पे भोलापन लोगो मे है अपनापन ये घट नही है रीते प्रेम स्नेह है सब पीते रह नही सकता यहां कोई भी अनमना गुनगुना गुनगुना जीवनगीत गुनगुना ।। प्राची के सूरज को वंदन है इस रज को मेरे अपने देश मे देवता मिले दरवेश में बात नही चिंतावाली है सभी और खुशहाली छुपा मत सुना सुना गुनगुना गुनगुना जीवनगीत गुनगुना ।। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म....
घुंघट काड ले रे गुजरिया
कविता

घुंघट काड ले रे गुजरिया

अलका जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घुंघट काड ले रे गुजरिया घुंघट काड ले रै घुंघट में मेरा जिया घबराय रे सांवरे मे ना लूं घुंघट मेरा जियो धडके रे सावरे जा गांवों की सारी लुगाई घुंघट डाले गुजरिया रे लोग थारे भला बुरा बोलेंगे गुजरिया रे कहनो मान लें रे गुजरिया कहा मान रै घुंघट काड ले रे गुजरिया घुंघट डाल लें गांव की सारी लुगाई घुंघट डाले लम्बो-लम्बो रे गुजरिया रिवाज ना छोड़ गुजरिया रे औ गुजरिया कहनो मान लें रे गांव की सारी लुगाई काली-काली से ले जा मारे वो लम्बो-लम्बो घुंघट काढ़े ये सांवरिया रे मेरा रूप रंग चांद सा सुंदर में काहे डालूं घुंघट डालूं सारा गांव में मेरे प्यार में पागल से ले सांवरिया रे दिवाना रे घुंघट काड ले रे गुजरिया घुंघट डाल लें रे मैं रूप की रानी काहे डालूं घुंघट रे सांवरिया घुंघट काड ले रे गुजरिया घुंघट डाल रे परिचय :- इ...
जन्मदिन
हास्य

जन्मदिन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अच्छा है बुरा है फिर भी जन्मदिन तो है, मगर आप सब कहेंगे इसमें नया क्या है? जब जन्म हुआ है तो जन्मदिन होगा ही। आपका कहना सही है, बस औपचारिक चाशनी की केवल कमी है। उसे भी पूरा कर लीजिए बधाइयों, शुभकामनाओं का पूरा बगीचा सौंप दीजिये, दिल से नहीं होंगी आपकी बधाइयां, शुभकामनाएं मुझे ही नहीं आपको भी पता है, मगर इससे क्या फर्क पड़ता है? कम से कम मेरे सुंदर, सुखद जीवन और लंबी उम्र की खूबसूरत औपचारिकता तो निभा लीजिये। मेरे जीवन यात्रा में एक वर्ष और कम हो गया यारों, जन्मदिन की आड़ में मौका भी है, दस्तूर भी, जीवन के घट चुके एक और वर्ष की आड़ में मन की भड़ास निकाल लीजिए, बिना संकोच नमक मिर्च लगाकर शुभकामनाओं की चाशनी में लपेट मेरे जन्मदिन का उत्साह दुगना तिगुना तो कर ही दीजिए। कम से दुनिया को द...
ज्योतिपुंज
कविता

ज्योतिपुंज

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** महा ज्योतिपुंज को कर नमन, आओं मिल हम संकल्प धरें। शोषित निराश्रितों के बन मसीहा, पुरज़ोर शिक्षा की अलख जगाएं। दलितोत्थान के बन प्रबल समर्थक, मिल जाति धर्म का भेद मिटाएं। हो ज्ञान-विज्ञान से साक्षात, अज्ञान तमस को दूर भगाएं। सामाजिक कुरीतियों को कर दूर, फुले दम्पत्ति के आदर्श अपनाएं। क्रांति सूर्य के विचारों को आत्मसात करें, महा ज्योतिपुंज को कर नमन....। नारी शिक्षा को दे बढ़ावा, आदिकाल से कितने कष्ट सहे। जब बनें आत्मनिर्भर व स्वालंबी, तब कैसे? करूणा के अश्रु बहे। विद्यार्जन कर नारी बनें विदुषी, जीवन विपदाओं से न घिरे। बनें अनुशासित कुटुम्ब समाज, परिवार एक से दो तरे। अनगिनत यातना अत्याचार हरे, महा ज्योतिपुंज को कर नमन....। कर दीनहीन निराश्रितों की मदद, निज सा उभारने की कोशिश करें। हर मानव धरा...
बरसात की बूंदें
गीत

बरसात की बूंदें

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हमसे पूँछ रही है बरसात की बूंदें पता तुम्हारा..... रहते हो मुझमें तुम और पता बता दिया दिल है हमारा..... सावन की पहली बरसात जो तुम से मिलने आएं....... बूंदों में मुझे तुम देख लेना....... पीकर तुम उन बूंदों को मन अपना भर लेना..... फिर भी अगर तन्हाई न जाएं........ ख्वाबों में मुझे तुम बुला लेना...... अपनी नींदों में मुझे तुम सुला देना....... हमसे पूँछ रही है बरसात की बूंदें पता तुम्हारा..... रहते हो मुझमें तुम और पता बता दिया दिल है हमारा..... देखों बारिश तुम से मिलने आई है..... हवाओं में भी मदहोशी छाईं है..... एक अलग खूशबू फूलों में समाई है..... धरा की खूबसूरती मन को भाई है..... नदियों ने भी अपने किनारों से छलांग लगाई है..... फिर भी मौहब्बत में ये कैसी तन्हाई है..... हमसे पूँछ रही है बरसात की...
तरस रही हूँ
कविता

तरस रही हूँ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मोम की तरह पूरी रात दिल रोशनी से पिघलता रहा। पर वो इस हसीन रात को नहीं आये मेरे दिल में। मैं जलती रही और नीचे फिर से जमती रही। फिर से उनके लिए जलने और उनके दिल में जमाने के लिए।। हर रात का अब यही आलम है वो निगाहें और वो दरवाजा है। देखती रहते है निगाहें दरवाजे को शायद वो आज की रात आ जाए। इसलिए सज सबरकर बैठी हूँ चाँद के दीदार करने के लिए। और कब उनके स्पर्श से अपने आपको इस रात में महका सकू।। इस सुंदर यौवन शरीर का क्या करू जो उन्हें आकर्षित नहीं कर सका। लाख मुझे लोग रूप की रानी और स्वर की कोकिला कहे पर। ये सब अब मेरे किस काम का है जो उन्हें अपनी तरफ लगा न सका। इसलिए हर शाम से रात तक और फिर पूरी रात जलती और जमती हूँ।। ये मोहब्बत है या वियोग या और कुछ हम आप इसे कहेंगे।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के...
हम कबीर के वंशज
गीत

हम कबीर के वंशज

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कलम हाथ में है हमको ये, नाविक पार उतारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। हिन्दू मुसलमान दोनों को, जो उठकर ललकार सके। अंधकार को नूर के कपड़े, पहना कर तम मार सके।। नहीं दुश्मनी किसी से पाली, मित्र सभी के कहलाये। क्या करते वे आईना थे, सब के दाग नजर आये।। हम भी उनके पथ अनुगामी, लोक हमें स्वीकारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। अपनी प्रतिभा और गति को, अपनी जिद से चमकाई। राम नाम का मंत्र सीखकर, निर्गुण की महिमा गाई।। मंदिर मस्जिद काबा काशी, छाप तिलक या हो माला। सब को दूर रखा चाहत को, अपना खुदा बना डाला।। यही सिखाया कर्म सभी के, पथ के खार बुहारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। जिस पथ चले "अनन्त" कबीरा, पथ कबीर का कहलाया। सुविधा स...
अपना पराया
कविता

अपना पराया

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** पड़ोसी सारे अपने है और घर के है गैर पड़ोसी सांथ है निभा रहे घर को में बैर पड़ोसियों से हो रहा अपनेपन का भान घर में भाई रह रहे जैसे हो अनजान आज घरो से मिट रहा सारा शिष्टाचार भाई भाई के बीच में बनी रहे तकरार मांत पिता से कर रहे बच्चे ऐसे बात बात बात में मारते जैसे जूते लात बाहर के सब लोग तो देते है सम्मान लेकिन घर के भीतर हीं क्षीर्ण हुआ है ज्ञान भीतर भीतर ढूंढ़ते है खुद का सम्मान किसको आदर भाव कब स्वयं नही है ज्ञान छोटो को तो क्षमां नही बढ़ो को न सम्मान आप ही नें बना लिया केसा ये अभिमान बड़ा समझता है खुदको तो झुक कर रहना सीख अभिमानी को तो कभी मांगे मिले न भीख छोटा बन कर देखले हे छोटी सी बात झुकजाने से न कभी घटती अपनी जात पेड़ आम का देखलो देखो पेड़ गुलाब भरे हो फल और फूल से झूटे जा...
जिंदगी का ये सच
कविता

जिंदगी का ये सच

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** अपनों के बीच संबंधों का आईना देखा हैं बहुत करीब से। बनते तो ये व्यवहार करने से पर बिगड़ जाते हैं कर्कश शब्दों से। रिश्तों के नाम पर ये कैसी वफा हैं उम्मीदें मन की सब लगाए बैठे हैं झूकना पसंद नहीं हर किसी को यहां झूठे अहं में वे जिंदगी गवां बैठे हैं। अकेलेपन का नासूर रोज निगल रहा अपनों से दूर हो रहा नाजुक ये रिश्ता कमबख्त जिंदगी का ये कैसा सच हैं जी कर रोज दफन हो रहा ये रिश्ता । ना चेहरों पर खुशी हैं ना रिश्तों में प्रेम नकली मुस्कान का ये कैसा दर्द। एहसास हो जाता हैं नकली बनावट से रिश्तों के संबंधों से टूटकर बिखर गया अपनों से अपनों का वो अपना दर्द । सरल नहीं इतना आसान जीने का जितना जीने को जीने के लिए चाहिए। समय व्यर्थ गवां बैठे हम इस जहां में अब जिंदगी को सबकी परीक्षा चाहिए करोड़ों जन्म क...
बदला रूप बादल दिखाया
कविता

बदला रूप बादल दिखाया

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जेठ निकले तो आषाढ़ आया, उमड़-घुमड़ कर बादल आया। बदला रूप बादल दिखाया, झमाझम रिमझिम पानी बरसाया।। धरती माता कर रही पुकार, बिल से निकलो दौड़ो पार। साँप बिच्छू सब जीव अपार, मेंढक टर्र टर्र किया जोरदार।। मेघ देख जल बरसाया, बदला रूप बादल ... बैसाख की घमोरियां मिटाई, गरमी की तो उमस भगाई। पुरवैय्या,पछुआ से जग सरसाई, धरती की सौंधी खुशबू आई।। पेड़-पौधे,फूल-पत्ती मौज मनाया, बदला रूप बादल ... किसान खेती में लग गये भाई, हल चलावत करे बुआई। आगे महिना आषाढ़ जुलाई, मदरसा खुल गई करें पढ़ाई।। गुरूजी ने तो खूब पढ़ाया, बदला रूप बादल ... भारत भूंईया हरियाली छाई, मौसम देख कर मुस्कराई। देखो देखो घटा अब आई, मोर पपिहा सब चिल्लाई।। मनोरम दृश्य श्रवण को भाया; बदला रूप बादल ... परिचय :- धर्मेन्द्र कुम...
ओम प्रीत की जोड़ी
कविता

ओम प्रीत की जोड़ी

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** निजस्वप्न में सोचा था मैंने एक सुंदर सा मेरा हमसफ़र होगा। जीवन पथ में बढ़ने को बेहद ही खूबसूरत सा सफर होगा। मिला आशीष जब माता का इक्कीस जून नव को मैं प्रीति से मिला। परिणय बंधन में बंधकर एक दूजे को जीने का शुभआलम्ब मिला। मिथिला अरुण की कली को वेद अश्वनी के पुष्प ने जीवन साथी बनाया। दोनों परिवारों ने देखो कितना सुंदर पुष्पों का यह एक हार बनाया। हर पल हर क्षण तेरा मेरा दिल से दिल का खूबसूरत साथ रहता है। जुबाँ कुछ कहे या ना कहे पर, जज्बात हर बात अपनी एकदूजे से कहता है। विचारों का टकराव तो कभी कभार जीवन में होता ही रहता है। पर अंतर्मन की नदी से प्रतिपल प्रेम का बहाव सदा बहता रहता है। ओम प्रीत के उपवन में मान्यता उपलब्धि देवी रूप में आई, श्रीवास्तव परिवार को देखो असीम उपलब्धियाँ हैं दिलाई...
मूक क्रांति हो
कविता

मूक क्रांति हो

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** भार ज्यों धरा उठा रही पवित्र पातकी। क्लेश ना ही द्वेष हिय समान भाव मातृ सी। हो सशक्त नारी तो ना बंदिनी वो वंदनीय। अवनि के आलोक से करे प्रभा आकाश की।। बन कुमुद है शोभती जो दामनी सी कौंधती। रोड़ो को स्वयं वधे वैधव्यता को बांधती। कर दमन आडंबरों का शांत व्यंग्य रागिनी। भेदभाव भस्म यूँ करे कोई दावाग्नि।। निश्चयों को दृढ़ करे सुमार्ग पथ स्वयं वरे। लक्ष्य पक्ष में करे वो दिव्यता को धारती। तर्क भेदी शूल कुप्रथाएं सारी धूल हों चित्त शांति व्यक्त तृप्त आत्माभिमान की।। सूर्य के समान तेज वायु सा प्रचंड वेग। फूल सी खिली हो फिर भी अग्नि में तपी हो जो। झेलती चली हो रूढ़ि और सारे बंधनो को। उठ खड़ी बेबाक उनको रौंदती बढ़ी हो वो।। राह में हों कितने कष्ट लोग हो चले हों रुष्ट । हों अनन्य दुष्ट एक क्षण भी ना डिगी हो जो। इस धरा सी...
आंखें थकती नहीं
कविता

आंखें थकती नहीं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सजग प्रहरी बन गई, सीमा पर टकटकी, दुश्मनों को ढूंढती, देखे जो सोचती सही, नींद भरे नयन है, पर मजाल क्या छिपते, अनवरत देखती रहे, ये आंखें थकती नहीं। पहाड़ों पर बर्फ जमी, दूर तक वर्षा कहीं, फूलों की खुशबू में लगे, आंखें वहीं टिकी, पेड़ों के आलिंगन में, चूम लेती नभ दूरियां, ये आंखें थकती नहीं, माथे पर पड़े झूरियां। आंखें थकती नहीं, देखती व्योम के नजारे, अपना कोई मिल रहा, लग रहे सुंदर प्यारे, टकटकी लगा देखती, नृत्य करते राजदुलारे, दूर कोई अपना होता, ये आंखें उसे पुकारे। सुबह होती भोर देखे, शाम के सुंदर नजारे, वादियों में दूर तक, बिखरे पड़े कई नजारे, प्रेमी युगल देखती, करती तब आंखें इशारे, आंसुओं से भीगती, दर्द में जब दिल पुकारे। जीवन से मृत्यु तक, नयन क्या क्या देखती, अच्छी बातें याद रखती, बुरी को वो फेंक...
बरिश की बूदें
कविता

बरिश की बूदें

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** अबकी ये सावन भीगे रात सुहानी हो जाये! तेरे मेरे अश्रु मिलन की एक कहानी हो जाये!! बादल हो फिर मूक यहाँ पर, हृदय वेदना ऐसी हो! क्षितिज जहाँ पर मिल कर, मिले न, एक जवानी ऐसी हो!! न कोई विकल्प बचा हो, न क्षणभंगुर परिभाषा,! लिपटी हो आलिंगन मे, एक रवानी ऐसी हो!! टूट सके न बंधन अपना, न ही कोई वादा हो! बूदें फिर से नदियाँ बन, सागर में समायी ऐसी हो!! मिलकर जो मिल न सके, जीवंत कहानी ऐसी हो!!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...