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तरस रही हूँ

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मोम की तरह पूरी रात
दिल रोशनी से पिघलता रहा।
पर वो इस हसीन रात को
नहीं आये मेरे दिल में।
मैं जलती रही और
नीचे फिर से जमती रही।
फिर से उनके लिए जलने और
उनके दिल में जमाने के लिए।।

हर रात का अब यही आलम है
वो निगाहें और वो दरवाजा है।
देखती रहते है निगाहें दरवाजे को
शायद वो आज की रात आ जाए।
इसलिए सज सबरकर बैठी हूँ
चाँद के दीदार करने के लिए।
और कब उनके स्पर्श से अपने
आपको इस रात में महका सकू।।

इस सुंदर यौवन शरीर का क्या करू
जो उन्हें आकर्षित नहीं कर सका।
लाख मुझे लोग रूप की रानी और
स्वर की कोकिला कहे पर।
ये सब अब मेरे किस काम का है
जो उन्हें अपनी तरफ लगा न सका।
इसलिए हर शाम से रात तक और
फिर पूरी रात जलती और जमती हूँ।।

ये मोहब्बत है या वियोग या
और कुछ हम आप इसे कहेंगे।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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