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जिंदगी का ये सच

डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’
नागपुर (महाराष्ट्र)
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अपनों के बीच संबंधों का
आईना देखा हैं बहुत करीब से।
बनते तो ये व्यवहार करने से
पर बिगड़ जाते हैं कर्कश शब्दों से।

रिश्तों के नाम पर ये कैसी वफा हैं
उम्मीदें मन की सब लगाए बैठे हैं
झूकना पसंद नहीं हर किसी को यहां
झूठे अहं में वे जिंदगी गवां बैठे हैं।

अकेलेपन का नासूर रोज निगल रहा
अपनों से दूर हो रहा नाजुक ये रिश्ता
कमबख्त जिंदगी का ये कैसा सच हैं
जी कर रोज दफन हो रहा ये रिश्ता ।

ना चेहरों पर खुशी हैं ना रिश्तों में प्रेम
नकली मुस्कान का ये कैसा दर्द।
एहसास हो जाता हैं नकली बनावट से
रिश्तों के संबंधों से टूटकर बिखर गया
अपनों से अपनों का वो अपना दर्द ।

सरल नहीं इतना आसान जीने का
जितना जीने को जीने के लिए चाहिए।
समय व्यर्थ गवां बैठे हम इस जहां में
अब जिंदगी को सबकी परीक्षा चाहिए

करोड़ों जन्म के इस चक्र को भी
अब प्रभू नाम का वो जप चाहिए ।
जिंदगी की शाम कहीं ढल ना जाएं
जिंदगी का ये सच समझना चाहिए ।

मौत के रिश्तों की ये जिंदगी है दोस्तों
मौत आने से पहले हम सबको।
जिंदगी के रिश्तों का ये महत्व भी
जीते जी निभाना आना चाहिए सबको।

परिचय :- डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’
मूल निवासी : अमझेरा, जिला धार (म.प्र.)
जन्म दिनांक : १२/११/१९६६
शिक्षा : एम.ए.,एमफिल, पीएच.डी
* वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक
* शिक्षाविद्‌
* भूगोलवेत्ता
* पीएचडी शोध सुपरवाईजर
* कवि, कहानीकार व लेखक
सम्प्रति : (सहायक कुलसचिव ) नागपुर (महाराष्ट्र)
सम्मान : ग्राम गौरव अवार्ड, समाज रत्न सम्मान, समाज भूषण अवार्ड, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, प्रखर प्रवक्ता सम्मान, साहित्य रत्न और साहित्य भूषण सम्मान, यंग ज्याग्राफर्स अवार्ड, क्रांतीकारी लेखक सम्मान, उत्कृष्ट मंच संचालक सम्मान, शब्द अलंकरण सम्मान, सरस्वती मानस सम्मान, उत्कृष्ट समाज सेवक सम्मान आदी सम्मान से सम्मानीत।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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